Author Topic: Articles By Shri Pooran Chandra Kandpal :श्री पूरन चन्द कांडपाल जी के लेख  (Read 61434 times)

Pooran Chandra Kandpal

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राजधानी नि गई गैरसैण
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में  चौतरफा कुहुकि रितुरैण
राज्ये कि राजधानी  बनन चैंछ बीच गैरसैण .
य चौरानबे कि बात छ जब आन्दोलन भपिकी रौछी
देश भरिक उत्तराखंडी सारे मुलुक गजूं रौछी.
नौ नवम्बर द्वि हजार में  राज्य बनि गोय
काम चलाऊ राजधानी देहरादून तै है गोय.
राजधानी जाग ढुनु हूँ  एक आयोग बैठे  दी
बस, गैरसैनै बात उदिनै बै लटकै दी.
आयोगै ल गैरसैण कें ट्याड़ अखां ल चाय
यां राजधानी नि है सकनी अड्प्याच लगाय.
य सब आयोगैल  कुर्सी क  संकेतैल करौ
जस करिए कै थौ छी बिलकुल उसै करौ.
उत्तराखंड  क सबै दल आँख बुजी चनीं  रईं
अद्जगी लकाड़ जास  कुणफन  टड़ी  रईं.
य बीच देहरादून कें चमकाते रईं
मिलिभगत  में आँख झपकाते रईं.
जो दल मुखर छी उ सरकार में  मिलि गोय
कुर्सी क असरैल वीक लै  गिच बंद है गोय.
माफिया कंपनी ल यस  असर दिखाय
देहरादून रंगाय गैरसैण कें भुलि गाय.
राजधानी लिजी बाबा मोहन उत्तराखंडी ल लगाय त्राण
अडतीस दिन क अनशन में न्हें गाय गैरसैना लिजी प्राण .
पहाड़ क भल  तबै हुन जब राजधानी पहाड़ बननि
तबै पहाड़ में विकासे कि हाव लै चलनि.
आज देहरादून पहाडे कि चुहुलिबाजी करैं रौ
पहाड़ क भांच मारि 'रस' एकले गटकुंरौ .
पहाडक पहाड़ी उं कर्णधारों कें चाइए रैगीं
जो भ्रष्टाचार किल पर देहरादून बदिए रैगीं .
तुम चाइये  रौला एकदिन राजधानी जरूर भाजलि गैरसैण
भ्रष्टाचार क उ भैंस  लै मरल जो एल हैरौ लैण .

पूरन चन्द्र कांडपाल   
06.05.2011

Pooran Chandra Kandpal

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बाल जिज्ञासा 

नन्हा सा बस्ता मैया मुझको मंगा दो
शिक्षा का पहला पाठ पढ़ा दो.
अ से अनार आ से आम
तरबूज खरबूज लीची बादाम
सेब संतरा नीबू केला
कितने सारे फलों के नाम
मुझको मैया जी तुम बतला दो.
नन्हा सा ..

च से चम्पा ल से लीली
बेला गुलाब गेंदा जूही चमेली
कमल नर्गिस सूरजमुखी
मोगरा, रात की रानी, अलबेली.
फूलों से मैया मेरा मन महका दो.
नन्हा सा..

बाज कबूतर कोयल मोर
हंस पपीहा तीतर चकोर
चील कौआ तोता मैना
सारस बुलबुल बतख का शोर.
चिड़ियों की बोली मैया मुझे सिखला दो.
नन्हा सा..

ब से बसन्ती ध से धानी
हरा बैगनी रंग आसमानी
लाल गुलाबी काला पीला
श्वेत केसरिया जामुनी नीला.
इन्द्रधनुष के मैया रंग बतला दो.
नन्हा सा..

सूरज चंदा अगिनत तारे
पेड़ पर्वत झरने प्यारे
कल कल करता जल नदिया का
तितली भौंरे दीप जुगनू का.
आये कहाँ से मैया मुझे समझा दो.
नन्हा सा..
 
दिन उजला क्यों रात है काली
रिमझिम वर्षा लगे निराली
खेत हरियाले नीला आसमान
चलती हवा क्यों आये तूफ़ान.
हवा के शोर का राज बता दो.
नन्हा सा..

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

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सामरिक दृष्टि से हो उत्तराखंड का विकास 

   उत्तराखंड की जनता की यह चिंता उचित है कि उत्तराखंड की अनदेखी करने पर
चीन का खतरा बरकरार ही नहीं रहेगा अपितु बढ़ता  ही रहेगा.  चीन से लगी हमारी
सीमा का एक बहुत बड़ा भाग उत्तराखंड में है.  चीन अपनी सीमा तक रेल - सड़क
सहित हवाई यातायात को चुस्त कर चुका है.  पकिस्तान उसका खुलकर समर्थन
करने के साथ ही हथियाए गए भारतीय भू-भाग पर चीन को घूमने की खुली छूट
भी दे रहा है.  उत्तराखंड  में हमारी सीमा तक अच्छी सड़कों का निर्माण तो होना
ही चाहिए, रेल लाइन भी बिछाई जानी चाहिए.  सड़क-रेल के उचित निर्माण से
स्थानीय लोग तो लाभान्वित होंगे, सैन्य तैयारी भी चुस्त रहेगी.  योजना आयोग
का यह कहना उचित है कि उत्तराखंड में पनबिजली की अपार संभावनाएं हैं
परन्तु राज्य में बड़े बांध बनाकर पर्यावरण का नुकसान तो होता ही है विस्थापन
की समस्या के साथ-साथ पहाड़ का दरकना और नदियों का सुरंग में जाना किसी
के हित में नहीं है.  बड़े बांधों की जगह छोटी पनबिजली परियोजनाओं को अपनाया
जाना चाहिए.  इन छोटी परियोजनाओं से स्थानीय लोगों को पानी भी मिलेगा,
बिजली भी मिलेगी  और हिमालय भी नहीं दरकेगा, साथ  ही किसी बड़ी आपदा की
शंका भी नहीं रहेगी.  स्थानीय लोग कहते हैं ,' बड़े बांधों के समर्थकों को उत्तराखंड
या देश की चिंता नहीं है.  भ्रष्टाचार में बड़ी भागीदारी बड़ी योजनाओं में ही संभव
है.  लघु योजना से भ्रष्टाचार के भाष्मसुरों का पेट नहीं भरता.'

पूरन चन्द्र कांडपाल

हलिया

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वाह! भौत बढिया हो महाराज काण्डपाल ज्यू.


राजधानी नि गई गैरसैण
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन में  चौतरफा कुहुकि रितुरैण
राज्ये कि राजधानी  बनन चैंछ बीच गैरसैण .
य चौरानबे कि बात छ जब आन्दोलन भपिकी रौछी
देश भरिक उत्तराखंडी सारे मुलुक गजूं रौछी.
नौ नवम्बर द्वि हजार में  राज्य बनि गोय
काम चलाऊ राजधानी देहरादून तै है गोय.
राजधानी जाग ढुनु हूँ  एक आयोग बैठे  दी
बस, गैरसैनै बात उदिनै बै लटकै दी.
आयोगै ल गैरसैण कें ट्याड़ अखां ल चाय
यां राजधानी नि है सकनी अड्प्याच लगाय.
य सब आयोगैल  कुर्सी क  संकेतैल करौ
जस करिए कै थौ छी बिलकुल उसै करौ.
उत्तराखंड  क सबै दल आँख बुजी चनीं  रईं
अद्जगी लकाड़ जास  कुणफन  टड़ी  रईं.
य बीच देहरादून कें चमकाते रईं
मिलिभगत  में आँख झपकाते रईं.
जो दल मुखर छी उ सरकार में  मिलि गोय
कुर्सी क असरैल वीक लै  गिच बंद है गोय.
माफिया कंपनी ल यस  असर दिखाय
देहरादून रंगाय गैरसैण कें भुलि गाय.
राजधानी लिजी बाबा मोहन उत्तराखंडी ल लगाय त्राण
अडतीस दिन क अनशन में न्हें गाय गैरसैना लिजी प्राण .
पहाड़ क भल  तबै हुन जब राजधानी पहाड़ बननि
तबै पहाड़ में विकासे कि हाव लै चलनि.
आज देहरादून पहाडे कि चुहुलिबाजी करैं रौ
पहाड़ क भांच मारि 'रस' एकले गटकुंरौ .
पहाडक पहाड़ी उं कर्णधारों कें चाइए रैगीं
जो भ्रष्टाचार किल पर देहरादून बदिए रैगीं .
तुम चाइये  रौला एकदिन राजधानी जरूर भाजलि गैरसैण
भ्रष्टाचार क उ भैंस  लै मरल जो एल हैरौ लैण .

पूरन चन्द्र कांडपाल   
06.05.2011

Pooran Chandra Kandpal

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       आज संकल्प करें धूम्रपान निषेध  का
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस ३१ मई २०११

* तम्बाकू एवं इसके उत्पादों  से प्रतिवर्ष विश्व में ६० लाख लोग
   अकाल मृत्यु  का शिकार हो जाते हैं.
* भारत में तम्बाकू उत्पादों के सेवन से प्रतिवर्ष १० लाख
   लोग मर जाते हैं.
* तम्बाकू कैंसर, ह्रदय रोग और फेफड़ा रोग का मुख्य कारण है.
* एक नई रिपोर्ट के अनुसार ७६.९८% पुरुष, २३% महिलाएं
   धूम्रपान के चपेट में हैं.
*  परोक्ष रूप से ९०% लोग धूम्रपान के शिकार हैं.
* आज ही छोडिये धूम्रपान और तम्बाकू.
*  जो धूम्रपान नहीं करते वे अपने मित्रों, प्रियजनों 
   सम्बन्धियों और सहकर्मियों से धूम्रपान नहीं
   करने का आग्रह करें.
* बच्चे अपने पापा से कहें "पापा धूम्रपान मत करो"
* कम से कम प्रतिदिन एक व्यक्ति को धूम्रपान से मुक्ति दिलाएं
  क्योंकि वह व्यक्ति आपको भी धुआं पिला रहा है.

जरा सोंचें
 गुटखा  तम्बाकू धूम्रपान
लहू तेरा पी रहे सुनसान
अभी वक्त है छोड़ नशे को
बन समाज का व्यक्ति सुजान.

खैनी गुटखा पान मशाला
चूना कथा जर्दा वाला
पुडिया तम्बाकू मुहं में उड़ेले
कब जागेगा तू इंसान .
गुटखा तम्बाकू...                 
 पूरन चन्द्र कांडपाल
(लेखक शराब, धूम्रपान और आप)
   

Himalayan Warrior /पहाड़ी योद्धा

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Ati sunder Kandpal Ji..

Very interesting article. Please keep posting.


Pooran Chandra Kandpal

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साहित्य लहर   

   वर्ष १९७१ में भारत-पाक युद्ध हुआ. यह युद्ध १४ दिन तक लड़ा गया.
पाकिस्तान की 93000 फ़ौज के भारतीय सेना के सामने समर्पण करने
के साथ ही बंगलादेश का जन्म हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस
युद्ध का सदस्य रहा हूँ. उस दौरान मैं देश की पश्चिमी सीमा पर एक
इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ अटैच था. १६ दिसंबर १९७१ को सायं ८ बजे
युद्ध बंद हो गया. युद्ध समाप्ति के बाद भी हमने जमीन के अन्दर
बंकरों में कई महीने बिताए. उस दौरान जब समय मिलता में दो-चार
पंक्तियाँ लिख लेता था.

    तब से कलम निरंतर चल रही है. कलम घिसते हुए ४० वर्ष हो गए
हैं परन्तु पहली किताब 'जागर' उपन्यास के तौर पर वर्ष १९९५ में हिंदी
अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित हुयी. पुस्तक छपवाने की आर्थिक
सामर्थ्य नहीं थी.  इसलिए 'जागर' उपन्यास करीब बीस साल तक मेरे बक्से
में बंद रहा.

     मेरे मन में उठी साहित्य लहर की बहुत लम्बी कहानी है .  अब तक
में उन्नीस पुस्तकें लिख चुका हूँ. प्रत्येक पुस्तक छपवाने के लिए जो पापड़
मुझे बेलने पड़े उसकी चर्चा करने की अब आवश्यकता नहीं समझता हूँ.

    लेखन क्षेत्र में मेरी कलम देशप्रेम, समाज सुधार, रुढ़िवाद और अन्धविश्वास
के विरोध में चलती है. शहीदों का स्मरण और शहीद परिवारों के प्रति श्रद्धा
मेरी कलम का दृष्टिकोण है.  मेरे लेखन  के तानेबाने में विपत्ति में धैर्य,
जीवन सादगी से जीने, संस्कृति बचाने, सकारात्मक सोचने, कर्म संस्कृति
अपनाने , सार्थक बदलाव स्वीकार करने, नशा-मुक्ति का प्रचार करने, जल-जंगल-
जमीन प्रदूषित नहीं करने, वृक्षारोपण करने तथा विसर्जन के नाम पर नदियों
का रूप नहीं बिगाड़ने का विनम्र अनुरोध है.  गांधीगिरी में बहुत ताकत है.
में इसे अपनाने का प्रयास करता हूँ और समाज से कूपमंडूकता से बाहर
आने की प्रार्थना करता हूँ.

   उक्त बिन्दुओं/सिद्धांतों के आधार पर कलम चलाते हुए मैंने साहित्य की
कई विधाओं पर लेखनी चलाई है. उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह ,
जीवनी, स्वास्थ्य शिक्षा, बाल शिक्षा,कारगिल युद्ध , लेख संग्रह सहित तीन
पुस्तकें  कुमाउंनी में भी लिख चुका हूँ. हिंदी में लिखी गयी दो पुस्तकें
पुरस्कृत भी हुयी हैं. लेखन जारी है और कुछ पत्र/पत्रिकाओं में भी छ्प
रहा है. पाठकों ने मेरे कलम पर धार लगाई है और लगाते जा रहे हैं .
प्रभु से अराधना है कि कलम चलती रहे और साहित्य की लहरों में
में हिचकोले लेता रहूँ. में अपने उन पाठकों/प्रियजनों का आभारी
हूँ जिन्होंने मेरे साहित्य की वेब साईट बनाई है और साहित्य
जगत में मेरी लेखनी की चर्चा की है.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

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हम स्वतंत्र हैं

    अगस्त २०११ के ज्ञान विज्ञानं बुलेटिन के सम्पादकीय
'दिल पे रखकर हाथ कहिये देश क्या आजाद है?' के सन्दर्भ में
कहना चाहूँगा कि संविधान ने जो आजादी हमें दी हमने उसे भुला
दिया. हमने देश और समाज का चिंतन छोड़ दिया. हम सोच बैठे हैं
कि हमारा प्रत्येक कार्य सरकार करेगी और हम सिर्फ अपने हक़
एवं अधिकार के लिए चिल्लायेंगे. हमने अपने कर्त्तव्य को तिलांजलि
दे दी है. इसे व्यंग नहीं समझे, हमने निम्न कुछ स्वतंत्रता स्वयं
अपना ली हैं. पता नहीं ये स्वतंत्रता हमें कहाँ ले जाएगी?

१. हम सरकारी सम्पति को अपना नहीं समझते और उसे अक्सर
     नुक्सान पहुचाते हैं.
२.हम बिना काम के वेतन लेने के आदि हो गए हैं.
३.हम घूस को सुविधा शुल्क समझने लगे हैं.
४.हम सभी कानूनों के अवहेलना कर रहे हैं.
५.हम दादागिरी करने और जिश्म की नुमायस करने में स्वच्छंद हैं.
६. हम पूरी रात पटाखे छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं.
७.हमें पूरी रात डी जे बजाने और लाउडस्पीकर बजाने के आजादी है.
८.मुफ्त में हमें कुछ भी मिल जाये उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं.
९.हमें शराब पीकर हुडदंग मचाने की खुली छूट है.
१०हम निडर होकर महिलाओं के साथ छेड़खानी कर रहे हैं.
११.कन्या भ्रूण हत्या करने से हमें कोई नहीं रोक सकता.
१२.उक्त सभी स्वतंत्रता का निडर होकर भोग करना हमारा अधिकार बन गया है.
१३.ऐसी ही अंतहीन अनेकों स्वतंत्रताएं हैं जिनको हम तमाशबीन बनकर देख रहे हैं.

       मूक दर्शक बनकर उक्त उदंडता को देख कर मसमसाना हमारी नियति बन गयी है.
हम भी इस उदंडता के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार हैं क्योंकि हमने मुहं खोलना
छोड़ दिया है. फिर भी स्वतंत्रता के ६४ वीं वर्षगांठ पर सबको बधाई और
शुभकामनायें.

पूरन चन्द्र कांडपाल 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कांडपाल जियु... बहुत सुंदर...लेखछा तुमि..

हमर सौभाग्य छु तुमार लेखिनी अंश यां पड्न के मिलनी... तुमार कलम चलते रवो महराज..
साहित्य लहर   

   वर्ष १९७१ में भारत-पाक युद्ध हुआ. यह युद्ध १४ दिन तक लड़ा गया.
पाकिस्तान की 93000 फ़ौज के भारतीय सेना के सामने समर्पण करने
के साथ ही बंगलादेश का जन्म हुआ. यह मेरा सौभाग्य है कि मैं इस
युद्ध का सदस्य रहा हूँ. उस दौरान मैं देश की पश्चिमी सीमा पर एक
इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ अटैच था. १६ दिसंबर १९७१ को सायं ८ बजे
युद्ध बंद हो गया. युद्ध समाप्ति के बाद भी हमने जमीन के अन्दर
बंकरों में कई महीने बिताए. उस दौरान जब समय मिलता में दो-चार
पंक्तियाँ लिख लेता था.

    तब से कलम निरंतर चल रही है. कलम घिसते हुए ४० वर्ष हो गए
हैं परन्तु पहली किताब 'जागर' उपन्यास के तौर पर वर्ष १९९५ में हिंदी
अकादमी दिल्ली के सौजन्य से प्रकाशित हुयी. पुस्तक छपवाने की आर्थिक
सामर्थ्य नहीं थी.  इसलिए 'जागर' उपन्यास करीब बीस साल तक मेरे बक्से
में बंद रहा.

     मेरे मन में उठी साहित्य लहर की बहुत लम्बी कहानी है .  अब तक
में उन्नीस पुस्तकें लिख चुका हूँ. प्रत्येक पुस्तक छपवाने के लिए जो पापड़
मुझे बेलने पड़े उसकी चर्चा करने की अब आवश्यकता नहीं समझता हूँ.

    लेखन क्षेत्र में मेरी कलम देशप्रेम, समाज सुधार, रुढ़िवाद और अन्धविश्वास
के विरोध में चलती है. शहीदों का स्मरण और शहीद परिवारों के प्रति श्रद्धा
मेरी कलम का दृष्टिकोण है.  मेरे लेखन  के तानेबाने में विपत्ति में धैर्य,
जीवन सादगी से जीने, संस्कृति बचाने, सकारात्मक सोचने, कर्म संस्कृति
अपनाने , सार्थक बदलाव स्वीकार करने, नशा-मुक्ति का प्रचार करने, जल-जंगल-
जमीन प्रदूषित नहीं करने, वृक्षारोपण करने तथा विसर्जन के नाम पर नदियों
का रूप नहीं बिगाड़ने का विनम्र अनुरोध है.  गांधीगिरी में बहुत ताकत है.
में इसे अपनाने का प्रयास करता हूँ और समाज से कूपमंडूकता से बाहर
आने की प्रार्थना करता हूँ.

   उक्त बिन्दुओं/सिद्धांतों के आधार पर कलम चलाते हुए मैंने साहित्य की
कई विधाओं पर लेखनी चलाई है. उपन्यास, कहानी संग्रह, कविता संग्रह ,
जीवनी, स्वास्थ्य शिक्षा, बाल शिक्षा,कारगिल युद्ध , लेख संग्रह सहित तीन
पुस्तकें  कुमाउंनी में भी लिख चुका हूँ. हिंदी में लिखी गयी दो पुस्तकें
पुरस्कृत भी हुयी हैं. लेखन जारी है और कुछ पत्र/पत्रिकाओं में भी छ्प
रहा है. पाठकों ने मेरे कलम पर धार लगाई है और लगाते जा रहे हैं .
प्रभु से अराधना है कि कलम चलती रहे और साहित्य की लहरों में
में हिचकोले लेता रहूँ. में अपने उन पाठकों/प्रियजनों का आभारी
हूँ जिन्होंने मेरे साहित्य की वेब साईट बनाई है और साहित्य
जगत में मेरी लेखनी की चर्चा की है.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Pooran Chandra Kandpal

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हिंदी अपने राष्ट्र की भाषा, पढ़ लिख नेह लगाय
सीखो चाहे और कोई भी, हिंदी नहीं भुलाय,
 हिंदी नहीं भुलाय , आया चौदह सितम्बर देखो
जन जन की यह  भाषा हे राष्ट्र प्रेमी जागो,
कह 'पूरन' कार्यालय में बनी यह चिंदी
बीते चौसठ बरस , अपनाई नहीं हिंदी.
 
पूरन चन्द्र कांडपाल
14.09.2011

 

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