सीमांत गांव माणा में भी पशुबलि का अंत
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संवाद सहयोगी, बदरीनाथ: भारत-तिब्बत बार्डर से लगे देश के आखिरी गांव माणा गांव में सदियों से चली आ रही पशुबलि प्रथा का बुधवार को अंत हो गया है। माणा में आयोजित तीन दिवसीय अठ्वाड़ मेले में बकरों की बलि के स्थान पर ग्रामीणों ने घर में हलवे का प्रसाद बनाकर घंटाकर्ण देवता को श्रीफल अर्पित कर पूजा अर्चना की। यह मेला तीन दिनों तक चलेगा। मेले में बदरीनाथ के स्थानीय निवासियों के साथ बदरीनाथ पहुंचने वाले यात्री भी शामिल हो रहे हैं।
माणा गांव में प्रत्येक 12 वर्ष में घंटाकर्ण देवता के मंदिर में अठ्वाड़ मेला होता है। यह मेला सदियों से चला आ रहा है। मेले में ग्रामीण आठ बकरों की बलि देते थे, लेकिन इस बार इस मेले में बकरे की जगह हलवे का प्रसाद व श्रीफल चढ़ाकर घंटाकर्ण देवता की सात्विक पूजा हो रही है। इस पूजा आयोजन से जुड़े लोगों की पहल पर इस बार सात्विक पूजा का निर्णय ग्रामीणों ने लिया था। बुधवार को घंटाकर्ण मंदिर माणा में घंटाकर्ण के पश्वा गंगा सिंह बिष्ट ने पूजा अर्चना की। उसके बाद घर घर में बनाया गया हलवे का प्रसाद, श्रीफल व अन्य फल ग्रामीणों ने घंटाकर्ण देवता को चढ़ाए। दिनभर पूजा अर्चना के बाद सांय को भजन कीर्तन का आयोजन किया गया। तीन दिनों तक चलने वाला यह मेला 29 अगस्त को ब्रह्मभोज के साथ संपन्न होगा। इस मेले में माणा के ग्रामीणों के अलावा बदरीनाथवासी व बदरीनाथ पहुंचने वाले तीर्थयात्री भी सिरकत कर घंटाकर्ण देवता की पूजा अर्चना व भजन कीर्तन में शामिल हो रहे हैं। मेले के शुभारंभ अवसर पर प्रधान पंकज बड़वाल, पूर्व प्रधान राम सिंह कंडारी, पीतांबर मोलफा, जिला पंचायत सदस्य उषा बिष्ट, देवेश्वरी देवी, बहादुर सिंह मोलफा आदि ग्रामीण शामिल थे। sabhar Amar ujala