मरती हस्त लिखित " लिखावट " और गुम होती "स्याही " , एक बहस
मेरे कमरे के एक कोने में कई सालो से एक लिफाफा अपने खुलने की नियति का इन्तजार कर रहा था ! आज सफाई करते करते मैंने उसे खोल ही डाला ! जिसमे रखे हुए थे कई पत्र ! जी..., हां पत्र , जिन्हें कभी मुझे मेरे दोस्त, माँ -पापा , बहिन -भाई, प्रेमिका अवम धर्मपत्नी ने भेजे थे ! जब मैंने उसमे से एक लिफाफा निकाला तो वो मेरे बचपन के एक मित्र का था ! उसकी हस्त लिखित " लिखावट " ' कलि स्याही ' से लिखे टेड़े मेडे हर्फ़ जो मुझे मेरे बचपन के अतीत में लेकर चला गया ! इन्ही पत्रों में छुपा था आपस के गिले शिकवे , प्यार-प्रेम सुख -दुःख के छण !
पत्रों में लिखित हस्त लिखावट केवल एक लेखनी ही नहीं थी वह सन्देश के आदान प्रदान का सबसे बड़ा जरिया था ... वो लिखावट जो कभी सब्दो को कागज़ में जोड़ जोड़ कर लिखी जाती रही , वो आज मर रही है ! आज के कंप्यूटर के की बोर्ड के द्वारा !
आज चाहिए बच्चे रत के अंधेरो में अपने कम्प्यूटर के की -बोर्ड पर बे- धडक ,बे झिझक , बिना थामे , बिना रुके अपने उंगुलियों से इस की -बोर्ड के शब्दों से दनादन एसे लिखते है जैसे कोई सिद्ध हस्त हारमोनियम बजने वाला अपने उंगुलियों को चला रहा हो ! लेकिन इन्ही बच्चो को अगर कहा जाय की वो अपनी दादी या नानी को अपनी लिखावट में एक पत्र लिखे तो वो उस पूछने वाले की ओर आश्चर्य चकित नि से एसे घूरते है जैसे जाने किसी ने उनसे गलत सवाल कर दिया हो !
वही हाथ, वही उंगलिया जो अभी अभी की -बोर्ड पर नाच रही थी वो लिखावट में अपना अशर नहीं दिखा पायेगी क्योंकि हस्त लिखित लिखावट और
की- बोर्ड के द्वारा टाईप किये गए हर्फो में में बहुत अंतर होता है ! एक में स्याही , पैन और कागज के साथ शब्दों के समन्वय की क्रिया है जिसे बड़े सोच समझकर अमल में लाकर कागज़ पर उतारा जाता है ! वही दूसरी ओर कम्पुटर व बिधुतीय करण से की बोर्ड के द्वारा सब कुछ आसान है ! स्क्रीन पर आप जो भी सब्द लिखे, वे जरुर उभरेगे चाहिए वो गलत हो या सही , लेकिन, लिखावट का वो अंदाज वो नहीं दे पायेगे जो पैन/सही से कागज पर लिखने से आते है !
इस मरती किर्या पर चाहिए हम अफसोश करे या मातम मनाये लेकिन एक बाद तो ये तय है कि जिसे आज हम फॉण्ट कहते है येही हमरी भबिस्य की लेखनी की आधार है ! यही हमारी आने वाली पीड़ी की लेखन की लिखावट की क्रिया भी होगी ! अब बराखडी या सुलेख का हमारे जीवन में कोई महत्वा नहीं होगा ! कई लोग अभी भी ये मान कर चलते है की हस्त लिखित लिखावट वापस आयेगी लेकिन अब वो वापस नहीं आयेगी यही मानकर चलना श्रेकर होगा ! क्यूंकि इसकी जगह ई मेल ने ले ली है !
जब जब उन्नती हुई तब तब हमें कुछ ना कुछ खोना पडा है सभ्यता के आधार पर या संस्कृति के आधार पर ! सवाल लिखावट का है हस्त लिखित ये लिखावट जिसे एक एक शब्द को जोड़ जोड़ कर लिखा जाता है ! जब ये लिखी जाती है तो उस समय हमारे दिमाग में उसकी एक अलग ही क्रिया बनती है उसकी वो छबी , सब्दो के रूप में आकर लेकर हमरे हाथो की उंगलियों की मदद`से कागज पर उत्तर कर अपना अक्ष उभारती है ! शब्दों को लिखकर लिखना भी एक कला है ! किसी भी इंसान की सुंदर लिखावट पर अन्यास ही मुह से निकल उठता है " ... वाह .. क्या खुबसूरत लिखावट है .." लिखावट शब्दों की सुंदरता ही नहीं बनती बल्कि पड़ने वाले को उनके गहरे अर्थो को भी समझने पर बल देती है ! जिसके प्रभाव में गति व तारतम्य बना रहता है !
मस्तिष्क वाले डाक्टरों का मानना है की दिमाग हमेशा बदलता रहता है ये सब उस ब्यक्ति पर निर्भर रहता की वो उसे कैसे इस्तमाल करे ! आज के कम्प्यूटर की - बोर्ड ने हस्त लिखित लिखावट को पूरी तरह से बदल दिया है इस में दो राय नहीं ! इस की इस क्रिया ने एक नी शेली को जन्म दे दिया है ! जिसने हमरी पुरानी लिखावट को किनारे करके उसे लुप्त होने पर मजबूर कर दिया है !
स्क्रीन पर की-बोर्ड द्वारा लिखे सब्द भले साफ़ सुधरे नजर आये और पड़ने में आसान लगते हो लेकन वो लिखनेवाले की लिखावट के बारे में कुछ नहीं कह सकते की क्या लिखने वाली की लिखावट साफ़- सुथरी है या गन्दी ? उसकी लिखावट के सब्द शीधे है या टेड़े ? ! लिखावट एक मायेने में आदमी जात के चहरे जैसा है जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है की वो कैसा है ! वो सुन्दर है या कुरूप , वो भावुक है या कठोर ? आदि आदि ! इसके अलावा लिखावट लिखनेवाले की सोच और उसके प्रभाव को भी दर्शाती है जिसे हम "मूड" कहते है ! लिखते वक्त लिखने वाले का मूड क्या था ? वो सब उसकी लिखावट में साफ़ झलकता है ! लिखावट उसके एक एक सब्द और उस समय की गति को कलम बंध करता है की वो , किस मूड में लिख रहा है ! ये ठीक उस न्रत्यागना की मुद्राओं की तरह से होते है जो संगीत की उस रिदम के साथ अपनी भाव बह्गिमा को प्रदर्सित करती है ! जिसे दर्शक दीर्घा में बैठा दर्शक देख देख कर आत्म बिभोर हो जाता है ! इसी तरह कागज़ पर लिखे गए सब्द व लिखावट भी आदमी को रोमांचित करते है !
ये फांट और की बोर्ड के आने पूर्ब ऋषी मुनी भोजपत्रों में लिखा करते थे ! उनके द्वारा रचित कई महान ग्रन्थ आज भी इसी हस्त लिखित लिखावट में सुरक्षित है ! उनकी वो कलम और स्याही इसी बात की साक्षी है ! कालान्तर से और अब तक आदमी कागज पर लिखकर अपने बिचारो का एक दुसरे से आदान प्रदान करता था ! अपना सुख दुःख सदूर में बैठ अपनों से बंटा करते थे ! चिठिया , हस्त लिखत अखबार , हैण्ड-बिल, तब ,ये सब सुचना लेने देने के आधार थे !
मुझे अछी तरह से याद है जब मै पहाड़ में अपने गाऊ की स्कुल में जाकर बुल्ख्या ( सफ़ेद माटी को रखने का ड़ीबा ) और पाटी ( लकड़ी की तख्ती जिस पर दिए के निचे जमे कालिख को निकालकर लगाया जाता था ! जिसे टूटे कांच के गिलास के पेंदे का रगड़ रगड़ कर चमकाया जाता था ) पर हर रोज हिंदी के बर्नमाला का अभ्यास किया करता था ! शुरू शुरू में लिखे शदों के आकार को दीखते बनता था ! वे लम्बे आड़े तिरछे सब्द अभी भी मेरी जहन में है ! दर्जा चार तक मैंने पाटी पर ही अभ्यास किया ! कशा ५ में जाने की बाद कागज़ पर पहली बार पेंसल से लिखना सुरु किया ! पेन तो अभी दूर की बात थी ! कागज़ , पेंसल और पेन अभ्यास की बात उसका अनुभव ठीक वेसे था जैसे आटा को मलते समय हाथो में आटे चिपकने से निजाद मिलना ! बार बार का अभ्यास रंग लाई ! लिखावट में निखार आया ! वो निखार आज के बचो में कहा ! उनमे अपने लिखावट के प्रति वो स्नेह दिखने को नहीं मिलता !
इस लिखावट के लुप्त होने के कई कारन है ! सबसे बड़ा कारन बचो में शुरवाती दोर में इस के लिए उत्त्साहा का न होना ! अध्यापको का आलसीपन का होना ! हमारे जमाने में सुलेख के अलग से मार्क मिला करते थे ! निबंध इस किर्या में सबसे अहम भूमिका निभाता था ताकि बिद्यार्थी अभ्यास कर कर के अपनी लेखनी को सुंदर बना सके ! लिखावट का महत्वा दिन प्रतिदिन घटता जा रहा है उसकी जगह ले रहा है आज का की बोर्डं और उससे लिया गया प्रिंट आउट !
हस्त लिखित लेखिनी के गुम होने के कई कारण है अधापक जो बचो को पडाते है वे स्वयं इस बिधा के बारेमे ज्यादा कुछ नहीं जानते और नहीं उन्होंने इसमें काम किया है ! यहाँ भी ओंटारियो के इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओंटारियो स्तुदिएस इन एजुकेशन से ट्रेंड हुए अधपको का मानना है की सन ७० के दसक में वो बचो को हफ्ते में कम से कम ३ बार वो बचो को सुलेख लिखावट का अभ्यास करवाते थे अब वो धीरे २ सब खत्म होते जा रहा है ! अमेरिका में २००६ के सैट के परीक्षा में ये साबित हो गया की १.५ लाख बिधार्थियो ने कालेज में दाखिले के समय प्रश्न पत्र को देते समय १५% ने लिख कर दिए जबकि ८५% ने प्रिंट आउट से हल किया !
ओंटारियो अवम भारत में इस तरह के की सुचना जो हस्त लिखित लिखावट को ट्रैक कर की ये बता सके की क्या हो रहा है और क्यों ? ऐसे एजसिया नहीं है जो इसके गिरते प्रभाव की रिकार्ड कर सके ! शब्दों को जोड़कर लिखने की प्रथा के बारेमे अगर हम जानना चाहिए तो खोजने से पता चलता है की ये ग्रीक व रोमन के जमाने में शुरू हो चुकी थी ! धीरे धीरे जब लोग इसके आदि होगये और इसमें कुछ नया करने या जोड़ने के बारे में सोचने लगे तो कालान्तर में इस की बिधा ने प्रिंटिंग प्रेस और टाइप रायटर को जन्म दे दिया ! ये दिखने में आता है की बचे शुरू शुरू में लिखने से घबराते है
वे इससे डरकर दूर भागते है ! इसी डर को दूर करने का नया तरीका इजाद करने वाले जान ओल्सेन जिन्होंने ३० साल पहले " हैंड रेटिंग बिदाउट टियर्स " की खोज की , का कहना की अगर बचो को ठीक से लिखना न सिखाया गया तो वे आगे चलकर अपनी सस्त लिखित लिखावट को सही तरीके से न लिखकर एक गाड़ी लिखावट के शिकार हो जायेगे ! उनकी लिखावट न गन्दी होगी ही बल्कि इसका असर उनके लिखते समय के भावों पर भी पडेगा जो आगे चलकर उनकी लिखने की क्रय की अभिब्यक्ति में बाधक बन सकती है !
टोरंटो के सकाईट्रिस्ट व नियारोप्लटिसिती के जानकार डाक्टर नोर्मन डोइड्जी जो अपने आप में एक हस्ती है को डर है की अगर इश्वर ना करे हस्त लिखित लिखावट अगर ग़ुम हो गई, या मर गई तो , वो क्रिया जो हमारे दिमाग में संवेदशील भावनावो व निर्णय लेने की प्रतिक्रिया के क्रिया जो लिखने से ही बनती है वो भी मर जायेगी ! अगर बच्चे हस्त लिखित लिखावट को नहीं लिखते तो उनका दिमाग में वो इमोशन नहीं आयेगे ! उनका दिमाग एक और ही पैटर्न का जन्म देगा ! और वो कैसा होगा उसके बारे में कुछ कहा नही जा सकता !
कंप्यूटर में जब बचा लिखता है तो वो सब्द को बार बार एक ही रूप से या एक ही अंदाज में स्टोक कर लिखता है और वो अलग अलग होते है जबकि लिखावट में सब्द एक दुसरे के साथ जोड़कर लिखे जाते है ! कंप्यूटर में बचो के लिए लिखने के समय इन्सर्ट , बैकस्पेस , इंटर जैसे की अच्हे दोस्त है उपलब्ध है जो उनका काम आसने से कर देते है जबकि लिखते समय दिमाग कट पेस्ट पहले से ही कम करता रहता है या यु कहना ठीक होगा की दिमाग व हाथ दोनों का एक दुसरे से समपर्क बराबार बना होता है ! दिमाग आकार व सिक्वेंस को परख कर हाथो की निर्देश देकर एक एक शब्द लिखवाता है इस बहस में और भी इस्तो का कहना है अगर लिखावट गुम हो भी जाती हिया है तो उसे किसी और रुप में फिर से इजाद किया जा सकता है या बदला जा सकता है जैसे हमरे पुर्बजो ने गुफवो में लिखा और लिखकर उसे सभालकर रखा जो बाद में हमने बदल डाली ! जो भी कोई कहे लेकिन लिखावट का पाना एक अलग मजा है और था और रहेगा ! { आभार टोरोंटो स्टार }
पराशर गौर