Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54863 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
कोइ बात नहीं/

जब तुम घुटनो के बल चलते थे
मै , तुम्हारे आगे आकर हाथो से
तुम्हे , इशारों से आगे बढ़ने की हिम्म्त बड़ाता
तुम मेरे ओर देखकर आगे बढ़ते रहे
और आज जब मैंने तुम्हे कहा
बेटा , ज़रा मेरे हाथ को पकड़ कर उठाना तो
तुमने सुनकर अनसुना कर दिया
कोइ बात नहीं…

जब तुम बीमार होते तो,
मै रात रात भर तुम्हारे सिरहाने बैठकर
तुम्हारे स्वस्थ होने के कामना करता
और आज जब मैंने तुमसे कहा
ज़रा मेरे दवाई पकड़ाना तो तुम
बिना देखे बाहर दोस्तों के साथ निकल पड़े
कोइ बात नहीं ……

जब तक तेरी अम्मा थी
सब कुछ सामान्य सा था
तू भी , तेरे सारे अपराध भी
लेकिन , अब वो बाते , कोई बात नहीं
उनका अर्थ बदल गया है तेरे लिए /मेरे लिए
तू भी बूढ़ा होने लगा है मेंरे साथ
अब देखता हूँ जब तेरे अपने तुझ से
कोई बात नहीं, हमरी बात सुन पर
तुझ से उलझेंगे , मार पीट पर उतारू होंगे
तब समझेगा तू
मेरे होने का बजूद !
@ कापी राईट - पराशर गौर १९ फरबरी २०१४ समये स्यान के 6. 52

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur

एक अधूरी कबिता। ( बाकी पुरे बंद बाद में पूरा करूंगा )

लौट आओ प्रिये तुम
मन का समंदर प्यासा है
जीबन में है सब कुछ लेकिन
,मन अतृप्त ,ब्याकुल है प्यासा है । लौट …

पर्बतों के ओट से , झांक ता चाँद जब जब
पुछियेना कितने याद आते है आप तब तब
वो रात का ताम और मौन भी प्रिये
वो कचोटतते पल देते , जुदाई के अहसास है !

पराशरशर गौर २७ फरबरी १४ @ ८ ३६ श्याम

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
 
दिलमे शूल सी चुभो गया कोई
रूठ कर हमसे जब गया कोई
प्रीत में दर्द एक नया ...
नया दे गया मीत हम जब कोई !

रात भर जाग कर , जागते रहे
यादो के उलझनों में उनकी उलझे रहे
निगोड़ी चांदनी भी रात भर
दिल को जलती रही और हम जलते रहे !
हो गए अकेले थे जब
जब हमसे हमरा दिल ले गया कोई !

पीड़ रात की
किसी से कह सके न हम
सीके ओंठ अपने
उस दर्द को पी गए थे हम
आसमा की ओर
टक टकी लगा के देखते रहे
सूनेपन में को ओढ़े मौन को
नियती उसको अपनी मानते रहे
हादसा हुआ छल गया . छल गया
प्रेम को , प्रेम में जब कोई !

रात आके हम से कह गई
इस दर्द का इलाज है ना कोई
खाली पन का दौर कह गया
दौर एसे जाने कितने है अभी
शुने पन ने दिल को छु लिया
दिलने उसको अपना कह के सह लिया
शब्द हो गये है गूंगे .. गूंगे
दिल ने, दिल से चोट खाई जब कोई !

रचियता पराशर गौर १५ मार्च २००५
Like · · September 14, 2012 at 10:22am

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
 
ek tajee kavita dekhee ......

कोइ बात नहीं/

जब तुम घुटनो के बल चलते थे
मै , तुम्हारे आगे आकर हाथो से
तुम्हे , इशारों से आगे बढ़ने की हिम्म्त बड़ाता
तुम मेरे ओर देखकर आगे बढ़ते रहे
और आज जब मैंने तुम्हे कहा
बेटा , ज़रा मेरे हाथ को पकड़ कर उठाना तो
तुमने सुनकर अनसुना कर दिया
कोइ बात नहीं…

जब तुम बीमार होते तो,
मै रात रात भर तुम्हारे सिरहाने बैठकर
तुम्हारे स्वस्थ होने के कामना करता
और आज जब मैंने तुमसे कहा
ज़रा मेरे दवाई पकड़ाना तो तुम
बिना देखे बाहर दोस्तों के साथ निकल पड़े
कोइ बात नहीं ……

जब तक तेरी अम्मा थी
सब कुछ सामान्य सा था
तू भी , तेरे सारे अपराध भी
लेकिन , अब वो बाते , कोई बात नहीं
उनका अर्थ बदल गया है तेरे लिए /मेरे लिए
तू भी बूढ़ा होने लगा है मेंरे साथ
अब देखता हूँ जब तेरे अपने तुझ से
कोई बात नहीं, हमरी बात सुन पर
तुझ से उलझेंगे , मार पीट पर उतारू होंगे
तब समझेगा तू
मेरे होने का बजूद !

@ कापी राईट - पराशर गौर १९ फरबरी २०१४ समये स्यान के 6. 52

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
17 minutes ago

जुगाड़

मिन पंडितजीम हाथ दिखाई
दिखदे वो बोली……
हे पाप्पा , यु हथच कि
२०१४ को चुनाउ ,
जैमा
कुछ भी सपस्ट नीच
क्वी इन्नै जाणुच त , क्वी उनै !

जजमान तेरी हथूकी रेखा भी
एन डी ए अर यू पी ए की तरह
क्वी यख त , क्वी वख छन जाणी
पर………
बीचमा थर्ड फ्रंट की "रेखा " भी एगे !

मिन पडित जी से बोली …
फुन्डु फुक्का वी एन डी अर यु पी अ थै
आपन " रेखा" के बात कारी त
मेरी हथगुल्युं की रेखा अर वी रेखा कु
मेल हवे सकद किना ना
सरकार क्वी भी बनाओ , भाड़ माँ जाऊ
पर मेरी किस्मत खुल जैली कि ना !
@ पराशर गौर मार्च १७, २०१४ रात के 11. २७ पर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
 
SUBH PRBHAT DOSTO SATH ME HOLI MUBARAK KO SAB KO ....

सब मित्रो को होली है मुबारक … इस मौके पर एक हांस्य व्यंग के कविता देखे

"होली और मै "

मलते ही गुलाल, हुआ मलाल
रंग था चेहरा , मल दिए गाल
मलना था किस पे ,
मल दिया किस को
हंगामा हो गया पकड़ो इसको !

बीच चौराहे पर पकड़ा गया
ठोकम ठुकाई होते होते ठुक गया
मित्रो ,
जैसे ही उन से छूटा पत्नी ने आकर कुटा !

कुटते हुए बोली ..........
कौन थी वो ?
जिसपे मलने गुलाल तुम
मोहला छोड़ , गली छोड़
याहा तक आये हो !
मै बोला ……
कसम खला लो , चाहे मुर्गा बना लो
मै उसे जानत तक नहीं ,
पहिचान ता तक नही
सच कहूँ तो ---- वो ,
ऊपर से नीचे तक , रंगो में रंगी थी
चेहरे पे कालिक मली थी
बाल नीले-पीले हो रखे थे
चेहरा दिखाए नही दे रहा था
मैंने समझा झा तू ही थी !

बस आउ देखा ना ताऊ
होली है कह कर उससे चिपक गया
दोनों हाथो से उसपर गुलाल मल दिया
लगाते ही गुलाल , अहसास हुआ
ये कौन है ? ये क्या हो गया
जो होना था सो हो गया
माँ कसम ……
उस पे रंग चढ़ आया था
मेरा रंग उत्तर गया !

अब क्या क्या ब्यान करूँ '
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो कुछ हुआ वो,
तुम से छुपा नहीं
होली के रंग ने वो रंग दिखाए
भया मुझ को दिन भी तारे दिखाए दिए
@ पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
March 15
FB ke sab mitto ko HOLI MUBARK HO .

SHRAB PENE WALO PR HOLI PR EK KAVIT

होरी ( होली )

वेल पकड़ी वा
मारी अंग्वाल बोली होरी च होरी
छक्वे लपोड़ी रंगौ ल
रंगद रंगद फिर बोली
बुरु नि मानी हे छोरी

अछा …
बीन भी कैकि सांसु
वे पर लपोड़ी ,
लपोड़ी खूब कालू म्वासु
है........
जान न पछ्याण
अर घप्प अंग्वाल कख न आयुं
कै गोंकू छै रै , तू ,इन उत् रा यु

होरी च है होरी , है.…
दीदी भूली नि दिखणै
कनि मति हूँच्या तेरी, नर्भगी बिगडयू
ले कि हथमा डंडा दॊडी वा
इनै आदि मादा फुडुदु छो तेरु ख्वपुरु !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
March 14
subhprbhat sab mittro ko from 7 samnder paar se....

बेटी

इस दुनिया में बेटा हो या बेटी
फर्क नही ही कुछ पड़ने वाला
सोचो जरा गर बेटी नहीं होगी तो
बंस तुम्हारा नही, आगे चलने वाला
अरे बेटा चलाये बंस एक, बेटी चलाये दो दो
बिन बेटी के जग है सूना सूना ये कह दो
ऋ ण् न दे पायेगी हम उसका
है कितने रुप उसके, माँ बेटी बहना !

दिनक्क १४ मार्च २०१४ सभ ६ ४७ पर
@ पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
March 14
Ajjeb se isthitee per ek kavita dekhe..

अभी अभी

मिन अपणी ४ साल के नातिण थै पूछी
बिठा , तिन कैका दगड ब्यो कन , बोल
व बोली , दादाजी आप जै का दगड कारा कारा
पर मेरु पति वो हो , जु हो , मेरु रिमोट कंट्रोल !

मार्च १३ ,२०१४ शयम ८/२० पर @ पराशर गौर

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parashar Gaur
March 14
ek kavita dekhe......

"उलझने "
तुमने बात जो कही वो
दिल को छू गई
सुनके उसको दिल भी रो गया
है आँख रो गई !

भुलाये भूलकर उन्हें
यूँ भी चैन था नही
रह जाता दिल तडफके
जबभी बात आती उनकी कहीं
चेहरा मेरा, दर्द उनका
दुनिया बात ये समझ गई !

देके दर्द तुम तो
छुप गए कहीं। …
सौगाते बनगई है
वो यादे अब सब सभी
याद मेरी, चेहरा उनका
सोचकर उलझने बद गई !

क्या कहूं मै दर्दे-दिलका
पीके सारे दर्द मौन हूँ
ढलेगी श्याम पर्बतों में जब
बढ़ेगा दर्द और , जानता भी हूँ
दर्द मेरा, आह उनकी
मिलके एक और दर्द हो गई !
@ पराशर गौर

 

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