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  • चैत्र नवरात्र प्रारम्भ: April 04, 2011

Author Topic: Chaitra Navratras - चैत्र नवरात्र : नौर्त- मां दुर्गा के नौ रुपों  (Read 66414 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Today is first day of Navratri and shailpurtri is worshiped.


Risky Pathak

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Devbhoomi,Uttarakhand

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"Navratri", dedicated to Goddess Durga is celebrated twice in a year, during the spring and the autumn season.

In Maharashtra, people celebrated the festival of ''Gudi Padwa'', the Hindu New Year, with traditional fervour.

An essential part of ''Gudi Padwa'' is the specially decorated sticks, called "gudis", which symbolise the nature''s bounty.

A huge procession was taken out in Mumbai men, women and children wearing traditional dresses and participating in tableaus. It was organised in a bid to revive the festival, which has been losing some of its charm, owing to the increasing popularity of the Western New Year.

"We are welcoming the Hindu New Year on Gudi Parva with much fanfare and gaiety," said Ajith Bedekar, a resident.

''Gudi Padwa'' is celebrated on the first day of the Chaitra month, and is celebrated as New Year''s Day by Maharashtrians.



It is the same day on which great king Shalivahana defeated Sakas in battle.

This is also first day of Marathi Calendar. This festival is supposed to mark the beginning of spring.


jai mata di

Devbhoomi,Uttarakhand

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Rajen

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JAI MATA KEE.
JAI MATA DI.

Abhishek Mahara

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app sabhi ko Navrataro ki Hardik Badhadiya

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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ya devi sarv bhuteshu, shkti rupen sanshthita,
namah tatse namah tatse, namah tatseh namo namah,

Navratra ki bahut bahut shubh kamanayan,

पंकज सिंह महर

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जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवजी, जय अम्बे गौरी ॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को
मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रबदन नीको
जय अम्बे गौरी ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे
मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे
जय अम्बे गौरी ॥

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी
मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी
जय अम्बे गौरी ॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती
मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति
जय अम्बे गौरी ॥

शम्भु निशुम्भ बिदारे, महिषासुर धाती
मैया महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती
जय अम्बे गौरी ॥

चण्ड मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे
मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भय दूर करे
जय अम्बे गौरी ॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी
जय अम्बे गौरी ॥

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों
मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू
जय अम्बे गौरी ॥

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता
मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता
जय अम्बे गौरी ॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी
जय अम्बे गौरी ॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती
मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती
जय अम्बे गौरी ॥

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे
मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे
जय अम्बे गौरी ॥


बोलो भगवती मैय्या की जय!
दैण होये माता, सब्बु भल करिये॥

Devbhoomi,Uttarakhand

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नवरात्र में रियासत के राजा देते थे रक्त बलि


उत्तरकाशी। टिहरी रिसायत के राजा कभी उज्जवला देवी मंदिर में भैंसे व बकरे की बलि दिया करते थे। वर्ष 1920 में बाड़ाहाट के लोगों के विरोध के बाद राजा को बलि बंद करनी पड़ी। अब मंदिर में श्रीफल की बलि दी जाती है।

गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर उजेली की शुरूआत में ही उज्जवला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है और इसी मंदिर के नाम पर उजेली की स्थापना हुई है।

 उजेली एक बड़े भू-भाग में बसा हुआ है और यहां मात्र साधु ही रहते हैं। 150 साधु इस क्षेत्र में देवताओं की पूजा-अर्चना व उपासना में लीन नजर आते है। उज्जवला देवी मंदिर का इतिहास कुमाऊ नरेश कनक पाल व अजयपाल के समय से मिलता है। श्रीनगर से तब राजा दर्शन के लिए उत्तरकाशी आया करते थे।

28 दिसंबर 1815 में टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने टिहरी को राजधानी बनाया और तब मंदिर की व्यवस्था के लिए डंगवाल पंडितों को मंदिर की जिम्मेदारी सौंपी गई। टिहरी नरेश ने टिहरी रियासत में बलि पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन उज्जवला देवी मंदिर में राजा स्वयं बलि दिया करते थे। राजा के प्रतिनिधि उज्जवला देवी पहुंचकर काली चक्र की पूजा के बाद बलि देते थे।

 मंदिर यज्ञ शाला के पास चक्र वर्तमान में भी मौजूद है। 1920 में बाड़ाहाट के लोगों ने बलि का विरोध किया और विरोध के बाद बलि बंद कर दी गई। बाड़ाहाट के लोग फसल काटने से पहले देवी की पूजा-अर्चना नवा-अन्न अर्पित कर करते थे। वर्तमान में भी कई लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं।
 शक्ति मंदिर के महंत मुरारी लाल भट्ट बताते हैं कि उज्जवला देवी के पूजन और दर्शन से निश्चित तौर पर मनोकामना पूर्ण होती है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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नैनीताल में मां दुर्गा की भव्य शोभा यात्रा निकली

नैनीताल। सर्वजनिन दुर्गा पूजा कमेटी द्वारा आयोजित पांच दिवसीय दुर्गा पूजा महोत्सव का मूर्ति विसर्जन के साथ सोमवार को समापन हुआ। इससे पूर्व नगर में गाजे-बाजे के साथ मां दुर्गा की भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। जिसमें श्रद्धालु भजनों के साथ काफी देर तक झूमते रहे। शोभा यात्रा में काफी संख्या में बंगाली पर्यटक भी शामिल हुए।

महोत्सव के अंतिम दिन मां दुर्गा के मंदिर में प्रात: 9 बजे महादशमी पूजा अर्चना कार्यक्रम आयोजित किया गया। पूजा अर्चना में काफी संख्या में बंगाली पर्यटक भी शामिल हुए। इस दौरान महिला श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे पर जमकर अबीर-गुलाल उड़ेला। अपराह्न डेढ़ बजे मां नयना देवी मंदिर से मां दुर्गा की भव्य शोभा यात्रा निकाली गई। शोभा यात्रा में नगर के विभिन्न स्कूलों के बच्चे भी शामिल हुए।

 छोलिया नर्तक भी शोभा यात्रा में चार चांद लगा रहे थे। शोभा यात्रा में बैण्ड बाजे की धुन के साथ कई श्रद्धालु झूम रहे थे। मां दुर्गा के डोले के साथ श्रद्धालुओं का भारी हुजूम चल रहा था। इस दौरान श्रद्धालु मां के जयकारे का उद्घोष कर रहे थे।

शोभा यात्रा के साथ कुमाऊंनी पारम्परिक वेशभूषा में सजी-धजी महिलाओं का दल भी शामिल था। मां दुर्गा के अलावा कई अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी शोभा यात्रा में साथ चल रही थी।

शोभायात्रा मल्लीताल बाजार होते हुए माल रोड पहुंची। उसके बाद तल्लीताल व नया बाजार में मां दुर्गा के डोले का भ्रमण कराया गया। इसके बाद देर सायं पाषाण देवी मंदिर के समीप मां दुर्गा की प्रतिमा का विधिवत विसर्जन किया गया।

 

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