Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 74069 times)

नवीन जोशी

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[color=green]जय देवी जय नंदे, जयति हिमाद्रि शैल सुते...


एक शताब्दी से पुराना और अपने 109वें वर्ष में प्रवेश कर रहा सरोवरनगरी का नंदा महोत्सव आज अपने चरम पर है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म संभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है, और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है।
इस मौके पर मां नंदा सुनंदा के बारे में फैले भ्रम और किंवदंतियों को जान लेना आवश्यक है। विद्वानों के इस बारे में अलग अलग मत हैं, लेकिन इतना तय है कि नंदादेवी, नंदगिरि व नंदाकोट की धरती देवभूमि को एक सूत्र में पिरोने वाली शक्तिस्वरूपा मां नंदा ही हैं। यहां सवाल उठता है कि नंदा महोत्सव के दौरान कदली वृक्ष से बनने वाली एक प्रतिमा तो मां नंदा की है, लेकिन दूसरी प्रतिमा किनकी है। सुनंदा, सुनयना अथवा गौरा-पार्वती की। एक दंतकथा के अनुसार मां नंदा को द्वापर युग में नंद यशोदा की पुत्री महामाया भी बताया जाता है जिसे दुष्ट कंश ने शिला पर पटक दिया था, लेकिन वह अष्टभुजाकार देवी के रूप में प्रकट हुई थीं। त्रेता युग में नवदुर्गा रूप में प्रकट हुई माता भी वह ही थी। यही नंद पुत्री महामाया नवदुर्गा कलयुग में चंद वंशीय राजा के घर नंदा रूप में प्रकट हुईं, और उनके जन्म के कुछ समय बाद ही सुनंदा प्रकट हुईं। राज्यद्रोही शडयंत्रकारियों ने उन्हें कुटिल नीति अपनाकर भैंसे से कुचलवा दिया था। भैंसे से बचने के लिये उन्होंने कदली वृक्ष की ओट में छिपने का प्रयास किया था लेकिन इस बीच एक बकरे ने केले के पत्ते खाकर उन्हें भैंसे के सामने कर दिया था। बाद में यही कन्याएं पुर्नजन्म लेते हुए पुनः नंदा-सुनंदा के रूप में अवतरित हुईं और राज्यद्रोहियों के विनाश का कारण बनीं। इसीलिए कहा जाता है कि सुनंदा अब भी चंदवंशीय राजपरिवार के किसी सदस्य के शरीर में प्रकट होती हैं। इस प्रकार दो प्रतिमाओं में एक नंदा और दूसरी सुनंदा हैं। कहीं-कहीं इनके लिये नयना और सुनयना नाम भी प्रयुक्त किये जाते हैं, लेकिन इतना तय है कि नैनीताल में जिन नयना देवी का मंदिर है, उनमें और नंदा देवी में साम्य नहीं है। वरन नयना की नगरी में हर वर्ष सप्ताह भर के लिये नंदा-सुनंदा कदली दलों के रूप में आती हैं, उनकी पर्वताकार सुंदर मूर्तियां बनाई जाती हैं, और आखिर में भव्य शोभायात्रा निकालकर मूर्तियों का नैनी सरोवर में विसर्जन कर दिया जाता है।
बहरहाल, एक अन्य किंवदंती के अनुसार एक मूर्ति हिमालय क्षेत्र की आराध्य देवी पर्वत पुत्री नंदा एवं दूसरी गौरा पार्वती की हैं। इसीलिए प्रतिमाओं को पर्वताकार बनाने का प्रचलन है। माना जाता है कि नंदा का जन्म गढ़वाल की सीमा पर अल्मोड़ा जनपद के ऊंचे नंदगिरि पर्वत पर हुआ था। गढ़वाल के राजा उन्हें अपनी कुलदेवी के रूप में ले आऐ थे, और अपने गढ़ में स्थापित कर लिया था। इधर कुमाऊं में उन दिनों चंदवंशीय राजाओं का राज्य था। 1563 में चंद वंश की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित की गई। इस दौरान 1673 में चंद राजा कुमाऊं नरेश बाज बहादुर चंद (1638 से 1678) ने गढ़वाल के जूनागढ़ किले पर विजय प्राप्त की और वह विजयस्वरूप मां नंदा की मूर्ति को डोले के साथ कुमाऊं ले आए। कहा जाता है कि इस बीच रास्ते में राजा का काफिला गरुड़ के पास स्थित झालामाली गांव में रात्रि विश्राम के लिए रुका। दूसरी सुबह जब काफिला अल्मोड़ा के लिए चलने लगा तो मां नंदा की मूर्ति आश्चर्यजनक रूप से नहीं हिल पायी, (एक अन्य मान्यता के अनुसार दो भागों में विभक्त हो गई।) इस पर राजा ने मूर्ति के एक हिस्से (अथवा मूर्ति के न हिलने की स्थिति में पूरी मूर्ति को ही) स्थानीय पंडितों के परामर्श से पास ही स्थित भ्रामरी के मंदिर में रख दिया। भ्रामरी कत्यूर वंश में पूज्य देवी थीं, और उनका मंदिर कत्यूरी जमाने के किले यानी कोट में स्थित था। मंदिर में भ्रामरी शिला के रूप में विराजमान थीं। ‘कोट भ्रामरी’ मंदिर में अब भी भ्रामरी की शिला और नंदा देवी की मूर्ति अवस्थित है, यहां नंदा अब ‘कोट की माई’ के नाम से जानी जाती हैं। कहते हैं कि अल्मोड़ा लाई गई दूसरी मूर्ति को अल्मोड़ा के मल्ला महल स्थित देवालय (वर्तमान जिलाधिकारी कार्यालय) के बांऐ प्रकोष्ठ में स्थापित की गई।
इस प्रकार विद्वानों के अनुसार मां नंदा चंद वंशीय राजाओं के साथ संपूर्ण उत्तराखंड की विजय देवी थीं। हालांकि  कुछ विद्वान उन्हें राज्य की कुलदेवी की बजाय शक्तिस्वरूपा माता पराम्बा के रूप में भी मानते हैं। उनका कहना है कि चंदवंशीय राजाओं की पहली राजधानी में मां नंदा का कोई मंदिर न होना सिद्ध करता है कि वह उनकी कुलदेवी नहीं थीं वरन विजय देवी व आध्यात्मिक दृष्टि से आराध्य देवी थीं। चंदवंशीय राजाओं की कुलदेवी मां गौरा-पार्वती को माना जाता है। कहते हैं कि जिस प्रकार गढ़वाल नरेशों की राजगद्दी भगवान बदरीनाथ को समर्पित थी, उसी प्रकार कुमाऊं नरेश चंदों की राजगद्दी भगवान शिव को समर्पित थी, इसलिए चंदवंशीय नरेशों को ‘गिरिराज चक्र चूढ़ामणि’ की उपाधि भी प्राप्त थी। इस प्रकार गौरा उनकी कुलदेवी थीं, और उन्होंने अपने मंदिरों में बाद में जीतकर लाई गई नंदा और गौरा को राजमंदिर में साथ-साथ स्थापित किया।
वर्तमान नंदा महोत्सवों के आयोजन के बारे में कहा जाता है कि पहले यह आयोजन चंद वंशीय राजाओं की अल्मोड़ा शाखा द्वारा होता था, किंतु 1938 में इस वंश के अंतिम राजा आनंद चंद के कोई पुत्र न होने के कारण तब से यह आयोजन इस वंश की काशीपुर शाखा द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका प्रतिनिधित्व वर्तमान में नैनीताल सांसद केसी सिंह बाबा करते हैं। नैनीताल में वर्तमान नयना देवी मंदिर को स्थापित करने वाले मोती राम शाह ने ही 1903 में अल्मोड़ा से लाकर नंदा देवी महोत्सव मनाने की शुरुआत की थी। शुरुआत में यह आयोजन मंदिर समिति द्वारा ही आयोजित होता था। 1926 से यह आयोजन नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो विश्व युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। यहीं से प्रेरणा लेकर अब कुमाऊं के कई अन्य स्थानों पर भी नंदा महोत्सव के आयोजन होने लगे हैं।[/color] 


नवीन जोशी

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https://fbcdn-sphotos-e-a.akamaihd.net/hphotos-ak-snc7/384321_560393520640973_1548151497_n.jpg

अंबाला के बराड़ा गाँव में राणा तेजिंदर सिंह चौहान ने बनाया विश्व का सबसे ऊंचा 195 फीट का रावण. राणा ने 25 वर्ष पूर्व 20 फीट का रावण यह सोचकर बनाया था की वह देश में व्याप्त आतंकवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, अहंकार, वैमनस्य, कन्या भ्रूण हत्या, दहेज़ प्रथा, अशिक्षा, बढ़ती जनसँख्या, बेरोजगारी, महंगाई, राजनीति का अपराधीकरण,भ्रस्ताचार, मिलावटखोरी, जमाखोरी और असमानता जैसी बुराइयों का प्रदर्शन करेगा..इतनी सारी बुराइयां 20 फिट के रावण में नहीं समां पाएंगी, यह सोचकर वह हर वर्ष रावण की ऊंचाई बढाते रहे, इधर जबकि महंगाई रावणों की ऊंचाई घटाती और बुराई ऊंचाई बढाती जा रही है, बावजूद अब पूरे गाँव के सहयोग से बने उनके 195 फीट के रावण को दुनियां का सबसे ऊंचा रावण बताया जा रहा है.

बुराई पर सच्चाई के प्रतीक दशहरा पर्व की सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं....याद रखें रावण चाहे जितना ऊंचा हो जाए, उसे छः फीट से भी कम ऊंचे साधारण मानव से बने राम ही खाक में मिला डालते है.....

Thul Nantin

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असंख्य रावण विचर रहे हैं धरा पर इस युग में,
हमारे आपके सबके भीतर रावण जन्म ले चुका है, किसी के भीतर बड़ा है किसी के भीतर छोटा, पर है सबके भीतर |
राम के जन्म का इंतज़ार करने के बजाय, अपने भीतर के रावण का वध करने की कोशिश करें व राम के गुनो को अपनाने की, वही शायद सही दशहरा होगा  |
पर यह कहना आसान है करना बहुत ज्यादा मुश्किल |

नवीन जोशी

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भ्रम
[/size][/b]
दशहरे के दिन,
बना, सजा रखे हैं सभी ने
अपने अपने रावण,
..और अब आग लगा रहे हैं...

किसी का रावण कपड़ों का,
किसी का कागजों का..
किसी में ढांचा लकड़ियों का
और किसी में लोहे का भी

कोई रावण भस्म हो जा रहा पल भर में
कोई कठोर
आँख दिखा रहा
राजी नहीं हो रहा जलने को

कुछ भी हो, वह भी  जल्द हो जायेगा राख,

उसके भीतर रखे बम- पटाखे
कुछ देर भड़भड़ाएंगे और फिर चुप हो जायेंगे.

पर होगी इस बीच एक ख़ास चीज
जब जल रहा होगा रावण,
उससे उठने वाली चिंगारियों से
बन जायेंगे रक्तबीज.

भ्रम होगा, जल गया है रावण
पर वो रक्तबीज, बाहर आ
दुनियां में पाले-दुलारे जायेंगे,

फिर अगले साल के दशहरे में
और भी बड़े, ऊँचे
रावण सजेंगे

नहीं मरेगा यों रावण, न कुम्भकरण,
न खर-दूषण
खाली बढेगा प्रदूषण..
जला कर या उससे डर भाग कर ..

उसके सामने होना पड़ेगा खड़ा
करना पड़ेगा मुकाबला
लडनी पड़ेगी लड़ाई
घर से, भीतर से, खुद से भी,

मेरी मानो
न बनाओ, न जलाओ मरे रावण को
जब बड़े-बड़े रावण हैं जिन्दा दुनियां में
कर सको, तो रखो उन्हें चौराहों पर
रोज जूते मारो, काला करो मुंह
और हिम्मत है तो
उन्हें जलाओ.

खाली
भ्रम को जला कर क्या फायदा.....[/color]

 (मेरी कुमाउनी कविता 'भैम' का भावानुवाद)
मूलतः इस पोस्ट को यहाँ देखें: http://navinideas.blogspot.in/2010/02/blog-post.html

Thul Nantin

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वाह ! बहुत बढ़िया ...

नवीन जोशी

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धन्यवाद....
वाह ! बहुत बढ़िया ...

नवीन जोशी

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गैरसैंण के लिए टू-लेन हाई-वे बनाने की तैयारी भी शुरू 
गैरसैंण और पहाड़ के दिन बहुरने शुरू
एनएच-87 ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक 109 किमी हिस्से की फाइल दौड़ी

नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश की स्थायी राजधानी के रूप में प्रदेशवासियों की पसंद बताये जाने वाले गैरसैंण के दिन बहुरने शुरू हो गये हैं। दो दिन पूर्व ही गैरसैंण में पहली बार राज्य कैबिनेट की ऐतिहासिक बैठक हुई थी और अब एक और खुशखबरी है कि गैरसैंण के लिए टू-लेन हाईवे की फाइल दौड़ने लगी है। पहले चरण में राष्ट्रीय राजमार्ग-87 की ज्योलीकोट से अल्मोड़ा होते हुए रानीखेत के पास घिंघारीखाल तक 109 किमी लंबी सड़क की चौड़ाई दोगुनी यानी टू-लेन होने जा रही है। बाद में इसके गैरसैंण तक जुड़ने का प्रस्ताव है।
केंद्र सरकार के भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार एनएच-87 के ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के हिस्से को देश के अन्य राष्ट्रीय राजमागरे के साथ विस्तारित करने की योजना के तहत टू-लेन किया जाना है। इसके लिए करीब तीन दर्जन गांवों की सीमा की भूमि पर सड़क विस्तार के कार्य किए जाएंगे। इन कायरे के लिए नैनीताल एवं अल्मोड़ा जनपद के जिलाधिकारियों से सक्षम प्राधिकारियों का नाम मांग लिया गया है। गौरतलब है कि देश की राजधानी से कुमाऊं जल्द ही फोर लेन से जुड़ने जा रहा है। रामपुर से काठगोदाम के शेष बचे एनएच के हिस्से को फोर लेन करने का नोटिफिकेशन होने के बाद अब सड़क के लिए आवश्यक भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है और काठगोदाम से ज्योलीकोट का एनएच-87ई यानी नैनीताल आने वाली सड़क का हिस्सा पहले ही टू- लेन है, इसलिए ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के 109 किमी हिस्से को टू-लेन के रूप में परिवर्तित करने की कवायद शुरू हो गई है। नैनीताल जनपद में अधिग्रहण के लिए जरूरी भूमि के चिह्नांकन का होमवर्क शुरू हो गया है। डीएम निधिमणि त्रिपाठी ने पूछे जाने पर कहा कि एनएच-87 के चौड़ीकरण के लिए जरूरी भूमि के अधिग्रहण की तैयारी की जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्ग के टू-लेन हो जाने से पूरे कुमाऊं वासियों को लाभ होगा। साथ ही पर्यटन एवं विकास को भी पंख लग जाएंगे। गौरतलब है कि पहाड़ के राष्ट्रीय राजमागरे को टू- लेन करने का प्रस्ताव तत्कालीन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने तैयार कर दिया था, लेकिन देर से ही सही यह प्रस्ताव अब फाइलों में दौड़ने लगा है।
[/size]
इन गांवों की सीमा में होगा चौड़ीकरण
नैनीताल। केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार नैनीताल के बलुवाखान चक देवलागढ़, चक गेठिया, कुरिया गांव, भवाली के सेनिटोरियम, कहलक्वीरा, मल्ला निगलाट, तल्ला निगलाट, हरतपा, बारगल, छड़ा, लोहाली, जौरासी, जोगी नौली, जोगी माड़े, मनर्सा, गंगोरी, गगरकोट, औलिया गांव, सुयालबाड़ी, सिर्सा, चोपड़ा व क्वारब, अल्मोड़ा के चौसली, बड़सिमी, देवली, खत्याड़ी, अल्मोड़ा नगर पालिका के बाहर बाईपास क्षेत्र, पांडेखोला, सुनौला मल्ला, सिमकुड़ी, अघेली सुनार, अघेली तेवाड़ी, सुनौला तल्ला, रैलाकोट, मटेला, लायम स्टेट फार्म हवालबाग, कटारमल, शौले, ज्यौली, स्यूना, क्वेराली, कयेला, गढ़वाली, कुरचौड़ा, तुस्यारी व सिमल्टा और रानीखेत के बबूरखोला, डीडा, तल्ली रियूनी, मल्ली रियूनी, नैणी व डडगल्या गांवों की सीमा में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-87 के विस्तार के लिए अपेक्षित कार्य होने हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Very good news Joshi ji.

गैरसैंण के लिए टू-लेन हाई-वे बनाने की तैयारी भी शुरू 
गैरसैंण और पहाड़ के दिन बहुरने शुरू
एनएच-87 ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक 109 किमी हिस्से की फाइल दौड़ी

नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश की स्थायी राजधानी के रूप में प्रदेशवासियों की पसंद बताये जाने वाले गैरसैंण के दिन बहुरने शुरू हो गये हैं। दो दिन पूर्व ही गैरसैंण में पहली बार राज्य कैबिनेट की ऐतिहासिक बैठक हुई थी और अब एक और खुशखबरी है कि गैरसैंण के लिए टू-लेन हाईवे की फाइल दौड़ने लगी है। पहले चरण में राष्ट्रीय राजमार्ग-87 की ज्योलीकोट से अल्मोड़ा होते हुए रानीखेत के पास घिंघारीखाल तक 109 किमी लंबी सड़क की चौड़ाई दोगुनी यानी टू-लेन होने जा रही है। बाद में इसके गैरसैंण तक जुड़ने का प्रस्ताव है।
केंद्र सरकार के भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार एनएच-87 के ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के हिस्से को देश के अन्य राष्ट्रीय राजमागरे के साथ विस्तारित करने की योजना के तहत टू-लेन किया जाना है। इसके लिए करीब तीन दर्जन गांवों की सीमा की भूमि पर सड़क विस्तार के कार्य किए जाएंगे। इन कायरे के लिए नैनीताल एवं अल्मोड़ा जनपद के जिलाधिकारियों से सक्षम प्राधिकारियों का नाम मांग लिया गया है। गौरतलब है कि देश की राजधानी से कुमाऊं जल्द ही फोर लेन से जुड़ने जा रहा है। रामपुर से काठगोदाम के शेष बचे एनएच के हिस्से को फोर लेन करने का नोटिफिकेशन होने के बाद अब सड़क के लिए आवश्यक भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है और काठगोदाम से ज्योलीकोट का एनएच-87ई यानी नैनीताल आने वाली सड़क का हिस्सा पहले ही टू- लेन है, इसलिए ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के 109 किमी हिस्से को टू-लेन के रूप में परिवर्तित करने की कवायद शुरू हो गई है। नैनीताल जनपद में अधिग्रहण के लिए जरूरी भूमि के चिह्नांकन का होमवर्क शुरू हो गया है। डीएम निधिमणि त्रिपाठी ने पूछे जाने पर कहा कि एनएच-87 के चौड़ीकरण के लिए जरूरी भूमि के अधिग्रहण की तैयारी की जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्ग के टू-लेन हो जाने से पूरे कुमाऊं वासियों को लाभ होगा। साथ ही पर्यटन एवं विकास को भी पंख लग जाएंगे। गौरतलब है कि पहाड़ के राष्ट्रीय राजमागरे को टू- लेन करने का प्रस्ताव तत्कालीन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने तैयार कर दिया था, लेकिन देर से ही सही यह प्रस्ताव अब फाइलों में दौड़ने लगा है।
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इन गांवों की सीमा में होगा चौड़ीकरण
नैनीताल। केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार नैनीताल के बलुवाखान चक देवलागढ़, चक गेठिया, कुरिया गांव, भवाली के सेनिटोरियम, कहलक्वीरा, मल्ला निगलाट, तल्ला निगलाट, हरतपा, बारगल, छड़ा, लोहाली, जौरासी, जोगी नौली, जोगी माड़े, मनर्सा, गंगोरी, गगरकोट, औलिया गांव, सुयालबाड़ी, सिर्सा, चोपड़ा व क्वारब, अल्मोड़ा के चौसली, बड़सिमी, देवली, खत्याड़ी, अल्मोड़ा नगर पालिका के बाहर बाईपास क्षेत्र, पांडेखोला, सुनौला मल्ला, सिमकुड़ी, अघेली सुनार, अघेली तेवाड़ी, सुनौला तल्ला, रैलाकोट, मटेला, लायम स्टेट फार्म हवालबाग, कटारमल, शौले, ज्यौली, स्यूना, क्वेराली, कयेला, गढ़वाली, कुरचौड़ा, तुस्यारी व सिमल्टा और रानीखेत के बबूरखोला, डीडा, तल्ली रियूनी, मल्ली रियूनी, नैणी व डडगल्या गांवों की सीमा में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-87 के विस्तार के लिए अपेक्षित कार्य होने हैं।


नवीन जोशी

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आम आदिम

मिं ए आम आदिम
यै है बांकि
के नैं।
मिं के लै नैं।

म्या्र स्वींड़ के नैं
म्या्र क्वीड़ के नैं
म्येरि पीड़ के नैं
पर म्येरि घींण करनी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्या्र गीत के नैं
म्यार रीत के नैं
म्येरि प्रीति के नैं
म्येरि जीत न हुनि कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि डाड़ के नैं
म्यर लाड़ के नैं
म्या्र हाड़ के नैं
मिं हूं खाड़ खंड़नी सब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्येरि अकल के नैं
म्येरि शकल के नैं
म्यर बल के नैं
म्यर जस पगल नि मिलल कब्बै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

म्यर नौं है सकूं के लै
म्यर गौं है सकूं क्वे लै
सकींण लागि गे मेरि लौ लै
बंणि गे ए ’घौ’ म्येरि ज्यूनि हुत्तै।
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

क्वे कै दियो वी ’हाथ’ म्या्र दिगाड़ि
क्वे थमै दियो म्या्र हात में ’फूल’
क्वे बंणै दियो म्येरि नौं कि’ई पार्टी
उनूं छोड़ि, होली म्येरि भलिआम कब्बै ?
किलैकि,
मिं ए आम आदिम
यै है बांकि के नैं.......।

हिंदी भावानुवाद

आम आदमी

मैं एक आम आदमी
इससे अधिक
कुछ नहीं
मैं कुछ भी नहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे सपने कुछ नहीं
मेरी बातें कुछ नहीं
मेरे दर्द कुछ नहीं
लेकिन मुझसे घृणा करते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरे गीत कुछ नहीं
मेरे तौर-तरीके कुछ नहीं
मेरा प्यार कुछ नहीं
मेरी जीत नहीं होती कभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा रोना कुछ नहीं
मेरा दुलार कुछ नहीं
मेरी हड्डियां (हो चुकीं तो) कुछ नहीं
मेरे लिये गड्ढे ही खोदते हैं सभी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरी अक्ल कुछ नहीं
मेरी शक्ल कुछ नहीं
मुझमें बल कुछ नहीं
मुझ सा पागल नहीं मिलेगा कहीं।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

मेरा नाम हो सकता है कुछ भी
मेरा गांव हो सकता है कहीं भी
खत्म होने लगी है मेरी आत्मिक शक्ति भी
एक घाव बन गई है मेरी पूरी जिंदगी।
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।

कोई कह दे उसका ’हाथ’ मेरे साथ
कोई पकड़ा दे मेरे हाथ में ’फूल’
कोई बना दे मेरे नाम से ही पार्टी
उनके बजाय क्या हो सकता है मेरा भला कभी ?
क्योंकि,
मैं एक आम आदमी
इससे अधिक कुछ भी नहीं।[/color]

नवीन जोशी

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उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों पर पड़ सकती है पोंटी चड्ढा हत्याकांड की मार

उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों पर पड़ सकती है पोंटी चड्ढा हत्याकांड की मार
घटना के बाद सुरक्षा गार्ड की नौकरी के लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया आयी जांच के दायरे में


नवीन जोशी, नैनीताल। दिल्ली में लिकर किंग पोंटी चड्ढा और उसके भाई हरदीप चड्ढा की गोलीकांड में हुई मौत की मार उत्तराखंड के सेवानिवृत्त सैनिकों और उन युवाओं पर पद सकती है जो सुरक्षा गार्ड की नौकरी प्राप्त करने के लिए शस्त्र लाइसेंस लेते हैं. पोंटी बंधुओं के हत्याकांड में समस्त गोलियां लाइसेंसी हथियारों से ही चलने और शस्त्र लाइसेंसधारी गार्डों के द्वारा ही चलाने के बाद सरकार गार्डों को लाइसेंस देने में कड़ाई बरत सकती है। इस बाबत सर्वोच्च न्यायलय के संज्ञान लेने और केंद्र सर्कार से आये निर्देशों के बाद उत्तराखंड सरकार ने सभी जिलों को शस्त्रों की जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं. जिसके बाद रोजगार के लिए शस्त्र लाइसेंस लेने वाले जांच के दायरे में आने तय हैं, साथ ही आगे सरकार ऐसे लाइसेंस देने की राह में परेशानियां खादी कर सकती है.
यह आम बात है कि नए प्राविधान हमेशा कमजोर तबके के लिए ही परेशानी खड़ी करते हैं. सरकार घरेलू  गैस का व्यवसाइक उपयोग न रोक पाई तो सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या कम कर दी. उसी तरह  पोंटी चड्ढा हत्याकांड के बाद शास्त्र लाइसेंस जारी करने और उनके एनी राज्यों में पंजीकरण करने की प्रक्रिया में खामियां उजागर हुई हैं तो इसकी मार भी गरीब बेरोजगारों पर पड़नी तय मानी जा रही है.
इस मामले में उत्तराखंड का बर्खास्त अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष सुखदेव नामधारी आरोपित हुआ है, इसलिए उत्तराखंड पर मामले का अधिक असर पढ़ना तय है. उत्तराखंड आजादी के आन्दोलन से ही सैनिक बहुत राज्य है. सेना से सेवानिवृत्ति के बाद यहाँ के लोग सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर अपनी आजीविका चलते है.
गौरतलब है कि शस्त्र लाइसेंस दो कारणों-भय आकलन के साथ ही रोजगार के दृष्टिकोण से भी देने का प्रावधान है। सामान्यत: जिला प्रशासन बेरोजगारों को रोजगार देने की भावना से ऐसे लाइसेंस दिखाने में अपेक्षाकृत उदारता बरतते हैं.
लेकिन इधर, मामले में मुख्य आरोपित बताया जा रहा सुखदेव सिंह नामधारी स्वयं एक सुरक्षा गार्ड एजेंसी चलाता था। उसने ही अपनी एजेंसी के माध्यम से पोंटी को सुरक्षा गार्ड मुहैया कराई थी। लिहाजा, प्रदेश एवं केंद्र सरकार के निर्देशों पर शुरू हुई शस्त्र लाइसेंसों की जांच की सर्वाधिक मार ऐसे लोगों पर पड़ने जा रही है, जिन्होंने दूसरे कारण यानी सुरक्षा गार्ड की नौकरी प्राप्त करने के लिए शस्त्र लाइसेंस लिये हैं।

प्रदेशभर में शस्त्र लाइसेंसों पर लटकी है तलवार
चड्ढा बंधु हत्याकांड के बाद प्रदेश में शुरू हुई समस्त शस्त्र लाइसेंसों की जांच

नैनीताल। नैनीताल समेत प्रदेश के समस्त जिलों में पंजीकृत शस्त्र लाइसेंसों पर निरस्त होने की तलवार लटक गई है। प्रदेश शासन ने सर्वोच्च न्यायालय की पहल और केंद्र सरकार द्वारा मांगे जाने के बाद प्रदेश के सभी जिलों से सभी शस्त्र लाइसेंसों के ब्योरे तलब कर लिए हैं। ऐसे शस्त्र लाइसेंसों पर भी खास नजर रहने वाली है, जो एक ही परिवार के अनेक लोगों व एक व्यक्ति को एक से अधिक लाइसेंस जारी हुए हैं, अथवा दूसरे राज्यों से जारी होने के बाद यहां पंजीकृत हुए हैं। भय आंकलन के साथ ही रोजगार के लिए सुरक्षा गाडरे को देने वाले लाइसेंस भी जांच के घेरे में हैं।
गौरतलब है कि विगत दिनों हुए लिकर किंग पोंटी चड्ढा और उसके भाई की हत्या के मामले में सरकार की शस्त्र लाइसेंस देने की प्रक्रिया सर्वाधिक विवादों में आ गई है। दायां हाथ न होने के कारण पोंटी चड्ढा जहां लाइसेंसी शस्त्र धारक था, वहीं हत्याकांड में प्रयुक्त सभी गोलियां लाइसेंस शुदा लोगों द्वारा ही चलाई गई हैं। साफ है कि देश में शस्त्र लाइसेंस देने की प्रक्रिया की खामियां इस हत्याकांड के बाद उजागर हुई हैं। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस प्रक्रिया पर संज्ञान लिया है, जिसके बाद केंद्र और फिर राज्य सरकारें चेती हैं। यहां उत्तराखंड सरकार ने भी केंद्र सरकार के निर्देशों पर प्रदेश भर में शस्त्र लाइसेंसों की व्यापक स्तर पर जांच शुरू कर दी है। बताया गया है कि शासन ने जिलों से शस्त्र लाइसेंसों के बाबत ब्योरे मांगे हैं कि उनके यहां से कितने शस्त्र लाइसेंस जारी हुए हैं, कितने निरस्त हुए हैं और कितने शस्त्र लाइसेंस ऐसे हैं, जो जारी तो दूसरे राज्यों से हुए हैं, और उन्हें प्रदेश के जिलों में पंजीकृत किया गया है। साथ ही सीमा विस्तार की प्रक्रिया भी पूछी गई है। किसी व्यक्ति को किसी राज्य से जारी शस्त्र लाइसेंसों को उस राज्य की सीमा से लगे दो राज्यों में उन राज्यों के गृह मंत्रालय के अनुमोदन पर तथा और अधिक राज्यों में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुमोदन से सीमा विस्तार कर अनुमति दे दी जाती है। इसके साथ ही शस्त्र लाइसेंस जारी करने के बाबत केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने को कहा गया है। डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने बताया कि जनपद में 10 हजार शस्त्र लाइसेंस हैं, इन सबकी जांच की जा रही है। शस्त्र लाइसेंस धारकों का सत्यापन कराने की योजना नहीं है।
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