Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54874 times)

Parashar Gaur

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priya,
dono mahanbahwo ko ( pahadi yodha / me uttarkahndi cho )  ko hirdye se dhnyabad.  apne muje aur mer kavita ko samaan diya .
parashar

Parashar Gaur

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ब्वाला  पतै नि !


रुडियु कु घाम
सौंण/भादौ की बस्गाल
पूस /मौ  की ठंड
चैत /बैसाखे  मौलार
दीदा ....उत ..,
म्यार गौमै  ही रैगी  !

यखत, न पाणी
न ठंड,   न बरखा  , न घाम
यखत बस  काम ही काम !

यखत,
रात दिनों  पते ही नि
कबरी रूडी गे , कबरी सौण
कबगे   -पूस /मौ
गे कबरी चैत /बैसाख  प्तै  नि !

 यखत पता च  बस ,
 कब दींण  क्वाटरो किराया
राशन पाणिकु  बिल
यु बिल ,वो बिल अर स्यु बिल
 कब बितिगे  इनमा उम्र  पतै   नि !

पराशर गौर
दिनाक २९ जनबरी २०११ समय १.४६ दिन्म



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bhishma Kukreti

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                 गढ़वाळी भाषौ गितांग, कवि, चाबोडया लिख्वार, स्वांगकार , फिल्मकार पाराशर गौड़ दगड़ी भीष्म कुकरेतीS लिखाभेंट



(सवालों  का जबाब देंण से पैली मी आपकी कलम, आपकी सोच,व आप थै धन्यबाद  देंन्दू  की आप जै तरह से अपणी दोध बोली की बढ़ोतरी, व उथान का वास्ता रात-दिन एक कोरी कि वी थै हर तरह से संघर्ष  कना छा वो अपणा आप माँ एक उदाहरण च. ! नतमस्तक आप का वास्ता !आपल भेंट बार्ता  का माध्यम से मैसे कुछ सवाल पुछिनि त, मी कोशिश करुलू कु उकु जबाब देसकुलू !-Parashar Gaud)   

भीष्म कुकरेती को sawal  : आप कविता क्षेत्र मा किलै ऐन ?
पाराशर गौड़ को जबाब : जबाब  च  आण पड़ी ! वेक भे द्वी कारण छी ! एक .. ६० का दशक माँ राजधानी ( देहली) माँ  कबिता करनी  त दूर  लोग अपणी बोली भाषा माँ छुई या बात करद भी शर्मंदा छा ! ई बात मैथी चुभी  बस तब  मैं न अपणा  आप से बोली कि आज से मी गड्वाली बोली कि ज्वा  भी   बिधा हो वेमा ही आम करलु अर लिखुलू !  दुसुरु .. वे समय पर जू लिखदा भी छा  त उ का वास्ता कवी एनु मंच नि चो कि जैम एकी वो अपणी कबिता बाची सकी ,सुने सकी !तब मैंन  एक  निमाणी याने छवटी कोशिश करेकी उका वास्ता एक मंच तयार कैरी  उकी कबिता सुणी आर अपणी सुनेनी ई तरह से कबिता का छेत्रमाँ आनु हवे !  आप थै एक बात औरी बतै  दयु कि मी कबि से पैली मी ,  मेरी पछ्यान एक गीतकार का रूप माँ च ! ६० का दशक माँ मेरा कई गीत दिली के आल इंडिया रेडियो  से प्रसारित ह्वेनी  !
 
भीष्म कुकरेती को सवाल: आपकी कविता पर कौं कौं कवियुं प्रभाव च ?
 पाराशर गौड़ को जबाब ; मेरी  कबितायो पर कई भी कबि वेकि कबिता कु केकु प्रभाव नी च और ना ही राई,  मेरी  किबता  मेरी सोच अर भावों कि अभिब्यक्ति हुदीन ! हां  मी एक कबि से जरुर प्रभावित छो अर वो छी मेरा गडवाल का कालिदास  याने स्वर्गीय  कन्हिया  लाल डंडरियालजी  ! वी मैथी किबता का फीलड माँ लेनी  ! असल्मा उनै मी थै कबिता लिखन सिखाए !
 
भीष्म कुकरेती को सवाल:  आपका लेखन मा भौतिक वातावरण याने लिखनो टेबल, खुर्सी, पेन, इकुलास, आदि को कथगा महत्व च ? 


पाराशर गौड़ को जबाब: कबिता  यु सब चीजू कि मोताज नी हुन्दी ! कबिता बनाइये नी जादी ! कैभी चीज थै बनाणा का वास्ता  चीजुकी जरूरत हुन्द उदारण का वास्ता जनकी मकान बनाणा वास्ता गारू माटु ठुंगा लकड़ी छेनी  आदि कि आवश्यकता  हुन्द  युका बिना वो पूरी नी हवे सकद जबकि कबिता  माँ ना त  कवी कुर्सी   टेबल  जनी चीज  जरूरत  नी हुन्दी !  वेंम  त भावों कि आवश्यकता  जरूरत हुन्द  !  अर भावों   थै,  ना त समय  ,नत कै इक्लुवंस क़ी  ना कै भोतिक सुख सुबिधो क़ी कवी जरूरत हुन्द ! उत कै भी  समय /कै भी जगह माँ ये जान्द ! 
 
भीष्म कुकरेती को सवाल: आप पेन से लिख्दान या पेन्सिल से या कम्पुटर मा ? कन टाइप का कागज़ आप तैं सूट करदन मतबल कनु कागज आप तैं कविता लिखण मा माफिक आन्दन?
 पाराशर गौड़ को जबाब: कबिता  का भाव जब आन्दीन,  त ,  तब  जवा भी चीज समणी आन्द बस वेमै लिखन बैठ जादू  सवाल: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ? अक्सर  इनुत नी  हुन्द  पर अगर कभी  एनु  ह्वेजा त,  मी वे समय जू भी चीज याने पेपर उपलब्ध हवा वे माँ उ पंग्त्यु थै लेखी देन्दु ! फिर   जब कभी  मौका  मिल्द त वी गीत या कविता थै पूरी करी देन्दु  ! न पेंशन अर कागज़ मी थै ज्यादा बालू लगद  बादम  कम्प्यूटर माँ लेखी वे थै  रखी देन्दु  !
 भीष्म कुकरेती को   सवाल: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?

पाराशर गौड़ को जबाब:  अक्सर  इनुत नी  हुन्द  पर अगर कभी  एनु  ह्वेजा त,  मी वे समय जू भी चीज याने पेपर उपलब्ध हवा वे माँ उ पंग्त्यु थै लेखी देन्दु ! फिर   जब कभी  मौका  मिल्द त वी गीत या कविता  थैपूरी करी देन्दु  !
 

सवाल: जब आप अपण डेस्क या टेबले से दूर रौंदा अर क्वी विषय दिमाग मा ऐ जाओ त क्या आप क्वी नॉट बुक दगड मा रखदां ?   

सवाल: माना की कैबरी आप का दिमाग मा क्वी खास विचार ऐ जवान अर वै बगत आप उन विचारूं तैं लेखी नि सकद्वां त आप पर क्या बितदी ? अर फिर क्या करदा ?
 
भीष्म कुकरेती कोसवाल: आप अपण कविता तैं कथगा दें रिवाइज  करदां ?

 पाराशर गौड़ को जबाब: जतका बगत मी उई थै  पडदू  ! 
 

भीष्म कुकरेती को सवाल: क्या कबि आपन कविता वर्कशॉप क बारा मा बि स्वाच? नई छिंवाळ तैं गढवाळी कविता गढ़णो को प्रासिक्ष्ण बारा मा क्या हूण चएंद /

 पाराशर गौड़ को जबाब: आपल बहुत ही अहम सवाल  उठाई  जू साहितिक द्रष्टि से बहुत ही मत्वा पूर्ण  च !  अगर इनु हवे जा या करेजा  त इसे द्वी बात हवे सक्दं  एक त भाषा थै एक सबल  मिलालू और साथ ही साथ

  लेखक थै  कबिता का तत्वा  भी पता लागला जैसे वेकि कबिता माँ ससकता  येजाली !नया   कबिऊ  थै  चैद की उ गड्वाली का अचा कबियु थै पड़ींन  ! उ के रचना पर फोकास करी ! एसे  उ थै

  कई  बात पता लागली जन्की ,  किब्ता क्या हुन्द  वेकि रचना कन करी जान्द ! सब्दो आर भाह्वो  कु ताल मेल l क्न्क्वे बठाये जान्द आदि आदि ! 

भीष्म कुकरेती को सवाल : आपन कविता गढ़णो बान क्वी औपचारिक (formal ) प्रशिक्षण ल़े च ?

पाराशर गौड़ को जबाब: सच बोलू त ना ...! वे बेर अक़ल की कमी छे अर नहीं इतका साधन मौजूद छाया  जेकू लाभ तब हम ले सकदा छा जातक आज छन  !

भीष्म कुकरेती को सवाल: हिंदी साहित्यिक आलोचना से आप की कवितौं या कवित्व पर क्या प्रभौ च . क्वी उदहारण ?

पाराशर गौड़ को जबाब: बहुत असर पडद ! पता लगाद की हम क्या छा लिखना ! क्या जू लिखुच वो कबिता का माध्यम से सम सामय्की च की ना !क्या वो अपना संदेश देना माँ कामयाब हवे  या ना !


 भीष्म कुकरेती को सवाल : आप का कवित्व जीवन मा रचनात्मक सुखो बि आई होलो त वै रचनात्मक सुखा तैं ख़तम करणों आपन क्या कौर ?

पाराशर गौड़ को जबाब:  क ना बल्कि के बार इनु  हवे जान्द ! ताज उदाहरण युच की अभी पट ८ महीना से कलम व भाव  द्वी नदारद छन ! कपाल रग ड णु  छो पर  मजाल च  जू एक भी हर्फ आनु हो !

 मूड ही नि बनुनु च ! यु मूड भी बडू उत्कू घस्सा च ! एजात इजा,   नि औ त,  नि आ !         


भीष्म कुकरेती को सवाल: कविता घड़याण मा, गंठयाण मा , रिवाइज करण मा इकुलास की जरुरत आप तैं कथगा हूंद ?

पाराशर गौड़ को जबाब:  इत्गा भी नि पुड्दी पर हां पर जब भाव आदन त तब एकुल्वास की जरूरत  पुड्दी च  !
 

भीष्म कुकरेती को सवाल : इकुलास मा जाण या इकुलासी मनोगति से आपक पारिवारिक जीवन या सामाजिक जीवन पर क्या फ़रक पोडद ?
 
 पाराशर गौड़ को जबाब:  इत्गा बोल्या भी न हवा मी अभी की २४ घंटा कबिता माँ ही उलझयु रों! हां जय दिन या नोबत आइजली  तब दिखला !

भीष्म कुकरेती को इकुलासी मनोगति से आपक काम (कार्यालय ) पर कथगा फ़रक पोडद
 
 पाराशर गौड़ को जबाब: बिभाधन  त हवे जान्द  कभी कबि   


भीष्म कुकरेती को सवाल: कबि इन हूंद आप एक कविता क बान क्वी पंगती लिख्दां पं फिर वो पंगती वीं कविता मा प्रयोग नि
 
करदा त फिर वूं पंगत्यूं क्या कर्द्वां ?

पाराशर गौड़ को जबाब अक्सर ...मेरा साथ इनी हुन्द  यत वा पकती कई कुणमाँ छन  अपनी बारी की जग्वाल माँ या फिर हर्चे जदन  कागजू  का बीच !

भीष्म कुकरेती को सवाल : जब कबि आप सीण इ वाळ हवेल्या या सियाँ रैल्या अर चट चटाक से क्वी कविता लैन/विषय आदि मन मा ऐ जाओ त क्या करदवां ?
 
 उठी चट से कगाज माँ उतारी देनु !


भीष्म कुकरेती को सवाल: आप को को शब्दकोश अपण दगड रख्दां ?
 
  पाराशर गौड़ को जबाब: ना

 
भीष्म कुकरेती को सवाल: हिंदी आलोचना तैं क्या बराबर बांचणा रौंदवां ?
 
 पाराशर गौड़ को जबाब: ना 

भीष्म कुकरेती को सवाल : गढवाळी समालोचना से बि आपको कवित्व पर फ़रक पोडद ?
 
पाराशर गौड़ को जबाब:  बहुत हरक पडद! जन मिल बोली की तब तक पत ही नि लगुद की क्या ल्याख अर जू ल्याख भी च  वो कख तक ठीक च !

भीष्म कुकरेती को   सवाल: भारत मा गैर हिंदी भाषाओं वर्तमान काव्य की जानकारी बान आप क्या करदवां ? या, आप यां से बेफिक्र रौंदवां
 
पाराशर गौड़ को जबाब: पैली त पता नि छो अर नहीं रूचि छे लेकिन जब से नेट से जुड़ा त तब से अब अन्य बोली भासयु  थै पडन की रूचि जगी उका बरम समझन की अकाल एगे !


 भीष्म कुकरेती को सवाल : अंग्रेजी मा वर्तमान काव्य की जानकारी बान क्या करदवां आप?
 
  पाराशर गौड़ को जबाब: नेट व लायब्रेरी माँ जेकी वे का बारामा पडदा !


भीष्म कुकरेती को सवाल: भैर देसूं गैर अंगरेजी क वर्तमान साहित्य की जानकारी क बान क्या करदवां ?

 पाराशर गौड़ को जबाब ग्रुप व संस्था  से जुड्की वेक बरमा जानकारी लीना की कोशिश रै द !
भीष्म कुकरेती को सवाल: आपन बचपन मा को को वाद्य यंत्र बजैन ?
 
पाराशर गौड़ को जबाब:  पिपरी  वो पताकी !

भीष्म कुकरेती को सवाल: आप संस्कृत , हिंदी, अंग्रेजी, भारतीय भाषाओँ क, होरी भासों क कौं कौं कवितौं क अनुवाद गढवाळी मा करण चैल्या ?       

 पाराशर गौड़ को जबाब:  जरुर !

 

Wait for another Garhwali creative's views on his creative Craft and Craftsmanship ..

Copyright@ Bhishm Kukreti




 
 


 

 

Bhishma Kukreti

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दुन्या क महान कवि कन्हैया लाल डंडरियालौ बारा मा पाराशर गौड़ की राय

    प्रस्तुतीकरण - भीष्म कुकरेती

भीष्म कुकरेती - पाराशर जी ! आखिर क्या बात च जु गढवाळी साहित्यकार महाकवि कन्हैया लाल
          डंडरियालौ बारा मा जाणण चांद !

पाराशर गौड़ : कन्हयालाल जी मेरा पहाड़ का कालीदास छन ! वो मेरा पाहाडी साहित्य का
          जन कुमाउनी का महान कबि गुमान कवी छा, उनी दंद्रियाल्जी भी वी समक्ष का गड्वाली
          कवि छन ! आज तक  कु जत्गा भी गड्वाली कवित्या कु साहित्य मिल्द जुमा की हमरा
          पूरान महान कबेयु जौं को योगदान च उत छहीच पर , आज का सन्धर्व माँ अगर     
          गड्वाली की कविता कु बिबेचन, वेकु प्रभाऊ/सम समायाकी कु कतका असर हमारा व
          हमारी जन जीवन पर असर करद वे सन्धर्व माँ कनाह्यालाल्ल डंड्रियलजी सर्वोपरि
          ऊकी कविता...कविता  नीन,  वो अपना आपमाँ  मेरा पहाड़ कु दर्पण छन ! जू
          कबिताक माध्यम से पहाड़ की सांस्क्रतिक /सामाजिक व आर्थिक जीवन कु स्वरुप
          आम आदम थै दिख्न्दी !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी से मुलाक़ात मा आपन उंको विषय मा क्या धारणा बणे छे
          अर क्या वै इ धारणा पैथर बि रै?

पाराशर गौड़: ये बात सन 1962 -63 की च, जब मिन अपणु पैलू गड्वाली में नाटक  " औंसी की
         रात " लेखी अर वेथै मंच माँ प्रस्तुत करी ! हैका दिन दिखान बाद ऊ मथ मीनू मेरा
         आफिश माँ मै थै मिलणु एनी, वे समय व सफ़ेद कुर्ता -गंदेलु पेजमा अर नंगा खुटा
         ( बिना जुता ) म छा ! यदपि उसे एक बार गडवाल भवन माँ इनी चलदा चलदा भेंट हुई
         छे ! वे समय वख चंदरसिंह  गढ़वालीजी अपनी धर्मपत्नी व बचो का साथ च रुक्या !
         जब हमरी मुलाक़ात हवे त, वो ठेट गौकु सी मानीख छा लगणा !

भीष्म कुकरेती- जरा कन्हैया लाल डंडरियाल जी क व्यक्तित्व तैं कम से कम शब्दों ब्वालादी !

पाराशर गौड़:  कन्हैया लाल डंडरियाल जीक व्यक्तित्व थै नापणोक वास्ता एक विशेष दृष्टि की
          जरूत चैन्द ! वो दिख्नमाँ जतका साधारण लगदा छा उत्की उकी कबिता शसक्त छ !
          वो शब्दों का घट छा ! कलम अर चित्रण का मठ छा ! शब्द उनकी उन्गुल्यू इस्सरो
          नाचदा छा ! उनकी सबसे बड़ी खूबी छेकी वो जू भी बात बुलन चाणा छन वो आम
          आदमी की भासामा लेखी की बड़ी सरलता वे थै प्रस्तुत करदा छा जैकू सीधु प्रभाव
          सुन्न वालो पर पुदुद रा !   

भीष्म कुकरेती- उंका दगड आपै साहित्यिक मेल मिलाप का बारा मा खुलासा कारदी .

पाराशर गौड़ :जन मिन बोली की नाटक देखनक बाद मेरा आफिस माँ एयेने ! नाटक पर बहश का
         बाद वो सीधे सीधे कबिता पर अयेने ! उ दिनों मी गड्वाली माँ गीत लिखदो छो जोंथई
         आकाशबानी से जगदीश थोंदियाल व लीला नेगी गान्दा छा ! उन मेरा गीत आकाशवाणी
         दिल्ली भी सुणा छा ! तब उन बोले छो..आप अछा गीतकार छा त आप गड्वाली माँ   
         कविता क्यों न करदा ? मीन बोले कोशिश करुलू ! इतुगु क्या बुन छो झट से बोलिनी
         की, ऐ इत्व्वरोकु तिमारपुरमा मेशानंद गौड़जी घोरमा एक रातकी बैठक च टक लागैकी
         ऐजया ! मी वाख ग्यु ! हम वख़म चार य पाच आदिम छा जौन्थई मी नि पच्याणदू छो
         ख़ैर परिचय होए .. खुगशालजी" बोल्या ", महेशानान्दजी गौड़, रमेश घीडियाल  वो,
         अर मी ! यु हमरु सबसे पैली कबिता गोष्ठी छे ,अर बतुओर एक कबी का पहलु परिचय
         भी ! यत छे शुरवा ... यका बादत हम एक हैनका बहुत ही कर्रीब एगे छा ! पैलीत हम
         तिमारपुरमाँ मैनामा एक दो बार मिल्ल्दा छा ! वेका बाद कुछ और आदमी जुड़नी
         जनकी नेत्र सिंह असवाल / गणेश शास्त्रीजी, लोकेश नवानी ,बडोला जी, विनोद उनियाल,
         चन्द्रसिंह रही आदि  !
              हमने तब एक संस्था बनाई " गड भारती "  वेकी तत्वाधान मी " फंची " का
         परकशन ! दुसुरु " धै  "  साथ कबियो की कबिता संघ्रह गणेश शास्त्री जी ने यु द्वीयु
         कु सम्पादन करी ! इ " गड भारती" संस्था का ही तत्वाधान माँ ही, गड्वाली साहित्यकु
         सबसे पहलु " स्वर्गीय पंडित टीकाराम गौड़  " डंडरियाल जी की "अन्ज्वाल" पर उथे   
         दिएगे छो !

भीष्म कुकरेती- जब ड़ी.सी.एम् मिल बंद ह्व़े त फिर कन्हैया लाल डंडरियाल जी न नौकरी किलै नि
           खोजी?

पाराशर गौड़ - जबाब सीधु युच की, जब आदिम ४० कु- हवे जान्दत, नौकरी का मामल माँ वैथे कवी
          ज्याद ताबजू नि देन्दु ! डंडरियाल जी ज्यादा पद्या लिख्या त नि छा जू कुवी स्किल
          जोब का वास्ता जांदा ये वास्ता जख्तक उन समझी की बात अब अग्वाडी बन से राइ
          ( नौकरी का मामला माँ ) वो हताश से हवे ह्वेगे छा, पर हिमंत से ना !  उन घोर
          घोर जैकी चा की पत्ती बेचिनी पर केका अग्वाडी हाथ ने फैलाई ..वो एक खुदार मनिखी
          छा !

भीष्म कुकरेती -इन बुले जांद बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क बेटी ब्यौ गढ़वाळी कवि जया नन्द
          खुगसाल 'बौळया' जी नौना दगड हूण मा आपकी बि भागीदारी च. क्या या बात सै च?

पाराशर गौड़ - भागीदारी त मिनी बोलुलू  पर हां, एतुगु  जरुर बुलुलुकी मीसे जू भी बन पड़ी एक मित्र
          का नाता मिल काया ! वे समय पर उनकी स्तिथि जरा खराब छे अर इनु समय माँ
          अगर मित्र मित्रक कामा नि आन्द त , वो मित्र ही क्या ?

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी अर गढ़वाळी कवि जया नन्द खुगसालऔ कवितौं मा कुछ खास इकजसिपन /साम्यता छन बल जन कि कम आमदनी वलु प्रवाशी क गरीबी क संघर्ष, गढ़वाळ अर दिल्ली क जीवन का बीचऐ दुरी तैं ख़तम करणो एक अजीब सी परेशानी, गढवाळ अर दिल्ली मा मानसिक , भौतिक, आर्थिक स्तिथियुं तैं बैलंस करणे कसमस , असलियतवादी कवितौं पर जादा जोर , चबोड्या शैली आदि . क्या या बात सै च?

पाराशर गौड़ - सै ही ना बल्कि सोला आना सच ! द्वीयु की कबिता पहाड़ व पहाड़ से नौकरी की
      तलाश में भैर आया प्र्बासियो की खैर त्रास्ती  मज़बूरी  की साफ़  झलक मिल्द ! बोल्या जी
      वो बात नि छे !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल  डंडरियाल जी क कविता रचणो ढंग ढाळ देख्युं च. कै तरां अर कन परिस्थिति मा वो कविता गंठयांदा छया ?

पाराशर गौड़ - उन  छोटी छोटी आंख्युं , बड़ा बड़ा कोथिक देखिनी ! वे कोथिकोमा कै किसमा का
     उतार चड़ाव छा ! बकत की थपेड़ों ने उनकी राचनो थै वो धार दे ,वो धार दे जैकी बजह से
     आज जब हम उनकी कबिता  पडदा  त  इन लगाद  की  ये मनिख्ल कतका देखि
     अर भोगी  !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कविता खौळ (कविता संग्रह) छपाण मा बि आप सरीखों हाथ होंदु छौ. क्या या बात सै छन?

पाराशर गौड़- मेरी भरसक कोशिश इ राय की जू क्वी भी अपणी माँ बोली की भी सेवा करद या कनु
       च, अगर  वैथे  कवी  मओं मदद चैन्द त मी अपनी तरफ बीटी जू भी हवे सका वेकि मओं
       मदद करे जा ! उकी मदद जरुर काया उथे गड्वालीमाँ पैलू गड्वाली साहित्यिक  पुरुष्कार  "
       स्वर्गीय  पंडित  टीकाराम गौड़  साहितिक पुरष्कार " से  समानित कैरिकी  दगड म कुछ
       आर्थिक मदद कैरी !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं यांको मलाल छौ (जु नागराजा मा बि लिख्युं च, सैत ) बल धनाभाव क कारण नागराजा, अबोध जी क महाकाव्य भुम्याळ से पैलो नि छाप. क्या बात सै च?

पाराशर गौड़- सत्य बचन ! नागराजा  भुम्याल से बहुत पैली उन लेखी याली छो ! उकु और मेरु
      दुर्भाग्य  ही छो की मी १९८३ ८४ माँ उनसे दूर ह्वेगे छो ! अगर मी रैंदु त यु महा काब्य  वे
      से पैली छपी जादू ! पर हूनी वल थै क्वी नि रोकी सकद ! जन अज्वाल थै समान मिली छो
      वनी ये महा काब्य थै भी एक यु समान मिली जांदू !

भीष्म कुकरेती- महा कवि भगत बि छया अर सैत च ऑन पर क्वी दिवता बि आंदो छौ. डा. नन्द किशोर ढौंडियालौ जी न इनी ल्याख, गिरीश सुंदरियालौ न बि इनी ल्याख. आप त उंक दगड भौत रैन आपक क्या राय च?

पाराशर गौड़-  जी  हां  ! नाराज आन्दु छो उन पर !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी क कवितौं पर आपकी विवेचना क्या बोलदी!

पाराशर गौड़- बिबेचना का वास्ता  एक लम्बू समय चैद बस इतुगु ही बुलुलूकी उकी हर कबिता मेरा
       पहाड़ की तस्बीर छन, एक आयना च जैमा लोग अपनी अनवार देख सक्दिन !

भीष्म कुकरेती- मिं देखी अबि बि भौत सा कवि कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ढंग ढौळ (शैली) तैं अपन्यौणा रौंदन जब कि आजै मांग च बल कन्हैया लाल डंडरियाल जी क ब्युन्तौ विकास करे जाओ. क्या बात च कि हरीश जुयाल तैं छोड़िक इन कम इ हूणु च ?

पाराशर गौड़- शैली थै अपनानू कवी गलत बात नि, पर नक़ल कनी व अछी बात नि !

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी तैं पैलो टीका राम गौड़ पुरुष्कार मील. टीका राम गौड़ पुरुष्कार का बारा मा संक्षेप मा बतावा त ज़रा !

पाराशर गौड़- टीका राम गौड़ पुरुष्कार  गड्वाली माँ उ लुख थै दिए गया  या दिए जान्द जौन पहाड़ी
        भाषा  गध्य पद्य गीत संगीत नाटक अबिनय माँ काम करी ! ये से अभी तक
        कन्हयालाल  डंडरियाल जी, चंदर सिंह रही,  कंकालजी, शारदा नेगी मवारी-गारी का लेखक
        घिदियाल्जी आदि लोग छन! गड्वाली माँ गड्वाली साहित्यकु - यु पौलू पुरुष्कार च जैमा
        २००० रुपया अर शाल दिए जान्द  !   

भीष्म कुकरेती- कन्हैया लाल डंडरियाल जी बारा मा कुछ हौरी जानकारी दी न चैल्या क्या?

पाराशर गौड़- वो एक बहुत ही सुल्ज्या अवम द्रदर्शी व्यक्ति छा  !

भीष्म कुकरेती- नवाड़ी कवियों तैं कन्हैया लाल डंडरियाल जी से क्या सिखण चएंद ?

पाराशर गौड़-अपनी माँ बोली थै  नि भूल्या !  माँ का बाद,  बोली ही सबसे पवित्र अवम सबसे उत्तम हुन्द !

पाराशर गौड़-

Bhishma Kukreti

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Choli:  A Garhwali Drama of Desiring Husband’s Love

(Review of Garhwali Drama ‘Choli’ (1971) written by Parashar Gaur)

                                    Bhishma Kukreti

    There are many dramas/films based on search for husband love subject. For example, ‘When a man loves a woman’ (1994) film takes such subject.
   The bird Choli is synonym of unfulfilled desires.  There is water in the ocean but the human being can’t take it. Parashar gaur wrote and directed ‘Choli’ drama in 1971. Parvteey Yuvak Manch Delhi presented and staged the Garhwali drama ‘Choli’ (1971) at All Indian Medical Association Hall, ITO Delhi on 25th December 1971.
  The story of drama is sad story of a woman (performed by Sharda Negi). A Migrated Garhwali marries to a village girl of Garhwal. Newly bride comes to Delhi with her husband. Due to his busy schedule, her husband does not get time for her and to share emotions with her. She is in search of love from her husband. When she is just to die the husband says that he loves her.
  The drama is sad drama and opens various facets of life.

Copyright@ Bhishma Kukreti, 19/6/2012

Bhishma Kukreti

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श्री पराशर गौड़ जी अ दगड  भीष्म कुकरेती अ  छ्वीं

भीष्म कुकरेती - आप साहित्यौ दुनिया मा कनै ऐन?

पाराशर गौड़  ..  श्रीमान मान्यबर कुकरेती जी , आपल त पैली  ही सवालम एक इनु सवाल  पुछ दे

        जैन मी थै सुचंण पर मजबूर कै दे !  शुरुवाती दिनों को याद करणम  कुछ तो समय लगालू , खैर ..

        जबमी  ८ वी पडदु छो,  वे समय माँ एक गीतनुमा कविता अगसर गए जांदी छे जैका बोल छा

        " फुर घिन्डुई ऐजा, पधानु की छेई जा  " (तब . कबि बारामा कुछ पता नि छो बादाम

        ये मेरु शोभाग्या छो की मिन वे कबि थै अपना पिताजी का नौ  से शुरू कयु पुरष्कार  से उन्थई

        समानित कै ! वो छाया श्री गिरधारी लाल   थपलियाल 'कंकाल')  बस तब बीटी  मेरु साहित्य की ओर

        रुझान शरू ह्वेगे छो !


भी.कु- वा क्या मनोविज्ञान  छौ कि आप साहित्यौ तरफ ढळकेन ?
पा.गौ. हां भी अर ना भी .. स्कुल का दिनों माँ  सांस्क्रतिक कार्यक्रमों बड़ी चड़ी भाग  लेणाक भी  एक बजह छे       बाद माँ 

भी.कु. आपौ साहित्य मा आणो पैथर आपौ बाळोपनs कथगा हाथ च ?

पा.गौ- भौत त  बिंडी .  असलमा वे समय एक हैंकि किस्म की सोच छे जैम देबी द्य्ब्तो का प्रति

        प्रकृत का प्रति प्रेम ज्याद छो !  मेरिक्या मेरा ख्याल से हर  कबि की पहली रचना यत प्रक्रति पर होली

        या इश्वर पर !  वे समय देख्या या घटया घटनो कु अक्ष मेरी क्बितो माँ भी दिखाई जय सकद !


भी.कु- बाळपन मा क्या वातवरण छौ जु सै त च आप तै साहित्य मा लै ?

पा.गौ- रेडीयुमाँ गड्वाली गीत औंदा छा वेमु गीतकारो नौ आन्दु छो बस तब मिन भी सोची की मै भी गीत

        लिखू आर मयारू नो भी एक दिन इनी र्रेडियो से प्रसारित हो !


भी.कु. कुछ घटना जु आप तै लगद की य़ी आप तै साहित्य मा लैन !

पा.गौ- जी हां .. हमारा गौं प्रधान जी जू हर चुनो लड्दा छा  उन एक दिन मि थै एक एक किताब बीटी

       एक गड्वाली कबिता सुनाई  जैका बोल छा " धन सगोड़ी त्वेकू ,जू साग भुजी देदी मैकू "( श्री जगु नोडियाल जी रचना )

        वे सुणी मन भीतर एक हलचल सी हवे  तब बिट कुछ गीत लिखना शुरू कै दे !


भी.कु. - क्या दरजा पांच तलक s किताबुं हथ बि च ?

पा.गौ - सच बोल त  याद नि !

भी.कु. दर्जा छै अर दर्जा बारा तलक की शिक्षा, स्कूल, कौलेज का वातावरण    आपौ साहित्य पर क्या प्रभाव च ?

पा.गौ - असल्मा साहित्य की पौ नींव   कालेज की शुरुवाती दिनों से हवे ! वे संयम प्रेम ,बिछो  हास्य  ,व्यंग जन भाव  से पछाणक  हवे

         जोन  मि थै साहित्य रचनामा बहुत योगदान दे !


भी.कु.- ये बगत आपन शिक्षा से भैराक कु कु पत्रिका, समाचार किताब पढीन जु आपक साहित्य मा काम ऐन

पा.गौ - साप्ताहिक  हिन्दोस्तान , धर्मयुग , सरिता , कादम्बनी , व समाचार पत्र  !


भी.कु- बाळापन से लेकी अर आपकी पैलि रचना छपण तक कौं कौं साहित्यकारुं रचना आप तै प्रभावित करदी गेन?

पा.गौ -हिंदी माँ  दिनकरजी,  काका हाथरसी  अर गड्वाली माँ जगु नौडियाल / डंडरियाल जी  !


भी.कु. आपक न्याड़ ध्वार, परिवार,का कुकु लोग छन जौंक आप तै परोक्ष अर अपरोक्ष रूप मा आप तै साहित्यकार बणान मा हाथ च ?

पा.गौ - मेरु गाँव , मेरी स्कुल  मेरी   मुल्क्की डांडी-कंठी  व हर चीज,   जू वे वकत म्यार साथ जुडी रैनी ! ब्यो का बाद मेरी  सब कुछ

      दगडया/सोंजयडया /सहचरी / मास्टरजी / मेरी धर्म पत्नी  सोनी कु सबसे बदु हाथ राय !


भी.कु- आप तै साहित्यकार बणान मा शिक्षकों कथगा मिळवाग च ?

पा.गौ- ३० ४० प्रतिशत
भी .कु. ख़ास दगड्यों क्या हाथ च /

पा.गौ-जगदीश  ढौंडियाल  ( गायक), जैन मी थै  उगसाई गीत लिखुनु कु  दिनेश पहाड़ी जैन नाटक लिखुनु कु बिबश कैरू  आर स्वर्गीय  कन्यालाल डंड्रियल

    जोन कबिता लिखनो बोली आर सिखाए  और इनी क्त्कई अन्य  कुछ और दोस्त !
भी.कु. कौं कौं साहित्यकारून /सम्पादकु न व्यक्तिगत रूप से आप तै उकसाई की आप साहित्य मा आओ

पा.गौ- भीष्म कुकरेती  ( जौन  मी थै  लाठी ले लेकी , घुचे घुचे की   व्यंग लिखण   सिखाई ), कनाह्यालाल डंडरियाल


भी.कु. साहित्य मा आणों परांत कु कु लोग छन जौन आपौ साहित्य तै निखारण मा मदद दे ?

पा.गौ भीष्म कुकरेती .अर डंडरियाल जी  .. सबसे बड़ो हाथ मेरी श्रीमती सोनी कु च  जोन मरे हर रचना कु पोस्ट मार्टम केकी उथे

      एक नई ज्यां दे. !
जुगराज रैनी आप !

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
नियति
पहाड़ में आई बाड़ ..
बाड़ ने मचाई तबाही है
सब ने देखा देख रहा सब
एसे में देहरा दून में मंत्रीयु के पड़ी पो भार है

कोइ मरे जिए उनको इस से क्या
किसी की मवासी लगे घाम उनको इस से क्या
भाड़ में जाये पहाडी /पहाड़ भोटर
उको चाहिए भर पेट बाकी सोये भूखे उनको इस से क्या

कौन सुने रोना धोना इनका का
चोलो यहाँ से निकल इंग्लैंड घूम आते है
बीबी बचो को लेकर चलो चले
कोइ मरता है मरे हम तो सैर सपटा करके आते है !

रचनाकार पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
गीत " मीत "

प्रीत में , मीत रे
छण भी एसे आये जब
लै बनी संगिनी ....
गीत मीत हो गये !

रोय मन है जब
सीने में दर्द जागे है
ठनडक बने है शब्द
हवा गीत बन गए !

यादो के पल जब
बन गए अंगारे है
वक्त आता जब बुरा
छूटते सहारे है ---
चल चालती धूप में
गीत छाउ हो गए !

नम हुए नयन
यादो ने दिलको जब छुआ
एक नीड़ थी बनी, पीड़ की
भीग २ कर आँशु
गीत बन गए !

रोग प्रेम का
जब करराह उठा
धडकनों में एक
जलजला सा हुआ
पीड़ थी चरम में
भीग 2 भी कर
कजरा आशू हो गए !

आग थी लगी प्रेम की
तन जला जला सा था
अंगारा बनगया था जग
तपन तपन सी थी
मिटाने आंच को एसे में
गीत बदरा बन बनके
बूंद पानी हो गए !

लेखक पराशर गौर
अल राईट @ परशाए गौर
 

Mahi Mehta

  • Guest
Parashar Gaur
कलम की ताकत

इतिहास के पन्ने बोलेंगे
आज नही तो कल ------
राज वो तेरा खोलेंगे !

तेरे एटम के आगे यूँ तो
कुछ भी नहीं है मेरी कलम
वार तो दोनों करेंगे मित्र
किसी की चोट होगी ज्यादा
तो किसी होगी कम
ये तो वकत बतलायेगा -----
जब हम तुम ना रहेंगे !

बच्चो का रोना माँ का दर्द
नही तुझे देखाई देता
तेरी ज्यादती के आगे
है आज इश्वर भी रोता
तू भी रोयेगा एक दिन
दिन जब वो आयेंगे !

तेरे चोट के घाव तो
भर ही जायेंगे मेरे रहते रहते तक
मेरी कलम कि मार
वो तो रहेगी सदियों सदियों तक
मै जो लिखूंगा लिख जाउंगा
उसकी मार मेरे यार
तेरी एटम से भी ज्यादा होंगे !

ना रही नादर कि नादरशाही
ना ही रोमन वाली, रोम की
है जिस जखीरे पर खड़ा तू
वही बनेगा एक रोज तेरी तबाही
दूर से देखेंगे लोग तमाशा तेरा
तब तुझ पर रोनेवाला कोइ न होंगे !

हम रहे या न रहे पर
लिखा हमारा रहेगा
आएना होगा वो कल का
जिसमे घटनाओं के जिक्र होगा
प्रयाश हमारे ये ----
कल की धरोहर होंगे !
लेखक पराशर गौर
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