Author Topic: Delicious Recepies Of Uttarakhand - उत्तराखंड के पकवान  (Read 179872 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kafuli

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shruti
This is a thick gravy made with leafy green vegetables such as spinach.
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Directions
GETTING READY
1.   Wash spinach and methi leaves well. Then boil them along with green chilies and some water. Allow to cool and blend till smooth.
MAKING
2.   Heat oil in a kadai, add asafetida and cumin seeds, allow to splutter. Then add ginger and garlic and fry till golden brown.
3.   Add vegetable puree, turmeric powder and coriander powder. Also add the rice paste and water. Bring to a boil.
4.   Cook by simmering on low flame for 10 minutes. If curry becomes dry, add some water. The consistency should be of a thick gravy.
SERVING
5.   Garnish with ghee and serve with rice.

Recipe Summary

Cuisine: UttarakhandCourse: Side DishTaste: SavoryFeel: SmoothMethod: SimmeringDish: CurryRestriction: VegetarianIngredient: SpinachInterest: Everyday

Read more at http://ifood.tv/indian/460330-kafuli#IXKo3lQP0U3ub3fr.99


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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kaapa

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shruti
Kaapa is a thick spinach gravy. This nutritious and tasty dish may alternately be prepared with other green vegetables too.
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Ingredients
 
Spinach   500 Gram
 
Rice flour   1⁄2 Cup (8 tbs)
 
Cumin seeds   1⁄2 Teaspoon
 
Turmeric powder   1⁄2 Teaspoon
 
Red chili powder   1⁄4 Teaspoon
 
Red chilies   2 Medium
 
Salt   To Taste
 
Water   6 Cup (96 tbs)
Directions
MAKING
1.   Wash spinach well and chop roughly.
2.   Heat oil in a kadai and add cumin seeds and whole red chillies.
3.   Allow spices to fry and then add chopped spinach.
4.   Add turmeric powder, salt and red chilli powder and cook by covering for 10 minutes.
5.   Then add rice flour mixed with water to make a thick consistency.
6.   Allow to simmer for few minutes.
SERVING
7.   Serve hot with rice or roti.

Recipe Summary

Cuisine: UttarakhandCourse: Side DishMethod: SimmeringDish: CurryRestriction: VegetarianIngredient: SpinachInterest: Everyday
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Nutrition Rank
Serving size: Complete recipe
Calories 428 Calories from Fat 36
% Daily Value*
Total Fat 4 g6.5%
Saturated Fat 0.76 g3.8%
Trans Fat 0 g
Cholesterol 0 mg
Sodium 796.1 mg33.2%
Total Carbohydrates 85 g28.3%
Dietary Fiber 14.6 g58.3%
Sugars 4.4 g
Protein 20 g40.8%
Vitamin A 946.8%  Vitamin C 332.8%
Calcium 53.6%  Iron 94%
*Based on a 2000 Calorie diet

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Bhishma Kukreti

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  उत्तराखंड  परिपेक्ष में   घंडुगळी/गरुंडी   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of Joyweed,  Alternathera sessilis Himalayan   in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 31

                                     History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -                       
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   71

                     History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -
-
      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Alternathera sessilis
सामन्य अंग्रेजी नाम - Sessile Joyweed
आयुर्वेदा नाम-मतस्याक्षी
सिद्ध नाम -पोन्नोकाणी
हिंदी नाम - Garundi , gurro गरूण्डी
नेपाली नाम -भिरिंगी झार
उत्तराखंडी नाम -घंडुग्ली , घंडुगळी , Ghandugli
जन्मस्थल संबंधी सूचना - चूँकि घुंडगळी  Alternathera sessilis  आदि के सबसे अधिक विविध रूप दक्षिण अमेरिका में मिलते हैं तो वनस्पति शास्त्री अनुमान लगाते हैं कि शायद दक्षिण अमेरिका ही
घुंडगळी  Alternathera sessilis का जन्मस्थल हो।  Sanschez  del Pinto (2012 )   के अनुसार गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessilis का जन्मस्थल लैटिन अमेरिका ही है और वहां से यह पौधा पुराने गोलार्ध में फैला।  डा गुप्ता अनुसार गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessilis के जन्मस्थल के बारे में अभी तक ठीक जानकारी नहीं मिल सकी है। फिर गुप्ता (2014  ) में सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessili  स्थल प्रशांत महासगरीय किसी द्वीप में हुआ होगा।  चीनी वनस्पति शास्त्री  Fun  आदि (2013 ) ने माना कि गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessilis चीन , व  दक्षिण एशिया होना चाहिए।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - चरक (1000  BC , सी पी खरे की पुस्तक ) ने सारे पौधे को बुद्धि , स्मरणः शक्ति , बाह्य सुंदरता वृद्धि हेतु हिदयात दी है।  भावप्रकाश  (16 वीं सदी ) में  गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessili को कोढ़ , रक्तशुद्धि हेतु प्रयोग की हिदायत दी गयी है ।  भावप्रकाश में मत्स्यशाका     Alternathera sessilis व Ethyndra fluctuans  को एक ही  माना गया  है
   चीन के पास होने व आयुर्वेदिक औषधि होने से अंदाज लगाया जा सकता है कि उत्तराखंड में यह पौधा 3000 साल  से किसी  ना किसी रूप में प्रयोग होता रहा होगा।
 
हल्के गुलाबी रंग की टहनी वाले गरूण्डी , घुंडगळी  Alternathera sessilis जमीन में पसरने वाली लता है जो पानी के किनारे भूमि व दलदल में ही उगती है और अनाज के खरपतवार के रूप में उगता है।  वास्तव में यह फल हेतु हानिकारक है।
              औषधि उपयोग -
 आँखों के विकार  नष्टीकरण , रक्त उल्टी रोकने, उत्पादन शीलता बढ़ाने , फोड़े आदि के उपचार में काम आती है।

सब्जी उपयोग
डा जे के तिवारी आदि ने लिखा है कि यह पौधा सब्जी पकाने के काम आता है ( जॉर्नल ऑफ अमेरिकन साइंस , 2010 )
      सब्जी बनाने का तरीका
धूली  व कटी पत्तियां - दो  कप या आवश्यकतानुसार
उबली उड़द या  अरहर या  गहथ - दो चमच
हरी  मिर्च कटी, लम्बाई में -चार
आधा कटा प्याज - आधा घन इंच
अदरक - पिसा हुआ
लहसून - दो जखेलि पिसा
हल्दी व धनिया पॉउडर मसाले - एक या  डेढ़ चमच स्वादानुसार
काली मिर्च - एक पीसी हुयी
कटा धनिया
  कढ़ाई में सरसों का तेल गरम कर राई  या जख्या का तड़का डालें , तड़कने दें , वैसे सफेद दली उड़द के बीज भी तड़के में इस्तेमाल किये जा सकते हैं। उड़द बीज भूरे हो जायँ तो अदरक , लहसून डालें भूने  और तब प्याज डालें। कुछ देर बाद मसाले  डाल कर करछी घुमाते रहिये।  जब प्याज पारदर्शी हो जायं तो कटे घुंडगळी दाल साथ में डालें व तीन मिनट तक पकाएं। फिर पकी सूखी दाल डालें।  मिनट तक पकने दें।  हिलाते रहिये।  तरी बनानी है तो पकी दाल का पानी डालें।
 फिर कटा धनिया डालकर उतार दें व ढक्क्न से  तीन मिनट तक ढके रहिये। गरमागरम परोसिये रोटी या चावल के साथ। 
 


 



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 ( उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


Bhishma Kukreti

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        उत्तराखंड  परिपेक्ष में   मकोई , मकोय   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Black Nightshade   in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 32

        History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand - 32                       
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   73

                     History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -73
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Solanum nigrum
सामन्य अंग्रेजी नाम -Black Nightshade
संस्कृत नाम - ध्वांक्क्षमाची , काकामाची
हिंदी नाम -मोकोय
नेपाली नाम -जंगली बिही
उत्तराखंडी नाम -मकोई , मकोय
 मकोई एक वार्षिक शाखीय पौधा है जिसकी लम्बाई 60 सेंटीमीटर तक  है और खड़ा मिलता है। पत्तियां अंडाकार किन्तु कोने तीखे होते हैं। फल शुरू में हरे ,  हैं जो पककर नारंगी या काले हो जाते हैं।  वास्तव में मकोई एक खर पतवार है जो पानी के नजदीक, छाया व फसल के साथ उगता है।  फसल को नुक्सान पंहुचाने वाला खर पतवार माना जाता है।
                   ---जन्मस्थल संबंधी सूचना -
मकोई प्राकृतिक रूप से   उत्तरी -पश्चिम अफ्रिका , यूरेसिया -तुर्की आदि , चीन व हिमालय माना जाता है। आज यह सब जगह पाया है।  मिड्टेरियन को भी इसका जन्मस्थल माना जाता है। । प्राचीन ब्रिटेन के प्रागैतिहासिक मलवे में मकोई के बीज कोयला मिलने से भी सिद्ध होता है मकोई पुराना पौधा है। एडवार्ड सैलिसबरी का मानना है ब्रिटेन में यह पौधा निओलिथिक कल से भी पहले पाया था। चरक संहिता में मकोई / काकामाची का उल्लेख सब्जी व दवा हेतु हुआ है (जी  . सी चक्रवर्ती , 1896 ) . भावप्रकाश (सोलहवीं सदी ) में भी मकोई का उल्लेख मिलता है . सिद्ध साहित्य में मकोई को मन्नत्ताक्काली कहा  गया है। सी पी खरे अनुसार सुश्रुता ने मकोई को सुरासादी वर्ग में रखा है।
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                        ---आयुर्वेद में प्रयोग
मकोई त्वचा रोग अवरोधक, पेचिस अवरोधक है।  मकोई में कैल्सियम , फोस्फोर व विटामिन A होता है , पत्तियों व डंठल रस अल्सर व अन्य पेट की बीमारी में उपयोग होता है। फल स्वास , भूख बढ़ाने , मूत्र बढ़ाने , पेचिस रोकने , आँख बीमारी में उपयोग होते हैं।
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      ---भोजन रूप में गलत फहमी -
 मकोई की तरह एक पौधा Atropa belladonna  (Deadly  Nightshade ) वातव में विषैला होता है किन्तु गलतफहमी में मकोई को भी विषैला मान लिया जाता है।
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         -------मकोई की पत्तियों की सब्जी भोजन विधि ---
   सामग्री
कटी या साबुत पत्तियां -  आवश्यकतानुसार जैसे दो बड़े कप (पत्तियों को तने  से अलग कर पानी में छोड़ दें जिससे मिटटी आदि नीचे बैठ जाय , फिर दो  धो कर पानी निथार दें )
मूंग दाल - दो चमच (वैकल्पिक  )
झंगोरा या चावल या गहथ - भिगोकर पिसा  हुआ पेस्ट
तेल - १ से डेढ़ चमच
राई , जीरा -तड़का हेतु
मिर्च , लहसुन, हल्दी  सहित मसाले - सामन्य गढ़वाली मसाले पिसे या सिल -वट्ट में  पीसे  हुए
हरी मिर्च - एक कटी
प्याज - तीन चार कटे
   तेल को कढ़ाई में गरम होने के बाद जीरा , राई व भाग को तड़के , फिर प्याज व मूंग को तड़कने दें , पत्तों को मसालों के साथ भूनें व फिर झंगोरे /चावल पेस्ट को डालकर भुने।  पानी डालकर ढक्क्न लगाकर पकाएं।
 बिना झंगोरे /चावल पेस्ट के भी राई /पालक जैसी सब्जी बनाई जा सकती है। गरमा गरम परोसें।



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          उत्तराखंड  परिपेक्ष में  लिसोड़ा , लसोड़ा    की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Indian Cherry or Glue Berry , Cordia dichotuma   in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 33

                                     History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -   33                       
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   74

                     History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -74
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Cordia dichotoma
सामन्य अंग्रेजी नाम -Indian Cherry or Glue Berry
संस्कृत नाम - बहुवारा , सेलु
हिंदी नाम -लसोड़ा , लसोड़ा टेंटी ,गुंदा
नेपाली नाम -लसूरा , लसूड़ा
उत्तराखंडी नाम - लिसोड़ा , लसोड़ा
वृक्ष - लिसोड़ा , लसोड़ा , गुंदा  का पेड़ मध्य ऊंचाई वाला पेड़ है। इसकी ठूंठ 25 -50 सेंटीमीटर की होती है और ऊंचाई 10 मित्र तक हो जाती है।  पत्तियों से यह छत जैसा दीखता है।  भूरे रंग की छाल   वाला पेड़ है। इसके फूल  सफेद होते हैं और केवल रात को ही। लिसोड़ा , लसोड़ा , गुंदा के  फल पहले गुलाबी पीले होते हैं जो पककर काले हो जाते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना -लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा की जन्मभूमि दक्षिण पूर्व चीन , भारत , हिमालय , हिन्द चीन आदि स्थल।  इससे जाहिर होता है कि लसोड़ा उत्तराखंड में हजारों साल से पाया जाता है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - सुश्रुता ने लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा के औषधीय उपयोग के बारे में उल्लेख किया है।  वाल्मीकि रामायण में उडालकास पेड़ का  उल्लेख है जो शायद लसोड़ा हो सकता है। महाभारत में भी उड्डालका का  है। महाभारत सेल्समातका  का उल्लेख है जो Cordia myxa   हो सकता  है।  Cordia myxa को उत्तराखंड में लसोड़ा  ही कहा जाता है।
 जानवर औषधि - लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा मवेशियों की ल्यूकोरहोइया , मुंह और पैर की बीमारियां उपचार हेतु  लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा का उपयोग  होता है।
चारा - जानवरों को पत्तियां  व फल चारे हेतु उपयोग होता है।
मनुष्य औषधि -उपयोग  -लसोड़ा, लिसोड़ा , गुंदा के कई भागों का कीड़ों  के काटने पर घाव सफाई, छाल का रस दस्त व अन्य पेट की बीमारी हेतु , पाचन  वृद्धि , फल रस शरीर में जलन उपचार , फल रस कफ , बलगम साफ़ करने हेतु उपयोग होता है
लकड़ी - कृषि उपकरण  बनाने में उपयोग
 
--------लसोड़ा की सब्जी -
जितनी सब्जी बनानी हो उतने कच्चे फलों को अलग कर दीजिये।
फिर इन फलों को 10 मिनट तक उबालें।  पानी निथार कर ठंडा होने दीजिये।
फिर चाकू से लसोड़े की टोपी छील  दीजिये।   और दो से चार टुकड़ों में काट लीजिये। गुठली  दीजिये।
अब जैसे उबले आलू के गुटके दार  जाती है वैसे  छौंका लगाकर , नमक , मसालों के साथ भूना जाता है और 4 से 5 मिनट तक पकाया जाता है।
मुख्यतया लसोड़ा उप सब्जी होती है।
-------लसोड़ा , गुंदा का अचार -
गुंदा का अचार भी बनाया जाता है।




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छांच  छुळण खाणौ काम नी च
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 छांच छुळै , मंथन     :::   भीष्म कुकरेती   

 
छांच  छुळण सरा दुनिया म हूंद पर भारत म कुछ जादा ही हूंद तबि त जौन सबसे अधिक संविधानै  धज्जी उड़ैन वी विरोधी पार्टी मोदी की छांच  छुळणौ बान 26 जनवरी कुण संविधान बचाओ रैली करदन।
   भारत मा छांच  छुळण अलग इ संस्कृति च जब कि हौर देसुँ मा  घी ना चीज की अहमियत च त उन्नादेसूं मा छांछ छुळणै बिगळीं संस्कृति च।  भारतीयूं इथगा बड़ी जिकुड़ी च बल भारतीय दिबता त समोदर की बि छांच छोळ दींद छा। दही , दही छुळण बतांद बल भारत एक च।
   गढ़वाळम बि छांच छुळे जांद अर ड्याराडूण , डिल्ली  क्या मुंबई मा बि गढ़वळि अबि बि पारम्परिक रीति से छांच छुळदन याने ऐल्युमिनियम की रै मथनी से दै कर्ड चर्निंग या दही छुळदन।  कुछ इलेक्ट्रिक ब्लेंडर बि अजमांदन पर इन बुल्दन बल इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से घी ठीक से नि बणद।  मि तैं डाउट च , किलैकि चूँकि हम टेक्नॉलोजी विरोधी छंवां त ठीक से मट्ठा नि छोळ सकदा त बिजली पर भगार लगै दींदा जन विरोधी पार्टी जब जितद नी च त ईवीएम मशीन पर दोषारोपण कर दींदन।
     पर कुछ सत्य बि च कि इलेक्ट्रिक ब्लेंडर से  घी उन नि बणदु जन हाथ छुळै से बणद किलैकि दही मा बैक्टीरिया हूंदन त वु हम मनुष्यों तरां मसीनौ गुलाम थुका छन कि हमर मशीन चलाण पर हमर आज्ञा मानी जावन।
    खैर मुंबई बात जाणि द्यावो गढ़वाल की बात करे जावो।  जख तक छांच छुळणो बात च , गढ़वाळम खस संस्कृति या वां से पैल छांच चमड़ा थैलों मा छुळे जांद छे।  फिर लखड़क पर्या , रै अर नेतण की सहायता से छांच छुळयाण शुरू ह्वे।  किंतु पर्या , रै बणाण कठिन ही छौ तो सैकड़ों साल तक चमड़ा  थैलाऊँ म छांच छुळे  गे होली।  ऋग्वेद मा नेतण लगीं रै अर पर्याक वर्णन च।  कौटिल्य अर्थशास्त्र मा त कॉमर्शियल छांछ छुळै बात बि च।   हम हिंदुस्तान्यूं तैं  गर्व च कि हमन पिछ्ला तीन या चार हजार साल से अपण छांच छुळणो संस्कृति मा क्वी छेड़ छाड़ नि कार।  हम संस्कृति प्रेमी  जि छंवां  त किलै तकनीक बदलला।  फिर कु कार इथगा खटकर्म ?  जब मेनत करणो कुण जनानी छैं छन त किलै तकनीक मा बदलाव की सुचे जाव।
    जी दही जमाण से लेकि , छाच छुळण , घी गळाण सब कुछ हमर इक जनानी करदी छै।  गढ़वाळम जमण जन शब्द नि मिल्दो किलैकि हमर डखुळ  (जख पर दही जमाये जांद ) जब सौ साल तक ठीक से धुये नि जाल त जमण की आवश्यकता पोड़ी नि सक्यांद।  इलै इ झड़ददा से लेकि पड़ नाती तक परिवार मा पळयो या दही कु एकी स्वाद चलदो।  इलै त गाँवुं  मा पळयो चखिक पता चल जांद बल छांच कैं मौकी होली।
   छांच छुळणो बगत अधिकतर रात भोजनो परांत ही हूंद छौ।  सुबेर त कुटण -पिसणो बगत हूंद।  दिन मा त पुंगड़ -पटळ , घास -लखड़ुं बगत जि हूंद।  जै परिवार मा दिन मा छांच छुळे जावो वै परिवार मा गरीबी ही हूंदी छे।
    छांच खते नि जयांदि अपितु बंटे जयांदि अर अर एक हैंकाक छांच खाणम जजमान -बामण , छुट बामण -सर्युळया बामण या दुघर्या -तिघर्या जनानी क भेद नि हूंद। 
   गढ़वाळम मीन नि सूण कि क्वी ब्वाल बल पळयो पकाई या पकावो।  पळयो थड़काये जांद याने पळयो पकाण सरल च।  हां झुळी पकाये जांद ना कि थड़काये जांद।  किलै इ शब्दांतर होलु , पता नी।
    बगैर आलणो पळयो नि सुचे जांद।  हमर मुख्य आलण छा - झंग्वर , चूनु , मुंगरड़ी , जौक आटो।  हूंद त चौंळ , कौणी , ओगळौ आटु , पर कम।  झुळळी पर तो झंग्वरौ एकाधिकार छौ। गढ़वाळम मिठि झुळळी इतिहास शहद से शुरू ह्वे छौ फिर शीरा , गुड़ तक पौंछ अर अब त चिन्नी ही झुळी दगड्याणी च जी। उन अब चूंकि  चून, मुंगेरड़ी , झंग्वर दिबतौं भोजन ह्वे त अब बेशन ही एकमात्र आलण रै गे।
 हां  बिंडी छांच ह्वे जाव तो खट्ट्या बणाणो रिवाज बि भौत छौ।  अब त भौतुं तै पता बि नी खट्ट्या कै मरजौ नाम च।  खट्ट्या मतलब जन दूध तैं खिटैक  खोया बणाए जांद तनि छांच तैं खिटैक खट्ट्या बणाये जांद मसलुं का साथ।
   अब जब पळयो छ्वीं हो अर लूणौ बात नि ह्वावो तो पळयो बेसवादी ही माने जाल ।  दिखे जावो तो पळयो स्वाद अपण आप मा कुछ नी अपितु पळयो असली स्वाद तो लूण निर्धारित करद।  लूण का साथी छा -मिर्च , ल्यासण , धणिया , आदु , हल्दी , भंगुल , जीरु , अजवैण , पोदिणा , भंगजीरु , मुंगण्या , पद्या , पितकुट  (सुकयीं मेथी )टिमरु ,  तिल , राई , दालचीनी , जम्बू , हींग अर पता नी क्या क्या मसल छा पुरण जमन मा.  अर हम तै गर्व च कि हमम गढ़वाल का मसालों इतिहास नी पता।
 बरसातम पळयो -झुळी मा ककड़ी डाळे जांद।
   पळयो रात नि खाये जांद छौ अर अमूनन कल्यो मा  हौळ,  ग्वाठम या यात्रा मा पळयो नि लिजये जांद छौ। मीन कबि नि सूण कै गुठळन ग्वाठम पळयो थड़कै हो।
    एक हैंक खासियत गढ़वाळ की राई कि हमन तीन हजार साल से पळयो की रेसिपी नि बदल। 
 
   


27/1 / 2018, Copyright@ Bhishma Kukreti , Mumbai India ,
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    ----- आप  छन  सम्पन गढ़वाली ----
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Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  परिपेक्ष में सफेद मूसली      की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Safed Musli ,  Chlorophytum borivilianum in Uttarakhand context

उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 37

    History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand - 37                       
         
  उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --  78

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -78
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Chlorophytum borivilianum
सामन्य अंग्रेजी नाम - Safed Musli, Safed Moosli
संस्कृत नाम -मुशाली:
हिंदी नाम -सफेद मूसली
नेपाली नाम -मूसली
उत्तराखंडी नाम -मूसली
 उत्तराखंड में पहाड़ों में व घाटियों में जंगलों में मिलता है और अब उगाया भी जाने लगा है।  डेढ़ फ़ीट ऊँचे पत्तीदार पौधे के ेजदें दस इंच गहरे भी जाती हैं।  फूल सफेद होते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - भारत
------------औषधि -----------------
सफेद मूसली की जड़ों के सत का प्रयोग यौन शक्ति वृद्धि , बांझपन दूर करने , सम्भोग शक्ति वृद्धि के अतिरिक्त  अन्य पौधों के आठ मिलाकर 100  से अधिक आयुर्वेदिक दवाई निर्माण में प्रयोग होता है।
 ------------------ धार्मिक महत्व ----------
राहु ग्रह  शांति में , देवी पूजन व नेपाली समाज में कुछ उतसवो में मूसली का प्रयोग होता है।
----------- पत्तियों की सब्जी -------
उत्तराखंड में भी अन्य स्थानों की तरह दवाई में प्रयोग होता है किन्तु पहले अकाल व सब्जी की कमी के समय पत्तियों की सब्जी बनाई जाती थी।  अब भी कभी कभी सब्जी बनाई जाती है।
 सब्जी बनाने के लिए पहले पत्तियों को उबाल लेते  निथार कर अलग रख दिया जाता है।

फिर कढ़ाई में तेल गरम कर प्याज , अदरक, जीरा , जख्या को भूरे होने तक भूना जाता है।  फिर उबली पत्तियों को कम मिश्रित  मसाले व नमक के साथ 5 मिनट तक पकाते हैं।  भीगी दाल जैसे चना व गहथ के साथ भी  सब्जी बनाई जा सकती है . फाणु, कपिलु हेतु भी मूसली पत्तियां प्रयोग की जा सकती है किन्तु शक्ति वर्धक दवाई होने के कारण लोग सब्जी कम ही प्रयोग करते हैं .



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       उत्तराखंड  परिपेक्ष में   भरंगी   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Blue Fountain Bush   Clerodendrum serratum in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 38

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -   38                   
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   79

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -79
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Rotheca serratum, Clerodendrum serratum
सामन्य अंग्रेजी नाम - Blue Fountain Bush
हिंदी नाम -भरंगी
नेपाली नाम - अखंडी
उत्तराखंडी नाम -भरंगी
 भरंगी की झाडी 1. 8 मित्र ऊंची हो सकती हैं। डंठल जोड़ में पत्तियां गुच्छे में पायी जाती हैं और फूल सफेद , नीले व बैंगनी रंग के होते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - पूर्वी भारत व श्रीलंका को भरंगी  का जन्मस्थल माना जाता है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
भरंगी का वर्णन धन्वन्तरी निघण्टु (ग्यारहवीं सदी से पहले ),कैयदेव निघण्टु , शो निघण्टु , रा निघण्टु , भाव प्रकाश निघंटु में उल्लेख हुआ है।
  ----औषधीय उपयोग ---
  भारत,  श्रीलंका में भरंगी का उपयोग सब्जी हेतु कम दवा हेतु अधिक होता है और आयुर्वेद में भरंगी का महत्वपूर्ण स्थान है। भरंगी से बनाई गयी दवाइयां स्वास रोग , कफ , बुखार ,पेट दर्द ,क्षय रोग निवारण हेतु जले  व  घाव पर लगाए जाती हैं। सर्प दंश में भी उपयोग होता है।
       ---भरंगी की सब्जी ----
भरंगी की पत्तियों से सब्जी बनाई जा सकती है किन्तु टॉक्सिक भय से बहुत काम उपयोग होता है।  आज तो सुनने में नहीं आता है।  भरंगी की हरी सब्जी अकाल या हीन समय में प्रयोग होता था।
 हरी पत्तियों को धोकर उबाला जाता है (जिससे कडुवापन कम हो जाय ) . फिर कढ़ाई में तेल, जख्या , जीरा , अदरक , लहसुन , प्याज को छौंका जाता है , फिर टमाटर के साथ भूना  जाता है , फिर नमक ,मिर्च हल्दी ,धनिया ,  भांग का मसाले डाले जाते हैं व् कुछ देर पकाते हैं।  अब भरंगी के उबले पत्तियों को कढ़ाई में डालकर 5 मिनट तक पकाया जाता है।  गरमागरम परोसा जाता है , वैसे अरहर , चना दाल , मटर के साथ  भी पकाई जाती है।  भीगी दालें , गहथ , राजमा ,चना ,  सूंट के साथ भरंगी की पत्तियों का सूखा साग बनाया जाता है। बिना उबाले भी पालक जैसे सब्जी भी बनाई जाती है। 


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      उत्तराखंड  परिपेक्ष में   छोपछीनि /कुकरदार   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan Smilax,  Smilax aspera  in Uttarakhand context

          उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 39

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -39                       
         
           उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --  80

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -80
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      आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Smilax aspera
सामन्य अंग्रेजी नाम - Smilax, Prickly Ivy
संस्कृत नाम -छोपछीनि , द्वीपांतरा
हिंदी नाम -कुकुरदार
छोपछीनी /कुकरदार  लतानुमा पौधा है जो पेड़ों पर चढ़कर 45 मीटर तक लम्बी लता रूप ले लेता है। छोपछीनी /कुकरदार  के पत्ते गदगदे व हृदय शक्ल के होते हैं। सफ़ेद फूल वाले छोपछीनी /कुकरदार के फल पककर लाल व सुखकर भूरे या काले हो जाते हैं। छोपछीनी /कुकरदार हिमालय में 1200 -2500 मीटर की ऊंचाई में पाए जाते हैं।
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संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - भावप्रकाश निघण्टु में द्वीपांतरा नाम से उल्लेख हुआ है।
 
     --- औषधीय उपयोग ---
छोपछीनी /कुकरदार का मुख्य उपयोग औषधि हेतु होता आया है।  छोपछीनी /कुकरदार के विभिन्न भागों का उपयोग , सिफिलिस , साजोफेनिया, पेट दर्द ,  बबासीर , नपुंसकता जैसी बीमारियां दूर करने हेतु होता है।
       -----  भोज्य पदार्थ उपयोग ---
  छोपछीनी /कुकरदार के  कच्चे डंठल  की कलियों से हरी सब्जी बनाई जाती है जैसे एस्पेरेगस की सब्जी बनाई जाती है।   छोपछीनी /कुकरदारके कंद को किसी तरीदार सब्जी में भी डाला जा सकता है।  किन्तु मुख्यतया  छोपछीनी /कुकरदारडंठल कली की सब्जी या कंद का सब्जी में उपयोग वास्तव में वैद्यों के परामर्श से ही उपयोग किया जाता है।  जब अकाल या कम सब्जी का समय हो तो  छोपछीनी /कुकरदारके क्लीनुमा डंठलों की सब्जी बनाई जाती है। 
   



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Bhishma Kukreti

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      उत्तराखंड  परिपेक्ष में  सिरळ , भूकुशमंडी   की सब्जी ,औषधीय व अन्य   उपयोग और   इतिहास

                                                 
          History /Origin /introduction, Food uses , Economic Uses of  Himalayan  Indian Kudzu , Pueraria tuberosa  in Uttarakhand context

   उत्तराखंड  परिपेक्ष  में  जंगल से उपलब्ध सब्जियों  का  इतिहास - 40

              History of Wild Plant Vegetables ,  Agriculture and Food in Uttarakhand -  40                     
         
  उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   81

       History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -81
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 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Pueraria tuberosa
सामन्य अंग्रेजी नाम - Indian Kudzu
संस्कृत नाम -भूकुशमंडी
हिंदी नाम - सिरळ , सुराल , बिलाईकंद , बिदारी  कंद
नेपाली नाम - बराली कुंद
उत्तराखंडी नाम - सिरळ
 सिरळ एक लतावान , झाडी नुमा झाडी है जिसके पत्तियां 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती हैं। सिरळ  के  कंद उपयोग औषधि व सब्जी बनाने हेतु होता है। 
जन्मस्थल संबंधी सूचना - सिरळ का जन्मस्थल हिमालय ही है , चीन में भी पाया जाता है। विंग मिंग केयुंग  की पुस्तक  Pueraria the genus में इस प्रजाति के कई स्पेसीज व  इस जिनस का कृषिकरण होने  और फिर कृषिकरण से प्रजाति वन वनस्पति में तब्दील होने का वर्णन है इस पुस्तक में इस कंद के कई उपयोग व परीक्षओं का भरपूर वर्णन भी है। वास्तव में सिरळ  एक खर पतवार है और जब भी खेती उगाई गयी तब तब इस वनस्पति ने अन्य खेती को नुक्सान पंहुचाना शुरु  कर दिया था।

संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - विदारी कंद का उल्लेख सुश्रुता संहिता , भावप्रकाश निघंटु , धन्वन्तरि निघण्टु , कैव्य देवा निघण्टु व राज निघण्टु में हुआ है।
औषधीय उपयोग -सिरळ  कंद का अलग या अन्य हर्ब्स में मिश्रण से बुखार , जोड़ों के दर्द जय बीमारी निवारण हेतु व स्त्रियों में दूध बढ़ाने , वीर्य वर्धन , मांस वृद्धि व त्वचा असुन्दरी हेतु उपयोग होता है।

      -सिरळ  की सब्जी -
सिरळ  कंद से सब्जी वैसे ही बनाई जाती है जैसे पिंडाळू , आलू से बनाई जाती है।  इसको उबालकर नमक मिलाकर भी सलाद रूप में खाया जाता था।  अब लगता नहीं सिरळ खाया जाता है।  इसकी जड़ें बहुत मंहगी बिकती है




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