Author Topic: Articles By Shri D.N. Barola - श्री डी एन बड़ोला जी के लेख  (Read 150963 times)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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काला (बहरा ) और बीमार (Deaf and the Patient)

एक काला (बहरा) अपने पड़ोसी का कुशल छेम पूछने जाता है. वह बिलकुल भी सुन नहीं सकता था. अतः मन ही मन मैं सोचता है कि बीमार के पास जाकर क्या कहूंगा. सबसे पहले मैं आवाज लगाऊंगा. बीमार कहेगा बैठो मैं कहूँगा तबियत खराब हो रही है. वह बीमारी के बारे मैं बताएगा. मैं कहूंगा दवाई पानी खाओ ठीक हो जाओगे  मैं पूछूँगा किस डाक्टर का इलाज चल रहा है. वह डॉक्टर का नाम बताएगा मैं कहूंगा डॉक्टर तो अच्छा है जल्दी ठीक हो जाओगे. क्या खुराक बताई है. वह कोई अच्छी चीज़ बताएगा  यही सोचते सोचते काला डॉक्टर के पास पहुँच जाता है.

Bed ridden Man

     काला बाहर से आवाज लगाता है- शेरुआ ओ शेरुआ कस छै.
बीमार चिढ़ कर दूसरी तरफ मुहं फेर लेता है. सोचता है की काला दिमाग खायेगा.
 काला कमरे के अंदर पहुंचता है और कहता है -काँ छै रे सेरुआ.
बीमार कहता है -बाज़ार मैं सिनेमा देख रहा हूँ. तू भाग यहाँ से.
काला पूछता है- ठीक छू ठीक छू. फिर काला पूछता है - बीमारी के छू .
बीमार कहता है-मरनी बीमारी छू. (मरने की बिमारी है)
काला-कोई बात नहीं ठीक हो जाओगे. काला- को डॉक्टरक इलाज  चल रौ.
बीमार - यमराजक इलाज  चल रौ
काला - भल डॉक्टर छू (अच्छा डॉक्टर है) मोहिनी की इजा का इलाज भी उसी ने किया था. खान खुराक के बते रै. बीमार-माट ढुंग खा नयूँ. (मिटटी पत्थर खा रहा हूँ)
काला- ठीक छू भली दूकान बटी लाया
बीमार और चिड जाता है. और कहता है दो चार दिन का मेहमान हूँ जल्दी मर जाऊँगा.
काला कहता है भल भै भल भै  ( अच्छा है अच्छा है) (D.N.Barola)

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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प्रेमी - छम्म छिया छम्म (Premi-chhamm chhiyaa chamm)

    एक औरत अपने प्रेमी से मिलने जंगल जाती थी. वह उसके लिए अच्छे अच्छे पकवान बना कर ले जाती थी. उनकी जंगल मैं रोज मुलाकातें  होती थी एक दिन उसकी जेठानी   को उस पर शक    हुवा   वह उसका  पीछा  करने लगी उसने देखा  कि वह पकवान बनाकर  बांज  के ठूंठ  पर रख  रही है. जिठानी  ने वह पकवान खुद खा लिया. प्रेमी जब आया  तो उसे वहाँ कुछ भी नहीं मिला.

       घर पर प्रेमिका  ओखल  कूट  रही  थी. ओखल कूटते   समय षियू  की  आवाज  आती है. जिठानी  भी आँगन  मैं चावल  छीट   रही थी. चावल छीटने  मैं सूप  से छम्म की आवाज आती  है. प्रेमी हारमोनियम  बजा  रहा था. उसने हारमोनियम बजाते  हुए  पूछा . कहाँ धरी  आयो  रे, सा रे गा  माँ पा  कहाँ धरी आयो  रे , सा  रे गा  माँ पा. प्रेमिका ने  ओखल कूटते हुए जबाब  दिया .  बांज के  ठूंठ  मैं षियू . बाज  के ठूंठ मैं षियू  . जिठानी ने  सूप  मैं चावल  छीटते   हुए कहा  छम  छिया छम्म रोज रोज तुम खां  छा  आज  खै  आया      हम, छम छिया  छम  छम छिया छम्म रोज रोज तुम खां छा  आज खै  आया हम,  छम छिया  छम( रोज रोज तुम खाते  हो, आज पकवान  हमने  खा लिए. )(D.N.Barola)

Harmonium


Okhal (Mortar with pestal)


Soop (winnoing basket)

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भैंस, घोड़ा और आदमी (Bufallow, Horse and the Man)

एक  भैंस और घोड़े मैं मित्रता  थी दोनों साथ साथ घास चरते थे.  अचानक उनकी मित्रता शत्रुता मैं बदल गई. भैंस ने घोड़े को सींगों से मार मार कर अधमरा कर दिया. अतः घोड़ा मदद के लिए आदमी के पास गया  आदमी ने कहा कि भैंस बलशाली है, मैं उसे कैसे हरा सकता हूँ.फिर इससे मुझे क्या फायदा होगा. घोड़े ने समझाया कि भैंस तुम्हें दूध देगी. दूध पीकर तुम भी ताकतवर बन जाओगे.  पर मैं भैंस को कैसे जीतूंगा, आदमी ने पूछा. घोड़े ने कहा कि तुम्हारे लिए यह कठिन कार्य नहीं है.  तुम मेरी पीठ पर बैठना और डंडे से भैंस को पीटपीट कर अधमरा कर देना. आदमी ने ऐसा ही किया. आदमी ने भैंस को पीट पीट कर रस्सी से बाँध दिया. और उसे एक पेड़ से भी बाँध दिया.

अब घोड़े ने आदमी से जाने की इजाजत मांगी.  आदमी हंसने लगा, बोला अब मैं तुम्हारी सवारी करूंगा और भैंस का दूध भी पीऊँगा. आदमी ने कहा मुझे क्या पता था कि तुम सवारी के काम भी आ सकते हो. अब मेरे साथ रहो. आदमी ने उसे भी रस्सी से बाँध दिया. (D.N.Barola)


Horse


Buffaloe

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Deep Joshi of Pithoragarh gets prestigious Magsaysay award



We salute the renowned Indian activist Deep Joshi of Pithoragarh, who has been awarded the prestigious Magsaysay Award for 2009. The award has been awarded to him for his pioneering work for the development of rural communities. The award is considered to be the equivalent of the Noble Peace Prize. The Board of Trustees of Ramon Magsaysay Award has in a statement from its Manila Headquarter said that the Award has been granted to 62 year old Deep Joshi for improving the working conditions of thousands of rural people through his NGOs.  He has been working amongst the rural people from the core of his heart as also by combining the activities of his brain for their welfare.

     Joshi, after declaration of the award has said that he is happy and has given credit of this award to the rural people who worked hard with him. He said that the need of the hour is that educated people should go to the rural areas to work for the rural population. Joshi had his Master’s Degree from Massachusetts Institute of Technology (MIT), Master’s Degree in Management for Sloan School MIT. He also worked with System Research Institute, The Ford Foundation etc. He has an experience of 30 years in working in the rural areas. He has also been advising the Government on eradication of poverty. He is also the co-founder of Professional Assistance for Development Action (PRADAN). For the present he is honorary independent consultant for this NGO. Joshi has been awarded the title of Development Professional

     His early childhood was humble. He used to go to the Jungle with the cows. His younger sister Saroj Ojha and her husband Dr. A.B. Ojha were glad to hear the news about Joshi’s getting the Magsaysay award. Deep Joshi had his early education in Gartir Primary School. He went to Nainital for his High School and Intermediate education. He graduated from Nainital itself. In the meanwhile he was selected for Moti Lal Nehru Engineering College. He got Gold Medal in Engineering. He became a Lecturer in this College itself. Latter he went to USA to Study MBA in Mega Technical Institute. He got married their. Presently he is residing at Gurgaon (Delhi). He had been to Almora to meet his sister four years back. His father Hari Krishna Joshi had purchased an Estate at Puryag, which is near Gartir.  Joshi’s five brother and 2 sisters spent their early life at this Estate. At present in this Estate Deep’s elder brother Bhagwati Prasad lives. His younger brother Chandra Shekhar is Chief Conservator of Forest at Maharashtra, whereas another brother Vinod Joshi is Bank Manager in Shahjahanpour.

      A sense of ecstasy prevails amongst the hill people on this spectacular achievement of Deep Joshi. He has filled the hill people with a sense of pride by his winning the Asia’s Noble Peace Prize, i.e. the Magsaysay award. (D.N.Barola)

sanjupahari

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PM felicitates Magsaysay winner Deep Joshi

Prime Minister Manmohan Singh today congratulated social activist Deep Joshi for winning the Ramon Magsaysay award and said his work will inspire others to the cause of rural empowerment.

Lauding Joshi for leadership and innovation in the area of rural development, Singh said he has done the nation proud.

Joshi's work would inspire others to dedicate their lives to the cause of rural empowerment and uplift through voluntary service, he said.

Joshi, who has done pioneering work for "development of rural communities", was yesterday named along with five others for the prestigious award considered as Asia's equivalent of the Nobel Prize.

D.N.Barola / डी एन बड़ोला

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गगन चुम्बी पेड़ों पर बंदरों  की तरह चढ़ पेड़ काटते लकड़हारे(Gaganchumbi peroan par, bandaroan kee tarar chad ped kaatte lakarhare)

 रानीखेत के व्यस्ततम गाँधी चौक पर एक दुकान के अंदर धंसा हुवा एक चीड के  विशालकाय पेड़ को काटने की चुनौती तीन लकड़हारों को मिली. दुकान के ऊपर बिजली का जिंदा तार होने   के बाबजूद  गगन चुम्बी ऊंचाई पर एक एक कर पेड़ को सुबह से शाम तक काटने का विकट कार्य ७० वर्षीय बिशन राम और प्रताप राम तथा ५६ वर्षीय किशन राम ने आंखिर कर ही  दिखाया.      वे पीठ मैं कमीज के कालरों के सहारे कुल्हाडी लटकाकर मजबूत  रस्सी और सरियों की कीलें  लेकर दरख्तों की  चोटी पर चढ़ जाते हैं. वहां कीलों और रस्सियों से शाखाओँ  को बाँध  कर काटते हैं और इन्हें खाली जमीन पर रस्सियों के सहारें जमीन पर  छोड़ते हैं.   इस प्रकार पूरे पेड़ को काट दिया जाता है. पिछले तीन दिनों मैं वह दो पेड़ काट चुके हैं. २५ साल पहले उन्हें सर्कस मैं आमंत्रण मिला था पर वह नहीं गये . इस समय तीनों इंदिरा बस्ती मैं लकडी काट कर अपना गुजारा कर रहें हैं.

जोखिम भरे इस कार्य को इतनी बड़ी उम्र मैं  भी करते रहना इनकी नियति है.  ऐसे जाबाजों को सरकार की मदद की दरकार है.(D.N.Barola)




























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जागर



रात्रि जागरण करके देवी देवता की मनौती या प्रेत बाधा निवारण हेतु जगरिये  द्वारा गाई जाने वाली गाथायें जिनके गाने से देव या प्रेत चेतन होता है जागर कहा जाता है. जागर दो किस्म के होते हैं. एक जो कुल देवता जैसे नर सिंह या गोलू देवता का होता है और दूसरा जागर पितरों की शांति के लिए किया जाता है, जिसमे पितर किसी भी परिवार के सदस्य के शरीर मैं आते हैं जागर     मैं एक मुख्य  कथा गायक होता है जिसे जगरिया कहा जाता है. जगरिया के साथ दो या दो से अधिक सहायक होते हैं जिन्हें भगार या हेबार कहते हैं जो की कथा गायन के मध्य मैं हेव या भाग लगाते हैं. जिसके शरीर मैं भूत अवतरित होता है उसे डंगरिया (कांपने वाला) कहा जाता है. सह्गायाकोँ मै एक या ज्यादा आदमी सहवाद्य यंत्रों को बजाते हैं जागरों मैं ढोल, भुर्यो (मुरज), नगाड़ा, ढोलक, हुडुक, थाली, परात, मिजुरा आदि वाद्य यन्त्र बजाये जाते हैं.  




      गायक जगरिया मुख्य वाद्य यन्त्र के साथ संज्यवाली, ईशवंदना, सृष्टी वर्णन  आदि के पश्चात् मुख्य कथा आरम्भ करता है. कथा का मुख्य उद्देश्य श्रो़ताओं का मनोरंजन करना एवं कथा के प्रति श्रो़ताओं की आस्था उत्पन्न करना होता है देव या भूत से से सम्बन्ध  कथाओं  मैं  वीरता , संघर्ष  , युद्ध , करुणा , अन्याय  आदि  प्रसंगों  पर  गायक  भूत  विशेष  को  ललकार  कर  आवाहन   करता  है . साथ  ही  गायन   वाद्य  यंत्रों  मैं  एकाएक  द्रुतलय  आ  जाती  है .गायन  वादन  की  इसी  मिश्रित  झंकार   के  मध्य  स्त्री  अथवा  पुरुष   घर  देव  का  भूत  अवतरित  हो  आता  है  तथा  वह  नृत्य  करने  लग  जाता  है अवतरित ब्यक्ति से नाराजगी या अपमृत्यु का कारण अपने कष्टों, इच्छा पूर्ति आदि के बारे मैं पूछा जाता है. तथा इन सबका निवारण तथा  निराकरण के बाते मैं भी पूछा जाता है. देव इच्छा पूर्ति के बाद आशीर्वचन देता है.और भूत अपनी अपमृत्यु के बारे मैं बताता   है उस भटकती आत्मा की शान्ति के लिए उसे वस्त्र, खाद्य आदि, बलि आदि देने का वचन दिया जाता है और गुरु (जगरिया) द्बारा जाल काटकर उस भटकती आत्मा को शांत कर उसके पुरखों के साथ भेज दिया जाता है. जाल लकडी या ग्लास के बर्तन पर बनाया
जाता है और पहले भूत, फिर सभी परिवारिजनोँ द्वारा उसके तागे काटे जाते हैं इस क्रिया को जाल काटना कहते हैं. स्थानीय देवी-देवताओं के अवतरण पर उसे छेप्रछा  (छेम्रक्षा ) करने को कहा जाता है और बीमारी के निवारण का उपाय पूछा जाता है. देवता के आशीर्वचन देने अवं उपाय बतलाने के बाद उसके पूजा कर जगरिया उसे कैलास या अपने घर जाने को कहते हैं.(D.N.Barola))


Jagar ki Dhuni

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चूहे की बेवकूफी Foolish Mouse


   चूहा था एक दिन उसे एक मटर का दाना मिला उसने उसे खेत मैं बो दिया. अपने बिल पर पहुँचने पर उसे अफसोच  हुआ  कि  उसने  मटर  तो  खाया  नहीं  अपित  बो  दिया. वह उसी जगह गया और मटर से बोला कि कल तक तुममें अंकुर नहीं फूटा तो मैं तुझे काले बैल के खुरों से कुचलवा दूंगा. दुसरे दिन चूहा उस स्थान पर पहुंचा और देखा कि मटर मैं अंकुर आये हुवे थे उसने मटर से कहा कि अगर तू कल तक पौधा नहीं बना तो तुझे  काले बैल से चरवा डालूँगा  दुसरे दिन मटर पौधा बन चुका था. फिर उसने मटर से कहा की कल तक तू फला नहीं तो तुझे काले बैल से चरवा डालूँगा.अगले दिन वह फिर मटर के पास पंहुंचा तो मटर के पौधे मैं फलियाँ लगी हुई थी. चूहे  ने   फलियों को भर पेट खाया  चूहा अपने बिल मैं जाने लगा परन्तु ज्यादा फलियाँ खाना की वजह से उसका पेट बड़ गया था. अतः वह बिल मैं नहीं जा सका. अतः वह लोहार के पास गया. लोहार से बोला तू मेरा पेट फाड़ दे ताकि मैं अपने बिल के अन्दर जा सकूं. लोहार ने अनसुनी कर दी और अपना काम करता रहा.चूहा राजा के पास गया और बोला कि हे राजा लोहार को अपने राज्य से बाहर निकाल दो. राजा बोला कि मैं तेरी खातिर  लोहार को बाहर नहीं निकालूँगा. चूहा गुस्से मैं आकर रानी के पास गया और रानी से बोला के राजा मेरा काम नहीं करता अतः तुम राजा को छोड़ दो. रानी ने कहा कि मैं चूहे की खातिर राजा को नहीं छोडूंगी. चूहा सांप के पास गया और बोला हे सांप तुम रानी को डस दो. क्योंकि उसने मेरा  काम नहीं किया. सांप बोला कि मैं चूहे की खातिर ऐसा काम नहीं करूंगा. चूहा लाठी के पास गया और बोले कि हे लाठी तू सांप के उपर गिर जा. लाठी ने कहा कि चूहे के खातिर मैं ऐसा काम नहीं करूंगा. चूहा आग के पास गया और कहा कि तू लकडी को जला दो क्योंकि वह मेरी बात नहीं मानता. आग ने कहा मैं चूहे कि खातिर ऐसा काम न कहीं करूंगी . वह फिर तालाब के पास गया और बोला तालाब तालाब तू आग को बुझा दे. तालाब ने कहा कि  मैं चूहे कि खातिर ऐसा काम नहीं  करूंगी वह तालाब के पास गया और बोला तालाब तलाबं तू आग को बुझा दे तालाब ने कहा कि वह चूहे की खातिर आ़ग को नहीं बुझायेगा चूहा हाथी के पास गया और बोला हाथी हाथी तुम इस तालाब को सुखा दो क्योंकि तालाब मेरा कहना नहीं मानता. हाथी बोला कि वह चूहे की खातिर तालाब को नहीं सुखायेगा. जल भुन कर चूहा रस्सी के पास गया और बोला रस्सी रानी तू हाथी को  बाँध   दे रस्सी मजबूत थी सोच कर बोली कि मैं हाथी को बाँध दूंगी हाथी डर गया बोला मैं तालाब को सुखा डालूँगा. तालाब हाथी से डर गया बोला मैं हाथी के पेट मैं समाने के बजाय आग को बुझा दूंगा. आग डर गयी बोली कि मैं लाठी को जला डालूंगी. लाठी भी डर गयी बोली मैं सांप के उप्पेर गिरने को  तैयार हूँ. साँप डर कर बोला कि मैं रानी को काट दूंगा. रानी डर गयी  और बोली मैं राजा को छोड़ दूंगी. रानी से परित्यक्त होने के बजाय राजा ने लोहार को देस निकाला करने का फैसला किया. लोहार डर कर चूहे का पेट तराशने को तैयार हो गया. लोहार ने चूहे का पेट तराशा और चूहा मर गया.(D.N.Barola)

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रामी बौराणी Rami Baurani

भारत की पवित्र भूमि पर एक से  बड़कर एक वीरांगना पैदा हुई हैं.  उनमें से एक थी रामी बौराणी.  उसका पति १२ वर्ष तक दुश्मनों से लड़ता रहा और उसकी  पत्नी उसका इन्तजार करती रही. १२ वर्ष बाद पति घर आता है. वह पत्नी से मिलने साधू वेश मैं जाता है. पत्नी उस समय खेतों मैं काम कर रही थी. वह साधू वेस धारण कर पत्नी से उसके परिवार व पति के बारे मैं पूछता है. रामी के यह कहने पर की उसका पति १२ साल से घर नहीं आया है. साधू वेस धारी  उसका पति उसके सामने प्रस्ताव रखता है कि वह पति को छोड़ कर उसके साथ रहे. तथा उसे नाना प्रकार के प्रलोभन देता  है. वह कहता है कि जो पति १२ साल तक नहीं  आया वह अब क्या आयेगा. पतन्तु रामी उसे  फटकारती है और उसके  साधू वेस को धिक्कारती है.

कुछ समय बाद साधू रामी के दरवाजे  पर  आता है और भोजन करने की इच्छा प्रकट करता है. रामी साधू को अतिथि मान उसको भोजन परोसती है. साधू रामी से उसी थाली मैं भोजन परोसने के लिए कहती है जिसमे रामी का पति खाता था. रामी साफ़ इनकार कर देती है. और कहती है कि खाना खाना है तो खाओ नहीं तो वापस चलो जाओ. इस पर साधू अपने वास्तविक रूप मैं आ जाता है अर्थात वही रामी का पति होता है.(D.N.Barola)

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  राजा हरीश चन्द्र देव उर्फ़ हरू 

हरु कुर्मांचल का  कल्याणकारी राजा था. उसका नाम इतिहास के पन्नों मैं, शिलालेखों मैं तथा  प्रमाणिक दस्तावेजों मैं कही भी नहीं पाया जाता परन्तु इस  धर्मात्मा एवं    एवं  परोपकारी  राजा का नाम कुमाउनी  लोगों के मानस   पटल   पर विराजमान   है. आज भी उसका नाम स्मरण करते ही लोक गायकों के कंठ से यह वाणी निकलती है

औनोँ हरु हर पट्ट, जौना हरु खड़ पट्ट

अर्थात जब हरु आता है तो अपने साथ धन संपदा भी लाता है धरती हरी भरी हो जाती है चारों ओ़र हरियाली ही  हरियाली दिखती है परन्तु उसके जाने पर चारों तरफ उजाड़ हो जाता है  दुःख दरिद्र का वास हो जाता है.

बहुत पहले की बात है कुर्मांचल के पूर्वी अंचल मैं सुई (चम्पावत) के पास एक राजा राज्य  करता था. उसका नाम हरिश्चंद्र था. वह बड़ा ज्ञानी था. वह परोपकारी, सत्यवादी व न्याय  प्रिय  था. बूढा होने पर उसने अपना राज काज अपने पुत्र को सोंप दिया. कहते है की हरी की पैड़ी उसी ने तैयार कराइ. कुछ समय पश्चात वह  एक सिद्ध पुरुष का शिष्य बन गया. उसने मंत्र ग्रहण कर सन्यास ले लिया. कठिन योग साधना राजा के लिए फलवती सिद्ध हुई उसे वाक सिद्धि मिल गई. उसके कंठ से जो भी वाणी निकलती थी वही सच हो जाती थी. उसने उसका सदुपयोग लोगों के कल्याण के लिए किया बहुत बृद्ध होने पर हरु फिर अपनी मात्रभूमि सुई (चम्पावत) मैं आ गए. उनके धर्मनिस्थ  आचरण के कारण लोग उनको उनके जीवनकाल मैं ही  देवता की तरह पूजने लगे थे उनका अनुज लाटू उनका अनन्य भक्त था.  उनके अन्य  भक्तों मैं प्रमुख थे स्युरा प्यूरा रुद्रा (कठायत) भोलिया, भैलिया गंगलिया और उजलिया  हरु ने एक संघ की स्थापना की उनके सदस्य  बरु कहलाते थे सैम भी एक बरु था.  एक दिन योग क्रिया द्वारा हरु ने समाधि ले ली. कालांतर मैं हरु और उनके अनुज लाटू की देवता के रूप मैं साथ साथ पूजा होने लगी.

   हरु का मंदिर कत्यूर के थान ग्राम मैं है  लाटू के मंदिर बडेवे (वल्दिया) और भेलिया (भटकोट) मैं है. हरु की माता का नाम कैनार था तथा हरु को ग्वाल देवता का मामा कहा जाता है. हरु तथा सैम देवता के मंदिर साथ साथ देखे गए हैं. हरु देवता के मंदिर अक्सर बिना छत के होते हैं. तथा इनके मंदिर मैं एक हवन कुंद होता है. जिसमें एक त्रिसुल भी होता है. भक्तजन इस हवन कुंद की भिभूती को हरु के आशीर्वाद के रूप मैं माथे पर लगाते हैं. (D.N.Barola)  

 

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