Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 60451 times)

Pooran Chandra Kandpal

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गिर्दा हमेशा जिन्दा रहेंगे

वर्ष १९४५ में हवालबाघ अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में जन्मे
६५ वर्षीय गिर्दा (गिरीश चंद्र तिवारी) का २२ अगस्त २०१०
को हल्द्वानी के एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से
निधन हो गया. उनके निधन से साहित्य, कला, आदर्श,
निःस्वार्थ सेवा से जुड़े जन समूह को बड़ी क्षति हुयी है.
गिर्दा आजीवन अपने लेखन,गायन और बेबाक वक्तव्य
से जन जन के चहेते बन गए थे. वे हमेशा हमारे
दिलों में जिन्दा रहेंगे .
                                       उत्तराखंड आन्दोलन
के दौरान १९९४ में उनकी एक रचना के दो छंद
जो उन्होंने आन्दोलनकारियों के उत्साह को बुलंद
करने के लिए गाये थे श्रधांजलि स्वरुप उन्हें
समर्पित हैं-

    बड़ी महिमा बाग्स्यरैकी कै दीनूं सपूता
    यें उतारौ ईकाईस में कुली बेगारौ भूता
    अलघतै उतरैणी आज यें अलख जगूलो
    उत्तराखंड ल्युलो भुलू उत्तराखंड ल्युलो .

    बड़ी महिमा गढ़ भूमि की के दीनू सपूत
    ये माटी जन्म्या म्यारा कास कास सपूत
    गढ़वाली सीज फैर कूनी कास हूनी बतूलो
     उत्तराखंड ल्युलो भुलू उत्तराखंड ल्युलो.

                            पूरन चंद्र कांडपाल  .


Pooran Chandra Kandpal

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हिंदी दिवस १४ सितम्बर 

हिंदी अपनी राष्ट्रभाषा है पढ़ लिख नेह लगाय
सीखो चाहे और कोई भी हिंदी नहीं भुलाय,
हिंदी नहीं भुलाय मोह विदेशी त्यागो
जन जन की ये भाषा हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह 'पूरन' कार्यालय में बनी यह चिंदी
बीते तिरसठ बरस अपनायी नहीं हिंदी.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

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मेरा गाँव 
जनपक्ष आजकल की यह मुहीम सराहनीय है जिसमें उत्तराखंड के किसी न किसी गाँव
की जानकारी पाठकों को मिलती है.  जिला अल्मोड़ा की तहसील रानीखेत, पट्टी चौगाँव
में मेरा गाँव है खग्यार.  बुजर्गों ने बताया इस क्षेत्र में पहले बहुत वृक्ष हुआ  करते थे.
वृक्षों पर अपार पक्षी (खग) समूह की वसावट थी.  लोग पक्षिओं के प्रेमी थे अर्थात पक्षिओं
से उनकी यारी थी.  अतः इस गाँव का नाम पड़ गया खग +यार अर्थात खग्यार.
 
  मेरे गाँव वालों ने स्वतंत्रता संग्राम में बढचढ कर भाग लिया और १९२९ में अल्मोड़ा
स्थित कारागार में बंद भी हुए.  कहते हैं उस दौरान बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार
किया गया और जेल पूरी तरह भर गया.  जेल के बाह्य भाग में भी स्वतंत्रता सेनानियों
को कैदी की तरह रखा गया और डंडे मार कर उन्हें दो-तीन दिन में भगा दिया. इनका
नाम जेल रजिस्टर में भी नहीं लिखा गया.
 
  लगभग पचास परिवारों के इस गाँव में अब एक प्राइमरी पाठशाला है. आगे के शिक्षा
के लिए तीन किलोमीटर दूर पहाड़ी रास्ता चढ़ कर जाना पड़ता है.  गाँव से सड़क भी
तीन किलोमीटर दूर है.  सड़क नहीं होने से लोग दुखी हैं.  आजादी के बाद से ही सड़क
बनाने के फ़रियाद जारी है जो ६३ वर्ष के पश्चात भी हुक्मरानों तक नहीं पहुंची.  चुनाव
के समय बताया जाता है, सड़क बनेगी,टेंडर हो रहे हैं.  चुनाव समाप्ति के बाद गाँव में
कोई नहीं आता.  पानी के अभाव वाले मेरे गाँव में चातुरमास में गोबी, टमाटर, शिमला
मिर्च आदि सब्जियां उगाई जाती हैं परन्तु काश्तकार को उसका मूल्य नहीं मिलता.  जो
सब्जियां बिचौलिए वहां दो रुपये किलो खरीदते हैं उसे हल्द्वानी में पंद्रह -बीस गुना ऊँचे
भाव पर बेचा जाता है.
 
  अब तो लोग गाँव में बरात लाने को भी कतराते हैं क्योंकि बरात को पैदल रास्ता
पसंद नहीं होता.  बीमार व्यक्ति को खाट या डोली में बांध कर सड़क तक पहुंचाते
हैं और वहां से उसे जीप में रानीखेत ले जाते हैं.  इस जगह १०८ अम्बुलेंस नहीं मिलती.
मेरा गाँव पलायन से त्रस्त है.  रोटी की जुगाड़ मैं गाँव छोड़ना मज़बूरी है.  कुछ लोग सेना
में हैं और कुछ रोजगार के लिए खानाबदोष बन गए हैं. गाँव से एक किलोमीटर दूर
गहराई पर कुजगढ़ नदी है जिसमें पानी लगभग समाप्त है.  गाँव में दो नौले थे जो सूख
गए हैं.  पीने के पानी की सरकारी योजना असफल है क्योंकि नलों में पानी वर्ष के कुछ
ही दिन आता है.  क्षेत्र के मंदिरों में पशुबलि जारी है. नशे और शराब के बारे में सब
जानते हैं बताने की जरूरत नहीं.  अन्धविश्वास और रूढ़िवाद के सांकलों से मेरा गाँव
अभी मुक्त नहीं हुआ है. नेता और पढ़े लिखे लोग गाँव जाकर अन्धविश्वास की चासनी
चाटने लगते हैं.
         एक बात और है.  अब मेरे गाँव में बन्दर भी बहुत आने लगे हैं.  लोग कहते हैं
की ये जंगलों के कटान के कारण गाँव की ओर आ रहे हैं.  कुछ लोंगों ने यह भी बताया
की पडोसी मैदानी राज्य से ट्रकों में भर कर बन्दर रात को उत्तराखंड की सडकों में उतार
दिए जाते हैं.  बन्दर जहाँ से भी आये उत्तराखंड के गाँव बंदरों से आतंकित हैं.

पूरन चन्द्र कांडपाल , १४ सितम्बर 2010
                   

Pooran Chandra Kandpal

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तथ्य, आस्था, और भावना का
संतुलन है अयोध्या फैसला 

अंततः अयोध्या का चिर प्रतीक्षित फैसला आया और यह राष्ट्र के हित में
हुआ.  वर्षों से लगे घनघोर बदल छटे और छै दशकों से चली बहस पर विराम
लगा.  सर्वधर्म समभाव और सामाजिक सौहार्द्र को नवप्राण मिला.  तथ्य, आस्था
और भावना के आधार पर संतुलित इस फैसले को सबने सिरमाथे लगाया.
इतिहास ने बहुत कुछ देखा.  आज नफरत को पूर्ण रूप से मिटाने का सुअवसर
आ गया है.  जो वजहें उच्चतम न्यायालय जाने के रह गयीं हैं उन्हें अब मिल-
बैठ कर सुलझाना चाहिए क्योंकि अब रास्ता आसान हो गया है.  अब वह घडी
आ गयी है जब दोनों सम्प्रदाय अतीत की कही सुनी को भूल कर उदार ह्रदय
का परिचय दें  और इस तरह समझौता कर लें कि अयोध्या में दोनों ही
पूजास्थलों का निर्माण हो सके भलेही यह निर्माण एक दूसरे से सट कर न हो.
आस्था के प्रतीक एक साथ या एक दूसरे से कुछ दूर भी तो बनाये जा सकते हैं.

      वैसे विश्व में यह अपने किस्म की एक अद्वितीय मिसाल होगी यदि मुसलमान
उस भूमि को जिसके अब वे कानूनी मालिक बन गए हैं राम मंदिर को दान कर
दें और इस उदारता के बदले हिन्दू पक्ष भी मस्जिद के लिए भूमि उपलब्ध करा के
मस्जिद निर्माण में पूर्ण सहयोग अर्पित करें.  यह हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द्र
की नयी शुरूआत होगी जो राष्ट्र के हित में होगा.  दोनों ही ओर की इस उदारता से
हिन्दू-मुस्लिम विवाद हमेशा के लिए दफ़न हो जायेगा और भारत की धर्मनिरपेक्षता
का गुणगान पूरे विश्व में होगा.
                                                                         पूरन चन्द्र कांडपाल
                                          ०१ अक्टूबर २०१०

Pooran Chandra Kandpal

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नहीं भूलेगा २ अक्टूबर 

हमारे देश के इतिहास में २ अक्टूबर एक महत्वपूर्ण दिन है.
हम सब जानते हैं कि इस दिन दो महान विभूतियों का जन्म
हुआ था.  महात्मा गाँधी जी और लालबहादुर शास्त्री जी.  एक का
नारा अमन एक का जय जवान जय किसान.  दोनों ही हमारे
देश के लिए इतना कुछ कर गए जो भुलाये नहीं भूलेगा.

२ अक्टूबर उत्तराखंड के जख्मों को भी हरा करता है. इस दिन
१९९४ में राष्ट्र-प्रहरियों की जननी उत्तराखंड की नारी का अक्षमनीय
अपमान हुआ. वर्दीधारी भेड़ियों ने नारी शक्ति का अपमान कर घोर
अपराध किया.  आज तक उन भेड़ियों को सजा नहीं दी गयी.
उत्तराखंड के जनमानस की यह मांग अभी  तक अपूर्ण  है.
मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर आज भी आवाज गूँज रही है--

     दो अक्टूबर चौरानबे की हो रही थी भोर
      रामपुर तिराहे पर मचा भेड़ियों का शोर
      रायी-बगोवाली की चौपाल जग गयी थी
      भेड़ियों के तांडव से जंग छिड़ गयी थी.

      कायरों ने राह में छिप कर घात लगाई
      नारी के अपमान की योजना बनाई
     निर्दोष निहत्थों पर लाठी  बन्दूक चलायी
     सैनिकों की जननी पर क्रूरता बरसाई .

      मैं दुर्योधन दुशासनों के बीच घिर गयी थी
       वर्दी में नरपिशाचों के नीयत फिर गयी थी
      कई कृष्ण आये तब बचाने मेरी लाज
      उनकी मानवता का आज भी ह्रदय पर राज.

       दिल की तमन्ना तब अधूरी रह गयी थी
       कमर में दराती की कमी खल गयी थी
       काश ! उस दिन मेरे हाथ में दराती होती
       हैवानों के चिथड़ों की खबर छपी होती.

                        पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

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भारत ने करके दिखाया 

   उन्नीसवे राष्ट्रमंडल खेलों में आरम्भिक सुस्ती , घौघाचाल ,छीछालेदरी और वर्षा
की बेरुखी से हम अनिश्चितता और निराशा से घिर चुके थे.  मीडिया ने लोहार की
धौकनी की तरह आफर (अलाव) के बुझे कोयलों को अंगारों में बदला और ठन्डे
पड़े तंत्र को गरमाया.  अंततः ३ अक्टूबर को एक भव्य, अद्भुत महाजश्न के साथ
खेलों का उद्घाटन हुआ.  बड़ी कुशलता के साथ १२ दिन खेल हुए और १४ अक्टूबर को
शानदार अविस्मरनीय जश्न के साथ खेलों का समापन हो गया.

   १२ दिन के इस महा आयोजन में कोई अप्रिय घटना नहीं हुयी.  हमने सभी प्रकार से
बेहतरीन आतिथ्य प्रस्तुत कर दुनिया का दिल जीता.  सबका सहयोग रंग लाया और
त्रुटियाँ ढूढने वाले देखते रह गए.  हमारी क्षमता पर शक करने वाले  हमारी सफलता के
कसीदे पढ़ते हुए चले गए.  हमारे खिलाडियों ने भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर देश को १०१
तमगों का उपहार दिया.  ३४ तमगे जीत कर महिलाओं ने भी देश को गौरवान्वित
किया.  हमने कई स्पर्धाओं में इतिहास भी बनाया. 

    अब पीछे मुड़कर नहीं देखना है.  खेल और खिलाडियों का सम्मान करते हुए आगे
बढ़ना है.  परिश्रम और लगन की भट्टी में तपते हुए २०११ में चीन में होने वाले एशियाई
खेलों के रस्ते २०१२ में लन्दन ओलंपिक में तिरंगे को बुलंद करना है. 

   अब न ये ज्वार थमे
   अब न ये कदम रुके
   बस एक ही लक्ष्य बने
   भारत को तमगे  मिले .

पूरन चन्द्र कांडपाल ,१६.१०.२०१० 

Pooran Chandra Kandpal

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कुमाउनी भाषा  सम्मेलन
 
१२ , १३ और १४ नवम्बर २०१० को अल्मोड़ा  में कुमाउनी  भाषा, साहित्य एवं
संस्कृति समिति कसारदेवी व 'पहरू' कुमाउनी मासिक पत्रिका, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
द्वारा कुमाउनी भाषा सम्मलेन  आयोजित किया गया.  इस सम्मलेन में कुमाउनी और
गढ़वाली भाषा को सविधान की आठवी अनुसूची में सम्मिलित करने का  पुन: प्रस्ताव
पारित हुआ .तीन दिन का यह सम्मलेन आठ सत्रों में आयोजित किया गया. सम्मलेन में 
दिल्ली, यू पी सहित पूरे उत्तराखंड से आये  कुमाउनी भाषा के लेखक, साहित्यकार, कवि एवं
बुद्धिजीवियों तथा  पाठकों ने भाग लिया.  सम्मलेन में कुमाउनी की लगभग एक सौ से
अधिक चुनिन्दा पुस्तकों की प्रदर्शनी भी लगायी गयी.

 
सम्मलेन के दूसरे दिन उत्तराखंड सरकार के संसदीय मंत्री श्री प्रकाश पन्त तथा
अल्मोड़ा क्षेत्र के सांसद श्री प्रदीप टम्टा ने भी सम्मलेन को संबोधित किया .
श्री पन्त के सम्मुख  कई मांगें  रखी गयी जिनमें भाषा अकादमी बनाना, लेखकों
को राज्य बनने के वर्ष से पुरस्कृत करना तथा प्राइमरी कक्षा से उत्तराखंडी
भाषाओँ को पढ़ाना सम्मिलित है. मंत्री जी ने इन मांगों को सरकार के सम्मुख
रखने का आश्वासन दिया.
 
सम्मलेन में कुमाउनी कविता की दशा दिशा, लोक साहित्य, लोक संगीत,
गद्य साहित्य (कहानी ,नाटक,निबंध, उपन्यास आदि ),भाषा विकास में
राजनैतिक दलों की भूमिका,मानकीकरण, व्याकरण , इतिहास ,काव्य गोष्ठी ,
बाल साहित्य सहित कई विधाओं पर व्याख्यान हुए. आयोजन समिति के
सचिव डा. हयात सिंह रावत  ने सबका धन्यवाद एवं आभार व्यक्त किया.

पूरन चन्द्र कांडपाल,रोहिणी दिल्ली.
 15.11.2010

Pooran Chandra Kandpal

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      कर खुद अपना संचालन तू
   कर सुआचरण का पालन तू.
 
   तू किसके भरोसे बैठा है
   क्यों अपनी जिद पर ऐंठा है,
   खुद को तो ललकार जरा
   बैठ कर्म के आसन तू. कर...

    जिस दिन उत्साह तेरा जागेगा
   तुझे देख अँधेरा भागेगा,
   विपरीत हवा थम जाएगी
   कर नूतन रश्मि आलिंगन तू. कर

   तेरी मेहनत जब रंग लाएगी
   संतोष सुगंध बिखराएगी ,
  तेरा बहता शोणित तुझसे कहे
   काया अपनी कर कंचन तू. कर...

   हो सदाचार श्रंगार तेरा
   हो मानवता संस्कार तेरा,
   बन शिष्ट सहज उदार प्रबल
   अपना करके अनुशासन तू. कर...

   तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे
   विजय पताका तेरे हाथ रहे,
   दस्तक देता उपहार लिए
   कर नव  वर्ष  अभिनन्दन तू,
 
   कर खुद अपना संचालन तू
   कर सुआचरण का पालन तू.

वर्ष २०११ की शुभकामनायें .

पूरन चन्द्र कांडपाल




Pooran Chandra Kandpal

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छब्बीस जनवरी 
 
कांग्रेस लाहौर अधिवेशन
रावी तट गूंजी  आवाज,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ उनतीस
माँगा हमने पूर्ण स्वराज.
 
मिली स्वतंत्रता हमने माना
हो भारत का नया संविधान,
गठन हुआ संविधान सभा का
सर्वजन का जो करे कल्याण.
 
पैंतीस महीने अठारह दिन में
संविधान तैयार हुआ,
छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास
देशहित में अंगीकार हुआ.
 
अपनों ने अपनों के लिए
बनाया संविधान अपना,
गयी हकूमत फिरंगियों की
साकार हुआ देखा सपना.
 
देशप्रेम के गीत गूँज  उठे
जगा जन-जन में विश्वास,
धूम मची गणतंत्र  पर्व की
छाया चतुर्दिक हर्षोल्लास.
 
राष्ट्रध्वज भारत का तिरंगा
हमने गगन में फहराया,
हर भारतवासी के मन मंदिर
राष्ट्र-प्रेम रंग गहराया.
 
गणतंत्र आयोजन पूरे देश में
मुख्य राजपथ पर छाये,
 देश-प्रेम की खुशबू निराली
उमंग भारत की लहराए.
 
भव्य परेड गणतंत्र दिवस की
विजय चौक से आगे बढ़ी,
राजपथ इण्डिया गेट गुजरते
लालकिला मैदान खड़ी.
 
राजपथ पर राष्ट्र शक्ति का
अद्भुत दृश्य निहार लिया,
राष्ट्रपति को देती सलामी
परेड का सत्कार किया.
 
राष्ट्र समृधि की कई झांकियां
प्रफुल्लित करती जनमन को ,
मंत्रमुग्ध हो जाते दर्शक
देख विमान छूते नभ को.
 
स्मरण शहीदों का भी होता
राष्ट्र प्रहरियों पर अभिमान,
राष्ट्र सेवा में जो हैं तत्पर
गाते उनका गौरव गान.
 
गणतंत्र परेड का स्वागत करने
जन सैलाब उमड़ कर आता,
राष्ट्र-शक्ति की देख झलक
गर्वित हर्षित मदमाता.
 
पूरन चन्द्र कांडपाल
19..01.2011

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बहुत सुंदर कांडपाल जी..

जारी रखियेगा ..

 

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