Author Topic: Journalist and famous Photographer Naveen Joshi's Articles- नवीन जोशी जी के लेख  (Read 71928 times)

नवीन जोशी

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हरीश रावत: संघर्षों की जीत, काँटों का ताज

हरीश रावत उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे कद्दावर व मंझे हुए राजनेताओं में शामिल रहे हैं। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में ही उन्होंने सबसे कम उम्र में ब्लाक प्रमुख बनने का रिकार्ड बनाया। हालांकि इसी कारण उन्हें भिकियासेंण के ब्लाक प्रमुख के पद से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेशों पर हटना पड़ा था। 1980 में अपने पहले संसदीय चुनाव में भाजपा के त्रिमूर्तियों में शुमार व तब भारतीय लोक दल से सांसद रहे मुरली मनोहर जोशी को पटखनी देकर हमेशा के लिए संसदीय क्षेत्र छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। वहीं 1989 के लोस चुनावों में उन्होंने उक्रांद के कद्दावर नेता व वर्तमान केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी और भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी को हराया। इस चुनाव में उन्हें 1,49,703, ऐरी को 1,38,902 और कोश्यारी को केवल 34,768 वोट मिले, जबकि कोश्यारी रावत से कहीं पहले उत्तराखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।
27 अप्रैल 1948 को प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के ग्राम मोहनरी पोस्ट चौनलिया में स्वर्गीय राजेंद्र सिंह रावत व देवकी देवी के घर जन्मे रावत की राजनीति यात्रा एलएलबी की पढ़ाई के लिए लखनऊ विश्व विद्यालय जाने से हुई। यहां वह रानीखेत के कांग्रेस विधायक व यूपी सरकार में कद्दावर मंत्री गोविंद सिंह मेहरा और युवा कांग्रेस की अगुवाई कर रहे संजय गांधी के संपर्क में आए। मेहरा की पुत्री रेणुका से उन्होंने दूसरा विवाह किया, और संजय गांधी के निकटस्थ के रूप में उन्हें 1980 के लोक सभा चुनावों में अल्मोड़ा संसदीय सीट से टिकट मिल गया। इस चुनाव में उन्होंने गांव से निकले आम युवक की छवि के साथ तत्कालीन भारतीय लोक दल के सांसद प्रो. मुरली मनोहर जोशी के विरुद्ध 50 हजार से अधिक मतों से जीत दर्ज की। जोशी को 49,848 और रावत को 1,08,503 वोट मिले। आगे 1984 में भी उन्होंने जोशी को हराकर अल्मोड़ा सीट छोड़ने पर ही विवश कर दिया। 1989 के चुनावों में उक्रंाद के कद्दावर नेता काशी सिंह ऐरी निर्दलीय और भगत सिंह कोश्यारी भाजपा के टिकट पर उनके सामने थे। यह चुनाव भी रावत करीब 11 हजार वोटों से जीते। इन्हें 1,49,703 ऐरी को 1,38,902 और कोश्यारी को केवल 34,768 वोट मिले, और यही कोश्यारी रावत से कहीं पहले उत्तराखंड के दूसरे मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।
आगे रावत की छवि अपने संसदीय क्षेत्र में एक ब्राह्मण विरोधी छत्रिय नेता की बनती चली गई, जिसका नुकसान उन्हें 1990 के दशक में देखने को मिली। रामलहर में उन्हें सबसे पहले भाजपा के नए चेहरे जीवन शर्मा ने जो करीब 29 हजार वोटों से पटखनी दी, उसे बाद में केंद्रीय मंत्री बने भाजपा नेता बची सिंह रावत ने 1996, 1998 और 1999 में हैट-ट्रिक बनाते हुए जारी रखा। रावत-रावत की इस जंग में आखिरी कील बची सिंह द्वारा 2004 में हरीश की पत्नी रेणुका रावत को करीब 10 हजार मतों के अंतर से हराकर ठोंकी गई, जिसके बाद 2009 के चुनावों में अल्मोड़ा का रण छोड़ हरिद्वार जाना पड़ा। हरिद्वार रावत के लिए जीत के साथ एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ के रूप में उनका राजनीतिक पुर्नजन्म हुआ। उन्हें केंद्र सरकार में श्रम राज्यमंत्री बनाया गया। आगे केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनका कद बढ़ता चला गया, और उन्हें वर्ष 2011 में कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग के राज्य मंत्री के साथ साथ ससंदीय कार्य मंत्री का कार्यभार सौंपा गया, और वर्तमान में वह केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के पद पर हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने के दौरान रावत की छवि राज्य आंदोलन के विरोधी के रूप में रही। इस कारण उन्हें 1980 के लोस चुनावों के लिए अल्मोड़ा में अपना नामांकन भी चुपचाप कराना पड़ा था। आगे वह दिल्ली में गठित उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक बन गए, और उत्तराखंड को राज्य के बजाय केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग के साथ उन्होंने एक तरह से राज्य आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी।उत्तराखंड में वर्ष 2002 में कांग्रेस को सत्ता दिलाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही थी, लेकिन वरिष्ठ नेता पं. नारायण दत्त तिवारी को उनकी जगह मुख्यमंत्री बना दिया गया। यही कहानी 2012 में भी दोहराई गई। विधायकों के करीब एक माह तक उनके पक्ष में दिल्ली में लामबंद होने के बावजूद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया गया। ऐसे में तिवारी और बहुगुणा दोनों के शासनकाल में वह विपक्षी नेता जैसी भूमिका में रहे।
इधर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री के पद पर रहते वह अनेक बेहद विषम मौकों पर अपनी कुशल वाकपटुता के जरिए मीडिया चैनलों पर केंद्र की यूपीए सरकार के ‘फेस सेवर’ व संकटमोचक की भूमिका में रहे, और कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी से करीबी बढ़ाने में सफल रहे। इस दौरान सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के जवाब में वह सीता को भी विदेशी मूल का बताकर खासे विवादों में भी रहे।
बहरहाल, लगातार 13 वर्षों के राज्य में आठवें मुख्यमंत्री के रूप में उनकी संभावित ताजपोशी उत्तराखंड राज्य के लिए शुभ हो सकती है, जब राज्य के एक वास्तविक संघर्षशील, केंद्र से लेकर राज्य तक बेहतर संबंधों के साथ मंझे हुए अनुभवी राजनेता को राज्य की कमान मिल रही है। वह पूरे प्रदेश और उसकी अच्छाइयों के साथ ही कमियों से भी वाकिफ हैं, तथा सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष में भी उनकी बेहतर छवि है।
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नवीन जोशी

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[justify]जिम कार्बेट के घर नैनीताल में फिर दिखाई दिया ‘रॉयल बंगाल टाइगर’

देश में बाघों की संख्या लगातार घटने से चिंतित पर्यावरण प्रेमियों और प्रकृति के स्वर्ग कही जाने वाली सरोवर नगरी प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। बाघों का राजा ‘रॉयल बंगाल टाइगर' अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट के शहर नैनीताल की खूबसूरती पर एक बार फिर फिदा हो गया लगता है। बीती 10-11 फरवरी की रात्रि नगर की करीब 2591 मीटर ( 8500 फिट) ऊंची कैमल्स बैक चोटी पर इसे देखा गया। आधिकारिक तौर पर कैमरों से इसकी तस्वीर भी रिकार्ड की गई है। इसे जिम कार्बेट के दौर के लम्बे अंतराल के बाद भी नैनीताल में समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बरक़रार रहने के लिहाज से भी बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है।
प्रदेश में गत 10 फरवरी से एक सप्ताह तक यानी 17 फरवरी तक के लिए बाघों की गणना के लिए अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत नैनीताल के निकटवर्ती वन क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर रात्रि में भी देखने की क्षमता वाले कैमरे लगाए गए हैं। इन्हीं में से एक कैमरा नैना रेंज में समुद्री सतह से 2591 मीटर की ऊंचाई वाली चोटी कैमल्स हंप या कैमल्स बैक पर भी लगाया गया था। इस कैमरे से अभियान की पहली ही यानी 10 व 11 फरवरी की रात्रि एक बजकर 47 मिनट पर करीब सात-आठ वर्ष की उम्र के बंगाल टाइगर प्रजाति के कैमरे के चित्र लिये गए हैं। डीएफओ डा. तेजस्विनी पाटिल ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि कैमरे में देखा गया बाघ नर हो सकता है। जिस कैमरे पर यह रिकार्ड किया गया है, उसे कुमाऊं विवि के वानिकी विभाग के द्वितीय वर्ष के दो छात्रों मो. अकरम व लवप्रीत सिंह लाहौरी तथा एक स्थानीय युवक अमित वाल्मीकि द्वारा लगाया गया था।
उल्लेखनीय है कि बाघ पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला में सांपों में किंग कोबरा, पक्षियों में चील-गिद्ध आदि की तरह सबसे ऊपर होते हैं। किसी स्थान पर इनकी उपस्थिति होने का सीधा सा अर्थ होता है कि उस पारिस्थितिकी तंत्र की श्रृंखला के निचली श्रेणी तक के सभी अन्य जीव भी भरपूर मात्रा में उस स्थान पर उपलब्ध हैं। यह अपनी भोजन श्रृंखला के निचली श्रेणी के वन्य जीवों को खाते हुए पारिस्थितिकीय संतुलन बनाते हैं।
2010 में भूटान में 4100 मीटर ऊंचाई पर देखे जाने का है रिकार्ड
देश में सर्वाधिक ऊंचाई पर बाघ को देखे जाने के रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं, और अब पहली बार इसे नैनीताल में 2951 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया है। बहरहाल बीबीसी के अनुसार बाघ को सर्वाधिक ऊंचाई पर देखे जाने का विश्व रिकार्ड सितम्बर 2010 में बना था, जब इसे भूटान में 4100 मीटर की ऊंचाई पर रिकार्ड किया गया था। गौरतलब है कि नैनीताल में पूर्व में कैंट के पास बाघ को देखे जाने की बात कही जाती थी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी।
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नवीन जोशी

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[justify]देश को भी दिल्ली की तरह मध्यावधि चुनावों में धकेलेंगे केजरीवाल !

अरविंद केजरीवाल बकौल उनके विरोधियों प्रधानमंत्री बनने और बकौल समर्थकों-देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने और आम आदमी के हाथों में सत्ता दिलाने की निर्विवाद तौर पर जल्दबाजी या हड़बड़ी में दिखते हैं। दिल्ली में 50 दिन का कार्यकाल पूरा किए बिना ही वह देश में (पांच वर्ष) सरकार चलाने के दिवास्वप्न को पूरा करने के लिए दौड़ पड़े हैं। निःसंदेह लोक सभा चुनाव ही उनका अभीष्ट थे। इसके बिना उनका कथित भ्रष्टाचार मुक्ति का मिशन पूरा होना नहीं था। इस मिशन के लिए उन्होंने दिल्ली विधान सभा से अपनी राजनीतिक शुरुआत की। अपने राजनीतिक गुरु अन्ना हजारे की भी नहीं सुनी और इंडिया अगेन्स्ट करप्शन को भी पीछे छोडकऱ आम आदमी पार्टी बना ली। दिल्ली के विधान सभा चुनावों से पहले अपनी स्थापना के करीब एक वर्ष में जनता के बिजली और पानी के बिलों के मुद्दे पर राजनीतिक जमीन तैयार की। जनता को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का भरोसा दिलाया। जनता ने भरोसा किया, उनके नां-नां कहते भी ऐसे हालात खड़े कर दिए कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कमोबेश जबरन ही बिठा दिया। लेकिन केजरीवाल अपनी अति महत्वकांक्षा में ‘मेरो मन अनंत, अनंत कहां सुख पावे’ की तर्ज पर 49 दिन में ही यह छोटी कुर्सी छोड़कर देश के प्रधानमंत्री पद की बड़ी कुर्सी के लिए दौड़ पड़े हैं।
दिल्ली की गद्दी छोड़ने, सरकार न चला पाने की असफलता का ठीकरा ‘नाच न जाने आंगन टेढ़ा’ की तर्ज पर कांग्रेस-भाजपा पर फोड़ा जा रहा है। जैसे यह भी ना जानते हों कि कांग्रेस-भाजपा विपक्षी पार्टी हैं। वह स्वयं के राजनीतिक लाभ के बिना कभी भी आप का समर्थन नहीं करेंगे। वह क्यों चाहेंगे कि आप मनमानी करें। वह भी तब, जबकि आप केवल अपने समर्थकों के बिजली बिल आधे करने जैसे एकतरफा निर्णय ले रहे हों, जिनकी मिसाल कथित धर्म निरपेक्ष पार्टियों के एक धर्म विशेष के आपदा प्रभावितों को अधिक मुआवजा देने जैसे निर्णयों से इतर अन्यत्र कम ही मिलती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की गद्दी आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल का अभीष्ट कभी नहीं रही। वह तो दिल्ली के चुनावों को महज लोक सभा चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनने के स्वप्न को पूरा करने की पहली सीढ़ी मानते हुए भाग्य आजमाने के लिए ही लड़े थे। लेकिन उनका कांग्रेस से ‘आम आदमी’, भाजपा से ‘राष्ट्रवाद’, अन्ना हजारे से भ्रष्टाचार मुक्ति और अपने दिमाग से झाड़ू को चुनाव चिन्ह बनाने से इससे जुड़े एक वर्ग विशेष के खुलकर समर्थन में आ जाने, पार्टी का नाम आम आदमी के नाम से और छोटा नाम ‘आप’ रखने, वामपंथी विचारधारा वाले मतदाताओं की स्वाभाविक पसंद बनने आदि अनेक कारणों के समन्वय से सत्ता के करीब पहुंच गए और जबर्दस्ती उस कुर्सी पर बैठा दिए गए थे। अब कुर्सी में बैठे हुए तो वह देश भर में लोक सभा चुनावों के प्रचार के लिए जा नहीं सकते थे, इसलिए यहां सत्ता छोड़ी और अगले दिन ही अपने 20 लोक सभा प्रत्याशियों की पहली सूची की घोषणा कर चुनाव की तैयारियों में जुट गए। सत्ता न छोड़ते तो दिल्ली की समस्याओं में ही उलझे रहते। जितने दिन सत्ता में रहते, जनता उतने दिनों का हिसाब मांगती।
केजरीवाल को अपने 49 दिन के कार्यकाल के बाद इस हकीकत को स्वीकार करना होगा कि बाहर से किसी पर भी आरोप लगाना आसान है, खुद अंदर जाकर, बिना स्थितियों और दूसरों पर ठीकरा फोड़े वहां टिककर स्थितियों को ठीक करना बेहद कठिन काम है। परिस्थितियां चाहे जो भी रही हों, सच्चाई यह है कि आप 50 दिन भी दिल्ली की सीएम की कुर्सी को नहीं संभाल या झेल पाए, और अब जनता को नया ख्वाब दिखा रहे हैं कि पांच साल के लिए देश के पीएम की कुर्सी को संभाल लेंगे। चलिए मान लेते हैं कि आप दिल्ली के पीएम बन जाते हैं, अब आपको केवल भाजपा-कांग्रेस को ही नहीं, देश की सैकड़ों पार्टियों को किसी ना किसी रूप में झेलना पड़ेगा। आपके सत्ता में आते ही उनके, और जिस मशीनरी के भरोसे आप व्यवस्थाएं सुधारना चाहते हैं, उनके अपने राजनीतिक हित, भ्रष्टाचार की आदतें रातों-रात सुधर नहीं जाने वाली हैं। वैसे आप किसी भी के साथ समझौता ना करने का भी वादा कर चुके हैं, और ‘एकोऽहम् द्वितियो नास्ति’ के सिद्धांत पर चलते हैं। फिर कैसे आप देश को पांच दिन भी चला लेंगे।
अब ‘आप’ सोचें कि आपने स्वयं का और आप से उम्मीदें लगाये बैठी जनता का कितना नुकसान कर डाला है। बेहतर होता कि आप दिल्ली से ही औरअधिक राजनीतिक अनुभव लेते, तभी आप का भ्रष्टाचार मुक्ति और कथित तौर पर आम आदमी के हाथ में सरकार देने का ख्वाब पूरा होता। आपकी सरकार ने अपने चुनावी वादे निभाते हुए दिल्ली में पानी व बिजली के बिलों में जो कटौती की है, उसे अगली सरकार भी क्रियान्वयित करेगी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में क्या अच्छा ना होता कि दिल्ली की बिन मांगे ही मिली गद्दी पर आप स्वयं को साबित करते। स्वयं को और राजनीतिक रूप से परिपक्व बनाते और फिर अपनी ऊर्जा और शक्तियों का लाभ देश को पहुंचाते। यह जल्दबाजी में कुमाउनी की उक्ति ‘तात्तै खाऊं, जल मरूं’ (गर्मा-गर्म खाकर जल मरूं) की तर्ज पर आत्महत्या करने की क्या जरूरत थी। ऐसे में आप तो ‘आधी छोड़ सारी को धाये, सारी मिले ना आधी पाये’ की तर्ज पर कहीं के न रहे। हाँ, यह जरूर कर लेंगे कि दिल्ली की तरह देश में भी 'वोट कटुवा' पार्टी साबित होकर खंडित जनादेश दिलाएंगे, देश को भी दिल्ली की तरह मध्यावधि चुनावों में धकेलेंगे।
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नवीन जोशी

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पांव तले पावर हाउस
12वीं के छात्र ने जूते में बनाया डायनेमो, 500 रुपये में तैयार हो जाएगा उपकरण

अल्मोड़ा के रवि टम्टा नैनीताल के राजकीय इंटर कालेज में महज 12वीं के छात्र हैं। पिता एक साधारण से मोटर मैकेनिक। पिता की देखा-देखी गाड़ियों के कल-पुजरे को तोड़ते-जोड़ते उन्होंने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जो बड़े-बड़ों को दांतों तले उंगुली दबाने को मजबूर कर दे। पिछले महीने नैनीताल में बर्फबारी के दौरान बिजली क्या गुल हुई, रवि के दिमाग की बत्ती जल उठी। उन्होंने जूतों में एक ऐसा ‘डायनेमो’ फिट कर दिखाया जिससे चलते-फिरते बिजली पैदा हो सकती है। इस बिजली से मोबाइल को रिचार्ज किया जा सकता है तो 20 वाट का सीएफएल भी रोशन हो सकता है। पांव तले बने इस छोटे से पावर हाउस की बिजली को बैटरी में स्टोर कर जरूरत के अनुसार इस्तेमाल भी किया जा सकता है।वह कहता है, मैं दुनिया को ऐसा कुछ देना चाहता हूं जिसके बारे में अब तक किसी ने सोचा तक न हो।
पेश है रवि टम्टा से बातचीत के अंश :
 
सुना है आपने कोई नई खोज की है। क्या खोज की है, विस्तार से बताएं ?
मैने केवल 500 रुपये खर्च कर जूते में ऐसा प्रबंध किया है कि इससे चलते-फिरते बिजली पैदा की जा सकती है। जूते में स्प्रिंग, घूमती हुई गति से बिजली पैदा करने वाले डायनेमो और चुंबकों को इस तरह लगाया है कि स्प्रिंग चलते समय कदमों से बनने वाले दबाव से डायनेमो को करीब 50 चक्कर घुमा देता है। दो चुंबकों के उत्तरी ध्रुवों को साथ रखकर उनके एक -दूसरे से दूर जाने के गुण का लाभ लेते हुए डायनेमो को पांच-छह अतिरिक्त चक्कर की अधिक गति देने का प्रयोग किया है। इस तरह एक किमी चलने से इतनी बिजली बन जाती है कि मोबाइल फोन रिचार्ज हो सके। जूते में पैदा हुई बिजली को स्टोर करने के लिए रिचार्जेबल बैटरी भी है। इससे बिजली का प्रयोग बाद में किया जा सकता है।
आपकी यह खोज कितनी उपयोगी हो सकती है ?
हमारे जीवन में बिजली की खपत बढ़ी है। बिजली आपूर्ति के लिए गैर परंपरागत ऊर्जा श्रोतों की लगातार तलाश है। देश में हर व्यक्ति बहुत चलता है। गरीब पेट भरने और अमीर मोटापा रोकने के लिए काफी चलते हैं। ऐसे में मेरा प्रयोग बेहद लाभप्रद हो सकता है। आपको इस खोज का विचार कहां से आया। आपने कितने समय में इसे कर दिखाया ? करीब एक माह पहले नैनीताल में बर्फ गिरी थी। इस दौरान तीन दिन बिजली गायब रही। मेरा मोबाइल डिस्चार्ज हो गया। मैंने सोचा कि जब गाड़ियों में चलते-फिरते बिजली पैदा कर रोशनी और मोबाइल रिचार्ज किया जा सकता है तो पैदल चलने से बिजली पैदा हो सकती है। करीब एक माह के प्रयास से मेरा प्रयोग सफल हो गया। गांवों में महीनों बिजली गायब रहती है। पहाड़ों पर लोगों को बहुत पैदल चलना पड़ता है। मेरे बनाए जूतों से लोग जरूरत की बिजली बना सकते हैं।
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएं ?
मैं मूलत: अल्मोड़ा जनपद के काफलीखान का रहने वाला हूं। वहां मेरे पिता श्री हरीश चंद्र टम्टा का ऑटो गैराज है। बचपन से पिता के साथ गैराज में हाथ बंटाता हूं। मेरे पिता ने ऑटोमोबाइल से आईटीआई किया है। वे अक्सर नये प्रयोग करते रहते हैं। उन्हीं की देखा-देखी मैं भी नई-नर्इ खोजों के बारे में सोचता रहता हूं। मैं तीन भाई-बहनों में सबसे छोटा हूं। बड़े भाई पॉलीटेक्निक से डिप्लोमा कर रहे हैं। बड़ी बहन का विवाह हो चुका है। नैनीताल में चाचा के साथ रहकर मेजर राजेश अधिकारी राजकीय इंटर कालेज में 12वीं में पढ़ रहा हूं।
और भी नई खोज करने की योजना है ?
2008 से मैं वाहनों को हादसों से बचाने के प्रयोग पर कार्य कर रहा हूं। इसे मैं प्रायोगिक तौर पर कागज पर साबित कर भी चुका हूं। किसी वाहन पर इसे प्रदर्शित करने के लिए काफी बड़ी धनराशि चाहिए। मैंने ‘घोंघे’ से प्रेरणा ली है। वह दो नाजुक सींग सरीखे अंगों से रास्ते का अनुमान लगाता है और पतली सींक पर नहीं गिरता। मेरी खोजयुक्त गाड़ी के टायरों में ऐसा प्रबंध होगा कि वे कीचड़ या पथरीली सड़कों पर नहीं फिसलेगी। प्रयोग की सफलता तक मैं अधिक खुलासा नहीं कर सकता। मैं ऐसी प्रविधि विकसित करने की राह पर भी हूं जिससे जीवन में काफी कुछ सीख चुके मृत व्यक्तियों के मस्तिष्क को बच्चों में प्रतिस्थापित किया जा सकेगा। इससे बच्चे उस व्यक्ति के बराबर ज्ञानयुक्त होंगे। आगे उनके जीवन में मस्तिष्क लगातार सीखता रहेगा। इस प्रकार मानव मस्तिष्क समृद्ध होता चला जाएगा। मुझे पता चला है कि रोबोट में कुछ इस तरह का प्रयोग किया जा चुका है पर मेरा प्रयोग मनुष्यों में होगा।
आपको ऐसी नई खोजों की प्रेरणा कहां से मिलती है, कौन मदद करते हैं ?
मेरे पिता मेरे प्रेरणा श्रोत हैं। स्कूल में भौतिकी प्रवक्ता श्याम दत्त चौधरी से भी मदद मिलती है। मैं रात्रि में केवल तीन-चार घंटे ही सोता हूं। स्कूल के अलावा हर रोज दो घंटे होमवर्क आदि के बाद मेरा पूरा समय अपनी खोजों के बारे में सोचने में ही जाता है। कई बार रात में सोते हुए सपने में भी मैं स्वयं को कुछ नया करते हुए पाता हूं। इस कारण हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा में मैं केवल 55 फीसद अंक ही प्राप्त कर पाया।
भविष्य में क्या बनना चाहते हैं, सरकार से कोई अपेक्षा ?
मैं भविष्य में कुछ नया करना चाहता हूं। पिता का ऑटो गैराज अच्छा चलता है। मुझ पर पैसे कमाने की जिम्मेदारी नहीं है। मैं नौकरी नहीं करना चाहता। मेरा लक्ष्य दुनिया को कुछ नया देना है। अपनी सोच को वहां पहुंचाना चाहता हूं जहां कोई न पहुंचा हो। कोई जूते बनाने वाली कंपनी मेरी बिजली बनाने वाली खोज को आगे बढ़ाए तो ठीक, वरना मैं अपनी ऐसी जूता फैक्टरी खोलने पर विचार कर सकता हूं। सरकार से भी मेरी इस खोज के बाबत कोई अपेक्षा नहीं है। वाहनों को दुर्घटना से बचाने वाली खोज में लाखों रुपये की जरूरत पड़ेगी। उसमें कोई मदद करे तो जरूर स्वीकार करूंगा।
प्रस्तुति : नवीन जोशी

नवीन जोशी

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[justify]उत्तराखंड में मची चुनावी लूट !
 
उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार आने के बाद और चुनावी बेला में अनेक अनूठी चीजें हो रही हैं। राज्य के सब उत्तराखंडी लखपति हो गए हैं। सरकार ने बताया है, राज्य की प्रति व्यक्ति आय 1,12,000 रुपये से अधिक हो गयी है। सांख्यिकी विभाग ने आंकड़ों की बाजीगरी कर कर सिडकुल में लगे चंद उद्योगों के औद्योगिक घरानों की आय राज्य की जीडीपी में जोड़कर यह कारनामा कर डाला है।
दूसरे संभवतया देश में ही ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य में पंचायत चुनावों की अधिसूचना 1 मार्च को और चुनाव आचार संहिता 2 मार्च से जारी होने वाली है और चुनावों के लिए नामांकन पत्रों की बिक्री इससे एक सप्ताह पहले 24 फरवरी से ही शुरू हो गयी है।
तीसरे राज्य के वन क्षेत्र सीधे ही शहर बन गए हैं। लालकुआ के पास पूरी तरह वन भूमि पर बसे बिन्दुखत्ता को राज्य कैबिनेट ने जनता की राजस्व गाँव घोषित करने की मांग से भी कई कदम आगे बढ़कर एक तरह के बिन मांगे ही स्वतंत्र रूप से नगर पालिका बनाने की घोषणा कर दी है, वहीँ इसी तरह के दमुवाढूंगा को सीधे हल्द्वानी नगर निगम का हिस्सा बनाने की घोषणा कर दी गयी है।
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नवीन जोशी

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मुरली मनोहर जोशी और एनडी तिवारी बदल सकते हैं नैनीताल के चुनावी समीकरण !
-मोदी के लिए बनारस छो़ड़ नैनीताल आने का है मुरली मनोहर जोशी पर दबाव
-रोहित को पुत्र स्वीकारने के बाद राजनीतिक विरासत भी सोंप सकते हैं एनडी तिवारी

जी हां, अब तक कांग्रेस के राजकुमार केसी सिंह ‘बाबा’ के कब्जे वाली नैनीताल-ऊधमसिंहनगर संसदीय सीट एक बार फिर प्रदेश की सबसे बड़ी वीवीआईपी व हॉट सीट हो सकती है। अभी भले यहां कांग्रेस से बाबा या राहुल गांधी के खास प्रकाश जोशी तथा भाजपा से पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, बची सिंह रावत और बलराज पासी में से किसी के लोक सभा चुनाव लड़ने के भी चर्चे हों, लेकिन बेहद ताजा राजनीतिक घटनाक्रमों को देखा जाए तो ठीक लोक सभा चुनाव से पहले रोहित नाम के पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद एनडी तिवारी और भाजपा नरेंद्र मोदी के लिए बनारस सीट खाली करने को इस सीट से अपने त्रिमूर्तियों में शुमार मुरली मनोहर जोशी को चुनाव मैदान में उतार सकती है। जोशी को इस हेतु मनाया जा रहा है। वहीं पूर्व सीएम एनडी तिवारी अपने जैविक पुत्र रोहित शेखर को स्वीकारने के बाद यहां से अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं। उनके जल्द ही संसदीय क्षेत्र का तीन दिवसीय कार्यक्रम भी तय बताया जा रहा है।
देश के बदले राजनीतिक हालातों में यूपी भाजपा के मिशन-272 प्लस की मुख्य धुरी माना जा रहा है। भाजपा मान रही है कि ‘मुजफ्फरनगर’ के हालिया हालातों और कल्याण सिंह व उनकी पार्टी के औपचारिक तौर पर पार्टी में आने के बाद पश्चिमी यूपी में भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण होना तय हो गया है। मध्य यूपी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी का प्रभाव क्षेत्र मानते हुए भाजपा जबरन बहुत जोर लगाने के पक्ष में नहीं है, ऐसे में पूवी यूपी को साधने के लिए भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए मुरली मनोहर जोशी की बनारस सीट खाली कराने का न केवल पार्टी वरन संघ की ओर से भी भारी दबाव अब खुलकर सामने आ गया है। दूसरी ओर जोशी लोस चुनाव लड़ने पर अढ़े हुए हैं। ऐसे में उन्हें काफी समय से नैनीताल सीट के लिए मनाये जाने की चर्चाएं अब सतह पर आने लगी हैं। गौरतलब है कि जोशी मूलतः उत्तराखंड के ही अल्मोड़ा के निवासी हैं, और 1977 में भारतीय लोकदल से अल्मोड़ा के सांसद रह चुके हैं। उनके नैनीताल आने की सूरत में माना जा रहा है कि पार्टी के यहां से तीन प्रबल दावेदार भगत सिंह कोश्यारी, बची सिंह रावत व बलराज पासी के होने की वजह से उठ रही भितरघात की संभावनाएं क्षींण हो जाएंगी। वह नैनीताल से भली प्रकार वाकिफ भी हैं, और संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मण मतों का ध्रुवीकरण भी कर सकते हैं, लिहाजा वह नैनीताल के लिए मान भी सकते हैं। भाजपा के लिए नैनीताल का संसदीय इतिहास भी बेहतर नहीं रहा है। यहां भाजपा के केवल बलराज पासी 1991 की रामलहर ओर  इला पंत 1998 में जीते भी तो जीत का अंतर करीब महज नौ और 12 हजार मतों का ही रहा, और आगे बाबा इस अंतर को कांग्रेस के पक्ष में बढ़ाते हुए 2004 में 40 हजार और 2009 में 88 हजार कर चुके हैं। ऐसे में यह सीट भाजपा के लिए कठिन है और इसे पार्टी का कोई हैवीवेट प्रत्याशी ही पाट सकता है।
दूसरी ओर एनडी तिवारी के लिए यह सीट 1980 से अपनी सी रही है। तिवारी ने यहां से 1980 में जीत हासिल की, 84 में उनके खास सत्येंद्र चंद्र गु़िड़या जीते और आगे 1996 में तिवारी ने अपनी तिवारी कांग्रेस के टिकट पर तथा 99 में पुनः कांग्रेस से जीत हासिल की। उल्लेखनीय है कि तिवारी हाल में कांग्रेस पार्टी में रहते हुए भी सपा से नजदीकी बढ़ा चुके हैं, और ताजा घटनाक्रम में उन्होंने रोहित शेखर को एक दशक लंबी चली कानूनी लड़ाई के बाद अपना पुत्र मान लिया है। उनका तीन दिवसीय नैनीताल दौरा तीन जनवरी से तय भी हो गया था। ऐसे में आने वाले कुछ दिन इस संसदीय सीट पर नए गुल भी खिला सकते हैं।

रावत, तिवारी, जोशी का भी अलग राजनीतिक त्रिकोण
हालांकि यह अभी राजनीतिक भविष्य के गर्भ में है, लेकिन अटकलें सही साबित हुईं तो उत्तराखंड में हरीश रावत, एनडी तिवारी और मुरली मनोहर जोशी का अलग राजनीतिक त्रिकोण भी चर्चाओं में रहना तय है। रावत और तिवारी का संघर्ष हमेशा से प्रदेश की राजनीति में दिखता रहा है। 2002 में तिवारी के नेतृत्व वाली तिवारी सरकार के पूरे कार्यकाल में यह संघर्ष खुलकर नजर आया। रावत जिस तरह तिवारी को परेशान किए रहे, ऐसे में रावत की ताजपोशी तिवारी को कितना रास आ रही होगी, समझना आसान है। वहीं रावत एवं जोशी के बीच उनके मूल स्थान अल्मोड़ा में 1980 से जंग शुरू हुई थी, जब युवा रावत ने तब के सिटिंग सांसद जोशी को 80 और 84 के लगातार दो चुनावों में हराकर अल्मोड़ा छोड़ने पर ही मजबूर कर दिया था।
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नवीन जोशी

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होली छाई ऐसी झकझोर कुमूं में....
कुमाऊं में है अनूठी बैठकी, खड़ी, धूम व महिला होलियों की परंपरा
देवभूमि उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊं अंचल में रामलीलाओं की तरह राग व फाग का त्योहार होली भी अलग वैशिष्ट्य के साथ मनाई जाती हैं। यूं कुमाऊं में होली के दो प्रमुख रूप मिलते हैं, बैठकी व खड़ी होली, परन्तु अब दोनों के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप भी उभर कर आ रहा है। इसे धूम की होली कहा जाता है। इसके साथ ही महिला होलियां भी अपना अलग स्वरूप बनाऐ हुऐ हैं।
कुमाऊं में बैठकी होली की शुरुआत होली के पूर्वाभ्यास के रूप में पौष माह के पहले रविवार से विष्णुपदी होली गीतों से होती है। माना जाता है कि प्राचीनकाल में यहां के राजदरबारों में बाहर के गायकों के आने से यह होली गीत यहां आऐ हैं। इनमें शाष्त्रीयता का अधिक महत्व होने के कारण इन्हें शाष्त्रीय होली भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रहरों में अलग अलग शाष्त्रीय रागों पर आधारित होलियां गाई जाती हैं। शुरुआत बहुधा धमार राग से होती है, और फिर सर्वाधिक काफी व पीलू राग में तथा जंगला काफी, सहाना, बिहाग, जैजैवन्ती, जोगिया, झिंझोटी, भीमपलासी, खमाज व बागेश्वरी सहित अनेक रागों में भी बैठकी होलियां विभिन्न पारंपरिक वाद्य यंत्रो के साथ गाई जाती हैं।
होली की शुरुआत बसन्त के स्वागत के गीतों से होती है, जिसमें प्रथम पूज्य गणेश, राम, कृष्ण व शिव सहित कई देवी देवताओं की स्तुतियां व उन पर आधारित होली गीत गाऐ जाते हैं। बसन्त पंचमी के आते आते होली गायकी में क्षृंगारिकता बढ़ने लगती है तथा
`आयो नवल बसन्त सखी ऋतुराज कहायो, पुष्प कली सब फूलन लागी, फूल ही फूल सुहायो´
के अलावा जंगला काफी राग में
`राधे नन्द कुंवर समझाय रही, होरी खेलो फागुन ऋतु आइ रही´
व झिंझोटी राग में
`आहो मोहन क्षृंगार करूं में तेरा, मोतियन मांग भरूं´
तथा राग बागेश्वरी में
`अजरा पकड़ लीन्हो नन्द के छैयलवा अबके होरिन में...´
आदि होलियां गाई जाती हैं। इसके साथ ही महाशिवरात्रि पर्व तक के लिए होली बैठकों का आयोजन शुरू हो जाता है। शिवरात्रि के अवसर पर शिव के भजन जैसे
`जय जय जय शिव शंकर योगी´
आदि होली के रूप में गाऐ जाते हैं। इसके पश्चात कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में होलिका एकादशी से लेकर पूर्णमासी तक खड़ी होली गीत जैसे


`शिव के मन मांहि बसे काशी´, `जल कैसे भरूं जमुना गहरी´ व `सिद्धि ´को दाता विघ्न विनाशन, होरी खेलें गिरिजापति नन्दन´ आदि होलियां गाई जाती हैं। सामान्यतया खड़ी होलियां कुमाऊं की लोक परंपरा के अधिक निकट मानी जाती हैं और यहां की पारंपरिक होलियां कही जाती हैं। यह होलियां ढोल व मंजीरों के साथ बैठकर व विशिष्ट तरीके से पद संचालन करते हुऐ खड़े होकर गाई जाती हैं। इन दिनों होली में राधा-कृष्ण की छेड़छाड़ के साथ क्षृंगार की प्रधानता हो जाती है, यह होलियां प्राय: पीलू राग में गाई जाती हैं।
इधर कुमाउनीं होली में बैठकी व खड़ी होली के मिश्रण के रूप में तीसरा रूप भी उभर रहा है, इसे धूम की होली कहा जाता है। यह `छलड़ी´ के आस पास गाई जाती है। इसमें कई जगह कुछ वर्जनाऐं भी टूट जाती हैं, तथा स्वांग का प्रयोग भी किया जाता है। महिलाओं में भी होली का यह रूप प्रचलित है।

होलियों के दौरान युवक, युवतियों और वृद्ध सभी को होली के गीतों में सराबोर देखा जा सकता है। खासकर ग्रामीण अंचलों में तबले, मंजीरे और हारमोनियम के सुर में होलियां गाई जाती हैं, इस दौरान ऐसा लगता है मानो हर होल्यार शास्त्रीय गायक हो गया हो। नैनीताल, अल्मोड़ा और चंपावत की होलियां खास मानी जाती हैं, जबकि बागेश्वर, गंगोलीहाट, लोहाघाट व पिथौरागढ़ में तबले की थाप, मंजीरे की छन-छन और हारमोनियम के मधुर सुरों पर जब ‘ऐसे चटक रंग डारो कन्हैया’ जैसी होलियां गाते हैं। बैठकी होली पौष माह के पहले रविवार से ही शुरू हो जाती हैं, और फाल्गुन तक गाई जाती है। पौष से बसंत पंचमी तक अध्यात्मिक, बसंत पंचमी से शिवरात्रि तक अर्ध श्रृंगारिक और उसके बाद श्रृंगार रस में डूबी होलियाँ गाई जाती हैं. इनमें भक्ति, वैराग्य, विरह, कृष्ण-गोपियों की हंसी-ठिठोली, प्रेमी प्रेमिका की अनबन, देवर-भाभी की छेड़छाड़ के साथ ही वात्सल्य, श्रृंगार, भक्ति जैसे सभी रस मिलते हैं। बैठकी होली अपने समृद्ध लोक संगीत की वजह से यहाँ की संस्कृति में रच बस गई है, खास बात यह भी है कि कुछ को छोड़कर अधिकांश होलियों की भाषा कुमाऊंनी न होकर ब्रज है। सभी बंदिशें राग-रागनियों में गाई जाती है, और यह काफी हद तक शास्त्रीय गायन है। इनमें एकल और समूह गायन का भी निराला अंदाज दिखाई देता है। लेकिन यह न तो सामूहिक गायन है न ही शास्त्रीय होली की तरह एकल गायन। महफिल में मौजूद कोई भी व्यक्ति बंदिश का मुखड़ा गा सकता है, जिसे स्थानीय भाषा में भाग लगाना कहते हैं। खड़ी होली होली में होल्यार दिन में ढोल-मंजीरों के साथ गोल घेरे में पग संचालन और भाव प्रदर्शन के साथ गाते हैं, और रात में यही होली बैठकर गाई जाती है। शिवरात्रि से होलिकाअष्टमी तक बिना रंग के ही होली गाई जाती है। होलिका अष्टमी को मंदिरों में आंवला एकादशी को गाँव मोहल्ले के निर्धारित स्थान पर चीर बंधन होता है और रंग डाला जाता है।

इधर शहरी क्षेत्रों में हर त्योहार की तरह होली में भी कमी आने लगी है। लोग केवल छलड़ी के दि नही रंग लेकर निकलते हैं, और एक-दूसरे को रंग लगाते हुए गुजिया खिलाते हैं। गांवों में भांग का प्रचलन भी है।
 कुमाउनीं होली में चीर व निशान की विशिष्ट परम्परायें

कुमाऊं में चीर व निशान बंधन की भी अलग विशिष्ट परंपरायें  हैं। इनका कुमाउनीं होली में विशेश महत्व माना जाता है। होलिकाष्टमी के दिन ही कुमाऊं में कहीं कहीं मन्दिरों में `चीन बंधन´ का प्रचलन है। पर अधिकांशतया गांवों, शहरों में सार्वजनिक स्थानों में एकादशी को मुहूर्त देखकर चीर बंधन किया जाता है। इसके लिए गांव के प्रत्येक घर से एक एक नऐ कपड़े के रंग बिरंगे टुकड़े `चीर´ के रूप में लंबे लटठे पर बांधे जाते हैं। इस अवसर पर `कैलै बांधी चीर हो रघुनन्दन राजा...सिद्धि को दाता गणपति बांधी चीर हो...´ जैसी होलियां गाई जाती हैं। इस होली में गणपति के साथ सभी देवताओं के नाम लिऐ जाते हैं। कुमाऊं में `चीर हरण´ का भी प्रचलन है। गांव में चीर को दूसरे गांव वालों की पहुंच से बचाने के लिए दिन रात पहरा दिया जाता है। चीर चोरी चले जाने पर अगली होली से गांव की चीर बांधने की परंपरा समाप्त हो जाती है। कुछ गांवों में चीर की जगह लाल रंग के झण्डे `निशान´ का भी प्रचलन है, जो यहां की शादियों में प्रयोग होने वाले लाल सफेद `निशानों´ की तरह कुमाऊं में प्राचीन समय में रही राजशाही की निशानी माना जाता है। बताते हैं कि कुछ गांवों को तत्कालीन राजाओं से यह `निशान´ मिले हैं, वह ही परंपरागत रूप से होलियों में `निशान´ का प्रयोग करते हैं। सभी घरों में होली गायन के पश्चात घर के सबसे सयाने सदस्य से  शुरू कर सबसे छोटे पुरुष  सदस्य का नाम लेकर `जीवें लाख बरीस...हो हो होलक रे...´ कह आशीष देने की भी यहां अनूठी परंपरा है।

नवीन जोशी

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[justify]बाखलीः पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनी

एक बाखली में 100 परिवार तक रहते हैं, भीतर-भीतर ही रेल के डिब्बों की तरह एक से दूसरे घर में जाने का प्रबंध भी रहता है।
नवीन जोशी, नैनीताल। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, और वह समाज में एक साथ मिलकर रना पसंद करता है। आज के एकाकी व एकल परिवार के दौर में भी मनुष्य समाज के साथ एक तरह की सुविधाओं युक्त कालोनियों में रहना पसंद करता है। बीते दौर में भी मानव की यही प्रवृत्ति रही थी। खासकर उत्तराखंड के गांवों में घरों की लंबी श्रृंखला होती थी, जिसे बाखली (बाखई) कहा जाता है। पहाड़ में अनेक गांवों में ऐसी बाखली हैं, जिनमें सैकड़ों परिवार एक साथ रहा करते थे। आज के बदलते दौर में भी कई गांवों में ऐसी बाखली मौजूद हैं, जो सामाजिकता का संदेश देती हैं। इन्हें पहाड़ की परंपरागत हाउसिंग कालोनियां भी कहा जा सकता है।
नैनीताल जनपद के मौना क्षेत्र में शिमायल के पास कुमाटी नाम का एक गांव है, जहां स्थित बाखली में करीब 80 मवासे (परिवार) एक साथ रहते हैं। बाखली पहाड़ के घरों की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें पहाड़ के परंपरागत पत्थर व मिट्टी के गारे से बने तथा चपटे पत्थरों (पाथरों) से छाये गए दर्जनों घर आपस में रेल के डिब्बों की तर बाहर ही नहीं भीतर से भी जुड़े रहते हैं, और इनमें घरों के बाहर आए बिना भी रेल के डिब्बों की तरह भीतर-भीतर ही एक से दूसरे घर में जाया जा सकता है। सामान्यतया घरों में बनने वाले व्यंजनों का आदान-प्रदान, एक-दूसरे के घरों में दुःख-तकलीफ तथा कामकाज में सहयोग और खासकर गांवों में रात्रि में बाघ आदि जंगली जानवरों के आने की स्थिति में घरों के भीतर-भीतर ही आने-जाने की यह व्यवस्था खासी कारगर साबित होती रही है। इससे गांव के लोगों में आपसी संबंध भी काफी मधुर रहते हैं, क्योंकि लोग एक-

दूसरे से अधिक गहराई तक जुड़े रहते हैं। इन घरों में जहां दरवाजे व खिड़कियों (द्वार-म्वाव) पर लकड़ी की नक्काशी पहाड़ की समृद्ध काष्ठ कला के दर्शन कराती है, वहीं निचली मंजिल में पशुओं के लिए गोठ, ऊपरी मंजिल में बाहरी कमरा-चाख (जहां चाख यानी अनाज पीसने के लिए हाथ से चलाई जाने वाली चक्की भी होती है), पीछे की ओर रसोई, बाहर की ओर पंछियों के लिए घोंसले, छत में पाथरों के बीच से धुंवे के बाहर निकलने और रोशनी के भीतर आने के प्रबंध तथा आंगन (पटांगण) में बैठने के लिए चौकोर पत्थरों (पटाल) के बीच धान कूटने की ओखली (ऊखल) आदि के प्रबंध भी होते थे। लाल मिट्टी व गोबर से लीपे इन घरों में पहाड़ की समृद्ध परंपरागत चित्रकारी-ऐपण भी देखने लायक होती हैं। बदलते दौर में जहां 1970 के दशक में आए वनाधिकारों के बाद गांवों में पत्थर, लकड़ी आदि वन सामग्री न मिलने की वजह से सीमेंट-कंक्रीट से घर बनने लगे, और पुराने घर भी उनमें रहने वाले लोगों के पलायन की वजह से खाली छूटने के कारण खंडहर में तब्दील होने लगे हैं। इसके बावजूद कुमाटी जैसे अनेक गांव हैं, जहां के ग्रामीणों ने आज भी अपनी विरासत को सहेज कर रखा हुआ है।
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नवीन जोशी

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उत्तराखंड की पहली कुमाउनी, गढ़वाली व जौनसारी सहित समस्त लोक भाषाओं की पहली मासिक पत्रिका ‘कुमगढ़’ का पहला अंक प्रकाशित हो गया है।

पत्रिका की प्रति सुरक्षित करवाने, नियमित या आजीवन सदस्यता लेने एवं आगामी अंकों के लिए अपने मौलिक लेख, कविताएं आदि प्रेषित करने के लिए पताः
श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’
संपादक-कुमगढ़ पत्रिका
हिमानी वाङमय पीठ, पश्चिमी खेड़ा, पोस्ट-काठगोदाम, जिला-नैनीताल, पिन-263126। मोबाइलः 9719247882। ईमेलः kumgarh@gmail.com ।

सदस्यता राशिः सदस्यता (संरक्षक): रुपए 5000
आजीवन सदस्यताः रुपए 1000
विशेष सहयोगः रुपए 500
वार्षिक सहयोगः रुपए 100
एक प्रतिः रुपए 20

नवीन जोशी

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भारत का स्विटजरलेंड, गांधी-पंत का कौसानी
महाकवि कालीदास के कालजयी ग्रंथ कुमार संभव में नगाधिराज कहे गए हिमालय को बेहद करीब से निहारता और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा ‘भारत का स्विटजरलेंड’ कहा गया कौसानी देश के चुनिंदा प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत रमणीक पर्वतीय पर्यटक स्थलों में एक है। महात्मा गांधी को अपनी नीरवता और शांति से गीता के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान कराने और ‘अनासक्ति योग’ ग्रंथ की रचना कराने वाले और प्रकृति के सुकुमार छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की यह जन्म भूमि आदि-अनादि काल से लेकर वर्तमान तक प्रकृति प्रेमियों का पसंदीदा स्थान रही है। यहां दूर तक कोसी, गोमती और गगास नदियों के बीच फैली कत्यूर, बोरारो व कैड़ारो घाटियों के बीच लहलहाती धान व आलू की खेती, हरे कालीन से बिछे चाय के बागानों और शीतलता बिखेरते देवदार व चीड़ के दरख्तों के बीच पर्वतराज हिमालय को अपनी स्वर्णिम आभा से रंगते सूर्याेदय और सूर्यास्त के स्वर्णिम आभा बिखेरते मनोहारी दृश्य सौंदर्य के वशीभूत सैलानियों को न केवल आकर्षित करते वरन अपना बना लेते हैं।
Kausani3कौसानी उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले से 53 किलोमीटर उत्तर में बागेश्वर, पिंडारी-सुंदरढूंगा ग्लेशियर के मार्ग पर समुद्र सतह से लगभग 1950 मीटर यानी 6075 फीट की ऊंचाई पर पिंगनाथ चोटी पर बसा एक छोटा सा पहाड़ी कस्बा है। यहाँ से बर्फ से ढके नंदा देवी पर्वत की चोटी का नजारा ‘ऊं’ जैसे स्वरूप में नजर आता है। साथ ही चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, नंदा देवी, नंदा खाट व नंदाकोट से लेकर पंचाचूली तक की हिम मंडित पर्वत श्रृंखलाओं का सुंदर व भव्य नजारा भी दिखता है। कहा जाता है कुमाऊं में कत्यूरी राज के दौरान यह क्षेत्र राजा बैचलदेव के अधिकार में आता था, जिन्हांेने इसे श्रीचंद तिवारी नाम के एक गुजराती ब्राह्मण को दे दिया था। संभवतया वहीं से गांधी जी इस स्थान के नाम से परिचित हुए और 1929 में एक स्थानीय चाय बागान मालिक के आतिथ्य में केवल दो दिन के प्रवास के लिए यहां आए थे, लेकिन इस स्थान के आकर्षण में पूरे 14 दिन न केवल रुके वरन ध्यान लगाकर ‘अनासक्ति योग’ ग्रंथ की रचना कर डाली। उन्होंने इस स्थान के बारे में कहा था, ‘इन पहाड़ों में प्राकृतिक सौंदर्य की मेहमाननवाजी के आगे मानव द्वारा किया गया कोई भी सत्कार फीका है। मैं आश्चर्य के साथ सोचता हूँ कि इन पर्वतों के सौंदर्य और जलवायु से बढ़ कर किसी और जगह का होना तो दूर, इनकी बराबरी भी संसार का कोई सौंदर्य स्थल नहीं कर सकता। अल्मोड़ा के पहाड़ों में करीब तीन सप्ताह का समय बिताने के बाद मैं बहुत ज्यादा आश्चर्यचकित हूँ कि हमारे यहाँ के लोग बेहतर स्वास्थ्य की चाह में यूरोप क्यों जाते हैं, जबकि यहीं भारत का स्विटजरलेंड मौजूद है।’ उनका वह ध्यान केंद्र आज यहां ‘अनासक्ति आश्रम’ के रूप में मौजूद है।
कौसानी हिन्दी के छायावादी कवि त्रिमूर्ति महादेवी-पंत-निराला के पंत की न केवल जन्म स्थली रही है, वरन यहीं उनका बचपन बीता और उन्होंने अपनी कवि कालजयी रचनाओं का सृजन भी यहीं किया। उनकी यांदें आज भी यहां प्रसिद्ध इतिहासकार व साहित्यकार पं. नित्यानंद मिश्रा के प्रयासों से निर्मित राजकीय संग्रहालय में अनेक दुर्लभ चित्रों के रूप में मौजूद हैं। पंत के पिता गंगा दत्त पंत कौसानी की खूबसूरती के एक प्रमुख आकर्षण, यहां उस दौर में करीब 390 एकड़ में फैले चाय बागान के व्यवस्थापक थे। यहां के चाय बागानों की गिरनार ब्रांड की चाय पहाड़ की खुशबू से लबरेज होती है, और देश ही नहीं जर्मनी, कोरिया और आस्ट्रेलिया तक निर्यात की जाती है। साहित्यकार धर्मवीर भारती ने अपने प्रसिद्ध निबंध ‘ठेले पर हिमालय’ में कौसानी की खूबसूरती को अनेक कोणों से उकेरा है।
कौसानी के अन्य पर्यटक स्थलों में गांधी जी की लंदन निवासी शिष्या कैथरीन मेरी हेल्वमन द्वारा 1964 में निर्मित लक्ष्मी आश्रम भी है। कैथरीन 1948 में भारत आकर गांधी जी के सत्य, अहिंसा के सिद्धांतों से इतना प्रभावित हुईं कि सरला बहन के रूप में यहीं बस गईं। वह यहां कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल के तहत महिलाओं का संगठन बनाकर उन्हें स्वरोजगार से जोड़कर कार्य करती रहीं। कौसानी से 17 किमी की दूरी पर गोमती नदी के तट पर कत्यूरी शासनकाल में 12वीं सदी में बने शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर व सूर्य आदि देवताओं के मंदिर के समूह बैजनाथ भी एक दर्शनीय पौराणिक व धार्मिक महत्व का स्थल है। पास ही में गरुण के पा 21 किमी की दूरी पर कुमाऊं की कुलदेवी कही जाने वाली नंदा देवी एवं कोट भ्रामरी देवी का मंदिर भी बेहद प्रसिद्ध है। बैजनाथ से 28 किमी और आगे बढ़ने पर सरयू और गोमती के संगम पर कुमाऊं की काशी कहा जाने वाला बागेश्वर नाम का स्थान है, जो पिंडारी, सुंदरढूंगा व काफनी ग्लेशियरों के यात्रा मार्ग का बेस शिविर भी है। आगे 87 किमी की दूरी पर स्थित चौकोड़ी से हिमालय पर्वत की श्रृंखलाओं को और भी अधिक करीब से देखा जा सकता है। बैजनाथ से ही दूसरी ओर कुमाऊँ और गढ़वाल मंडलों के मिलन स्थल ग्वालदम होते हुए स्वर्ग से भी सुंदर कहे जाने वाले बेदनी बुग्याल तक जाया जा सकता है। साहसिक खेलों के शौकीन सैलानियों के लिए यहां ट्रेकिंग, रॉक क्लाइबिंग के प्रबंध भी उपलब्ध हैं।
यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर-178 किमी, निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम-178 किमी तथा दिल्ली 431 किमी की दूरी पर है। मार्च-अप्रेल एवं सितंबर-अक्टूबर कौसानी सहित सभी पर्वतीय पर्यटक स्थलों की सैर एवं प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने के लिए सवसे बेहतर समय है, अलबत्ता गर्मियों में भी यहां शीतल जलवायु के लिए आया जा सकता है। कौसानी के प्रेमियों में गांधी जी के साथ ही अनेक अन्य खास हस्तियां भी शामिल हैं, इनमें पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के अलावा यूपीए अध्यक्षा सोनिया गांधी, पूर्व कंेद्रीय मंत्री डा. कर्ण सिंह व अरुण शौरी के साथ प्रख्यात साहित्यकार निर्मल वर्मा के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं, जो कमोबेश हर वर्ष यहां आते रहते हैं।


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