Author Topic: Delicious Recepies Of Uttarakhand - उत्तराखंड के पकवान  (Read 177713 times)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में    रतनजोत , रतन जोत   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Ratanjot/ Ratan jot , Alkanet   as   Spices ,  in Uttarakhand
 
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  के मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  3                                             
             

  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -3                         
         
  उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --   92
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -92

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति  शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Alkanna tinctoria
सामन्य अंग्रेजी नाम - Alkanet, Dyer's Alkanet
हिंदी नाम - रतनजोत , अंजनकेशी ,
उत्तराखंडी नाम - रतनजोत
सिद्ध नाम -रथपालै
रतनजोत एक खर पतवार है जिसकी जड़ें पौधे से बड़ी होती हैं  , नीले रंग  वाला रतनजोत  चीड़ वन स्तर की ऊंचाई में उगता है और कश्मीर  से कुमाऊं तक पाया जाता है ।  उत्तराखंड में रतनजोत का भोजन उपयोग बहुत कम होता है किन्तु पहले कपड़े आदि रंगाई में उपयोग होता था।  रतनजोत की जड़ों से लाल रंग मिलता है जो कि पानी में तो नहीं घुलता किन्तु पेड़ पौधों के भागों को रगने में कामयाब रंग है।  इसलिए इसका उपयोग भात , सूजी , दाल , मांश आदि को रंग देने हेतु होता था। अब नामात्र को उपयोग होता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - रतनजोत का  मेडिटेरियन सागर , मध्य -दक्षिण यूरोप क्षेत्र माना जाता है जहां रतनजोत की जड़ों रस से से आज भी मेक अप सामग्री बनाई जाती है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - रतनजोत का जिक्र यूनानी साहित्य में सन 00 70 से मिलना शुरू होता है।  रोमन सेना में कार्यरत यूनानी डाक्टर पेडानियस डायोसकौरिदेस ने De Materia Medica में जिक्र किया जो बाद में लेटिन में सन 512 में अनुदित हुआ।
      औषधि उपयोग
रतनजोत का उपयोग उत्तराखंड में वैद करते थे।  रतनजोत के विभिन्न भागों से आँखों की रौशनी  वृद्धि , त्वचा का रूखापन  करने , खाज खुजली , पेट दर्द ,कृमि नास , पथरी नाश ,बालों की दूर करने , रक्त शोधन आदि में अन्य अवयवों या अकेले दवाई बनाने  है।

    रतनजोत जड़ों से भोजन रंग

  रतनजोत के जड़ों से भोजन को रंग देने हेतु उपयोग होता है।  रतनजोत की जड़ों के  भोजन  को रंग ही नहीं मिलता अपितु स्वाद वृद्धि भी होती है।

    उत्तराखंड में आयुष योजना हेतु सलाह

 राजीव कुमार , वी के जोशी आदि वैज्ञानिक उत्तराखंड को मेडिकल हब बनाने हेतु रतनजोत जैसे वनस्पति  पर ध्यान देने की सलाह देते रहे हैं।
   



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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में   बथुआ /बेथु   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Bathua    as   Spices ,  in Uttarakhand
 
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  4                                         
 History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 4                       
  उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  93
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -93

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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Botanical Name -Chenopodium album
हिंदी नाम बथुआ
स्थानीय नाम - बेथू, बथुआ
संस्कृत नाम -वस्तुका:
नेपाल -बेथे
चीनी नाम -ताक
बथुआ एक गेहूं में पाये जाने वाला खर पतवार है।   बथुआ की दूसरी प्रजाति का वर्णन हिमालयी  चीन में 2500 -1900 BC में मिलता है. अत:  कह सकते हैं कि बथुआ उत्तराखंड में प्रागैतिहासिक काल से पैदा होता रहा है।  यूरोप में इसका अस्तित्व 800 BC में  था।  वैज्ञानिक बथुआ का जन्मस्थान यूरोप मानते हैं।  हिमालय की कई देसों में बथुवा की खेती भी होती है।  डा के.पी.  सिंह ने लिखा है कि बथुवे का जन्मस्थल पश्चिम एसिया है।  शायद बथुआ का कृषिकरण चीन व भारत -नेपाल याने मध्य हिमालय में शुरू हुआ। अनुमान है कि बथुवा के बीज चालीस साल तक ज़िंदा रह सकते हैं।
आयुर्वैदिक साहित्य जैसे  भेल संहिता (1650 AD ) में बथुवे का आयुवैदिक उपयोग का उल्लेख है (K.T Acharya , 1994, Indian Food)। बथुआ का वर्णन भावप्रकाश निघण्टु , राज निघण्टु , मदनपाल में दवाईओं हेतु हुआ है।
  समरंगना सूत्रधार में बथुआ का उपयोग मकान पोतने हेतु उल्लेख हुआ है।
साधारणतया बथुआ का पौधा तीन फीट तक ऊंचा होता है किन्तु 6 फीट ऊंचा बथुआ भी पाया जाता है।
प्राचीन काल में बथुआ के बीजों को अन्य अनाजों के साथ मिलाकर आटा बनाया जाता  था।

   बथुआ का औषधि उपयोग
बथुआ का पेट दर्द , गठिया , पेचिस , जले आदि में औषधि में उपयोग होता है।
 
      फसलों के साथ बथुवा के पौधे कीटनाशक का कार्य भी करते हैं।  कई कीड़े गेहूं को छोड़ बथुवा  पर लग जाते  हैं और गेंहूं कीड़ों की मार से बच जाते हैं।

      बथुआ का मसाले रूप (पितकुट या बेथकुट ) में उपयोग
 
    गढ़वाल में बथुआ सब्जी बनाने , आटा बनाने हेतु ही प्रयोग नहीं होता था अपितु मसला मिश्रण का एक अंग भी होता था। इस लेखक ने  पने गाँव में बथुआ को मसाले रूप में प्रयोग होते देखा है और उपयोग भी किय है । 
   बेथकुट या पितकुट बनाने के लिए बेथु के पूर्ण पकी मा बीजों के टहनी  उखाड़ कर सुखाया जाता है फिर जड़ तोड़कर मय बीज , टहनी को ओखली में कूटा जाता है। बहुत अधिक महीन नहीं कूटा जाता है।  फिर इस कूटे मसाले को नमक के साथ पीसकर चटनी बनाई जा सकती है।  बेथकुट या पितकुट को पळयो , झुळी में बहुत उपयोग होता था।  अन्य सब्जियों में विशेष स्वाद बढ़ाने हेतु सहायक मसाले के रूप में उपयोग होता था। बहुत बार वैद्य  किसी विशेष उपचार हेतु मरीज को भोजन में पितकुट या बेथकूट  उपयोग की सलाह भी देते थे। 
 
        सुरा /शराब , घांटीबनाने हेतु एक अवयव

  हिमाचल व हिमाचल से लगे उत्तराखंड में बथुआ बीजों का उपयोग सुरा , घाँटी शराब बनाने हेतु एक अवयव के रूप में उपयोग होता है। 





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उत्तराखंड  में   डम्फू , घुंगरी, रसभरी    मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of    as  Ground berries or Rasbhari   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -    5                                           
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  5                     
  उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  94
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -94

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Physalis divaricata
निकटस्त वनस्पति -Physalis indica , Physalis minima
सामन्य अंग्रेजी नाम - Ground Berries

उत्तराखंडी नाम -डम्फू , घुंगरी
  डम्फू एक बरसात में विकसित होने वाली 35 00 फ़ीट से अधिक  ऊंचाई पर उगने वाली वाली  डेढ़ फुट ऊँची वनस्पति है जिसके फल नवंबर में आने शुरू हो जाते हैं   और फरवरी तक रहते हैं। घास के साथ धूप वाली साइड में होते हैं। रसभरी के फल सेपल्स के अंदर बंद रहते हैं और जब सेपल्स  कड़क पीला या भूरा हो जाता तो समझा जाता है कि डम्फू पक गया है।  पका फल लालिमा लिए पीला होता है।
     इस वनस्पति पर उत्तराखंड में कम ही वनस्पति वैज्ञानिकों का ध्यान गया है।
  औषधि उपयोग -
इस लेखक को डा आर डी  गौड़ , ज्योत्सना शर्मा व पैन्यूली के लेख मिले हैं जिसमें उन्होंने इस वनस्पति का स्थानीय लोगों द्वारा पीलिया , पेट दर्द में उपयोग की सूचना दी है।  रसभरी का पेशाब बीमारी व गुर्दा बीमारियों में भी उपयोग होता है।

    रसभरी /डम्फू का फल उपयोग

 डम्फू को जंगली फल के रूप में उपयोग होता है।   इस लेखक के क्षेत्र में मान्यता है कि हरे फल विषैले होते हैं।     पके फल का स्वाद कुछ विशेष खट्टा किन्तु मीठा होता है।   फल अधिक मात्रा में खाने से मनुष्य को नींद आने लगती है। इस लेखक को अपना व अन्य को देखकर अनुभव है कि अधिक खाने से नींद आने लगती है और इच्छा होती है जहां है वंही सो जाया जाय।
     इसी से मिलता जुलता एक अन्य वनस्पति है जो दो हजार फ़ीट से कम की ऊंचाई पर उगता है , फल छोटे होते हैं और उसे बिसैला माना जाता है।  बचपन से ही हमें ऐसा सिखाया जाता था  कि हम इस पौधे के फल  बिलकुल नहीं चखते हैं।

     डम्फू का चटनी उपयोग
  सन उन्नीस सौ साठ से पहले डम्फू का उपयोग चटनी बनाने में भी होता था।  पके डम्फू फल को मिर्च व नमक के साथ पीसा जाता था और रोटी के साथ डम्फू चटनी  खायी जाती थी ।



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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड  में      बनफ्सा मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of  Banfsa , Himalayan  white violet   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  6                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 6                       
  उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  95
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -95

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Viola serpens, Viola canescens
सामन्य अंग्रेजी नाम - Banfsa , Himalayan  white violet
संस्कृत नाम -बनप्सा
हिंदी नाम - बनफ्सा
नेपाली नाम -घट्टेघांस
हिमाचल -गुगलु फूल , बनफ्सा , बनाक्षा
उत्तराखंडी नाम - बनफ्सा ,
बनफ्सा भूमि पर फैलने वाला बहुवर्षीय पौधा है जिसके बैंगनी , सफेद व नीले फूल होते है।  पाकिस्तान से उत्तर पूर्व के हिमालय में 1600 -2000 मीटर   ऊंचाई में पैदा होता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - Viola की दो एक जातियों का जन्म हिमालय है
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -   संहिताओं में बनफ्सा का नाम नहीं है किन्तु आदर्श निघण्टु व सिद्ध भेषज मणिमाला में बनफ्सा व इसके उपयोग का वर्णन मिलता है।  सिद्ध भेषज मणिमाला में तो कथा भी मिलती है। भावप्रकाश निघंटु  में बनफ्सा को परसिष्ट  भाग में जोड़ा गया है।

       औषधि उपयोग

इसे गरम तासीर का पौधा माना जाता है।  कफ , शर्दी , जुकाम , बुखार , मलेरिया बुखार , बदहजमी निर्मूल हेतु  काम आता है।

                चाय मसाला

   फूल के सुक्सा को गढ़वाल में जाड़ों के दिनों में कम मात्रा में चाय में डाला जाता था- विशेषकर जब तापमान गिर जाता था या बर्फ पड़ी हो। लोककथ्य   है कि बनफ्सा को चाय में पीने से बर्फ में भी पसीना आ जाता है। काफी ठंडियों के दिनों में कभी उड़द की दाल में भी बनफ्सा के बहुत कम मात्रा में सूखे फूल डाल दिए जाते थे।

  वैज्ञानिकों का मत है अति दोहन से कई प्रजातियां खतरे में पड़ गयी हैं। 
 



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उत्तराखंड  में   सेमल कलियों का  मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Dried Kapok, Semal, Dried Red Silk Cotton   Buds   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  7                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  7                     
  उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  96
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -96

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Bombax ceiba
सामन्य अंग्रेजी नाम - Red Silk Cotton, Kapok
संस्कृत नाम -शाल्मली
हिंदी नाम - सेमल
उत्तराखंडी नाम - सेमल , सिमुळ
(सब्जी खंड में सूचना दे दी गयीं हैं )

       उत्तराखंड का प्राचीन मसाला

  जब सेमल की सब्जी आम बात थी और मैदानों से सब्जी व मसाले मिलना सोने- गोल्ड खरीदना जैसा था तब सेमल की बंद कलियों को सुखाकर रख दिया जाता था।  फिर जब कभी दाल या फाणु  आदि  को विशेष स्वाद देना हो तो कलियों के सुक्सा को तेल में छौंककर स्वाद बढ़ाया जाता था  . 
   इस लेखक ने अपनी दादी  श्रीमती क्वाँरा देवी (पिता जी की ताई जी ) से सुना था जिन्होंने कभी अपनी सास द्वारा  सुखाया सेमल सुक्सा मसाला प्रयोग किया था। 



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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )
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उत्तराखंड  में  काला जीरा /शाही जीरा     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Caraway  /kala jira   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -   8                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 8                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   97
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -97

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Carum carvi
सामन्य अंग्रेजी नाम - Caraway
हिंदी नाम - शिया जीरा , काला जीरा
संस्कृत नाम -कृष्णजीरिका ,कारवी
उत्तराखंडी नाम - शिया जीरा , काल जीरा , शाही जीरा , शिंगु जीरा
जन्मस्थल संबंधी सूचना - पश्चिम एशिया , उत्तरी अफ्रीका व यूरोप कला जीरे के जन्मस्थल माना जाता है।  उत्तराखंड में ऊपरी पहाड़ियों में  2700 -3600 मीटर  की ऊंचाई वाले  जंगलों में पाया जाता है और अब इस पौधे की खेती भी होती है।
काला जीरे का पौधा गाजर के पौधे जैसा ही होता है।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन -
 काला जीरा पाषाण युग से ही उपयोग में आता रहा है। दवाई के रूप में 5000  सालों से काला जीरा उपयोग में है।  दक्षिण यूरोप में फोजिल्स में काला जीरा मिला है। आयुर्वेद में कार्वी  प्राथमिक काल से उपयोग होता आ रहा है।  अरब में यह शताब्दियों से दवाई व मसाले के रूप में उपयोग होता रहा है।  लोककथाओं में कहा जाता है कि यूनानी डाक्टर ने नीरो को शाही  जीरा उपयोग की सलाह दी थी।
 
 जीरा व काला जीरे में अंतर

  कला जीरा आम जीरे से कुछ छोटा होता है और काला तो होता ही है स्वाद में भी अलग होता है। आम जीरे की सुगंध तीब्र -गरम होती है।
 
  औषधि उपयोग
कला जीरा या शाही जीरा के अंगों का कई बीमारियों  जैसे हुक्क्रम कृमि , गैस , कफ , कोलेस्ट्रॉल , , दस्त , त्वचा , सांस की दुर्गंध , माहवारी के उपचार हेतु दवाई में या सीधा उपयोग होता है
काला जीरा या शाही जीरे का निकला  जाता है जो कई उद्यम में काम आता है।

    काला जीरे या शाही जीरे का मसाले रूप में उपयोग
पत्तियां व जीरा बीज पीसकर मसाले के रूप में उपयोग होता है।  बीजों को छुनका लगाने का भी काम आता है।  चूँकि  काला जीरा सौंफ का भाई है तो स्वाद उतना तीखा या कडुआ नहीं मिलता जितना आम जीरे का।




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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


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उत्तराखंड  में    भंगजीरा , भंगीरा   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Perilla    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  9                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand -  9                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --   98
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -98

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Perilla frutescens
सामन्य अंग्रेजी नाम -Perilla

उत्तराखंडी नाम -भंगजीरा , भंगीरा Bhangjira , Bhangira
नेपाली नाम - सिलाम
भंगजीरा /भंगीरा उत्तराखंड की पहाड़ियों में 500 -1800 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर खर पतवार के रूप में भी उगता  कृषि मसालों के रूप में भी उगाया जाता है।  60 -90 सेंटीमीटर ऊँचे पौधे का तना बालयुक्त वर्गाकार होता है और बहुत बार  इस पौधे को तिल  भी समझ बैठते हैं।
जन्मस्थल संबंधी सूचना -चीन या भारतीय हिमालय
   भंगीरा /भंगजीरा का मसाला उपयोग

 भंगजीरे / भंगीरे की पत्तियों को मसालों के साथ पीसकर भोजन को विशेष स्वाद दिया जाता है।
  भंगजीरे /भंगीरे की पत्तियों को नमक व मिर्च के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
   भंगीरे /भंगजीरे  के बीजों को मसाले के रूप में अन्य मसालों के साथ मिलाया जाता है।
भंगजीरे।/भंगीरे के बीजों को नमक के साथ पीसकर चटनी बनाई जाती है।
 भंगीरे /भंगजीरे के बीजों को पकोड़े बनाते समय पकोड़ों को स्वाद देने हेतु पकोड़े पीठ /पीठु  के ऊपर छिड़क देते हैं।
 भंगीरे / भंगजीरे बीजों को भूनकर चबाया भी जाता है जैसे भांग के बीज।
 भुने भंगजीरे / भंगीरे के बीजों को बुखण/चबेना  के साथ भी मिलाया जाता है।
 भंगीरे / भंगजीरे के बीजों से तेल निकाला जाता है और खली को मसाले रूप  में मवेशियों को दे दिया जाता है। 


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उत्तराखंड  में   जम्बू फरण   मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of Small Alpine Onion   as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 10                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 10                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास -- 99
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -99

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Allium humile
सामन्य अंग्रेजी नाम - Small Alpine Onion

हिंदी नाम - हिमालयी वन प्याज
उत्तराखंडी नाम - जम्बू फरण
   यह वन प्याज अफगानिस्तान से भूटान व चीनी हिमालय में 3000 -4000  की ऊंचाई पर पाया जाता है।  इसकी पत्तियों से व्ही सुगंध आदि है जो लहसुन की पत्तियों में आती है .
 मुख्यतया यह पौधा औषधि के काम आता है
 इसके सूखे फूल छौंके में उपयोग होते है। पत्तियां या सुखी पत्तियां पीसकर साग दाल में डालकर स्वाद वर्धन हेतु उपयोग होता है .
   जम्बू जंगलों में भी होता है और खेती  भी होती है।




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उत्तराखंड  में टिमुर     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of  Sichuan pepper, Timur    as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास -  11                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 11                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --100 
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -100

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम - Xanthoxylum armatum
सामन्य अंग्रेजी नाम - Prickly Ash, Sichuan pepper or Toothache Tree
संस्कृत नाम -आयुर्वेद नाम -तेजोह्वा , तुम्बुरु:
हिंदी नाम -टिमुर , तेजबल
नेपाली नाम - टिमुर
उत्तराखंडी नाम -टिमुर
 टिमुर के की कंटीली झाड़ियां उत्तराखंड में 1000 मीटर से लेकर 2250  मीटर की ऊंचाइयों पर मिलती हैं। 
             जन्मस्थल संबंधी सूचना -
  टिमुर का जन्मस्थल हिमालय ही है .
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - उत्तराखंड का टिमुर काल में भी प्रसिद्ध था और पाणनि साहित्य में लिखा है कि उत्तराखंड से अशोक व् अन्य राजाओं हेतु टिमुर निर्यात होता था।  (डा शिव प्रसाद डबराल , उखण्ड का इतिहास -2 )
 डा कला लिखते हैं कि सदियों से भोटिया समाज टिमुर ( Xanthoxylum की चार प्रजाति ) उपयोग विनियम माध्यम (Exchange Medium )  करते हैं। 
 भावप्रकास निघण्टु (डा डी  एस पांडे संपादित व हिंदी टीका 1998  ) के 113 -115 श्लोक में टिमुर  पर प्रकाश डाला गया है। नेपाली निघण्टु में भी टिमुर पर प्रकाश डाला गया है। डा अनघा रानाडे व आचार्य सूचित करते हैं कि टिमुर का उल्लेख धनवंतरी निघण्टु (ग्यारवीं सदी के लगभग ) में भी हुआ है । मदनपाल निघण्टु  में टिमुर  उल्लेख है।
 
   धार्मिक उपयोग
 नरसिंग आदि ली सोटी , यज्ञोपवीत में आवश्यक लाठी के रूप में प्रयोग होता है। साधू टिमुर की लाठी को पवित्र मानते हैं
   दांतुन
 टिमुर से दांतुन किया जाता है। चार धामों में अभी भी भोटिया टिमुर के दांतुन बेचते हैं (डा सी पी काला )

    औषधीय उपयोग
टिमुर के विभिन्न भाग पेट दर्द , एसिडिटी , अल्सर , आंत की कृमि , त्वचा रोग , दांत दर्द निवारण हेतु प्रयोग करते हैं।  जाड़ों में भोटिया समाज बीजों को भूनकर चबाते हैं जिससे ठंड का असर न पड़े। आयुर्वेद में कफ व वात निर्मूल हेतु उपयोग होता है।

  मसाले व भोजन में उपयोग

  टिमुर का सबसे अधिक उपयोग भोटिया समाज करता आया है।  भोटिया टिमुर को सूप में उपयोग तो करते ही हैं साथ ही बीजों व बीजों के भूसे का मसाले में उपयोग होता है। भोटिया डुंगचा नामक चटनी बनाने हेतु भी टिमुर का यपयोग करते हैं।




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 ( उत्तराखंड में कृषि,  मसाला ,  व भोजन का इतिहास ; पिथोरागढ़ , कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चम्पावत कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; बागेश्वर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; नैनीताल कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;उधम सिंह नगर कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;अल्मोड़ा कुमाऊं  उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हरिद्वार , उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;पौड़ी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ;चमोली गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; रुद्रप्रयाग गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; देहरादून गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; टिहरी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तरकाशी गढ़वाल   उत्तराखंड में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; हिमालय  में कृषि व भोजन का इतिहास ;     उत्तर भारत में कृषि ,  मसाला व भोजन का इतिहास ; उत्तराखंड , दक्षिण एसिया में कृषि व भोजन का इतिहास लेखमाला श्रृंखला )


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उत्तराखंड  में  दालचीनी /तेजपात     मसाला , औषधि उपयोग  इतिहास

   History, Origin, Introduction,  Uses  of  Cinnamon, Indian cassia  as   Spices ,  in Uttarakhand
उत्तराखंड  परिपेक्ष में वन वनस्पति  मसाले , औषधि  व अन्य   उपयोग और   इतिहास - 12                                             
  History, Origin, Introduction Uses  of    Wild Plant  Spices ,  Uttarakhand - 12                       
 उत्तराखंड में कृषि, मसाला ,  खान -पान -भोजन का इतिहास --  102
History of Agriculture , spices ,  Culinary , Gastronomy, Food, Recipes  in Uttarakhand -101

 आलेख -भीष्म कुकरेती (वनस्पति व संस्कृति शास्त्री )
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वनस्पति शास्त्रीय नाम -Cinamomum tamala
सामन्य अंग्रेजी नाम -Cinnamon, Indian cassia , Tejpat
संस्कृत नाम - दारुसिता , वरांगा
हिंदी नाम - दालचीनी
उत्तराखंडी नाम - दालचीनी , तेजपात

जन्मस्थल संबंधी सूचना - Cinamomum genus  की करीब 250 स्पेसीज हैं  तेजपत्ता प्राचीनतम मसालों में से एक है।  बाइबल , अरबी साहित्य में तेजपात का जिक्र मिलता है।
Cinamomum tamala का जन्म हिमालय माना जाता है क्योंकि यह पेड़ पश्चिम हिमालय व पूर्वी हिमालय में 900 -2500 मीटर ऊँचे स्थानों में पाया जाता है।  उत्तराखंड में दालचीनी का उपयोग गरम् मसाले व चाय के साथ होता है। केरल में ब्रिटिश व श्रीलंका में हॉलैंड वासियों ने बागवानी शुरू की।  उत्तराखंड में चाय बगान की असफलता से ब्रिटिश या यूरोपीय लोगों ने उत्तराखंड  नहीं दिया।
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - चूँकि दालचीनी के कई औषधीय उपयोग होते हैं तो धन्वन्तरी निघण्टु (52 ); कै.  निघण्टु  (1337 , 38 ) ;शै . निघण्टु (287 ); भाव् प्र निघण्टु (56 )  निघण्टु ( 172 ) में मिलता है।
  मसाला उपयोग
  दालचीनी के अंदरूनी खाल के मसाले में उपयोग होता है व तेल से कई दवाइयां बनती हैं।
उत्तराखंड में दालचीनी का वार्षिक मार्किट 1470 टन का बताया जाता है ( हेमा लोहानी व अन्य ,जॉर्नल ऑफ केमिकल ऐंड फार्मेस्युटिकल रिसर्च , 2015 )


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