भारतीय समाज एक आदर्श एवं अति सभ्य समाज के रूप मैं जाना जाता है, जहाँ पर माँ-बाप, भाई-बहिन एवं पड़ोशी को भगवान जैसा सम्मान दिया जाता है, यहाँ तक की जानवरों की भी पूजा की जाती है, आस्था भारतीय समाज का एक आधार रही है, चाहे वह राजा महाराजो का समय हो या फिर आज का युग. आस्था सब पर सदा से भारी रही है, इसी समाज में आस्था के चलते उत्तराखंड के चम्पावत जिले के देवीधुरा तथा गढ़वाल में बुखाल नामक स्थानों पर रक्षाबंधन के समय तथा उसके बाद बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें आस्था से लवरेज लोगो का हुजूम उमड़ता है साथ ही आस्था के नाम पर इन स्थानों में बेजुबान पशुओ की पशुबलि देने का रिवाज है, ये वही पशु होते है जिनके दूध, दही घी को हम अपने स्वास्थ्य के निर्माण हेतु प्रयोग में लाते है, आस्था हम पर ऐसी भारी पड़ती है कि हम इन बेजुबान पशुओं को अपने स्वार्थ पूर्ती हेतु भगवान के मंदिर में बलि चढाने से भी नहीं कतराते. यही नहीं इससे पहले जानवरों के साथ बहुत ही क्रूर व्यव्हार किया जाता है, जानवरों को बलि चढाने के लिए मंदिर स्थल में लाने से पहले लाठी डंडो से काफी पीटा जाता है (सुने हुए किस्सों के आधार पर) कि वे मंदिर स्थल तक पहुचने से पहले ही निष्प्राण हो जाते है, इसी भारत में कुछ जातियां गायों को माता कहकर पुकारती है तथा अपनी शुद्धि के लिए गौमूत्र का इस्तेमाल करती है, सरकार के द्वारा भी इन पशुओ के मल-मूत्र आदि से विभिन्न प्रकार कि दवाइयां बनाने का अस्वासन दे चुकी है यहाँ तक कि इस स्तर पर कार्य भी शुरू हो चुका है, लेकिन इस प्रकार के मेले (देवीधुरा तथा बुखाल) को रोकने में सरकार नाकाम रही है, ओ इसलिए ताकि इन राजनीतिज्ञों पर देवी माँ या भगवान का कोई प्रकोप न पड़े जाये. केंद्र में बैठी सरकार कहती है कि 2015 तक देश को विकशित देशों कि श्रेणी में लाकर खड़ा करेंगे, जो मुझे काफी असंभव दिखता है, भारत को विकशित देश बनने में अभी काफी वक़्त लगने वाला है, क्यूंकि (देवीधुरा तथा बुखाल) मेला तो विश्वप्रसिद्द है लेकिन इस प्रकार से पता नहीं कितनी जगहों पर और कितने जानवरों कि बलि दी जाती होगी. अगर यह सिलसिला इसी तरह से चलता रहा तो भारत में देवभूमि के नाम से प्रसिद्द ये उत्तराखंड राक्षशों कि भूमि कहलायेगा क्योकि पुराणों मे राक्षशों के नाम पर ही ऐसे क्रत्यों को लिखा, पड़ा और सुना गया है, इस सम्बन्ध में जब तक कोई समाज सुधारक, कोई स्वयं सेवी संगठन या हमारी सरकार कोई पहल नहीं करेगी इन बेजुबान पशुओं कि इसी तरह से निर्मम हत्या होती रहेगी और पवित्र देव भूमि अपवित्र होती रहेगी, ओ दिन दूर नहीं होंगे जब फिर महिषासुर जैसे दानवों का जन्म इस भूमि पर होगा क्योकि गिद्ध वही जाते है जहा जानवर मरे होते है, जहा खाना होता है असुरों का खाना परोशकर हम असुरों को दावत दे रहे है, जब जानवर खत्म हो जायेगे तब हमारी बारी होगी ये सुनने में अजीब लगता होगा. लेकिन ओ दिन दूर नहीं ...........