Author Topic: Articles By Parashar Gaur On Uttarakhand - पराशर गौर जी के उत्तराखंड पर लेख  (Read 55053 times)

Parashar Gaur

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मैंने चुनाऊ जीता !
 
     चुनाऊ चाहिए , राष्ट्रपती का हो , या,  किसी सरकारी राशन  की दूकान के चौकीदार का !  प्रजातंत्र देशो में चुनाऊ की पद्धती एक सी होती है !  आम आदमी याने मतदाता अपना वोट किसी भी उमीद्वार को देता है  और इस परिक्रिया में जिस मतदाता को सबसे ज्यादा बोट पड़े या मिले वो जीता ,  चाहिए ये बोट कैसे भी मिले हो ?   चोरी से,  हेरा फेरी से , डरा के,  धमका के,  लुभाके , पिस्टल की नोक से या राजनैतिक हिसाब से बूथ कोचारिंग कर के , कुलमिलाकर अधिक बोट चाहिए ....., खलास  ......   कहते है ना ,  जो जीता वही सिकंदर ! 
       गजब तो तब हुआ की जबकि मै वाहा गया भी नही ,  और नाही मैंने कोई प्रचार किया !   ना ही मुझे ज्ञांत
था की मेरे सामने  कौन खडा है और मै किसके ?  इन सब बातो के बाजूद मै जीत गया ! मेरे लिए ये संसार का ११व आजूब से कम नहीं था !  लोग कहते है ताज सबसे सुंदर है !  अरे भाई,   होगा !,  लेकिन,  मेरा ये चनाऊ,   मेरे लिए सबसे सुंदर है ,था , और होगा ,  क्यूंकि मै चनाऊ जीत गया था  !
         इस चुनाऊ में मेरी जीत के पीछे क्या पता ,  उस पार्टी या संस्था की मजबूरी रही हो ?  या एसा भी हो सकता हो की उस संस्था या पार्टी के पास उमीद्वारो की कमी रही हो ?   एसा भी हो सकता है !   ये मेरी सोच है !  सोच है तो सोच है   कि,  मेरे सामने वाली की छबी जनता में जरूरत से ज्यादा खराब हो,  या हो रही हो ?  कौन जाने ?    इसी बात को ध्यान में रखते हुए शायद बोटरो ने  फ्लोर क्रासिग कर मुझे अपना बोट दे दिया हो कि चलो , उससे  तो अछा है कि किसी नए/ अनजान को चुने !  जो कुछ भी  हुआ  होगा एक बात तो तय है कि मै जीत गया !
      खुशी तो तब हुई जब किसी ने मुझे कहा कि मै जीत गया ! जीत का अहसास आप क्या जाने ! जानना है तो हारने वाले से पूछो !   इसकी अनुभूती तो जीतने वाला ही समझ सकता है !  उसको वो सब्दो में बया नही कर सकता कि कैसे महसूस कर रहा है !  इसका आनद तो ठीक किसी खुजली वाले इन्स्सन से पूछो कि भया ,  खुजली  को,  खुल्जाने के बाद कैसे महसूस कर रहे हो ?   और उसका आनद कैसा है ?    अरे बंधू .. जब कोई उसकी पीठ खुजला राह था तो तब उसके चेहरे कि हाव भाव देखते कि वो कैसे महसूस कर रहा है !  चेहरा बया कर सता है जुबा नहीं !
      दरअसल , ये सब अनुभव कि बाते है ! बिना चुनाऊ लडे,  हार- जीत का अनुभव नही होता !  एक और बात . जब से मैंने सूना कि मै जीत् गया हूँ ,  तो,  मेरी बुधी काम नही कर रही है कि मै सता मै बैठू या बिरोध में ?  इस जीत के बाद समस्यओ ने मुझे घेरना शुरू कर दिया है !   समस्या कुर्सी की  हो गई है !  अगर कुर्शी मिले तो सता के साथ ,  नाही मिले तो ,  बिपक्ष के साथ  !
       अब क्या बताऊ ,  इस पार्टी /संस्था में ,  इस कुर्शी के लिए मैंने ,  अपनी आँखों से सामने मारा मारी देखी है !  ये भी देखा है जो रण-बाँकुरे पहले भी जीते थे , जो तब सता के साथ थे,    वे ,  इनकी,   इस कुर्शी के मोह और लड़ाई के कारण, दुखी होकर बिपक्ष में बैठ गए थे !   मैंने ये भी देखा है जो कुर्शी पर जा बैठा था वो उसे छोड़ने को राजी नहीं  और जो सता से नाराज हो गए थे वो समझोता करने को राजी नहीं !  इसमें इन दोनों का टॉम कुछ नही बिगडा पर इनकी इस लड़ाई में धारासाही हुई थी बेचारी ये संस्था !  इसकी छाती में ये चुनाऊ लडै,  जीते ,  और अब उसीकी छाती पर ये मूँग दल रहे है ! 
      मै जीता हुआ उमीद्वार हूँ !  आप  मुझ से क्या उमीद रखते है कि मै , सब को साथ लेकर चालू ! आप सही सोचते है और मेरा ईराद भी यही है लेकिन बाद में ,  पता चल कि मै , चल तो रहा हूँ वो भी अकेले - अकेले  !
       बिचारो की बात आई तो मेरी समझ में ये नही आता कि हमारे बिचार आपस में क्यों नही  मिलते !  जब तक हम जीते नहीं थे सब ठीक ठाक था ये चुनाऊ के बाद ही बिचारो में ये क्या तब्दीली आ गई ! क्या कुर्शी कि बजह !  ..साब ये कुर्सी है ही ऐसी !
        मेरी पत्नी ने फोन उठया और जैसे ही सूना कि मै चुनाऊ जीत गया हूँ वो मुझ से उन्लाझ पडी ! तुम्हे किसने कहा था कि चुनाऊ लाडो ?    इस पचडो में पडो ?  पहले ही क्या कम चल रहा तुम्हारी इन संस्थाओं में ?  इस जीत से पहले मै और मेरी पत्नी बड़े माजी में हँसी खुशी बतिया रहे थे लेकिन वो इस चुनाऊ के मुधे को लेकर बहत गंभीर है ! इतनी गंभीर कि, चुनाऊ मैंने नाही इसने जीता हो ?  हम धडो में बात गए है ! मै इधर और वो उधर ! अभी तो सुरवात है  वो भी घर से ! आगे क्या होता होगा,   मालुम नही !  अब मै सोच रहा हूँ  कि मैं ये क्या कर दिया है  !  इस जीत ने घर कि शांति  में अपनी सेंध लगा दी है ! समझ में नही आ राहा है कि मेरी ये जीत , जाने कितनो को हंशायेगी और कितनो को रुलायेगी ?
 
पराशर गौर
अक्तूबर ३० -०९ रात १०.२० पर 

Parashar Gaur

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बर्तालाप

मैंने ,
मन्दिर में स्थापित
भगवान् से कहा .....

तुम,
मेरे आराध्य नही हो सकते ?
जो स्वयं कैद हो ,
वो,
मेरा भगवान् कैसे हो सकता है ?

मेरा भगवान्  तो ....
आज का कम्प्यूटर  है
जो कुछ भी कर सकता है
कुछ भी ......!

जीवन दे सकता है
जीवन ले सकता है
उदाहरण के लिए
अल्ट्रा साउंड .
अगर -,
लड़की दिखी तो , मार दो
अगर , लड़का दिखा तो , आने दो
क्या तुम ये कर सकते हो ?
नही ना ...????

अगर तुम ये नहीं कर सकते
तो तुम भगवान् कैसे  ?

पराशर गौर
२७ अक्तूबर ०९ ११.३० दिन में न्यू मार्केट

Parashar Gaur

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तुंही कहो

मेरे अंदर में
उठते विकारों की ज्वाला
न जाने , कब शांत होगी !

कौन करेगा इसे शांत ?

तुम्हारे झूठे अह्स्वास्नो को
सुनते २ मेरे कान पाक चुके है
उदर में, अप्प्च हो गई है
सर,
सर के सोचने की क्रिया ने
सोचना बंद कर दिया है !

कही से कोई जहर ला दो ?

लेकिन,
इस शहर के जहर पर मेरा
कोई एकीं नही ....
जहा ------
सवाल नकली
जबाब नाकली
अह्स्वाशन नकली
दिखावा भी नकली
तो जहर कैसे असली हो सकता है
तुम्ही कहो ?

पराशर गौर २७ अक्तूबर ०९ ३.०० बजे



Parashar Gaur

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हैप्पी बर्थ डे :  उत्तराखंड
 
  बिस्ट जी , उत्तराखंड के किसी , सरकारी आफिस में कलर्क  है !  बगल में  तिवारी जी बैठते है ! आज ब्र्हस्पती बार है ! दोनों अपने अपने कामो में व्यस्त है की तभी चपरासी दरवान सिह ने दोनों का ध्यान भंग कर दिया ये कह कर की....  ....... 

    " अरे बिस्ट जी, ...  और तिवारी जी , जल्दी घर जाओ .. उत्तराखंड सरकार ने शुक्रबार की भी छुटी करवा दी  है ,क्यूंकि  उत्तराखंड राज्य का जन्मदिन शनिबार को पड़ रहा है इसीलिए उन्होंने शुक्रबार को छुटी घोषित कर दी है  बजाय शानिबर  के !  " 
 
  वे दोंनो उसकी इस बात को सुनकर एक दुसरे  के ओर देखने  के बाद कहने लगे  तीन दिन की छुटी !  शुक्रबार / शानिबर अर  इतवार  - ---- " वाह ----" !

       बिस्ट जी सारे आफिस में एक नेक, इमानदार व देशभक्त के रूप में जाने जाते रहे है !  उत्तराखंड के  जन्मदिन का नाम सुनकर उनमे उत्साह का होना या दिखाना कोई बड़ी बात नही थी !  वे अपने आप से कहने लगे की कल हमरी सरकारी कोलानी में इसका जनम बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा !  वे इसलिए भी आसक्त थे की सभी तो अपने पहाडी भाई बंधू है !

        घर पहुँचते ही उन्होंने अपनी पत्नी से कहा .....   "   जानते हो आज कया है ? "   उसने ज्याद ताबजू न देते ही  हुए कहा ,(  एक मायेने में वयंग से कहा ) 
   "  -----क्या है ? "

 ----- " अरी भगवान् , आज हमारे राज्य उत्तराखंड का जन्म दिन है , जन्म दिन ...."

  पत्नी ने फिर वयंग से देख कर कहा    " --- अच्हा .... ?   थोड़ी देर रुकने के बाद  उसने कहा ...... " चलो ,   मेरा ना सही ... .. आपको तो अपने बचो का जन्म दिन तक , याद नही रहता .... इसका कैसे याद रहा गया ?  "

 बात की नाजुकता को पहिचानते हुए उन्होंने कहा ... " अच्हा , अच्हा ...., मुझे,   कल जल्दी जगह देना ताकि मै पास पड़ोस वालो को जल्दी उठाकर अपनी इस सरकारी कोलानी में कोई .....,  अभी बात पुरी भी कर पाऐ थे बिस्ट जी की,   कि पत्नी ने बीच में टोकते हुए कटाक्ष मारते हुए कहा  ..............

."----. भाषण दोगे ? "    .......

 " क्यों नही , क्यों नाही  ... ///    भाषण बाजीके लिए तो,   आज के दिन हर मंत्री, बिधायक , नेता  सब के सब  कही ना कही बुक हो गए होंगे .. जैसे सादियो में बैंड हो जाया करते है,   फिर भला,  वो नही..,  तो  तुम ही सही !

 अकड़ते हुए उसने कहा ....  "  आलाराम लगा दूंगी ! सुबह खुद ही उठ जाना ! हमें और बचो को  डिस्टरब मत करना "  कहते वो रासोई में चली गई ! 

      सुबह जब घंटी बजी ! बिस्ट जी उठे ! खुद ही चाय बनाई ! अखबार खोलकर पडा , पड़ते पड़ते घडी कि ओर देखा  !  अभी ८ बज रहे रहे थे सोचा थोडा और इन्तजार कर लू फिर चलूगा पास पड़ोस वालो को उठाने ! उनके बगल में काला जी, पुंडीर जी , उनियाल जी , तिवाडी जी , आर्य जी , कुकरेती जी , डोभाल जी याने सबी अपने ही लोग रहते थे  और सब को पता है कि आज उत्तराखंड राज्य का जन्म दिन है फिर भी कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !   

        सबसे पहले वो बन्दुडी जी के घर गए !  दो तिन बार घंटी बज्जी तो तब जाके उनका बेटा सुधीर आँख मलते हुए दरवाजा पर आया !   सुबह सुबह सामने दरवाजे पर बिस्ट जी को दिखकर पूछने लगा ... "  आरे  अंकल जी आप ... सब कुछ तो ठीक ठाक है ना  ?  वो क्या बोलते एसा अटपट सवाल सुनकर !  वो बोले   " हां सब ठीक  है ! पापा है ?  वो बुला  ..."  जी ... सो रहे है  "
 
" ----सो रहे है ?   "   बड़े आचर्य के साथ बिस्ट जी ने पुछा !

" हां  क्यों ?  "  जैसा  उत्तर वेसे ही जबाब !  अरे , आज उत्तराखंड का जन्म दिन है और वी सो रहे है  उन्हें उठाओ ....///

'... पापा ने कहा है कि उन्हें मत जगाना , "  कहते , उसने फट से दरवाज बंद कर दिया !  बेचारे बिस्ट जी अपना मुह देखते रह गए !
 
      आगे चले सामने पुंडीर जी का मकान था जा कर  घंटी बजाई ! थोड़ी देर में पुंडीर जी बहार आये ! बिस्ट जी को देखकर बोली  '------ अरे बिस्टजी, बहुत दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से तो आराम  करने  का समय मिला ... बीच में बिस्ट जी बोल पडे , लेकिन  आज तो ऊताराखंड का जन्म दिन है ...

" ---- तभी तो,     आराम कर रहे है  पुंडीर जी बोले ..  आप भी जाकर आराम करे क्यों खामा खा और कि नीद हराब कर रहे हो !  अच्हा नमस्कार ..कहते उन्होंने भी दरवाजा बन्ध कर दिया ! अंत में वे तिवाडी जी के घर गए !  घंटी  बजाई सामने मिसेज तिवारी थी !  बिष्ट जी  को देखकर वे  ठैट कुमौनी में बोली 

   '--------  वो बिष्ट भेजी , नमस्कार .. की हरियु .. नान तिन भला .... "

" हां सब ठीक  ही छै  "   तिवाडी जी कहा है ?  वो भीतर पूजा में है .. पट ३-४ घंटा के बाद उठेगे !

पूजा ?

 "  हा हा ..पूजा .. ///   आज अपण राज्य कु,  जन्म दिन जू ठैथरा .. वेके लिए पूजा कर रहे है  !"

      बिस्ट जी सोचने लगे कि ये क्या हो रहा है  सबी आराम कर रहे है जिन्हीने इसके लिए अपने पराणो कि आहुती दी उसके बारमे कोई भी कुछ नही सोच रहा है ! नजर दोडाई  देखा हर जगह एक सनाटा  ठीक वेसे ही जैसे   मुज्ज़फर नगर के तिराह के चोक पर जब गोल्लियो से हमारे लोग मरे थे ! उस समय का वो सनाटा  किसे ने नही सूना !  जैसे आज मेरी आवाज को कोई नही सुब रहा है !   वे मरे   हमारे लिए  और आज ये  आराम  रहे है अपने लिए !
 
    कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !  चारो ओर सुन सान और तो और आज तो इस इलाके के कुते भी चुप्प चाप है जैसे लगता है कि यहाँ कोई कुता रहता ही नहीं !

 
 पराशर गौर
८ नमम्बर ०९ रात ९.२५ पर   

खीमसिंह रावत

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gaur ji namskar

sachmuch yesaa hi drishya hai pure uttakhand ka /
guar ji pahad se lekar amerika tak aap dekh chuke hain|
bhisht ji jaise log hi ddepak ka kaam karate hain

lekh sunder ati sunder hai|


हैप्पी बर्थ डे :  उत्तराखंड
 
  बिस्ट जी , उत्तराखंड के किसी , सरकारी आफिस में कलर्क  है !  बगल में  तिवारी जी बैठते है ! आज ब्र्हस्पती बार है ! दोनों अपने अपने कामो में व्यस्त है की तभी चपरासी दरवान सिह ने दोनों का ध्यान भंग कर दिया ये कह कर की....  ....... 

   
      बिस्ट जी सोचने लगे कि ये क्या हो रहा है  सबी आराम कर रहे है जिन्हीने इसके लिए अपने पराणो कि आहुती दी उसके बारमे कोई भी कुछ नही सोच रहा है ! नजर दोडाई  देखा हर जगह एक सनाटा  ठीक वेसे ही जैसे   मुज्ज़फर नगर के तिराह के चोक पर जब गोल्लियो से हमारे लोग मरे थे ! उस समय का वो सनाटा  किसे ने नही सूना !  जैसे आज मेरी आवाज को कोई नही सुब रहा है !   वे मरे   हमारे लिए  और आज ये  आराम  रहे है अपने लिए !
 
    कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !  चारो ओर सुन सान और तो और आज तो इस इलाके के कुते भी चुप्प चाप है जैसे लगता है कि यहाँ कोई कुता रहता ही नहीं !

 
 पराशर गौर
८ नमम्बर ०९ रात ९.२५ पर   


Parashar Gaur

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Parashar Gaur

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गडवलीम एक व्यंग
 
                                           आखरी इछा
 
       आज साब,   उत्तराखंड राज्य कु एक ना , पट १० जन्म दिन जनम दिन च बल  !    !  ये मोंका पर जगह जगह , गौ गौ , शहर शहरो माँ जलसा-जलूस  अर बनबनी का आयोजन , कार्यक्रम करीणा छन !   पहाडो माँ लूखुल  अपना चोक अर  कुड़ी लाल  पीली , रंग बिरगी झदियुन सजैनी !   हमरा यख पपीता सैण जू एक लम्बो चोड़ सैण च !  वखम एक बडो शानदार कार्यक्रमों आयोजन करेगी  जेमा नामी गरामी नेता ,बिधायक कलाकार सामिल होला !
       स्यु साब सुबेर बीटी  लगी ,   लुख कु जमघट .! . गाणा बाजाणा क बाद ,  नेतो कु भाषण भी हुए !  .. एक बाद आई  ठोल  दमाऊ की बारी ! ..  भरण दास जैकी लाकुड से ठोल इनु बजद की ,  नाचादु कु,  खुट रोक रोकी भी रुकुदु नी !  नाच्दरा नचणा छा  !  तम्शगेर तामशु दिख्णा छा,   की , अचानक बी भीड़ बिटी कवी  जोर जोर से रोण बैठी ..  सब्युन उने देखी ... !  मिन भी देखि ...  क्या देखि की ,  तिबारी मकै जूपा काकी छै ह्य्ली ह्य्ली गाडी गाडी रूणी ! 
        ठोल दमा रुका.. !  बाजा गाजा थमा !  नाच्दरा एक तरफ हुवेनी !  भीड़ वी काकी का इर्द गिर्द जमा हुन  बैठी ! 
    कवी बुन बैठी ... "  ह्या भै....  अछू भलू माहोल छो चनू !  य एक्का एक ,  या रूणी धूणी कैकी भै .... //
तबरी हैन्कू बुन बैठी  ... "  हर्प्णा लगी गे जणी हर्प्ण ... इन कारो , क्न्डालि लाओ !   अर , तथै  झ्प्वाडो खूब कै  तबी जालू यु खबेश ...!   
       कैल बीचम बोली .. " दा, कख छा लगाना छुवी .. वीकी सासू रांड आणी हूएली ! कम तंग नि कै इन वा !"
 तभी एक बुजर्गल पाणी छुमा जणी काकी हूद डाली , की वा कम्पन बैठी कम्प्द कम्प्द अर रुद रुद व अड्क्ट ह्वेगी !    कैल भरण थै बोली  -- भै भेजी  जरा द्याख धो क्या च ?   पुछा इ थै की,  कु छै?   कख्कू छै ?  क्या चांदी  ?
        भरणल ठोल सज़ाई !  बन बनी की ताल बन बनी का गीत लगैनी ,  पर , काकी पर अण्क न भणक ! 
      जनी कैल बोली .  ". कख यार ,     एक वार हम अप्ण राज्य का जन्म दिन की खुशी छा मनाणा अर यख , सया च रूणी काणी हूणी ! "   जनी काकिल वेका ये बचन सुणिनी , काकी का आँखों बीटी आंसू का अन्स्धरा बोगण बैठा ..
रुद रुद बुन बैठी  .. "    कन खुशी ?  ... कैकी खुशी ?    तुम त खुश हेग्या ! , हमत,  खुदया छा खुदया !  तुम थै त बाटु मिलीगे !  हमत बाटा माँ छा रिंगणा !  तुमरा दगड त,   मंत्र्री , कुर्शी  अपणु राज्य सब कुछ च !  कम्प्द कम्प्द बोली ...  मी दगड त , बुठया, जवान, बिवाई, अण्ब्य्वाक को की पूरी पंगत च  पंगत जू अभी मुझाफर नगर का वे तिराहा से  भैर  ही नि आसक्णा छा  ! 
 
       तभी बिधायक जी भी वाख पहुंचा ! हात जोडी बुन बैठा
       " भटका ना ....  क्यों छा भटकणा  !  हमन ता उत्तराखंड असम्बली का हाल माँ  तुम्हारी फोटो छन लगाई !  उख बीटी त ,  तुम ,  त रोज दिख्दै हुल्या  ,   तुम्हरी दीई कुर्वानी से हम आज कतका मजामा छा !  तुम बैकुठ भले ही नि गए होला पर हमन त तुम थै असम्बली तक त पहुंचाई ही दे !
              अचानक तबरी भीड़ माँ भगदड़ मची गे ! लोग कुरचिण बैठा ! कुई इने पोडी कुई उने !  भीड़ का बीच दुई    सांड लड़द लड्ड खुश गिनी ! बिधायक जी भी चपेट माँ आया !  वो जायादे खेल छा ! लुखुल देखी  अर पूछी...
        " राज्य भी मिलिगे , आप बिधायक भी बणी ग्य ! कुई आखरी इछा हो तो बताऔ !  वें इन्हें उन्हें देखि अर बोली .. :जन आज आप ये राज्य कु जनम दिन छा मनण्ण .. उनी मयारू भी मनया हो .. बिस्र्या न हो ///    .. अर हां ..,    मेरी फोटो थै सी एम् की कुर्सी का पैथर लगे दिया  ताकि मी वख बीटी वी कुर्सी थै दिख्दु रोलू  की , कबरी हूली या  खाली ! 
 
पराशर गौर
९ नम्बर ०९ दिनम १ ४५ पर





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From: Vivek Patwal <vivekpatwal@gmail.com>
To: Parashar Gaur <parashargaur@yahoo.com>
Cc: Dr. Ashok <dr.barthwal@live.com>; mumbai@younguttaranchal.com
Sent: Fri, November 6, 2009 11:32:46 PM
Subject: Re: ek Taaj ja vyang हैप्पी बर्थ डे : उत्तराखंड


सही कहा गौड़ जी,
आज हमारे इन उत्सवो का मतलब लोगो के लिए आराम का दिन हो गया है, ये हाल सभी दिवसों का है, चाहे वो २६ जनवरी हो या फिर १५ अगस्त, फिर भी आपने कुच्छ पहल व्यंग के माध्यम से जो की है जरूर कुछ लोग सोचने को मजबूर होंगे,


2009/11/7 Parashar Gaur <parashargaur@yahoo.com>

     हैप्पी बर्थ डे :  उत्तराखंड
 
  बिस्ट जी , उत्तराखंड के किसी , सरकारी आफिस में कलर्क  है !  बगल में  तिवारी जी बैठते है ! आज ब्र्हस्पती बार है ! दोनों अपने अपने कामो में व्यस्त है की तभी चपरासी दरवान सिह ने दोनों का ध्यान भंग कर दिया ये कह कर की....  ....... 

    " अरे बिस्ट जी, ...  और तिवारी जी , जल्दी घर जाओ .. उत्तराखंड सरकार ने शुक्रबार की भी छुटी करवा दी  है ,क्यूंकि  उत्तराखंड राज्य का जन्मदिन शनिबार को पड़ रहा है इसीलिए उन्होंने शुक्रबार को छुटी घोषित कर दी है  बजाय शानिबर  के !  " 
 
  वे दोंनो उसकी इस बात को सुनकर एक दुसरे  के ओर देखने  के बाद कहने लगे  तीन दिन की छुटी !  शुक्रबार / शानिबर अर  इतवार  - ---- " वाह ----" !

       बिस्ट जी सारे आफिस में एक नेक, इमानदार व देशभक्त के रूप में जाने जाते रहे है !  उत्तराखंड के  जन्मदिन का नाम सुनकर उनमे उत्साह का होना या दिखाना कोई बड़ी बात नही थी !  वे अपने आप से कहने लगे की कल हमरी सरकारी कोलानी में इसका जनम बड़े धूमधाम से मनाया जाएगा !  वे इसलिए भी आसक्त थे की सभी तो अपने पहाडी भाई बंधू है !

        घर पहुँचते ही उन्होंने अपनी पत्नी से कहा .....   "   जानते हो आज कया है ? "   उसने ज्याद ताबजू न देते ही  हुए कहा ,(  एक मायेने में वयंग से कहा ) 
   "  -----क्या है ? "

 ----- " अरी भगवान् , आज हमारे राज्य उत्तराखंड का जन्म दिन है , जन्म दिन ...."

  पत्नी ने फिर वयंग से देख कर कहा    " --- अच्हा .... ?   थोड़ी देर रुकने के बाद  उसने कहा ...... " चलो ,   मेरा ना सही ... .. आपको तो अपने बचो का जन्म दिन तक , याद नही रहता .... इसका कैसे याद रहा गया ?  "

 बात की नाजुकता को पहिचानते हुए उन्होंने कहा ... " अच्हा , अच्हा ...., मुझे,   कल जल्दी जगह देना ताकि मै पास पड़ोस वालो को जल्दी उठाकर अपनी इस सरकारी कोलानी में कोई .....,  अभी बात पुरी भी कर पाऐ थे बिस्ट जी की,   कि पत्नी ने बीच में टोकते हुए कटाक्ष मारते हुए कहा  ..............

."----. भाषण दोगे ? "    .......

 " क्यों नही , क्यों नाही  ... ///    भाषण बाजीके लिए तो,   आज के दिन हर मंत्री, बिधायक , नेता  सब के सब  कही ना कही बुक हो गए होंगे .. जैसे सादियो में बैंड हो जाया करते है,   फिर भला,  वो नही..,  तो  तुम ही सही !

 अकड़ते हुए उसने कहा ....  "  आलाराम लगा दूंगी ! सुबह खुद ही उठ जाना ! हमें और बचो को  डिस्टरब मत करना "  कहते वो रासोई में चली गई ! 

      सुबह जब घंटी बजी ! बिस्ट जी उठे ! खुद ही चाय बनाई ! अखबार खोलकर पडा , पड़ते पड़ते घडी कि ओर देखा  !  अभी ८ बज रहे रहे थे सोचा थोडा और इन्तजार कर लू फिर चलूगा पास पड़ोस वालो को उठाने ! उनके बगल में काला जी, पुंडीर जी , उनियाल जी , तिवाडी जी , आर्य जी , कुकरेती जी , डोभाल जी याने सबी अपने ही लोग रहते थे  और सब को पता है कि आज उत्तराखंड राज्य का जन्म दिन है फिर भी कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !   

        सबसे पहले वो बन्दुडी जी के घर गए !  दो तिन बार घंटी बज्जी तो तब जाके उनका बेटा सुधीर आँख मलते हुए दरवाजा पर आया !   सुबह सुबह सामने दरवाजे पर बिस्ट जी को दिखकर पूछने लगा ... "  आरे  अंकल जी आप ... सब कुछ तो ठीक ठाक है ना  ?  वो क्या बोलते एसा अटपट सवाल सुनकर !  वो बोले   " हां सब ठीक  है ! पापा है ?  वो बुला  ..."  जी ... सो रहे है  "
 
" ----सो रहे है ?   "   बड़े आचर्य के साथ बिस्ट जी ने पुछा !

" हां  क्यों ?  "  जैसा  उत्तर वेसे ही जबाब !  अरे , आज उत्तराखंड का जन्म दिन है और वी सो रहे है  उन्हें उठाओ ....///

'... पापा ने कहा है कि उन्हें मत जगाना , "  कहते , उसने फट से दरवाज बंद कर दिया !  बेचारे बिस्ट जी अपना मुह देखते रह गए !
 
      आगे चले सामने पुंडीर जी का मकान था जा कर  घंटी बजाई ! थोड़ी देर में पुंडीर जी बहार आये ! बिस्ट जी को देखकर बोली  '------ अरे बिस्टजी, बहुत दिनों के बाद बड़ी मुश्किल से तो आराम  करने  का समय मिला ... बीच में बिस्ट जी बोल पडे , लेकिन  आज तो ऊताराखंड का जन्म दिन है ...

" ---- तभी तो,     आराम कर रहे है  पुंडीर जी बोले ..  आप भी जाकर आराम करे क्यों खामा खा और कि नीद हराब कर रहे हो !  अच्हा नमस्कार ..कहते उन्होंने भी दरवाजा बन्ध कर दिया ! अंत में वे तिवाडी जी के घर गए !  घंटी  बजाई सामने मिसेज तिवारी थी !  बिष्ट जी  को देखकर वे  ठैट कुमौनी में बोली 

   '--------  वो बिष्ट भेजी , नमस्कार .. की हरियु .. नान तिन भला .... "

" हां सब ठीक  ही छै  "   तिवाडी जी कहा है ?  वो भीतर पूजा में है .. पट ३-४ घंटा के बाद उठेगे !

पूजा ?

 "  हा हा ..पूजा .. ///   आज अपण राज्य कु,  जन्म दिन जू ठैथरा .. वेके लिए पूजा कर रहे है  !"

      बिस्ट जी सोचने लगे कि ये क्या हो रहा है  सबी आराम कर रहे है जिन्हीने इसके लिए अपने पराणो कि आहुती दी उसके बारमे कोई भी कुछ नही सोच रहा है ! नजर दोडाई  देखा हर जगह एक सनाटा  ठीक वेसे ही जैसे   मुज्ज़फर नगर के तिराह के चोक पर जब गोल्लियो से हमारे लोग मरे थे ! उस समय का वो सनाटा  किसे ने नही सूना !  जैसे आज मेरी आवाज को कोई नही सुब रहा है !   वे मरे   हमारे लिए  और आज ये  आराम  रहे है अपने लिए !
 
    कोलानी में कोई रोनक नही ! नहीं कोई उठा है !  चारो ओर सुन सान और तो और आज तो इस इलाके के कुते भी चुप्प चाप है जैसे लगता है कि यहाँ कोई कुता रहता ही नहीं !

 
 पराशर गौर
८ नमम्बर ०९ रात ९.२५ पर   


Parashar Gaur

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" गुंडा - राज "
 
मैंने देखा,
सबने देखा
हमने देखा
हिन्दी को अपमानित होते हुए
अपने से नही
अपनों से
महाराष्टर की विधान सभा में
सबके सामने
सबके आगे
भारी सभा में
द्रोपधी  की  तरह !
 
वो ...., 
रोई नही ,
सड़क पे
चोराहे पे ...

वो रोई ...
जहा , कानून बनते है
लागू होते है  !
 
वो ....
गिड़ गिडाई
इस युग के सभ्य 
कह जाने वाले इंसानों  के आगे ,
जो सब मौन थे
महाभारत के भीषम पिता की तरह !
 
वो...
 वेसे ..१३ थे
कहने को वे ...
ना तो वे  तीन में
ना तेरह थे
कहने को वे अपने को
नेता कहते थे
नेता कम ...............,
गुंडे ज्यादा लगते थे
अकाल से
शकल से ,
काम से
जातीबाद के कंस की तरह !
 
हाथापाई ,
गुन्दागिर्दी
मारधाड़
जो कल तक सडको पर करते थे
आज विधान सभा में कर रहे है
बिना झिझक
बिना रोके ,
सबके सामने
सरे आम
माईक तोड़ते है
थपड जड़ते है
वो भी एक चुने हुए उमीद्वार पर

जो ..............................,

जो राष्ट्र को गोराबिंत करते हुए
हिंदी में शपथ ले रहे है
हिंदी बनाम के नाम पर
एम् स एम् के चाँद मवाली
उस सक्ष के साथ
मारा मारी कर रहे है !
 
इस कांड के पीछे
जरुर कोई  है
जो कर रहा है
करवा राह  है 
ये क्या हो राह  है  ???
 ये गुंडा - राज , नहीं तो
और क्या है !

 पराशर गौर
नमम्बेर 1२ ०९

Parashar Gaur

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                                                               नेताओ की पछयाण
   
      नेता  बल आम आदमियो से बिलकुल ही अलग हुन्दन   अर पछीणे  जदिनी  !  जन   कुतो माँ ,    खुजली वाल वालू कुता  .... दूर बीटी ही  पछ्याणे जांद उनी जनता का बीचम वो   भी  !   ऊकी ,  चाल- ठाल,   उठूणु-बैठूणु,  खाणु- पीणु , बुन- बच्याणु , सब ,  सब से अलग ही हुन्द !   जी हां , अलग   !  संस्कृतं एक श्लोक  च "  लुन्ड़ो ; बिचतरो गती : "  अर्थात  जन की लुंड माने आवारा  किस्म का आदमी की हर कुछ अलग ही हूँ उनी नेताओ की भी !
      हमरा यख याने गडवाल बीटी वी नेता हूनी ,   जोन,    द्वी -द्वी ब्यो कैनी  !  जनकी हेम्वान्ती नदन बहुगुणा, शीबानद नोटियाल , जग मोहन सिह नेगी  आदि आदि  ! अबत कुमो बीटी भी य पर्था चली आण लगी  !  हरीश रावत भी ये लग्यात माँ शामिल ह्वेगीनी ! या सबसे पहली पछयाण नेता हूँण  की   !
नेता त,  कई ह्वनी !    पर,   इन जन ना ! .. बाकी त जन   बुलदं ना बल "  बड गोर  बल लूण  बुकाऊ , अर छुटा थुबउड़ चाट "  वनी !
     ऊ बुल्दा कुछ छन अर करदा कुछ ..  !   देख नी आपल,   आज से १० साल पैली ,  एक बडो नेताल...,  तब  जू  बुलद छो ,  की मेरी त अंतर्राष्ट्रीय राजनीत म दखल च !  त फिर मी प्रदेशीय राज्नितिम  किलै जो !   मयारू दिमाग खराब च क्या ?   है, .....   मि ,  कै पागल  कुत्तो  कटियु छो जू मी इनु काम कैरू   !    कुई पागल ही  ह्वालू जू  प्रांतीय राजनीतंम जालू  !   उन यख तक भी बोली दे  छो  की  " राज्य ?  कनु राज्य  ...!   अगर राज्य बनालू भी त मेरी लाश पर  ?????     ,,,,,   अर जब राज्य बणीगे !  सया पिच्ल्या दरवाज  बीटी  राज्य की सब से अहम कुर्सी  याने चीफ मिनिस्टर ह्त्येदी ! य दूसरी पछयाण  च !
      तैला मिल्या  खुवाल,    त ,  हमन सुणी भी  , अर देखि भी  छ   !  पर,   हर चुनो माँ ,  फिरका परस्ती  , जजमानी -बामणी,  खा- बा- डा    अर बाजा बाज त गड्वाली कुमुनी  नि चुकदी ताबा   !   ये भै,     कुई  यूथे पूछा ....... ///    तुम त हैरी जीती चली जैल्या  ....  पर हमत यख यखी रैण !  म्यारा
 गौ माँ कुई जाज काज होल त  बामणलत काना !  कुई मोरी भाजिगे त हमले त  हमने त हूँ ना कठा ?   हमनै त,  उठान ना ..मुरियु मुर्दा ? की  ई आला देहरादून बीटी हमरा गौ माँ मुर्दा उठानु कु ?   जबरी यूथे हमरी चाड रैद त,  कन घुम्दी,    हमरा अग्वाडी पिछाडी   लिडा कुकर सी  !   अर जब हम थै युकी  जरुरत पुडाद त तब पट दरवाज बद कैकी भैरम संतरी  जू बितर त भीतर  आगन्म तक नी आणि देदु !   युकू कुई मुवार्लुत  वख  सरकारी सरय  मशीन   दोडी डोदी ई जाली !  युका आसू पुच्णु बड़ा बड़ा अफसर मंत्री  ऐजाला !  ये किक नि हुन्दन ये एक औरी पछ्यण च ! ईनी
 कै  बता   ओउरी भी छन    !

पराशर गौर
नम्बर १६ दिनम ११.५५ पर

Parashar Gaur

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 आयाना  

                                                               चाह    (  लड़के की )

           ईश्वर ने प्रतेक मनुष्य को मोह और चाह दो ऐसी चीज़े दे रखी है जिनके घेरे  से वो निकल  भी चाहे भी तो ,  नही निकल सकता !  यही तो कुदरत  की माया है !   ये चाह देश , काल,  प्रस्तिथी व व्यक्ति-व्यक्ति की चाह के अनुसार  भी हो सकती है !  चाह की कोई सीमा नहीं होती ! ये किसी भी प्रकार की हो सकती है !  उदाहरण के लिए धनवान बन्ने की , बड़ा आदमी होने की ,  राजनीति में बहुत बड़ा नेता होने  की , किसी भी चीज के पाने की  , खुजली वाले को  नाख़ून की ,  दारुड़ी को दारु की,  नसेड़ी को नशे की  और   लडकी वालो को लड़के की,   निसंतान  वाले  को  औलाद की ...आदि  आदि    !

      औलाद के नाम से याद आया  , औलाद की 'चाह'   बाँझ स्त्री  तो सही भी लगती है  उसकी पीड़ा को हम समझ  सकते है !  उसकी ये चाह जायज भी है  क्योंकि  उसके पास औलाद के नाम पर ना तो लड़की  है,  न लड़का...,     लेकिन ,  अगर किसी के पास लड़के की जगह लडकिया है फिर भी वो लड़के की चाह  रखती   फिर क्या  कीजिएगा  .... करना  क्या है गरीब से गरीब और आमिर से आमिर इस लड़के की चाह में  कुछ भी करने को आमादा होते है !  

       अभी  कुछ दिनों पहले  कनाडा के तुरोंटो शहर  में भारतीय मूल की एक महिला  ने लड़के चाह में अपने ही एक भारतीय के कहने  पर ,  उस से हजारो डालर की गोलिया इस लिये ली,  की , उस का दावा  था की,    इन गोलियों को खाने से  अवश्य  लड़का पैदा होगा जबकी उसके पास पहले  से ही दो लडकिया थी ! इन गोलियो के लेने से पहले य  महिला या इस जैसी महिलाए न जाने लड़के चाह में न जाने कितने ही बाबा ( अजमेरी जैसे ) पीर-फकीर की दरगाहों में जा जाकर मथा टेका होगा ! न जाने कितने डाक्टरों के पास जाकर पैसा  पानी की तरह बहाया हिगा , मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारी, ब्राहमणों /जोतिशियो  के चाकर काटे होगे !  सबके ,   आगे मनते मागी होगी !  हैरानी तो इस बात की है की कनाडा जैसे जागरूक देश में रहते हुए भी सडक छाप लगो पर भरोश कर दस नहीं ,सो नहीं .हजारो डालर केवल इस लिये खर्च कर दिए की उनकी उस दवाई या गोलियो का खाकर शर्तिया लड़का होगा ....  अब उसे कौन समझये अगर गोलियो से ही अगर लडके पैदा होते  तो फिर प्रुरुष ( आदमी ) की क्या जरुरत थी !  कुदरत ने स्त्री-पुरुष   बनाए तो उसका कुछ उद्देश्य होगा !

      आज के इस युग  में लड़का -लड़की में कोई अंतर नहीं .. !  लडकिया भी उतना ही हिसा बटाती है जितना की लडका ! वो किसकी भी छेत्र में  आदमियों से पीछे नहीं है   ! बल्कि और्तोने आदमियों से ज्याद नाम कमया और अपने माँ बाप का नाम रोशन किया !  आज दुनिया में भारत की  स्व प्रधान मंत्री  इंदिरागाँधी ,  श्री  लंका की  राष्ट्रपति  भंडारनायके , इजराइल की स्व परधन मंत्री गोल्डा मियर  , इंग्लैण्ड की प्रधान मंत्री मार्गात थेचर , भारत की कोकिला लता मंगेशकर  एवेरेस्ट पर चडाई करके बिजय पानी वाली बचेंदेरपाल ये सब लडकिया ( औरते)  ही तो थी और है !

पराशर गौड़
२३ नंबर ०९ रात ११.०० बजे
 

 

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