Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 74072 times)

नवीन जोशी

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हल्द्वानी-नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग पर "एमबीटी" से नयी मुसीबत
पहेली बना दो किमी क्षेत्र में दर्जन भर जगहों पर भूस्खलन
भू वैज्ञानिक का दावा- एमबीटी हुआ सक्रिय
बल्दियाखान-नैना गांव के बीच खतरनाक हुआ राष्ट्रीय राजमार्ग

नवीन जोशी, नैनीताल।  बल्दियाखान और नैना गांव के बीच एक नई आफत उभर आई है। अब तक हर तरह से सुरक्षित माना जाने वाला राजमार्ग का यह हिस्सा बीते तीन दिनों से लगातार जगह- जगह दरक रहा है। मार्ग पर करीब दो किमी के दायरे में ही एक दर्जन स्थानों पर भारी मात्रा में भूस्खलन हो रहा है। इसमें आधा दर्जन स्थान तो ऐसे हैं, जिन पर लगातार भू स्खलन जारी है। इससे मार्ग पर वाहनों का आवागमन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। राजमार्ग का शेष हिस्सा जहां सुरक्षित है, अभी अधिक बारिश भी नहीं हुई है, ऐसे में इस छोटे से हिस्से में इतने व्यापक पैमाने पर हो रहा भूस्खलन पहेली बना हुआ है।
गौरतलब है कि नगर एवं आसपास के क्षेत्र में जुलाई माह शुरू होने के बाद ही बारिश का मौसम शुरू हुआ है। इस दौरान करीब 300 मिमी बारिश ही रिकार्ड की गई है। खास बात यह है कि गत वर्षो के सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित भुजियाघाट व अन्य क्षेत्र अभी तरह पूरी तरह सुरक्षित हैं। पांच जुलाई की शाम सामान्य बारिश के बाद ही बल्दियाखान से आगे हनुमान मंदिर से लेकर नैनागांव के बीच एक दर्जन स्थानों पर भूस्खलन होने से सड़क बंद हो गई थी। इसे दुरुस्त करने के लिए दो जेसीबी मशीनों को मौके पर तैनात किया गया। तभी से ये दोनों मशीनें इस क्षेत्र में लगातार मलबा हटाने में जुटी हुई हैं, लेकिन मलबा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ लोग इस भूस्खलन का कारण बादल फटना मान रहे हैं तो कुछ गरमियों में लगी भीषण आग को वजह बता रहे हैं। उधर, कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग में तैनात यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस क्षेत्र में उत्तर भारत के बड़े भ्रंशों में से एक एमबीटी यानी मेन बाउंड्री थ्रस्ट गुजर रहा है। इसे बलियानाला में बीरभट्टी से नीचे व बल्दियाखान की ओर निहाल नाले में पातीखेत के पास लगातार हो रहे भूधंसाव के रूप में साफ देखा जा सकता है। इसके साथ ही बल्दियाखान के ठीक पहले के गदेरे में मध्य हिमालय का पहाड़ निम्न हिमालय के शिवालिक पहाड़ पर चढ़ा हुआ है। डा. कोटलिया का दावा है कि क्षेत्र में एमबीटी सक्रिय हो गया है। इस बारे में वे वर्षो से चेतावनी देते रहे हैं। उनका कहना है कि आगे भी यहां भूस्खलन जारी रह सकता है।
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राष्ट्रीय सहारा के 8 जुलाई के अंक में प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं।

नवीन जोशी

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यहां ‘आने-जाने’ की बातें ही क्यों करते रहे काका
कटी पतंग और जाना फिल्मों की शूटिंग को आये थे राजेश खन्ना नैनीताल
रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार... व जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं गीतों में की थी अदाकारी

नवीन जोशी, नैनीताल। रुपहले हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना का नैनीताल से गहरा संबंध रहा था। वह दो बार फिल्मों की शूटिंग के लिये आये तो कई बार उन्होंने यहां की निजी यात्राऐं भी की थीं। लेकिन यह संयोग ही रहा कि आज दुनिया से रुखसत कर चुके काका जब भी नैनीताल आये ‘आने-जाने’ की ही बातें करती रहे।
कला की नगरी कहे जाने वाले नैनीताल में राजेश खन्ना का पहला आगमन 1960 के दशक के आखिरी वर्षों में हुआ था। यह वह समय था, जब तक वह स्टारडम हासिल कर चुके थे। शक्ति शामंत उस जमाने के नामचीन निर्देशक थे, जिन्होंने उस दौर की हसीन अभिनेत्री आशा पारेख को पहली बार एक विधवा के रूप में कटी पतंग फिल्म के जरिये उतारने का खतरा मोल लिया था। हीरोइन विधवा के रूप में कमोबेश पूरी फिल्म में सफेद साड़ी पहने थी, तो पूरी फिल्म को आकर्षक बनाने की जिम्मेदारी राजेश खन्ना पर ही थी। उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाला भी। फिल्म की अधिकांश शूटिंग मुम्बई के नटराज स्टूडियो के अलावा नैनीताल व रानीखेत में हुई थी। नैनीताल की नैनी झील में राजेश और आशा के बीच बरसात के मौसम में ही ‘जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं’ गीत फिल्माया गया था। यह गीत आज भी उस दौर के नैनीताल की खूबसूरती का आईना है। इसी तरह दूसरा चर्चित गीत ‘रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार, हम ना करेंगे प्यार’ नगर के बोट हाउस क्लब के बार में फिल्माया गया था।  नगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं कलाकार उमेश तिवाड़ी ‘विश्वास’ बताते हैं कि इस गीत में बोट हाउस क्लब के बार की खूबसूरती उर कर आई थी। उस दौर में यह गीत बार, डिस्को आदि में खूब बजता था। इस फिल्म में अदाकारी के लिये काका को सर्वश्रेष्ठ अदाकार के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, जबकि आशा पारेख को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। उस दौर में श्री विश्वास के दादाजी पं. धनी राम तिवाड़ी का निकटवर्ती गरमपानी में रेस्टोरेंट था। यहां रानीखेत जाते हुऐ काका रुके थे, और ‘दार्जिलिंग चाय’ की चुश्कियों का आनंद लिया था। हालिया दौर में अपनी दूसरी फिल्मी पारी के दौरान काका वर्ष 2006 में शाहरुख मिर्जा की फिल्म जाना की शूटिंग के लिये नैनीताल आये थे। इस फिल्म में 35 वर्षों के बाद काका ने अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री जीनत अमान के साथ बीते दौर के कई गीतों की पैरोडी पर भी अभिनय किया था। इस फिल्म की यूनिट नगर के फेयर ट्रेल्स होटल में ठहरी थी, जबकि बैंड स्टेंड, बोट हाउस क्लब, माल रोड आदि स्थानों पर इसकी शूटिंग हुई थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान इस संवाददाता से भी काका ने बात की थी, तथा नैनीताल की खूबसूरती की दिल खोल कर सराहना की थी। आज काका इस दुनिया से जा चुके हैं, तो नगर के कला प्रेमियों के मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है, काका आप यहां हमेशा ‘आने-जाने’ की बातें ही क्यों करते रहे ?
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नवीन जोशी

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खतरनाक कोलीफार्म बैक्टीरिया से नैनी झील को बचाइए

खुले में शौच जाते सीवर से 10 से15 गुना तक बढ़ रही है कोलीफार्म बैक्टीरिया व दूषित तत्वों की मात्रा
बारिश से सीवर लाइन का उफनना है बड़ा कारण

नवीन जोशी नैनीताल। विश्व प्रसिद्ध नैनी झील के संरक्षण के लिए किये जा रहे अनेक प्रयासों के बीच एक क्षेत्र ऐसा है, जिस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस कारण झील में बड़ी मात्रा में गंदगी पहुंच रही है। यह कारण है सीवर का उफनना। सीवर के उफनने से झील में मानव मल में पाये जाने वाले खतरनाक कोलीफार्म बैक्टीरिया व नाइट्रोजन की मात्रा में 10 से 15 गुना तक की वृद्धि हो जाती है, जबकि फास्फोरस की मात्रा तीन गुना तक बढ़ जाती है। इस कारण झील में पारिस्थितिकी सुधार के लिए किये जा रहे कायरे को गहरा झटका लग रहा है। मानव मल में मौजूद कोलीफार्म बैक्टीरिया तथा फास्फोरस व नाइट्रोजन जैसे तत्व किसी भी जल राशि को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। शुद्ध जल में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मौजूदगी भर हो तो यह पीलिया जैसे अनेक जलजनित संक्रामक रोगों का कारण बनता है। जबकि नैनी झील जैसी खुली जल राशियों में अधिकतम 500 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) यानी एक लीटर पानी में अधिकतम मात्रा हो तो ऐसे पानी को छूना व इसमें तैरना बेहद खतरनाक हो सकता है। नैनी झील में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा कई बार आठ से 10 हजार एमपीएन तक देखी गई है, जोकि झील में चल रहे एरियेशन व बायोमैन्युपुलेशन के कायरे के बाद सामान्यतया दो से तीन हजार एमपीएन तक नियंत्रित करने में सफलता पाई गई है, लेकिन बरसात के दिनों में उफनने वाली सीवर लाइनें इन प्रयासों को पलीता लगा रही हैं। नैनी झील के जल व पारिस्थितिकी पर शोधरत कुमाऊं विवि के जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. पीके गुप्ता बताते हैं कि झील का जलस्तर कम होने पर सीवर उफनती है तो झील में कोलीफार्म बैक्टीरिया की संख्या 10 से 15 गुना तक बढ़ जाती है। बरसात के दिनों में झील में पानी कुछ हद तक बढ़ने लगा है, लेकिन बारिश के दौरान माल रोड सहित अन्य स्थानों पर सीवर लाइनें उफनीं तो कोलीफार्म की मात्रा में तीन गुना तक की वृद्धि देखी गई। इसी तरह नाइट्रोजन की मात्रा 0.3 मिलीग्राम प्रति लीटर से तीन गुना बढ़कर 0.8 से 0.9 मिलीग्राम प्रति लीटर तक एवं फास्फोरस की मात्रा 20 से 25 मिलीग्राम प्रति लीटर से 10 गुना तक बढ़कर 200 से 250 मिलीग्राम प्रति लीटर तक देखी गई है। प्रो. गुप्ता ऐसी स्थितियों में किसी भी तरह सीवर की गंदगी को झील में जाने से रोकने की आवश्यकता बताते हैं। वहीं जल निगम के अधिशासी अभियंता एके सक्सेना का कहना है कि नगर में सामान्य जरूरत से अधिक क्षमता की सीवर लाइन बनाई गई थी, लेकिन घरों व किचन तथा बरसाती नालियों के पानी को भी लोगों ने सीवर लाइन से जोड़ दिया है, इस कारण सीवर लाइन उफनती हैं, इसे रोकने के लिये नालियों को सीवर लाइन से अलग किया जाना जरूरी है। 
खुले में शौच जाते हैं 72 फीसद लोग 
नैनीताल। यह आंकड़ा वाकई चौंकाने वाला है, लेकिन भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान रुड़की की अगस्त 2002 की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि नगर में 72 फीसद लोग खुले में शौच करते हैं, जिनकी मल-मूत्र की गंदगी नगर के हृदय कही जाने वाली नैनी झील में जाती है। गौरतलब है कि नगर के कमजोर तबके के लोगों के साथ ही सैलानियों के साथ आने वाले वाहन चालकों, बाहरी नेपाली व बिहारी मजदूरों का खुले में शौच करना आम है। झील विकास प्राधिकरण ने नगर में सुलभ शौचालय बनाये हैं पर उनमें हर बार तीन रुपये देने होते हैं, इस कारण गरीब तबका उनका उपयोग नहीं कर रहा। बारिश में ऐसी समस्त गंदगी नैनी झील में आ जाती है। 
मछलियां निकालने से कम होगा फास्फोरस 
नैनीताल। नैनी झील में भारी मात्रा में जमा हो रहे फास्फोरस तत्व को निकालने को एकमात्र तरीका झील में पल रही मछलियों को निकालना है। प्रो. गुप्ता के अनुसार फास्फोरस मछलियों का भोजन है। यदि प्रौढ़ व अपनी उम्र पूरी कर रही बड़ी व बिगहेड सरीखी मछलियों को झील से निकाला जाए तो उनके जरिये फास्फोरस बाहर निकाली जा सकती है। उनके झील में स्वत: मरने की स्थिति में उनके द्वारा खाई गई फास्फोरस झील के पानी में ही मिल जाएगी।

नवीन जोशी

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एमसीटी और बेरीनाग थ्रस्ट उत्तरकाशी हादसे का कारण !

भू वैज्ञानिक प्रो. सीसी पंत ने जताई आशंका
कहा, बादल फटने के बाद कमजोर भूगर्भीय संरचना के कारण बढ़ा खतरा

नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तरकाशी में शुक्रवार रात हुई घटना का कारण बादल फटना माना जा रहा है। वहीं कुमाऊं विवि के विज्ञान संकाय एवं भूविज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत ने आशंका जताई है कि इस हादसे की भयावहता का कारण एमसीटी यानी मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट एवं बेरीनाग थ्रस्ट भी हो सकते हैं, जिस कारण हादसे से जन-धन का अधिक नुकसान हुआ है।
उत्तरकाशी की घटना के बाबत पूछे जाने पर प्रो. पंत का कहना था कि ऐसी घटनाएं सामान्यतया दो कारणों, बादल फटने एवं नदी के रुकने से झील बन जाने से होती हैं। उत्तरकाशी की घटना बादल फटने के कारण घटित हुई है। बादल फटने की घटना संकरे मुहाने वाली घाटियों में बादलों के अंदर जाकर फंस जाने व बाहर न निकल पाने के कारण होती हैं। बादल भीतर फंस जाने के कारण तेजी से एक सीमित क्षेत्र में बरसते हैं। ऐसे में पहाड़ी नदियां बेहद प्रबल वेग से पहाड़ों के मलबे युक्त बाढ़ (फ्लैश फ्लड) के रूप में बहती हैं और व्यापक नुकसान पहुंचाती हैं। उत्तरकाशी क्षेत्र के अध्ययन के आधार पर उन्होंने बताया कि वहां भागीरथी की सहायक नदी असी गंगा में जहां हादसा हुआ है, उसके कुछ ही किमी के दायरे में सेंज नाम के स्थान के पास से सबसे बड़ा भ्रंश एमसीटी एवं दूसरी ओर बेरीनाग थ्रस्ट गुजरते हैं। यानी घटनास्थल एमसीटी व बेरीनाग थ्रस्ट के बीच स्थित है। पंत बताते हैं, यूं तो यह स्थान कठोर व मजबूत क्वार्टजाइट (स्थानीय भाषा में डांसी पत्थर) से बना है, लेकिन भूगर्भ में दो भ्रंशों के होने के कारण यहां यह मजबूत पत्थर भी खंडित स्वरूप में हैं। साथ ही यह इलाका संकरे मुहाने वाली घाटी का है, इसलिए संभव है कि यहां बादल फटने की घटना हुई हो और भ्रंश के कारण मजबूत व नुकीले पत्थर असी गंगा की बाढ़ में बहते हुए बेहद खतरनाक हो गये हों।

नवीन जोशी

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नैनीताल में ऐसे मनाया गया था 15 अगस्त 1947 को पहला स्वतंत्रता दिवस

अब वतन आजाद है....
रिमझिम वर्षा के बीच हजारों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था माल रोड पर
पेड़ों पर भी चढ़े थे लोग आजादी की नई-नवेली सांसें लेने

नवीन जोशी, नैनीताल। अंग्रेजों के द्वारा बसाये गये और अनुशासन के साथ सहेजे गये नैनीताल नगर में आजाद भारत के पहले दिन यानी 15 अगस्त 1947 को नगर वासियों के उत्साह का कोई सानी नहीं था। लोग नाच-गा  रहे थे। 14 अगस्त की पूरी रात्रि मशाल जुलूस निकालने के साथ ही जश्न होता रहा था, बावजूद 15 की सुबह तड़के से ही माल रोड पर जुलूस की शक्ल में निकल पड़े थे। कहीं तिल रखने तक को भी जगह नहीं थी। 100 वर्षों की गुलामी और हजारों लोगों के प्राणोत्सर्ग के फलस्वरूप उम्मीदों के नये सूरज की नई किरणों के साथ हवाऐं भी आज मानो बदली-बदली लग रही थीं, और प्रकृति मानो रिमझिम बारिश के साथ आजादी का स्वागत कते हुऐ देशवासियों के आनंद में स्वयं भी शामिल हो रही थी। लोगों में जश्न का जुनून शब्दों की सीमा से परे था। हर कहीं लोग कह रहे थे-अब वतन आजाद है...।

वर्तमान मंडल मुख्यालय सरोवरनगरी उस दौर में तत्कालीन उत्तर प्रांत की राजधानी था। अंग्रेजों के ग्रीष्मकालीन गवर्नमेंट हाउस व  सेकरेटरियेट यहीं थे. इस शहर को अंग्रेजों ने ही बसाया था, इसलिये इस शहर के वाशिंदों को उनके अनुशासन और ऊलजुलूल आदेशों के अनुपालन में ज्यादतियों से कुछ ज्यादा ही जलील होना पढ़ता था। अपर माल रोड पर भारतीय चल नहीं सकते थे। नगर के एकमात्र सार्वजनिक खेल के फ्लेट  मैदान में बच्चे खेल नहीं सकते थे। शरदोत्सव जैसे ‘मीट्स’ और ‘वीक्स’ जैसे कार्यक्रमों में भारतीयों की भूमिका बस ताली बजाने की होती थी। भारतीय अधिकारियों को तक खेलों व नाचघरों में होने वाले मनोरंजन कार्यक्रमों में अंग्रेजों के साथ शामिल होने की अनुमति नहीं  होती थी।

ऐसे में 14 अगस्त 1947 को दिल्ली से तत्कालीन वर्तमान पर्दाधारा के पास स्थित म्युनिसिपल कार्यालय में फोन पर आये आजादी मिलाने के संदेश से जैसे नगर वासियों में भारी जोश भर दिया था। सीआरएसटी इंटर कालेज के पूर्व अध्यापक व राष्ट्रीय धावक रहे केसी पंत ने बताया, "लोग कुछ दिन पूर्व तक नगर में हो रहे सांप्रदायिक तनावपूर्ण माहौल को भूलकर जोश में मदहोश हो रहे थे। एक समुदाय विशेस के लोग पाकिस्तान के अलग देश बनने, न बनने को लेकर आशंकित था, उन्होंने तल्लीताल से माल रोड होते हुए मौन जुलूस भी निकाला था। इन्हीं दिनों नगर में (शायद पहले व आखिरी) सांप्रदायिक दंगे भी हुऐ थे, जिसमें राजा आवागढ़ की कोठी (वर्तमान वेल्वेडियर होटल) भी फूंक डाला गया था।
बावजूद 15 अगस्त को नगर में  हर जाति-मजहब के लोगों का उत्साह देखते भी बनता था। स्कूल के प्रधानाचार्य पीडी सनवाल ने पहले दिन ही बच्चों को कह दिया था, देश आजाद होने जा रहा है, कल सारे बच्चे साफ कपडे पहन कर आयेंगे"।

दूसरे दिन बच्चों ने सुबह तल्लीताल गवर्नमेंट हाईस्कूल (वर्तमान जीआईसी) तक जुलूस निकाला, वहां के हेड मास्टर हरीश चंद्र पंत ने स्मृति स्वरूप सभी बच्चों को 15 अगस्त 1947 लिखा पीतल का राष्ट्रीय ध्वज तथा टेबल पर दो तरफ से देखने योग्य राष्ट्रीय ध्वज व उस दिन की महान तिथि अंकित फोल्डर प्रदान किया था। उन्होंने भाषण दिया, "अब वतन आजाद है। हम अंग्रेजों की दासता से आजाद हो गये हैं, पर अब देश को जाति-धर्म के बंधनों से ऊपर उठकर एक रखने व नव निर्माण की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है"। इस ध्वज को श्री पंत आज तक सहेजे हुऐ हैं। वहीँ वयोवृद्ध शिक्षाविद् प्यारे लाल साह के अनुसार 14 अगस्त की रात्रि ढाई-तीन बज तक जश्न चलता रहा था। लोगों ने रात्रि में ही मशाल जुलूस निकाला। देर रात्रि फ्लेट्स मैदान में आतिशबाजी भी की गई। सुबह म्युनिसिपालिटी में चेयरमैन रायबहादुर जसौंत सिंह बिष्ट की अध्यक्षता में बैठक हुई। तत्कालीन म्युनिसिपल कमिश्नर (सभासद) बांके लाल कंसल ने उपाध्यक्ष खान बहादुर अब्दुल कय्यूम को देश की गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करते हुए पीतल का तिरंगा बैच के रूप में लगाया।

चेयरमैन ने यूनियन जैक तारकर तिरंगा फहरा दिया। इधर फ्लेट्स मैदान में तत्कालीन एडीएम आरिफ अली शाह ने परेड की सलामी ली। उनके साथ पूर्व चेयरमैन मनोर लाल साह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्याम लाल वर्मा व सीतावर पंत सहित बढ़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद थे। उधर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डुंगर सिंह बिष्ट के अनुसार उनके नेतृत्व में हजारों लोगों ने जनपद के दूरस्थ आगर हाईस्कूल टांडी से आईवीआरआई मुक्तेश्वर तक जुलूस निकाला था। बिष्ट कहते हैं, "उस दिन मानो पहाड़ के गाड़-गधेरों व जंगलों में भी जलसे हो रहे थे"।[/size]

नवीन जोशी

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उत्तराखंड के जनकवि गिर्दा को उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर नमन..

नवीन जोशी

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फिर भी ’हिमालय‘ सा अडिग है हिमालय

जन्म से गतिशीलता के बावजूद खड़ा है मजबूती से
मौसम, आक्रमणकारियों से सुरक्षा तथा ‘वाटर टावर ऑफ एशिया’ के रूप में बड़ी भूमिका 

नवीन जोशी नैनीताल। किसी व्यक्ति के अडिग होने की तुलना हिमालय से की जाती है। उस हिमालय से जो अपने जन्म से ही गतिशील रहा है। 6.5 करोड़ वर्ष की आयु के बावजूद हिमालय दुनिया के युवा पहाड़ों में गिना जाता है। यह ‘वाटर टावर’ पूरे एशिया को पानी देता है। पूरे भारतीय उप महाद्वीप की साइबेरिया की ठंडी हवाओं और चीन, मंगोलिया जैसे उत्तरी आक्रमणकारियों से सुरक्षा के साथ ही यहां मानसून के जरिये अच्छी वष्रा कराकर मिट्टी में सोना उगा देता है। इसकी जैव विविधता का कोई सानी नहीं है। 
हिमालय की महिमा युग-युगों से गाई गई है। महाकवि कालीदास ने अपनी कालजयी रचना कुमारसंभव में इसे नगाधिराज यानी पर्वतों का राजा बताया है। कुमाऊं विवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत बताते हैं कि हिमालय का जन्म तत्कालीन टेंथिस सागर में 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व एशियाई एवं भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के टकराव से हुआ। भारतीय प्लेट आज भी हर वर्ष 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। लिहाजा इसमें तीन स्तरों टेंथियन हिमालय, ट्रांस हिमालय, उच्च हिमालय, मध्य हिमालय एवं सब हिमालय यानी शिवालिक के बीच क्रमश: आईटीएसजेड, एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट व एमबीटी यानी मेन बाउंड्री थ्रस्ट के आसपास धरती की सतह पर भूस्खलन, भूकंप आदि के बड़े खतरे विद्यमान हैं। ये सभी थ्रस्त अरुणाचल से कश्मीर तक जाते हैं, और उत्तराखंड में ये सभी मौजूद हैं। गतिशीलता के कारण एक ओर पहाड़ ऊंचे उठते जा रहे हैं, वहीं पानी इसके ठीक उलट अपने प्राकृतिक प्रवाह के जरिये पहाड़ों को काटकर सागर में बहाकर ले जाने पर आमादा है। इसके बावजूद हिमालय ‘हिमालय’ की तरह ही सीना तान कर हर तरह के खतरे को झेलने को तैयार रहता है। प्रो. पंत हिमालय की भूमिका पर कहते हैं कि यदि हिमालय न होता तो भारतीय उप महाद्वीप में मानसून ही न होता। साथ ही साइबेरिया की ठंडी हवाएं यहां भी पहुंचतीं और यहां जीवन अत्यधिक कठिन होता। इसी के कारण मंगोलिया व चीन की ओर से कभी आक्रमणकारी इस ओर रुख नहीं कर पाये। लिहाजा हिमालय की भूमिका को समझते हुए इसके संरक्षण के लिये पूरे देश और भारतीय प्रायद्वीप के देशों को प्रयास करने चाहिए।

गजब की जैव विविधता है हिमालय में 
नैनीताल। हिमालय क्षेत्र में गजब की जैव विविधता के दर्शन होते हैं। हिमालय पर शोध कर चुके गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान कुल्लू मनाली के प्रभारी वैज्ञानिक डा. एसएस सामंत के हवाले से कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान के प्रो. ललित तिवारी बताते हैं कि हिमालय में सर्वाधिक 1,748 औषधीय पौधों, 300 स्तनधारी, 1000 चिड़ियों, 175 सरीसृपों, 105 उभयचरों, 270 मछलियों, 816 वृक्षों, 675 जंगली फलों, 750 आर्किड आदि की प्रजातियां विद्यमान हैं। यहां दुनिया के दूसरे सबसे बड़े ग्लेशियर सियाचिन सहित 1,500 ग्लेशियर ओर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट भी स्थित है। प्रो. तिवारी के अनुसार 300 वृक्ष, 350 फर्न एवं 600 मॉश प्रजातियां उत्तराखंड के हिमालय में मिलती हैं।  [/size]

नवीन जोशी

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हिमालय सा व्यक्तित्व और दिल में बसता था पहाड़   
लखनऊ, दिल्ली की रसोई में भी कुमाऊंनी भोजन बनता था
पर्वतीय लोगों से अपनी बोली- भाषा में करते थे बात
नवीन जोशी नैनीताल। देश की आजादी के संग्राम
और आजादी के बाद देश को संवारने में अपना अप्रतिम योगदान देने वाले उत्तराखंड के लाल भारतरत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत का व्यक्तित्व हिमालय जैसा विशाल था। वह राष्ट्रीय फलक पर सोचते थे, लेकिन दिल में पहाड़ ही बसता था। उन्हें पहाड़ और पहाड़वासियों से अपार स्नेह था। पंत आज के नेताओं के लिए भी मिसाल हैं। वे महान ऊंचाइयों तक पहुंचने के बावजूद अपनी जड़ों से हमेशा जुड़े रहे और स्वार्थ की भावना से कहीं ऊपर उठकर अपने घर से विकास की शुरूआत की। उनके घर में आम कुमाऊंनी रसोई की तरह ही भोजन बनता था और आम पर्वतीय ब्राह्मणों की तरह वे जमीन पर बैठकर ही भोजन करते थे। पं. पंत के करीबी रहे नगर के वयोवृद्ध किशन लाल साह ‘कोनी’ ने 125वीं जयंती की पूर्व संध्या पर पं. पंत के नैनीताल नगर से जुड़ी यादों को से साझा किया। श्री साह 1952 में युवा कांग्रेस का गठन होते ही नैनीताल संयुक्त जनपद के पहले जिला अध्यक्ष बने। श्री साह बताते हैं कि 1945 से पूर्व संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री (प्रीमियर) रहने के दौरान तक पं. पंत तल्लीताल नया बाजार क्षेत्र में रहते थे। यहां वर्तमान क्लार्क होटल उस समय उनकी संपत्ति था। यहीं रहकर उनके पुत्र केसी पंत ने नगर के सेंट जोसफ कालेज से पढ़ाई की। वह अक्सर यहां तत्कालीन विधायक श्याम लाल वर्मा, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंद्र सिंह नयाल, दलीप सिंह कप्तान आदि के साथ बी. दास, श्याम लाल एंड सन्स, इंद्रा फाम्रेसी, मल्लीताल तुला राम आदि दुकानों में बैठते और आजादी के आंदोलन और देश के हालातों व विकास पर लोगों की राय सुनते, सुझाव लेते, र्चचा करते और सुझावों का पालन भी करते थे। बाद में वह फांसी गधेरा स्थित जनरल वाली कोठी में रहने लगे। यहीं से केसी पंत का विवाह बेहद सादगी से नगर के बिड़ला विद्या मंदिर में बर्शर के पद पर कार्यरत गोंविद बल्लभ पांडे ‘गोविंदा’ की पुत्री इला से हुआ। केसी पूरी तरह कुमाऊंनी तरीके से सिर पर मुकुट लगाकर और डोली में बैठकर दुल्हन के द्वार पहुंचे थे। इस मौके पर आजाद हिंद फौज के सेनानी रहे कैप्टन राम सिंह ने बैंड वादन किया था। आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए वे पंत सदन (वर्तमान उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का आवास) में रहे, जोकि मूलत: रामपुर के नवाब की संपत्ति था और इसे अंग्रेजों ने अधिग्रहीत किया था। साह बताते हैं कि वह जब भी उनके घर जाते, उनकी माताजी पर्वतीय दालों भट, गहत आदि लाने के बारे में पूछतीं और हर बार रस- भात बनाकर खिलाती थीं। उनके लखनऊ के बदेरियाबाग स्थित आवास पर पहाड़ से जो लोग भी पहुंचते, पंत उनके भोजन व आवास की स्वयं व्यवस्था कराते थे और उनसे कुमाऊंनी में ही बात करते थे। उनका मानना था कि पहाड़ी बोली हमारी पहचान है। वह अन्य लोगों से भी अपनी बोली-भाषा में बात करने को कहते थे। साह पं. पंत की वर्तमान राजनेताओं से तुलना करते हुए कहते हैं कि पं. पंत के दिल में जनता के प्रति दर्द था, जबकि आज के नेता नितांत स्वार्थी हो गये हैं। पंत में सादगी थी, वह लोगों के दुख-दर्द सुनते और उनका निदान करते थे। वह राष्ट्रीय स्तर के नेता होने के बावजूद अपनी जड़ों से जुड़े हुए थे। उन्होंने नैनीताल जनपद में ही पंतनगर कृषि विवि की स्थापना और तराई में पाकिस्तान से आये पंजाबी विस्थापितों को बसाकर पहाड़ के आँगन को हरित क्रांति से लहलहाने सहित अनेक दूरगामी महत्व के कार्य किये।


वास्तव में 30 अगस्त है पं. पंत का जन्म दिवस
नैनीताल। पं. पंत का जन्म दिन हालांकि हर वर्ष 10 सितम्बर को मनाया जाता है, लेकिन वास्तव में उनका जन्म 30 अगस्त 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था। वह अनंत चतुर्दशी का दिन था। प्रारंभ में वह अंग्रेजी माह के बजाय हर वर्ष अनंत चतुर्दशी को अपना जन्म दिन मनाते थे। 1946 में अनंत चतुर्दशी यानी जन्म दिन के मौके पर ही वह संयुक्त प्रांत के प्रधानमंत्री बने थे, यह 10 सितम्बर का दिन था। इसके बाद उन्होंने हर वर्ष 10 सितम्बर को अपना जन्म दिन मनाना प्रारंभ किया।
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नवीन जोशी

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नैनीताल की मुहिम से इंडिया होगा क्लीन   
नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल तथा देश के अजमेर, गाजियाबाद, मेरठ, लखनऊ, इलाहाबाद व आगरा आदि नगर पंचतंत्र की कछुवे व खरगोश की कहानी से प्रेरित नजर आ रहे हैं। पांच वर्ष पूर्व एक आस्ट्रेलियाई नागरिक रैम्को वान्सान्टेन ने आस्ट्रेलिया में चल रही अपनी मुहिम ‘माई क्लीन कम्युनिटी’ की तर्ज पर नैनीताल नगर में भी अभियान शुरू किया था। देश में नैनीताल से ‘माई क्लीन नैनीताल’ के रूप में शुरू हुई यह मुहिम नैनीताल में तो वर्ष-दर-वर्ष धीमी पड़ती जा रही है। वहीं यह इन नगरों में गति पकड़ने हुए ‘माई क्लीन इंडिया’ बनती जा रही है। गाजियाबाद में तो इस मुहिम को मिसेज इंडिया र्वल्ड डा. उदिता त्यागी का साथ ही मिल गया है। रैम्को आस्ट्रेलिया के स्कारबौरौ शहर के रहने वाले सेवानिवृत्त केमिकल इंजीनियर तथा बीएससी, बीईसी व एमबीए डिग्रीधारी हैं। वे वर्ष 2004 में नैनीताल आये तो यहां की खूबसूरती के कायल हो गये। बस, एक कसक मन में उठी कि इस शहर को और अधिक साफ-सुथरा बनाया जाए। इसी कसक को लेकर वापस आस्ट्रेलिया लौटे तो मन के भीतर से आवाज आयी कि पहले अपना घर साफ करो, तब दूसरों का करो। बस क्या था। माई क्लीन कम्युनिटी नाम की संस्था बनाकर अपने शहर को सामुदायिक सहभागिता के जरिये साफ करने का बीड़ा उठा लिया। इसके बाद वर्ष 2007 में नैनीताल लौटे और यहां के लोगों को भी इसी तरह से सफाई के लिए प्रेरित किया। 18 सितम्बर 1880 यानी नगर के महाविनाशकारी भूस्खलन के दिन हर वर्ष नैनीताल स्वच्छता दिवस मनाना तय हुआ। लोग काफी हद तक सफाई के प्रति जागे भी, और यह आरोप भी लगा कि जब कोई विदेशी आकर ही हमें हमारे घर की समस्या का समाधान बताता है, तभी हम देर से जागते हैं, और फिर जल्दी सो भी जाते हैं। हुआ भी यही। वर्ष दर वर्ष अभियान धीमा पड़ने लगा। वर्ष भर सोने के बाद 18 सितम्बर को सांकेतिक सफाई अभियान होने लगे, नगर में 'मिशन बटरफ्लाई' की शुरुआत  इसी अभियान के फलस्वरूप हुई, लेकिन यह अभियान भी 'संस्थाओं' के  लाभ के अतिरिक्त कुछ खास नहीं कर सका। न कूड़े का जैविक व अजैविक में विभक्तिकरण हुआ और न ही कूड़े का योजना के  जैविक खाद या प्लास्टिक संघनन के  साथ समूल नाश ही हो पाया। अभियान से कुछ दिन पूर्व नगर पालिका की अगुआई में वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह, उमेश तिवाड़ी ‘विश्वास’ व दिनेश डंडरियाल आदि स्कूली बच्चों को जागरूक करते जबकि 18 सितम्बर के कार्यक्रम में अधिकांश लोगों की भूमिका फोटो खिंचवाने तक सीमित होती। इधर अपनी मेहनत का सिला न मिलने से इस वर्ष इन लोगों का हौसला भी टूटने लगा था। गत दिवस हुई बैठक में श्री साह ने आस्ट्रेलियाई नागरिक रैम्को वान्सान्टेन ने वर्ष 2007 में शुरू की थी ‘माई क्लीन कम्युनिटी’ मुहिम मिसेज इंडिया र्वल्ड डा. इदिता त्यागी बढ़ा रहीं मुहिम को आगे कह भी दिया था कि अब आगे की पीढ़ी दायित्व संभाले। महिला मैत्री संस्था ने कुछ समय हर माह की 18 तारीख को नगर के वार्डों में सफाई की, यह सिलसिला भी काफी पहले टूट चुका है। इधर रैम्को अपनी मुहिम में लगे रहे। वह बताते हैं कि उनकी मुहिम पूरी दुनिया को सामुदायिक सहभागिता के जरिये साफ-सुथरा करने की है। इस मुहिम में उन्हें खासी सफलता भी मिल रही है। भारत में ही नैनीताल से प्रेरणा लेकर इलाहाबाद, आगरा, लखनऊ जैसे शहर अपने यहां ऐसे ही कार्यक्रम चलाने लगे। रैम्को बताते हैं-अजमेर, मेरठ व गाजियाबाद में यह मुहिम खासी तेजी से चल रही है। गाजियाबाद में मिसेज इंडिया वर्ल्ड डा. उदिता त्यागी अभियान से जुड़ गयी हैं और अभियान को खुद आगे बढ़ा रही हैं। रैम्को कहते हैं, नैनीतालवासी इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि उनके यहां से शुरू हुई मुहिम ‘माई क्लीन इंडिया’ के रूप में देश भर में आगे बढ़ रही है।

नैनीताल पहुंचे रैम्को, चार सप्ताह तक रहेंगे   
नैनीताल। ‘माई क्लीन नैनीताल’ मुहिम को ‘माई क्लीन इंडिया’ का विस्तार देने वाले अभियान के प्रणेता आस्ट्रेलियाई नागरिक रैम्को वान्सान्टेन नैनीताल पहुंच गये हैं। वह इस बार चार सप्ताह के लिए पत्नी डाई विल्सन के साथ भारत आये हैं। एक खास भेंट में उन्होंने नैनीताल में साफ-सफाई में काफी सुधार आने की बात भी कही। उन्होंने बताया कि 18 तक यहां अभियान में शामिल रहेंगे और उसके बाद एक से छह अक्टूबर तक अजमेर में स्कूली बच्चों के सहयोग से आयोजित होने जा रहे ‘माई क्लीन स्कूल’ मुहिम का हिस्सा बनेंगे।
रैम्को की मुहिम को माई क्लीन इण्डिया वेबसाइट पर देखा जा सकता है   

नवीन जोशी

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केएमवीएन भी चला पीपीपी मोड की राह
अनुपयोगी संपत्तियां निजी क्षेत्र को देगा निगम 
देशभर के शहरों में रखे जाएंगे सेल्स एजेंट

नैनीताल (एसएनबी)। कुमाऊं मंडल विकास निगम घाटे में चल रही और लाभ में आने की नगण्य संभावनाओं वाली अपनी कम से कम 14 अनुपयोगी बताई जा रही संपत्तियों को पीपीपी मोड एवं निजी क्षेत्र को देने जा रहा है। इस बाबत निगम के पदेन निदेशक मंडल की बैठक में निर्णय हो गया है। निगम देशभर के शहरों में जनरल सेल्स एजेंट (जीएसए) की तैनाती करने जा रहा है, जिन्हें कारोबार के आधार पर कमीशन दिया जाएगा। शुक्रवार को निगम के सूखाताल स्थित टीआरएच में हुई पदेन निदेशक मंडल की बैठक में यह निर्णय लिये गये। निगम के एमडी दीपक रावत ने बताया कि निगम ने इस वर्ष जुलाई तक 3.83 करोड़ रुपये का लाभ प्राप्त किया है, जोकि गत वर्ष के 3.7 करोड़ से अधिक है। निर्माण कायरे की गुणवत्ता के प्रति ठेकेदारों को जवाबदेह बनाने के लिए उनकी सिक्योरिटी राशि को पांच वर्ष तक के लिये निगम एफडी के रूप में अपने पास रखेगा। कमी आने पर सिक्योरिटी जब्त कर ली जाएगी। निगम का वर्ष 2002-03 से ऑडिट नहीं हुआ है, अब 31 दिसंबर तक 05-06 तक का ऑडिट करा लेने के आदेश दिये गये हैं। टीआरएच के अतिरिक्त चंपावत की लीसा फैक्टरी, हल्द्वानी की सरस मार्केट, दीनापानी अल्मोड़ा का क्राफ्ट सेंटर व ताड़ीखेत की निगम की अनुपयोगी पड़ी संपत्तियों को निजी क्षेत्र में देगा। पर्यटन विभाग की कुछ संपत्तियों को पीपीपी मोड में दिये जाने की भी निगम संस्तुति करेगा। नोएडा में सरकार से वर्षो पूर्व अपने कारपोरेट ऑफिस के लिये लीज पर ली गई संपत्ति पर भवन निर्माण के लिए शासन से एकमुश्त धन की मांग की जाएगी। बैठक में निगम के अध्यक्ष किरन मंडल, जीएम पर्यटन व गैस प्रकाश चंद्र, जीएम निर्माण एसके श्रीवास्तव, वित्त अधिकारी डीएस बोनाल व कंपनी सेक्रेटरी अनिल आर्य शामिल रहे।[/color]

हल्दूचौड़ की जगह सितारगंज में बनेगा गैस प्लांट 
नैनीताल। हल्दूचौड़ स्थित आईओसी का 300 मीट्रिक टन क्षमता का गैस प्लांट वर्तमान की एक हजार एमटी गैस की जरूरत के सापेक्ष बहुत छोटा पड़ गया है। इससे गैस आपूर्ति होनी संभव नहीं है। लिहाजा सितारगंज के सिडकुल क्षेत्र में नया गैस प्लांट बनाने पर विचार चल रहा है। निगम के अध्यक्ष किरन मंडल ने यह जानकारी दी।[/color] [/size]

 

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