उत्तराखण्ड की हर विवाहित महिला चैत माह में अपने मायके वालों से भिटौली का इंतजार करती है, जिसे पूरे गांव में बांटा जाता है। यह त्यौहार हमारे सामाजिक सदभाव का भी प्रतीक है। इस माह का महिलाओं के लिये कितना महत्व है, हमारे लोकगीतों के माध्यम से सहज ही जाना जा सकता है। स्व० गोपाल बाबू गोस्वामी जी का यह गीत इसका प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत करता है:
"ना बासा घुघुती चैत की, याद आ जैछे मैके मैत की"