Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 54843 times)

Parashar Gaur

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  काश पर्दा नि खुल्दु
     हमारा इलाक माँ एक  गह्ढ़वाली नाटक मंडलील कई  नाटक करिनि ! कुछ त धार्मिक छाया त कुछ सामाजिक  !  रावत जी वेका डारेक्टर छाया जोंका निर्देशन माँ कई नाटक खेले गिनी !  लुखमा उको बडो मान सन्मान छो ! वो  बडा तह दिल से आर बडी लग्न का साथ काम करदा रिंदा छा ! पिछला साल बीटी उमा,  अर , सह निर्देशक खुग्साल जी माँ थोड तना तनी छनी छै !  ये समय उन गोड़ जी कु नाटक काना की सोची  कारण यु नाटक लीग से हटीक छो .. याने ,  यु नाटक करण वाला अर खिन वल्लो पर एक कटाक्ष .. कटाक्ष बोले तो .. जबर्दस्त ..  रिहर्शल  हुन से पैली अर नाटक हुन हुन तक !  यु  द्वीयुक बीच कन खिरतु जुड्यु छो  , इनुकी जन बुलद  द्वी बागियु क बीच खिर्तु  जुडुद खिर्तु ... 

     जनी नाटक शुरू क्या होई  उनी  युमा भी  ..झगडा .. बड़ी मुश्किल से पैलू शीन होई  .. बाद माँ रावत जी स्तागेम आनी अर अपनी मज़बूरी बताई की नाटक थोडा बिलम्ब से शरू करला !
पर्दा पैथर स्टेज माँ  घ्प्रोल चनु छो ..

      रावत जी खुगासाल की तरफ इशारा कैकी छा बुना ..."  मी सब ज्ञण्दु  कुछ लोग मेरा खिलाफ साजिश छ्न रचणा "
     खुगासाल जी छा बुना .. जू आदिम हमपर लाछन लागाणु च वो , पैली अपणा गरेबान माँ छाकी देखा की कोच  साजिस कनु ... हे भै ,  जुमा जुमा चार नाटक क्या खेलिनी की भयम नि नजर ..  रावत जी गुस्स्म बोलिनी  ..." न .. न्न्न्न  , त तू क्या करली "
 - मी..  .. मी... क्या करुलू ...    तभी कैल बीच बचाऊ  कने कोशिश काई !  वो बोली .. '  अजी खुगासाल आप चुप हवे जाओ  दी .... तभी रावत  बोलिनी......
" हां ..    हां क्या करली बता ?
"   खुगासाल बोल   '-------एक  नई  संस्था खडी  करुलू होरी क्या "       तुमरी ई संस्था का अग्वादी न्यू  सब्द जोड़ी की  .. "न्यू ड्रामा मड्ळी "     जेमा सब कुछ न्यु होलू  जानकी डारेक्टर ,   ....   तभी पर्दा  खुली ! लुखुल द्वी थाई देखि जू एक हैका क कालर पकडी छा झंझोड़ना !
 
पराशर गौड़
सितम्बर १०, २००९  स्याम ५.०५




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Parashar Gaur

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बगत बगतै बात  !
 
     एक गौम एक लाटु  रेंदु छो ! वाखा नाना तिना , बडा बूढा,   जनना  सब ,  जैल भी बुलाई लाटु कैकी ही बुलाई ! अर वो बिना हां बोली,   उकी एक आवाज पर हैन्सी  मुंड खुजलैकी  देख रैन्द रा ! समान का नो पर केवल त्रिस्कार का सिवा वेल कुछ देखू ही नी !  जैल भी ,जब भी चाह लाटु बोली दुत्कारु ही च !  सम्मान क्या हुन्द  वी थै भीतरी भितार सन पत् छो !  इजत क्या हुन्द वी थै मालुम छो !
   एक दिन गौ का मर्द नमान सब खेतो माँ चली गिनी अर  जनना घासों !  उ  दिनों ,  पटवारी अर कानन गु को ,   गौ माँ आणू ,  अपणा आप माँ एक भारी बात माने जादी छै  ! अर उंसे बात कानी त भारी बात !  वे दिन गौं माँ कुवी नि छो!   गुरबाटा (  चोंराहे )  माँ वे लाटु कु जाणु ... अर समणी बीटी घ्सेरू कु आणू  अर गौ का लुखो भी दिनों खाणु टाइम पर घोर आणू .....    क्या दिख्दी ,   की ,  पट्टी कु पटवारी वे लाटु से कुछ चा पुचणु ... जनि जननानो अर मर्द्लू पटवारी अर लाटा थै बात करद क्या देखी ,   सब एक त डै रै  मारी ,   सबी जख्या तखी छा खडा हुया छा झणी , क्या बात च धो आज पटवारीजी अचाण्चकी अर गौमा        खैर,   पटवारीजी कुछ देरका बाद चलिग्या  !  अब सबी जानना मर्द  वे लाटा का अग्वादी पिछाडी लगया रिट्णा ....
   एक बोली    " ------  रै लटा .. बातो त साईं ,,   पटवारी जी क्या छा त्वै पुछ्णा .?."
     "  वो चुप्प ...    "
  एक जननं  पूछी ..   "   लाटा  बातो त सै, क्या छा पटवारी जी  पुछ्णा  ? "
      "वो फिर भी चुप्प ...!"
कत्कै लूखल जणै की  कोशिश कारी ,  पर ,   मजाल जू ,  लाटु कुछ बुनू तयार ......!!!!!

जब पधान जी न पूछी  " अरे , लाटा क्या छा पुछ्णा ? "

वो बोली    "-------- जै गिचाल पटवारी दगड बात कारी , वी गिच्ल तुम दगड क्या बात कन ."   . बोली  सीधा  सारी जनि चली गे  !
पराशर गौड़
दिनाक १३ सितम्बर  २००९,रात ०.४५ पर 

Parashar Gaur

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१०८ ,   एक सो आट  की गिनती  ( गिनीज बुक की दौड़ में )
 
      जब मी छुटु छो माल स्कूल माँ भेजियु  त,  मास्टर जील मार मारी ..  बाराखडी पढाई अर तोते तरह मुख्जुबानी गिनती याद करैनी !  जब जब १०५ पर पचुदु छो  त ,   झणी किले वेका बाद बरहमंड काम नि करदू छो  !    १०८ तक जांद - जांद ग़लती होई जांदी छै फिर,   शुरू से याने  १ एक  से  ..  वापस ... ///

        ब्यो होई !   साल दुई - तीन तक बाल बच्चा नि होई ,  त,  ब्योईल फिर पंडितो का चक्कर कट्णा शुरू कारा  जोगी जुगता ,  झणी कै कैक पास नि गे !   
 
पंडित भीस्म कुकरेती जी का पास जन माँ गे अर,  अपणी खैरी लगाई  उन बोली .. " मिन त , औतु का भी बंश चालु कैदे   इत,   कुछ भी नि..  बस  एक काम करा ये मन्त्र थै दुई झआणा  १०८ बारी जप करा बस ... फिर दिखया ?   उ बोलिनी .. इबरी , उ कख छीनी......

 '____  बोई बोली .. उत्तराखंड माँ  ?"

 '__   उत्तराखंड ////////////////////     वा ....,    ई त ,  औरी भी अछी बात च !    उ खुणी बुलया, की, १०८ बारी  ये मन्त्र थै जप्या !  नौ चम्मी नारैण अर कमल की कृपा से काम बैणु समझा ..  ये मन्त्र का साथ साथ आजकाल मिन सुणी की , हमारा मुख्या मंत्री जील बाल बच्चा याने जचा -बच्चा पैदा हुणा का  वास्ता वाख १०८ चलदी फिरदी गाडी छन लगाई!   जेमा बच्चा पैद्दा करे सक्द  !    ये चकारमा माँ वो , गिनीज बुक माँ अपणु नौ छन दर्ज करनका चक्करमा ..         " हे ---वी भूली ,    क्या पता .. त्यारु नाती या नतिणी भी , ये चकारमा गिनीज बुक रिकार्ड माँ आइजो  .. कोशिश कैर  ..  "   अगर  इन होईजो  त ,   मेरी नौ क्या पत्ता गिनीज बुक माँ ऐजोलू  अर  त्यारु भी  ?   
 
कतक बगत बोली ... 
 
 १०८  .. १०८   ............ .

हो /////
 
पराशर गौर
१९ सितम्बर  ०९  रात ९.१५ pr




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Sir,

Excellent... Really interesting article....

१०८ ,   एक सो आट  की गिनती  ( गिनीज बुक की दौड़ में )
 
      जब मी छुटु छो माल स्कूल माँ भेजियु  त,  मास्टर जील मार मारी ..  बाराखडी पढाई अर तोते तरह मुख्जुबानी गिनती याद करैनी !  जब जब १०५ पर पचुदु छो  त ,   झणी किले वेका बाद बरहमंड काम नि करदू छो  !    १०८ तक जांद - जांद ग़लती होई जांदी छै फिर,   शुरू से याने  १ एक  से  ..  वापस ... ///

        ब्यो होई !   साल दुई - तीन तक बाल बच्चा नि होई ,  त,  ब्योईल फिर पंडितो का चक्कर कट्णा शुरू कारा  जोगी जुगता ,  झणी कै कैक पास नि गे !   
 
पंडित भीस्म कुकरेती जी का पास जन माँ गे अर,  अपणी खैरी लगाई  उन बोली .. " मिन त , औतु का भी बंश चालु कैदे   इत,   कुछ भी नि..  बस  एक काम करा ये मन्त्र थै दुई झआणा  १०८ बारी जप करा बस ... फिर दिखया ?   उ बोलिनी .. इबरी , उ कख छीनी......

 '____  बोई बोली .. उत्तराखंड माँ  ?"

 '__   उत्तराखंड ////////////////////     वा ....,    ई त ,  औरी भी अछी बात च !    उ खुणी बुलया, की, १०८ बारी  ये मन्त्र थै जप्या !  नौ चम्मी नारैण अर कमल की कृपा से काम बैणु समझा ..  ये मन्त्र का साथ साथ आजकाल मिन सुणी की , हमारा मुख्या मंत्री जील बाल बच्चा याने जचा -बच्चा पैदा हुणा का  वास्ता वाख १०८ चलदी फिरदी गाडी छन लगाई!   जेमा बच्चा पैद्दा करे सक्द  !    ये चकारमा माँ वो , गिनीज बुक माँ अपणु नौ छन दर्ज करनका चक्करमा ..         " हे ---वी भूली ,    क्या पता .. त्यारु नाती या नतिणी भी , ये चकारमा गिनीज बुक रिकार्ड माँ आइजो  .. कोशिश कैर  ..  "   अगर  इन होईजो  त ,   मेरी नौ क्या पत्ता गिनीज बुक माँ ऐजोलू  अर  त्यारु भी  ?   
 
कतक बगत बोली ... 
 
 १०८  .. १०८   ............ .

हो /////
 
पराशर गौर
१९ सितम्बर  ०९  रात ९.१५ pr






Parashar Gaur

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इन हुन्द विकास ...
 
           ग्यालू कु नौनु  इंजीनियर बणी गौ माँ सबी लोग गयलू थै बधाई दीदा दिंदा थक नी न !  एक बुजर्ग न बोली  ' -----  नाती ,  देश का  दगडा - दगडी  ,  गौ , अर सबसे पैली अपणो बिकाश जरुरी च रै लाटा ..."
 नातिल दादा की बात गेड्म बाधी दे !  नैकरी भी मिली पी डब्लू डी माँ ! जख एक का चार , कभी कभी ६ ८
 मशालू  मिलै की बिल्डिग खडी ...  अर वेंम ऐंची कमाई पुछ ना .....
                पैली दिन वैथै कई की जगह भीजै गे..  फाईल देखी त,  वेसे पैलिऊ इंजीनियरल एक कुवा की खुधाई की लम्बी चौडी फाइल वो भी,  लाखो रुपया  कु खर्च चो दिखयु ..  हैका इंजिनीयर की फाइल देखी त,  विल भी वे ही कुंआ पर अग्वाडी मरमत का बाना लाखो रुपया खर्चा छो दिखयु  वेल सोची .. जरा देखी की औ की कख च अर मरमत कख तक पहुँची ..  ?
        वो गे , त वख कुई कुवा नी छो , अर,  फ़ैल ये लम्बी चौडी अर रुपया...,   लाखो माँ !  कुछ देर सुचुणु राई  की ,  क्या कैरू ?   फाईल बांध कैरू ..की,   काम चालु रखु  ?   दादा की बात याद आई  " देश अर गौ  का दगड सबसे पैली अपणु विकाश कैरी " वेल एक हैंकी फाईल खोली ... अर लिखी .......
 "  गौ का हित अर विकाश थै नजरू माँ रखी  मिन वो कुआ .. मटी से भर दे ... जैमा २-३ लाख रुपया कु खर्चा आई !  ये काम से गौ वाला भी खुश मी भी अर सरकार भी ..."   फाईल बन्ध !  पैसा किसा हुद ! कागजो माँ विकाश ही विकाश !

पराशर गौर
दिनाक २० सितम्बर ०९ समय सुबर ११.१४ पर

Parashar Gaur

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  Tribute to Dandriyaljee


     स्वर्गीय डंडरियाल जी के बारे में कहाँ से शुरू करूं ! उनके साथ बिताये गए समये  को अगर मै बाँधने का प्रयास करू तो एक महा काब्य हो सकता है लिहाजा मै  उनके क्रतित्वा व ब्यक्तितवा पर ही लिखूंगा जो वो थे ! बात  सन ७० की दसक की है तब मेरी उम्र २७ २८ साल की रही होगी  ! मै  देहली  में   गढ़वाली  नाटको के प्रचार और प्रसार में लगा हुआ था की तभी किसी महापुरष ने मेरा इनसे परिचय करवा  दिया !  मै अभी तक उनका नाम याद करते २ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ की वो कौन थे ? लेकिन..जो भी थे मेरे लिए किसी गुरु से कम नहीं थे  जिन्होंने  ने मुझको मेरे साहितिक गोबिंद से मिलवा दिया !
       द्वापर का सुदाम और आज के इस सदी के इस सौम्य , निशचल , साधारण माणूस में   यूँ  कोई भेद नहीं  था !   सुदाम तन मन  धन  और शारीर से गरीब था लेकिन डंडरियाल जी में बाकी सब बही सब चीजे दिखाई देती थी अंतर केवल ये था की सुदामा के पास सहित्य की कमी भी थी जो डंडरियाल जी में नहीं थी !  सरस्वती का उनके ऊपर वरदहस्त था !  वे सब्दो के सुनार थे और आखरों के दर्जी !  भले वे दिखने में कुछ भी लगते थे परन्तु उनका व्यक्तित्वा इतना उंचा था की अगर लांग ( बांस की ऊँचे पोर जो कभी कभी ५० ६० फीट से भी बडी होती है )  लगाकर चड़कर भी उन्हें छूने का प्रयास करो तो ..ओ भी कम पड जाए !   
        उन दिनों देहली में गढ़वाली में ना तो इतनी  कबिताये या कवि गोष्ठीया हुआ करती थी और नहीं कबि समेलन  जिनका आनंद आम आदमी ले सके !  इसके पीछे भी तब की कारण थे जैसे  १. जनता की अपनी बोली भाषा के प्रती उदासीनता  २. पर्याप्त धना का न होना  ३. हीन भावनो से ग्र्हसित होना  ४  लेखको की कमी का होना आदि आदि !  उन दौरान  ले देकर ये चार पाच ही कवी थे जो गढ़वाली में लिखते थे उनमे से जीवानंद खुग्साल ,कन्हिया लाल डंडरियाल, गणेश शात्री  आदी ! बादमे  गिरधर कंकाल , अबोध बंधू बहुगुणा ,प्रेमलाल भट्ट  आये ! जहा तक कबिता का सवाल है  कविता ,  अभी भी  कमरों तक सीमित थी !
       
          गढ़वाल भवन बन रहा था जो हाल अब कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल होता है की बात कर रहा हूँ   जब   उस पर प्लास्टर भी नहीं चड़ा था मै तब  ! उस में तब चंदर सिंह गदवाली जी अपने बीमार पत्नी व बचौ के साथ वहा पर रहा रहे थे ! पता नहीं किसने वहा पर एक कबि  समेलन का आयोजन करवा था ! मुझ को भी पहली बार किसी गढ़वाली कवी समेलन में कबिता पाट करने का मौका मिला !  इस अबसर पर तीन बाते मेरे जीवन पे घटी...   या,   देखने को मिली !  जिसको मै आज तक नहीं भुला सका और नहीं भुला पाउगा !  १. प्रथम बार मुझको चंदर सिंह गढ़वाली जी  जैसे महान हस्ती के दर्शन हुए और उनसे मिलने का मौका मिला  !  २. प्रथम बार मुझे गढ़वाली में मंच से कविता पाठ करने का अवसर मिला ! ३. कन्हया लाल डंडरियाल जी को सुनने का और उनसे परिचय का अवसर प्राप्त हुआ !   बातो के आदान प्रदान के बात उन्होंने मुझे मिलने का वादा किया !
       एक सप्ताह के बाद ओ मेरे आइफ्स आये  बैठे .. इधर उधर की चर्चा के बाद गढ़वाली साहित्य पर आये !  उन्होंने कहा था की आप नाटक करते है ये बहुत बडा काम है अपनी माँ बोली के उथान का ! मेरी तारीफ़ के पुल बाधते वो  थक  नहीं रहे थे !  मै एक बिद्यार्थी की तरह उनके  वो सब बाते ध्यान से सुनता रहा  !  बातो बातो में उन्होंने कबिता की बात छेडी... बोले...."  आप के पास सब्दो की पकडने  की कला है ! आप ,  हास्य और व्यंग पर अच्हा  लिख सकते है   "  मैंने एक आज्ञाकरी बिधार्थी की तरह सर हिला कर अपनी स्वीक्रती दी !
      कुछ दिनों के बाद तिमारपुर में रात की कवि गोष्टी का आयोजन किया गया था  मुझे भी निमत्रण मिला ! जब पहुंचा तो वहा पर कुछ नए लोगो से भी परिचय ! रात भर कविता होती रही ..! वो मेरे लिए पहला अनुभव था ! कबिता क्या होती है कबिता किसे कहते है और उसे कैसे लिखी जानी चाहिए ! ये सारे गुण मैंने उन से सीखे ! वो मेरे साहितिक गुरु थे ! 
      कमरों में होने वाली गोष्ठिया का  दौर था  ! डंड्रीयाल जी को कमरों की कबिता करने में महारथ था ! मै यह नही कह रहा हूँ कि वे मंच की पकड को नहीं जानते थे ! उनका अंदाज कुछ  अलग से होता था जब गोष्ठिया होती थी  !  जाने क्यों मुझे लगता था की वो जो कुछ कहना चा रहे है वो सीधे हम तक पहुँच जाती थी !  बैठको के मध्यम से उनसे  घनिष्ठता बड़ती गई ! गोष्ठीयो में नए नए लोगो से और उनकी नई नई कविता सुनने का अवसर मिला !  कबिता का बोध होता रहा ! यू तो उनकी हर कविता एक मील का पथर है ! लेकिन मुझे जो सबसे प्रिया है वो है गड्वाक को भाल , कीडू की बोई , सत्यनारायण की कथा  और एक बहुत ही अन्तरंग कबिता जो आम आदमी के लिए नहीं है वो है "सिन्दुकुदी " !
     मन्याबर डंडरियाल जी बहुत ही सीधे सधे और सचे इंसान थे ! उनकी सादगी का जबाब नहीं था ! वे पैरो पर जूते नहीं पहिनते थे !  जब मैंने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने बिना किसी परकार की भूमिका बाधे हुए कहा ...  ,  जूते के कारण मेरा परिहास हुआ था ! जिस दिन ये घटना घटी  थी बस उस  दुसरे दिन के बाद से ही मैंने निश्चय कर लिया था की मै आज के बाद जूता नही पहनुगा ! किस्सा जो उन्होंने सुनाया था  वो इस प्रकार था ----------------------------------------
     " शादी के बाद जब वो  "दुआर बाट"  ( दूसरी दफा)  अपने ससुराल गए वापस आते समय उनको छोड़ने उनकी
सालिया भी कुछ दूर तक आई  इस दौरान उन्होंने रबडशूल पहिन रखा था ! रास्ते में अचानक उनका जूता  फिसला और वो भी फिसले  !  इस क्रम को देखते हुए उनकी सालिया जोर जोर से हसने लगी ! हस्ते हुए एक साली ने एक व्यंग भी मार दिया जो उन्हें चुब गा था      " ये जीजा थे जुतु पैरी  हिट्णु भी नि आदु  "      वो दिन था और अंतिम  समय तक वे नागे पौ ही रहे !
   मेरा और उनका परिचय २०-२५ साल से उप्पर रहा होगा जयदा भी हो सकता था लेकिन मै उनसे २६ साल  तक दूर चला गया था वरना ४० के आस पास का परिचय हुआ होता !  जहा तक मैंने उन्हें देखा  वो सुरवाती दौर से लेकर अंतिम समय तक वो  जिन्दगी की उस क्रूर नियती से लड़ते रहे !    बिरला मिल में थे ! एकाएक नौकरी चली गई !  नौकरी  भी एसे समय गई जब उसकी उनहें बहुत जरूरत थी 1 बचे अभी छोटे थे !  समस्या ये आन पडी की घर चले  तो कैसे ?  स्वाभिमान उन में कूट कूट कर भरा हुआ था ! किसी से मदद  या हाथ फैलाने से वो भूखे रहना पसंद करते थे !  इस समस्या का निदान उन्होंने अपने मित्रो के घर जा जा कर चाय बेचने का काम सुरु कर दिया !  घर का खर्चा चलाना कठीन था ! बचे बड़े बड़े होते जा रहे  है !  इन  प्रस्थितियो भी वे लिखते रहे और गडवाली साहित्य की मास्टर पीस किताब " अन्ज्वाल" को छापा !
     उन दिनों देहली में गड-भारती  नामक एक संथा भी बन गई थी जिसमे .. डन्ड्रीयल जी,   बडोला जी, मित्रा जी
 नेतारसिंह असवाल, विनोद उनियाल और मै  उसके सदस्य थे ..  इस संथा ने एक काम ये भी किया की गोसठीया
जो अभी तक बंध कमरों में हुया करती थी वो अब हालो में आने लगी !  इसमें मेरा भी  योग दान था वो इसलिए की कन्स्टीटुयुशन कल्ब में   गडवली कविता के लिए द्वार खुले हुए थे जहा मै काम करता था !  लोग जुड़े !  नए कबियो को मौका मिला !
     सन १९८३- ८४ मै मैं एक काम और किया की,  अपने  स्वर्गीय पिता श्री पंडित टीकाराम गौड़   के नाम पर गड्वाली में,   गडवली साहित्य में सबसे पहिला पुरुष्कार का श्री गणेस कर के डन्ड्रीयल जी को  उनकी  इस अमर क्रती पर तत्कालीन देहली के शिक्षा मंत्री कुलानद भारतीय जी के हाथो से वो पुरूस्कार दिया गया  !   इसके बाद हमारे सम्बन्ध और भी गहरे होते चले गए ! उनका घर पर आना जाना था !  मेरी पत्नी के वे रिश्ते में चाचा थे ! 
     उनके  कबि खुकसाल ' बोल्या ''  जी  से गहरी मित्रता थी !  वे चाहते थे की ये मित्रता रिस्ते  में बदल दी जाए  लेकिन , उनकी एक चिंता थी की शादी कैसे होगी ! मैंने उन्हें  कहा  आप रिस्ता तैये करे बाकी मुझ पर छोड़ दे !  उन्होंने खुक्साल जी से अपनी लड़की बात पकी कर दी ! दिन भी तैय किया गया !  मैं अपनी और से जो कुछ बन पडा था मैंने किया ! कल्ब में बरात का स्वागत /भोजन  की ब्यवस्था की / बारतियों को ठहररने की बय्वास्था बी पी हॉउस में की ! याने सब कुछ बहुत अच्ये तरीके से वो शादी  हुई !  शादी   के बाद दोनों जब मेरे पास आये और मुझे से कहने लगे की हम कैसे आपका ये ऋण चुकायेगे  शादी  मेरा जबाब था   " इस बेटी को मुझे दे दो !"    दोनों मेरे इस उत्टर से संतुस्ट हुए !  गुरुदेब के लिए दो काम करना मेरे लिए सैभाग्य की बात थी !
    सन ८४ में , मेरे ऊपर दोस्त की कृपा से भयंकर आपदा आई .. मुझे अपनी नौकरी भी गवानी पडी !  देहली में रहकर २ साल मैंने कैसे काटे ये तो मै जानता हूँ या गुरुदेब जानते  थे  .. वो मेरे बारे में बड़े चिंतित थे ! जगह २ गए लेकिन , होने को कोई नही डाल सकता .! उन्होंने  "कुयेडी  " में मेरे बारमे और जो,   दोस्तों ने मेरे साथ किया एक कबिता के रूप में ब्यान किया !

     मुझे उनसे दूर बहुत दूर जाने का समय आ गया था !  सन १९८८ में मै बिदेश चला  आया !  तब से और उनके जाने से एक साल पूरब  याने २००६ तक मै यही रहा ! सायद यही उस ईस्वर का लेखा था ! मै यहाँ संघर्स रत था  वे मेरे गैर हाजरी में मेरे घर जाते पत्नी व बचो को ठ्न्ठास बंधाते ! पत्नी मेरे से दूर का झटका बर्दास्त नहीं कर  पाई जिसके कारण वो डिप्रेसन में चली गई ! उनको बड़ी चिंता थी अक्सर  पत्र   में लिखते थे !  इस दौरान उनकी किडनी फेल हो गई .. वो जिन्दगी और मौत से  संघर्ष करने लगे !  मुझे इसकी तिनिक भी खबर ना थी ! एक रोज ललित केशवान  जी से फोन पर बात चल रही थी की उन्होंने कहा की डंडरियाल जी को किडनी की बीमारी सुरु होगी है  !  बड़ा आघात लगा !  संपर्क करने की पुरी कोशिश की उनके बगल में बुराडी में किसी सजान का फोन था .. बात की ,  उनसे तो हो नहीं  पाई ,  लेकिन,   उनकी श्रीमती जी से सारी बात का पता चला  !

        मै उन्ही कई साल से नहीं मिला था !   १८ १९ साल बाद सन २०० ६ मै भारत गया !  उनसे मिलनी को मन आतुर था  ! मै और मेरी श्रीमती पूछते पाछते बुराडी पहुंचे !  सयाम हो चली थी ! पहुँचते देखा ,   दंद्रीयल जी घर के आंगन में एक चारपाई में लटे है ! कमजोरी के कारण वो बहुत ही पतले हो गए थे !  उन्होंने पत्नी को पहिचान लिया लेकिन मुझे नही !  मेरी पत्त्नी उनसे कहा  " आप इनको नही पहिचान रहे हो '   तो , उन्होंने ना कहा !  ..  मेरी पत्नी ने कहा " ये गौड्जी है  " उन्हें एकीन ही नही आ रहा था की मै वहा पर हूँ  बार बार मुझे देख रहे थे ! जब मैंने उन्हें कहा की मै ही गौड़ हूँ तो,   उनके आँखों से आंसू की धरा बहने लगी और दोनों हात फैला कर वो मुझे अंग्वाल मार कर  कहने लगे    ..." मित्र बिंडी देर कैद्या आण पर ...    "  कहते कहते सिसकिया भरने लगे ! माहोल हमारे लिए बड़ा ही गम गीन हो गया था ! वो भी रो रहे थे तो मै भी !

     थोड़ी देर इधर उधर कई बात करने के बाद उन्होंने मुझे अज्वाल का दुसरा संस्करण जो हाल में ही छपा था अपने हाथो से दिया !  जब हम दोनों के अलग होने का समय आ गया तो वो बोले  "  अपनी/ बेटी की, अर बचौ की कुसल छेम बरा बार दीद राया  .... मेरी टी बस य्ख्मै तक समझा ... वो सब्द अभी मुझे याद है !  जब मै यहाँ चल आया तो पता चला की वो नही रहे ! सुनकर आघात लगा ! मै व्यक्तिगत हानि तो  सह  सकता था लेकिन पहाड़/पहाडी , गड्वाली -गढ़वाल की जो हानि हुई वो कैसी पूरी होगी यही सोचता रहा !



 

parashar gaud   

canada                     


Parashar Gaur

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कनह्या लाल डंडरियाल 


मैंने ----
तुम में समूचे पहाड़ को देखा है  !
तुम में ---
कालीदास / तुलसीदास
निराला और बाबा नागारुजन
कीछबी देखी है ! 

ओ ...
शब्दों के मठ
ओ ---
साहित्य के घट
तुम --
काब्य /कबिता व सब्दो का
संगम हो  !

तुम तो ---
 स्वयं में एक महा काब्य हो
जिसे पड़ पाना   
सब की बात नही  !

तुन्हें -----
और तुम्हारी  कलम को
बार -बार  नत-मस्तक  करने को
जी चाहता है !

तुम --
एक कबि ही नही
कबिता का यतार्थ  हो
जिसमे मै और मेरा पहाड़ जीता है !

तुम ---
आदर्श हो मेरे लिए
और मेरी आनेवाली पीढ़ी के लिए  !

तुम्हारा ....
आकार इतना बडा है की
हम सब आपके आगे
बोने लगते है !

यूं -- तो ,
तुम तक पहुचने के लिए
कई पीडिया चाहिए
लेकिन ...
तुम तो बिद्यमान हो
हर जगह /हर पल
हमारे बीच
अपनी लेखनी के माध्यम से !

ओ गढ़वाल के  भाल
पाहड के लाल
तुम्हे -तुम्हारी कलम को
मेरा सतत प्रणाम  !

पराशर गौड़
कनाडा .. जनवरी ४, २००१

Parashar Gaur

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 खिड़की का मरना

मेरे घर की , वो खिड़की
जिस से छनकर कभी
सूरज की किरणे अंदर आया करती थी
अब नही रही
वो मर गई है  !

वो आज तक
अकेले अकेले सब सहती रही
अपना दर्द , मकान का दर्द
जो --------
पल -पल , झर- झर कर
टूटता रहा / बिखरता रहा
बिना हमारी देख रेख के !

पुरखो का वो मकान
जिसमे मै,मेरे बाबा, मेरे दादा जी
पैदा हुए , पले ,बड़े हुए
जिसके आगन में हमने
खेलना  सीखा .........
जिसकी दरो दीवारों से सटकर
चलना सीखा ---
और ख़ास कर उस खिड़की  के
साथ मिलकर
हमने खेली  थी आँख मिचोलिया 
सूरज से ,समये से ,हवाओं से
वो अब नही रही
वो मर गई ....

उसकी मौत ये से ही नही हुई
उसे मार दिया मिलकर
मैं, मेरे घरवालो ने
उसको अक्केला छोड़ कर
उसे अन देखा कर !

पराशर गौड़
कनाडा .. न्यू मार्केट  ३ बजे सयाम   पराशर गौड़

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इछा !



स्वेत, दुग्ध, हिमान्छदित,

मेरुओ की शिखरॊ को जब

भास्कर की किरणे छूती है तो

उसके स्पर्श से पिघल उठती है

उसकी काया ----

बनकर बूंन्द !



वो नन्ही सी बूंद ...

जिसमे छिपा है बहुत बडा संकल्प

चल पड्ती है ,

शिखरॊ कॊ लाघती ..

संमदरॊ की ओर !



चाहे अन चाहिए

रुकावटॊ के बाद

सघर्सो की एक

लम्बी श्रृखलाऒ को पार कर

आकार लेने लगती है

एक नाद .....

वो भायंकर नाद , जो गुजांता है

घाटियॊ को .... !



अपनी प्रबल बेग के साथ

बडती जाती है बनकर धारा..

अपने लक्ष्य की ओर

बिना रुके, बिना थमे

मन्थर गती से ..

धरती को नापते हुऎ

दिन रात !



अपने सप्नॊ को सजाते हुऎ

सयम के साथ

अपनी अनबुझी प्यास को बुझाने

समन्दर मे बिलीन होने की

सुखद कल्पना को सजाते हुऎ

बनकर दुल्हन, अपने पिया से मिलने

वो बूंद ----------

समा  जाती  है तब , समन्द्र मे

अपने को धन्य समझकर !



पराशर गौड

२९ सितम्बर ०९ २ बजे दिन मे

न्यु मार्किट , कैनाडा


 


Parashar Gaur

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फ़र्क



मेरे आंगन के मुंडेर पर

अभी अभी ......

दो अंकुर फ़ूट कर उगै है

अंदाज लगाना मुशकिल है कि

ये किस के है !'



पर इतना जरूर है

बीज ने अपना रूप ले लिया है

आज नही तो कल ..

वो पेड होगा

छाया देगा, फ़ल देगा !



तेरी और मेरि तरह

वो, ना किसी का बुरा करेगा

ना, बुरा चहियेगा-------

जड और चेतन मे

यही तो फ़र्क है !



१२.०२ दिन मे २९ सित्मब्र ०९

न्यु मार्कीट कैनाडा



 

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