Author Topic: Bhana Gang Nath Jagar - भाना-गंगनाथ जागर का वर्णन  (Read 35571 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are going give here a detailed information on  "Jagar" on "Bhana & Gang Nath Devta" which is very-2 popular in Kumoan Region of Uttarakhand. Gang Nath is also known as a "God of Justice" similar to "Golu Devta"!

This Jagar has been compiled by Mr Hem Raj Singh Bisht and Navodya Parvteey Kala Kendra Pithorgarh.

Hope you would appreciate this exclusive information on Culture of Uttarakhand.

M S Mehta
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DETAILED JAGAR YOU AND LISTEN FROM HERE

http://www.esnips.com/doc/0f7b0e66-b0df-4300-85d7-41d893c426ed/Jagar%20by%20Nain%20Nath%20Rawal

सांस्कृतिक परिचय (By Hem Raj Bisht)

लोक संस्कृति मानव र्ध्म है। लोक गीत ध्रती के गीत है। ध्रती जिसे हम जिस नाम से भी जानते हों वह माटी की ध्रती है। मनुष्य किसी भी देश,प्रदेश या अंचल में रहे वह मानव है। उसके सुख, दुख, उल्लास-वेदना उसकी भावना बहुत कुछ समान है। वह अपनी प्रसÂता मुस्कान में बिखेरता है तथा उसके दुःख दर्द आंसू बताते हैं। परन्तु ध्रा जो हमें सब कुछ देती है वह उससे एक नादान अवोध् बालक की तरह लेते ही मांगते ही जाते हैं। देते कुछ नहीं हैं। पिफर भी जीवन एक बहुरंगी है तथा लोक साहित्य लोक जीवन का दर्पण है। लोक साहित्य ने ही शिष्ट साहित्य को जन्म दिया है। उसके लिये मातृ-वृक्ष का कार्य किया है। साथ ही मूल में उसे चेतना तथा वस्तु देकर उसका मार्ग प्रशस्त किया है। लोक साहित्य लोक जीवन की भावनाओं, मान्यताओं, धरणाओं, लोक संस्कृति के जीवंत तत्वों सर्वोपरि लोक जीवन की अनुभूतियों एवं अभि व्यज्जनों का एक मात्रा वाहक है। लोक-जीवन के इन तत्वों के इस कार्य में लोक गाथाओं का अपना अत्यन्त महत्व है। क्योंकि वे चिरकाल से एक निश्चित परम्परा द्वारा संचारित होकर, अतीत से वस्तु
लेकर, वर्तमान से प्रभावित होती हुई भविष्य की ओर दृष्टि पात करती हुई आगे बड़ती है। यह लोक-गाथाएं किसी लोक जीवन के इतिहास, संस्कृति तथा लोक-जीवन की अभिव्यक्ति को वहन करने का कार्य करती आयी हैं।

हमारे विभिÂ अंचलों के जन-जीवन से लोक-संस्कृति उभरती है। वह नाना रूपों में व्यक्त करती है। मानव हृदय के उन उदगारों को जिनमें विविध्ता में साम्य निहित है, अनेक रूपता में एकता है। भारत के प्रत्येक प्रान्तों में लोक साहित्य तथा लोक कवि का महत्व छिपा हुआ है। आज साहित्य के क्षेत्रा में लोक साहित्य के अध्ययन की हल-चल तथा भाग दौड़ इसके महत्व का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इन्हीं में कुँमाऊ की लोक संस्कृति अपनी विशिष्ट छटाओं से अपनी ओर जन मानस को आकर्षित करती है। कुँमाऊ की लोक संस्कृति यहां के निवासियों के रहन-सहन, एकता,भाई चारे को भी परिलक्षित करती है। कुँमाऊ की लोक संस्कृति विविध्ता में एकता का संदेश देती हुई  बहुआयामी है। यहां के लोक गीतों-लोक नृत्यों एवं लोक ध्ुनों का यहां भण्डार पाया गयाहै ;प्रकृति की अनुपम छटा के मध्य यहां की लोक ध्ुनें बरबस मन को मोह लेती हैं। लोक संस्कृति में सर्वाध्कि विविध्ता विद्यमान है। यहां के झोड़ों में मुख्यतः दुर्गा तथा सारंग राग का मिश्रण मिलता है, जिनकी ध्ुनें पर्वत प्रदेश की ऊंचाईयों से प्रतिध्वनित होकर मन में एक विचित्रा अवर्णनीय गुद-गुदी पैदा करती है। यहां की मॉसल हरीतिमा देवदार की पत्तियां, घाटियां तथा अध्पित्यिकायें लोक मानस में एक उदासी भरे रूमानी प्रेम तथा जीवन की आकांक्षा की स्पफूर्ति भरी प्रेरणा भरती रहती हैं।

कुँमाऊनी लोक गीतों में मुख्यतः न्योली, भगनौला, छबेली, भयेडा गीत, प्रयाण गीत,झोड़ा चांचरी बैर, आहवान गीत, बरम गीत, सकुन गीत, बनड़ा, कुँमाऊ की लोक गाथाओं में मुक्तक छन्द, वर्णित छन्द, लोक साहित्य की कुछ प्रमुख गीति प(तियों में अपना विशिष्ट स्थान बनाये हुये हैं। इन्हीं गीतों में कृषि सम्बन्ध्ी गीतों में -गुडौल - ‘हुड़की बौल’- कर्म और संगीत का जो सुमुध्ूर प्रेरणास्पद सम्मिलन पाया जाता है वह श्रम की थकान को तो हरता ही है साथ ही संयुक्त कर्म को करने के लिए अज्ञात रूप से प्रोत्साहित करता रहता है। इसी प्रकार जहां झोड़ों एवं मेलों के गीतों में प्यार भरी छेड़-छाड़ पाई जाती है वहीं ट्टतु गीतों में प्राकृतिक सौन्दर्य की भावना तथा छोलियों में भाव प्रवण रसाकांक्षा की उन्मद पुकार प्राणों को झकझोर देती है। जहां जन मानस धर्मिक गीत, संस्कार गीत, जागर तथा एकाग्रता में न्योलियों का सहारा लेने लगता है तो वहीं दूसरी ओर वीर गाथाओं और एतिहासिक कथाओं को भी जाने बिना नहीं रह सकता है। कुँमाउनी लोक गाथाओं को निम्न चार भागों में बांटा गया है।

 (क) बीर गाथायें- रणुवा रौत, अजवा बपफौल, भगुवा रौत, नरसिंह और ध्ना, रमौल, सिददू, बिद्दू, पुरख पन्थ।
(ख)प्रेम गाथायें - राजुला मालू साही एवं भाना गंघनाथ
(ग) देव गाथायें- हरू तथा सैम, विणभाट गाथा, गंवारा की गाथा, कालसिण तथा छुरमल
गाथा, ऐडी की गाथा ध्ड़देवी गाथा, परी आंचरी गाथा तथा नाग गाथा।
(घ) र्ध्म गाथायें - लंका तथा कुरू क्षेत्रा गाथा, नरसिंह गाथा, शिव ध्नुष गाथा, भष्मासुर
गाथा आदि ।
कुमाऊँ लोक साहित्य में कुॅमाउनी लोक गीतों तथा लोक गाथाओं के मिश्रण से
यहां का समूचा क्षेत्रा देव स्थल के नाम से जाना जाता है। इसीलिये यहां का लोक साहित्य
समूचे भारत में अनुपमता छटा बिखेरे हुये हैं। 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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सामग्री,वभै चंद, वार्त्ता यो हिमाल मॉज, तै नन्दा हिमाल।2- गंगा चंद पैदासी- नर-नटनी-एक खुशी की......खेल-सोल सोल्यानी.........नैपालीड्रस।3- डंगरिया परिचय- ख्याला, डंगरिया, गोंत पूर्व में जाना.......4- मै छूरे रंगिलो- गंगा चंद ड्रस-घाघरा।5- ग्रामिणों को सूचना- दरवारियों की ड्रस, सूचना पत्थर उठाना, गंगाचंद प्रवेश ग्रामीणनेपाली ड्रस।6- गंगाचंद स्वप्न- भाना का आना, वांसुरी, ज्यूनो मॉं को गद्दा, अलख जगूंलो...... आसलगायी मैले.......।7- साधू का प्रवेष- जोगी की वेशभूषा, कमण्डल, झोला, चिमटा, बालो के स्यर।8- लटुवा मसान- मसान की ड्रस, गोरिल ड्रस, चाबूक दिव्य वस्त्र, फेरा, माला, देवी धुराका दृश्य, मंदिर, ग्रामीण, कुॅंमाउनी ड्रस।9- पंचनाथ नगरी- बैल, डौक्के, रोपाई, लड़कियॉ, नमोः नारायण बाबा..... तेरी आसलागी रूंछी।10- लड़कियों का भाना को सूचित करना- गंगनाथ को लेकर, भाना को सूचितकरना, पंचराज गॉव से डोरी का दृश्य।11- भाना का गंगनाथ से मिलना- घड़े, पानी, भरने का दृश्य, लड़कियो का गंगनाथसे मिलना ओ दीदी मेरा मन..... अतीत, चर्चायें... कोट, खडी धोती, टोपी, अंगोछे, लाठी।12- दिवान को सूचना- भाषा, भाना को डांठना, दिवान को सूचना, मारने की योजना।13- होली का दृष्य- रंग, चीर, पूजा सामग्री, धोतियॉ, टोपियॉ, लाठियॉ, तलवार, पानी,बाल्टी या घडा, लोटा,गिलास, भॉग, लाल रंग, हरा रंग अबीर, दाड़, खून।14- जगाना, कैलाष भेजना- रांके, सग्गड, थाली, गोंत, खेला सामग्री, अक्षत, फूल।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कथा-सारभाना गंगनाथ के इस प्रदर्शन में आप सबका हार्दिक सवागत है। यह नृत्य नाटिका कुॅमाऊ की प्रसिद्ध देव गाथा गंगनाथ पर आधारित है संक्षेप में भाना गंगनाथ का कथानक इस प्रकार है। अल्मोड़ा के चन्द राजा के दिवान जोशी की लड़की भाना का डोटी के राज राजकुमार गंगनाथ से प्रेम सम्बन्ध हो जाता है। (गंगनाथ डोटी (नेपाल) के राजा वभैचन्द के शिवजी द्वारा बरदानित एक मात्र पुत्र थे।) कुछ समय के बाद अपने गुरू गोरख- नाथ से शिक्षा लेकर जोगी के भंेष में अनेक विद्यायें प्राप्त कर गंगनाथ भाना की खोज में राज पाठका मोह छोडकर अल्मोड़ा की ओर निकल पडता है। गंगनाथ जी के शरीर में गुरू गोरख-नाथ द्वारा प्रदान दिव्य वस्त्र तथा पीठ भाई गोरिल द्वारा दी गयी शक्ति है। जिसके रहते हुए उसका कभी भी अनिष्ठ नही हो सकता है। जोशी दिवान को जब भाना गंगनाथ के प्रेम प्रसंग के बारे में मालूम होता है, तो वह भाना गंगनाथ और वर्मीबाला को मौत के घाट उतारने की योजना बनाता है। यह सारा कार्य होली के त्यौहार के दिन सम्पन्न किया जाता है। धोखे सेगंगनाथ के कमर का फेआ व सिर में बधा धड़ा उतरवा लिया जाता है और फिर तीनों की निर्मम हत्या कर दी जाती है। मरने से पूर्व भाना श्राप देती है पर्वत का वह अंचल सूख जायेगा, पानी की एक बूंद के लिए भी तरसेंगे और यह हरियाली नष्ट हो जाएगी। भाना गंगनाथ और बाला प्रेत बन जाते है। निर्मम हत्या के बाद देवताओं की श्रेणी में उनकी स्थापना यही विडम्बना इस कथानक का सार है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भाना गंगनाथ (प्रथम दृष्य)

आरती भोलेनाथ की-

यो हिमाल मॉज, षिव को कैलाष-2
पार्वती को मैत, गणपति देवा हो......
ओ....हो....-गणपति देवा हो
ओ-यो हिमाल मॉज हो....
तै नन्दा हिमाल हो ,नन्दा मॉ निवास
जै उमा भवानी हो, जै जै हो कैलाष
षिवज्यू ले पैरि राखी बागम्बर छाल-2
एक हाथ त्रिषूल छाज्यो एक हाथ में मालाहो-
उत्तरांचल देव भूमि-ते हुं छः प्रणाम-2
वीरो की जनम भूमि-देवतों को धाम
देवतों को धाम हो - जै जै हो कैलाष
तै नन्दा हिमाल हो .........

(आरती की समाप्ति कैलाष दर्षन षिव व वभै चन्द षंख ध्वनि
के साथ वार्ता।)
ओम................ ओम,..................... ओम......................
षिवजी-
तेरी तपस्या देखी बेर, खुषी भयों में आज
दीछू यो वर्दान त्वेस, तेरी होली सन्तान।
वभैचन्द-
मेरी मनकी पुरी करीछ, दीछ में वरदान मेरा प्रभू
धन्य आज धन्य भयूं, राखिछ मेरी आन मेरा प्रभू।


षिवजी- तथास्तु....... तथास्तु........ तथास्तु!
मेरी एक बात छ, तै सुनीले अब
तेरा घर बाला होलो, तै सुनीले अब
बारह साल घर रोलो, फिर होलो बेराग
ऊ राज-पाठ छोड़ी देलो, त्रिया का बियोग
त्रिया का बियोग-2

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(द्वितीय दृश्य)(षुभ नगाडों की धुन -वभै चंद -डोटी का दृष्य)नट-नटनी-आज खुशी की बात यो हो.हो.होआज खुशी की बात यो लोगो -तुमन बतूनो आजराजा का घर जनम ली हाल्यो एक बाला ले आज-2शम्भू का प्रताप ले आज भैच इक संतान,चार दिशान मची धूम -राजा की बची आन-2खेल-लगाना-सोल सौल्यानी भूमी का भूम्याला-2ये गों का भूम्याला देवा-2सोल सौल्यानी भूमी का भूम्याला-2बेलि रात जनम लीछ-2सोल सौल्यानी भानि चन्दा का घर-2बाला खिन दयाल होया-2सोल सौल्यानी भूमि का भूम्याला-2तै खेलीले -तै खेलीले-2सोल सोल्यानी जीया प्यूला का घर-2डोटी में जनम भयो-2सोल सौल्यानी शिवज्यू को वरदान-2सोल सौल्यानी शिवज्यू को वरदान-2

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(तृतीय दृश्य)

परिचय-

धीरे-धीरे गंगा चन्द किशोरा अवस्था की ओर बड़ने लगा और
उसके साथ वह अपने आश्चर्य जनक कार्य-कलापों से डोटी
वासियों को अचम्भित करने लगा। जिसके कारनामांे की
ख्याति चारों ओर फैलने लगी।
जिससे लगने लगा वह कोई साधारण बालक नहीं है।

(ग्रामीण जन बैंठे है, चारों शान्ति-परिचय हो रहा है, डंगरिया खेला लगा रहा
है, स्टेज में एक व्यक्ति धीरे-धीरे कॉप रहा है, अक्षत, गोंत लेकर अन्य की
प्रविष्ठी-खेला गति पकड़ती है-इसी के साथ अन्य ग्रामीण कॉपता हुआ आता है।)
ड़गरिया-
जागो हो........ डोटी कुॅवर...........।
जागो हो....... रूप वसी भाना........।
पूछना-
को छे ला तैं, कॉ वटी ऐ छै, बतो, बतो, बतो।
ग्रामीण-
हॉ, हॉ, हॉ, नी पछयाडयूंला तैले-2
मेै, मेै, मेै,- देखे रे देख, देख- पार ऊ छूं ला-2
गंगाचंद का प्रवेष-
मै छूरे रंगिलो गंगाचंद-2 ( ब ा ं स ु र ी )
मै छू रे रंगिलो गंगा चन्द-2
जीया मेरी प्यूंला रानी, बाबू वभैचंद-2- मै छू रे......
म्यूजिक (बांसुरी).....................
 
डोटी गाडा बसी रयोछ बुवा बभै चंद-2
गोरी काली द्वी बैना को जा हुंच संगम-2
आहा-मै छूं रे रंगिलो गंगा चंद-2

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दरवारियों की सूचना-सूनो-3, भाई बेनियो, ईष्ट मित्रो सुनो,राजा ज्यू को यो फरमान,राजा ज्यू का खाला बीच शिला पड़ी रे छःसभै बीर योद्वा ये में जोर लगाला,सुनो-सुनो भाई बेनियो सूनो.......राजा ज्यू को यो फरमान!जो ले वीर पहलवान शिला के हरालोराजा ज्यू को आशिर्वाद पालो!(वीर योद्धाओं का मंच पर प्रवेष, सभी जोर लगाते हैं, परन्तु षिलानहीं हट पाती है। तभी गंगा चंद का प्रवेष)बांसुरी की धुन- मै छू रे रंगिलो गंगा चंद-2गंगा चंद-जागो डरना की- क्वे बात नहातिन!ऊॅ............ ऊॅ............ ऊॅ.......... ऊॅ..........पार्ष्व गायन-डोटि में जनम लीछ नाथा रे,शीव को वरदान छः यो नाथा रे,धन्य धन्य धन्य वभै चंद रेदीछ वीर वालकस जन्म रेडोटी में जनम................ 2

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(गंगा चंद सोया होता हे। सपने में भाना का प्रवेष)
भाना- आस लगायो मैले.......... तुमके बुलायो.......
ऑसू ढाई-ढाई बेर........तुमके बुलायो.......-2
(गंगा चंद का उठना-पुनः सो जाना)
ज्यून मॉ को चेलो होले
जोशी खोला आलै-2
मरी मॉ को चेलो होले
डोटी पड़ी रोलै
आ......... आ......... आ.........
ज्यून मॉ को चेलो होले, जोशी खोला आले-2
मरी मॉ को चेलो होले, डोटी पड़ी रोले- आ... आ..
(गंगा चंद का जागना-उसी धुन में बांसुरी बजाना)
गंगा चंद का विलाप-
भाना का कारण आज मेस दुख आयो,
आधी रात भाना मेरा स्वीना में आयी,
ऑसू ढली-ढली भाना दींछी रे दुहाई,
अलख जगूंलो आब ल्योंलो जोगी वेष-2
आज गंगा जालो जोशी खोला देश,
भाना का कारण आज छुट्यो मेरो देश-2
गंगा चंद पुनः-
अलख जगूंलो आब ल्योंलो जोगी वेष-2
आज गंगा जालो जोशी खोला देश-2

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’चतुर्थ दृष्य’

(बड़े गंगनाथ जी का जोगिया वेष में प्रवेष)
पार्ष्व गायन- अलख निरंजन........... अलख निरंजन...........
हेर गांगू- डोटी को राज काज छाड़ी बैर,
गोरिल ज्यूस मित भाई बना बैर,
गुरू गोरखनाथ ज्यू धां, बुकसार की-
शिक्षा-दिक्षाका साथ-चोबाट की धूल ली बैर
मॉता प्यूंला ज्यू धां पैलि भिक्षा ली बैर
रामेश्वर का तीर्थ में पुजि गिछै ला पै..... गांगू.
. .
गुरू जाप प्रारम्भ-
नमोः नारायण.......... नमोः नारायण,
श्रीमन्-नारायण, नारायण, नारायण
गुरूवर-नारायण, नारायण, नारायण
भजमन-नारायण, नारायण, नारायण
(अचानक दैत्य का प्रवेष-गंगनाथ पर आक्रमण-दैन दमुवा, की ध्वनि पर
युद्ध प्रारम्भ! भूमिया को याद करना)
ओ मेरा मालिक, जै तेरा साधु कै-2
शमसानी का भूत, लटुवा मसान-2
मालिक.......... मालिक............. मालिक।
(गोरिल का प्रवेष, गंगनाथ को दिव्य वस्त्र पहनाकर आदेष देना)
पुनः युद्ध प्रारम्भ- मसान को मारकर देवीधूरा प्रस्थान
पार्ष्व गायन-
देवीधूरा का जंगल में, गंगनाथ आयो-2
बाराही देवी की पूजा दीप जलायो, गंगनाथ आयो-4
पेड़ो की शीतल छाया में
राजकुॅवर..... आसन लगायो
आसन लगायो, गंगनाथ आयो-2
(बाराही का दृष्य-महिला पुरूषों का आना-जाना)

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पार्ष्व गायन-तन्त्र मन्त्र-काछे मेरी भाना मोरी प्रित पराना-जोगी बनी गयू भाना त्यारा कारण-(1)- स्यूना मॉ आबेर म्यारा त्येलै मिकै बुलायो-राज-पाठ छुड़ाई भाना जोगी मैके बनायो-त्वे खातीर बनी ग्यो म्येरो पिलो बरण -जोगी-(2)- छोड़ी हालीछ डोटी भाना छाड़यो राज-पाठ-त्येंरी नराई लागी आखी चानी बाटा-बाटाजब मिलली मिकै तभै होलो तारण-जोगी बनी-जै जै हो बारही, तेरी बलायी ल्यूंलो-2दैना हो बाराही मॉ तेरी बयाली ल्यूंला-2दीयो धार ले चडंूला मॉ तेरी बलायी ल्यंूला मॉ-2पार्ष्व-बोल-देख देख देख- गंगनाथ ज्यूस देख,कसो तेज चमकि रीछ-गंगनाथ ज्यूका मुख मॉ....(म्यूजिक-जय भगवती देवी नमोः वर दे... पुजारियों का प्रवेष)पार्ष्व-भाषा-(1) अमूसी को दीन आज, चन्द्रमा छः अस्त,राहू की देन हे रे - अदीन है रयान मस्त,लै, लै सब ठीक है जालो,(म्यूजिक-जय भगवती देवी नमोः वर दे)(2) अलख निरंजन-2- गुरू कृपा रोलित, सब ठीक ठाक है जालो(म्यूजिक-जय भगवती देवी नमोः वर दे)(3) अलख निरंजन-2हाथ की दमड़ी, गोइ की धोलि धार सब वन्द है गैछ,लै जा, जा, पै, तीन धड़ी का अन्दर देखेलिये- सब ठीक हुची ने हुनो।

 

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