Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 60513 times)

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१२४ : बुढ़ापा ! चल हट (२, बिरखांत-१२३ से आगे ), १०.१०.२०१६

      पिछली बिरखांत १२३ के क्रम में आगे...चनरदा बोले, “अभी बहुत कुछ है बताने को |” मैंने कहा लगे हाथ बता ही डालो ना | मुफ्त की सलाह मिल रही है, कई लोगों का भला हो जाएगा | आजकल तो लोग काउंसलिंग के लिए जाते हैं और यही टिप्स लेने की हैण्डसम फीस दे आते हैं |” चनरदा बड़े इत्मीनान से बोले, “अपने से बड़ी उम्र के कुछ सेलिब्रिटीज पर नजर डालो | बिग-बी पिछतर के हो गए हैं | अभी कुछ ही वर्ष पहले निशब्द, चीनी कम और कजरारे- कजरारे कह रहे थे | देवानंद अंतिम दिनों तक युआ हीरो बन कर घूम रहे थे | वरिष्ठतम राजनीतिज्ञ कुर्सी से सटे पड़े हैं, बल्कि ये लोग तो कभी बूढ़े होते ही नहीं, भलेही शरीर भी क्यों न जबाब देदे |”

      मैंने चनरदा से वार्ता जारी रखी, “भाई साहब आपने अपने को ‘मेनटेन’ किया है | साठ से ऊपर होने पर भी पचास के दिखने का कोई तो फार्मूला होगा तुम्हारे पास |” चनरदा चुस्ती से बोले, “हाँ है, एक छोटा सा- ‘हंसो हंसाओ, टेंसन भगाओ; जीओ जीने दो, कमा कर खाओ |’ लेकिन- किन्तु- परन्तु की छतरी मत खोलो | इसी फार्मूले से ‘मेनटेन’ रही मेरी तरुणाई को देखकर मेरे सहकर्मी भी हमेशा जलते- कुढ़ते रहे | कुछ ही वर्ष पहले जब भी कोई तरुणी कार्यालय में मेरे पास आती तो मेरा एक सहकर्मी अपना काम छोड़कर तुरंत वहाँ आ जाता और उसके सामने जोर से पूछता, “अरे भई कैसी है तेरी पोती ?” मैं कहता, “ठीक है |” अपना कार्य निबटा कर जब वह महिला चली जाती तो मैं अपने इस निखट्टू सहकर्मी से पूछता, “क्यों बे तूने मेरी कुशल नहीं पूछी, बीवी-बच्चों की नहीं पूछी, सीधे पोती की ही क्यों पूछी ?” वह बोला, “ताकि सामने वाले को पता चल जाए तू बूढा है और दादा बन गया है | तेरी सूरत देखकर कोई तुझे जवान न समझे |”

     इसी तरह एक दिन मैं अपनी ‘प्रिय’ भार्या के साथ गलती से सायंकाल  के समय मुहल्ले में घूम रहा था | मेरे पत्नी ने गृहलक्ष्मी स्टाइल की साड़ी पहन रखी थी और मैंने बेटे द्वारा रिजेक्टेड सफ़ेद निकर और सफ़ेद टी-शर्ट  पहन रखी थी | हम धीरे –धीरे चहलकदमी कर रहे थे | अचानक मेरी पत्नी  की परिचित एक वरिष्ठ महिला बिलकुल हमारे पास से गुजरी | पत्नी के साथ ही मैंने भी उससे नमस्ते कहा | मुझे एक झलक देखकर मेरी पत्नी से वह “बेटा कब आया” कहते हुए आगे निकल गई |  हम दोनों जिन्दगी में पहली बार खिलखिला कर एक साथ हंस पड़े | भला हो उस बेचारी का जो उसने मुझे पत्नी के सामने जोर से हंसने का सुअवसर दिया | हंसी थमने के बाद मेरी पत्नी बोली, “इस आंखफुटी को तुम मेरे बेटे जैसे कैसे नजर आ गए ?” मेरी हंसी थम नहीं रही थी | पत्नी बोली, “ज्यादा मत उछलो, उम्र के हिसाब से औकात में रहो | दादा बन गए हो, अब भी अपने को बूढ़ा नहीं मानते |”

      चनरदा अपना पत्नी प्रेम खुलकर प्रकट करते हुए बोलते गए, “मेरी भार्या कहती है मैं महिलाओं से हंस- हंस कर बोलता हूँ | मैंने कहा, रो कर तो तुमसे भी नहीं बोलता हूँ, हाँ डर कर जरूर बोलता हूँ क्योंकि मैं डी.टी.एच. हूँ अर्थात डरपोक टाइप हसबैंड | डी टी एच बन कर रहने में ही ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर की नियमित प्राप्ति सुनिश्चित है | हास्य रस के गुलकंद- स्वाद में डूबे हुए चनरदा बताते हैं, “मुझे तब बड़ी निराशा होती है जब मैं वरिष्ठ नागरिकों को ताश का सहारा लेकर बैठे आपसे में गाली- गलौच (उनकी प्रेम की भाषा) करते हुए देखता हूँ, धूम्रपान या शराब में डूबा हुआ देखता हूँ | वरिष्ठ नागरिकों को किसी न किसी सृजनात्मक कार्य से जुड़ना चाहिए ताकि अंत तक उनका सम्मान होता रहे | ताश खेलने के बजाय बच्चों के साथ खेलो या सामाजिक सरोकारों से स्वयं को जोड़ लो | तुम्हारे यहाँ से जाने के बाद कोई तो याद करेगा तुम्हें |” जीवन का एक उद्देश्य बना रहे, ‘अपना काम स्वयं करो और जब तक जिन्दा हो जी भर के जीओ और जीने दो |’

      बात समाप्त होने को थी | मेरे निवेदन पर चनरदा ने अंत में खाने- पीने के बारे में बताया, “जहां तक खाने -पीने का प्रश्न है, यदि मेरी तरह यंग ओल्ड मैन बन कर जीना है तो गम को खाओ और क्रोध को पीओ | वैसे मैं पिलसन (पैंशन) खा रहा हूँ और पीने की बात न तो पहले थी और न अब है | फ्री की भी नहीं पीता | बीयर भी नहीं | होली, दिवाली, शादी, सगाई, नामकरण या किसी के जन्मदिन पर भी नहीं | इन समारोहों में ‘मुफ्त’ की पी कर लोगों को लड़खड़ाते, बडबडाते, घिघियाते, मिमियाते, ऐंठते, झगड़ते देखकर वैसे ही मन भर जाता है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, १०.१०.२०१६



Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१२५ : ए पी जे, एक महामानव २५.१०.२०१६

      देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति डा. ए पी जे (अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन ) अब्दुल कलाम सादगी, सद्चरित्र, सदभावना, संयम और साहस के प्रतीक थे | उनका जन्म १५ अक्टूबर १९३१ को धनुष्कोटी, रामेश्वरम, तमिलनाडु में हुआ | बताया जाता है कि उन्होंने बचपन में अख़बार भी बेचे | उनके पिता का नाम जैनुलअब्दीन और माता का नाम असिअम्मा था | उनकी शिक्षा सेंट जोसेफ कालेज तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु में हुयी | उन्होंने ऐरोनौटिक्स इंजीनियरिंग में इंस्टिट्यूट आफ इंजीनयरिंग चिन्नई से डिग्री प्राप्त की | शिक्षा के बाद उन्होंने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन, समेकित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम एवं पोकरण अणुबम परीक्षण में मुख्य भूमिका निभाई |

     उन्हें ‘मिजाइल मैन भी कहा जाता है | वैज्ञानिक जीवन की व्यस्तता के कारण उन्होंने विवाह भी नहीं किया | वे अनेक प्रबंधन, अन्तरिक्ष एवं वैज्ञानिक संस्थानों में विजिटिंग प्रोफ़ेसर भी रहे | वे अनेक प्रेरक व्याख्यानों के लिए प्रसिद्द थे | ‘विजन इण्डिया-२०२०’ उनकी विशेष पुस्तक है | वे देश से भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए आवाज उठाते रहते थे | उन्हें १९९७ में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सुशोभित किया गया | वे २५ जुलाई २००२ से २५ जुलाई २००७ तक देश के राष्ट्रपति रहे | २७ जुलाई २०१५ को एक व्याख्यान देते हुए शिलौंग (मेघालय) में उनकी मृत्यु हुई |

      परिश्रम के बल पर फर्श से अर्श तक पहुंचने वाले कलाम साहब को  अनगिनत पुरस्कार भी मिले जिनमें कई विश्वविद्यालयों की मानद उपाधियाँ तथा पद्मभूषण और पद्मविभूषण भी शामिल हैं | कलाम साहब ने कहा था, “वर्षा के दौरान सभी पक्षी आश्रयस्थल ढूंढते हैं, जबकि चील बारिश की परवाह न करते हुए बादलों को पार करने का हौसला दिखाती है | समस्याएं तो एक जैसी होती हैं लेकिन उनसे निपटने का जज्बा जुदा होता है | विफलता नाम की बीमारी को मारने की दवा है आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत | यह हमें सफल व्यक्ति बनाती है |”

      कलाम साहब ने हमें कई अन्य महत्वपूर्ण बातें भी बताई जिनमें से कुछ उधृत हैं – “आपका सपना सच हो, इसके लिए जरूरी है कि आप खुली आँखों से सपना देखें | जिन्दगी कठिन है, आप तभी जीत सकते हैं जब आप मनुष्य होने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार के प्रति सजग रहे | यदि जीवन में कठिनाई नहीं होगी तो उसे सफलता की खुशी का अहसास नहीं होगा | हमें दुनिया तभी याद रखेगी जब हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और विकसित भारत देंगे जो आर्थिक सम्पन्नता और सांस्कृतिक विरासत से मिला हो | जो अपने दिल से काम नहीं करते जिन्दगी में भलेही सब कुछ पा लें, वह खोखली होती है | यह आपके मन में कड़वाहट भरती है |”

     मिजाइल मैन ने अध्यापकों से कहा, “आपको छात्रों का रोल मॉडल बनना चाहिए और यह प्रयास करना चाहिए कि उनमें खोजने, जांचने, सृजनात्मकता और उद्यमशीलता की क्षमता उभरे | आसमान की ओर देखें, हम अकेले नहीं हैं, पूरा ब्रह्मांड हमारा मित्र है और जो सपना आप देख रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं, उससे बेहतरीन फल मिलेगा |” उन्होंने एक विशिष्ट बात यह कही, “अगर देश को भ्रष्टाचार मुक्त और सुन्दर मस्तिष्क वालों का देश बनाना है तो मैं समझता हूँ कि समाज के तीन लोग- माता, पिता और गुरु सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं |” वे बोले, “मेरा सन्देश, खास तौर पर युवा पीढ़ी के लिए यह है कि उनमें हिम्मत हो कि वे कुछ अलग सोंचें, कुछ खोजें, नए रास्तों पर चलें, जो असम्भव हो उसे खोज सकें, मुसीबतों को जीत सकें और सफलता हासिल कर सकें |”

       मैंने अपनी चार पुस्तकों, ‘ये निराले’ (हिन्दी), ‘बुनैद’ (कुमाउनी), ‘लगुल’ और ‘महामनखी’ (कुमाउनी, हिन्दी और अंग्रेजी- एक साथ) में डा. कलाम साहब के बारे में आलेख और लघु गाथा लिखी है |  डा. कलाम जैसे महामानवों पर हमें गर्व है | वे एक कुशल अध्यापक की तरह जीवन के अंतिम क्षणों तक देश के बच्चों, वरिष्ठों, स्त्री- पुरुष, अध्यापक और नेताओं सहित सबको एक विद्यार्थी की भांति शिक्षा देते हुए हमसे विदा हो गए | अगली बिरखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल, १५.१०.२०१६


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत -१२६ :हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम ०६.१०.२०१६
 
यह कविता रूपी ‘बिरखांत’ अपने देश के सैनिकों को समर्पित है जो अपनी कर्तव्यपरायणता, कर्तव्यनिष्ठा, बहादुरी, आत्म –बलिदान, अद्वितीय शौर्य और देशप्रेम के लिए स्वदेश में ही नहीं, दुश्मनों के खेमे में भी चर्चित है-
 
हिन्द के सैनिक तुझे प्रणाम, सारी मही में तेरा नाम,
दुश्मन के गलियारे में भी, होती तेरी चर्चा आम |
 
गुरखा सिक्ख बिहारी कहीं तू, कहीं तू जाट पंजाबी,
कहीं कुमाउनी कहीं गढ़वाली, कहीं मराठा मद्रासी |
 
कहीं राजपूत डोगरा है तू, कहीं महार कहीं नागा,
शौर्य से तेरे कांपे दुश्मन, पीठ दिखाकर भागा |
 
नहीं हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई, तू है हिन्दुस्तानी,
मातृभूमि पर मर मिट जाए, ऐसा अमर सेनानी |
 
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, चाहे जिस कोने का वासी,
रग में तेरे हिन्द की माटी, तू है निश्च्छल भारतवासी |
 
वीर शहीदों का सुर्ख लहू, करता तेरे तन में संचार,
राणा शिवाजी लक्ष्मीबाई तेगबहादुर जैसे अपार |
 
भगतसिंह सुकदेव राजगुरु, सुभाष बोस बिस्मिल अस्पाक,
लाल-बाल-पाल मंगल पण्डे, चन्द्रशेखर की तुझ में राख |

पहरेदार तू मातृभूमि का, जल थल और आकाश में,
बसंत ग्रीष्म वर्षा शरद में, दिवस अंधेरी रात में |

बर्फीला सियाचीन हो या, थार का तप्त मरुस्थल,
नेफा लेह लाद्द्ख कारगिल, रन कच्छ का दलदल |
 
कई युद्ध लड़े हैं तूने, स्वतंत्रता के बाद में,
सैंतालीस बासठ पैंसठ इकहत्तर, निनानबे के साल में |
 
दुश्मन परास्त हर बार हुआ, मुंह की उसने खायी,
युद्ध विराम की हाथ जोड़, फरियाद उसने है लगाई |

इकहत्तर के युद्ध में तूने, दुनिया को चौंका ही दिया,
आत्मसमर्पण किया दुश्मन ने, बंग देश ने जन्म लिया |

निनानबे में दुश्मन ने, कारगिल में आ घुसपैठ लगाई,
तोलोलिंग जुबेर टाइगरहिल में, तूने दुश्मन की कब्र बनायी |

कांगो कोरिया कम्बोडिया लेबनान मोजाम्बिक सोमालिया,
बन कर प्रहरी राष्ट्रसंघ का, अमन चैन पैगाम दिया |

विपत्ति पडी पड़ोसी पर तो, जाकर तूने पीड़ हरी,
मालद्वीप श्रीलंका पन्हुन्चकर, निपटाई संकट की घड़ी |

मात- पिता पत्नी बच्चे, रिश्तेदार या घर संसार,
आँख के आगे ये नहीं होते, सामने जब करतब का भार |
 
सूखा बाड़ भूकम्प दंगा, तुरत प्रकट हो जाता तू,
हर त्रासदी में देश का रक्षक, हर गर्दिश में सखा है तू |
 
दम निकला तूने आह न की, सीने में गोली खायी,
रखा बुलंद तिरंगा प्यारा, अपनी कसम निभायी |
 
मृत्यु तो एक दिन सबको आती, राजा रंक हो या योगी,
मातृभूमि पर लहू तिलक हो, यह तो मौत की हार होगी |
 
मृत्यु से जीत हुयी है तेरी, हरदम गयी वह तुझसे हार,
तेरी जीत के गीत गूजेंगे, जब तक गंगा में जलधार |
 
तेरी कुर्बानी की यादें, मन में लिए समाये,,
प्रज्ज्वल ‘अमर जवान ज्योति’ पर, मस्तक राष्ट्र झुकाए |
 
अगली बिरखांत में कुछ और... पूरन चन्द्र काण्डपाल
 
 
 


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत- १२७ : जब समाज हिल गया ! १०.१०.२०१६

     हाल ही में हमारे इर्द-गिर्द दो अत्यन्त ही दुखद और आहत करने वाली घटनाएं घटीं |  भ्रष्टाचार, हत्या, चोरी, डकैती, दुष्कर्म, छेड़छाड़ और रोड रेज की घटनाओं से टी वी चैनल और समाचार पत्र प्रतिदिन भरे रहते हैं परन्तु इन दो घटनाओं ने सबको अन्त:स्थल तक हिला कर रख दिया |

     पहली घटना दिल्ली के नागलोई एस पी रोड स्थित गवर्मेंट बौइज सीनियर सेकेंडरी स्कूल की है जहां एक हिन्दी के पी जी टी अध्यापक की २६ सितम्बर २०१६ को सायं विद्यालय परिसर में उसी स्कूल के १२वीं में पढ़ने वाले दो छात्रों ने चाकुओं से ताबड़तोड़ हमला कर उनकी ह्त्या कर दी | अगले ही दिन ये दोनों छात्र पुलिस द्वारा पकड़े गए | बताया जाता है कि ये दोनों ही अबारागर्द प्रवृति के थे और अनुशासनहीनता की वजह से उनका नाम स्कूल से काट दिया गया था | परिवार वालों द्वारा स्कूल में गलती मानने पर  इनका नाम दोबारा लिखा गया | जब ये नहीं सुधरे तो इनका नाम पुनः काट दिया गया | इनमें एक छात्र नाबालिग है जिसे इस अध्यापक ने परीक्षा में नक़ल करने से रोका था | नाबालिग ने उसी वक्त अध्यापक को ‘देख लेंगे’ की धमकी भी दी थी जिसे अध्यापक ने गंभीरता से नहीं लिया |

     इस दिल दहला देने वाली घटना ने अध्यापक समुदाय और समाज में बहुत रोष और क्षोभ है देखा गया | अब प्रश्न उठता है की इस प्रवृति को कैसे रोका जाय ? यह प्रवृति रातों- रात नहीं जन्मी | अभिभावक अपनी इस बिगडैल औलाद को जानते हैं परन्तु धृतराष्ट्र की तरह चुप रहकर दुर्योधन बनने देते हैं | इतना ही कहा जा सकता है कि हम अपने बच्चों पर आरम्भ से ही ध्यान दें और उनपर चौकस निगाह रखें ताकि वे इस तरह के जघन्य अपराध से दूर रहें |

     दूसरी दिल दहलाने वाली घटना  भ्रष्टाचार के रिश्वत काण्ड से जुड़ी है जिसमें एक ही परिवार के सभी चार सदस्यों ने दो- दो करके आत्महत्या कर ली | भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा यह परिवार एक कारपोरेट अफेयर्स के महानिदेशक का था | महानिदेशक को १६ जुलाई २०१६ को नौ लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था | इस घटना से सदमे में आयी पत्नी और युवा पुत्री ने तीन दिन बाद ही खुदकुशी कर ली | २६ सितम्बर २०१६ को महानिदेशक और उनके युवा पुत्र ने अपने घर में ही फांसी लगाकर अपना खात्मा कर लिया |

     हालांकि इनके सुसाइड नोट में सी बी आई पर प्रताड़ित करने का आरोप है जबकि यह भी कहा जा रहा की इन्होंने आत्मग्लानि के कारण आत्महत्या कर ली | पूरी सच्चाई तो सी बी आई जांच के बाद ही बाहर आयेगी परन्तु अधिकांश लोगों का मानना है की भ्रष्टाचार के दानव ने इस परिवार को लील लिया | यह आहत करने वाली घटना उन लोगों के लिए एक नजीर होनी चाहिए जो किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं | पूरे परिवार का इस तरह उजड़ना समाज को कुछ न कुछ सन्देश तो दे गया |

     समाज को हिलाकर रख देने वाली ये दोनों घटनाओं से क्षणिक आहत होने और फिर भूल जाने से कोई लाभ नहीं होगा | हमें ये दोनों ही घटनाएं अपने बच्चों के प्रति जागरूक होने और भ्रष्टाचार के भष्मासुर से दूर रहने का सन्देश तो देती हैं |  अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल,१०.१०.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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        बिरखांत – १२८  :पटाखों पर पाबन्दी से थमेगा प्रदूषण २७.१०.१६

     पटाखों की पाबंदी पर पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ, ‘बिरखांत’ भी लिख चुका हूँ  |हर साल दशहरे से तीन सप्ताह तक पटाखों का शोर जारी रहता है जो दीपावली की रात चरम सीमा पर पहुंच जाता है |  शहरों में पटाखों के शोर और धुंए के बादलों से भरी इस रात का कसैलापन, घुटन तथा धुंध की चादर आने वाली सुबह में स्पष्ट देखी जा सकती है | दीपावली के त्यौहार पर जलने वाला कई टन बारूद और रसायन हमें अँधा, बहरा तथा  लाइलाज रोगों का शिकार बनाता है | पटाखों के कारण कई जगहों पर आग लगने के समाचार हम सुनते रहते हैं | पिछले साल छै से चौदह महीने के तीन शिशुओं की ओर से उनके पिताओं द्वारा देश के उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में बड़े होना उनका अधिकार है और इस सम्बन्ध में सरकार तथा दूसरी एजेंसियों को राजधानी में पटाखों की बिक्री के लिए लाइसेंस जारी करने से रोका जाय |

      उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वह पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को शिक्षित करें और उन्हें पटाखों का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह दें | न्यायालय ने कहा कि इस सम्बन्ध में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में व्यापक प्रचार करें तथा स्कूल और कालेजों में शिक्षकों, व्याख्याताओं, सहायक प्रोफेसरों और प्रोफेसरों को निर्देश दें कि वे पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में छात्रों को शिक्षित करें | यह सर्वविदित है कि सर्वोच्च न्यायालय का रात्रि दस बजे के बाद पटाखे नहीं जलाने का आदेश पहले से ही है परन्तु नव- धनाड्यों एवं काली कमाई करने वालों द्वारा इस आदेश की खुलकर अवहेलना की जाती है | ये लोग रात्रि दस बजे से दो बजे तक उच्च शोर के पटाखे और लम्बी-लम्बी पटाखों के लड़ियाँ जलाते हैं जिससे उस रात उस क्षेत्र के बच्चे, बीमार, वृद्ध सहित सभी निवासी दुखित रहते हैं |

     एक राष्ट्रीय समाचार में छपी खबर के अनुसार सरकार ने स्पष्ट किया है कि इस बार देश में विदेशी पटाखों को रखना और उनकी बिक्री करना अवैध होगा | इसकी अवहेलना करने पर निकट के पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट की जा सकती है | इन विदेशी पटाखों में पोटेशियम क्लोरेट समेत कई खरनाक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो है ही इससे आग भी लग सकती है या विस्फोट हो सकता है | विदेश व्यापार  महानिदेशक ने आयातित पटाखों को प्रतिबंधित वस्तु घोषित किया है | 

     कुछ  लोग अपनी मस्ती में समाज के अन्य लोगों कों होने वाली परेशानी की परवाह नहीं करते | उस रात पुलिस भी उपलब्ध नहीं हो पाती या इन्हें पुलिस का अभयदान मिला होता है | वैसे हर जगह पुलिस भी खड़ी नहीं रह सकती | हमारी भी कुछ जिम्मेदारी होती है | क्या हम बिना प्रदूषण के त्यौहार या उत्सव मनाने के तरीके नहीं अपना सकते ? यदि हम अपने बच्चों को इस खरीदी हुई समस्या के बारे में जागरूक करें या उन्हें पटाखों के लिए धन नहीं दें तो कुछ हद तक तो समस्या सुलझ सकती है | धन फूक कर प्रदूषण करने या घर फूक कर तमाशा देखने और बीमारी मोल लेने की इस परम्परा के बारे में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए | उच्च शोर के पटाखों की बिक्री बंद होने पर भी ये बाजार में क्यों बिकते आ रहे हैं यह भी एक बहुत बड़ा सवाल है | हम अपने को जरूर बदलें और कहें “पटखा मुक्त शुभ दीपावली” | “ SAY NO TO FIRE CRACKERS”. अघली बिरखांत में कुछ और...
पूरन चन्द्र काण्डपाल,
२७.१०.२०१६



Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१२९ : युद्ध एक त्रासदी ,३१.१०.२०१६

     किन्हीं भी देशों के बीच कुल मिलाकर युद्ध एक त्रासदी है | सेना का कर्तव्य अपने देशों की सीमाओं की रक्षा करना है और इस पुतीत कार्य के लिए वे अपना बलिदान देते आये हैं | इन शहीदों का स्मरण करना देश का प्रथम कर्तव्य है | अपने रण-बांकुरों की शौर्य- पराक्रम की गाथाएं नहीं भूलना देशवासियों क दायित्व है | बुद्धिजीवियों का मानना है की लोगों की स्मरण शक्ति इस मामले बहुत लघु होती है | प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के शहीद तो दूर रहे यह कहना मुश्किल है की कितने लोग आजादी के बाद लड़े गए वर्ष १९४७-४८, १९६२, १९६५, १९७१, सियाचीन, श्रीलंका, कारगिल युद्ध १९९९ और १९८९ से कश्मीर छद्म युद्ध के शहीदों, घायलों और अपंगों को याद करते हैं ?

     कारगिल युद्ध में दोनों देशों, भारत और पाकिस्तान के लगभग एक हजार दो से अधिक सैनिक शहीद हुए | घायल और अपंगों की संख्या कहीं अधिक है | इन सैनिकों में पति, पिता, पुत्र और भाई सभी रिश्ते थे | युद्ध में प्यार से सिंचित कर बने हुए ये सभी खूबसूरत रिश्ते परवान चड़ने से पहले ही मुरझा जाते हैं | ये सब रिश्ते कई परिवारों से इन युद्धों में छिन गए | अपने परिवारों की हर्ष, उम्मीद, हौंसला, सहारा सब कुछ थे ये सैनिक | युद्ध ने इन परिवारों को दुःख और दर्द के काले सरोवर में हमेशा- हमेशा के लिए डुबो दिया | सैनिक अपने कर्तव्य पथ से कभी पीछे नहीं हटता | वह मातृभूमि पर मर मिटने वाला अमर सेनानी होता है परन्तु मानवता की दृष्टि से सोचा जाए तो प्रत्येक सैनिक तथा उसका परिवार यही चाहेगा के युद्ध न हो | विवादों को वार्ता द्वारा शांति से सुलझा लिया जाए | वैसे इतिहास साक्षी है की अब तक दुनिया में जितने भी युद्ध हुए, युद्ध में भिड़ने वाले देशों में वार्तालाप से ही शांति हुयी, युद्ध से केवल त्रासदी ही हाथ लगी |

     युद्धों से देशों का आर्थिक विकास रुक जाता है | जो धन गरीबी- भुकमरी मिटाने, शिक्षा- स्वास्थ्य सहित अन्य विकास कार्यों में लगना चाहिए वह युद्ध की विभीषिका में स्वाहा हो जाता है और युद्ध से देश पर अपंगों का अम्बार लग जाता है | अपंग सैनिक जीवन भर एक घसीटती हुयी जिन्दगी को बोझ बन कर झेलता है, चाहे-अनचाहे सहानुभूति एवं दया का पात्र बन जाता है | युद्धों में सैनिकों के अलावा नागरिक भी मारे जाते हैं | युद्ध क्षेत्र में रह रहे बचे, वृद्ध, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी सहित अन्य सभी जीव मरते या घायल होते हैं | वहां का पर्यावरण, वन सम्पदा, प्राकृतिक सौन्दर्य, भू-संरचना सब कुछ नष्ट हो जाती है | कारगिल युद्ध में भी हजारों टन गोला-बारूद का धमाका हुआ जिससे उस क्षेत्र का वर्फ भी दूषित हो गया जिसके बारे में बाद में रिपोर्ट पत्र-पत्रिकाओं में छपी |

      युद्ध के दौरान सबसे बड़ी मानवीय समस्या शरणार्थियों के रूप में आती है | सीरिया का दर्दनाक उदाहरण सामने है | युद्ध की सबसे बड़ी त्रासदी है देश पर अचानक और अनचाहा आर्थिक बोझ | युद्ध की क्षतिपूर्ति विकास कार्यों पर खर्च होने वाले धन से की जाती है या जनता पर का लगाकर धन एकत्र किया जाता है | युद्ध के दौरान शहीदों, घायलों तथा अपंगों पर खर्च बढ़ जाता है | नए साजो सामान, गोला-बारूद, हथियार खरीदने सहित इन सबके रख-रखाव का खर्च अलग से सहन करना पड़ता है | इसी तरह युद्ध में उलझे दूसरे देश पर भी खर्च का बोझ क्रमशः इसी प्रकार पड़ता है |

     भारत ने हमेशा ही एक जिम्मेदार पड़ोसी की तरह रहने का पूर्ण प्रयास किया है | बड़े भाई की तरह संयम और सौहार्द का हमेशा ही परिचय दिया | पाकिस्तान के उल-जलूल, बदलते -फिसलते, गैरजिम्मेदार बयानों पर सहिष्णुता दिखाई जबकि युद्ध की शुरुआत हमेशा पाक की तरफ से हुयी | घुसपैठिये भेजकर उसने हमारी पीठ में छूरा घोंपा | यदि पकिस्तान एक बार पुनः विश्वास का वातावरण बनाए, वास्तविकता को समझे, आतंकवादियों की मदद न करे, छद्म युद्ध बंद करे तो दोनों देशो में स्थाई शांति हो सकती है | देर-सबेर एक न एक दिन इन दोनों अणुशक्ति संपन्न स्वतंत्र देशों को मिल- बैठ कर, भूतकाल की कटुता को भूलते हुए सह-अस्तित्व के लिए समझौता करना ही पड़ेगा तभी दक्षिण एशिया में युद्ध के मंडराते बादल हमेशा के लिए छंट सकेंगे | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र कांडपाल, ३१.१०.२०१६

Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत १३० :जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग,

   १५ अगस्त १९४७ को जब देश स्वतंत्र हुआ तब महाराजा हरी सिंह जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक थे | आरम्भ में महाराजा ने न तो भारत में विलय का मन बनाया और न पकिस्तान में | उन्होंने एक स्वतंत्र राज्य की हैसियत से रहना ही उचित समझा | अंग्रेज जम्मू- कश्मीर का या तो पाकिस्तान में विलय चाहते थे या उसे स्वतंत्र देखना चाहते थे जबकि पाकिस्तान इस राज्य को लेने में उतावला था | भारत महाराजा के विपरीत विलय संबंधी कोई कार्य नहीं करना चाहता था | कई इतिहासकार इस तथ्य पर अलग राय रखते हैं |

     भलेही पाकिस्तान इस राज्य को हड़पना चाहता था परन्तु वहां की जनता पाक के साथ नहीं जाना चाहती थी | अपने मंसूबे पूरे होते न देख पकिस्तान ने वहाँ कबाइलियों के वेश में अपनी सेना भेज कर लूट मचायी और नरसंहार किया | अराजकता के बर्बर दौर में मुसलामानों द्वारा मुसलमान मारे गए | यह सिलसिला दो महीने तक चलता रहा |  किसी भी इस्लामिक देश ने पाक का साथ नहीं दिया और उसकी भर्त्सना भी नहीं की | अंततः २६ अक्टूबर १९४७ को महाराजा ने जम्मू-कश्मीर राज्य की भारत में विलय की घोषणा कर दी | भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन ने २७ अक्टूबर १९४७ को विलय की घोषणा पर हस्ताक्षर तो किये परन्तु इस पर जनमत संग्रह की कालिख पोत दी | महाराजा ने अंग्रेजों के इच्छापूर्ति नहीं की जिसका खामियाजा जनमत संग्रह के पचड़े में फंसाकर वसूलना चाहा | जनमत संग्रह राज्य में शांति स्थापित होने के बाद करवाना था |

     सामरिक दृष्टि से जम्मू-कश्मीर राज्य पर पूरे विश्व की नजर रहती है | तब अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान की ओर था | पाकिस्तान कम्युनिस्टों को पसंद नहीं करता था इसलिए सोवियत संघ का झुकाव भारत की ओर रहा | पाकिस्तान पर लार्ड माउन्टबेटन और अमेरिका के झुकाव का असर पड़ा और उसने जानबूझ कर सैन्य कार्यवाही में देर कर दी ताकि तथाकथित कबाइली श्रीनगर तक आ सकें | देर से ही सही हमारी सेना ने पाक समर्थित कबाइलियों को मार भगाया | इसी बीच लार्ड माउंटबेटन ने १ जनवरी १९४९ को एकतरफा युद्द्ध विराम करवा दिया, साथ ही पाकिस्तान को उसके कब्जे वाला कश्मीर भी दे दिया जिसे अब पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है | यह जम्मू-कश्मीर राज्य का अभिन्न अंग है | इस में गिलगित, हुंजा, नागर, बाल्टिस्तान, पोनीयल, चिनल, स्कार्दू, मीरपुर, मुजफ्फराबाद, कोटली, बिम्बर,साधुन्ती तथा वगा आदि स्तिथ हैं |

    विश्लेषक एक गवर्नर जनरल होने के नाते माउन्टबेटन के इस कृत्य को अनैतिक मानते हैं | दोनों नव स्वतंत्र देश इस मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले गए | संयुक्त राष्ट्र ने स्वतंत्र जनमत संग्रह करने के बात कही जिसे पाकिस्तान नहीं माना क्योंकि उसे डर था कि उसके कब्जे वाला कश्मीर उसके हाथ से निकल जाएगा | पाकिस्तान भारत से अब तक चार युद्ध लड़ चुका है फिर भी स्थिति वहीं की वहीं है | कश्मीर का जो भाग पाकिस्तान ने अवैध  रूप से अपने कब्जे में ले रखा है उसे वह आजाद कश्मीर कहता है जबकि उसे पकिस्तान ने गुलाम बना रखा है |

     पकिस्तान चाहे कुछ भी कहे, इतिहास के सम्पूर्ण सन्दर्भों पर दृष्टि डालें तो पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है | विलय पत्र और वहाँ के  जनमत के अनुसार पाकिस्तान को भारत के इस भू-भाग से हट जाना चाहिए | यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ भी मानता है | पकिस्तान भारत के इस भू-भाग को बल प्रयोग तथा साम्प्रदायिक रंग देकर हथियाना चाहता है जबकि भारत इसका कानूनी हकदार है | स्वतंत्रता के पश्चात यहाँ लगातार विधान सभा और लोकसभा के चुनाव होते आ रहे हैं | वर्तमान में पाकिस्तान लगातार युद्ध-विराम का उल्लंघन करते हुए आयेदिन सीमा पर गोलाबारी कर रहा है और छद्म-युद्ध करते हुए आंतकवादियों को भारत में घुसाने का प्रयास करते रहता है | भारत पाक प्रायोजित छद्म-युद्ध का मुहतोड़ जबाब देते हुए अपनी सीमा की रक्षा कर रहा है और आतंकवाद से लड़ते हुए पाकिस्तान को बेनकाब कर रहा है | पाकिस्तान आतंक को पोषित करने वाला एक गैर-जिम्मेदार देश बन गया जिसे आज पूरा विश्व जान चुका है | अगली बिरखांत में कुछ और...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०४.११.२०१६   


Pooran Chandra Kandpal

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बिरखांत-१३१ : गया और बोधगया में जो देखा

     हाल ही में दिल्ली से रांची, रामगढ़ (झारखण्ड) होते हुए गया (बिहार) की यात्रा का अवसर मिला | दिल्ली से रांची लगभग १३०० किमी, रांची से रामगढ ४५ किमी और रामगढ़ से गया १८० किमी दूर है | रांची और रामगढ़ झारखण्ड राज्य में हैं जबकि गया बिहार राज्य में है | इस यात्रा के दौरान झारखण्ड क्षेत्र के जंगल भी देखे जिनमें चौड़ी पत्तियों के ही पेड़ थे | उत्तराखंड की तरह वहाँ के घने वनों में चीड़ के वृक्ष नहीं देखे गए |

     फल्गू नदी के किनारे स्तिथ गया शहर की मुख्य दो जगहों का भ्रमण किया – गया (विष्णुपद मंदिर) और बोधगया ( महात्मा बुद्ध का ज्ञान प्राप्ति  स्थान ) | गया से बोधगया की दूरी लगभग १५ किमी है | गया पहुँचते ही पंडो ने घेर लिया | वे शराद करने के लिए बाध्य करने लगे | उन्हें मैंने समझाया, “मेरी आस्था शराद के कर्मकांड में नहीं है | मैं यहाँ किसी धार्मिक कारण से नहीं बल्कि ऐतिहासिक, सामाजिक तथ्य जानने और प्रकृति दर्शन के लिए आया हूँ | मैं पितरों का स्मरण अवश्य करता हूँ, उनमें मेरी श्रद्धा है परन्तु शराद- पिंडदान में नहीं |”

     वहाँ का दृश्य देख कर मैं हतप्रभ था | जहां-तहां पिंडों के ढेर लगे थे | कोई मुंडन करवा रहा था तो कोई किसी भी स्थान पर बैठ कर शराद करवा रहा था | साथ ही कई प्रकार की प्रथा- परम्परा और मान्यता की बात कह कर लोगों को रिझाया- फंसाया जा रहा था | वहाँ गंदगी की किसी को प्रवाह नहीं थी | फर्स काला हो गया था, जहां- तहां कुछ न कुछ शराद में प्रयोग होने वाली वस्तुएं बिखरी थी | भिखारी भी अपना रोना रो रहे थे | अंततः पत्नी ने कुछ दान गरीबों को दिया और मेरे आग्रह पर कुछ दान केवल दानपात्रों में ही डाला जिसे मंदिर समिति उपयोग करती है |

     जहाँ श्रद्धा की बात हो तो उसकी आगे कुछ कहना उचित नहीं | यह श्रद्धा है या अंधश्रद्धा, इसका फैसला व्यक्ति को ही अपने विवेक से करना होता है | मेरी कर्मकांड और पिंडदान में में आस्था नहीं है | इसके बजाय हमें पितरों के पुण्य स्मृति में कुछ समाजोपयोगी नेक कार्य करने चाहिए | शराद के पिंड वहीं पर पड़े रहते हैं और धन पंडा ले जाता है | मैं भी अपने पितरों का स्मरण करते हुए पिछले ग्यारह वर्षों से अपने क्षेत्र के कुछ मेधावी बच्चों को प्रतिवर्ष स्वतन्त्रता दिवस पर सम्मानित करता हूँ |

     जहां तक मैं समझता हूँ स्वर्ग नाम का कोई स्थान नहीं है जहां पितरों का वास बताया जाता है | यह एक काल्पनिक विचार है | मृत्यु के बाद देह पंचतत्व में मिल जाती है और आत्मा अजर-अमर है और अदृश्य है | कोई भी जीव जो पैदा होता है वह एक दिन मरता है | उसकी मृत्यु के बाद कर्मकांड के बजाय एक श्रधांजलि ही काफी है और मृतक के नाम पर कुछ जनहित कर्म सबसे उत्तम है | गया में पंडों का तमाशा देख कर ऐसा लगा जैसे वे प्रत्येक श्रद्धालु को मिलकर लूट रहे हैं | इस लूट को समझने की जरूरत है |

     बोधगया स्थान गया से १५ किमी दूर है | यहाँ एक पीपल वृक्ष है, बुद्ध की ८० फीट ऊँची मूर्ति और बौध श्रद्धालुओं के लिए सुमिरन के कई बड़े- बड़े बैठने के स्थान हैं | पंडों जैसी लूट यहाँ नहीं है | दान पात्रों में दान यहाँ भी दिया जाता है | गया की तरह यहाँ न शोर था और न गन्दगी | लोग महात्मा बुद्ध के प्रवचनों के आधार पर सुमिरन करते देखे गए | इन श्रद्धालुओं में अधिकाँश विदेशी थे जिन्हें हम बुद्धिष्ट या बौध मतावलंबी कह सकते हैं |

     अंत में यही कहना चाहता हूँ कि हमारे किसी भी धर्मस्थल पर (गया सहित ) धर्म के नाम पर अंधविश्वास की डोर फंसा कर लूट तो होती ही है, गन्दगी भी बहुत होती है | मुझे देश के कई गुरद्वारों के दर्शन का अवसर भी मिला जहां की स्वच्छता मन-मोह लेती है और अंधविश्वास की लुछालुछ भी वहाँ देखने को नहीं मिलती | श्रद्धा होना ठीक है परन्तु अंधश्रद्धा में डूबना अनुचित है | हम लुटते हैं, लुटने के बाद मसमसाते हैं और फिर भी स्वयं को लुटने देते हैं | यह कैसी श्रद्धा है ? इस पर जरूर मंथन होना चाहिए | अगली बिरखांत में कुछ और ...

पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०८.११.२०१६ 

Pooran Chandra Kandpal

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै,०३.११.२०१६ 

लकीर क फ़कीर बनि रयूं हाम

 
      हमेशा गतिमान रौणी कालचक्र ल हमुकैं इक्कीसवीं सदी क दुसर दसक में पुजै है | पिछाड़ि ६९ वर्षों कि बात करो तो हाम कां बटि कां पुजि गाय | आजादी क टैम देश कि जो दयनीय दाश छी उसि आज न्हैति भलेही गरीबी रेखा क मुणि आज लै लगभग २५-३० % आबादी छ | आज ग्रामीण भारत और शहरी झुग्गी- झोपड़ियों में टी वी – मोबाइल फोन देखी जै सकूं | बातचीत क दगाड़ मिसकाल संस्कृति लै पनपि गे | सड़का क किनार बैठी चहा क दुकानदार आपण इर्द- गिर्द मिसकाल संकेत ल चहा पुजों रौ | मजदूर या कामवाली क बच्चों क खुट में भलेही ज्वत –चप्पल न्हैति पर उनरि मुठ्ठी में पकड़ी मोबाइल में फ़िल्मी गीत बाजें रईं |
 
     बदलाव क य दौर में कुछ बातों में हम लकीर क फ़कीर लै बनिये छ्यूं  | वर्ष में एक बार आश्विन (असोज, सितम्बर-अक्टूबर) में हमार देश क कुछ भागों में पितृपक्ष य बतै बेर मनाई जांछ कि १५ दिन क लिजी सब पितर स्वर्ग बै भूमंडल में ऐ गईं | य दौरान १५ दिनों तक पितरों का शराद (श्राद्ध) करण कि परम्परा छ | ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ बटि पनपि रौछ | पितृपक्ष में कर्मकांडी पंडितों द्वारा जजमानों क घर में शराद करी जांछ और जजमान हैं   ब्रह्मभोज क साथ वस्तु एवं द्रव्यदान क लिजी लै कई जांछ | एक पंडित क अनुसार, ‘सोलह शरादों क दौरान बामणों कैं भोजन करूण क दगाड यथा संभव दान लै दीण चैंछ | य ब्रह्मभोज और दान सिद पितरों क पास स्वर्ग में पुजों |’ एक ब्राह्मण ल त श्राद्ध में दारु कि बोतल लै य कै बेर मंगै, ‘तुमार बौज्यू फलाणि ब्रांड पिछी और पिलौंछी | अगर शराद में दुसार चीजों दगै एक बोतल लै दान करी जाली तो उ सिद उनार पास पुजलि जैल उनरि तृप्त आत्मा तुमुकैं आशीर्वाद देलि |’
 
      शराद करण या निकरण एक श्रद्धा क विषय छ | समाज में श्रद्धा क नाम पर कुछ यास परम्परा रोपी रईं जनरि परिधि कैं टोड़ण क लिजी हिम्मत चैंछ | पैल बात त य छ कि स्वर्ग नाम कि क्वे चीज न्हैति | हमार पितर स्वर्ग में छीं य बात लै ऊँ ईं लोगों ल फैलै रै जो मरण बाद क संस्कार में जजमान हैं बै सुन- चांदी की सिड़ि मंगूनी | जो लै दान छ उ केवल बामणों कैं ई दिवाई जांछ और आंशिक दान मंदिर क पुजारियों तक पुजाई जांछ | आज मंदिरों ल लै दुकानों क रूप ल्ही है जां अंधविश्वास और लकीर कि फकीरी बेची जैंछ | अपवाद स्वरुप कुछ धर्मस्थल यास हुनाल जां बै राष्ट्र या समाज या प्रकृति –पर्यावरण कि बात हुन हुनलि | मंदिर क पुजारि उ आगंतुक क प्रति भद्रता नि धरन जो दानपात्र में दान डाऊँ | दानपात्र है भ्यार दान डाउणियक प्रति पुजारि क व्यवहार भद्र हुंछ क्यलै कि य दान तुरंत पुजारि क जेब में पुजि जांछ | पुजारि यस व्यवहार करूं जस कि उ भगवान् क एजेंट छ और उ भगवान् हैं बै सब काम करै सकूं |
 
      हम य सोच में कब तक लकीर क फ़कीर बनिये रौंल कि ज्ये लै ह्मूल मंदिर या श्राद्ध में चढ़ा उ सिद भगवान् या पितरों क पास पुजि गो ? हमार सामणि हमर चढ़ायी हुयी धन -द्रव्य आदि सबकुछ पंडित ल्ही जांछ और उपयोग में नि औणी चीजों कैं उत्तीकैं छोडि जांछ | गांधी ज्यू आस्तिक छी, उनर ईश्वर में अटूट विश्वास छी | ऊँ केवल कर्म कैं पुज मानछी, कर्म लै उ जैल देश- समाज क हित हो | कर्म है मुख मोड़ि बेर हम कतुक्वे लै पुज –पाठ करि ल्यू, सब बेकार छ, आडम्बर छ, दिखावा छ  | आपण जीवन में हाम  पितरों कि स्याव करण त दूर, उनु हैं द्वि आंखर भली बलाण क लिजी लै कतरानूं और उनार मरण बाद बामण द्वारा दियी लिस्ट क अनुसार कर्मकांड क लिजी सब सामान ल्ही औनू |
 
      हमुकैं अंधविश्वास है वशीभूत लकीर कि फकीरी है भ्यार निकइ बेर दान कैं अनाथालय, पुस्तकालय, विधवाश्रम, विद्यालय, अस्पताल, विकलांग सेवा, राष्ट्रीय आपदा कोष, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष आदि कैं दीण चैंछ या आपण  पितरों क नाम पर क्वे मेधावी छात्रवृति योजना चलूण चैंछ | कुछ लोग पुज-पाठ, श्राद्ध- जागरण, अस्थि-विसर्जन, यज्ञ- हवन आदि कैं नेक काम समझनी  जबकि कुछ लोग पौध –रोपण, बीमारी या नशा क प्रति जन-जागरण या जरूरतमंद कि मदद कैं नेक काम समझनी | यूं द्विनों में जो फरक छ उकैं समझण पड़ल, तबै हाम लकीर कि फकीरी है बचि सकनूं |
 
       आखिर में हमूल आपण सामाजिक उत्तरदायित्व और योगदान कैं समझण क प्रयास करण चैंछ और बेकार कि बहस क बजाय नक- भल कि पछ्याण करण चैंछ | हमूल लकीर कि फकीरी क समर्थन नि करते हुए जन-हित कि स्वस्थ परम्पराओं क समर्थन करण या उनुकैं पनपूण चैंछ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०३.११.२०१६

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दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै,

लकीर क फ़कीर बनि रयूं हाम

 
      हमेशा गतिमान रौणी कालचक्र ल हमुकैं इक्कीसवीं सदी क दुसर दसक में पुजै है | पिछाड़ि ६९ वर्षों कि बात करो तो हाम कां बटि कां पुजि गाय | आजादी क टैम देश कि जो दयनीय दाश छी उसि आज न्हैति भलेही गरीबी रेखा क मुणि आज लै लगभग २५-३० % आबादी छ | आज ग्रामीण भारत और शहरी झुग्गी- झोपड़ियों में टी वी – मोबाइल फोन देखी जै सकूं | बातचीत क दगाड़ मिसकाल संस्कृति लै पनपि गे | सड़का क किनार बैठी चहा क दुकानदार आपण इर्द- गिर्द मिसकाल संकेत ल चहा पुजों रौ | मजदूर या कामवाली क बच्चों क खुट में भलेही ज्वत –चप्पल न्हैति पर उनरि मुठ्ठी में पकड़ी मोबाइल में फ़िल्मी गीत बाजें रईं |
 
     बदलाव क य दौर में कुछ बातों में हम लकीर क फ़कीर लै बनिये छ्यूं  | वर्ष में एक बार आश्विन (असोज, सितम्बर-अक्टूबर) में हमार देश क कुछ भागों में पितृपक्ष य बतै बेर मनाई जांछ कि १५ दिन क लिजी सब पितर स्वर्ग बै भूमंडल में ऐ गईं | य दौरान १५ दिनों तक पितरों का शराद (श्राद्ध) करण कि परम्परा छ | ‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ बटि पनपि रौछ | पितृपक्ष में कर्मकांडी पंडितों द्वारा जजमानों क घर में शराद करी जांछ और जजमान हैं   ब्रह्मभोज क साथ वस्तु एवं द्रव्यदान क लिजी लै कई जांछ | एक पंडित क अनुसार, ‘सोलह शरादों क दौरान बामणों कैं भोजन करूण क दगाड यथा संभव दान लै दीण चैंछ | य ब्रह्मभोज और दान सिद पितरों क पास स्वर्ग में पुजों |’ एक ब्राह्मण ल त श्राद्ध में दारु कि बोतल लै य कै बेर मंगै, ‘तुमार बौज्यू फलाणि ब्रांड पिछी और पिलौंछी | अगर शराद में दुसार चीजों दगै एक बोतल लै दान करी जाली तो उ सिद उनार पास पुजलि जैल उनरि तृप्त आत्मा तुमुकैं आशीर्वाद देलि |’
 
      शराद करण या निकरण एक श्रद्धा क विषय छ | समाज में श्रद्धा क नाम पर कुछ यास परम्परा रोपी रईं जनरि परिधि कैं टोड़ण क लिजी हिम्मत चैंछ | पैल बात त य छ कि स्वर्ग नाम कि क्वे चीज न्हैति | हमार पितर स्वर्ग में छीं य बात लै ऊँ ईं लोगों ल फैलै रै जो मरण बाद क संस्कार में जजमान हैं बै सुन- चांदी की सिड़ि मंगूनी | जो लै दान छ उ केवल बामणों कैं ई दिवाई जांछ और आंशिक दान मंदिर क पुजारियों तक पुजाई जांछ | आज मंदिरों ल लै दुकानों क रूप ल्ही है जां अंधविश्वास और लकीर कि फकीरी बेची जैंछ | अपवाद स्वरुप कुछ धर्मस्थल यास हुनाल जां बै राष्ट्र या समाज या प्रकृति –पर्यावरण कि बात हुन हुनलि | मंदिर क पुजारि उ आगंतुक क प्रति भद्रता नि धरन जो दानपात्र में दान डाऊँ | दानपात्र है भ्यार दान डाउणियक प्रति पुजारि क व्यवहार भद्र हुंछ क्यलै कि य दान तुरंत पुजारि क जेब में पुजि जांछ | पुजारि यस व्यवहार करूं जस कि उ भगवान् क एजेंट छ और उ भगवान् हैं बै सब काम करै सकूं |
 
      हम य सोच में कब तक लकीर क फ़कीर बनिये रौंल कि ज्ये लै ह्मूल मंदिर या श्राद्ध में चढ़ा उ सिद भगवान् या पितरों क पास पुजि गो ? हमार सामणि हमर चढ़ायी हुयी धन -द्रव्य आदि सबकुछ पंडित ल्ही जांछ और उपयोग में नि औणी चीजों कैं उत्तीकैं छोडि जांछ | गांधी ज्यू आस्तिक छी, उनर ईश्वर में अटूट विश्वास छी | ऊँ केवल कर्म कैं पुज मानछी, कर्म लै उ जैल देश- समाज क हित हो | कर्म है मुख मोड़ि बेर हम कतुक्वे लै पुज –पाठ करि ल्यू, सब बेकार छ, आडम्बर छ, दिखावा छ  | आपण जीवन में हाम  पितरों कि स्याव करण त दूर, उनु हैं द्वि आंखर भली बलाण क लिजी लै कतरानूं और उनार मरण बाद बामण द्वारा दियी लिस्ट क अनुसार कर्मकांड क लिजी सब सामान ल्ही औनू |
 
      हमुकैं अंधविश्वास है वशीभूत लकीर कि फकीरी है भ्यार निकइ बेर दान कैं अनाथालय, पुस्तकालय, विधवाश्रम, विद्यालय, अस्पताल, विकलांग सेवा, राष्ट्रीय आपदा कोष, राष्ट्रीय सुरक्षा कोष आदि कैं दीण चैंछ या आपण  पितरों क नाम पर क्वे मेधावी छात्रवृति योजना चलूण चैंछ | कुछ लोग पुज-पाठ, श्राद्ध- जागरण, अस्थि-विसर्जन, यज्ञ- हवन आदि कैं नेक काम समझनी  जबकि कुछ लोग पौध –रोपण, बीमारी या नशा क प्रति जन-जागरण या जरूरतमंद कि मदद कैं नेक काम समझनी | यूं द्विनों में जो फरक छ उकैं समझण पड़ल, तबै हाम लकीर कि फकीरी है बचि सकनूं |
 
       आखिर में हमूल आपण सामाजिक उत्तरदायित्व और योगदान कैं समझण क प्रयास करण चैंछ और बेकार कि बहस क बजाय नक- भल कि पछ्याण करण चैंछ | हमूल लकीर कि फकीरी क समर्थन नि करते हुए जन-हित कि स्वस्थ परम्पराओं क समर्थन करण या उनुकैं पनपूण चैंछ |
 
पूरन चन्द्र काण्डपाल, ०३.११.२०१६
 

 

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