होली
हिरन्यकश्यप सुत मारन चाहे
बहन होलिका पास बुलावे,
लेकर गोद इसे बैठ पावक में
भष्म हो जाये पलक झपक में.
अग्नि ज्वाल प्रकटी भयंकर
चीत्कारी होलिका रुदन कर ,
हुयी भष्म बनी क्षण में राख
वरदान मिला था टूटी शाख .
भक्त प्रहलाद को आंच न आयी
टूटा गर्व पिता आततायी ,
तब से होली चमन में छायी
फागुन मॉस मादक ऋतु आयी.
वसंत ऋतु रंग पर्व निराला
सत-रंगी त्यौहार मतवाला ,
पवन वसंती राग की होली
गाये फाग मस्तों की टोली.
भीगे चोली बरसे फुहार
रंगीली पिचकारी धार,
मृदंग तबला ढोलक बाजे
झूम झूम होलीयारे नाचे.
भूल राग-द्वेष सब मन हरषे
रंग गुलाल अबीर चहुँ बरसे ,
रंग-बिरंगे फूल वन-उपवन
कर देते प्रफुल्लित जन तन-मन.
बादल उड़ते रंग गुलाल
लाली जित देखो तित लाल ,
जन मानस हर्षित हो जाता
उमड़े स्नेह क्लेश मिट जाता.
बहे बयार आनंद उमंग
नाच उठे होली हुडदंग ,
एक दूजे को गले लगाते
झूमते गाते और इतराते.
होली है त्यौहार मिलन का
निश्छल पावन प्रेम तपन का,
मिले न इसमें भंग धतूरा
इन्द्रधनुषी रंग छाये पूरा.
वसंत फागन कहीं डोल पूर्णिमा
होला मोहल्ला राग रंगमा,
रंग पंचमी कहीं रंगोली
खेले सारा भारत होली.
पूरन चन्द्र कांडपाल