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Articles by Writer, Lyrist & Uttarakhand State Activitvist Dhanesh Kohari

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Dosto,

Mr Dhanesh Kothari is a popular name in Uttarakhandi Folk Music as lyricist. Apart from this, Mr Koshari is man of multi-skilled. He is writer, poet and journalist. During the Uttarakhand State struggle, Dhanesh Kothori ji actively participated in various activities for the new state and he had been sentenced 6 days imprisonment also.

Here Dhanesh ji will share his experience of during Uttarakhand state struggle and he also write articles on various public issues other subjects in merapahad portal.

We are sure you will like the articles of Dhanesh Ji and write your feedback on his articles here.

Regards,


M S Mehta

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Brief Introduciton of Mr Dhanesh Kothori Ji which he himself has written for us.

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मेहता जी नमस्कार। अस्तु आप सपरिवार कुशलता से होंगे। ऐसी मेरी कामना है और भगवान बदरी विशाल से भी यही कामना करता हूं।

जैसा कि आपने नई पोस्ट के वास्ते मेरा व्यक्तिगत परिचय के लिए कहा था। तो निम्नांकित साहित्यिक परिचय के साथ ही शेष जानकारी इस प्रकार है।

मेरा जन्म देवप्रयाग (गढ़वाल) में हुआ है। शिक्षा देवप्रयाग के साथ ही Rishikesh में स्नातक तक हुई है। 1984 में मेरी एक बाल कविता ‘चंपक’ में प्रकाशित हुई थी। साहित्यिक शुरूआत लगभग 1986 से गढ़वाली भाषा में गीत लेखन से हुई। मेरा पहला गीत भगवान बदरीनाथ को समर्पित ‘तेरि जय हो हे बदरी विशाल’ था। जो कि प्रसिद्ध गायक गीतकार कमलनयन डबराल ने 1999 में टी सीरिज से रिलीज एलबम ‘ठंडुमठु’ में शामिल किया था। हालांकि सबसे पहले सुप्रसिद्ध गढ़वाल गायिका मंगला रावत ने मेरे दो गीतों को 1995 टी सीरिज से रिलीज एलबम ‘छुईमुई’ में आवाज दी थी। मंगला रावत ने एक और एलबम ‘प्रीत खुजैई’ में भी शीर्षक गीत के रूप में शामिल किया था।

लेखन का दौर जारी रहा और उत्तराखण्ड आंदोलन में भी साहित्यिक गतिविधियों के साथ ही जमीन तौर पर भी इसमें शिरकत करते हुए 6 दिन टिहरी जेल में भी साथियों के साथ रहा। इस दौर में मुझे लेखन की भारी ऊर्जा हासिल हुई। जोकि आज तक मिल रही है। इसी बीच वर्ष 2009 में धाद प्रकाशन देहरादून ने मेरी पहली काव्य पुस्तक ‘ज्यूंदाळ्’ प्रकाशित की। लेखन के लगभग दो दशक से अधिक मैं कई दैनिक समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन करता रहा। जिनमें दून दर्पण, हिमालय दर्पण, अमर उजाला, दैनिक जागरण, युगवाणी, जनपक्ष आजकल आदि शामिल हैं। वर्तमान में मैं बीते तीन सालों से राष्ट्रीय सहारा बदरीनाथ प्रतिनिधि के रूप में बदरीनाथ में कार्यरत हूं। बीते साल से बेव दुनिया में- मेरा पहाड़, यंग उत्तराखण्ड, पहाड़ी फोरम के साथ ही फेसबुक, ऑरकुट व अन्य से जुड़कर अपने लेखन व विचारों को प्रबुद्ध समाज के साथ सहकार कर रहा हूं।

मान्यवर, इसके अलावा भी यदि कुछ अन्य जानकारियां वांछित हों तो बताईयेगा। मैं प्रेषिक कर दूंगा। फिलहाल मोटे तौर पर मेरा परिचय इतना भर है। आने वाले वर्षों के लिए एक गढ़वाली व्यंग्य संकलन निकालने की तैयारी कर रहा हूं।

साहित्यिक परिचय

नाम              :     धनेश कोठारी

पता              :     हाल- हाट रोड, श्यामपुर, Rishikesh

जन्मतिथि          :     26 दिसम्बर 1970

शैक्षिक अर्हता      :     स्नातक-कला, राजकीय महाविद्यालय, ऋषिकेश।

प्रकाशित कृति     :     ज्यूंदाळ ;गढ़वाली कविता संग्रह।

संपादन          :      आवाज ;कविता संग्रह,

उत्तरस्थ वाणी ; मासिक पत्रा- शुरूआती 4 माह तक।

कला संपादन      :     स्मरणम् ;डा. पारथसारथि डबराल स्मृतिग्रन्थ।

समाचार संपादन    :     बच्चों का नजरिया ;मासिक।

 

स्वतंत्रा लेखन       :     दैनिक अमर उजाला, दैनिक राष्ट्रीय सहारा, चिट्ठी-पत्री, युगवाणी,

पर्वतजन, उत्तराखण्ड खबरसार, उत्तराखण्ड आजकल, सहारा समय, मध्य हिमालय ;
समाचार पत्रा-पत्रिकायें- आवाज, अस्तित्व, दो कदम
सामूहिक कविता संग्रह में कविता, व्यंग्य एवं आलेख प्रकाशित।

साहित्यिक सक्रियता     

ः     आकाशवाणी नजीबाबाद में 1996 से निरन्तर काव्य गोष्ठियों में

प्रतिभाग।

ः     साहित्यिक संस्था आवाज, धाद, सदभावना, क्रेजी फेडरेशन आदि के मंचों पर प्रतिभाग।

ः     1994-2009 तक 25 से अधिक गढ़वाली ऑडियो कैसेटस् में गीत प्रसारित।

संप्रति            :     स्वतंत्र लेखन।

Dhanesh Kothari

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
More about Dhanesh JI.


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देवप्रयाग से आरम्भ मेरी जीवन यात्रा का अगला शैक्षिक   पड़ाव ऋषिकेश रहा। जहां स्नातक तक पहुंचकर मैं ठहर गया। इसी अन्तराल में   मेरी पहली कविता जन्मी। जोकि १९८४ में बाल पत्रिका ’चंपक’ में प्रकाशित हुई। लेखन की असल शुरूआत १९८६ में पहले गढ़वाली गीत ’तेरि जय हो हे बदरी विशाल’ से हुई। १९९६ में पहाड़ की सुप्रसिद्ध गायिका मंगला रावत ने टी सीरिज से रिलीज एलबम ’छुईमुई’ में दो गीतों ’ कब पूरी ह्‌वेली जग्वाळ व मेरू दिल क्वी लिग्याई’ को   अपनी आवाज दी। बढ़ते हुए उत्तराखण्ड आंदोलन के दौरान साथियों के साथ ६ दिन   टिहरी में जेल काटी। इन्हीं दिनों कुछ स्थानीय अखबारों में भी कलम रगड़ी।   आजकल राष्ट्रीय सहारा से चिपका हूं। हालांकि स्वतंत्र तौर पर यदाकदा कुछ   पत्रिकाओं में भी छप रहा हूं। २००९ साल मेरे लिए अहम था जब "धाद प्रकाशन" देहरादून ने मेरी पहली कविता पोथी "ज्यूंदाळ्‌" प्रकाशित की। किताब के अगले कदम में मेरी तैयारी गढ़वाली व्यंग्य की है।

धनेश कोठारी:
बोली- भाषा

नवाणैं सि स्याणि छौं
गुणदारौं कू गाणि छौं   

बरखा कि बत्वाणी छौं
मंगरौं कू पाणि छौं   

निसक्का कि ताणि छौं
कामकाजि कू धाणि छौं   

हैंकै लायिं-पैर्यायिं मा
अधीत सि टरक्वाणि छौं   

कोदू, झंगोरु, चैंसू-फाणू
टपटपि सि गथ्वाणी छौं   

हलकर्या सासु का बरड़ाट मा
बुथ्योंदारी सि पराणी छौं   

अद्‍दा-अदुड़ी, सेर-पाथू
यूंकै बीचै मांणि छौं   

बोली छौं मि भाषा छौं
अपड़ी ब्वै कि बाणी छौं   

Dhanesh Kothari

धनेश कोठारी:
पहाड़ का आधुनिक चेहरा है 'तेरी आँख्यूं देखी'
•धनेश कोठारी  रामा कैसटस् प्रस्तुत ऑडियो-वीडियो ''तेरी आँख्यूं देखी'' से गढ़वाली गीत-संगीत के धरातल पर बहुमुखी प्रतिभा नवोदित संजय पाल और लक्ष्मी पाल ने पहला कदम रखा है। संजय-लक्ष्मी गढ़वाली काव्य संग्रह 'चुंग्टि' के सुप्रसिद्ध रचनाकार स्वर्गीय सुरेन्द्र पाल जी की संतानें हैं। लिहाजा 'तेरी आँख्यूं देखी' को भी पहाड़ के सामाजिक तानेबाने में अक्षुण्ण सांस्कृतिक मूल्यों को जीवंत रखने की कोशिश के तौर पर देखा और सुना जा सकता है।
एलबम का एक गीत 'मेरो पहाड़' इसका बेहतरीन उदाहरण है।न्यू रिलीज 'तेरी आँख्यूं देखी' का पहला गीत 'तु लगदी करीना' पहाड़ी 'करीना' से प्रेम की नोकझोंक के जरिये नई छिंवाल को मुग्ध करने के साथ ही 'बाजार' से फायदा पटाने के मसलों से भरपूर है। मनोरम वादियों की लोकेशन पर फैशनपरस्त स्टाइल में सजी इस कृति को अच्छे गीतों की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है। हां, पिक्चराईजेशन में नेपाली वीडियोज का असर साफ दिखता है। गढ़वाली संगीत में स्क्रीन पर ऐसे प्रयोग अभी नये हैं। जिन्हें पहाड़ का आधुनिक चेहरा भी कहा जा सकता है।
प्रसिद्ध देशगान 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' की तर्ज पर रचा गया एलबम का दूसरा गीत 'मेरो पहाड़' उत्तराखण्ड का राज्यगान होने की सामर्थ्य रखता है। इस गीत से संजय पाल ने रचनाकर्म के क्षेत्र में नई संभावनाओं को भी रेखांकित किया है। इसमें उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं पुरातात्विक रंगों का खूबसूरत समावेश दर्शाता है कि संजय के पर्दापण का मकसद सिर्फ 'बाजार' को 'लूटना' नहीं है, बल्कि वह पहाड़ की वैभवशाली 'अन्वार' को दुनिया को भी दिखाना चाहता है। गीत के दृश्यांकन में यह दिखता भी है। इस रचना से संजय ने अपने पिता प्रसिद्ध कवि स्वर्गीय सुरेन्द्र पाल की विरासत को संभालने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है।
सचमुच, पहाड़ सैलानियों को जितने सुन्दर और मोहक दिखते हैं, उतना ही सच है यहां का 'पहाड़' जैसा जीवन। कारण सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार की मौलिक जरुरतों के इंतजार में 'विकास' आज भी 'टकटकी' बांधे है। सो, यहां जिंदा रहने के मायनों को समझा जा सकता है। तीसरा गीत ‘रंगस्याणु च सौंगु’पहाड़ के ऐसे ही वर्तमान की प्रतिनिधि रचना है। बेहतर रचना के बावजूद गायकी इसका असर कम करती है। ‘औ लाडी खुट्टी बढ़ौ’गीत हर माँ-बाप की उम्मीदों में एक कामयाब बच्चे की कल्पना की कहानी कहता है। वे उसी कामयाब बेटे में बुढ़ापे की आशायें भी तलाशते हैं। इस संकलन का सुन्दर और मार्मिक गीत होने के साथ ही यह प्रस्तुति हर बेटे से आह्वान भी करती है कि, .... औ लाडी थामि ले औ... ।
शीर्षक गीत ‘तेरी आँख्यूं देखी’में नवोदित अभिनेत्री पूनम पाण्डेय के कशिश पैदा करते चेहरे-मोहरे के बावजूद यह प्रेमगीत खास प्रभाव नहीं छोड़ता है। विश्वाश की नींव पर रचे गये इस गीत के दृश्यांकन में कई शॉर्ट्स में प्रकाश के प्रभाव के प्रति लापरवाही या कहें अधकचरापन साफ झलकता है।
स्वर्गीय सुरेन्द्र पाल की कविता ‘ना पी ना पी’के स्वरबद्ध कर संजय ने अपने पिता के साहित्यिक अवदान को ताजा किया है। कह सकते हैं कि यह पूर्वजों को श्रद्धांजलि भी है। गीत पहाड़ में शराब के कारण उत्पन्न त्रासद स्थितियों की चित्रात्मक प्रस्तुति है। ऐसे गीत भले ही इस संवेदनशून्य समाज में जुबानी सराहना पाते हैं, किंतु दूसरी ओर सांझ ढलते ही कई सराहने वाले नशे में ‘धुत्त’होकर इन्हें अप्रासंगिक भी बना डालते हैं। तब भी कवि/गीतकार का संदेश रचनाकार की सामाजिक प्रतिबद्धता को अवश्य जाहिर करता है। यही उसका धर्म भी है।
’जननी जन्मभूमिश्च: स्वर्गादपि गरियसि’की उक्ति निश्चित ही ‘बौड़ा गढ़देश’गीत पर लागू होती है। पहाड़ अपने नैसर्गिक सौंदर्य के साथ ही जीवंत सांस्कृतिक ताने-बाने के लिए भी जाना जाता है। जहां मण्डांण क थाप पर सिर्भ थिरकन ही नहीं पैदा होती बल्कि कल्पना के कैनवास पर यहां आस्वाद में गाढ़े-चटख रंग बिखर जाते हैं और इन्हीं रंगों में मिलता है बांज की जड़ों का मीठा पानी, थिरकता झूमैलो, रोट-अरसा की रस्याण, ग्योंवळी सार्यों की हरियाली, मिट्टी की सौंधी सुगंध और इंतजार करती आंखें। मीना राणा के स्वर इस गीत को कर्णप्रिय बनाते हैं।
शिव की भूमि उत्तराखण्ड में आज तक शिव जागे हैं यह नहीं, लेकिन लोकतंत्र के साक्षात ‘स्वयंभू शंकर’राजनीति की चौपाल में जरुर जागे हुए विराट रुप में अवतरित हैं। उन्होंने अपने नजदीकी भक्तों के अलावा बाकी को ‘खर्सण्या’बनाकर नियति के भरोसे छोड़ा हुआ है। अराध्य शिव को जगाता यह आखिरी गीत ‘कैलाशपति भोले’यों तो लोकतंत्र के कथानक से अलग भक्ति का ही तड़का है, मगर त्रिनेत्र के खुलने की ‘जग्वाळ’वह भी अवश्य करता है।’
'तेरी आँख्यूं देखी'’नवोदित संजय के साथ प्रख्यात लोकगायक चन्द्रसिंह राही, मीना राणा, लक्ष्मी पाल, मधुलिका नेगी, कल्पना चौहान, गजेन्द्र राणा और मंगलेश डंगवाळ के स्वरों से सजी है। गीत स्वर्गीय सुरेन्द्र पाल और संजय-लक्ष्मी के हैं। संगीत संयोजन में हारुन मदार ने रुटीन म्यूजिक से अलग नयापन परोसा है। वीडियो को निर्देशन संजय के साथ विजय भारती ने संभाला है। सो कह सकते हैं कि नये प्रयोगों के कारण श्रोता-दर्शकों की बीच ‘तेरी आँख्यूं देखी’ को पहचान मिलनी ही चाहिए।

हेम पन्त:
संजय पाल जी ने जो प्रयोग उत्तराखण्डी संगीत में पहली दफा किये हैं उनकी तारीफ होनी ही चाहिये... आशा है वह आगे भी उत्तराखण्ड के लोकसंगीत को पूरे देश और विश्व के सामने और भी प्रभावी ढंग से पेश करेंगे...

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