Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54873 times)

Parashar Gaur

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दयब्तौ  की खोज ! 
 
          बोड़ी चौकम  छे  बैठी ! आंदा जान्दो दगड  छे  बच्याणी ,  कि तैबेरी ,  मेल्या खोलै रामचन्देरी वाख्म एकी बोड़ी से  छुई लगाद लगाद पूछंण बैठी ... " हे जी , तुमल भी सुणी ? "  बोड़ी बोली .. "क्या ?" ".. ह्या , बुने,   क्वाठा भीतर का वो जेवोर , जौकु  नौ  ....   कने लियु  उकु  नौ  "  !     बिन्गैकी  की बुलद " जोक नौ तुमरा स्यु जू दलम बैठुच ! बोड़ील वे जाने देखी आर बोली ..   " वो कुता सिंह ..! ." "हांजी,    हां ...!    " वी--- वी .... /  वी जने  एक टक लगे   वी थै घुरी की बोड़ी  बोली !     " कनु क्या ह्वे कुता सिंह थै ?   "    " -----सुणम..  आई कि,   उकु  नाती  घोर च बल औणु   अपना दादा प्रददौ कि कुड़ी थै दिखनो  अर अपणा नार्सिंग  देब्तो कि पुजाई कनु  ? "  "---हाँ --- हाँ  !"   ददल ,त,  नि खोजी   आज तक  अपणी गौंकु बाटु,   अपणी पुगाड़ी -  पटुली ! ताखुँदै  राई ता जिन्दगी भर !  बोई  बाटु हेरी २  मोरीगे !  कुड़ी धुर्पाली उजड़ी गीनी ! न उ  आयु अर ना नौनी !  द्वी पड़ी तक कैल भी  याख्की  शुद्ध नि ले !   बोड़ील ,   सांस लेकी  अर वेकि कुड़ी जाने हेरी बोली  .... " ब्वारी .. मित बुनू छो कि,  यु नर्सिंग इनी ताखुन्दा बस्या लुखो थै भी नाचे नाचे घोर बुलादु ना त कनु छायू  ! पैल,  ये सबी नौकरी खुज्यणु तखुन्द गिनी  !   अर,  अब ,  वो सबी ...,  ये जनि   अपणा अपणा दय्बतो थै खुज्यानु  घोर ऐ जांदा ना...,   त , हे पणमेस्वरा  ..   मी भी  त्वेमा सबा रुपया  चढाई ध्युलू !  चला , भलु ह्वे वे द्याब्तो जैल वेका नाती पर अपणु रंग दिखाई ! अर वो घर बाड़ी ह्वे   !

पराशर गौर
दिनाक ४ अगस्त २०१० स्याम ६ ५३ पर

Parashar Gaur

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एक  सुझाऊ
 

एक बीमा एजेंट
किसी के पास गया
अपना परिचय देते हुए
 उसने उसे समझाया  !
 
 मै बीमा एजेंट  हूँ
 मै आप जैसो का  बीमा करता हूँ
आप    मर  गए तो .............,
 आपके घरवालो को पैसे  दिलाता  हूँ !       
कभी सोचा है ..       
अगर आप किसी दुर्घटना में मर जाए      
घरवाले यतीम हो जाए      
घर खर्चा कैसे चलेगा ?       
आपके नन्हे नन्हे  बचो का क्या होगा ?         
आप तो चले जायेगे , छुटी हो जायेगी        
सोचा है , भाबी  जी  क्या करेंगी ?   
 
अरे इसलिए कह रहा हूँ
मेरी बात मान लो ... 
अपना बीमा करवा लो
कराके बीमा निश्चित हो जाओ
 उसके बाद जब जी में आये जेसे चाहो
बे फ़िक्र होकर मर  लो  !
 
पराशर गौर @कापी राईट
दिनाक १६ अगस्त  २०१०  श्याम ७.४८ पर

Parashar Gaur

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लघु  कथाये

                                  1 कोटा बीटि .....     
 
सैक्शन आफिसर मधुलिंगम  थै फोन पर फोन आण बैठा !  कभी केकु त कभी केकु ! वो जबाब दया त क्या दया !  एक रोज जनी वो आफिस पहुंची ,  तनी  अंडर सैक्रेटरी खुद चली वेका आफिसमाँ एकी गुस्म वेसे पूछंण लगे  ....             
" क्या बात च ,   फाइल ...,  अग्वाड़ी क्यों नि छी  बडणी ! , मी थै  सैक्रेटरी कु फोन च आणु ! क्या जबाब दियू ? मधुलिंगमल बड़े प्यार  से बोली ... , " सर , बुलिदिया कि ,  ऐ सैक्शनम ,  जतका भी क्लर्क  छिन !   सब कोटा से छिन ! कवी काम कानो राजी नी ! "  जनी वेल सुणि,  वेकि बोलती बंद ह्वेगी आर चुपचाप  भैर चलीगे !   
 
कापीराईट @  पराशर गौर   
दिनाक सितम्बर ४ स्याम ४.३० बे 2010     
 
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2   "   खानदानी पटा " 
                  
   भजरामल जनि  पिछड़ी जाती वाली लड़की से शादी क्या कई , कि ,  गौं- गाला , ख्वाल दार , रेश्तादारो  यख तक कि , पटी का लुखोमाँ भरी गुस्सा भुरुयु छो ! सब छा बुना ! बामण घरो  अच्हो  पडयु  लिख्यु नोनूल  अपणो  त अपणो  राय  ,   वेलत ,  सरया बामण जातैकी क दगडया  दगडी  सरया पट्टी कु नो गंदू के दे  !  गोऊ  माँ पंचेत बैठी !  पंचू का समणी जब वेसे पूछेगे  कि तल इनु किले कै ?   भारामल  बोली ....   एकु ,   सीधु अर साफ़ उत्तर  चकि   आपल   देखियाल अर दिखाणा छन   !  कि  मिन ,  एम् ऐ सी कैकी  ४ सालो  इंजीनियरों  कोर्स भी कै ! नौकरी   का बाना मिन क्या क्या नि कै !  जैकू मुख नि दिख्नण छो वेकु पु......... तक देखि !  बाबजूद एका मी , अभी तक भी बेरोजगार छो !  राइ बात...,   खानदान की ,   त ,   ये खानदानी पट्टो मिल क्या कन  जैमा   मयारू  भविष्य  कु कवी  भविष्य  नि  !  ये ब्यो कैकी मिन  कम से कम  अपणी  आणवाली संतानों  कु  भविष्य त  सुरक्षित कै दे ! यु क्या कम चा !   ये उत्तर सुणी  सब  एक हेका  जैन दिख्नण बैठी गीनी !     
कापीराईट @  पराशर गौर
दिनाक सितम्बर ४ स्याम ४.३० बे 2010

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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parashar ji . bahut sunder..

Salute you sir...

Parashar Gaur

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Parashar Gaur

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         पहाड़  me ye sab kyu ?   EK VICHAAR        
 
         जब जब भी नेट खोले तो  पहाड़ चेतना क़ि लहर दिखी देती है  बिशेकर सराब व पलायन पर पहाड़  को लेकर ! ये बहुत अची बात है  और होनी भी चहिए !   वेसे  आप सब जानते है क़ि पलायन क्यों होता है और क्यों हो रहा है   इसी  तरह सराब के बारेमे  क़ि पहाड़ में सराब से  घर बर्बाद हो रहे है ....  उसके  बारे में  भी सब जानतें है !   मेरा उन सब से एक सवाल है एसा क्यूँ हो तो है ?         
 
१ पलायान एक सामजिक परिबर्तन  क़ि क्रिया है और ये होती रहेगी ! मनुष्य ने जब से होश सम्भाल वो इस प्लायानो से  वो एक नही , कई से  बार गुजरा है ! ये पल्याण उसके औए उसकी आनेवाली पीडी के सुख सुबिधा को लेकर होता आ या   है ! पहाड़ो में रोजगार के साधान न होने से अक्क्सर  एसा होता आ रहा है  विदेशो  में या  अपने ही देश पहाड़ो से बहार निकले लोग  जो शरो में बस गए है  और जो  आर्थिक रूप अब संपन हो चुके है या हो रहे है वेही ये राग अपना रहे है !   समय समय पर चर्चा करते है  आवाज उठाते है  रोका ?   इसे रोको ? !    मेरा उनसे एक ही सवाल क़ि,  आप क्यों आये  बहार ? आपने क्यों पलायन किया ? आपने  वही  इस क्यूँ  नही लड़ाई लड़ी ?  और जो  अपने औए अपने बचो के बविश्य क़ि उजलता के लिए आर्थिक सम्पनता हेतु  वो भी आपकी तरह जाना चाह  रहा  है तो , आप उसे रोकते है या रोकने क़ि कोशिश कर रहे है  एसा क्यूँ ?
 
    २ सराब का जहा तक सवाल है  मेरे यह मानना है क़ि कोई भी चीज जो इस धरती पर है या इजादी क़ि जाती है और जो   आदमी  के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष में सही ( किसी  भी रूप  में ) ठीक हो और उसका सही रूप से  प्रयुगा किया जाये तो वो माननीय है ! मै सराब का हिमायती नही हूँ   लकिन..,         अगर आप एक मायेने में कर्फियु  लगा दे तो नतीजा क्या होगा एक दिन ,दो दिन, तिन,  एक महीना लोग अंदर रहेंगे  !  लेकिन जब भूख प्यास सताने लगा तो क्या होगा  ... १ वो से पर कफ़न बाँध कर बहार निकलेगे  इसलिए क़ि मरना तो एसे भी है वेसे भी  !   तो क्यूँ ना अपनी आजादी को गिरबी रख कर मरे ?   आपने सराब तो   बंद  कर दी उतम  !   लेकन साथ में सरकारी ठेके ( जिन्हें वो आफोर्ट नही कर सकता ) खोल दिए !  ये तो येही हुआ क़ि एक भूखे के आगे खाना  रखा हो और साथ में  ये निर्देश भी ये क़ि आप इस खायेंगे नही !     क्यूँ पिटे है  पहड़ो में सराब ज्यादा    
 
         १ भोगोलिक आधार के कारन 
        २. बहुत आस्सनी से उपलब्ध होने कारन  है     
 
       क)    पहाड़ के आदमी में काम तो है नही !  कहते है न खाकी समय शेतान का घर  .. जब उसे लगा क़ि मै सरकारी अफोर्ट नहीं कर सकता तो क्यूना अपनी घर क़ि बना लू  ! उसकी शराब क़ि भूख मिटने लगी और साथ में उसने  देखा ये तो कमाई का एक जुगाड़ भी है  ! पहले वो केवल अपने लिए बनाता था अब हो और के लिए  भी बनाने लगा है  " हिंग लगी ना फित्गरी और रंग चोखा "  बस ये धरना क्या बनी क़ि आज घर में काची का चलन है  या हो रहा है
 
        ख }  पहाड़ो में ९०% लोग या तो मलेत्री में है या उस से रिटायर है जिन्हें   कोटे में सराब मिलती है  नतीजा  ये हुआ क़ि क़ि जो राम या हस्की उन्हें १०० में मिलती है वे उसे बहार ३०० या ४०० में बेचते है  और ये आसानी से उपलब्ध है लोगा जब चाहए रात को दिन को श्याम को इस  खरीद कर लेकर पी लेते है !  कहने का तात्प्रिय ये है क़ि एक ओर तो  सराकर मना करती है मत पियो   ! उधर दूसरी ओर ठेक खोलकर लुभाती भी है !  अगर काची बनाकर पीता है तो धर पकड होती है !   औ जो लोग  अपने कोटे क़ि सराब ब्लैक में  बेचते है उनका कुछ नही  है !   ये सारे कारण है जिसके कारण वहा इसका प्रभा बड़ा है ओर बद रहा है इसमें दो राय नही !     
 
      ये  band नही होगी ओर ना क़ि जा सकती  है लोग युही मरते रहंगे ? घर युही बर्बाद होते रहेंगे अगर रोकना है तो सस्स्ते कीमत के ठेक खले जाए  जिन्हें वो आफोर्ट कर सके ओर काची के खतरनाक जहर से बच सके !
     ye  मेरा  एक बिचार  है  आपका मेरे साथ  सहमत  होना न होना ये आप पर निर्भर करता है !

     पराशर गौर

Parashar Gaur

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   ट्रंक एंड द्राइब 

एक पार्टी में  जब  गया मै 
माँ तेरे कहे हुए शब्द जहन में थे
 तू ने कहा था --- "पीना मत " 
मेरे हाथ था  सोडा  और जम पी रहे  थे !   
 
चल रहा था दौर जामों का
तेरी बात मुझको, याद आती रही
जब पीना  हो तो ,  गाडी मत छूना 
जहन में बस वही बात घुमती रही ! 
 
 दोस्त कर रहे थे आग्रह मुझसे
अरे एक आध पैग पीले पीले
कल किसने देखा है मित्र ---- 
आज की इस स्याम  को,  जी  भरके जी ले !   
 
मैं उनको बड़े  आदर से किया मना
मित्र ,  मै ठीक हूँ आप इंज्वाय करे
ट्रंक एंड द्राइब बात थी जहन में
वो सब मस्त थे , था अकेला मै जाम से परे !   
 
था मुझको मालुम जो कर रहा था 
मै जो तुने कहा था  वही कर रहा था मै
पार्टी ख़त्म होने को है  सब जाने को है
आता हूँ शीघ्र माँ,  निकलने  को हूँ मै  ! 
 
 किसीने अनदेखी मै ,  दी मरी टकर 
जैसे ही गाडी गई सडक में  मेरी
इतनी भयंकर थी टकर ,टकराकर
चार पाच बार रोल हुई गाडी मेरी ! 
 
मै चोटग्रस्त था बीच सडक में
लहुलुहान था तडफ रहा था
आई  पुलिश सिच्युएशन देख रही थी
 कह रही थी , मरी जिसने टकर,, वो पिए हुए था !   
 
अम्युलैंश ने देखा  देख  के वो भी  घबराए थे
बहता खून देख  हाथ पाउ उनके फुल रहे है
जतन करते करते ओ कह रहे थे
क्या लेजाए हस्पताल ,  इसका तो बचना मुश्किल है ! 
 
 माँ, एक बात कहूँ,  मैंने तो पी ही नही
फिर मुझको  ये सजा मिली क्यों है
 दोष किसकी का और भुगते कोई
इश्वर तेरे यहाँ एसा क्यों है  !   
 
मै गिन रहा हूँ अंतिम साँसे
जिसने पी , मरी टकर  वो मुझे घूर  रहा है
 मै  मिरतु शाया पर लेटा हूँ
वो  जीबित खड़ा खड़ा   निहार  रहा   है  !   
 
माँ में तुम से एक बात पूछता हूँ आज
उत्तर दे मै जा रहा हूँ
जब मैंने पीकर गाडी नही चलीइ
तो? मै ही क्यों मर रहा हूँ  !   
 
अनुबादक पराशर गौर 
 सितम्बर १० दिनमे ३.३४ पर

Parashar Gaur

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                              "तुम  क्या जणा की पिटै क्या हूंद ! "             
 
        एक  जमनु छो जब,  स्कूलोमा,   मास्टर थै  बिध्यार्थयो  थै  पिटणो  अर थिनचणो  एक छत्र  अधिकार छो !   यु अधिकार उ थै पीडी दर पीडी बिटि छो मिल्यु !  उ मास्टर ही क्या  ???  जैल  विद्यार्थियु  थै नि थिन्ची !  अरे,   आजकाल नौना..,     तुम क्या जणा की पिटै की हूंद !  ?    अरे हमसे पूछा  ... हमसे  !  ,जोंकी पीठ मास्टुरु की बेतल ल्वेखाल बणी रैंदी छे !  ये दमला  उपडया  रैंदा छा  दमला !  भियूलै कि लपलिपि  सुड सुडी  व बेत ( स्वटिगी )  जब पीठी  पर  चाबुकै तरा पुड्दी छे , त,  ब्वे-उबा याद आन्द छा ,  याद  !  अर मर्द मर्द वो मास्टर  पता क्या  बुल्द छो   " जाणता है मै  कोण  हूँ  " ?     दाड़ी कीटि- किटी  हम  बुल्दा छा ..,  " हाँ साब ,   आप मास्टर साब छा .. " !     तुम टटपुन्ज्य   क्या जणा कि   ठुकै  क्या हूंद  अर हुंदी छे !              
 
          बगत बगतै बात  च साब !  ,   समय बदिलिगे  !   अबत  ,  सब उलटू ह्वेगी !   उ मास्टर ही क्या जेल विद्यार्थी कि मार नि खै    या उ , वेसे नि पिट्यो !  अर वो विद्यार्थी ही क्या जैल मास्टर नि थिनचु !  याकु बुल्दन बल  " गुरु,  गुड रैगी अर चेला शक्कर  बणिगी "  !                
 
           थिंचणो अर मनो अधिकार अब विद्यार्थियो माँ  एगी !  मास्टर भी युकी  पिटै   से कतई  गुस्सा नि हुन्दन ! किलैकी युनकी जाण पच्याण मंत्री / विधयाको  अर राजनैतक पार्टियो से जू हुन्द !   रोज  अखबारों में युकी पिटाई कि खबरोल यु थै नेताओं थै बि अपणा पास लाणम  कवी कसर नि छोड़ी ! युकी देलिम कई राजनैतक दल का नेता श्याम सुबर  हाजरी देद दिखे जै सक्दिनी !   बुल्दन ना सांगतो असर जरा जल्दी पडद !  अबत  आप रोजाना संसद अर विधान सभाओ माँ भी एक ना बल्कि कै कई बार नेताओं थै आपसमा भिड्दा अर एक हिनका कुर्ता फड्ड दिखदा हवेल्या !  कवी प्रशन काल का दौरान  पिटीन्द  ! त कवी जब कसम खानदा ! 
 
 कापी राईट @ परशार्गौर
 सितमबर १० .२०१० समय ८.२९ श्याम को
               

Parashar Gaur

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       चखन्यु                       
   पैलत,   द्वी कज्याणि कभी भी कठा नि मुर्दी  !   हां....,   अगर  म्वारली  भी त ,  कै, आदिम थै दगड लेकी !    किलैकी , उ,   वेका पीता---,  खै- खैकी ,   वे  थै ज़िंदा मै  मरी दिन्दन  ! अर दिखे जा त  कज्याणि मुर्दी भी बहुत कम छिन ! जब कभी यमराजा दूत   उए थै  लिजानु अदीन  त,    उ,  उबरी यत,     मुख  ध्वेकी की सीई  रदिन या बैठी  रदन !  .. उ बिचारा उ  थैइ देखि वापस  चली जनदी  !   ये सोचीकी की ,   की जैथै हम लिणु ऐ छा   !   यत उ नी !                
       ख़ैर , द्वी  जब  मोरी ,   मथी पौंची !   चित्र गुप्त का दरवारम चै बैठी !  आप खुद ही स्वाचा की ,   कभी इनु हवे सकद की ,   द्वी कज्याणि बैठी हो,   अर , वो छुइ  नी लगैनी   !  या    बचेनी ना. !    ई त ,   हवे ही नी सकदु  ?   स्यु  उन ,  एक हैंका थै पूछी     "-------- ह्या भै, तू कनकै मरी ?    पैली वालिल बोली ..   " ठन  ठल  l  " अ र  तू  --- ,    हैन्किलं  जबाब दे   ... "  दिलाक दौरल    "  !   
   "---- दौरल अआआअ    ??? ??   "  पैली वालिल फिर पूछी ...                       
        हाँ  .. बुने ,  मीथै अपणा आदिम पर सक हवे की वो घोरम  कै हैंक  कज्य्नी दगडम  छना बैठ्या !  जनी मी,   यु शक हवे !    मेरु खून  येंच चण बैठी  !  दौड़ी   दौड़ी  घोर ग्यु त , देखि वो बैठक माँ छा टीबी का रिमोटका दगड खीना !  मिन, कुछ नी बोली , बस कमरा कमरा , खोजी  /देखि  .. भैर ग्यु !  भित्तर ग्यु  !  परदौ का पिछने देखि ,  पर,   वो काखी नी दिखे !  इनमा मयारू खून औरी भी  येंच  जाण बैठीगे,      ये सोची सोचिकी  ...,    की ,  कख्च  वा लुक़ी  !  खून इथ्गा गर्म हवे,    की पट ,   बर्मंड पौंछि गे  !    बस  ,    दौरा पड़ीगे ! अर मी,  वाख्मै चित !             
       हैन्किल बोली ... " अगर तू म्यार घर माँ  ,   म्यार  फ्रीजै  समणी  हूँदी  ----,  जैकी टअम्रेचार  ,!     जीरो से भी, सब जीरो ह्वेगे  छो  !    द चूची  ------,   तू  ,  वे बेरी ,   वाख्म हुंदी ना ------   त, बाजी पास्ती !त,   तू बची जादी !
 
 कापी राईट @ पराशर  गौर

Parashar Gaur

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                                                     जानबरो की कछिडी                   
 
      जनि मी अपणा गोंक जंगले तरफ ग्यु ,   त देखि ....,  !    एक तपड़माँ सरया जंगलाक जानबर छा  कठा  हुया !  थोड़ा देर रों सुचुणु...,   कि,   किलै होला ये सब कठा हुया  यख्म  ! अर ताजुब .... ,   सबसे बड़ी बात ये छे,  कि ,     जू एक हैंका थै काला बखरा बरोबर दिखदा छा ,  उ अगल -बगाल्मा बैठे गप्प छा लगोणा !  और त और जू एक हैंका कि ज्यानक दुशमन छा ,   वो एक हैंकाक कंधो माँ,   हाथ  धैरी छा हैसणा  !  न्योला -गुरो  से छो हाथ मिलाणु !     कवा .. छो,  बिरली से छुवी लगाणु !   मिन सोची .., ज़रा नजिखु  जैकी देखू...,    कि,   क्या छन बुना ?      
 
                 बिरलि खडू ह्वे;;;;;;,    अर वीन सब्यु  थै  सुनैकि  बोली   ----- "   दगडाओ ,   आजै, आपत्कालीन बैठक कि अध्यक्षता  जंगल का राजा  शेर/सिंह जील कनी छे ! वो आज  अफ़ी नि ए सकी , उन  एक चिठ्ठी  भेजी !  वी  चिठ्ठी थै,      मै पैड़ी आप थै सुणोदु !                          
           " साथियो  माफ़ी चांदू कि,    मी स्वयं अफ़ी निए साकू   !  कारण ,    देहरादून माँ बन्दर बाँट  हुणीच !  सोची कि ए नया नया घुप्या ,   जू ,  २००० का बाद  पैदा ह्वीनी अर  एसे पैली शाह खानदानो सालो साल राज राया  !  त वे से पैली त मारू ही राज छो ए पहाडमा !  बस ई सोची ,  मी अपणु  बाँट लिणु चलिग्य देराडून !
         मीथै   पता चकि आजै सभा मनिख अर जानबरो थै लेकी च !  मी चांदू कि,   भालू थै आप  आजो अध्यक्ष बनावो किलैकी  वो ,  जगल अर आदमियों क बारामा अधिक  जाणदान  !  और ,   हाँ  ...,  एक औरी बात .....,   /////   म्यारा पैथर  कवी राजनीति   न   हवा  !     जनकी  पहाड़ी  मनिख करद  खा   ( खशया) --- बा  ( बामण }___  हां/ डा  (    हरिजन }    की !    बुनो  मतलब   ( जंगलका हिस्साब से )    मॉस हारी और सहहरी !   "         
 
                  भालुल जनी  अध्यक्षता  सभाली ..  बोली .... " दोस्तों , भै ,  मी बुलन से,     सु  ण म  ज्यादा बिश्वाश करदू !   मै चांदू कि आप ,    आप,  अपणा अपना  विचार रखिकि मनिख अर हमम क्या   अन्त्तर  च ? "                  
             सबसे पैली गधा  खडू हवे  अर बोली  "----------  अध्यक्ष जी , ए  मिनखल ,  मयारू नौ  गंदू कैदे ?   मी थै   जैखी  कखम   बिटपणउ  रैन्द  अपणा  दगडम !  जब कभी मी,   शहर- गौमाँ जांदू  त, यु बुनो  रैद  ...,  ए गधे कु  बचा ?     अबे  तू गधा  छे  ?    अब्बे  गधे कि औलाद  ...?    ए सब सुणी सुणि कि ,   मी चोंकी जांदू !     जब मी युकी जात- बिराद्रिमा  छेइ निछो त,   मीथै   क्यूजी लिपटेन्दी अपणा दगड !   (  जानबरो से मुखातिब  ह्वेकि )    भइयो  ,   और  अध्यक्ष जी ...,   मेरी वो ... मी थै  कभी कभी शक कि नजर से दिख्न बैठी जांद ! जब जब गाढ़ी कि औलाद कि बात आन्द !  ए आदिम खुणि बोलेजा  !    मी जानो छो मीथै  उनी रैन्द्या  प्लीज  ! मी अपणा बिरादरी  माँ सुखी छो !    
            अध्यक्षजिल बोली ... " ए आरोप...,  गंभीर छन  !    हम कनडयम  करदा   !     साथ ही साथ  हम ,   ए चन्दा  कि मनिख ,  भविष्य माँ ,    गधा  कि इजात को ख्याल राख   !  बे बात्मा  वो ,  माँ बेटियों  पर  नि  बिटमाँ   !  "           
           इतुग म कुता बोली ... "------  दगड्यो ,   तुमत  फिर भी  सुखी छा ! जब तुम मेरी खैरी  सुणल्या  ना त , त  आप सब समझे जैल्या  कि इ मनिख कतका  शातिर च ?  सब उलटा कम यु करद !  देश क दगड़ यु गढ़ारी  खुद करद !    बाबजूद  यु हम थै कुता बतौओंद  ?   चला...,   हम थै  कुता बुलद त ,  कवी बात नि छे !पर ,  एल  त हमरी नक़ल कैकी  कैकि .    हरी नसल थै भी बदनाम करी दे ! अपणा स्वार्थ  क खात्र्र  हर एक क अग्वाडी दुम  ( जी हुजूरी)    हिलानी शुरू  कैदे !   अध्यक्षजी कुछ बुल्दा  !  बिरालीक  सिलेमा घंटी बजिगे ....( देराडून से शेस छो बुनू )         
             हे बिराली  ..  सब  जानबरो से बातो अर बोलिदे .....ए देहरादूनमाँत कै ,  सिंह , भालुराम .. बिरलि देबी , चिपाडू,  जू  सतामाँ बैठी राज छान कना !  अर  जू  अपनी अपनी  अपनी रिशादारो दोस्तों कि छान पुटीगी छान भुना !  अरे हाँ त केवल मी अर म्यार बचा कि बात कर दा ! ! बची रावा रै यु से  ....बची!
 
  .... कापी राइट @ पराशर गौर
       

 

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