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Children Lori in Uttarahkandi Language - बच्चो की लोरिया पहाड़ी में ?

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:



गोपाल बाबु गोस्वामी जी यह मार्मिक गाना!  एक पुरुष अपनी छोटी सी बच्ची बहुत रो रही है उसको मन रहा है ! इस बच्ची की माँ कही दूर पहाड़ मे घास काटने गयी है! काफी देर हो गयी रात होनी को है वह महिला अभी घर नहीं पहुची है और यहाँ बच्ची रो राई भूख के मारे! यह व्यक्ति चिंतित भी, देखिये यह गाना और सुनिए  एस्निप्स link से:

नान भौ डाड मारिये वे
वो हीरू घर आ जा ओह
घाम उन्छे गे, पड़ी रुमुक
ओह हीरू घर आ जा वे

चुप -२ है जा मेरी लाडली
छिट घडी मे आली इजुली
म्यर पथील दूध पिलाली
ओह हीरू घर आ जा वे .... २

वन घसियारी घर आगेनी
म्यर सुवा जाण कै रैगेयी
चुप -२ है जा मेरी लाडली
छिट घडी मे आली इजुली

घाम उन्छे गे, पड़ी रुमुक
ओह हीरू घर आ जा वे

उडानी सारी चढ़ पथील
दाई बोटी मे बैठ गये घोला
साझ हैगे नी आयी ईजू
ओह सुवा घर ये जा

नान भौ डाड मारिये वे
वो हीरू घर आ जा ओह
घाम उन्छे गे, पड़ी रुमुक
ओह हीरू घर आ जा वे ...

उखोऊ कुटी पानी ले गयी 
चेली बेटीया बौदी बराई
म्यर सुवा तू किले नी आयी
मन विचल म्यर हेगियो .

नान भौ डाड मारिये वे
वो हीरू घर आ जा ओह
घाम उन्छे गे, पड़ी रुमुक
ओह हीरू घर आ जा वे .
 
बाटा घाटा मे जानी का होली ..२
मेरी  रूपसी मेरी घस्यारी

नानी भौउ कैसे छुपानू
ये भगवाना के धाना कौनू
चेली लछिमा भूख लागी गे
ओह हीरू घर आ जा वे.
नान भौ डाड मारिये वे
वो हीरू घर आ जा ओह
 


Listen the Song Through this link :

http://www.esnips.com/doc/8424b2b4-b2e0-49ad-a302-f1187a803737/Nan-Bhau-bhokhi-raigiyo-5


पंकज सिंह महर:
मैने एक तुकबन्दी वाली मिक्स लोरी बनाई थी, जब मेरी बेटी को मुझे सुलाना होता था-

आ जा निन्नू, आ जा रे,
नानी-नानी जियू हमारी,
सो जाली, ओ हो रे सो जाली।
चन्दा मामा आयेगा,
दही-भात लायेगा,
फिर बच्चा खायेगा
सो जा पोथी सो जा।
बच्चे की मम्मा किचन में,
भाड़-बर्तन धोती है,
जियू पोथी को सुलाने में,
पापा की आफत आती है।

सच मानिये ये लोरी २-३ बार रिपीट होते ही वह सो जाती थी। :D :D

पंकज सिंह महर:
 यह एक लोरी गीत है, जिसे शिशु को घूटनों में लिटाकर झूले की तरह ऊपर-नीचे झुलाते हुये गाया जाता है-

घुघूति-बासूति, क्य खांदी,
दूद-भात्ति, कैल द्याया, जिठ ब्वैला,
जिठ ब्वै कख चा, लारा धूणूक,
लारा कख छन, आगिल जैगि गिन,
आग कख चा, पाणिन मुझि गै,
पाणि कख चा, ढांगल पियाल,
ढांगू कख च, लमडि़ गाया,
त्यारु चुफ्फा, म्यारु पौ,
सरैं ख्यात मा, लड़ै कना औ।

इस लोक बाल गीत मे शिशु के साथ वार्तालाप किया जा रहा है।

पंकज सिंह महर:
एक और बाल गीत

उतलु पुतलु, भलु गिचलु,
चुप ह्वै जालु, म्यारु थुपलु,
आ बिराऊ, आ बिराऊ,
म्यरा थुपुल कि, गिचि चाट,
चुप ह्वै जादि, कुत पुचलु,
भलु च म्यारु, छ्वटु बुबुलू,
आ रे मूसा, आ रे मूसा,
म्यरा चुंचलू की खुट्टि काट,
आ रि कौव्वा, आ रे कौव्वा,
म्यरा कुतलू कु चुफ्फा छांट,
चुचुलू मुतुल कूम्ता, कुंतलु,
चुप ह्वै जालु म्याअरु बछरु॥

हेम पन्त:
मेरी स्वर्गीय दादी जी बच्चों को सुलाने के लिये ये लोरी गाती थी-

नानु-नानु बंशि को बालो - नन्द जी को लाल रे
आओ बाला जमुना में खेलि जाओ ख्याल रे...

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