Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54752 times)

Parashar Gaur

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      बड़ा ,  बडो का,   बड़ा  काम  !
 
        बुल्दन बल कि,   कै भी ,   घर,  दफ्तर  या सरकार थै चलाण का वास्ता एक समझदार ( याने बड़ो )  आदिमे की जरुरत हुन्द !  अर ,   उ  आदिम अपणा कामो से जणे जांद,  पछ्याणे  जांद !    वेकु अहोदा ,   वेकु रूतबा सब वे कुर्सी पर निर्भर करद,   जेमा उ बैठ्यु रैनद !   कुर्शी अर काम,   द्वी वे आदिम थै क्या नि कराइ दिदिनी ,  इ त,   बादम पत् चलद  जब वो वी से उत्तर जाद !
      हमरा गौ कु पधान , भजरामल  जब तक चुनो नि लड़ी छो,  वे थै  कवी घास ही गिर्दु छो !  जनि वो चुनो लड़ी अर प्रधान बणी ! सबी वेकी जय जैकार करण  बैठा !  अबत रोजा कुकड़ी अर बोतल ,  कभी तिबरिम ,  त कभी चौक्म  ,  नचण  बैठी !  चाटुकारू कु त  पुछे   ऩा  !  अगर  वो ( प्रधानजी )   बोल ...,  कि ,  दिनम   रात च ,  त वो बुलिनी    ... "  हां .. जी   .. हां    रात ही च  ! अर बाजा  बाजा त औरी भी  वे थै  काचा  झयडोम धरी बुल्दा छा  "  अजी पधान्जी ...... रात ही नी,   बल्कि वो....... अफार ,   गैणा भी छंन  चमकाणा   "  !  अपणा  बीरानो कि पो बाहर !  ये दौरान पधान  जी थै ,  उनका ग्राम उठाना का कार्य क्रममा ,   न जणी कथगा इनाम मैडल  यख तक कि उन को नौ पध्म श्ररी तक चली गे छो ! बी डि यो   जिला अधिकारी  , बिधायक  छेत्रिय, प्रांतीय  याख्तक सेंटेरल सर्कार्ल उमठी कै अवार्द्ल  नवाजी !  पर जनी   पधान जी का द्वी साल पूरा हुवेनी  , अर,    वो उत्तरा अपणी कुर्शी से  !  कुर्शी गे  अब पधान्न जी  आया कुर्शी का मूड !
      ह्या भै...  ,   जब  तक  वो पधान छो , कैल भी गिचू  नि उभारी !   वो , जू ,  वेका हर कामम  दगडा रैनी !   चाहे ,  रोड कु  ठयेका ह्वेनी !  या ,  डिगी बाणाणे  बात रै हो , !  या  बाटोमा खडिनचा   बिछाण  कि बात रै हो !  या  फिर,  बिलोक बीटी लोंन दीलाणे कि बात हो ,!      बुनो  मतलब यो च कि,  जब तक भजराम पधान छो !  वेंल  अपणा पद कु  सदपिओग   या दूरपिओग  खूब कै !   जू भी बुरु काम कै !    वो सब वैक  पूठ मूड !
      साब...,     जनी  पधमचारी  गे ! लुखुका गिचा उभना शुरू हवे  ! कैल बोली कुछ त , कैल बोली कुछ ! कैल कुछ लाछन लगैनी त , कैल   माँ बैनी गाली देनी !  सबसे  चोंकावाली  बात त ,  मुरखवाली कि बात से ह्वै  !  जैन भारी पंचैत माँ ,  पधान जी पर चरित्र हनन कि बात कै .. "   .. रुद रुद,   व बोली  ,     ये पधान्ला, ...   अब क्या बोलू .. बिलोको कर्जा माफ़ काना वास्ता मी थै   अपणा घोर बुलाई अर   ..........  ये सुणी सब सन ... !  गौम त ,  जन ,   व  भुच्यालू एगे छो  भुच्य्लू ... ! हमारा  इलाका क  ,  गौ गौ , पट्टी  पट्टी म एक ही छुई. एक ही बात ..अर अखबारों माँ   रोज ,    वेका बारम्म  आये दिन एक  नयी खबर !  अखबार फुन्डू फुका , जतका गिचा उत्की बात ! अर जैल  जनी मिसी की लगै !  भजराम  जी थै जनता माँ मुख दिखाणु  मुश्किल ह्वैगी !  बात  पटवारी, कानून गु  से हुन्द हुन्द सरकार तक भी पहुंची !   सब्युन एक स्वर म बोली " जतका अवार्ड्स ,तक्मा छन , सब वापस लिए जावा ! "   बिचारा क्या कैरू .. बड़ा कामू नतीजा बड़ो ही हुन्द ! अबतक त भीतरी भीतर च ! अब द्याखा ,  कख वे का उ काम वे थै  कख लिजन्दीन !

पराशर गौर

 13 jan.10 subha 7.11 pr

Parashar Gaur

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  मी मु टाइम नी  ( मकर संक्रांत )
   
        जनी टेलीफोनी घंटी बजी ,  मनिखी मरा दादिल  फोन उठै की बोली  .." हां को च ?"  हैकि तरफ बीटी आवाज आई ... " मी  छो    बुनू,   मी ...! "  मी कु   ---उ   ?"   सरू छो बुनू सरू ..??   कदुड बीटी रिसिबर हटे की वे थाई देखि व बुन बैठी .."  य बोई ,    कदुड नि सुणी होली .."   उची आवाज माँ जोर जोर से बुन बैठी ..  सरू छो सरू ......उ.....  /// समनी बीटी दादी बोली  इतगा जोर लगानै  क्या जरूरत च ! कनु बैरी छो मी ! ..  हां,    बोल.. खूब छई ? 
हां खूब छो !   माँ बोली .. लाटी , आज मकर संक्राद च .. मी तेरी बाट छो जग्वाल लू !  तेरी  सोंज्यडय  भी नि ऐनी एसू का साल !  व बोली .. माँ मिमु टाइम नि !  इन कैर की त्वी ऐजा  !  मिन टिकट भेजियाली !   पर बाबा .. ब्य्टुला आदा च छा अपना मैत,  इनु रिवाज छो आज तक  !सरू बोली .. टैम  २ बात च बोये ...  बगत बदली गे !  बोलियल ना मिमु टैम नी !  त्वी ऐजा बस !     
पराशर गौर
सुबह ९.३० पर २०१०

Parashar Gaur

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त्रास्ती
 
अपने बतन से दूर,   बहुत दूर   
दूर आके मुझे मुझे क्या मिला
सपने हो गए है चूर चूर ...
जिदगी को जिन्दगी से हो रहा गिला !
 
          चाह की चाह ने पंख थे लगाये
          हर तमन्ना की तमन्ना ने खाब  थे सजाये
          रिस्तो को तोडके ,समझोतो को ओडके
          आके यहाँ  अकेलेपन के सिवा क्या मिला  !
 
माँ का आँचल ,बतन की खुशबु
अब कहा मिले .......................
 बहिना  का प्यार, पापा की डांट
अब कहा मिले ...................
छला है मुझो मेरी चाहो ने
लाकर यहाँ ऐसा............
होते हुए भी सब कुछ
लगता हू अतीत में खोया खोया
इन आँखों में  सपने  बसते थे   पहले
अब है झिलमिलाती यादे
बाद कमरे में कैद हूँ , कैद खाना मिला !
 
               ढूढता  हूँ उसे , जिसे अपना कह सकू
               और मिला न कोई कंध येसा ,
                जिसपे   सर रखकर  रो सकू ......
                आपा धापी की जिन्दगी में  बस
                 दौड़ता  ही रह गया
                  न मंजिल ही मिली , ना सपने मिले
                  बस इसी बात का तो है गिला   !
 
आती है पाती जब,  सात संदर से कभी
करता है मन उड़ जाऊ , लगा के पंख अभी
छूके औ उन दरो -दीवारों को ,जिनके लिए तरसा हूँ
समेट के ले आऊ उन यादो को ,  जिहे छोड़ आया हूँ
मानता हूँ की लोटना मुश्किल नहीं है लेकिन ,
चाते हुए भी नहीं  लौट नहीं पा रहा हू ,
इसी बात का तो है गिला   !
 
पराशर गौर
६ जनबरी २००५ ,६.३० बजे स्याम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Excellent Poem.

Each word of the poem has great meaning. I am sure all of our members would appreicate it.

God bless u sir for sharing this poem with us.

त्रास्ती
 
अपने बतन से दूर,   बहुत दूर   
दूर आके मुझे मुझे क्या मिला
सपने हो गए है चूर चूर ...
जिदगी को जिन्दगी से हो रहा गिला !
 
          चाह की चाह ने पंख थे लगाये
          हर तमन्ना की तमन्ना ने खाब  थे सजाये
          रिस्तो को तोडके ,समझोतो को ओडके
          आके यहाँ  अकेलेपन के सिवा क्या मिला  !
 
माँ का आँचल ,बतन की खुशबु
अब कहा मिले .......................
 बहिना  का प्यार, पापा की डांट
अब कहा मिले ...................
छला है मुझो मेरी चाहो ने
लाकर यहाँ ऐसा............
होते हुए भी सब कुछ
लगता हू अतीत में खोया खोया
इन आँखों में  सपने  बसते थे   पहले
अब है झिलमिलाती यादे
बाद कमरे में कैद हूँ , कैद खाना मिला !
 
               ढूढता  हूँ उसे , जिसे अपना कह सकू
               और मिला न कोई कंध येसा ,
                जिसपे   सर रखकर  रो सकू ......
                आपा धापी की जिन्दगी में  बस
                 दौड़ता  ही रह गया
                  न मंजिल ही मिली , ना सपने मिले
                  बस इसी बात का तो है गिला   !
 
आती है पाती जब,  सात संदर से कभी
करता है मन उड़ जाऊ , लगा के पंख अभी
छूके औ उन दरो -दीवारों को ,जिनके लिए तरसा हूँ
समेट के ले आऊ उन यादो को ,  जिहे छोड़ आया हूँ
मानता हूँ की लोटना मुश्किल नहीं है लेकिन ,
चाते हुए भी नहीं  लौट नहीं पा रहा हू ,
इसी बात का तो है गिला   !
 
पराशर गौर
६ जनबरी २००५ ,६.३० बजे स्याम


Parashar Gaur

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abhar mehta sahib.
dhnyabad
parashar

Parashar Gaur

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   क्या हूद कबिता ?
 
कबिता  हुन्द ....
 
         स्वीली की पीड़ा
              जू हुन्द , बचा थै ,  पैदा कन से पैली 
                  जू बचा थै,  भैर आणों बाटु बतोद !
 
कबिता हुन्द
 
         धामी का डौर माँ  लगाई  कटाक
              जैसे पैदा हुन्द नाद ( स्वर)
                  जू नाचाद घ्वाडा थै अपणी ताल माँ  !
 
कबिता हुन्द
 
          बाल जन  जिदेर्ये  हिगर
              जू हिंगर डाली डाली अपणी बात मनोद
                    जब बात पूरी हवे जाद त खित हंसाद !
 
कबिता हुन्द
 
         रुडियुमा  बाजै जडियुम को  ठंडो पाणी
             जू बुझोद तिस्लियु की तीस
                  जै से निकल्द  शब्द  " जुगराज राया  "!
 
कबिता हुन्द
 
         धार मागे , कुंगुलू घाम   सी
             जू एहसाह दिलोद तपन की !

कबिता  हुन्द .... 
 
              घैणे की चोट , जू  दीद
                 हैका थै,  एक नयो  आकार
                     जू  हुन्द बादम वैकी पछ्याण  !
 
कबिता  हुन्द .... 
 
                गुन्गौ की आवाज  जू
                      जू  सान्युन ,  सम्झोंद बिन्गोंद
                          मन की पीड़ा !
कबिता  हुन्द .... 
 
              पैण  की पकोड़ी जन
                   जू न्युत्द न्युतेरू थै
                        दीद मान सामान कारिज माँ !
 
कबिता  हुन्द ....
 
                 प्रबासियु   की खुद जन
                     जू खोदोद प्राण
                           सैसुरासी बेटियों की तरह !                         
 
 कबिता   व   हुन्द
 
             जू बनू  बच्याण की तमीज सिखांद
                  समझण अर संझानै बात बतोद
                     आपसमा  प्यार प्रेम की भाषा सिखोंद !
 
`पराशर गौर
१९ जनबरी २०१०   
स्यांम  ३.३० पर !

 

Parashar Gaur

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वापसी ! (  Ghar BaoDai  )

 

बर्षो  का बाद ,आज ....
लौटियु मी  अपणा मुल्क
सब बन्धनों   थै तोडी
सब सरहदों थै लांघी , छोड़ी
ज्युदु  ना  ........
बल्कि बणीकि   राख
माटै कि क्मोलिम !

 

    जब तक   ज़िंदा  ऱौ
    सदान मयारू  पहाड़ --------
    एक तस्बीर बणी रा
    म्यारा मन मा
    जै थै मी , देखीत सकुदु छो
    महशुस भी कैरी सकदु छो
    पर  झणी किलै.........
    वख वापस लौटण पर
    मेरी मज़बूरी  मी थै  कैकी  मजबूर
    मी पर खुटली लगै  दीदी  छै !

 

 हरिद्वारम,
जनी   म्यारा अपणोन 
माटे कम्वालीकु  मुख खोली
म्यारू रंगुण बोली .....
आजाद ह्वेग्यु  आज मी
वी घुट्ली से
एकी अपणी धरती म़ा !

 

        व धरती -----------
        जै कि माटिम मिल
        लदवडि   लस्कै  लस्कै
        लिस्ग्वारा लगैनी
        जै कि म्याल्म  मिन
        घुटनों क  बल चल चली
        गुवाय लगैनी   ------
        जैमा कभी कभी   
        थाह थाह लींद लींद पतडम  पोडू
        डंडयालम  !   




जख ......
ब्वै की खुच्लिम सियु
बे-फिकरी से
भैजी क कन्दोमा चैड्यु
दीदी का हतोमा ह्वली खेली
ददी की ऊँगली पकड़ी च्ल्यु
बाबाजी क खुट्युमाँ धुध भाती खेली
जख ------------
गोरु पांति चरैनी
लुखुकी  सग्व्डीयुमा   
ककड़ी - मुंगरी चुरैनी
रोज  लुखुका औलाणा सुणी !

 

      दख सिर्फ ये बातो च
       डंडी   कंठी , घाड गदेरा
       तमाशा . म्यला ख्याला 
        सब उनी राला , उनी हवाला
        पर मी नि रोलु ....!

 

 

जनी मेरी राख
किमोली बीटी भैर आई
और हवा से मिली
उन्मत /स्वछन्द ह्वोकी  व
बथो  का दगड  उडी
एक अंतहीन दिशा की तरफ !

 

                         २१ जनबरी २०१० सुबह १..१३ पर

Parashar Gaur

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                   कुलै की मरमत   (बातो बतंगड़  )
 
         जब कैथी कवी चीज़ पसंद नि आदी,  त,  वो बातो बतंगड़ बाणै  की  अपणी मनै  भनास कन  निकलद  ,   इत आप सबी  जंणदन !  क्वी ताना मारी मरी  निकलद ,  त क्वी , सु णे- सुणे,   !  क्वी  सुनै सुनै की  ,   त क्वी बना बणे बणे .. की !  अर जू  इनु काम क्या करदा ... !   वे  आदिम  थै  इन कनम संतोष भी आंद !
          हमरा गौं माँ  जुमली कु नायु नायु ब्यो  ह्वै !      सासूल बोली ,   "  ब्वारी ... भोल सेरा  सैणु जाण !  कमीज सुलार ना ... धोती पैरी जाण बाबा ! आर हां वेसी पैली   " पाणी  की कुल   '  भी ठीक कन ..  //  सुबेर  ज्ररा सिंक्व्ली उठी जय हो ! "  व बिचरी फजल लेकी उठ अर सीध गे कूल थै ठीक कनु  ! कूल दिखया  त जगा जगा बीती  छै टूटी ! जनी वीं पाणीम घुटु तेरी त धोती गीली सी हुण  बैठी ! वीन सोची की गीली हुण  त अच्हू च की ई थै घुण्ड घुण्डओ तक उठाई की  बंधी देऊ !  स्यु  वीन उन काई अर धोती फील्यु से उबू  कैकी  घुन्ड़ो तक बेटी दे !
         काम करद करद द्फारी ह्वेगी !  ये दौरान गौं का पधान जी घर छा आणा !  जनि उन नी ब्योली  थै वीकी धोती जवा घुंडा घुंडा मथी तक  छै  जई !  वी थै   देखी भारी गुस्स्म फिगारीद   फिगारीद  सीध  गौका  पनचैत जैकी धत लगे बुन बैठा  ... " अरे गौवालो सुणा ...  ब्यो केकु नि हवे .. साबू क्त ह्वै ! ये जुमली कु क्या बाकि बातो ब्यो ह्वै ! वेकि ब्वारील त़ा,  श्रम लाज बेची धैरियाल !  सुसुर जिठणु जमा नि दिखणे !   आज तक   हम्रर गौमा   क्य,   कुल ठीक नि ह्वै चै क्या?
    तबी कैल  पूछी ' अजी पधान्जी . क्य हवाय ?  क्यों छा इत्गा गुसम ?      वे जुमली की ब्योरिल   क्य कैदे इनु ,   !   "
       कैदे    अरे ... ..मित बुनू छो..,   गौ इनमे बिग्ड्दा ... अगर जू अभी नि सुधरे जा ! त बादम भारी बात  ह्वै  जाली !  गौं का लोगक कथा  ह्वया !  सबी छा 
पुचणा   सची क्य कई होलू वे ब्वोरिल  इन की तबरी जुमली ब्योई भी अगी .. ! पधान जई से बोलन लेगी .. " क्य छा बुला लाब काब .. ! क्युओ छा बे बातो ब बतनगड़   बनाणा ! ..  हे गौ वालो  मिनी अपणी ब्वारी कु बोली की तू आज सलवार कुर्ता  ना धोत्ती  परी जै .. किलैकी  स्यरा सैद  अर कूल ठीक करद  वो पाणीम
भीगी जाला !   ये से अछु की तू धीति पैरी जै  !  धोती ताहि हम घुंडा हुन्दो तक त उठाई की कामत कई सकदा  ना..  !
     " सब्युन एक स्वरमा बोली .. हां ..हां ....,  किले ना..  किले ना ...!   आजतक तक हम भी त इनी करी की अवा !    वी ब्वारिल इनु क्य नौ काम कैदे  जू यु पधान जई थै बुरु लगी गे ! "    देखा पधान जई आप बे बात पर छा नाराज हुणा ..  नाराज हुणों यु क्वी तरिका नि ?  आप ताहि अछु नि लगी त इतका हला कैनी की क्य जरूरत चै ! जुमली का ग़म जांदा अर बुल्ड की बिता इनु काम ठीक नी नई नई ब्योरी कु त वू बी समझी जादू अर बात भी रैजादी !
 
पराशर गौर 
दिनाक २ फरबरी रात ९ ५३  २०१०
 

Parashar Gaur

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सवाल - जबाब

तुम,
मुझ से पूछते हो की
मेरी मुठी क्यों भिंची है?
मेरे आँखों में अंगारे क्यों है ?
मेरे स्वासो में उच्च वास  कैसा ?
तो ...
उसका एक ही जबाब है .."तुम "
तुमने मेरे पेट पर लात मरकर
मेरे मुह का कौर छीन कर
मुझे ...
दर बदर  भटकने पर नह्बुर किया है !
फिर भी पूछते हो की
मेरे आंखो में अंगारे क्यों ?
मेरी मुठीया क्यों भिची है ?
जबतक मुझे ...
मेरे सवालों का जबाब नहीं मिलता
तब तक  ये  ..
एसे ही रहेंगी तुम्हे घरती
सवाल करती !

पराशर गौर
१ फरबरी २०१० दिनमे १.३० पर

Barthwal

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पराशर जी
सादर नमस्कार्! आपक ये पन्ना मा आईकन खुद बिसरे जांद मेरी। आप हम सभी लुखो कुण मिसाल छन अर आपक उत्तराखंड - स्नेह से सभी वकिफ छन। उम्मीद च कि अगनै भी आपक आश्रीवाद ये रुप मा मिललू। मेरा पहाड जन वेब साईट अपणू कर्त्वय निभाणा छन आप जन लुखो क सह्योग क दगड। आशा च हमरी सास्कृ्तिक धरोहर तै यू प्र्यास बचायकन राखल।
म्यार विचार च कि अगर हम अपणी बोलि/भाषा तै सब्यू का बीच मा पहोंचोला त स्वत: ही हम लुखो तै उत्तराखंड क सांस्कृतिक धरोहर ते संरक्षक मिल जाला। मीते जख मौका मिलदू बुल्दू छौ। ये वास्ता जब मीन फेसबुक मा गढवली भै बैणो ते देखि त विचार आई कि उ सभी तै अपनि भाषा/बोलि ते बुलाण लिखण या सिखण(पढेक भी सीख सकदिन) कू मंच दिये जाव। "मी उत्तराखंडी छौ" पन्ना मा नई पीढी क उत्साह देखिक खुशी ह्वेई। थोडा समय लगलू पर थोडा मकसद मा कामयाबी मिलली विश्वास च।
सभी लुखो कुण म्यारो नमस्कार।
आपक आश्रीवाद की लालसा दगडी
प्रतिबिम्ब बड्थ्वाल्

 

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