Author Topic: Articles By Shri D.N. Barola - श्री डी एन बड़ोला जी के लेख  (Read 150960 times)

Risky Pathak

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Bahote Bhal Laago Ho Badola
नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए.

एक आदमी की तीन लड़कियां थी. जब वह विवाह योग्य हो गईं तो उनके पिता को उनके विवाह की चिंता हुई.  बहुत खोज बीन के बाद उसने अपनी बड़ी लड़की का विवाह एक बाघ से करा दिया और वह सुख से रहने लगी. कुछ समय बाद उसने अपनी दूसरी लड़की का विवाह भालू से करा दिया तथा  तीसरी लड़की के लिए योग्य वर की तलाश प्रारंभ कर दी. उसने तीसरी लड़की का विवाह गरुड़ से करा दिया.

कुछ समय बाद उस आदमी की पत्नी ने कहा - सुन्रते हो जी अपनी लड़कियों का हाल समाचार जानने के लिए लड़कियों के ससुराल क्यों नहीं जाते. आदमी ने कहा - भागवान तुम ठीक कहती हो. मैं कल ही उनके हाल समाचार जानने के लिए उनके घर जाता हूँ. वह सबसे  पहले सबसे बड़ी लडकी के ससुराल गया. उसके  आगमन पर बाघ बहुत प्रसन्न हुआ. बाघ ने अपने  स्वसुर की खूब खातिरदारी  की. शाम को बाघ ने अपने स्वसुर से कहा  चलिए एक बकरी का शिकार कर के लाते हैं फिर उसका मीट चाव से खायेंगे. वह शिकार करने चल दिए. उसने अपने स्वसुर  से कहा कि सामने वाले मकान से मैं एक बकरी बाहर  को फैकुंगा, आप उसे घसीट कर कुछ दूर सिसूड़े  के भूड़ मैं डाल देना. बाघ ने बकरी का शिकार किया और स्वसुर जी कि तरफ बकरी को फैंक दिया. बाघ अपने स्वसुर के साथ बकरी को घर ले आया और सबने  ठाठ से बकरी का शिकार पका कर खाया.
घर लौट कर आदमी ने अपने घरवाली को बताया कि बाघ ने उसकी बड़ी खातिरदारी की. उसे हलवा, पूरी और बकरी का शिकार भी  खिलाया.

उसने अपनी पत्नी से कहा की हम भी ऐसा ही  करते हैं. वह अपनी पत्नी को लेकर एक मकान के पास गया. वहां मकान मैं बकरी व घोड़े बंधे हुवे थे. इत्तफाक से वह घोड़े वाले गोठ मैं चला गया और बाघ की ही तरह एक घोड़े को बाहर  फैंकने लगा. परन्तु घोड़े ने अपनी लातों से उसकी खूब मरमत कर डाली और वह वहां से अपनी मरमत करा व हाथ पैर तुड़वा कर वह  घर वापस लौटा.

कुछ दिन बाद उसे दूसरी लड़की की याद आई. वह भालू के घर गया. भालू ने उसकी खातिर करने की सोची. उसने अपनी पत्नी से कहा की वह कड़ाई गरम करे. जब कड़ाई गरम हो गई, तो भालू उसमे बैठ गया. भालू के कड़ाई मैं बैठने से उसकी  चर्बी गलने लगी. जब काफी चर्बी गल गई तो वह कड़ाई से उठ गया. औरत ने चर्बी से घी तेल बनाया और लजीज पकवान अपने पिता को परोसे. ख़ुशी ख़ुशी व अपने घर वापस लौटा और उसने अपनी पत्नी को बताया की उसकी दूसरी लड़की भी ससुराल मैं प्रसन्न है.
उसने अपनी पत्नी से कहा की वह भी भालू की तरफ अपनी चर्बी पिघलाएगा और वह दोनों मिलकर पकवान खाएँगे. पत्नी ने एक कड़ाई को गरम किया. आदमी उसमे बैठ गया. बैठते ही  उसने चिल्लाना शुरू कर दिया. औरत ने बड़ी मुस्किल से उसे कड़ाई से बाहर निकाला. उसके भेल अच्छी तरह सिक गए थे. कई दिन के इलाज के बाद जब वह ठीक हुआ तो उसे अपनी छोटी लड़की की याद  आ गई. वह गरुड़ के घर गया. गरुड़ ने स्वसुर से कहा की वह उन्हें दुनिया की सैर कराएगा. आदमी गरुड़ के एक पंख मैं बैठ गया. गरुड़ ने उसे दुनिया की सैर कराई तथा खूब खातिर की.

घर लौट कर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई. उसने कहा चलो मैं  तुम्हें भी दुनिया की सैर कराता हूँ. वह दो सूपे लाया उसने दोनों बाहोँ पर सुपे बाँध दिए. दोनों पति  पत्नी  एक पहाड़ी के उपर गए. उसने पत्नी से सूप मैं बैठ जाने को कहा. पत्नी सूप मैं बैठ गई. उसने  पहाड़ी से एक छलाँग लगाईं . होना क्या था. दोनों पहाड़ी  से नीचे गिर पड़े. उनको काफी चोट आई. दोनों किसी तरह घर वापस आये और दोनों ने तौबा  की की  वह अब किसी की नकल   नहीं करेंगे.(D.N.Barola)

नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए.

एक आदमी की तीन लड़कियां थी. जब वह विवाह योग्य हो गईं तो उनके पिता को उनके विवाह की चिंता हुई.  बहुत खोज बीन के बाद उसने अपनी बड़ी लड़की का विवाह एक बाघ से करा दिया और वह सुख से रहने लगी. कुछ समय बाद उसने अपनी दूसरी लड़की का विवाह भालू से करा दिया तथा  तीसरी लड़की के लिए योग्य वर की तलाश प्रारंभ कर दी. उसने तीसरी लड़की का विवाह गरुड़ से करा दिया.

कुछ समय बाद उस आदमी की पत्नी ने कहा - सुन्रते हो जी अपनी लड़कियों का हाल समाचार जानने के लिए लड़कियों के ससुराल क्यों नहीं जाते. आदमी ने कहा - भागवान तुम ठीक कहती हो. मैं कल ही उनके हाल समाचार जानने के लिए उनके घर जाता हूँ. वह सबसे  पहले सबसे बड़ी लडकी के ससुराल गया. उसके  आगमन पर बाघ बहुत प्रसन्न हुआ. बाघ ने अपने  स्वसुर की खूब खातिरदारी  की. शाम को बाघ ने अपने स्वसुर से कहा  चलिए एक बकरी का शिकार कर के लाते हैं फिर उसका मीट चाव से खायेंगे. वह शिकार करने चल दिए. उसने अपने स्वसुर  से कहा कि सामने वाले मकान से मैं एक बकरी बाहर  को फैकुंगा, आप उसे घसीट कर कुछ दूर सिसूड़े  के भूड़ मैं डाल देना. बाघ ने बकरी का शिकार किया और स्वसुर जी कि तरफ बकरी को फैंक दिया. बाघ अपने स्वसुर के साथ बकरी को घर ले आया और सबने  ठाठ से बकरी का शिकार पका कर खाया.
घर लौट कर आदमी ने अपने घरवाली को बताया कि बाघ ने उसकी बड़ी खातिरदारी की. उसे हलवा, पूरी और बकरी का शिकार भी  खिलाया.

उसने अपनी पत्नी से कहा की हम भी ऐसा ही  करते हैं. वह अपनी पत्नी को लेकर एक मकान के पास गया. वहां मकान मैं बकरी व घोड़े बंधे हुवे थे. इत्तफाक से वह घोड़े वाले गोठ मैं चला गया और बाघ की ही तरह एक घोड़े को बाहर  फैंकने लगा. परन्तु घोड़े ने अपनी लातों से उसकी खूब मरमत कर डाली और वह वहां से अपनी मरमत करा व हाथ पैर तुड़वा कर वह  घर वापस लौटा.

कुछ दिन बाद उसे दूसरी लड़की की याद आई. वह भालू के घर गया. भालू ने उसकी खातिर करने की सोची. उसने अपनी पत्नी से कहा की वह कड़ाई गरम करे. जब कड़ाई गरम हो गई, तो भालू उसमे बैठ गया. भालू के कड़ाई मैं बैठने से उसकी  चर्बी गलने लगी. जब काफी चर्बी गल गई तो वह कड़ाई से उठ गया. औरत ने चर्बी से घी तेल बनाया और लजीज पकवान अपने पिता को परोसे. ख़ुशी ख़ुशी व अपने घर वापस लौटा और उसने अपनी पत्नी को बताया की उसकी दूसरी लड़की भी ससुराल मैं प्रसन्न है.
उसने अपनी पत्नी से कहा की वह भी भालू की तरफ अपनी चर्बी पिघलाएगा और वह दोनों मिलकर पकवान खाएँगे. पत्नी ने एक कड़ाई को गरम किया. आदमी उसमे बैठ गया. बैठते ही  उसने चिल्लाना शुरू कर दिया. औरत ने बड़ी मुस्किल से उसे कड़ाई से बाहर निकाला. उसके भेल अच्छी तरह सिक गए थे. कई दिन के इलाज के बाद जब वह ठीक हुआ तो उसे अपनी छोटी लड़की की याद  आ गई. वह गरुड़ के घर गया. गरुड़ ने स्वसुर से कहा की वह उन्हें दुनिया की सैर कराएगा. आदमी गरुड़ के एक पंख मैं बैठ गया. गरुड़ ने उसे दुनिया की सैर कराई तथा खूब खातिर की.

घर लौट कर उसने अपनी पत्नी को सारी बात बताई. उसने कहा चलो मैं  तुम्हें भी दुनिया की सैर कराता हूँ. वह दो सूपे लाया उसने दोनों बाहोँ पर सुपे बाँध दिए. दोनों पति  पत्नी  एक पहाड़ी के उपर गए. उसने पत्नी से सूप मैं बैठ जाने को कहा. पत्नी सूप मैं बैठ गई. उसने  पहाड़ी से एक छलाँग लगाईं . होना क्या था. दोनों पहाड़ी  से नीचे गिर पड़े. उनको काफी चोट आई. दोनों किसी तरह घर वापस आये और दोनों ने तौबा  की की  वह अब किसी की नकल   नहीं करेंगे.(D.N.Barola)

Jew. Yo Kaath Meel Naan Chhinnan Sun Rakhi Chhi.. Aaj dubaar yad taazi kar haini..

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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शठे शाठ्यम समाचरेत - जैसे को तैसा. (Tit for Tat)

एक आदमी के दो पुत्र थे. उनमें से बड़ा भाई  बहुत चालाक था तथा दूसरा बुद्धू एवं बहुत सीधे स्वभाव का था. पिता की मृत्यु के बाद दोनों ने आपस मैं पिता की जायदाद का  बटवारा किया.   बड़े भाई ने ओखल कूटने का काम छोटे भाई को दिया तथा ओखल से कुटा अनाज स्वयं ले लिया . उसने कहा कि चक्की तू चलाएगा तथा उसका सामान मुझे मिलेगा. उसने गाय का भी बटवारा कर दिया और बटवारे मैं गाय का मुंह वाला हिस्सा छोटे भाई को दिया तथा पीछे का हिस्सा खुद ले लिया. एक कम्बल का  भी बटवारा हुआ. चालाक भाई ने कहा की कम्बल दिन मैं तेरा होगा  तथा रात को मेरा. चावल को भी छोटा  छिटेंगा तथा चावल बड़े भाई को मिलेगा.

छोटा  भाई दिन भर ओखल कूटता और ओखल का सारा सामान बड़े भाई का हो जाता. चक्की दिन भर छोटा भाई चलाता पर चक्की का सामान बड़े भाई के हिस्से आता. गाय को चारा देने का काम छोटे भाई का होता परन्तु दूध बड़े भाई को मिलता. कम्बल भी बड़ा भाई रात को ओड़ता और छोटा भाई ठण्ड से अकड़ता. छोटा भाई चावल छीट्ता, चावल बड़े भाई के हिस्से आते. छोटा भाई भूखा प्यासा रहता उसको फांका करना पड़ रहा था. पर वह क्या करता.

गाँव वालों को जब यह पता चला तो उन्हो़ने छोटे भाई से कहा की तुम आज से वैसा ही करोगे  जैसा हम बताएँगे उन्होंने कहा कि ओखल मैं अनाज  पत्थर  मिला कर कूटो. उसने ऐसा ही  किया. शाम को बड़ा भाई आया उसने पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया. उसने जबाब  दिया मेरी मर्जी. ओखल  कूटने का काम तो मेरा है.मैं जैसे भी कूटूं.  
चक्की चलाने मैं भी उसने चक्की मैं गेहूं के साथ बजरी भी पीस दी. शाम को जब बड़े भाई ने पूछा तो उसने जबाब दिया मेरी मर्जी . गाय को उसने ख़राब और कम चारा दिया तथा दूध दुहते समय वह गाय के मुंह मैं संटी से मारता रहा. इस कारण गाय ने दूध नहीं दिया. बड़े भाई ने पूछा कि  तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तो उसने कहा मुहं का हिस्सा तो मेरा है. मैं जो चाहूं करुँ. इसी प्रकार जब कम्बल की बारी आई  तो उसने शाम के समय कम्बल को पानी मैं भीगा दिया और बड़े भाई को दे दिया. बड़े भाई ने पूछा की कम्बल क्यों भिगाया तो उसने जबाब दिया मेरी मर्जी दिन मैं तो कम्बल मेरा होता है. चावल छीटने मैं छोटे भाई ने कंकर और पत्थर  मिला दिए. बड़े भाई ने पूछा की तुमने ऐसा क्यों किया. उसने जबाब दिया की मेरी मर्जी, चावल छीटने  का काम तो मेरा है.

अंत मैं बड़े भाई के समझ मैं आ गया कि बेईमानी से काम नहीं चलने वाला. उसने गाँव की पंचायत बुलवाई और पंचों ने सही बटवारा कर छोटे भाई को उसका हिस्सा दिलवा दिया. (D.N.Barola)    
   

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Barola ji namaskar, Bahut achchhi kahani hai sawal ye hai ki hamain hamara wastwik Hissha kab milega.

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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  यह भी कोई बात हुई (What it is)

  कौ लाटा कथा बाता,  सुण काला तू l
   अनुवैलै चोरी करी ,    दौड़ डूना  तू  l

                अर्थात

  गूंगे से कहा गया कि तू कथा बांच
  बहरे से कहा गया कि तू कथा सुन
  आनसिंह ने चोरी करी तो लंगडे
  से कहा गया कि दौड़ और चोर
  को पकड़ (By D.N.Barola)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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नि गाय अलमाड़.......(Ni gaya almar)


नि गाय अलमाड़, नि लाग गलमाड़ l
        अर्थात
बाहर निकलने पर ही परेशानी का पता लगता हैl

        *********

नि गे कचहरी, नि लाग स्वाट l

        अर्थात

कचहरी जाने पर ही शोटें लगते हैं या जुर्माना देना पड़ता हैl(D.N.Barola)




D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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चूहे का दामाद (Son-in-law of the Mouse)

एक बिल मैं एक चूहा रहता था. उसने सोचा की उसे भी बड़े बड़े लोगों से सम्बन्ध बनाने चाहिए. ऐसा करने से वह भी बड़े लोगों की जमात मैं सामिल हो जायेगा.

 
उसकी एक सुंदर कन्या थी. वह विवाह योग्य हो चुकी थी. उसने सोचा की किसी बड़े आदमी से इसकी शादी करवा कर खुद भी संभ्रांत जनों मैं सामिल हो सकता हूँ.
 


    वह सबसे पहले सूर्य के पास गया. और उससे अपनी लड़की की शादी का प्रस्ताव रखा. सूर्य ने कहाँ मैं कहाँ शक्तिशाली हूँ. मुझे तो फुर्सत भी नहीं है. दिन रात मैं घूमता रहता हूँ मैं तुम्हारी पुत्री का भरण पोषण कैसे करूंगा . फिर तुम्हारी पुत्री मेरी ज्वाला को नहीं सह पायेगी    अतः  तुम चन्द्रमा     के पास जाओ .



     वह चंद्रमा के पास गया. चंद्रमा ने कहा प्रस्ताव तो अच्छा है. परन्तु मेरे चेहरे पर तो दाग है. फिर मैं तो केवल रात को ही बाहर   निकलता हूँ. मुझसे  ज्यादा ताकतवर तो बादल है जो मुझे जब चाहें ढक लेते हैं. तुम बादल के पास जाओ.



     चूहा बादल के पास गया. और अपना प्रस्ताव बादल के सामने रखा. बादल ने कहा की मुझसे ज्यादा ताकतवर तो हवा है  वह जब चाहे  मुझे उड़ा कर ले जाती है. तुम हवा के पास जाओ.



      चूहा हवा के पास गया. उसने भी उसे टरका दिया और कहा की मुझसे ज्यादा तो यह शिलाखंड है यह जब चाहे मेरा रास्ता रोक देता है. फिर मैं तो एक स्थान पर ही पड़ा रहता हूँ. अतः तुम धरती के पास जाओ.



      वह धरती के पास गया धरती ने कहा मैं तुम्हारा प्रस्ताव कैसे स्वीकार कर सकती हूँ. मुझे तो पेड़ की जड़ें बाधे रखती हैं. अतः तुम पेड़ के पास जाओ.



      वह पेड़ के पास गया और उसने अपना प्रस्ताव रखा. पेड़ ने कहा मैं कहाँ शक्तिशाली हूँ. मेरी जडों को तो तुम कुतर कुतर कर सुखा देते हो. सच्चे  मानें मैं सबसे शक्तिशाली तो तुम हो.
      अब चूहे ने समझ लिया की चूहा ही सबसे शक्तिशाली होता है. अतः उसने बड़े ही धूम धाम  से अपनी लड़की का ब्याह एक खुबसूरत चूहे से करा दिया.(D.N.Barola)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Excellent article sir..

We feel fortunate and honored to have Senior journalist and Social workers with us through portal.

OUr new generation is getting themselves updated with your articles on Uttarakhand, which are exclusive in nature.

Thank u once again. An anticipation of with many such articles in coming posts.

reards,

M S Mehta

चूहे का दामाद

एक बिल मैं एक चूहा रहता था. उसने सोचा की उसे भी बड़े बड़े लोगों से सम्बन्ध बनाने चाहिए. ऐसा करने से वह भी बड़े लोगों की जमात मैं सामिल हो जायेगा.

 
उसकी एक सुंदर कन्या थी. वह विवाह योग्य हो चुकी थी. उसने सोचा की किसी बड़े आदमी से इसकी शादी करवा कर खुद भी संभ्रांत जनों मैं सामिल हो सकता हूँ.
 


    वह सबसे पहले सूर्य के पास गया. और उससे अपनी लड़की की शादी का प्रस्ताव रखा. सूर्य ने कहाँ मैं कहाँ शक्तिशाली हूँ. मुझे तो फुर्सत भी नहीं है. दिन रात मैं घूमता रहता हूँ मैं तुम्हारी पुत्री का भरण पोषण कैसे करूंगा . फिर तुम्हारी पुत्री मेरी ज्वाला को नहीं सह पायेगी    अतः  तुम चन्द्रमा     के पास जाओ .



     वह चंद्रमा के पास गया. चंद्रमा ने कहा प्रस्ताव तो अच्छा है. परन्तु मेरे चेहरे पर तो दाग है. फिर मैं तो केवल रात को ही बाहर   निकलता हूँ. मुझसे  ज्यादा ताकतवर तो बादल है जो मुझे जब चाहें ढक लेते हैं. तुम बादल के पास जाओ.



     चूहा बादल के पास गया. और अपना प्रस्ताव बादल के सामने रखा. बादल ने कहा की मुझसे ज्यादा ताकतवर तो हवा है  वह जब चाहे  मुझे उड़ा कर ले जाती है. तुम हवा के पास जाओ.



      चूहा हवा के पास गया. उसने भी उसे टरका दिया और कहा की मुझसे ज्यादा तो यह शिलाखंड है यह जब चाहे मेरा रास्ता रोक देता है. फिर मैं तो एक स्थान पर ही पड़ा रहता हूँ. अतः तुम धरती के पास जाओ.



      वह धरती के पास गया धरती ने कहा मैं तुम्हारा प्रस्ताव कैसे स्वीकार कर सकती हूँ. मुझे तो पेड़ की जड़ें बाधे रखती हैं. अतः तुम पेड़ के पास जाओ.



      वह पेड़ के पास गया और उसने अपना प्रस्ताव रखा. पेड़ ने कहा मैं कहाँ शक्तिशाली हूँ. मेरी जडों को तो तुम कुतर कुतर कर सुखा देते हो. सच्चे  मानें मैं सबसे शक्तिशाली तो तुम हो.
      अब चूहे ने समझ लिया की चूहा ही सबसे शक्तिशाली होता है. अतः उसने बड़े ही धूम धाम  से अपनी लड़की का ब्याह एक खुबसूरत चूहे से करा दिया.(D.N.Barola)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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गोलू देवता (Golu Devta)


ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय के पुत्र हलराय राजा राज्य करते थे. यह बहुत पहले की बात है. उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे. एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए. शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए. और विश्राम करने लगे. उन्हो़ने अपने दीवान से पानी की मांग की. पानी पीते समय सोने के गडुवे मैं उन्हें सात हाथ लम्बा सुनहरा बाल दिखाई दिया. राजा कुछ आगे बड़े तो उन्हो़ने देखा की एक सुंदरी दो लड़ते  हुए साडोँ को छुडा रही थी. राजा उसकी वीरता व सौंदर्य पर मुग्ध हो गए. राजा ने सुंदरी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा. सुंदरी कालिंका के पिता रिखेशर ने अपनी बेटी का विवाह सहर्ष स्वीकार किया.

     कालांतर मैं कालिंका गर्भवती  हो गयी. राजा की अन्य सातों रानियों को बहुत जलन हुई. उन्हो़ने सोचा की अब उनकी पूँछ नहीं रहेगी. राजा कालिंका को ही प्यार करेगा. अतः उन्हो़ने किसी भी प्रकार उसके गर्भ को नष्ट   करने की सोची.  प्रसव के दिन राजा शिकार खेलने गया था. सातों रानियों  ने बहाना बनाकर कालिंका की आंखों मैं पट्टी बाँध दी. उससे रानियों ने कहा की तुम मूर्छित न हो जाओ इसलिए पट्टी बाँध रहे हैं. बच्चा होने पर फर्स पर छेद करके बच्चे को नीचे गोठ मैं डाल दिया ताकि बकरे बकरियों द्बारा उसे मार दिया जाय. रानी के आगे उन्हो़ने सिल बट्टा रख दिया. बच्चा  जब गोठ मैं भी जिन्दा रहा तो रानियों ने बच्चे को सात ताले वाले बक्से मैं रख कर काली नदी मैं डाल दिया.

     मां कालिंका ने जब अपने सामने सिल बट्टा देखा तो वह बहुत रोई उधर सात ताले वाले बक्शे मैं बंद बच्चा धीवर कोट जा पहुंचा धीवर के जाल मैं वह बख्शा फंस गया. धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा. उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया. इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा माना ने  .बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया. कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनोँ से दूध की धार फूट   पड़ी. बालक  नए नए चमत्कार दिखाता गया. उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी.  

     एक दिन गोरिया अपने काठ के घोडे के साथ काली गंगा के उस पार घूम रहा था. वहीँ रानी कालिंका अपनी सातों सौतों  के साथ नहाने  के लिए आइ हुई थीं. बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने काठ के घोडे को पानी  पिलाने लगा.रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है. कहीं काठ का निर्जीव घोड़ा भी पानी पी सकता है. गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा  पैदा हो सकता है तो काठ का घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता. यह बात राजा  हलराय तक पहुँचते देर न लगी. राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है.  गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है. कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई उधर. राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी.

     राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया और खुद सन्यास को चले गए.
मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी. हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू, द्वा गोलू , घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं.  उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम  देवता की बहिन थी.

   आज भी भक्तजन कागज़ मैं अर्जी लिख कर गोलू मंदिर मैं पुजारी जी को देते हैं. पुजारी लिखित पिटीशन   पढ़कर गोल्ज्यू को सुनाते हैं. फिर यह अर्जी मंदिर मैं टांग दी जाती है. कई लोग सरकारी स्टांप पेपर मैं अपनी अर्जी लिखते हैं. गोलू देवता न्याय के देवता हैं. वह न्याय करते हैं. कई गलती करने वालों को वह चेटक भी लागाते हैं. जागर मैं गोलू देवता किसी के आन्ग (शरीर) मैं भी आते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर  मैं घंटियाँ  बाधते हैं. तथा बकरे का बलिदान भी देते हैं. मंदिर मैं हर जाति के लोग शादियाँ भी सम्पन्न कराते हैं.(D.N.Barola)

Golu Fevta's Temple at Chitai



Golu Devta Chitai-inside view


Chitai Golu Temple-Petitions filed by the devotees.


Bells offered by the devotees after fulfilment of their wishes.
Golu Mandir, Chitai (Almora)


Golu Temple, Ghorakhal (Nainital) (By D.N.Barola)



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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JAI GOLU DEVTA KI...

OUR MEMBER MUST READ THE STORY OF GOLUE DEVTA AND VIEW THE EXCLUSIVE PHOTOS PROVIDED SH. D N BADOLA JI.




गोलू देवता


ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय के पुत्र हलराय राजा राज्य करते थे. यह बहुत पहले की बात है. उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे. एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए. शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए. और विश्राम करने लगे. उन्हो़ने अपने दीवान से पानी की मांग की. पानी पीते समय सोने के गडुवे मैं उन्हें सात हाथ लम्बा सुनहरा बाल दिखाई दिया. राजा कुछ आगे बड़े तो उन्हो़ने देखा की एक सुंदरी दो लड़ते  हुए साडोँ को छुडा रही थी. राजा उसकी वीरता व सौंदर्य पर मुग्ध हो गए. राजा ने सुंदरी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा. सुंदरी कालिंका के पिता रिखेशर ने अपनी बेटी का विवाह सहर्ष स्वीकार किया.

     कालांतर मैं कालिंका गर्भवती  हो गयी. राजा की अन्य सातों रानियों को बहुत जलन हुई. उन्हो़ने सोचा की अब उनकी पूँछ नहीं रहेगी. राजा कालिंका को ही प्यार करेगा. अतः उन्हो़ने किसी भी प्रकार उसके गर्भ को नष्ट   करने की सोची.  प्रसव के दिन राजा शिकार खेलने गया था. सातों रानियों  ने बहाना बनाकर कालिंका की आंखों मैं पट्टी बाँध दी. उससे रानियों ने कहा की तुम मूर्छित न हो जाओ इसलिए पट्टी बाँध रहे हैं. बच्चा होने पर फर्स पर छेद करके बच्चे को नीचे गोठ मैं डाल दिया ताकि बकरे बकरियों द्बारा उसे मार दिया जाय. रानी के आगे उन्हो़ने सिल बट्टा रख दिया. बच्चा  जब गोठ मैं भी जिन्दा रहा तो रानियों ने बच्चे को सात ताले वाले बक्से मैं रख कर काली नदी मैं डाल दिया.

     मां कालिंका ने जब अपने सामने सिल बट्टा देखा तो वह बहुत रोई उधर सात ताले वाले बक्शे मैं बंद बच्चा धीवर कोट जा पहुंचा धीवर के जाल मैं वह बख्शा फंस गया. धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा. उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया. इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा माना ने  .बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया. कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनोँ से दूध की धार फूट   पड़ी. बालक  नए नए चमत्कार दिखाता गया. उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी. 

     एक दिन गोरिया अपने काठ के घोडे के साथ काली गंगा के उस पार घूम रहा था. वहीँ रानी कालिंका अपनी सातों सौतों  के साथ नहाने  के लिए आइ हुई थीं. बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने काठ के घोडे को पानी  पिलाने लगा.रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है. कहीं काठ का निर्जीव घोड़ा भी पानी पी सकता है. गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा  पैदा हो सकता है तो काठ का घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता. यह बात राजा  हलराय तक पहुँचते देर न लगी. राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है.  गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है. कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई उधर. राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी.

     राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया और खुद सन्यास को चले गए.
मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी. हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू, द्वा गोलू , घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं.  उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम  देवता की बहिन थी.

   आज भी भक्तजन कागज़ मैं अर्जी लिख कर गोलू मंदिर मैं पुजारी जी को देते हैं. पुजारी लिखित पिटीशन   पढ़कर गोल्ज्यू को सुनाते हैं. फिर यह अर्जी मंदिर मैं टांग दी जाती है. कई लोग सरकारी स्टांप पेपर मैं अपनी अर्जी लिखते हैं. गोलू देवता न्याय के देवता हैं. वह न्याय करते हैं. कई गलती करने वालों को वह चेटक भी लागाते हैं. जागर मैं गोलू देवता किसी के आन्ग (शरीर) मैं भी आते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर  मैं घंटियाँ  बाधते हैं. तथा बकरे का बलिदान भी देते हैं. मंदिर मैं हर जाति के लोग शादियाँ भी सम्पन्न कराते हैं.(D.N.Barola)

Golu Fevta's Temple at Chitai



Golu Devta Chitai-inside view


Chitai Golu Temple-Petitions filed by the devotees.


Bells offered by the devotees after fulfilment of their wishes.
Golu Mandir, Chitai (Almora)


Golu Temple, Ghorakhal (Nainital) (By D.N.Barola)




D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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Syale-Bikhauti fair of Dwarahat



Dwarahat is a place important from the archaeological point of view. Five Km. from Dwarahat is Vimandeshwar, which is also called Brahmandeshwar is the place for this important Fair. It is hardly 5 Kms. away from Dwarahat, whereas Dwarahat is hardly 37 Kms. from Ranikhet on Ranikhet Karnaprayag Marg.  Every year in the last Gate of Chaitra month, this fair is held at Vimandeshwar in the night. In the Fair Lord Shiva is worshipped. This is called Bikhauti fair. A fair is also held at Dwarahat Bazar, on the first Gate of Vaishakh month. This is called Syalde Fair. Thus both the Fairs combined are called the Syalde Bikhauti Fair. It is also called the Dwrain Fair. The Fairs are held on Ist Gate (14) April Called Chhoti Syalde and Vaisakh 2 and 3 gate (April 15 & 16) called Badi Syalde.

The month of Chaitra is the month of Folk dances People dance throughout the month and they sing the folk songs of Kumaon. Such folk songs, like ‘O Bhina Kaskai janu Durhata” ‘O Brother-in-law (Jija), how to go to Dwarahat fair’. The Fair is ordinarily held at the house of the village Pradhan.



The Syalde-Bikhauti fair has a history which dates back to 14th century. In the 14th century the fair started during the regime of Katyuri Kings. It is said that once two groups started fighting while worshipping Maa Seetala Devi. The defeated Group’ Chief’s head was chopped off by the winners. The head was dumped in the earth. The place where the head was dumped has an Ora (stone) as the remembrance. People throng around the stone called Ora. People come to Ora stone fight from the morning to evening. They hit the Ora (stone) with Dandas.  (Logs).This  is called  Ora Bhaitna. Latter for the sake of convenience the villages were devided in three groups, called Aal, Garakh and Naujyula People come to meet the Ora (stone) from the noon. These three groups come in different attires with Dhol-Nagre, Ransing and Flag (Dhwaja). The Aal group comes from the central street of old Dwartahat market, whereas the Garakh and Naujyula groups come from a different way.  The chief of the different groups ordinarily is a Thokdar.  Since Syalde fare is connected with Sheetla Maa people come to Dwarahat to visit Sheetla Pushkar lake, which has now dried up and is situated at the heart of the city. Once upon a time this was a beautiful Lake and used to be covered by lotus flowers. On the first day of Syalde fair, the Baat pujai  (worshipping ), is done by Naujyuula group. After prayers and worshipping of Seetla Devi the Fair starts and a Bagwal is held.

The fair attracts large crowds. The non-resident Doriyals (residents of Dwarahat) also come to witness the fair. Jhora and Bhagnaul are sung at this occasion, for which artists start coming to Dwarahat. Villagers sing songs of prayer to the gods. The Fair is also called ‘Darre ka Mela’

The specialty of the fair is Jalebi, (Sweet) which is sold in a big way. The Syalde Bikhauti fair has been successful in retaining its old colour and gaity to a large extent. (D.N.Barola)

 

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