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उत्तराखंड में पशुबलि की प्रथा बंद होनी चाहिए !

हाँ
53 (69.7%)
नहीं
15 (19.7%)
50-50
4 (5.3%)
मालूम नहीं
4 (5.3%)

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Author Topic: Custom of Sacrificing Animals,In Uttarakhand,(उत्तराखंड में पशुबलि की प्रथा)  (Read 60075 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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न देने देंगे पशु बलि न परोसने देंगे शराब
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प्रखंड जखोली के अन्तर्गत ग्राम स्वीली में श्री बदरीश जनोत्थान विकास समिति स्वीली-सेम-कोटली ने देव कार्य में बलि पर पूरी तरह रोक के साथ ही सार्वजनिक कार्यो में शराब परोसने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

ग्राम स्वीली में आयोजित बैठक समिति के अध्यक्ष चैतराम डिमरी की अध्यक्षता में हुई में बैठक में वक्ताओं ने कहा कि गांव में शुभ कार्यो, पितृ कार्यो के अवसर पर शराब परोसने का रिवाज बनता जा रहा है। जिससे सार्वजनिक कार्यो में लड़ाई-झगड़े व वाद-विवाद की स्थिति पैदा हो रही है। इसके साथ कहा गया कि देवी-देवताओं के पूजा कार्यक्रमों में भी बलि प्रथाएं जैसी कुरीतियां प्रचलित है।

बैठक में निर्णय लिया गया कि ग्राम स्वीली-सेम-कोटली में संपन्न होने वाले किसी भी शुभ कार्य जैसे विवाह संस्कार, जन्म दिवस, सगाई, नामकरण चूड़ाकर्म आदि समारोह इसके साथ ही पितृ कार्य, देवी-देवताओं की पूजा अर्चना के अवसर पर गांव का कोई भी परिवार शराब नही पिलाएगा।

यदि इन अवसरों पर कोई भी परिवार किसी को शराब पिलाएगा तो उसके विरूद्ध कार्यवाही कर परिवार के मुखिया से ढ़ाई हजार रुपए का जुर्माना वसूला जाएगा। अर्थ दंड जमा ने करने पर संबंधित परिवार को सामाजिक कार्यो में प्रतिभाग करने पर रोक लगा दी जाएगी। देव पूजाओं में भी बलि प्रथा पर रोक लगा दी गई है।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8472832.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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पशु बलि पर हुई भाषण स्पर्धा में वीरेंद्र फ‌र्स्ट
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पौड़ी गढ़वाल : बूंखाल में पशु बलि जागरूकता को लेकर राइंका चौरीखाल में हुई भाषण स्पर्धा में राइंका चाकीसैण के वीरेन्द्र प्रथम, राइंका पैठाणी के कमल सिंह द्वितीय व राइंका चाकीसैण के ही शेर सिंह तृतीय स्थान पर रहे। विजेताओं को उप जिलाधिकारी एचएस मार्तोलिया ने पुरस्कार वितरित किए।


बूंखाल पशुबलि मेला 26 नवंबर को आयोजित होगा। मेले से पहले पशुबलि के विरोध में जन जागरूकता कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। सोमवार को राजकीय इंटर कालेज चौरीखाल में छात्रों के बीच भाषण स्पर्धा आयोजित की गई। भाषण स्पर्धा में पुष्पा रतूड़ी, सुमन चौहान, रचना, संदीप रतूड़ी को सांत्वना पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।

 उप जिलाधिकारी एचएस मर्तोलिया ने छात्रों को पुरस्कार वितरित करने के साथ ही क्षेत्र की जनता से अपील की कि निरीह पशुओं को देवी के नाम पर कत्ल करना कतई उचित नहीं है। गब्बर सिंह राणा सत्यवर्ती ने कहा कि पशु बलि कुप्रथा है और इस प्रथा को आधुनिक दौर में बंद करना जरूरी है। पुरस्कार सुकमाल चंद जैन के सहयोग से वितरित किए गए।


Dainik Jagran

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पशु बलि रोकने के लिए प्रशासन की कवायद तेज
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बूंखाल मेले में पशु बलि रोकने के लिए प्रशासन ने कवायद तेज कर दी है। प्रशासन की ओर से गांव-गांव भ्रमण करके लोगों तक पशु बलि न करने का अनुरोध किया जा रहा है। प्रशासन का दावा है कि कुछ गांव के लोगों ने पशु बलि न देने का संकल्प लिया है।

आगामी 26 नवंबर को तहसील थलीसैण के तहत बूंखाल कालिंका मंदिर में बूंखाल मेला है, जिसमें बीते कई सालों से हजारों नर भैंसों व बकरों की बलि दी जाती रही है। प्रशासन व स्थानीय संस्थाओं की ओर से बलि रोकने संबंधी मुहिम चलाई जा रही है।

प्रशासन ने इस बार पुश बलि रोकने के लिए कमर कस ली है। जिलाधिकारी एमसी उप्रेती ने पत्रकारों को बताया कि इस बार पशु बलि रोकने के लिए प्रशासन की ओर से गांव-गांव तक संदेश पहुंचाया गया है।


प्रशासन का कहना है कि मलुंड, नलई, गोदा, मथिगांव, नौगांव व चोपड़ा के ग्रामीण बलि बंद करने के लिए तैयार हो गए हैं और इस बार बूंखाल में बलि बंद हो जाएगी। डीएम ने बताया कि 25 नवंबर को बूंखाल मंदिर समिति सात्विक यज्ञ करेगी। इस यज्ञ में स्थानीय लोगों की भी हिस्सेदारी होगी।


उल्खागढ़ी को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि भट्टी गांव के लोग उल्खागढ़ी में बलि करते थे और इस बार वे बूंखाल के गांवों में प्रचार प्रसार अभियान में जुटे हैं।

 प्रचार-प्रसार समिति में घनश्याम पंत, सुखराम पंत, पवन, यशराम, कैलाश, सूरज मणि समेत अन्य लोग शामिल रहे। जिलाधिकारी ने बताया कि बूंखाल में बलि रोकने की दिशा में पूर्व सैनिक भी आगे आए हैं और इससे बलि रुकने की संभावनाएं और अधिक बढ़ गई है।

Source Dainik jagran

Anil Arya / अनिल आर्य

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रक्तहीन ‘क्रांति’
बदली ं
समय के साथ सोच भी बदली और ठहर गई बलि देने की परंपरा। 500 सालों से मन्नत पूरी होने पर लोग बलि देते रहे हैं, लेकिन शनिवार को उसी बुंखाल मेले में एक बूंद भी रक्त नहीं बहा।
परंपराएं
इतिहास में पहली बार बिना पशुबलि के संपन्न हो गया बुंखाल मेला
अमर उजाला ब्यूरो
पौड़ी। लोगों की सोच बदली तो बुंखाल मेले में परंपरा ही बदल गई। पशुबलि के लिए विख्यात इस मेले में शनिवार को ऐसा पहली बार हुआ कि बुंखाल की धरती निरीह पशुओं के खून से लाल नहीं हुई। एक भी पशु की बलि नहीं दिए जाने से बुंखाल में हुई इस रक्तहीन क्रांति का श्रेय लोगों, प्रशासन और कई सामाजिक संगठनों को जाता है, जिन्होंने अपनी मेहनत से नया इतिहास बना दिया।
मां कालिंका बुंखाल राठ क्षेत्र के लोगों की आराध्य देवी हैं। चौरीखाल से करीब 250 सौ मीटर दूर मां कालिंका बुंखाल के मंदिर में शनिवार को सुबह से देवी के दर्शन के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ना शुरू हो गया। चौरीखाल से लेकर मंदिर परिसर तक कौथिगेरों और भक्तों की भारी भीड़ थी। लेकिन इस बार मेले का स्वरूप बदला हुआ था। मंदिर परिसर में न तो बलि देने के लिए बकरे नजर आए और न ही लोग पशुबलि के लिए ढोल नगाड़ों के साथ बागी (नर भैंसे) लाते दिखे। मेले में हर साल सौ से अधिक बागी व सैकड़ों बकरों की बलि दी जाती थी लेकिन इस बार एक भी बलि नहीं दी गई और खमोश तरीके से एक रक्तहीन क्रांति हो गई।
विभिन्न स्थानों पर बनाए गए बैरियरों पर प्रशासन ने बलि देने के लिए लाए जा रहे दर्जन भर से अधिक बागियों को कब्जे में लिया है। सैकड़ों बकरों को भी लौटा दिया गया। - एमसी उपे्रती, जिलाधिकारी, पौड़ी

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बलि रोकने को आगे आए ग्रामीण
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बूंखाल मेले में बलि प्रथा बंद करने के ग्रामीणों के एतिहासिक कदम के बाद चमोली जिले के गणाई गांव में भी ऐसा ही प्रयास किया जा रहा है। गांव में शुक्रवार को 64 साल बाद एक अनुष्ठान आयोजित किया जा रहा है। पशु बलि रोकने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रशासन के अधिकारी ग्रामीणों से बातचीत कर रहे हैं। प्रशासन के अनुसार ग्रामीणों उन्हें इस बारे में सकारात्मक आश्वासन दिया है। दूसरी ओर प्रशासन ने पूजा स्थल पर निषेधाज्ञा लगा दी है और एहतियातन पुलिस बल भी तैनात किया है।

जोशीमठ तहसील के गंणाई गांव में 64 साल बाद चंडिका भगवती के मंदिर में पूजा अनुष्ठान आयोजित हो रहा है। आयोजन से एक दिन पूर्व शुक्रवार की रात्रि को अष्टबलि अनुष्ठान होना है। वहीं शनिवार को 64 पशुओं की बलि दी जानी है।

आयोजन की भनक लगते ही प्रशासन ने गांव में तहसीलदार एमएस भंडारी, नायब तहसीलदार जगदीश रावत के नेतृत्व में दो दरोगा व तीस पुलिस कर्मी तैनाती कर दिए हैं। जिला पंचायत अध्यक्ष विजया रावत के मध्यस्थता में अनुष्ठान आयोजकों से वार्ता भी चल रही है। वार्ता में ग्राम प्रधान गंणाई रुकमणि देवी, पूर्व प्रधान जमन फस्र्वाण, प्रताप सिंह आदि शामिल थे। प्रशासन ने ग्रामीणों से लिखित में पशुबलि न करने के लिए लिया है।

क्या कहते हैं अधिकारी

पशुबलि रोकने के लिए प्रशासन सतर्क है। इसके लिए पर्याप्त इंतजाम किये गये हैं। गांव में फोर्स तैनात की गयी है।

डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा , जिलाधिकारी चमोली

गंणाई गांव के लोगों की ओर से पशुबलि न किये जाने के लिए प्रशासन को दिया गया लिखित आश्वासन सराहनीय कदम है।

जेपी मैठाणी ,अध्यक्ष पीपुल फॉर एनीमल्स एंड वाइल्डलाइफ ट्रस्ट सोसायटी चमोली

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8569383.html

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ग्रामीणों ने पशुबलि न देने का लिया निर्णय
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भरपूर पट्टी में पशुबलि के खिलाफ उठी आवाज को समाजसेवी गब्बर सिंह राणा सत्यवर्ती ने शुभ संकेत बताया है। दनाड़ा गांव में 24 दिसंबर से दो जनवरी तक आयोजित होने वाली मेले में अठवाड़ में गांववासियों ने पहली बार अष्टबलि न करने का निर्णय लिया है।

रविवार को युवा ग्राम प्राधान हर्षपाल ने बताया कि दनाड़ा मे करीब 14 वर्ष पूर्व आयोजित अठवाड़ में पशुओं की बली दी गई थी। इस बार गांव के युवा गुलाब सिंह तड़ियाल, अरविंद रावत, कुवंर सिंह, प्रेमसिंह, धनसिंह चौहान आदि ने नौ दिवसीय नव दुर्गा पूजन में किसी भी तरह पशुबलि न देने का संकल्प लिया है। दनाड़ा के बुजुगरें में इसे लेकर खासा विरोध बना है। कई बैठकों के बाद बुजुर्गो अठवाड़ में पशुओं की बली न देने पर तैयार हो गए हैं।


 90 वर्षीय टेकसिंह रावत ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। युवा पुरोहित पंडित विनायक पंत क्षेत्रीय पशुबलि के बजाय श्रीफल से गांव की दिशा बंधन पूजा करने पर सहमति जताई।


 अठवाड़ की नई धार्मिक रीति से मनाने पर सहमति के बाद 25 दिसंबर को दनाड़ा से 14 किमी दूर देवप्रयाग के पवित्र संगम पर दुर्गा माता क डोली ढोल नगाड़ों के साथ स्नान के लिए लाई गई।

यहां से श्रीरघुनाथ मंदिर के दर्शन व पूजन के बाद गांव को रवाना हुई। जिला पंचायत सदस्य कृष्णपाल कोटियाल ने दनाड़ा गावं वासियों की ओर से अठवाड़ में पशुबलि न करने का स्वागत किया। साथ ही सरकार से इस अभियान से जुड़े लोगों को सम्मानित करने को कहा।



Source Dainik Jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This is a welcome step by the villagers of Dev Prayag.

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  ग्रामीणों ने पशुबलि न  देने का लिया निर्णय        Dec 25, 06:24 pm    बताएं                देवप्रयाग, निज प्रतिनिधि: भरपूर पट्टी में पशुबलि के खिलाफ उठी आवाज को समाजसेवी गब्बर सिंह राणा सत्यवर्ती ने शुभ संकेत बताया है। दनाड़ा गांव में 24 दिसंबर से दो जनवरी तक आयोजित होने वाली मेले में अठवाड़ में गांववासियों ने पहली बार अष्टबलि न करने का निर्णय लिया है।
रविवार को युवा ग्राम प्राधान हर्षपाल ने बताया कि दनाड़ा मे करीब 14 वर्ष पूर्व आयोजित अठवाड़ में पशुओं की बली दी गई थी। इस बार गांव के युवा गुलाब सिंह तड़ियाल, अरविंद रावत, कुवंर सिंह, प्रेमसिंह, धनसिंह चौहान आदि ने नौ दिवसीय नव दुर्गा पूजन में किसी भी तरह पशुबलि न देने का संकल्प लिया है। दनाड़ा के बुजुगरें में इसे लेकर खासा विरोध बना है। कई बैठकों के बाद बुजुर्गो अठवाड़ में पशुओं की बली न देने पर तैयार हो गए हैं। 90 वर्षीय टेकसिंह रावत ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। युवा पुरोहित पंडित विनायक पंत क्षेत्रीय पशुबलि के बजाय श्रीफल से गांव की दिशा बंधन पूजा करने पर सहमति जताई। अठवाड़ की नई धार्मिक रीति से मनाने पर सहमति के बाद 25 दिसंबर को दनाड़ा से 14 किमी दूर देवप्रयाग के पवित्र संगम पर दुर्गा माता क डोली ढोल नगाड़ों के साथ स्नान के लिए लाई गई। यहां से श्रीरघुनाथ मंदिर के दर्शन व पूजन के बाद गांव को रवाना हुई। जिला पंचायत सदस्य कृष्णपाल कोटियाल ने दनाड़ा गावं वासियों की ओर से अठवाड़ में पशुबलि न करने का स्वागत किया। साथ ही सरकार से इस अभियान से जुड़े लोगों को सम्मानित करने को कहा।
(Source Dainik Jagran)
      

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जखोली ब्लॉक के पाल्याकुराली गांव में बीस वर्ष से बलि प्रथा के बदले हर दो वर्ष के अंतराल में नृसिंह यज्ञ आयोजन किया जता है। इस बार यह यज्ञ रविवार से शुरू किया जा रहा है। इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है।

 
सामाजिक कार्यकर्ता एवं यज्ञ समिति के सदस्य गुलाब सिंह राणा ने बताया कि ग्राम सभा पाल्याकुराली में नब्बे के दशक तक नृसिंह के मंदिर में पशुबलि होती थी, लेकिन इसके बाद से ग्रामीणों ने पशुबलि के बदले हर दो वर्ष में नृसिंह यज्ञ का आयोजन करने का निर्णय लिया।


इस बार यह यज्ञ रविवार से शुरू हो रहा है। इसको लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई है। उन्होंने बताया कि पांच दिवसीय इस यज्ञ में सात ब्राह्मण पूजा-अर्चना करेंगे।

मोहन जोशी

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पशु बलि हमर पहार मैं भोत ठुली कुपर्था छु जेके ख़तम करण भोत जरुरी छा  तौ पसुबली करण हमारी पच्यान आदिवासीं मैं हु आज दुनी का का पूज गे मगर हामी तौ बेजुबान परानी पर अत्याचार कब जलेक करुल


कवे ले इस्ट भगवन बलि डिबर खुस न हये सगन सब हमर मानक भेम छु जीवन दिनी वाल जीवन न ली स्कन.

 

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