जानबरो की कछिडी
जनि मी अपणा गोंक जंगले तरफ ग्यु , त देखि ...., ! एक तपड़माँ सरया जंगलाक जानबर छा कठा हुया ! थोड़ा देर रों सुचुणु..., कि, किलै होला ये सब कठा हुया यख्म ! अर ताजुब .... , सबसे बड़ी बात ये छे, कि , जू एक हैंका थै काला बखरा बरोबर दिखदा छा , उ अगल -बगाल्मा बैठे गप्प छा लगोणा ! और त और जू एक हैंका कि ज्यानक दुशमन छा , वो एक हैंकाक कंधो माँ, हाथ धैरी छा हैसणा ! न्योला -गुरो से छो हाथ मिलाणु ! कवा .. छो, बिरली से छुवी लगाणु ! मिन सोची .., ज़रा नजिखु जैकी देखू..., कि, क्या छन बुना ?
बिरलि खडू ह्वे;;;;;;, अर वीन सब्यु थै सुनैकि बोली ----- " दगडाओ , आजै, आपत्कालीन बैठक कि अध्यक्षता जंगल का राजा शेर/सिंह जील कनी छे ! वो आज अफ़ी नि ए सकी , उन एक चिठ्ठी भेजी ! वी चिठ्ठी थै, मै पैड़ी आप थै सुणोदु !
" साथियो माफ़ी चांदू कि, मी स्वयं अफ़ी निए साकू ! कारण , देहरादून माँ बन्दर बाँट हुणीच ! सोची कि ए नया नया घुप्या , जू , २००० का बाद पैदा ह्वीनी अर एसे पैली शाह खानदानो सालो साल राज राया ! त वे से पैली त मारू ही राज छो ए पहाडमा ! बस ई सोची , मी अपणु बाँट लिणु चलिग्य देराडून !
मीथै पता चकि आजै सभा मनिख अर जानबरो थै लेकी च ! मी चांदू कि, भालू थै आप आजो अध्यक्ष बनावो किलैकी वो , जगल अर आदमियों क बारामा अधिक जाणदान ! और , हाँ ..., एक औरी बात ....., ///// म्यारा पैथर कवी राजनीति न हवा ! जनकी पहाड़ी मनिख करद खा ( खशया) --- बा ( बामण }___ हां/ डा ( हरिजन } की ! बुनो मतलब ( जंगलका हिस्साब से ) मॉस हारी और सहहरी ! "
भालुल जनी अध्यक्षता सभाली .. बोली .... " दोस्तों , भै , मी बुलन से, सु ण म ज्यादा बिश्वाश करदू ! मै चांदू कि आप , आप, अपणा अपना विचार रखिकि मनिख अर हमम क्या अन्त्तर च ? "
सबसे पैली गधा खडू हवे अर बोली "---------- अध्यक्ष जी , ए मिनखल , मयारू नौ गंदू कैदे ? मी थै जैखी कखम बिटपणउ रैन्द अपणा दगडम ! जब कभी मी, शहर- गौमाँ जांदू त, यु बुनो रैद ..., ए गधे कु बचा ? अबे तू गधा छे ? अब्बे गधे कि औलाद ...? ए सब सुणी सुणि कि , मी चोंकी जांदू ! जब मी युकी जात- बिराद्रिमा छेइ निछो त, मीथै क्यूजी लिपटेन्दी अपणा दगड ! ( जानबरो से मुखातिब ह्वेकि ) भइयो , और अध्यक्ष जी ..., मेरी वो ... मी थै कभी कभी शक कि नजर से दिख्न बैठी जांद ! जब जब गाढ़ी कि औलाद कि बात आन्द ! ए आदिम खुणि बोलेजा ! मी जानो छो मीथै उनी रैन्द्या प्लीज ! मी अपणा बिरादरी माँ सुखी छो !
अध्यक्षजिल बोली ... " ए आरोप..., गंभीर छन ! हम कनडयम करदा ! साथ ही साथ हम , ए चन्दा कि मनिख , भविष्य माँ , गधा कि इजात को ख्याल राख ! बे बात्मा वो , माँ बेटियों पर नि बिटमाँ ! "
इतुग म कुता बोली ... "------ दगड्यो , तुमत फिर भी सुखी छा ! जब तुम मेरी खैरी सुणल्या ना त , त आप सब समझे जैल्या कि इ मनिख कतका शातिर च ? सब उलटा कम यु करद ! देश क दगड़ यु गढ़ारी खुद करद ! बाबजूद यु हम थै कुता बतौओंद ? चला..., हम थै कुता बुलद त , कवी बात नि छे !पर , एल त हमरी नक़ल कैकी कैकि . हरी नसल थै भी बदनाम करी दे ! अपणा स्वार्थ क खात्र्र हर एक क अग्वाडी दुम ( जी हुजूरी) हिलानी शुरू कैदे ! अध्यक्षजी कुछ बुल्दा ! बिरालीक सिलेमा घंटी बजिगे ....( देराडून से शेस छो बुनू )
हे बिराली .. सब जानबरो से बातो अर बोलिदे .....ए देहरादूनमाँत कै , सिंह , भालुराम .. बिरलि देबी , चिपाडू, जू सतामाँ बैठी राज छान कना ! अर जू अपनी अपनी अपनी रिशादारो दोस्तों कि छान पुटीगी छान भुना ! अरे हाँ त केवल मी अर म्यार बचा कि बात कर दा ! ! बची रावा रै यु से ....बची!
.... कापी राइट @ पराशर गौर