भिटौली का अभिप्राय बहन से भेंट कर आना होता है, इस भेंट में मायके वाले, पहले पिता इसे लेकर लड़की के घर जाते हैं। पिता की मृत्यु के बाद भाई इस कार्य को निभाते हैं। यह प्रथा इसलिये भी शुरु हुई होगी कि पहले आवागमन के सुगम साधन नहीं थे और ना ही मायके जाने की छूट, लड़की किसी शादी ब्याह में ही मायके जा पाती थी तो अपनी लड़की से मिलने का और उसको भेंट देने के लिये यह त्यौहार बनाया गया होगा।
शादी के बाद की पहली भिटौली शादी के समय ही दी जाती है और उसके बाद जो चैत का महीना होता है, उसे काला महीना कहा जाता है और लड़की उस महीने अपने मायके में ही रहती है। पहले वर्ष की भिटौली वैशाख में दी जाती है, फिर प्रति वर्ष चैत के माह में।
इसमें एक तथ्य और है कि जब तक किसी महिला को भिटौली नहीं मिलती तब तक उस महिला के सामने महीने का नाम नहीं लिया जाता, इसे अपशगुन माना जाता है, ऎसा होने पर वह महिला अपने पहने कपड़े फाड़ देती है, ताकि उसका भाई जीवित रहे।