Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54856 times)

Parashar Gaur

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अभिन्दन 
शिखरों   पर फैलती प्रकाश
करता भोर का अभिनन्दन
बन-उपबन में भेद  तम  को
प्राण फूंकती प्रभाती किरण
रात्री का ब्याकुल अकुलाता  छण
तब  करता शुभ प्रभात का 
अभिनन्दन ........................ !

खग  के,  कल कल करते  कलरब
 देबाल्यो से आते   प्रभाती स्वर
ब्योम   पर तैरती सिंदूरी रंग
देती नव सुबहो को आमंत्रण   !

सरिता बहती अल्हड  नव युवगना सी
मेरु हर्षित होते बाल पुलकित सी
बेग  उन्मत होकर करती आलिंगन
उस सृष्ठी की पहली  पहर  का ...
धरती  करती   तिलक  उस पवित्र पल का !

पराशर गौर
नम्बर २५, ०९,  श्याम ९.५६ पर

Parashar Gaur

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हे भै,    तू  कु  छै ?
 
 
एक  जगह एक साहितिक  कार्य क्रम  छो हुणु ! वे समारोह माँ  ज ण्या  मण्या लोग छा आया  !
आयोजक लोग भैर भीतर छा कना !  तभी एक कुर्ता सुलार पैरी गेट पर कुवी आई ! गेट पर खडू  आदिमल याने कार्यकर्ता  पूछी  ?

" _ आप ?

जी..;;"

गायक ?

ना ?

कलाकार ?

ना ?

मज्यकया ?

ना ?

संगीतकार  ?

ना ?

 हे.. भै .. ,    जब  ,  ई भी नी छा .. उ भी नि छा.....     त क्या छा ?
जी  मी , .. ///     मी , `न त गीतार , ना संगीतकार , न कलाकार !  मी त एक व्यंगकार छो !
 (  हैसद  हैसद   )  वो बोली .    "     . वो ...---,  त इन बोल्दी  कि तुम .. च्क्न्यो वाला छो !  

पराशर गौर
दिनाक १२ जुलाई ०९  दिनम  

Parashar Gaur

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 बाबाओ की दूकान ; 
   
        घुप्या  जनि पैदा ह्वै ,  पैदा हुदै  वेल बोई खाई द !  सब्युन,   वे थै ट्व्का ट्व्का  बुलण  शुरू कैदी !  बुबा कारू भी  त,  क्या कारू ... खैर, जनि कनी कैकी वेल वेथै पाल्ली- पोसी  बडो कई !  जनि वेल आठ पास कारी ,  बबल हाथ खडा कैदिनी  य बोली की,  की,   " बिटा, अब म्यारा   बसों नि राइ तेरी अग्वाडी  की पडाई को खर्च उठाणु !   इन  कैर  की ,तू  भी तखुन्द  जैकी कुछ ध्यली पैसी कामो !  "
     घुप्या अब,  कारू  भी त क्या कारू ! .. कख जो?     क्या कैरो ?  नादाँ उम्र  ,  पडाई  लिखाई भी ज्यादा नि छ !  वो कपाल पर हात लगे की बैटीयु छो की,   तबरी एक बाब आई,   वेसी पुछन लेगी   .. " बेटा यहाँ पर  रीखनी देबी  नेगी का घर कहा पर है .."  बाबा के साथ चार पांच चेले  चांटा भी छाया !  वेल इशाराल उंकू घोर बताई   !  वो बोले   " जरा चल वहा तक हमारे  साथ  " ?   जनी वो,  वख पोचिनी ,    घुप्या क्या दिखदा की रिखणी बोडी लंप तंप कैकी वे बाबा का खुटो माँ   पुड़ीगे !  जू नेगी जी खुणी....  खाणु त  खाणु  ,, चा तक,   नि बाणों दी छई  ,   व,    वे बाबो खुणी दाल भात, सब्जी , बन बनी का पकवान बाणोंण लगी !  बाबा पर खासी को रोग छो   ! हर बगत खप  खप  कनु छो ! नेग्यण  वेकु खंक्हरू तक चै उठोंण पर लगी !   जैन आज तक   नेगी का कपड़ा तक  नि  उठाया !
            घुप्या  घर ग्या !  वेल अपना बाबा से बोली  " बुबा  ..,   न  त मिल अगनै पणई  अर ना ही नौकरी कने ! "
बबल जब य सुणी त,  वेसे बुन बैठी  " त क्या करिलू ..  चोरी च्पोरी ?
 न -- न --  मी बाबा  बनुलू   बाबा  .. !
 त जोगी बणिली .. है ?    बबल पूछी !
बड़े प्यार से वेल बाबा थे समझीइ  ' अछा   एक बात बतो .. ज्यादा पैडी लेखी की ,  ज्याद से ज्याद ३ ४ लाख साल का मिल्ला ना ?  अर जू मी एक ही दिनम  इतका कामे दयुल त  ...?    बबबॆ  की समझम  बात  नि आई   !
       घुप्या रात झणी कबरी सटक  ..  आज पट २० २५ साल हवे गीनी वे थे हर्च्या ! बुबा बिचरू आदा जादो  म   रैद  पुचुणु की  कखी  तुमल ,  मेरु घुप्या भी देखि ...///
घुप्या दिखया आज बाबा घुप्यानाथ बणी की खूब  माल  लुटूणुच  ! च्याला चान्तो की मोज ही मोज ! अर अफु क्या टाट बाट .. !    अबत वेल बाय्कैदा  बाबा बाणनै की एक  इंस्टीटुयुशंन भी  खोल्याली  जख  बीटी हर साल एक ना ,  कई  बाबा निकल दी  !
 
पराशर गौर
नमम्बर २८  ०९ सुबह १०.२३

Parashar Gaur

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 खंतडी  मुडै   छुई

रातिकू खाण-पीणा बाद 
 जनि हम द्वी झाण पवाडा
सुरक ऱजॆ , मुखं धैरी
खुस-पुश - खुश-पुश  बच्याण  बैठा
किलैकी ...........
भैरम  ब्योई  छेई सीई  !
वा, बोली...............,
यैसुका साल
 खेती-पाती  बटवालण क बाद
तुमुन क्या सोची  ?
मी थै दगडी लिजैल्या
य घारे रो  ?
 भाग्यानु  का , सी छी
कुई  खुच्ली पर  त,
कुई पीठम छीन झुंटा खीना
 मेरी दा ,  त  ............. ,
बिधातल भी पट
आखी बुजिदी    !
क्या छा सुचणा ?
कुछ बुल्ल्या भी य इनी ..
छी भै,   युका दगड  भी
उफ़ .......... ,
कुनस युका भी, जू
गिचु तक नि उफर्दा      !
सुणु  छो,    सुणु छो
 दगडा-दगडी  सुचुणु भी छो   
जू .. त्वे दगडी लिजोलू  त
बोई कु क्या ह्वालू  ?
इनकारा , की ,  मि थै  छ्वाडा 
उथै ही लिजाव इबरी   
उकी दों खूब सोची
अर हमरी  दा  पीठ किलै ?

 छई- साथ साल   ह्वेगी ब्यो  कया
भैका सो , ......,
सुनी  डनड्याली  अर
खालि भितरी मी , खाणु आन्द  !

अरै ...,
नि समझ,   नि समझ  उलटा 
 ब्योईल  कतका  जी बचण 
कखी  ,  निरसे -फटगवसे`  जालित ?
प्रभात  पुछुलू   बोई थै
क्या ?
जू ब्याललित , नि लीजो ..
त.... क्या ?   
नि  लिजोल . औरी   क्या ... ?  ! 

 दिखादै दिख्द....
बियाणा धारम एगी
व, पाणी की चली गे   
अर मी.....खंताडी  पर मारी अंग्वाल;
सुचूणु रों , लीजो की, नि लीजो  ?

खैर ........बिखुन्दा  खाद  बगत
बोई ल बोली  ' बीटा ..   
खेती-पाती  संभालेगी
गोर बचुरु   नि न   
 एक  काम कैर  ......
ब्वारी थै तखूंद  ली जा
हवा पाणी भी बदली जालू  अर
दिबा दैणी होई  जाली त
क्या पता मी नाती कु मुख देखि सैकु ?

मिन वीक तरफ देखी
अर वींन मेरी तरफ
लगद जन बुलिद दिब्ल हमरी
बात सुणी याली छीई  !

पराशर गौर

२७ नंबर ०९ ४.३० बजे  स्याम
न्यू मार्किट  कैनाडा

Parashar Gaur

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भ्युलै डालि मुड !

उफ़ ..
 
तुम्हारी भी ,
क्या बुन तब  ?

बगत कुबगत
अगने पिछने  जम नि दिखाण
अर ...
फजत लागुय रैण
मीनू औ ..,  उ भी ..
भ्युलै डालि  मुड !

तुमारु क्या ?

तुम्त सया सटिकी जैल्या
बदनाम हुल्त मी  ..
सरय दुन्या  थू थू  करली
मीकू , म्यारा खानदान कु !


तुमत दांत  निपोड़ी..
कभी... ऐजैल्या
 जन कुछ ह्वायु नि  ?

पर मी .. ...
य त  ,  मी   ....
या  भ्युलै डालि जेमा
 मी फांस खौलू
रै जली समलोंण
हमरी प्यार की
हमरी नफरत की
या  भ्युलै डालि  !

पराशर गौड़
डिसेम्बर १२ ०९ रात ९ ४१ पर

Parashar Gaur

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अभिन्दन नूतन वर्ष  तेरा

अभिन्दन  अभिन्दन , नूतन वर्ष  तेरा
जय हो, जय हो ,  जय-जय  जय हो तेरी
मूल भूत  कामना , कामनाओ  पर
अनत अनत  दिब्य द्रष्टी  हो   तेरी  .............!

            जीत ह्रदय उनका , जो बिध्वानशक है
         दे दिशा उनको ,दिशा हीन   है मति जिनकी
         भू , नभ , जल थल ,  दिशा  दिशाओं   में
         बयार चले बस  सोच -समझ और   प्रेम प्यार  की
         मानस के उरमें जगे    बीज प्यार  के
         साक्षी समय  रहे  बस ये ही बिनती है मेरी  ...!

अहम्-अहंकार  द्वेष इर्षा तमस की तम से
न छुए दामन  , तार करे कोई इसका
मानवता  न मरे,  न मरे  जीवन की अभिलाषा
 मिटाने पर न मिटे , गोंरबपूर्ण  इतहास है जिसका
अभिन्दन अभिन्दन ,है तेरा 
जय हो, जय हो ,  जय-जय  जय हो तेरी  !

           नागराज हिमालय  से सागर तट तक
        अमन और शांती  का साम्राज्य  रहे
       न करे खंडित  कोई  धर्म, विचारो अवम मानव को
       राम राज्य बस यो ही   बना रहे
      न खीचे नफरत की  रेखा  कोई , न लहू बहे
      प्रभु ,  मानव पर ऐसी क्रपा रहे तेरी  .. !

   पराशर गौर
रात 8.३० २९ दिसम्बर ०९  को
टोरंटो कैनडा

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Excellent Poem you have composed Sir.

All the best wishes from merapahad community to you and your family. May this new year brings a lot success and good health for you.

अभिन्दन नूतन वर्ष  तेरा

अभिन्दन  अभिन्दन , नूतन वर्ष  तेरा
जय हो, जय हो ,  जय-जय  जय हो तेरी
मूल भूत  कामना , कामनाओ  पर
अनत अनत  दिब्य द्रष्टी  हो   तेरी  .............!

            जीत ह्रदय उनका , जो बिध्वानशक है
         दे दिशा उनको ,दिशा हीन   है मति जिनकी
         भू , नभ , जल थल ,  दिशा  दिशाओं   में
         बयार चले बस  सोच -समझ और   प्रेम प्यार  की
         मानस के उरमें जगे    बीज प्यार  के
         साक्षी समय  रहे  बस ये ही बिनती है मेरी  ...!

अहम्-अहंकार  द्वेष इर्षा तमस की तम से
न छुए दामन  , तार करे कोई इसका
मानवता  न मरे,  न मरे  जीवन की अभिलाषा
 मिटाने पर न मिटे , गोंरबपूर्ण  इतहास है जिसका
अभिन्दन अभिन्दन ,है तेरा 
जय हो, जय हो ,  जय-जय  जय हो तेरी  !

           नागराज हिमालय  से सागर तट तक
        अमन और शांती  का साम्राज्य  रहे
       न करे खंडित  कोई  धर्म, विचारो अवम मानव को
       राम राज्य बस यो ही   बना रहे
      न खीचे नफरत की  रेखा  कोई , न लहू बहे
      प्रभु ,  मानव पर ऐसी क्रपा रहे तेरी  .. !

   पराशर गौर
रात 8.३० २९ दिसम्बर ०९  को
टोरंटो कैनडा

 


Devbhoomi,Uttarakhand

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गौर साहब सादर चरण स्पर्श प्रणाम ,
आपकी इस कविता को पड़कर मजा आ गया ,बहुत अछि कविता लिखते हैं आप ,
नया साल आपको और आपके परिवार को ढेर सारी खुशियाँ लेकर ए यही हमारी दुवा और प्रार्थना है इस्वर से
हमारी उम्र भी आपको लग जाय !

M S JKAHI

Parashar Gaur

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  मरती हस्त लिखित " लिखावट " और गुम होती   "स्याही "   , एक बहस                         
 
        मेरे कमरे के एक कोने में कई सालो से एक लिफाफा  अपने  खुलने  की नियति का इन्तजार कर रहा था !  आज सफाई करते करते मैंने उसे खोल ही डाला ! जिसमे रखे हुए थे कई पत्र !  जी..., हां  पत्र , जिन्हें कभी मुझे मेरे दोस्त, माँ -पापा , बहिन -भाई, प्रेमिका अवम धर्मपत्नी  ने  भेजे थे !   जब मैंने उसमे से एक लिफाफा निकाला तो वो मेरे बचपन के एक मित्र का था !  उसकी  हस्त लिखित  " लिखावट "  ' कलि स्याही  ' से  लिखे   टेड़े मेडे हर्फ़ जो मुझे मेरे बचपन के अतीत में लेकर चला गया !  इन्ही पत्रों में छुपा था आपस के गिले शिकवे , प्यार-प्रेम सुख -दुःख के   छण !
       पत्रों में लिखित हस्त लिखावट केवल एक लेखनी ही नहीं थी  वह  सन्देश के आदान प्रदान  का सबसे बड़ा जरिया था  ... वो लिखावट जो कभी सब्दो को  कागज़ में  जोड़ जोड़ कर लिखी जाती रही , वो आज मर रही है ! आज के कंप्यूटर के की बोर्ड  के द्वारा  !
        आज चाहिए बच्चे रत के अंधेरो में अपने कम्प्यूटर के की -बोर्ड पर बे- धडक ,बे झिझक , बिना थामे , बिना रुके अपने उंगुलियों  से इस की -बोर्ड के शब्दों से दनादन एसे लिखते है जैसे कोई सिद्ध हस्त हारमोनियम बजने वाला अपने उंगुलियों को चला रहा हो ! लेकिन इन्ही बच्चो को अगर कहा जाय की वो अपनी दादी या नानी को अपनी लिखावट में एक पत्र लिखे तो वो उस पूछने वाले की ओर आश्चर्य चकित नि  से एसे घूरते  है जैसे जाने किसी  ने  उनसे गलत सवाल कर दिया हो !
        वही  हाथ, वही उंगलिया जो अभी अभी की -बोर्ड पर नाच रही थी वो लिखावट में अपना अशर नहीं दिखा पायेगी क्योंकि हस्त लिखित लिखावट और
 की- बोर्ड के द्वारा  टाईप किये गए हर्फो में   में बहुत अंतर  होता है ! एक में   स्याही , पैन और कागज के साथ  शब्दों के  समन्वय की क्रिया है जिसे बड़े सोच समझकर अमल में  लाकर कागज़ पर उतारा जाता है !  वही दूसरी  ओर कम्पुटर व बिधुतीय करण  से की बोर्ड के द्वारा  सब कुछ आसान है !  स्क्रीन पर आप जो भी सब्द  लिखे,   वे  जरुर उभरेगे  चाहिए  वो गलत हो या सही , लेकिन,   लिखावट का वो अंदाज वो नहीं दे पायेगे जो पैन/सही से कागज पर लिखने से  आते  है ! 
   इस मरती किर्या पर चाहिए हम अफसोश करे या मातम मनाये  लेकिन एक बाद तो  ये तय है कि  जिसे आज हम फॉण्ट कहते है    येही  हमरी भबिस्य  की लेखनी की आधार  है  ! यही हमारी   आने वाली पीड़ी  की लेखन की लिखावट  की क्रिया   भी होगी  !  अब बराखडी या  सुलेख का हमारे  जीवन में  कोई महत्वा  नहीं होगा !   कई लोग अभी  भी  ये मान कर  चलते है की हस्त लिखित लिखावट वापस आयेगी  लेकिन अब वो वापस नहीं आयेगी यही मानकर चलना श्रेकर होगा !  क्यूंकि इसकी जगह ई मेल ने ले ली है !
          जब  जब  उन्नती हुई तब तब हमें कुछ ना कुछ खोना पडा है सभ्यता के आधार पर   या संस्कृति   के आधार पर !  सवाल लिखावट का है हस्त लिखित ये लिखावट  जिसे एक एक शब्द  को जोड़ जोड़ कर लिखा जाता है  ! जब ये लिखी जाती है तो उस समय  हमारे  दिमाग में उसकी एक अलग ही क्रिया बनती है उसकी वो छबी  ,  सब्दो के रूप में आकर लेकर हमरे हाथो  की उंगलियों की मदद`से कागज पर  उत्तर कर अपना अक्ष उभारती है !  शब्दों को लिखकर लिखना भी एक कला है !   किसी भी इंसान की सुंदर  लिखावट पर अन्यास ही मुह से निकल उठता है  " ... वाह .. क्या खुबसूरत लिखावट है .."  लिखावट शब्दों की सुंदरता ही नहीं बनती  बल्कि पड़ने वाले को उनके गहरे अर्थो को भी समझने पर बल देती है ! जिसके प्रभाव में गति व तारतम्य बना रहता है !
           मस्तिष्क वाले डाक्टरों का मानना है की दिमाग हमेशा बदलता रहता है ये सब उस ब्यक्ति पर निर्भर रहता की वो उसे कैसे इस्तमाल करे ! आज  के कम्प्यूटर की - बोर्ड ने हस्त लिखित लिखावट को पूरी तरह से बदल दिया है इस में दो राय नहीं ! इस की इस  क्रिया ने एक नी शेली   को जन्म दे दिया है ! जिसने हमरी पुरानी लिखावट को   किनारे  करके उसे लुप्त होने पर मजबूर कर दिया है !
           स्क्रीन पर की-बोर्ड द्वारा  लिखे सब्द  भले साफ़ सुधरे नजर  आये और पड़ने में आसान लगते हो लेकन वो लिखनेवाले की लिखावट के बारे में कुछ नहीं कह  सकते  की क्या लिखने वाली की लिखावट साफ़- सुथरी है या गन्दी ?  उसकी लिखावट के सब्द शीधे है या टेड़े ? ! लिखावट एक मायेने में आदमी जात के चहरे  जैसा है जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है की वो कैसा है  !  वो सुन्दर है या कुरूप ,  वो भावुक  है या कठोर ? आदि आदि !  इसके अलावा लिखावट लिखनेवाले की सोच और उसके प्रभाव को भी दर्शाती है जिसे हम "मूड" कहते है !  लिखते वक्त  लिखने वाले का   मूड क्या  था ?   वो सब उसकी लिखावट  में साफ़ झलकता है !  लिखावट उसके एक एक सब्द और उस समय की गति को कलम बंध करता है की वो , किस मूड में लिख रहा है !  ये ठीक उस   न्रत्यागना की मुद्राओं की तरह से होते है जो संगीत की उस रिदम के साथ अपनी भाव बह्गिमा को प्रदर्सित करती है !  जिसे दर्शक दीर्घा में  बैठा दर्शक देख देख कर आत्म बिभोर हो जाता है !  इसी तरह कागज़ पर लिखे गए सब्द व लिखावट भी आदमी को रोमांचित करते  है !
        ये फांट और की बोर्ड के आने पूर्ब    ऋषी मुनी भोजपत्रों में लिखा  करते   थे ! उनके द्वारा रचित कई महान ग्रन्थ आज भी इसी हस्त लिखित लिखावट में सुरक्षित है ! उनकी वो कलम और स्याही  इसी बात की साक्षी है !   कालान्तर से और अब तक   आदमी कागज  पर लिखकर अपने बिचारो का एक दुसरे से आदान प्रदान करता था ! अपना सुख दुःख सदूर में बैठ अपनों से  बंटा  करते थे ! चिठिया , हस्त लिखत अखबार , हैण्ड-बिल,  तब ,ये सब  सुचना लेने देने के आधार थे !
        मुझे अछी तरह से याद है जब मै   पहाड़ में अपने गाऊ  की  स्कुल में जाकर बुल्ख्या  ( सफ़ेद माटी को रखने का ड़ीबा )   और पाटी   ( लकड़ी की तख्ती जिस पर दिए के निचे जमे कालिख को निकालकर लगाया जाता था ! जिसे  टूटे  कांच के गिलास के  पेंदे  का रगड़ रगड़ कर   चमकाया जाता था )  पर हर रोज हिंदी के  बर्नमाला   का अभ्यास  किया करता था  !   शुरू  शुरू  में लिखे शदों के आकार को दीखते बनता था !  वे  लम्बे आड़े तिरछे सब्द अभी भी मेरी जहन में है !  दर्जा चार तक मैंने पाटी पर ही अभ्यास किया ! कशा ५ में जाने की बाद कागज़  पर पहली बार  पेंसल से लिखना  सुरु किया !  पेन तो अभी दूर की बात थी !  कागज़  , पेंसल  और  पेन अभ्यास की बात  उसका अनुभव  ठीक वेसे  था जैसे आटा को मलते समय हाथो में  आटे  चिपकने  से निजाद मिलना !  बार बार का अभ्यास रंग लाई ! लिखावट में निखार आया !  वो निखार आज के बचो में कहा !  उनमे अपने लिखावट  के प्रति वो स्नेह दिखने को नहीं मिलता !
          इस  लिखावट   के लुप्त होने के कई कारन है ! सबसे बड़ा कारन  बचो   में  शुरवाती दोर में इस के लिए उत्त्साहा  का न होना ! अध्यापको का आलसीपन का होना ! हमारे जमाने में सुलेख के अलग से मार्क मिला करते थे ! निबंध इस किर्या में सबसे अहम भूमिका निभाता था ताकि बिद्यार्थी अभ्यास कर कर के अपनी लेखनी को सुंदर बना सके ! लिखावट का महत्वा दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है  उसकी  जगह ले रहा  है  आज का की बोर्डं  और उससे लिया गया  प्रिंट  आउट !
  हस्त लिखित लेखिनी के गुम  होने  के  कई  कारण है   अधापक जो बचो को पडाते  है वे स्वयं इस बिधा के बारेमे ज्यादा कुछ   नहीं जानते और नहीं उन्होंने इसमें काम किया है !  यहाँ भी  ओंटारियो  के  इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओंटारियो स्तुदिएस इन एजुकेशन  से  ट्रेंड  हुए अधपको का मानना है की सन ७० के दसक में वो बचो को  हफ्ते  में कम से कम  ३ बार  वो बचो को सुलेख लिखावट का अभ्यास करवाते थे अब वो  धीरे २  सब खत्म होते जा रहा है !  अमेरिका में  २००६ के  सैट  के परीक्षा में ये साबित हो गया की १.५ लाख   बिधार्थियो ने कालेज   में दाखिले के समय प्रश्न पत्र को देते समय  १५% ने लिख कर दिए जबकि ८५% ने प्रिंट आउट से हल किया !
        ओंटारियो अवम भारत में इस तरह के की सुचना जो हस्त लिखित लिखावट  को ट्रैक कर की ये बता सके की  क्या हो रहा है और क्यों ?  ऐसे एजसिया नहीं है जो इसके गिरते प्रभाव की रिकार्ड कर सके ! शब्दों को जोड़कर लिखने की प्रथा के बारेमे अगर हम जानना चाहिए  तो  खोजने से पता चलता है की ये ग्रीक  व रोमन  के जमाने में शुरू हो  चुकी थी ! धीरे धीरे जब लोग इसके आदि होगये और इसमें कुछ नया करने या जोड़ने के बारे में सोचने लगे   तो कालान्तर में इस की बिधा ने प्रिंटिंग प्रेस और  टाइप रायटर  को जन्म  दे दिया !  ये दिखने में आता है की बचे शुरू शुरू में लिखने से घबराते है
वे  इससे  डरकर दूर भागते  है ! इसी डर को दूर करने का नया तरीका  इजाद करने वाले जान  ओल्सेन   जिन्होंने ३० साल पहले  "  हैंड रेटिंग  बिदाउट टियर्स "    की खोज की  ,     का कहना की अगर बचो को ठीक  से  लिखना न सिखाया गया तो वे आगे चलकर अपनी सस्त लिखित लिखावट को सही तरीके से न लिखकर एक गाड़ी लिखावट  के शिकार हो जायेगे !  उनकी लिखावट न गन्दी होगी ही बल्कि इसका असर उनके लिखते समय के भावों पर भी पडेगा जो  आगे चलकर उनकी  लिखने की क्रय की अभिब्यक्ति   में  बाधक बन सकती है !
     टोरंटो के   सकाईट्रिस्ट  व नियारोप्लटिसिती  के जानकार  डाक्टर नोर्मन डोइड्जी  जो अपने आप में  एक हस्ती है   को  डर है की अगर इश्वर ना करे हस्त लिखित लिखावट अगर ग़ुम हो गई,   या मर गई तो ,  वो क्रिया   जो  हमारे  दिमाग में संवेदशील  भावनावो व  निर्णय लेने की प्रतिक्रिया के   क्रिया  जो लिखने से ही बनती है   वो भी मर जायेगी ! अगर बच्चे  हस्त लिखित  लिखावट को नहीं  लिखते तो उनका दिमाग में वो  इमोशन नहीं आयेगे !  उनका दिमाग एक और ही पैटर्न का जन्म देगा !  और वो कैसा होगा उसके बारे में कुछ कहा नही जा सकता !
      कंप्यूटर   में  जब  बचा लिखता  है तो वो  सब्द को बार बार एक ही रूप से या  एक ही अंदाज में   स्टोक कर  लिखता है और वो अलग अलग होते है जबकि  लिखावट में  सब्द एक दुसरे के साथ जोड़कर लिखे जाते है ! कंप्यूटर में बचो के लिए लिखने के समय   इन्सर्ट , बैकस्पेस , इंटर जैसे की अच्हे दोस्त है  उपलब्ध है जो  उनका काम आसने से  कर देते है  जबकि लिखते समय दिमाग कट पेस्ट  पहले से ही कम करता रहता है या यु कहना ठीक होगा की दिमाग व हाथ दोनों का एक दुसरे से समपर्क बराबार बना होता है ! दिमाग आकार व  सिक्वेंस को परख कर हाथो की निर्देश देकर एक एक शब्द  लिखवाता है इस बहस में और भी  इस्तो का कहना है अगर लिखावट गुम हो  भी जाती हिया है तो उसे किसी और रुप में  फिर  से इजाद किया जा सकता है या बदला जा सकता है जैसे हमरे पुर्बजो ने गुफवो में लिखा और लिखकर उसे सभालकर रखा  जो बाद में हमने  बदल डाली !   जो भी कोई कहे लेकिन लिखावट का पाना एक अलग मजा है और था और रहेगा !         { आभार टोरोंटो स्टार  }   
 

पराशर गौर




           
   
               

Parashar Gaur

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डिसकबरी  !
 
    रूप
   और
   धूप
   कभी भी
   ठल सालती है !
 
   देखने वालो की
   सोच
   और आँख
   कभी  भी  बदल सकती है !
 
   लेकिन  ,
     
   रूप और धुप
  एक बार ढली  तो  .. 
   ढली   ...............
   लाख  जतन करने पर भी
  वो ,  वापस नहीं आयेगी
  आकाश ने खोई हुई
  डिसकबरी की तरह  !
 
  पराशर गौर
  jan. 7 2010 raat  8.11 pr 




 

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