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Poems By Vikam Negi 'Boond"- विक्रम नेगी "बूंद" की कवितायें तथा लेख

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विक्रम नेगी:
आँखेँ बुलाती रही,
नीँद नहीँ आई.
नीँद ढीठ हो गई है,
आँखोँ की नहीँ सुनती अब.

रातभर
वक़्त के साथ
आँखेँ बात करती रही.
न जाने कब वक़्त चला गया,
आँखेँ थककर सो गई,
शायद नीँद भी चोरी छिपे
लौट आई थी
आधी रात के बाद.
आहट भी नहीँ हुई.

मनमौजी है,
बुलाने पर नहीँ आती,
ज़िद्दी हो गई है नीँद.

आँखेँ अकेली पड़ गई हैँ,
कल रात वक़्त साथ था,
वक़्त के चेहरे पर
स्याह रातोँ का साया था,
अपना सा लगा था
वक़्त.
सुबह आँख खुली
तो नीँद ने साथ छोड़ दिया.
और वक़्त के चेहरे पर,
परायेपन की रौशनी
चमक रही थी.
सचमुच वक़्त भी
बदल गया है अब.
और आँखेँ हैरान हैँ
बदले हुए वक़्त को देखकर...!

-
"बूँद"

विक्रम नेगी:
कभी कागज़ पर लिख लिया,
कभी फेसबुक पर,
कभी घर की दीवारों पर चीखे,
तो कभी टेलीविजन पर,
कभी दुनियां पर,
कभी धर्म पर,
कभी समाज की झूठी नैतिकताओं पर,
तो कभी किसी की विकृत मानसिकता पर.

कभी रोता है,
तो कभी सोच में घंटो गुज़ार देता है,
एकांत में ही संवेदनाएं जागृत होती हैं,
रोज़मर्रा के कामों में कहाँ कोई खुद के बारे में सोचता है?
और कहाँ कोई दूसरों के बारे में सोचता है?

गुस्सा आता है,
अपने लिए भी,
और दूसरों के लिए भी,
अपने पर भी,
और दूसरों पर भी,
एक लाचार व्यक्ति संवेदनशील होने का दर्द यों ही व्यक्त कर पाता है.

विक्रम नेगी:
कमज़ोरी गाली देती है, लाचारी झल्लाती है.
खुद पर जब गुस्सा आता है, ख़ामोशी चिल्लाती है.
कुछ अपनी, कुछ दुनियां की मज़बूरी ताने देती है,
जब भी दिल्ली और गुहाटी शर्मिंदा कर जाती है.
अपने दुःख-दर्दों को तो हम पलभर में सह लेते हैं,
लेकिन पीर पराई अक्सर बरसों तक तड़पाती है.

ये भी सच है घटनाओं को कौन याद रख पाता है,
ये भी सच है ज़ख्मों के भरने तक दर्द सताता है,
ये भी सच है जिस पर बीती दर्द उसे ही होता है,
ये भी सच है पीर पराई देखके दिल भी रोता है.
ये भी सच है बातें करके हम खुद को समझाते हैं.
ये भी सच है दुनियां बदले, आस में हम मर जाते हैं.

विक्रम नेगी:
आँखेँ सबकी एक सी
नज़रिया अलग अलग
बड़ी हैँ
घुच्ची हैँ
भेँगी हैँ
काली हैँ
नीली हैँ
भूरी हैँ

दिखाई तो सभी को देता.
उतना ही जितना बड़ी आँखेँ देखती हैँ
वैसा ही जैसा नीली आँखेँ देखती हैँ..!

चश्मे की बात अलग है...!

धनेश कोठारी:
बिक्रम भाई आपकी कविताएं वर्तमान की जिस तरह से चीरफाड़ करती हैं, वह जेहन को झकझोरती हैं, बताती हैं कि जो हम देख रहे हैं वह अधूरा सच है. और इसी को जीते हुए हम आत्मविभोर हैं. इसी धार को बरकरार रखिएगा. शुभकामनाएं

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