Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 71971 times)

नवीन जोशी

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कुमाऊँ में है महर्षि मार्कंडेय का आश्रम

जी हाँ, युग-युग के अधिष्ठाता कहे जाने वाले भगवान महर्षि मार्कंडेय का आश्रम प्रदेश के कुमाऊँ अंचल में अवस्थित है. कुमाऊँ में काठगोदाम से नैनीताल के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ८७ पर स्थित करीब ६ किमी दूर भुजियाघाट नामक स्थान से एक पैदल पगडंडी नुमा मार्ग मोरा गाँव के लिए निकलता है. इस मार्ग पर आगे जाकर करीब करीब ढाई घंटे के बेहद कठिन चढ़ाई युक्त मार्ग  से बलौनधूरा नाम के चीड़ के जंगल में महर्षि मार्कंडेय का आश्रम स्थित है. यहाँ पर घने जंगल के बीच एक बड़े पाथर के नींचे जल कुंड है. और कुछ झंडे लगे हुए हैं. बलौनधूरा मोरा गाँव का ही टोक है. इसके पास ही पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का नैनिहाल 'बल्यूटी' गाँव  स्थित है, महर्षि मार्कंडेय के बारे में कहा जाता है कि उन्हें श्रीसती के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी की तरह ही अनंत आयु प्राप्त है. वह त्रिकालदर्शी और अन्तर्यामी भी कहे जाते हैं.

नवीन जोशी

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कुमाऊँ में है महर्षि मार्कंडेय का आश्रम



जी हाँ, युग-युग के अधिष्ठाता कहे जाने वाले भगवान महर्षि मार्कंडेय का आश्रम उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊँ अंचल में अवस्थित है. कुमाऊँ में काठगोदाम से नैनीताल के राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ८७ पर स्थित करीब ६ किमी दूर भुजियाघाट नामक स्थान से एक पैदल पगडंडीनुमा मार्ग मोरा गाँव के लिए निकलता है. इस मार्ग पर आगे जाकर करीब ढाई घंटे के बेहद कठिन चढ़ाई युक्त मार्ग से बलौनधूरा नाम के चीड़ के घने जंगल में लोक आस्था के अनुसार महर्षि मार्कंडेय का यह आश्रम स्थित है. स्थानीय लोगों की मान्यता है कि महर्षि मार्कंडेय ने यहाँ लम्बे समय तक तपस्या की थी. आश्रम ऐसे निर्जन स्थान पर है कि यह कहीं से भी दृश्यमान नहीं है. आश्रम तक कोई सीधा भी नहीं है. यहाँ पर जंगल के बीच एक बड़े पत्थर के नींचे छोटा सा अनपेक्षित जल कुंड है. पास में ही कुछ झंडे लगे हुए हैं, जिनसे घने जंगल में इस महान स्थान की पहचान बमुश्किल हो पाती है. पास में गधेरे के ऊपर एक पत्थरनुमा पुल भी ध्यानाकर्षित करता है.  कहा जाता है कि पूर्व में यहाँ पर कुछ साधू-सन्यासी धूनी रमने के लिए पहुंचे थे, लेकिन अब यहाँ कोई नहीं रहता. संभवतया आज के सुविधानुरागी साधु-सन्यासियों के लिए भी यहाँ रहना आसान न हो. बलौनधूरा मोरा गाँव का ही एक तोक है. इसके पास ही पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का नैनिहाल 'बल्यूटी' गाँव स्थित है, महर्षि मार्कंडेय के बारे में कहा जाता है कि उन्हें श्रृष्टि के सृजनकर्ता ब्रह्मा जी की तरह ही अनंत आयु प्राप्त थे. वह त्रिकालदर्शी और अन्तर्यामी भी कहे जाते हैं.

नवीन जोशी

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You can see this article originally at  Page 14: http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=12/11/2010

चावला की वापसी से पुख्ता हुआ नैनीताल का टोटका
खिलाड़ियों के लिए भाग्यशाली रहा है नैनीताल का फ्लैट मैदान, पीयूष को मिला नैना देवी का आशीर्वाद

नवीन जोशी, नैनीताल। जुलाई 2008 से टीम इंडिया से बाहर चल रहे क्रिकेटर पीयूष चावला के वि कप टीम में चयन पर जहां खेल प्रेमियों के साथ ही मीडिया के एक वर्ग में भी जहां आश्चर्य प्रकट किया जा रहा है। वहीं नैनीताल के खेल प्रेमी इसे चावला के नगर के फ्लैट मैदान पर खेलने और नगर की आराध्य नैना देवी का आशीर्वाद मान रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पीयूष जिस दिन नैनीताल में खेले थे, ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने उसी दिन यह संभावना जता दी थी कि पीयूष नैनीताल में खेलने के बाद टीम इंडिया में वापसी कर सकते हैं, लेकिन वह खिलाड़ियों के लिए स्वप्न सरीखे वि कप के लिए भी टीम इंडिया का हिस्सा बन गए हैं, इससे नैनीताल का टोटका एक बार फिर साबित होने के साथ पुख्ता हो गया है।
उल्लेखनीय है कि चावला बीती 10 दिसम्बर को नैनीताल के फ्लैट मैदान में खेले और इसके 12 दिन के अंतराल में ही ढाई वर्ष बाद वह दक्षिण अफ्रीका में एक दिवसीय मैचों के लिए चुनी गई भारतीय टीम में स्थान बनाते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी करने में सफल रहे। यह अलग बात है कि चावला को अभी तक इस प्रतियोगिता के अंतर्गत खेले गए दोनों मैचों में अपने प्रदर्शन का मौका नहीं मिला, बावजूद उन्हें वि कप खेलने वाली भारतीय टीम में शामिल कर लिया गया है। खेल जानकारों के साथ ही कुछ मीडिया रिपोटरे में उनके तथा आर अिन के चयन पर आश्चर्य प्रकट किया गया है, जिस पर नगर के खेल प्रेमियों में हैरानी है। खेल विशेषज्ञ व ख्यातिलब्ध कमेंटेटर हेमंत बिष्ट ने इस संयोग पर हर्ष जताते हुए नगर के साथ इस संयोग के जुड़े रहने की कामना की। नैनीताल जिमखाना एवं जिला क्रीड़ा संघ के महासचिव गंगा प्रसाद साह, क्रिकेट सचिव श्रीष लाल साह जगाती, क्रिकेटर अजय साह, डा. मनोज बिष्ट व विनय चौहान आदि खेल प्रेमियों ने भी पीयूष की वि कप में टीम इंडिया में शामिल होने की सफलता पर नैनीताल नगर की भूमिका रहने पर खुशी जताई, और इसे नगर का सम्मान बताया है।
और भी हुए हैं यहां से सफल
नैनीताल। उल्लेखनीय है कि पर्वतीय पर्यटन नगरी नैनीताल का खेल का मैदान फ्लैट्स कहा जाता है। कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति 18 सितम्बर 1880 को आए नगर को भौगोलिक रूप से परिवर्तित करने वाले महाविनाशकारी भूस्खलन के कारण हुई। यह मैदान बेहद पथरीला और अपनी तरह का अनूठा है। यह हमेशा से बाहर के क्रिकेट खिलाड़ियों के लिए बेहद भाग्यशाली रहा है, संभवतया इसी कारण खिलाड़ी यहां चोटिल होने की परवाह छोड़ खेलने चले आते हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के एक दर्जन से भी अधिक सितारे हैं, जो इस पथरीले मैदान पर खेले और अंतरराष्ट्रीय पटल पर छाने में सफल रहे।                       आशीष विस्टन जैदी से लेकर राजेंद्र सिंह हंस, विवेक राजदान, ज्ञानेंद्र पांडे, राहुल सप्रू, शशिकांत खांडेकर, संजीव शर्मा व विजय यादव के साथ ही प्रवीण कुमार और सुरेश रैना भी यहां हाथ आजमा चुके हैं। खेल जानकारों के अनुसार तब रणजी में खेल रहे ज्ञानेंद्र पांडे को नैनीताल में खेलने के बाद देश की टेस्ट टीम में जगह मिली। इसी तरह 2002 में सुरेश रैना यहां खेले और कुछ ही दिनों बाद उन्हें भारतीय वनडे टीम में खेलने का मौका मिला। इसी प्रकार विजय यादव व प्रवीण कुमार भी नैनीताल में खेले और जल्द ही भारतीय टीम का हिस्सा बनने में सफल रहे। स्वयं चावला भी पूर्व में यहां खेले थे और उन्हें भारतीय टीम में स्थान मिला था, जिसके बाद ही वह इस बार फिर से नैनीताल टोटका आजमाने आए थे और एक पखवाड़े के भीतर ही टोटका सही साबित हुआ। गत 10 दिसम्बर को पीयूष चावला भी मुरादाबाद यूपी की एक क्लब टीम के लिए खेलने आए। इस मैच में चावला ने अपनी 32 रन की पारी में दो गगनचुंबी छक्कों व चार चौकों की मदद से ताबड़तोड़ 45 रन की पारी खेलकर एक ऑलराउंडर के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जोशी जी. .. धन्यवाद  जानकारी के लिए

उत्तराखंड की भूमि तपो भूमि है.. जहाँ हजारो ऋषि मुनियों ने तप किया है. कहा जाता है ऋषि मार्कंडेय ने बागेश्वर में तप किया था जहाँ पर सरयू को उनके तप स्थल से ले जाने के लिए भगवान् शंकर ने बाग़ और पारवती माता ने गाय का भेष रखा था तभी से यह जगह बागनाथ के रूप से कहलाता है !

Devbhoomi,Uttarakhand

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इस देवभूमि मैं जो भी आता है वो कभी भी खाली हाथ नहीं जाता

नवीन जोशी

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ई-दुनिया में कुमाऊंनी और गढ़वाली

नवीन जोशी, नैनीताल। प्रदेश में भले अपनी दुदबोलियों कुमाऊंनी, गढ़वाली व जौनसारी आदि के स्वर धीमे हों, पर इंटरनेट की दुनिया में इन भाषाओं को लेकर चर्चाएं खासी गर्म हैं। इंटरनेट पर बकायदा दर्जनों वेबसाइटों के माध्यम से इन भाषाओं के संवर्धन के लिए कार्य हो रहा है। वहीं शीघ्र शुरू होने जा रही भारत की जनगणना 2011 में प्रदेशवासियों से भाषा के खाने में अपनी इन भाषाओं का उल्लेख किये जाने की अपील की जा रही है, ताकि यह देश के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो सकें। कुमाउनीं व गढ़वाली को प्रदेश की आधिकारिक भाषा घोषित किए जाने की मांग भी इंटरनेट पर मुखर हो रही है।

प्रदेश में इंटरनेट की दुनिया अभी अपने शैशव काल में ही है, लेकिन जो पढ़े-लिखे लोग यहां तक पहुंचे हैं, उनमें अपनी जड़ों से जुड़ने की खासी छटपटाहट नजर आ रही है। बावजूद एक अनाधिकृत सव्रेक्षण के नतीजों के आधार पर यह रोचक तथ्य सामने आया है कि इंटरनेट पर आज फेसबुक, ट्विटर व आकरुट जैसी सोशियल नेटवर्किग साइटों पर देशी-विदेशी, प्रवासियों सहित प्रदेश के 25 लाख से अधिक लोग जुड़े हुए हैं और तीस लाख से अधिक लोग इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं। इधर ई-दुनिया में गूगल के ट्रांसलेटर व यूनीकोड के आने के बाद पहाड़वासी कुमाऊंनी-गढ़वाली भाषा में अपने विचारों के आदान-प्रदान में भी पीछे नहीं हैं। नेट पर बकायदा ‘पहाड़ी क्लास’ भी चल रही है और पहाड़ी मस्ट बि आफिसियल लैंग्वेज इन इंडिया, डिक्लेयर कुमाऊंनी-गढ़वाली, जौनसारी, द आफिसियल लैंग्वेज ऑफ उत्तराखंड नाम से फेसबुक व वेबसाइट्स प्रदेश की मातृ-भाषाओं को देश की भाषाओं की आठवीं अनुसूची और प्रदेश की आधिकारिक भाषा बनाने की मुहिम चला रही है। लोगों से अपील की जा रही है कि शीघ्र होने जा रही भारत की जनगणना 2011 में प्रदेशवासी अपनी मातृ-भाषाओं का उल्लेख करें।

मेरा पहाड़ फोरम, पहाड़ी फोरम, ई- उत्तरांचल, धाद, म्यर पहाड़, कौथिक 2011, उत्तराखंड विचार, रंगीलो छबीलो मेरु उत्तराखंड, उत्तराखंडी फ्रेंड्स, मन कही, उत्तराखंड समाचार, हिलवाणी आदि दर्जनों साइटों पर भी ऐसी अपील की जा रही है। जनगणना में इन भाषाओं के बोलने वालों की बढ़ी संख्या दिखाई देने पर जनतांत्रिक आधार पर केंद्र सरकार इन भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने को बाध्य हो जाएगी। जिलाधिकारी शैलेश बगौली ने कहा कि पांच फरवरी से शुरू हो रही जनगणना में जनगणना कर्मियों को खास हिदायत दी जाएगी कि वह लोगों से उनकी भाषा अवश्य पूछें।
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For detail report visit: http://uttarakhandsamachaar.blogspot.com/

नवीन जोशी

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आज से देश में जनगड़ना २०११ प्रारंभ हो रही है. याद रहे यह मौका अपनी आंचलिक भाषाओं को बचाने का भी है. यदि हम अपनी मातृभाषा के कोलम में राष्ट्रभाषा के स्थान पर हिंदी के साथ ही अपनी आंचलिक भाषाओं (कुमाउनी, गढ़वाली आदि) को भी जोड़ेंगे तो जहाँ इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों की संख्या का पता चल जाएगा, वहीँ इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में भी स्थान मिल सकेगा.

बिलकुल जोशी जी..... आपने ने सही बात कही!

हमें आपनी स्थानीय भाषाओ को बचाने के लिए यह सही अवसर है!

आज से देश में जनगड़ना २०११ प्रारंभ हो रही है. याद रहे यह मौका अपनी आंचलिक भाषाओं को बचाने का भी है. यदि हम अपनी मातृभाषा के कोलम में राष्ट्रभाषा के स्थान पर हिंदी के साथ ही अपनी आंचलिक भाषाओं (कुमाउनी, गढ़वाली आदि) को भी जोड़ेंगे तो जहाँ इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों की संख्या का पता चल जाएगा, वहीँ इन्हें संविधान की आठवीं अनुसूची में भी स्थान मिल सकेगा.

नवीन जोशी

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जनगड़ना में (खासकर प्रवासी) और सभी भाई कृपया "पहले कहाँ रहते थे" वाले कोलम में १० वर्ष पूर्व (क्योंकि जनगड़ना १० वर्ष बाद हो रही है) रहने का स्थान सही लिखें. शायद अधिकाँश का पूर्व स्थान उनका पहाड़ी गाँव ही होगा. इस से पहाड़ से हुए पलायन की भी सही जानकारी लग सकती है.

नवीन जोशी

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कुमाउनी कवित्त : लड़ें

लड़ैं -
बेई तलक छी बिदेशियों दगै
आज छु पड़ोसियों दगै
भो हुं ह्वेलि घर भितरियों दगै।

लड़ैं -
बेई तलक छी चुई-धोतिक लिजी
आज छु दाव-रोटिक लिजी
भो हुं ह्वेलि लंगोटिक लिजी।

लड़ैं -
बेई तलक हुंछी सामुणि बै
आज छु मान्थि-मुंणि बै
भो हुं ह्वेलि पुठ पिछाड़ि बै।

लड़ैं -
बेई तलक हुंछी तीर-तल्वारोंल
आज हुंण्ौ तोप- मोर्टारोंल
भो हुं ह्वेलि परमाणु हथ्यारोंल।

लड़ैं -
बेई तलक छी राष्ट्रत्वैकि
आज छु व्यक्तित्वैकि
भो हुं ह्वेलि अस्तित्वैकि।


हिन्दी भावानुवाद : लड़ाई

लड़ाई-
कल तक थी विदेशियों के साथ
आज है पड़ोसियों के साथ
कल होगी घर के भीतर वालों के साथ।

लड़ाई-
कल तक थी चोटी और धोती (बड़ी-छोटी) के लिए
आज है पड़ोसियों के साथ दाल-रोटी के लिए
कल होगी लंगोटी के लिए।

लड़ाई-
कल तक होती थी सामने से
आज होती है ऊपर-नींचे (जल-थल) से
कल होगी पीठ के पीछे से।

लड़ाई-
कल तक होती थी तीर-तलवारों से
आज होती है तोप और मोर्टारों से
कल होगी परमाणु हथियारों से।

लड़ाई-
कल तक थी राष्ट्रत्व के लिए
आज है व्यक्तित्व के लिए
कल होगी अस्तित्व के लिए।

 

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