Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 73686 times)

नवीन जोशी

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उमींद
एक दिन
इका्र सांस लै ला्गि सकूं
ना्ड़ि लै हरै सकें,
दिन छनै-
का्इ रात !
कब्बै न सकीणीं
का्इ रात लै
है सकें।

छ्यूल निमणि सकनीं
जून जै सकें,
भितेरौ्क भितेरै •
गोठा्ैक गोठै •
भकारौ्क भकारूनै
सा्रौक सा्रै
उजड़ि सकूं।

सा्रि दुनीं रुकि सकें
ज्यूनि निमड़ि सकें
ज्यान लै जै सकें।

पर एक चीज
जो कदिनै लै
न निमड़णि चैंनि
जो रूंण चैं
हमेशा जिंदि
उ छू- उमींद
किलैकी-
जतू सांचि छु
रात हुंण
उतुकै सांचि छु
रात ब्यांण लै।

हिन्दी भावानुवाद: उम्मीद

एक दिन
इकतरफा सांस (मृत्यु के करीब की) शुरू हो सकती है
नाड़ियां खो सकती हैं
दिन में ही-
काली रात !
कभी समाप्त न होने वाली
काली रात
हो सकती है।

दिऐ बुझ सकते हैं
चांदनी भी ओझल हो सकती है
भीतर का भीतर ही
निचले तल (में बंधने में बंधने वाले पशु) निचले तल में ही
भण्डार में रखा (अनाज या धन) भण्डार में ही
खेतों का (अनाज) खेतों में ही
उजड़ सकता है।

सारी दुनिया रुक सकती है
जिन्दगी समाप्त हो सकती है
जान जा भी सकती है।

पर एक चीज
जो कभी भी
नहीं समाप्त होनी चाहिऐ
जो रहनी चाहिऐ
हमेशा जीवित-जीवन्त
वह है-उम्मीद
क्योंकि-
जितना सच है
रात होना
उतना ही सच है
सुबह होना भी।

Bhishma Kukreti

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Dear Joshi Jee
i wanted to read your poems in Kumauni but when I got alternate (hindi) i left to make efforts for Kumauni
my request not to offer Hindi laternate
Respected Joshi Jee! you will agree that the basic purpose is that people read Kumauni as i wanted but when alternate is available sole purpose of creating kumauni is lots
May i request forget about translation in hindi
baki aap jan theek smjho

Bhishma Kukreti

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Photography Splendid Joshi jee!

नवीन जोशी

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धन्यवाद भीष्म जी, कई लोग चाहते थे कि शायद इस तरह कुछ लोग कुमाउनी समझना भी शुरू करें....

नवीन जोशी

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उत्तराखंड में भाजपा, कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में टिकट वितरण पर कुछ चीजें साफ़ दिख रही हैं:
-दोनों पार्टियों में उनके प्रदेश अध्यक्षों की ही नहीं चली...
-दोनों पार्टियों में इस बार भाई-भतीजावाद कम दिखाई दिया है, कुछ अपवादों रामनगर में सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत आदि को छोड़कर...
-दोनों पार्टियों ने अधिकाँश टिकट जिताऊ प्रत्याशियों को दिए हैं, इसके लिए खासकर भाजपा ने अपने मंत्रियों, विधायकों के टिकट काटने से भी गुरेज नहीं किया...
-हरीश रावत ने कांग्रेस पर पूरी तरह कब्ज़ा कर लिया, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य को उन्होंने कहीं का नहीं छोड़ा, बेहद को छोड़कर उनके किसी पसंदीदा को टिकट नहीं मिला...आगे संभव है रावत, आर्य को बाजपुर से भी न जीतने दें, ताकि  वह कांग्रेस का बहुमत आने पर दलित के नाम पर भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी तक न कर पायें...
-कांग्रेस ने नैनीताल जिले की 6 में से तीन सीटें महिला प्रत्याशियों को दी हैं...
-गाँव, शहर स्टार के लोग विधान सभा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतर आये हैं, नैनीताल विधान सभा में भाजपा प्रत्यासी हेम आर्य पहली बार कोई चुनाव लड़ रहे हैं, २००८ में उन्होंने अपनी पत्नी नीमा आर्य को महरगांव सीट से जिला पंचायत के लिए चुनाव लड़ाया था और सरिता आर्य पर जीत दिलाई थी. सरिता २००३ से २००८ तक नैनीताल की नगर पालिका अध्यक्ष रही हैं. बसपा के प्रत्यासी संजय कुमार 'संजू' उनसे पहले नैनीताल के पालिका अध्यक्ष रहे तो इस दौरान नगर के नारयानगर वार्ड से सभासद रहे देवानंद इस बार सपा प्रत्यासी  हैं...
...जारी रखने की कोशिश रहेगी.....

नवीन जोशी

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उत्तराखंड में दिग्गजों ने पहाड़ को छोड़ दिया उसके हाल पर                                                                                                                        बोरिया बिस्तर बांधकर भागे मैदानों की तरफ
कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के बड़े नेता पहाड़ों को उनके हाल पर छोड़कर मैदानों की तरफ कूच कर गए हैं। पहाड़ों के विषम हालात से जूझ रही जनता के पास कोई बड़ा नेता न होने से हालात और भी बदतर होंगे। कांग्रेस और भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की सूचियां जारी कर दी है। भाजपा नेताओं में पिछली बार धुमाकोट से चुनाव लड़े मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूडी स्वयं पहाड़ी इलाका लैंसडौन छोड़कर कोटद्वार आ गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल अपने घर थलीसैंण छोड़कर देहरादून की डोईवाला सीट पर आ गए हैं। यह सीट लैंसडौन में समाहित हो गई है। इस बार वहां से जनरल टीपीएस रावत लड़ रहे हैं। इसी तरह भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पुष्कर धामी अपने मूल घर पिथौरागढ़ के कनालीछीना को छोड़कर खटीमा से मैदान में उतर आये हैंइसी तरह भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पुष्कर धामी अपने मूल घर पिथौरागढ़ के कनालीछीना को छोड़कर खटीमा से मैदान में उतर आये हैं. कांग्रेस के दिग्गज मैदानों की तरफ ज्यादा भागे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य बाजपुर आ गए हैं। अमृता रावत भी रामनगर चली गई हैं। हरक सिंह रावत भी डोईवाला मांग रहे थे लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के डोईवाला आने से उन्हें पहाड़ों में जाना पड़ा। वरिष्ठ मंत्री त्रिवेंद्र रावत रायपुर की तरफ खिसके हैं जबकि उनकी सीट लैंसडौन हो सकती थी। पहाड़ छोड़कर मैदानों की तरफ आ रहे नेताओं से स्थानीय जनता दुखी है। दरअसल, परिसीमन के बाद ज्यादातर सीटें मैदानों की तरफ चली गई हैं। पहाड़ों को विकास का लाभ मिला नहीं है। रोजगार की तलाश में पलायन अभी भी जारी है।

नवीन जोशी

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30  को नहीं हो पायेंगे उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव
30 को शर्तिया होगी बर्फबारी: कोटलिया
ऊंची चोटियों सहित बागेश्वर की घाटियों तक होगी बर्फबारी
नवीन जोशी नैनीताल। मौसम वैज्ञानिक कुमाऊं विवि के भू-विज्ञान विभाग में यूजीसी के प्रोफेसर बीएस कोटलिया का दावा है कि उत्तराखंड में विस चुनाव की तिथि (30 जनवरी) को भारी बर्फबारी होगी। इस दिन न केवल ऊंची चोटियों वरन बागेश्वर जैसी घाटी के स्थान तक बर्फ गिर सकती है। कोटलिया 30 को चुनाव हो पाने के प्रति भी आशंकित हैं। इसके साथ ही उनका दावा है कि जनवरी के मुकाबले फरवरी में अधिक सर्दी व बर्फबारी होने वाली है। उनका दावा है कि इस वर्ष उत्तराखंड में ठंड का 50 वर्षो का रिकार्ड टूट चुका है और ठंड से अभी निजात नहीं मिलेगी।
प्रदेश के साथ ही देश-विदेश में गुफाओं में पायी जाने वाली शिवलिंग के आकार की चट्टानों के जरिये हजारों वर्ष पूर्व के इतिहास पर अध्ययन करने वाले प्रो. कोटलिया ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से बातचीत में यह दावे किये। इससे पूर्व वह वर्ष 2007 के सर्वाधिक गर्म वर्ष होने, 2011 में 50 वर्ष की सर्दी के रिकार्ड टूटने जैसी मौसम संबंधी भविष्यवाणियां भी कर चुके हैं। प्रदेश में कई हजारों वर्ष पुरानी गुफाओं को खोजने का श्रेय भी उन्हें जाता है। इधर उन्होंने ताजा दावा उत्तराखंड में होने जा रहे विस चुनाव को लेकर किया है। उन्होंने आशंका जताई है कि तय तिथि पर चुनाव नहीं हो पाएंगे। उन्होंने दावा किया कि 30 जनवरी को प्रदेश के नैनीताल, मुक्तेश्वर, कपकोट, गोपेश्वर, जोशीमठ जैसे ऊंचाई वाले सभी क्षेत्रों में बर्फबारी होगी जबकि बागेश्वर जैसी घाटी तक भी बर्फबारी हो सकती है। उन्होंने बताया कि उनके पास मुक्तेश्वर के 130 वर्षो के मौसम संबंधी रिकार्ड उपलब्ध हैं जो इस वर्ष टूट चुके हैं।
11 वर्ष में सौर चक्र से भी प्रभावित होता है मौसम 
प्रो. कोटलिया के अनुसार धरती पर प्रकाश के साथ ऊष्मा यानी गर्मी के सबसे बड़े श्रोत सूर्य की सक्रियता का चक्र 11 वर्ष का होता है और यह सक्रियता पृथ्वी पर सर्दी-गर्मी को बढ़ाने वाली भी साबित होती है। इस आधार पर भी वर्ष 2003-04 में पड़ी सर्दी की 11 वर्ष बाद 2011-12 की सर्दियों में पुनरावृत्ति होने की वैज्ञानिकों को आशंका है। कोटलिया के अनुसार उनके द्वारा किये गये हजारों वर्ष के मौसम के अध्ययन में 11 वर्षीय मौसमी चक्र की पुष्टि हुई है।
ला-निना का भी है प्रभाव
इस वर्ष हो रही भारी बर्फबारी व कड़ाके की ठंड प्रशांत महासागर से उठने वाली ला-निना नाम की सर्द हवाएं भी बताई जा रही हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार प्रशांत से उठने वाली गर्म हवाएं-अल निनो व सर्द हवाएं-ला निना दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती हैं। दो से सात वर्षो में इसका प्रभाव बढ़ता है।

मूलतः यह समाचार इस लिंक को क्लिक कर:http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=1/11/2012&querypage=1&parentid=55242 [/url]राष्ट्रीय सहारा के 11 जनवरी 2012 के अंक के प्रथम पृष्ठ पर देखा जा सकता है।
यहाँ भी देख सकते हैं: http://uttarakhandsamachaar.blogspot.com/2012/01/30.html

नवीन जोशी

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उत्तराखंड के असली "काले कौवा" तो 30 जनवरी को न्यौते जायेंगे..., और 6 मार्च को पता चलेगा कि किसके घुघुते उड़े...."हैप्पी घुघुतिया" सभी दोस्तों को ...

नवीन जोशी

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दलों के एजेंदे से गायब हुऐ राज्य की अवधारणा से जुड़े मुद्दे
तीसरे विधान सभा चुनाव में ही राष्ट्रीय दलों के चुनाव घोषणा पत्रों में राज्य आंदोलनकारियों का भी नाम नहीं[/center]
नवीन जोशी, नैनीताल। हमेशा राष्ट्रीय दलों को तरजीह देने वाले उत्तराखंड राज्य के आधारभूत मुद्दों को राष्ट्रीय दलों ने राज्य बनने  आधारभूत मुद्दों को राष्ट्रीय दलों ने राज्य बनने के केवल 11 वर्षों के भीतर ही पूरी तरह भुला दिया है। प्रदेश के राष्ट्रीय दलों के चुनाव घोषणा पत्र बानगी हैं, जिनमें राज्य की अवधारणा से जुड़े मुद्दों के  साथ ही राज्य आंदोलनकारियों के नाम तक का उल्लेख नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में राज्य आंदोलन से जुड़े लोग स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
उत्तराखंड का चरित्र हमेशा से राष्ट्रीय रहा है। देश की आजादी के संग्राम के दौर से ही यहाँ के युवा फौज में भर्ती होकर अपनी जवानी देश के नाम कुर्बान करते रहे, और इस तरह केवल अपने बारे में सोचने के बजाय राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय विषयों पर उनमें विचार-मंथन होने लगा। देश की आजादी के बाद पहाड़ पर भौगोलिक दुर्गमताओं के कारण विकास के पहिये नहीं चढ़ पाये, ऐसे में 1979 में उदय होने के बावजूद उक्रांद जैसी क्षेत्रीय पार्टियां कभी पूरी तरह से जनता के दिलों की धडकन नहीं बन पाईं, और कांग्रेस और जनसंघ के बीच में ही चुनावों में मत विभाजन देखने को मिला। यूपी के दौर में मैदान-पहाड़ में विकास के मानक एक होने जैसे मूल कारणों से अलग राज्य की अवधारणा और मांग की जाने लगी। नौ नवंबर 2000 को राज्य बना, तो लखनऊ के बजाय देहरादून से विकास के मॉडल तय होने लगे। यानी अब पहाड़ के दूरस्थ धारचूला या उत्तरकाशी में सड़क बनने का मानक लखनऊ के बजाय देहरादून की सडकों से तय होने लगा। बावजूद चाहे 2002 का राज्य का पहला विस चुनाव हो या 2007 का दूसरा, राज्य की अवधारणा से जुड़े विषय राष्ट्रीय राजनीतिक दलों भाजपा-कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में कहने भर को जरूर होते थे, लेकिन पहली बार है कि राज्य के महज तीसरे विस चुनाव में ही यह मुद्दे इन दलों के घोषणा पत्रों से ही गायब हो गये हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी संघर्ष समिति के अध्यक्ष ललित जोशी कहते हैं कि गत वर्ष 13 दिसंबर 2011 को जारी राज्य के चिन्हित सक्रिय आंदोलनकारियों को निःशुल्क चिकित्सा, परिवहन व शिक्षा देने संबंधी शासनादेश का ही अब तक कोई अता-पता नहीं है। दोनों दलों के घोषणा पत्रों में राज्य आंदोलनकारियों का जिक्र तक नहीं है। वहीँ राज्य आंदोलनकारी नेता व वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह इस बात से तो इत्तफाक नहीं रखते कि राज्य आंदोलनकारियों को अपने लिये कुछ मांगना चाहिए, लेकिन उनके मन में भी यह टीस है कि राज्य की अवधारणा से जुड़े शराब, पलायन, महिलाओं की समस्याऐं, गैरसेंण राजधानी व आर्टिकल 37 की तरह यहाँ भी जमीनों की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध लागू करने जैसे बुनियादी सवाल दोनों राष्ट्रीय दलों के घोषणा पत्रों से गायब हो गये हैं। साह चिंता जताते हैं कि राष्ट्रीय दलों ने भ्रष्टाचार, महँगाई या पार्टियों के नेताओं जैसे मुद्दों का ऐसा कुहासा फैला दिया है कि क्षेत्रीय मुद्दे कहीं दिखाई ही नहीं देते। पहाड़ व मैदानों की आबादी के बीच 53 व 47 फीसद का अनुपात उल्टा होकर 47:53 हो गया है। पहाड़ की विस सीटें  कम होने के साथ मिलने वाला धन का हिस्सा भी कम हो गया है। उक्रांद के गठन के दिनों से पार्टी से जुड़े संस्थापक सदस्यों में शुमार पत्रकार उमेश तिवारी ‘विश्वास’ ऐसी स्थिति के  लिये उक्रांद के कमजोर होने को जिम्मेदार मानते हैं। उन्हें अफसोस है कि लगातार टूटकर बिखरता उक्रांद इस स्थिति का बड़ा जिम्मेदार है, यह दल कई सीटों पर एक अदद उम्मीदवार तक तैयार नहीं कर पाया।

नवीन जोशी

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प्रत्याशी आजमा रहे ‘माउथ पब्लिसिटी’ का फंडा
मोहल्लों के दुकानदारों को मिल रहीं प्रत्याशी की बढ़त बताने को गड्डियां

नवीन जोशी, नैनीताल। राम सिंह जी की कालाढूंगी रोड पर एक दुकान है। एक प्रत्याशी उन्हें गड्डी पकड़ा गया है। बोल कर गया है कि वह चाहे उसे वोट दे या न दे, लेकिन उसे दुकान पर आने वाले ग्राहकों के पूछने या चर्चा करने पर कहना है कि वह (गड्डी देने वाला प्रत्याशी) जीत रहा है। राम सिंह जितना पूरे दिन में नहीं कमा पाते, केवल बातें करने के कमा रहे हैं। क्षेत्र में ‘माउथ पब्लिसिटी’ का यह नया फंडा खूब चल रहा है। चुनाव में प्रत्याशी अपनी जीत के लिए हर तरह का हथकंडा अपनाते हैं। प्रबंध गुरु कहते हैं कि किसी भी वस्तु या सेवा की मांग बढ़ाने में ‘माउथ पब्लिसिटी’ सबसे कारगर हथियार साबित होती है। आप नई गाड़ी खरीदने जा रहे हैं, लेकिन आपको गाड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो किसी न किसी से जरूर पूछेंगे कि कौन सी गाड़ी बेहतर होगी। पहले दो-तीन लोगों ने आपको जो गाड़ी बेहतर बता दी, वह आपके मन मस्तिष्क में बैठ जाएगी और उसे आप खरीद लाएंगे। ऐसे ही यह भी हो सकता है कि किसी गाड़ी के बारे में बुरी ‘फीड बैक’ आये और आप चाहते हुए भी उसे न लें। हमारा देश भावना प्रधान लोगों का देश है, और खासकर राजनीति में भावनाओं के आधार पर ही प्रत्याशियों व पार्टियों की अच्छी-बुरी छवि बना करती है। दो दशक पूर्व गणोश जी के दूध पीने और अभी हाल में लखनऊ में सोते ही बुत में तब्दील होने जैसी अफवाहें माउथ पब्लिसिटी के कारण ही इतनी अधिक चर्चा में रहीं। इसी फंडे पर क्षेत्र की एक पार्टी भी अमल कर रही है। उसके प्रत्याशी पूर्व में भी इस फंडे को आजमा चुके हैं। अब उनकी पार्टी इस चुनाव में भी इस फंडे को आजमा रही है, और बताया जा रहा है कि इस फंडे पर बीते कुछ दिनों में उनकी पार्टी ने ठीक-ठाक बढ़त भी बना ली है। आगे देखने वाली बात यह होगी कि माउथ पब्लिसिटी का यह फंडा यहां के चुनाव परिणामों को किस तरह प्रभावित करता है।


जिसकी पी दारू उसकी बताई हवा
नैनीताल। बाहर से देखने में इस बार के विस चुनाव भले चुनाव आचार संहिता के भय से जितने साफ- सुथरे चल रहे हों, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं है। वहां कच्ची-पक्की दारू खूब बंट रही है, साथ ही बाहर से मुग्रे ले जाने में आयोग की नजर पड़ने के भय से ग्रामीण क्षेत्रों में ही पलने वाले बकरों का मतदाताओं को भोग लगाया जा रहा है।  "क्या है रुझान" पूछने पर मतदाता पहले सामने वाले को भांपता है, और फिर उसी के पक्ष में ‘हवा’ होने की बात कहने लगता है।

 

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