Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 72518 times)

नवीन जोशी

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'केदारनाथ' की घटना प्रकृति और देवता की मनुष्य को कड़ी चेतावनी है...मनुष्य ने अपने लाभ के लिए केदारनाथ जी को भी 'बेचना' शुरू कर दिया था..उनके आगे 'बाजार' सजा दिया था..उन्हें 'पिकनिक स्पॉट' बना दिया था..फिर यह तो होना ही था...

नवीन जोशी

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उत्तराखंड में फंसे देश के विभिन्न क्षेत्रों के तीर्थयात्रियों के बारे में जानकारी के लिए संपर्क नंबरों की सूची:

मध्य प्रदेश - 0755-2556422, 09926769808

महाराष्ट्र (मंत्रालय संख्या) - 022-220279990, 022-22816625, 022-22854168

आंध्र प्रदेश - 40234510

उत्तराखंड राज्य इमरजेंसी आपरेशन सेंटर - 0135-2710334

जनरल जांच संख्या - 0135-2710334, 0135-2710335, 0135-2710233

आर्मी मेडिकल इमरजेंसी संख्या - 18001805558, 18004190282, 8009833388

जोशीमठ, कर्णप्रयाग और गोविंदघाट - 01372-253785

उत्तरकाशी - 01374-226126/161

चमोली - 01372-251437

रुद्रप्रयाग - 01732-1077

टिहरी - 01376-233433

आईटीबीपी हेल्पलाइन और नियंत्रण कक्ष - 011-24362892, 09968383478

आपदा नियंत्रण कक्ष, पुलिस मुख्यालय, उत्तराखंड - 0135-2717300, 09411112985


उत्तराखंड के आपदा नियंत्रण कक्षों के जरूरी फोन नंबरों की जिलावार सूची :

पिथौरागढ़ - 05964-228050, 226326, 09412079945

अल्मोड़ा - 05962-237874, 09319979850

नैनीताल - 05942-231179, 09456714092

ऊधम सिंह नगर - 05944-250719, 250823, 09410376808

चमोली - 01372-251437, 251077, 09411352136

रुद्रप्रयाग - 01364-233727, 09412914875, 08859504022

उत्तरकाशी - 01374-226461, 09675082336, 09410350338

देहरादून - 0135-2726066, 09412964935

हरिद्वार - 01334-223999, 09837352202

टिहरी - 01376-233433, 09412076111

बागेश्वर - 05963-220197, 09411378137

चम्पावत - 05965-230703, 09412347265

पौड़ी गढ़वाल - 01368-221840, 08650922201
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नवीन जोशी

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उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों के बारे में Latest जानकारी और राज्यों के हेल्प लाइन नंबरों की सूची यहाँ क्लिक कर के देख सकते हैं :  http://uttarakhandsamachaar.blogspot.in/

Second List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 24.06.2013
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 24.06.2013
List of Transported Persons to Jolligrant Hallipad Dehradun on date 22.6.2013
Unidentified Dead Bodies on 22.06.2013 (distt. Haridwar)
List of persons rescued at Gaurikund on 23.06.2013
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 23.06.2013
List of persons rescued at Gaurikund on 22.06.2013
List of Transported Persons to Sahastradhara Hallipad Dehradun on date 22.6.2013
NATURAL CALAMITY VICTIMS IN HIMALAYAN HOSPITAL, JOLLYGRANT. (Updated as on 04:30 PM on 22.06.2013)
List of persons transported from harshil to jolligrant airport on 22-6-2013 10-30 am
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 22.06.2013 (updated)
Unidentified Dead Bodies on 21.06.2013 Part 2
Unidentified Dead Bodies
List of Transported Persons to Sahastradhara Hallipad Dehradun on date 21.6.2013
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 21.06.2013
List of Transported Persons to Jollygrant(Dehradun) on date 20.6.2013
List of Transported Persons From Kedarnath to Jollygrant(Dehradun) on date 20.6.2013
List of Rescued Persons on date 20.06.2013
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Part 3
केदारनाथ से गुप्तकाशी लाये गये व्यक्तियों की सूची
गुप्तकाशी से जौलीग्रान्ट(देहरादून) लाये गये व्यक्तियों की सूची
List Of Rescued Persons fm Kedar Ghati Part 2
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Part 1
Other Links regarding information about the rescued persons         
List of persons transported from harshil to jolligrant airport on 22-6-2013 10-30 am
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Date 22.06.2013 (updated)
Unidentified Dead Bodies on 21.06.2013 Part 2
Unidentified Dead Bodies
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List of Rescued Persons on date 20.06.2013
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Part 3
केदारनाथ से गुप्तकाशी लाये गये व्यक्तियों की सूची
गुप्तकाशी से जौलीग्रान्ट(देहरादून) लाये गये व्यक्तियों की सूची
List Of Rescued Persons fm Kedar Ghati Part 2
List Of Rescued Persons from Kedar Ghati Part 1
Other Links regarding information about the rescued persons
उत्तराखंड में फंसे देश के विभिन्न क्षेत्रों के तीर्थयात्रियों के बारे में जानकारी के लिए संपर्क नंबरों व आपदा नियंत्रण कक्षों के जरूरी फोन नंबरों की जिलावार सूची...[/color][/size]

नवीन जोशी

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उत्तराखंड में आयी जल प्रलय से करनाल (हरियाणा) जेल के पत्थरदिल कैदियों का दिल भी पिघल गया, उन्होंने जेल की अपनी कमाई जमा कर आपदा प्रभावितों के लिए भेज दी..दिल्ली के शिखर धवन ने वर्ल्ड चैम्पियनशिप के साथ प्रतियोगिता में सर्वाधिक रन बनाकर जीता 'गोल्डन बैट' इंग्लेंड से आपदा प्रभावितों को समर्पित कर दिया, पर उत्तराखंड के ..पूत धौनी के मुंह से एक बोल नहीं फूटा.. आप क्या कहते हैं ?

नवीन जोशी

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देवभूमि को आपदा से बचा सकता है "नैनीताल मॉडल"

वर्ष 1880 के भूस्खलन ने बदल दिया था सरोवरनगरी का नक्शा, तभी बने नालों की वजह से बचा है कमजोर भूगर्भीय संरचना का यह शहर
इसी तरह से अन्यत्र भी हों प्रबंध तो बच सकते हैं दैवीय आपदाओं से
पहाड़ का परंपरागत मॉडल भी उपयोगी
नवीन जोशी, नैनीताल। कहते हैं कि आपदा और कष्ट मनुष्य की परीक्षा लेते हैं और समझदार मनुष्य उनसे सबक लेकर भावी और बड़े कष्टों से स्वयं को बचाने की तैयारी कर लेते हैं। ऐसी ही एक बड़ी आपदा नैनीताल में 18 सितंबर 1880 को आई थी, जिसने तब केवल ढाई हजार की जनसंख्या वाले इस शहर के 151 लोगों और नगर के प्राचीन नयना देवी मंदिर को लीलने के साथ नगर का नक्शा ही बदल दिया था, लेकिन उस समय उठाए गए कदमों का ही असर है कि यह बेहद कमजोर भौगोलिक संरचना का नगर आज तक सुरक्षित है। इसी तरह पहाड़ के ऊंचाई के अन्य गांव भी बारिश की आपदा से सुरक्षित रहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि नैनीताल और पहाड़ के परंपरागत मॉडल केदारघाटी व चारधाम यात्रा क्षेत्र से भी भविष्य की आपदाओं की आशंका को कम कर सकते हैं।
1841 में स्थापित नैनीताल में वर्ष 1867 में बड़ा भूस्खलन हुआ था, और भी कई भूस्खलन आते रहते थे, इसी कारण यहाँ राजभवन को कई जगह स्थानांतरित करना पढ़ा था। लेकिन 18 सितम्बर 1880 की तिथि नगर के लिए कभी न भुलाने वाली तिथि है। तब 16 से 18 सितम्बर तक 40 घंटों में 20 से 25 इंच तक बारिश हुई थी। इसके कारण आई आपदा को लिखते हुए अंग्रेज लेखक एटकिंसन भी सिहर उठे थे। लेकिन उसी आपदा के बाद लिये गये सबक से सरोवर नगरी आज तक बची है और तब से नगर में कोई बड़ा भूस्खलन भी नहीं हुआ है। उस दुर्घटना से सबक लेते हुए तत्कालीन अंग्रेज नियंताओं ने पहले चरण में नगर के सबसे खतरनाक शेर-का-डंडा, चीना (वर्तमान नैना), अयारपाटा, लेक बेसिन व बड़ा नाला (बलिया नाला) में नालों का निर्माण कराया। बाद में 1890 में नगर पालिका ने रुपये से अन्य नाले बनवाए। 23 सितम्बर 1898 को इंजीनियर वाइल्ड ब्लड्स द्वारा बनाए नक्शों के आधार पर 35 से अधिक नाले बनाए गए। वर्ष 1901 तक कैचपिट युक्त 50 नालों (लम्बाई 77,292 फीट) और 100 शाखाओं का निर्माण (लंबाई 1,06,499 फीट) कर लिया गया। बारिश में कैच पिटों में भरा मलबा हटा लिया जाता था। अंग्रेजों ने ही नगर के आधार बलिया नाले में भी सुरक्षा कार्य करवाए जो आज भी बिना एक इंच हिले नगर को थामे हुए हैं। यह अलग बात है कि इधर कुछ वर्ष पूर्व ही हमारे इंजीनियरों द्वारा बलिया नाला में कराये गए कार्य कमोबेश पूरी तरह दरक गये हैं। बहरहाल, बाद के वर्षो में और खासकर इधर 1984 में अल्मोड़ा से लेकर हल्द्वानी और 2010 में पूरा अल्मोड़ा एनएच कोसी की बाढ़ में बहने के साथ ही बेतालघाट और ओखलकांडा क्षेत्रों में जल-प्रलय जैसे ही नजारे रहे, लेकिन नैनीताल कमोबेश पूरी तरह सुरक्षित रहा। ऐसे में भूवैज्ञानिकों का मानना है ऐसी भौगोलिक संरचना में बसे प्रदेश के शहरों को "नैनीताल मॉडल" का उपयोग कर आपदा से बचाया जा सकता है। कुमाऊं विवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष एवं भू-वैज्ञानिक प्रो. सीसी पंत एवं यूजीसी वैज्ञानिक प्रो. बीएस कोटलिया का कहना है कि नैनीताल मॉडल के सुरक्षित 'ड्रेनेज सिस्टम' के साथ ही पहाड़ के परंपरागत सिस्टम का उपयोग कर प्रदेश को आपदा से काफी हद तक बचाया जा सकता है। इसके लिए पहाड़ के परंपरागत गांवों की तरह नदियों के किनारे की भूमि पर खेतों (सेरों) और उसके ऊपर ही मकान बनाने का मॉडल कड़ाई से पालन करना जरूरी है। प्रो. कोटलिया का कहना है कि मानसून में नदियों के अधिकतम स्तर से 60 फीट की ऊंचाई तक किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

नवीन जोशी

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देवभूमि को आपदा से बचाएगा नैनीताल, एसटी और डोपलर रडार लगेंगे

जिला प्रशासन ने डॉप्लर रडार लगाने को स्नोव्यू में तलाशी जमीन
एरीज भी अपने यहां लगाने को तैयार
एरीज में पहले ही एसटी रडार स्थापित


नवीन जोशी नैनीताल। यहां एरीज में हवाओं की निगहबानी करने वाली एसटी रडार स्थापित हो चुकी है और इसके जल्द कार्य शुरू करने की उम्मीद की जा रही है, वहीं वर्ष 2004 से लंबित डॉप्लर रडार लगाने के लिए जिला प्रशासन ने नगर के स्नोव्यू में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि इस हेतु चिह्नित कर ली है, जबकि एरीज के अधिकारियों ने अपने यहां इसे लगाने पर भी हामी भरी है। मौसम की सटीक जानकारी के लिए एसटी और डॉप्लर रडार की भूमिका महत्वपूर्ण है। एसटी रडार जहां वायुमंडल की करीब 20 से 25 मीटर की ऊंचाई की दिशा में हवाओं की गति पर और डॉप्लर रडार 360 डिग्री के कोण पर घूमते हुए 200 किमी की परिधि में वायुमंडल में मौजूद आर्द्रता-नमी पर नजर रखती है। इन दोनों प्रकार की रडारों के समन्वय से मौसम विभाग आने वाले मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर पाता है।
वर्ष 2004-05 से मसूरी और नैनीताल में करीब 10 करोड़ रुपए लागत के डॉप्लर रडार लगाने की योजना बनी थी, लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बार की भीषण आपदा से सबक लेते हुए डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी ने प्रयास किए हैं। एक ओर स्थानीय आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) से डॉप्लर रडार लगाने के बाबत वार्ता की। एरीज के स्थानीय अधिकारियों ने इसे अपने परिसर में लगाने पर उच्च प्रबंधन से आसानी से स्वीकृति मिल जाने की बात कही है। इसके साथ ही स्नोव्यू क्षेत्र में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि की पहचान कर शासन को जानकारी दे दी गई है, ताकि एरीज और स्नोव्यू के दोनों स्थानों का परीक्षण कर लिया जाए। डीएम ने कहा कि परीक्षण में जो भी स्थान उपयुक्त पाया जाएगा, उसका तत्काल प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया जाएगा। इधर राज्य के मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने मौसम की निगरानी के लिए डॉप्लर रडार को सबसे प्रभावी बताया। बताया कि 2004-05 से इसका प्रस्ताव लंबित था। राज्य सरकार स्थान उपलब्ध कराए तो केंद्रीय मौसम विभाग डॉप्लर रडार स्थापित करेगा।
एसटी रडार से 24 घंटे पहले तक हो सकेगी सटीक भविष्यवाणी
नैनीताल। एरीज में देश की सबसे बड़ी 206 मेगा हर्ट्ज क्षमता का एसटी रडार शीघ्र कार्य शुरू कर देगा। इससे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने, तूफान आने सहित वायुयानों के बाबत करीब 24 घंटे पूर्व तक सटीक भविष्यवाणी हो सकेगी। एरीज के वायुमंडल वैज्ञानिक व एसटी रडार विोषज्ञ डा. नरेंद्र सिंह ने बताया कि यह रडार अगस्त अंत तक कार्य करना प्रारंभ कर देंगे। यह रडार वायुमंडल में चलने वाली हवाओं के 150 किमी प्रति घंटा की गति तक जाने की संभावना का दो दिन पहले ही अंदाजा लगाने की क्षमता रखती है। साथ ही यह धरती की सतह से 25 किमी ऊपर वायुमंडल की वज्रपात, बिजली की गर्जना, वायुयानों के चलने वाली हवाओं के रुख का अनुमान भी 24 घंटे पूर्व लगा सकता है।
धाकुड़ी, बदियाकोट व मदकोट में स्थापित हुए वायरलेस स्टेशन
नैनीताल। पुलिस ने कुमाऊं मंडल में आपदा के दौरान दूरस्थ क्षेत्रों से सूचनाओं के आदान-प्रदान के मद्देनजर तीन अस्थायी वायरलेस स्टेशनों की स्थापना की है। अपर राज्य रेडियो अधिकारी जीएस पांडे ने बताया कि बागेश्वर जिले के दूरस्थ पिंडारी ट्रेकिंग रूट पर धाकुड़ी एवं बदियाकोट में तथा पिथौरागढ़ जिले के मदकोट में वायरलेस स्टेशन स्थापित किये गए हैं। इन स्टेशनों पर वायरलेस ऑपरेटरों की तैनाती भी की गई है। कोई भी व्यक्ति यहां आकर आपदा से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पहले ही पुलिस की ऐसी व्यवस्था गुंजी तक मौजूद है। इसके अलावा तीन सेटेलाइट फोन भी दूरस्थ क्षेत्रों में उपलब्ध कराए गए हैं।[/size]

नवीन जोशी

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उत्तराखंड आपदा से देश के लिए ‘सबक के पाठ’ तैयार करा रहा केंद्र
राष्ट्रपति भवन में कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में समस्त केंद्रीय विभागों के प्रमुख सचिवों को सोंपी जा चुकी हैं जिम्मेदारियां
राज्य के विशेषज्ञों से ली जा रही है फीडबैक
अब विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी सचिव अपने स्तर से लेंगे फीडबैक
नवीन जोशी, नैनीताल। केंद्र सरकार उत्तराखंड में गत दिवस आई भीषण दैवीय आपदा से देश भर के लिए ‘सबक के पाठ’ तैयार करा रहा है, ताकि देश-प्रदेश में कभी ऐसी आपदा दुबारा आए तो इसके नुकसानों का न्यूनीकरण और बेहतर प्रबंधन किया जा सके। साथ ही इस आपदा से सबक सीखते हुए विकास एवं निर्माण कार्यों के लिए बेहतर गाइड लाइन तैयार करने की भी योजना है। खास बात यह है कि इसमें प्रदेश और पर्वतीय राज्यों के विशेषज्ञों व खास तौर पर पर्वतीय राज्यों के विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका होने जा रही है। इस हेतु कैबिनेट सचिव गत दिवस सभी विभागों के केंद्रीय सचिवों की राष्ट्रपति भवन में बैठक ले चुके हैं, जिसमें कुमाऊं, गढ़वाल एवं जम्मू विवि के कुलपतियों को भी आमंत्रित किया गया था। आगे सभी केंद्रीय सचिवों को उनके विभागों की आपदा के दृश्टिकोण से बेहतर भूमिका तय करने को कहा गया है, जिसके तहत केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने आगामी आठ अगस्त को बैठक आहूत कर दी है। इस बैठक में भी पुनः कुमाऊं विवि सहित पर्वतीय राज्यों के विवि के कुलपतियांे एवं विषय विशेषज्ञों को आमंत्रित किया गया है।
कहते हैं आपदा सहित कोई भी दुर्घटना मनुष्य की पीढ़ियों को उनसे लड़ने की शक्ति देकर और मजबूत करने का कार्य करती हैं। यह तभी संभव है, जब आपदा या दुर्घटना का समग्र तौर पर अध्ययन, उनसे लड़ने की अपनी वर्तमान शक्ति व कमियों का आंकलन तथा क्या बेहतर हो सकता है, का प्रबंध किया जाए। केंद्र सरकार की ओर से यही पहल की जा रही है। इसके तहत गत 16 जुलाई को कैबिनेट सचिव अजीत कुमार सेठ राष्ट्रपति भवन में बैठक लेकर समस्त विभागों के केंद्रीय सचिवों को निर्देशित कर चुके हैं। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी भी इस बैठक में शामिल हुए थे। उन्होंने बताया कि बैठक में जम्मू विवि के कुलपति प्रो. तलत अहमद की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई है, इस समिति में कुमाऊं विवि के भी दो सदस्य शामिल होने हैं। यह समिति आपदा से पूर्व, आपदा के दौरान एवं आपदा के बाद आपदा न्यूनीकरण पर अपनी रिपोर्ट कैबिनेट सचिव को देगी। आगे इसी कड़ी में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी सचिव टी रामास्वामी ने एक उच्च स्तरीय बैठक आठ अगस्त को बुलाई है। इसमें शामिल होने पुनः दिल्ली रवाना हो रहे प्रो.धामी ने बताया कि इस बैठक में भी जम्मू विवि के कुलपति प्रो. तलत अहमद के साथ वाडिया इंस्टिट्यूट देहरादून के निदेशक डा. एके गुप्ता, सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया स्वर्ण सुब्बाराव, नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सलाहकार एके पचौरी, दिल्ली विवि के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष डा. सीएस दुबे, रिमोट सेंसिंग के निदेशक वीके डडवाल, जीएसआई के डिप्टी डीजी डा. संजीव शर्मा व आईआईटी रुड़की के डा. एसके टंडन सहित अनेक विशेषज्ञों को बुलाया गया है। बैठक में सबसे पहली कोशिश आपदा का सही आंकलन करने तथा आगे विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी की मदद से आपदा के न्यूनीकरण के प्रयासों की है।
पुर्नवास हो पर पहाड़ खाली न हो जाएं...
नैनीताल। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी सचिव की बैठक में कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. धामी सुरक्षित स्थानों पर ही निर्माण व खास तौर पर सड़कें बनाने, खतरनाक स्थानों पर सड़कों को टनल से गुजारने तथा प्रदेश में अधिक डॉप्लर रडार स्थापित करने व रिमोट सेंसिंग के उपकरण बढ़ाने आदि के विचार रखेंगे। प्रो. धामी ने का कि वह केवल प्रभावितों की जगह पूरे गांव का पुनर्वास नियमों में शिथिलीकरण कर पास की ही वन भूमि पर करने, अपनी जमीनें खो चुके पर्वतीय लोगों को जमीनें व रोजगार के साधन भी देने, पहाड़ पर ‘ऑल वेदर रोड’ बनाने आदि सुझाव भी देने जा रहे हैं। कहा कि आपदा की वजह से लोग मैदानों के सुरक्षित स्थानों को आने से सीमांत क्षेत्र खाली न हो जाएं, इसका भी ध्यान रखने की जरूरत है।[/size][/color]

नवीन जोशी

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सत्याग्रह की जिद पर गांधी जी को भी झुका दिया था डुंगर ने
पहले मना करने पर दुबारा की गई अनुनय पर दी थी अनुमति
पांच वर्ष रहे जेल में, जेलरों की नाक में भी कर दिया था दम, बदलनी पड़ीं 11 जेलें

नवीन जोशी, नैनीताल। जिद यदि नेक उद्देश्य के लिए हो और दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के साथ की जाए तो फिर पहाड़ों का भी झुकना पड़ता है। जिस अंिहंसा और सत्याग्रह के मार्ग से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कभी अपने राज्य में सूर्य के न छुपने के घमंड वाले अंग्रेजों को झुका कर देश से बाहर खदेड़ दिया था, उसी अहिंसा  और सत्याग्रह की जिद से पहाड़ के एक बेटे ने महात्मा गांधी को भी झुका दिया था। जी हां, राष्ट्रपिता के समक्ष भी ऐसे विरले अनुभव ही आए होंगे, जहां उन्हें किसी ने अपना निर्णय बदलने को मजबूर किया होगा। देश को आजाद कराने के लिए गांधी जी के ऐसे ही एक जिद्दी सिपाही और स्वतंत्रता सेनानी का नाम डुंगर सिंह बिष्ट है।
यह 1940 की बात है। 1919 में जिले के सुंदरखाल गांव में सबल सिंह के घर जन्मे डुंगर तब कोई 20 वर्ष के रहे होंगे। इस उम्र में भी वह आईवीआरआई मुक्तेश्वर के सरकारी स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत थे। तभी गांधी जी के सत्यागह्र आंदोलन से वह ऐसे प्रेरित हुए कि पांच नवंबर 1940 को आजादी के आंदोलन में पूरी तर रमने के लिए लगी-लगाई नौकरी छोड़ दी, और देश की सक्रिय सेवा के लिए फौज में शामिल होने का मन बनाया। 14 नवंबर 1940 को भर्ती अफसर कर्नल एटकिंशन ने उन्हें देखते ही अस्थाई सेकेंड लेफ्टिनेंट के पद पर चयनित कर लिया। लेकिन इसी बीच हल्द्वानी में पं. गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में चल रहे सत्याग्रह आंदोलन को देखकर उन्होंने फौज का रास्ता छोड़ सीधे सत्याग्रह आंदोलन में कूदने का मन बना डाला, और पहले तत्कालीन कांग्रेस जिलाध्यक्ष मोतीराम पाण्डे को और फिर सीधे महात्मा गांधी को पत्र लिखकर सत्याग्रह आंदोलन की अनुमति देने का आग्रह किया। 26 दिसंबर 1940 को बापू के पीए प्यारे लाल नैयर ने उन्हें बापू का संदेश देते हुए पत्र लिखा कि उनके पिता 84 वर्ष के हैं, माता तथा भाभी की मृत्यु हो चुकी है, और पिता की देखभाल को कोई नहीं हैं, लिहाजा उन्हें सत्याग्रह की इजाजत नहीं दी जा सकती। वह पिता की सेवा करते हुए बाहर से ही देश सेवा करते रहें। डुंगर अनुमति न मिलने से बेहद दुःखी हुए, और पुनः एक जनवरी 1941 को बापू को पत्र लिखकर अनुमति देने की जिद की। आखिर उनकी जिद पर बापू को झुकना पड़ा और बापू ने 18 मार्च 41 को उन्हें, ‘स्वयं को उनके देश-प्रेम से बेहद हर्षित और उत्साहित’ बताते हुए इजाजत दे दी। इस पर डुंगर ने आठ अप्रेल को कड़ी सुरक्षा को धता बताते हुए आठ दिनों तक घर व जंगल में छुपते-छुपाते सरगाखेत में अपने साथी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पुरोहित भवानी दत्त जोशी के साथ सत्यागह्र कर ही दिया। हजारों लोगों के बीच वह अचानक मंच पर प्रकट हुए, और ‘गांधी जी की जै-जैकार, अंग्रेजो भारत को स्वतंत्र करो’ तथा बापू द्वारा सत्याग्रह हेतु दिया गया संदेश ‘इस अंग्रेजी लड़ाई में रुपया या आदमी से मदद देना हराम है, हमारे लिए यही है कि अहिंसात्मक सत्याग्रह के जरिए हर हथियारबंद लड़ाई का मुकाबिला करें’ पढ़ा।  इसके तुरंत बाद उन्हें पुलिस ने पकड़कर पांच वर्ष के लिए जेल भेज दिया। वर्तमान में 96 वर्षीय श्री बिष्ट बताते हैं कि जेल में भी वह जेलर व जेल अधीक्षकों की नाक में दम किए रहे, इस कारण उन्हें पांच वर्षों में अल्मोड़ा, नैनीताल, हल्द्वानी, आगरा, खीरी-लखीमपुर, लखनऊ कैंप व वनारस सहित 11 जेलों में रखना पड़ा। इस दौरान देश में 87 हजार लोगों ने सत्याग्रह किया था, पर डुंगर का दावा है कि 1945 में वनारस जल से रिहा होने वाले वह आखिरी सत्याग्रही थे। आगे देश को दी गई सेवाओं का सिला उन्हें अपने गांव का पहला प्रधान, सरपंच तथा आगे यूपी के मंत्री बनने के रूप में मिला।

नवीन जोशी

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गाड़ ऐ रै....
ओ उच्च अगाश में भैटी ता्रो
   मणीं मुंणि हुणि त चा्ओ !
      बचै ल्हिओ म्या्र घर कैं
         वां गाड़ ऐ रै।
हर तरफ बगणौ गरम पांणि
   खून कूंछी-जकैं मैंस
      मलि जिहाज में उड़ि
         सरकार चुनावौ्क निसांण ल्यै रै।
मिं लै जै ऊंछी मणीं,
   सुणि ऊंछी वीक हवाइ स्वींण
      कि करूं म्यर नौं कै बेर
         उ इतू टाड़ बै ऐ रै।
म्या्र गिजन हासिल न्हैं हंसि
   चलो यौ के बात नि भै
      यां तौ सबूकै लिजी
         आंसनै्कि यैसि गाड़ ऐ रै।
म्या्र घर लै ऊंछी सौंण
   झुलछी झुल भै-बैंणी
      अफसोस आ्ब न लागा्ल
         पैलियै यैसि डाड़ ऐ रै।
समेरि हा्ली मैंल लै
   आपंण समान, छा्र और मा्ट
      पर भा्जूं त कॉ भाजूं
         मैंस कूनईं-भा्जो बाड़ ऐ रै।

नवीन जोशी

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आदमखोरों की होगी डीएनए सैंपलिंग

पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के प्रयोग असफल रहने के बाद उठाया जा रहा कदम
नैनीताल वन प्रभाग से होगी शुरुआत, मल से लिये जाएंगे डीएनए के नमूने

नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक आदमखोर बाघों व गुलदारों की पहचान उनके पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती रही है, लेकिन इन प्रविधियों की असफलता और अब गांवों के बाद शहरों में भी अपनी धमक बना रहे आदमखोरों की त्रुटिहीन पहचान के लिए वन विभाग अत्याधुनिक डीएनए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग इनकी पहचान के लिए करने जा रहा है। इसकी शुरुआत नैनीताल वन प्रभाग से होने जा रही है। इस नई तकनीक के तहत वन विभाग ग्रामीणों के सहयोग से वन्य पशुओं के मल (स्कैड) को एकत्र करेगा। मल का हैदराबाद की अत्याधुनिक सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कर डाटा रख लिया जाएगा और आगे इसका प्रयोग आदमखोरों की सही पहचान में किया जाएगा।
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी हिंसक वन्य जीव अपने जीवन पर संकट आने जैसी स्थितियों में ही आदमखोर होते हैं। बीते दिनों में नैनीताल जनपद के चोपड़ा, जंतवालगांव क्षेत्र में चार लोगों को आदमखोर गुलदार अपना शिकार बना चुके हैं। रामनगर के जिम काब्रेट पार्क से लगे क्षेत्रों में आदमखोर बाघों से अक्सर मानव से संघर्ष होता रहा है। दिनों-दिन ऐसी समस्याएं बढ़ने पर वन विभाग ने पहले इन हिंसक वन्य जीवों के पदचिह्नों की पहचान की तकनीक निकाली, लेकिन बेहद कठिन तकनीक होने के कारण कई बार बमुश्किल प्राप्त किए पदचिह्न किसी अन्य वन्य जीव के निकल जाते हैं और उनके इधर- उधर आने-जाने की ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। इससे आगे निकलकर निश्चित स्थानों पर थर्मो सेंसरयुक्त कैमरे लगाकर इनकी कैमरा ट्रैपिंग का प्रबंध किया गया, किंतु यह प्रविधि भी कुछ ही स्थानों पर कैमरे लगे होने की अपनी सीमाओं के कारण अधिक कारगर नहीं हो पा रही है। नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने सीसीएमबी हैदराबाद जाकर अध्ययन किया है व वहां के डीएनए सैंपलिंग विशेषज्ञों ने हिंसक जीवों के आतंक से निजात दिलाने के लिए यह नया तरीका खोज निकाला है। डा. धकाते बताते हैं कि नई विधि के तहत शीघ्र ही आदमखोरों की अधिक आवक वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों व विभागीय कर्मियों को एक दिवसीय 'कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम' चलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग प्लास्टिक के थैले उपलब्ध कराएगा, जिसमें ग्रामीण कहीं भी जानवर का मल मिलने पर थोड़ा सा एकत्र कर लेंगे। बाद में विभाग इसे सीसीएमबी हैदराबाद भेजेगा और त्रुटिहीन तरीके से उस क्षेत्र में सक्रिय हिंसक जीव की पहचान एकत्र कर ली जाएगी। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर निदेशक व जंतु विज्ञानी प्रो. बीआर कौशल ने भी डीएनए सैंपलिंग के इस तरीके के बेहद प्रभावी होने की संभावना जताते हुए कहा कि मल में जानवर की लार, सलाइवा, हड्डी या पेट की आंतों के अंश होते हैं, जिनसे उस जानवर का डीएनए सैंपल प्राप्त हो जाता है।
बाघों की मौत के वैज्ञानिक अन्वेषण के निर्देश दिए
नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने काब्रेट पार्क में बाघों की मौत मामलों में वन अफसरों की लापरवाही को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने निदेशक सीटीआर को बाघों की मृत्यु का वैज्ञानिक अन्वेषण करने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने गौरी मौलखी की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि काब्रेट पार्क में बाघों की मौत का सही अन्वेषण नहीं किया जा रहा है। वन अफसर जांच में बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्धारित मापदंडों का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं।

 

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