जो ‘भागे’, वो ‘जीते’
कुछेक अपवादों को छोड़ पलायन करने वाले ज्यादातर विधायकों ने जीत हासिल की, नए परिसीमन, विस क्षेत्रों के सुरक्षित हो जाने या हार के डर से बदले गए थे क्षेत्र
देहरादून (एसएनबी)। प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन बड़ा मुद्दा है। इस बार के चुनाव में नेताओं का अपने विधानसभा चुनाव क्षेत्रों से मैदानी विधानसभा क्षेत्रों में पलायन भी मुद्दा बना। पार्टियों के भीतर टिकट बंटवारे के दौरान एक-दूसरे को मात देने के खेल में भी विरोधी गुटों ने एक-दूसरे के खिलाफ इस मुद्दे का खूब इस्तेमाल किया। मगर विधानसभा चुनाव में जो परिणाम आए उनसे साफ है कि जिसने पलायन किया, उसने जीत हासिल की यानी ‘जो भागे वो जीते’। परिसीमन, विस क्षेत्रों के अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो जाने या हार की डर की से प्रदेश के कई दिग्गजों ने अपने पहाड़ी विस क्षेत्र छोड़ कर मैदानी क्षेत्रों में किस्मत आजमाई, लेकिन जो परिणाम आए उनमें पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी, पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मंत्री बलवंत भौर्याल व बसपा के पूर्व विधायक मोहम्मद शहजाद को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो पुराने विस क्षेत्र छोड़ने वाले सभी नेताओं ने जीत हासिल की है। पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी धूमाकोट विस क्षेत्र के खत्म हो जाने और लैंसडौन विस क्षेत्र में शामिल होने पर उसे छोड़कर कोटद्वार विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और हार गए। पूर्व मुख्यमंत्री डा, रमेश पोखरियाल निशंक ने थलीसैंण को छोड़ कर मैदानी सीट डोईवाला में भाग्य आजमाया और विजय प्राप्त की। लैंसडौन से विधायक रहे पूर्व नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत यूं तो डोईवाला से तैयारी कर रहे थे, लेकिन पार्टी की अंदरूनी सियासत में ऐसे फंसे कि सहसपुर पर दावा ठोकने लगे और अंतत: उन्हें रुद्रप्रयाग से चुनाव लड़ना पड़ा। मगर उन्होंने वहां से विजय प्राप्त की। मुक्तेर के पूर्व विधायक व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य ने मैदानी विस क्षेत्र बाजपुर में किस्मत आजमाई और जीत हासिल की। अमृता रावत ने चौबट्टाखाल सीट छोड़कर रामगर में किस्मत आजमाई और कामयाब रहीं। पूर्वमंत्री बंशीधर भगत हल्द्वानी छोड़ कालाढूंगी पहुंचे और जीत गए। भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री और अब कांग्रेस विधायक राजेंद्र भंडारी ने पुरानी सीट नंदप्रयाग की बजाय अपनी नई सीट बदरीनाथ में जीत हासिल की। कांग्रेस विधायक मयूख महर ने कनालीछीना छोड़ पिथौरागढ़ में पूर्व पेयजल मंत्री प्रकाश पंत को चुनौती दी और जीत हासिल की। भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना भिकियासैंण सीट खत्म होने के बाद पड़ोस की सीट सल्ट से लड़े और जीते। पूर्व विस अध्यक्ष हरबंश कपूर देहराखास सीट खत्म होने के बाद देहरादून कैंट से लड़े और जीते। विधायक गणोश जोशी राजपुर सीट खत्म होने के बाद मसूरी से खड़े हुए और जीते। कुंवर प्रणव सिंह नई सीट खानपुर से लड़े और जीत गए। कुल मिलाकर देखा जाए तो पलायन करने वाले ज्यादातर विधायकों को जीत हासिल हुई है। सियासत के जानकारों का कहना है कि दरअसल सीट बदलने से नये क्षेत्र की जनता को नेताओं के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती इस तरह विस क्षेत्र में चलने वाला एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम नहीं करता। अगर कोई बड़ा नेता सीट बदलकर नई सीट से लड़े तो जनता को लगता है कि वह उनके लिए मुफीद विधायक रहेगा। ये सारे फैक्टर नई सीट पर जीत हासिल करने में मदद देते हैं। हालांकि विस क्षेत्र यानी अपनी जनता बदल लेने के ठीक उलट नतीजों से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
ये जीते:
डा. रमेश पोखरियाल निशंक, यशपाल आर्य, अमृता रावत, डॉ. हरक सिंह रावत, बंशीधर भगत, राजेंद्र भंडारी, मयूख महर, सुरेंद्र सिंह जीना , हरवंस कपूर, गणोश जोशी, कुंवर प्रणब सिंह
ये हारे:
पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी, पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पूर्व मंत्री बलवंत भौर्याल, मोहम्मद शहजाद