पशुबलि प्रथा बंद करने का संकल्प
पहाड़ों में बलिप्रथा पर चल रही कशमकश के बीच एक नायाब बदलाव देखने को मिल रहा है। वर्षो से चली आ रही परंपरा को बंद करने के लिए अब ग्रामीण आगे आने लगे हैं। ग्रामीणों का साथ निभाने में पुजारी भी पीछे नहीं हैं। उल्खागढ़ी में तो स्वयं पुजारियों ने बलिप्रथा बंद करने का निर्णय लिया है।
प्रसिद्ध उल्खागढ़ी देवी मंदिर में नवरात्रे पर हर साल बलि देने की प्रथा है। सोमवार को पंचायत भवन में मंदिर के पुजारियों ने एक बैठक की। बैठक में तय किया गया इस बार मंदिर में बलि नहीं होने दी जाएगी। इसकी बजाए सात्विक पूजा होगी। पुजारियों ने जिला प्रशासन से भी मदद मांगी है। पुजारियों ने इस संबंध प्रशासन को पत्र सौंपे पुख्ता सुरक्षा देने का भी आग्रह किया है।
दूसरी ओर डांडा नागराजा मंदिर में भी इस साल से बलि प्रथा बंद कर दी गई है। आसपास के ग्रामीणों ने इस परंपरा को बंद करने का संकल्प लिया है। मंदिर प्रांगण में 13 सितंबर से श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया गया था। सात दिन तक चली कथा में कापड़, लसेरा, वृसणी, बजूण, बगनीखाल, दियूसा, बहेड़ाखाल, तेड़ी, नासैण समेत अन्य गांवों के लोगों ने शिरकत की। इस दौरान ग्रामीणों ने पशुओं की बलि न देने का संकल्प लिया।
Source Dainik jagran