’होली प्रारम्भ’
होली प्रारम्भ-
को रे बांधे चीर, हो रधुनन्दन राजा
रामी चन्द बांधे लछीमन बांधे,
बांधे लव-कुश चीर हो रधुनन्दन राजा,
ब्रहमा, विष्णु बांधे गणपति बांधे,
बांधे लव-कुश चीर हो, रधुनन्दन राजा
हॉ-हॉ रे मोहन गिरधारी-2
ऐसो अनाड़ी चुनरि गयो फाड़ी,
हॅसि-हॅसि दे गयो गारी, गोहन गिरधारी
हॉ-हॉ रे मोहन गिरधारी-2
(गंगनाथ को लाया जाता है, भांग घोटा पिलाकर उन्हैं मस्त कर उनके पहने
दिव्य वस्त्र उतार कर- दिवान के आदेश पर विश्वनाथ घाट में मौंत के घाट
उतार दिया जाता है, तब भाना श्राप देती है-
भाना श्राप-
अरे-की होई ग्यो, की करन लायी र्योछा,
ये-बेकसूरस-किला मारन लागि रिछा,
-मारन्छ-मैस मार-मैंस मार.........
भाना (रोते-हुवे-हूॅ, हूॅ, हूॅ, हूॅ,)
मैं तुमन श्राप दिंछु, फिटकार दिंछु-2 तुमरो भलो जन हो, गोठ का गोठ, पाणा
को पाणा रे जो पानी की एक बूॅद खिन ले तरसला, अन्न ले जन हो-2
(इसे सुनकर दिवान आदेश देता है- भाना को मार दो, इस पर सभी को
मार दिया जाता है, माहोल गमगीन हो जाता है)
तीन दिन बाद ही.....
(सम्पूर्ण ग्रामीण पागलपन की हालत में पहुॅच जाते हैं, तब एक-सयाना
वृद्ध ग्रामीण बताता है, उस दुखद धड़ी को याद दिलाता है।
तब सभी लोग उस स्थान की ओर चल पड़ते है और भाना-गंगनाथ
व झकरवा, बर्मीबाला की पूजा अर्चना करने लगते हैं)