Author Topic: Bikhoti Mela Dwarahat,Uttarakhand- बिखोती मेला, द्वाराहाट उत्तराखंड  (Read 40709 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Dwarahat is a very famous place in Uttarakhand which comes in  District Almora Uttarakhand. Every year on Baisakhi a big fiar held in Dwarahat.

 बैशाखी भारत के सभी राज्यों में अलग अलग नाम से मनाई जाती है| हमारे उत्तराखंड में बैशाखी "बिखोती" के नाम से जानी जाती है| उत्तराखंड में हर एक संक्रांति को कोई मेला या त्यौहार होता है| बैशाख के महीने की संक्रांति को बिश्वत  संकरान्ति के नाम से जाना जाता है| इस दिन कुमाऊ में स्याल्दे  बिखोती का मेला लगता है| वैसे तो बिखोती को संगमों पर नहाने का भी रिवाज है| लोग बागेश्वर, जागेश्वर आदि संगमों पर नहाने जाते हैं| इस दिन इन संगमों पर भी अच्छा खासा मेला लग जाता है| इस दिन तिलों से नहाने का भी रिवाज है| तिल पवित्र होते हैं और हवन यज्ञ में प्रयोग होते हैं| कहते हैं कि साल भर में जो विष हमारे शरीर में जमा हुआ होता है इस दिन तिलों से नहाने पर वह विष झड जाता है|


 इस मेले में भोट,नेपाल आदि जगहों से भी लोग आते हैं| यह मेला ब्यापारिक दृष्टि से भी काफी मशहूर है| लोगों को यहाँ पर अपनी जरुरत कि चीजों को खरीदने का मौका मिलता

इस मेले में लोगों को अपनी कला का प्रदर्शन दिखने का भी अच्छा मौका मिलता है| नए कलाकार यहाँ आकर अपनी रचनाओं को गा गा कर सुनाते हैं,इस से लोगों का भी मनोरंजन हो जाता है|
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे गोपाल बाबू गोस्वामीका एक मशहूर गाना है “अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे”। इस गाने में एक मेले में गये पति-पत्नी के बीच की नौंक-झौंक है। द्वाराहाट के पास एक जगह है स्याल्दे। य़हां वैसाख माह की पहली तिथि को प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में एक मेला लगता है जिसमें दूर-दूर गावों से लोग आते हैं। इसी मेले का नाम है बिखौती मेला। इसी मेले का वर्णन इस गीत में किया गया है। एक पति-पत्नी इस मेले में आये हुए हैं वहां पत्नी अपनी पुरानी सहेलियों के मिल जाने पर उनसे बातों में मशगूल हो जाती है और पति को लगता है कि वह खो गयी है और उसी को ढूंढते हुए वह यह गीत गाता है। यह गीत भी दो रूपों में मिलता है एक पुराना कैसेट वाला रूप और दूसरा वी. सी.डी. वाला रूप। दोनों गीतों के बोल और नये गीत का वीडियो आपके लिये प्रस्तुत है।
भावार्थ (दोनों का मिला जुला) : अरे इस बिखौती मेले में मेरी दुर्गा कहीं खो गयी है। पूरे मेले में उसे ढूंढते ढूंढते मेरी कमर में दर्द हो गया है। अरे किसी ने उसे देखा है तो बता दो दोस्तो, उसने रंगीला पिछौड़ा पहना था, बूटे वाली घाघरी पहनी थी और मखमल का अंगरखा था कितना हँसमुख तो चेहरा था उसका। ना जाने कहां चली गयी। कैसे तो खिलखिला कर हँसती थी, प्यारी से सुन्दर आँखें थी उसकी और आवाज तो जैसे मोहक बिणाई (एक लोक बाद्य) की प्यारी सी धुन। उसका वो गुलाबी मुँह, काली काली आँखें और गेहूँ की फूली रोटी जैसे फूले गाल, चमकते सुहाने दांत। ना जाने कहां चली गयी। मैने उसे बजार में नीचे से ऊपर सब जगह ढूंढ लिया है, ना जाने कहाँ मर गयी, अब तो मेले वाले सारे लोग भी घर चले गये, सूरज भी छिपने लगा, ना जाने दुर्गा कहाँ चली गयी। उसे लिये बिना मैं अब घर कैसे जाऊँ, आँखों से मेरे आँसू निकल रहे हैं..ना जाने मेरी दुर्गा कहाँ खो गयी। हरदा तुम्हे मजाक सूझ रहा है बतादो ना यार मेरी दुर्गा कहाँ है। बता दो ना…!
पुराने गीत के बोल (देवनागरी में)
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
 सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे, सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
तुमुले देखि छो यारो बते दियो भागी , तुमुले देखि छो यारो बते दियो भागी
 रंगीली पिछोड़ी वीकी बुटली घागेरी, आंगेड़ी मखमली दाज्यू  दुर्गा हरै गे
 मेरी हंसीनी मुखड़ी मेरी दुर्गा हरै गे, मेरी हैंसीनी मुखड़ी मेरी दुर्गा हरै गे
 सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे, सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
खित खित हँसुण वीको, तुर तुरी आँखी, खित खित हँसुण वीको, तुर तुरी आँखी
 बुलाणो रसीला दाज्यू बिणाई जे बाजी, कल कली पाई नाचेछे दुर्गा हरै गे
 मेरी रीतु की आंसूई मेरी दुर्गा हरै गे, मेरी रीतु की आंसूई मेरी दुर्गा हरै गे
 सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे, सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
गीत :
अपना उत्तराखंड में उत्तराखंड से संबंधित गीत केवल उत्तराखंड के संगीत को बढ़ावा देने के लिये हैं। यदि आपको यह पसंद आयें तो निवेदन है कि बाजार से इन्हे सीडी या कैसेट के रूप में खरीद कर उत्तराखंडी संगीत को बढ़ावा दें। हम यथा-संभव सीडी या कैसेट की जानकारी देने का प्रयास करते हैं। यदि आपको इससे संबंधित जानकारी हो तो क़ृपया टिप्पणी में बतायें।
नये गीत के बोल (देवनागरी में)
ए अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
अले म्यार दगाड़ छि यो म्याव में, अले जानी काँ शटिक गे। येल म्यार गाव गाव गाड़ी ह्यालो, मी कॉ ढूढ़ँ इके इतु खूबसूरत छो यो, क्वे शटके ली जालो। क्वे गेवाड़िया या द्वार्हटिया तो म्यार ख्वार फोड़ हो जाल दाज्यू देखो धैं तुमिल कैं देखि ?
अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, हाय सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
 अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, हाय सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
 ये दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे, ये अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
ओ …..दाज्यू तुमले देखि छो यारो बते दियो भागी , तुमले देखि छो यारो बते दियो भागी
 रंगीली पिछोड़ी वीकी बुटली घाघरी, आंगेड़ी मखमली दाज्यू  मेरी दुर्गा हरै गे
 ये सार कोतिक चान मेरी कमरा पटे गे, हाय सार कोतिक चान मेरी कमरा पटे गे
ये अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, द्वारहाटा कौतिका मेरी दुर्गा हरै गे, स्याल्दे का कौतिका मेरी दुर्गा हरै गे
 दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे, हाय दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे
ऐ….. ……………….दुर्गा मी के खाली मै टोकलि,
 गुलाबी मुखड़ी वीकी काई काई आंखि, गुलाबी मुखड़ी वीकी काई काई आंखि
 गालड़ी उगाई जैसी ग्यु की जै फुलुकी, गालड़ी उगाई जैसी ग्यु की जै फुलुकी
 सुकिला चमकाना दांता मेरी दुर्गा हरै गे, हाय सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
 हाय सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
 अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, हाय अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे ,
 दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे, दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे
 अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे, अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
ऐ………….. दाज्यू तलि बजारा मलि बजारा द्वाराहाटा कौतिक में
 तलि बजारा मलि बजारा सार कौतिक में ढूंढ़ई
 हाय दुर्गा तू काँ मर गई पाई गे छे आंखी, हाय दुर्गा….. तू काँ मर गे छे पाई गे छे आंखी
 मेरी दुर्गा हरै गे, हाय सार कौतिका चाने मेरी कमरा पटे गे, हाय सार कौतिका चाने मेरी कमरा पटे गे
 ये अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे,
 ये दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे,ये दुर्गा चान चान मेरी कमरा पटे गे
अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना, अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना
 कौतिक्यारा सब घर नैह गये, धार नैह गो दिना, कौतिक्यारा सब घर  गये, धार नैह गो दिना
 म्येर आंखी भरीण लेगे दाज्यू किले हसणो छ, मेरी दुर्गा हरै गे
 सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
ओ हिरदा सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे, सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
 अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे,अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
 हिरदा दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे , बतै दे दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे

http://www.apnauttarakhand.com/alkate-bikhuati-meri-durga-harey-ge-gopal-babu-goswami/

Regards,

M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Our Senior Member D N Badola Ji has provided this information about Bikhoti Fair.
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Syale-Bikhauti fair of Dwarahat



Dwarahat is a place important from the archaeological point of view. Five Km. from Dwarahat is Vimandeshwar, which is also called Brahmandeshwar is the place for this important Fair. It is hardly 5 Kms. away from Dwarahat, whereas Dwarahat is hardly 37 Kms. from Ranikhet on Ranikhet Karnaprayag Marg.  Every year in the last Gate of Chaitra month, this fair is held at Vimandeshwar in the night. In the Fair Lord Shiva is worshipped. This is called Bikhauti fair. A fair is also held at Dwarahat Bazar, on the first Gate of Vaishakh month. This is called Syalde Fair. Thus both the Fairs combined are called the Syalde Bikhauti Fair. It is also called the Dwrain Fair. The Fairs are held on Ist Gate (14) April Called Chhoti Syalde and Vaisakh 2 and 3 gate (April 15 & 16) called Badi Syalde.

The month of Chaitra is the month of Folk dances People dance throughout the month and they sing the folk songs of Kumaon. Such folk songs, like ‘O Bhina Kaskai janu Durhata” ‘O Brother-in-law (Jija), how to go to Dwarahat fair’. The Fair is ordinarily held at the house of the village Pradhan.



The Syalde-Bikhauti fair has a history which dates back to 14th century. In the 14th century the fair started during the regime of Katyuri Kings. It is said that once two groups started fighting while worshipping Maa Seetala Devi. The defeated Group’ Chief’s head was chopped off by the winners. The head was dumped in the earth. The place where the head was dumped has an Ora (stone) as the remembrance. People throng around the stone called Ora. People come to Ora stone fight from the morning to evening. They hit the Ora (stone) with Dandas.  (Logs).This  is called  Ora Bhaitna. Latter for the sake of convenience the villages were devided in three groups, called Aal, Garakh and Naujyula People come to meet the Ora (stone) from the noon. These three groups come in different attires with Dhol-Nagre, Ransing and Flag (Dhwaja). The Aal group comes from the central street of old Dwartahat market, whereas the Garakh and Naujyula groups come from a different way.  The chief of the different groups ordinarily is a Thokdar.  Since Syalde fare is connected with Sheetla Maa people come to Dwarahat to visit Sheetla Pushkar lake, which has now dried up and is situated at the heart of the city. Once upon a time this was a beautiful Lake and used to be covered by lotus flowers. On the first day of Syalde fair, the Baat pujai  (worshipping ), is done by Naujyuula group. After prayers and worshipping of Seetla Devi the Fair starts and a Bagwal is held.

The fair attracts large crowds. The non-resident Doriyals (residents of Dwarahat) also come to witness the fair. Jhora and Bhagnaul are sung at this occasion, for which artists start coming to Dwarahat. Villagers sing songs of prayer to the gods. The Fair is also called ‘Darre ka Mela’

The specialty of the fair is Jalebi, (Sweet) which is sold in a big way. The Syalde Bikhauti fair has been successful in retaining its old colour and gaity to a large extent. (D.N.Barola)


This is the video of Bikhoti Fair.

SYALDE BIKH0TI FAIR - DWARAHAT.



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