Uttarakhand Updates > Articles By Esteemed Guests of Uttarakhand - विशेष आमंत्रित अतिथियों के लेख

Articles On Environment by Scientist Vijay Kumar Joshi- विजय कुमार जोशी जी

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sanjupahari:
Dear Vijay Sir,

It's aways splendid to read your articles, I rarely response you back, however I have always been a silent fan of yours for 2 years. Now after having your first writeup in our discussion forum I just felt like breaking this silence and pen down my interest of learning more from your valuable thoughts. Please keep blessing us with such an excellent analytical approaches, also keep transfusing contemporary Uttarakhand to our infant brain,,,we got to grow it more to help ourselves learn more, sustain longer and contribute to the maximum extent.

Best Wishes and Regards
Sanjupahari

हेम पन्त:
विजय जोशी जी जैसे प्रतिष्टित लेखक का हमारे फोरम के लिये लिखना हमारे लिये खुशी का विषय है.... आप अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय निकालेंगे और निरन्तर रुप से लिखकर इस साइट के माध्यम से अपने विचार हजारों-लाखों पाठकों तक पहुंचाते रहेंगे और हमें नई जानकारियां देते रहेंगे ऐसी ही आशा के साथ आपका धन्यवाद...

VK Joshi:
Dear Sanju and Hem-I am still not very conversant with the working of the site, tht is why I am replying to your posts together. First of all I wish to thank both of you for very encouraging words. I will keep posting some interesting articles regularly in merapahad. Even right now I am doing a story abt earthquakes of the past-so tht all the readers become aware abt the mysteries and nature of earthquakes. I will prefer to write in Hindi here for the benfit of majority of readers. Tht does take more time bec I am not very apt with Hindi key board. But dont worry-like I learnt computers after crossing 60, typing in hindi via google is not tht difficult.
Thank you both once again.
Jee reya-jyun reya.

dayal pandey/ दयाल पाण्डे:
आदरनीय जोशी जी नमस्कार , आपके लेख बहुत अच्छे और जानकारी देने वाले होते हैं मैं हमेशा ही बहुत ध्यान से आपके लेख पड़ता हू कृपया ऐसे ही लिखते रहिएगा ,
धन्यबाद
दयाल पाण्डेय 

VK Joshi:
कांपती धरती

यकायक धरती काँप उठती है. दीवारें थरथरा उठती हैं. छत जमीन से मिलने को बेताब हो जाती है. परिणाम होता है असमय मौत. इस प्रकार के विचार मात्र से एक अजीब सी झुरझुरी हो उठती है-मन बार बार कहता है 'भगवान मेरे साथ ऐसा न हो'! पर ऐसा किसी न किसी के साथ हमेशा से होता आया है. उत्तराखंड में भूकंप अर्थात चलक से न जाने कितने लोग प्राणों की आहुति दे चुके.
कब आएगा अगला भूकंप यह तो कोई नहीं बता सकता, पर अभी तक विकसित हुए भूकंप विज्ञान से इतना अनुमान अवश्य लग पाया है कि विध्वंसकारी भूकंप किसी क्षेत्र विशेष में लगभग १०० वर्ष के अंतराल में आते हैं. हमारी याददाश्त तो पांच वर्ष पूर्व हुई बड़ी दुर्घटना या आपद को भुला देती है-सौ वर्ष का समय बहुत लम्बा होता है.
क्या पृथ्वी के इतिहास में भी भूकंप आते थे? क्या वोह आज के भूकम्पों से अधिक शक्तिशाली होते थे? ऐसे प्रश्न मन में उठने स्वावाभिक हैं. इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर भूविज्ञानी चट्टानों में ढूंढते हैं-क्योंकि हमारे इतिहास में आये कुछ भूकम्पों के वर्णन तो भूकम्पविग्यानियों को इतिहास के पन्नों में मिल गये, पर भूकंप तो हजारों-लाखों वर्षों से आते रहे हैं-अन्यथा आज यह पर्वत-घाटियाँ आदि कुछ भी न होते. ऐसे भूकम्पों को खोजने के लिए अभी कुछ वर्षों में ही विकसित हुई भूकंप विज्ञान कि एक नई शाखा पूरा-भूकंप विज्ञान. जिस प्रकार विधि विज्ञानी हत्या का चश्मदीद गवाह न होते हुए भी कातिल को उसके द्वारा छोड़े गए निशानों से ढूंढ निकालते हैं कुछ उसी प्रकार भूविज्ञानी भी पूरा-भूकम्पों के निशाँ खोज निकालते हैं. इस प्रकार के निशाँ आज मिलते हैं सक्रिय भ्रंशों (एक्टिव फॉल्ट), नदियों द्वारा अचानक धारा बदल लेना, चट्टानों का असामान्य झुकाव, चट्टानों का अचानक सरक जाना, रेट का टूथ पेस्ट की भांति हो जाना और चट्टानों को काटते हुए सतह पर आजाना, भूकंप जनित भूस्खलन आदि कुछ प्रमुख निशान हैं जो पूरा भूकंप छोड़ जाते हैं.
दरअसल हमारी पृथ्वी जितनी शांत ऊपर से दिखती है अंदर से उतनी शांत होती नहीं. गैस के पिंड से करोड़ों वर्षों में ठंडी होकर बनी हमारी पृथ्वी ने अपने गर्भ में ताप को भूतापीय ऊर्जा के रूप में कैद कर रखा है. भूगर्भ में सहेजी हुई इस ऊर्जा से अनेक प्रकार के तनाव अंदर ही अंदर पैदा होते रहते हैं. यह तनाव जब मौका पाते हैं तो सतह पर आ जाते हैं-और हमको भ्रंश के रूप में दीखते हैं. भ्रंश का अर्थ है वह सतह जिसके साथ चट्टानों की परत अचानक नीचे या ऊपर उठ जाती है. गो कि सब भ्रंश भूकंप जनित नहीं होते अन्य कारणों से भी हो सकते हैं-पर अक्सर भूकंप और भ्रंशों का चोली-दामन का साथ होता है.

यदि कोई भ्रंश भूकंप के दौरान चलायमान हो जाता है तो उसे सक्रिय भ्रंश मना जाता है. अमेरिका के कैलीफोर्निया प्रान्त में सैन एन्द्रीआज़ फॉल्ट आज भी सक्रिय है तथा यह क्षेत्र भूकम्पों के लिए जगतप्रसिद्ध है. सक्रिय भ्रंश को पहचानने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. जब एक बार यह मालूम हो जाता है कि कितनी बार अमुक भ्रंश चलायमान हो चुका था तब यह तो पक्का हो जाता है कि उस स्थान पर पूर्व में कितनी बार भूकंप आये थे. इन भ्रंशो से चट्टाने कितना खिसक गयी यह जानकारी मिलने से भूकंप कि शक्ति का अनुमान लग जता है. उसके बाद शुरू होती है भ्रंश में मौजूद रेडियोधर्मी खनिजों कि पहचान तथा उनकी आयु पता करने की प्रक्रिया. इस प्रकार पूरी कहानी बनती है पूर्व में आए भूकम्पों की. पूरा-भूकम्पविग्यानियों ने अमेरिका के वाशिंगटन में ऐसे विध्वंसकारी भूकंप की पहचान की है जिसने लगभग ८००० वर्ष पूर्व पूरे क्षेत्र को जंगल समेत कई हजार फीट नीचे फेक दिया था. जरा सोचिये क्या ताकत रही होगी उस भूकंप की!
हमारे हिमालय तो एक करोड़ बीस लाख वर्ष पूर्व महाद्वीपों की टक्कर के बाद बनना शुरू हुए, पर जर्मनी में शोध कर रहे रजत मजुमदार ने चैबासा से २१० करोड़ वर्ष पूरानी चट्टानों की पहचान की है जिनमे उस समय आये भूकंप के कारण हुए बदलाव के निशाँ मौजूद हैं. अपने उत्तराखंड में नैनीताल में नेशनल फीजिकल रिसर्च लैब, अहमदाबाद के वैज्ञानिकों ने ४०००० वर्ष पुराने अति शक्तिशाली भूकंप की पहचान एक सक्रिय भ्रंश की सहायता से की है. इसी प्रकार हिमालय से अनेक स्थानों से इस प्रकार के भ्रंशों कि पहचान की जा चुकी है.

इन भ्रंशों को यूं ही नहीं लेना चाहिए. आज भले ही वह शांत हों, पर पृथ्वी के गर्भ में क्या चल रहा है इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है-यदि पूर्वा-तिहास की पुनरावृति हो गयी तो!
भूकम्पों के बारे में बातचीत जारी रहेगी आगे भी-क्योंकि नया उत्तराखंड जो बनाना है उसके लिए आपद और निरापद दोनों प्रकार के क्षेत्रों का ज्ञान समाज को होना चाहिए-ताकि बाद में कोई यह न कह सके कि हमे मालूम न था.
जय हिंद.

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