Author Topic: Delicious Recepies Of Uttarakhand - उत्तराखंड के पकवान  (Read 177890 times)

Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड में  मंडुआ /कोदा / रागी के पारम्परिक  व्यंजन  विवरण 
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  (उत्तराखंड में   पारम्परिक  व्यंजन , भोजन  पाकशैली / विधि श्रृंखला  )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  भारत को सबसे पुरणतम भोज्य पदार्थ च।   आंध्र प्रदेश , कर्नाटक , तमिलनाडु , उत्तराखंड  व महाराष्ट्र  म  कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी अच्छी मात्रा म उगाये जांद।
 उत्तराखंड म   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  आटो  से रुटि , बाड़ी , घोल  हि  सीमित छन।  जबकि आंध्र , कर्नाटक , तमिल नाडु आदि क्षेत्रों म   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी का भौत सा व्यंजन पकाये
जान्दन। 
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी तै poor man food  नाम दीण से मंडुआ उत्पादन  की  बड़ो हानि    ह्वे।  अब जब लोखुं बिंगण आण  लग गे  बल गरीबों खाणा स्वास्त्य वर्धक च तो   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी की मांग बि  बढ़णि  च।  मुम्बई म हर वर्ष अब     /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  का मूल्य मांग वृद्धि से बढ़णु  च।  दुसर   लोगुं  म मंडुआ का नया से नया व्यंजन खाणो  ढब बी बढ़णु  च तो  क्वादो मांग अर मूल्य बढ्नु च।   
  आज उत्तराखंडी आधा से बिंडी  प्रवासी ह्वे  गेन  तो वो बि   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी का बनि  बनि  व्यंजनों से परिचित ह्वे  गेन।  जरा दिखे जाव   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी से क्या व्यंजन बणदन धौं -
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी बनि बनि  रोटी /रोट
 बच्चों कुण  क्वादो  आटु  छोळि  मांड जन पकाण , मिठु  या लुण्या
   मंडुआ आटो  दगड़ बनि  बनि  अनाज मिलैक  डोसा
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी की इडली
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  का आटो  से डोसा
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  गुड़ केक (बेकिंग से )
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी   चुकुंदर दगड़  ढोकला
   कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  से कर्नाटकी रोटि
    कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी मराठी रोटि /भाकरी
  कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी  का  दळ भर्यूं / अल्लू भर्युं , भुज्जी भरी रोटी या  आटु  तैँ सब्जी दगड़  ओलिक  रोटी
 रागी छांछ की ठंडाई
  कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी आटु  दगड बनि  बनि  अनाजौ  आटु मिलैक बनि  बनि  रुटि / पराठा आदि लगड़ी
    कोदा /क्वाद /मंडुआ /रागी /नाचणी पूरी /स्वाळ /कचोरी
  बिस्किट्स
चीला , पट्यूड़ / लगड़ी
 बनि  बनि  ,  दसियों प्रकार का लड्डू
रागी उत्तपम
मंडुआ उपमा
रागी उप्पे /अप्प्पे
रागी। क्वादो सूप  बनि  बनि  सब्जी या चिकन , मटन का दगड़
मंडुआ क दाल बड़ा
चुनो दगड़ मिल्क शेक
 चूनो  से वैफल
मंडुआ आटो  दगड़  हरी भुज्जी तरीदार साग /आलण  प्रयोग
मंडुआ पळ्यो , साधारण , मिठु  , लुण्यआ
नाचनी की कढ़ी
मंडुआ बाड़ी (साधारण हलवा )
 नाचनी कु  मिठ हलवा /बाड़ी
रागी /मंडुआ क सेवई
रागी /मंडुआ क थेपला (गुजरती शैली )
रागी बोन्डा  जन मंचूरियन पकोड़ी बणद
रागी , मंडुआ पिजा /
नाचनी पिजा
अं कुरित मंडुआ का परसाद /हलवा
भिग्यां  क्वाद  से दसियों प्रकारै खिचड़ी
कर्नाटक व दक्षिण भारत म मिठ  बाड़ी  या साधारण बाड़ी  क पेड़ा जै  तै मुड्डे  बुल्दन
रागी , मंडुआ पकोड़ा
रागी , मंडुआ मोमोज
रागी , दही भल्ला
रागी , मंडुआ तोफू
रागी , मंडुआ चकली
रागी , मंडुआ /चुनो समोसा
रागी , मंडुआ आटे  का ओमरपोडी
मंडुआ /  रागी  की ऊमी
  मंडुआ  बीजों से से शराब

लगभग ७०० से बिंदी रेसिपीज छन मंडुआ /चूनो / रागी /नाचणी  का
सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती








 


Bhishma Kukreti

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उत्तराखंड में    मूला व मूली के पारम्परिक भोजन पदार्थ

Radish Traditional Recipes in Uttarakhand
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उत्तराखंड के पारम्परिक भोजन पदार्थ शृंखला
Traditional Food of Uttarakhand series
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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 उत्तराखंड भाग्य शाली च बल इख   पहाड़ों म मूळा  (म्वाट , कुम्भी नुमा / घिन्डक ) अर  मैदानों म मूली पैदा हूंद।  पहाड़ी मूळा  की अब बड़ी मांग बढ़ गे  . किन्तु भोजन का अंकन से मूली का अधिक भोजन पदार्थ पकाये जांदन या प्रयोग हूंदन बनिस्पत मूळा  का।  अब मूली बारामासी भोज्य पदार्थ ह्वे  गे  जबकि मूळा पर अबि  उथगा शोध नि  ह्वे  जथगा हूण  चयेणु  छौ। 
   उत्तराखंड म  मूळा  का पारम्परिक भोजन -
सलाद
पत्तों  भुज्जी
पत्तों दगड़  अन्य पत्तों  क भुज्जी
पत्तों से फाणु /कपिलु पकाण
पत्तों क भजिया /पक्वड़
मूळा घिन्ड क क कई प्रकार की भुजी /साग
मूला  का सुखो  भाजी
  मूला  का पिंडालू।  आलू., खीरा /कद्दू  का दगड़  मिलैक सब्जी
    मूला  का थिंच्वणी /Smashed  radish  curry (तरीदार बि  सूखी बि )
    मूला  का  आलू , पिंडालू /अरबी  , प्याज दगड़ थिंच्वणी  (सूखा ,या रीदार बि
मूला /मूळा  के  सुक्सा (dehydrated   Radish under sun ) का बनि  बनी साग /भुजी -
  मूला /मूळा   के सुक्सा का साधारण तरीका से  सूखी सब्जी   
  मूला /मूळा   के सुक्सा को थीँचकर /smashed dehydrated  radish 
  मूला /मूळा   के सुक्सा को आलू दगड़ सुखो भुज्जी
   मूला /मूळा   के सुक्सा प्याजक पत्तों दगड़  भुज्जी
मूला अर  मुंगरी आटो दगड़  साग व भुज्जी
मूला फुळड़ों /मूंगरा की   सूखी  अकेली भुजी
मूला फुळड़ु  थींचि तरीदार साग
  मूला  फुळड़ु।/ मूंगरा अन्य सब्जियों दगड़  साग /भुज्जी   
मूला का अब अचार बि  बणद  अबि पॉपुलर नि  ह्वे
मूला फुळड़ुं   अचार


  उत्तराखंड म मूली का पारम्परिक व नव प्रकार का भों व प्रयोग -
 उत्तराखंडी मूली की  सूखी सब्जी
उत्तराखंडी मूली की तरीदार सब्जी
मूली क अल्लू , प्याज , अरबी , शलजम , सोरण का  दगड़  सब्जी
मूली क आलू , सब्जी  वा साग
मूली अरबी सब्जी व साग
प्याज , अरबी /घुंइया , शलजम  का तरीदार साग
मूली क पत्तों भुज्जी
मूली , प्याज , पळिंगु आदि  दगड़  भुज्जी /साग
मूली पत्ता आलण  रूपम फाणु , कपिलु आदि म प्रयोग
मूली  पत्तों पक्वड़
थींचि /smashed  मूली साग
मूली क भितर  मसल भरी स्टफड सब्जी
मूली अर  पत्तों भुज्जी
मूली अर  लौकी भजिया /पक्व ड़
कच्चा क्याळा  दगड़  उत्तराखंडी मूली क सब्जी
चना दाळ  दगड़  मूली भुजी या साग
मेथी अर  मूली सब्जी
मूली बेसन की साग /सब्जी
मूली अर मुंगरी आटौ   मिलैक साग 
मसाला बदल बदली का बनी बनी मूली का साग व मूली की सब्जी
भट्टा   व मूली सब्जी
गोभी अर  मूली सब्जी
पत्ता गोभी अर  मूली भुज्जी
टिंडा अर  मूली सब्जी
पळिंगु अर  मूली  पत्तों क सब्जी
 पळिंग /पालक अर मूली घिन्डका सब्जी
पालक मूला पत्तों भजिया /पक्वाड़
शिमला मर्च अर  मूली भुज्जी 
शिमला मिर्च अर भजिया /पक्वड़
मूली क  भरीं  रुटि / पराठा  सूखा या घी म
मूली क पूरी /स्वाळ /कचोरी
गाजर मूली  क सब्जी
मूंग दाल अर  मूली सब्जी
मूली क खट्टी सब्जी
मूली पत्ता अर  बनी बनि  दाळुं  दगड़  साग , भुज्जी
मूली लौकी सब्जी
मूली फुळड़ों   सूखी  अकेली भुजी
मूली फुळड़ु /मोगरी  थींचि तरीदार साग
  मूली फुळड़ु /मोगरी अन्य सब्जियों दगड़  साग /भुज्जी   
मूली बेसन बड़ी क साग /सुखो साग
मूली उड़द /गहथ  बड़ी  दगड़  साग या भुज्जी
मूली सोया बड़ी दगड़  साग या भुज्जी
मूली सेम /पातड़ी  क सब्जी
मूली  मटर  क सब्जी
मूली बथुआ की सब्जी
मूली कोफ्ता क सब्जी
मूली कद्दू संग सब्जी
मूली कोदा /मंडुए के आटे  का पराठा /भरी रोटी
मूली मुंगरी आटो  पराठा
जौ /बजरों  आटो  दगड़ मूली सब्जी /या आटो  कुरस्यूं  मोली  ओलिक  पराठा
मूली पनीर सब्जी
मूली दूध /मलाई की बनि बनि प्रकारै सब्जी
मूली मशरूम सब्जी
मूली क जापानीज विधि से बण यूं  टेम्पुरा
मूली  कुर्सी  रायता 
मूली चाट /चटनी
मूली का चीनी ससोप आदि जु अप प्रचलन म आई गेन जनकि मीट मूली सूप


उत्तराखंड म रुड़की आदि स्थलों मूली अचार या शलजम मूली अचार प्रसिद्ध च
मिक्सड  मूली अचार
  उत्तराखंड   म मूली बनि बनि  सलाद म प्रयोग
मूली या मूला कटण  से बि  साग /भुज्जी क स्वाद परिवर्तित ह्वे  जांद।

Copyright@ Bhishma Kukreti
उत्तराखंड के पारम्परिक भोजन पदार्थ शृंखला to be continued
Traditional Food of Uttarakhand series  to be continued, Traditional Radish Garhwal recipe to be continued


Bhishma Kukreti

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    अंतर्राष्ट्रीय   प्राचीन पाककला ग्रंथ   (लघुतम इतिहास )
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    पाक कला ग्रन्थ माला - १
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उत्तराखंड पारम्परिक पाक कला श्रृंखला
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 उत्तराखंड  पारम्परिक  भोजन , पाक कला विद्यार्थी  व प्रचारक - भीष्म कुकरेती
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एक दैं एक चर्चा म बात ह्वे  कि  गढ़वळि म विज्ञान पर लिखे जाण  चयेंद त  मीन बोलि  टुक्क्म  पैल  नि चढ़ो।  म्यार बुलणो अर्थ छौ पैलो   इन साहित्य ल्याखो जां से बंचणो  ढब पोड़ो।  मीन  सोशल मीडियाम  अनुभव कार बल भोजन संबंधी गढ़वाली लेख नि  बंचण  वळ  बि बंचण  मिसे जांद।   अधिकतर बंचनेर टिप्पणी /प्रतिक्रिया बि गढ़वाली म दींदन।  तो विज्ञानं से भलो तो भोजन व सड़क छाप /पॉप /पॉपुलर साहित्य रचण चयेंद।  इलै  मि  कै ना कै  प्रकारन  पाक , कला साहित्य गढ़वळि म रचदु। 
 आज अंतर्राष्ट्रीय प्राचीन पाक कला ग्रंथों पर चर्चा करे जाय। 
  अभिलेखों से जणे  गे  बल सबसे पुराणों पाक कला ग्रंथ की रचना १९०० BC म ह्वे  किलैकि  यु सेक्वेन्सियल ग्रंथ एक पिरामिड म मील। 
 भारत म वेद अर  आयुर्वेद संहिताओं म भोजन पकाण , भोजन खाणै  कौंळ /कला क बड़ा म भौत लिख्युं च चूंकि  भोजन आयुर्वेद का एक अंग च तो यु आवश्यक बि  च।  चरक संहिताम (१००० BC  - ६ AD )  भौत सा भोजन का पकाणो  ब्यूंत बताये गे।  इनि  अन्य आयुर्वेद संहिताओं म बि।
 तमिल का प्राचीन साहित्य संगम साहित्य ( ६०० BC - ३ ०० CE ) म अव्वाऐयार (तीन महिला कवित्री ) न तमिल म पाक कला जन  विषय म कविता रची।  संगम युग्म इ भक्त वत्तस्लन भोजन पर रचना करी।  संगम रचनाओं म भोजन व पाक कला सबंधी साहित्य प्रचुर च। 
चोथो सदी म रचित ऐपिसियस द्वारा लिख्युं रोमन  ग्रंथ '  De  Re Coquinaaria  (पाक कला को महत्व ' की आज भी चर्चा हूंद अर आज बि प्रिंट हूणी  रौंदी।  ये ग्रंथ म ५०० से बिंदी भोजनों पकाणो विधि च अर ये ग्रंथ म भौत सा भारतीय मसालों विवरण बि  च।
१० वीं सदी म एक भोजन  पाक कला  ग्रंथ भी पर प्रकाश डळ दी  अर  यु ग्रंथ च मध्य एशिया क  सायर अल वरक  ग्रंथ किताब -अल -तबलिख (book of  dishes ) । 
मध्य एशिया म ही मुहमद बिन हसन बगदादी न बि १२३९ म  किताब -अल तबलिख का नाम से ग्रंथ रच। 
१३ वीं व १४ वीं सदी म चीन म एक ग्रंथ रचे गे  जैक नाम छौ  Yinshan Zhengyao  या भोजन व पेय का सिद्धांत , रचियिता च - हु सिहुयी। 
मानसोल्लास  १२ वीं सदी क  एक संस्कृत गंथ च जैक रचना कर्नाटक म ह्वे अर  चालुक्य राजा सोमेश्वर III को यु ग्रंथ रच्यूं  च। 
 एक मराठी ब्राह्मण रघुनाथ गणेश नवहस्त  द्वारा  नारियल पत्र म लिखीं रचित  ग्रंथ च 'भोजन कुतूहल' जु  देवनागरी म च।  ये ग्रंथ म पूर्व म संस्कृत म भोजन कला को विवरण मिल्दो। 
नल पाक कला दर्पण क बारे म बुले जांद बल १२०० सदी  को यु  संस्कृत ग्रंथ मौलिक रूप से राजा नल (मिथ रानी दमयंती पति न रची।  यु ग्रंथ हिंदी , अंग्रेजी , मराठी म उपलब्ध च।
१५०८ म जैन धर्मी मंगारसा III  न एक  जैको नाम छौ सूप शास्त्र  जु सम्पूर्ण शाकाहारी जैन भोजन पाक कला युक्त ग्रंथ  च। 
१६७० म कोरिया म एक स्त्री न एक रसोई कला पर ग्रंथ Eumsik   Dimibang  लेडी  जैंग रची।   एशिया म  भद्र महिला जैंग दुसर  महिला च जैन पाक कला पर रचना रची ( पैली तमिल संगम साहित्य माँ ) यु आश्चर्य च बल तमिल कवित्री तै क्रेडिट नई मिल्दो अपितु कोरियन कवित्री तै  प्रथम महिला पाक कला रचिता को श्रेय दिए जांद। जबकि संगम की अव्वाइयार  न थानी थिराट्टु का ३२  वां गीत म बताई - बल  भाप म पकायुं वर्गो भात, धुंवा (चुलो ) म बैंगन भरता , अर  खट्टो स्वादिस्ट छाछ  को वर्णन कर्युं  च।  (१ )
मालवा सुल्तनत  घिया शाही कालम लगभग १५०० म  एक ग्रंथ रचे गए जैक नाम छौ -  निम्मत नामा  जैमा कई भोजन पाक कला पर वर्णन च।
आईने अकबर (१५९० ) म कथ्या भोजनों पाक कला विधि क वर्णन हुयुं च।
अलवन -ए - नेमत ' (१७ वीं सदी ) म जहांगीर काल व महल का  १०१ भोजनों बाराम व पाक कला विधि पर   वर्णन मिल्दो।
नुश्खा  ए - शाहजहांनी  म भौत सा भों पाक कला को वर्णन मिल्दो   
१७९६ म  अमीला सिममनसन  सर्व प्रथम अमेरिकी पाक कला ग्रन्थ लेखी अर ग्रन्थ को नाम छौ ‘American cookery’ I

१३१०  म रच्यूं   ग्रंथ 'Le  Viandier ' का पांच पांडुलिपि मिल्दन।  इन विश्वास च ये पाक कला ग्रंथ कु  रचनाकार  Guila ume  छौ। 
एक अज्ञात लिखवार क ग्रंथ पाण्डुलिप मिलदी नाम च Libre de Sent  Sovi अब तो पांडुलिपि म  कथ्या  भोजन पाक कला जुडे  गेन  अर
  १३५० म रच्यूं  जर्मन पाक कला ग्रंथ ' Daz buch  von guter spise  (The  Book  of  Good  Food )  जर्मन भाषा को पैलो ग्रंथ च।  इखमा  भौत सी पाक कला आज भी प्रासांगिक छन।   
१३९३ म रच्यूं  Le Menagier De Paris ( Goodman of Paris) एक भद्र फ्रेंच पुरुषन अपण अनपढ़ पत्नी बान लेखी जखमा भौत सी सभ्यता सीख का अतिरिक्त पाक कला पर बि भरपूर चर्चा हुयीं च .
  केंट तै यूरोप की प्रथम महिला लिख्वार मने जान्द जैन्का पाक कला विधि पर  cookbook मृत्यु परांत सन 1653 म प्रकाशित हवेI   
१७९६ म  अमीला सिममनसन  सर्व प्रथम अमेरिकी पाक कला ग्रन्थ लेखी अर ग्रन्थ को नाम छौ ‘American cookery’ I
अठारवीं  उन्नीसवीं सदी म कुक  बुक , पाक कला विधि (recipe ) म अति विकास  ह्वे  जांक  बारा म अगवाड़ी  लिखे जाल।   

 Copyright @  Bhishma kukreti
 History of World's Cookbooks in Garhwali language, First Garhwali write up on World's cookbook  Cookbooks., गढ़वळि म सर्वपर्थम पाक कला  ग्रंथों इतिहास , पाक कला ग्रंथ विचार -चर्चा
 


Bhishma Kukreti

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गुड़ तै दुबर  बड़ो स्थान  मिलण  आवश्यक च। 
उत्तराखंड पारम्परिक भोजन श्रृंखला
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 भीष्म कुकरेती
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उन  त  उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इन च कि  इख पहाड़ों म ईख /गन्ना  या तो भाभर या तलहटी वळ गाऊं  म पैदा हूंद छौ।  गन्ना  केवल अपण  घर बार  क वासिंदो वास्ता इ पैदा करे जांद छौ।  आदि काल से इ पहाड़  लूण  गूड़  आयात ही करदो आयी।  ब्रिटिश कालम भूमि गुड़  से न्यून मूलयवान छे।  तबि  भौत सा गाँवों म लोक कथा छन बल एक गाँव का लोगुंन खीर की थाळी म बौण  बेचीं।  खीर की थाळी  अर्थात गुड़  उपलब्धि।   
 उत्तराखंड सदा से गुड़  मिठो  बान  कम आयात करदो छौ स्वास्थ्य दृष्टि लाभदायी अधिक कारणों से आयात करदो छौ।  ब्रिटिश कालम  बिजनौर , मुरादाबाद , सहारनपुर  म गुड़  उत्पादन से उत्तराखंड म गुड़ उपभोग बढ़।   चीनी उपलब्धि से गुड़ौ महत्व कम ह्वे  अब  समय च गुड़ उपयोग बढ़न  चयेंद। 
 अब गुड़क उपभोग न्यून ह्वे  गे  जु  भलो नी।  गुड़ का स्वास्थ्य कुण  निम्न लाभ छन -
गुड़   पेट समस्या  (पाचन व गैस कम ), खट्टी डंकार  म लाभदायी
सर्दी कफ हूण  पर गुड़  लाभदायी
 गुड़  अर  आदो  गरम करी खाणम कफ /खरास कम हूंद अर  आवाज बि  सुदरदि। 
गुड़  जोड़ो दर्द म लाभदायी हूंद बल।
थोड़ा थोड़ा रोज गुड़ खाण  से मुंहासा कम हूंदन बल। 
एलर्जी विरोधी तो  स्वास  रोग ,  गळ बैठण  जन रोग म  लाभदायी।
गुड़  घी दगड़  खाण  से कंदूड़ुं  डा  कम हूंद बल।
पीलिया म गुड़ -सोंठ  दगड़ खाण  से लाभ मिल्दो
मासिक धर्म म लाभदायी
गर्मी म तीस लग तो पाणि  दगड़  ठंडाई
गुड़  भूख बढांद , स्मरण शक्ति वृद्धि म लाभदायी , भर न्यून करणम लाभदायी
उपरोक्त रोग मुक्ति इना  उना  संदर्भ से ले  तो वैद्य या डॉक्टर म जाण  आवश्यक। 
 Copyright Bhishma Kukreti
Importance of Jiggery in Uttarakhand Traditional Food, Health   Importance of Jiggery in Uttarakhand

Bhishma Kukreti

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   भारतीय  भोजन का बाराम  दोषपूर्ण मिथ / अनुचित धारणाएं
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उत्तराखंड पारम्परिक भोजन श्रृंखला
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भीष्म कुकरेती
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 तुमन बि मीन बि , हमन बि  भौत सी  भारतीय भोजन  संबंधी बथ  सूण  होला विषेशतः पश्चिम लोकुं  लिख्युं पर विश्वास करीक जु  बथ   वास्तव म सत्य व वैज्ञानिकता से भौत दूर छन।  अधिकतर भारतीय  सुणदा  छन अर  अफु  तैं  हीन  माणिक मान लीन्दन  बल भारतीय भोजन तनि  च।  कुछ मिथ छन जु  सत्य नी  छन अर विज्ञानं प्रमाणित नि  छन -
१- भारतीय भोजन याने करी - यु सत्य से दूर च आधा से बिंडी  भरतीय भोजन पंद्यर /करीयुक्त नि  हूंद।  रुटी , सूखी सब्जी। इडली चटनी , अचार  आदि आदि
२ - मैक्सिकन रोटी अर  भारतीय रोटी इकजनि  हूंदन।  मैक्सिकन रोटी खमीर आदि से बणद , मुंगरी आटो से बणद  अर  भुजी तै लपेटी खये जान्द  जबकि  भारीय रोटी तोड़ी खये जांद। 
३- कढ़ी अर करी म अंतर् - भैर वळुं  तै कढ़ी (दही कढ़ाईक ) अर  करी (पंद्यर  साग ) म अंतर नि  दिखेंद।  झोळ माने कै  आलणदार भोज्य पदार्थ को तरीदार भोज्य। 
४-  मच्छी अर  दूध कु संजोग से मनिख बीमार या त्वचा रोगी ह्वे जांद।  सत्य नी  भारत म भौत सी विधि मच्छी म दूध मिलैक ही छन।
५- सब भारतीय भोजन मसालेदार व मर्चण्या  हूंदन।  असत्य जरा ५० साल पैलाक  पहाड़  या ग्रामीण भारत का भोजन अनुभव कारो तो यु असत्य मिथ का बड़ा म पता चल जालो।   लाल मिर्च तो पुर्तगाली आण  उपरांत भारत म आयी  तो मर्चण्या भोजन का बरम मिथ कनै  बण  होलु ?  भारत म आज बी गरम  मसालों भोजन म प्रयोग औषध अनुरूप ही हूंद।
६- नान ही भारतीय रोटी च - सत्य नी  किलैकि भारत म पचास से अधिक रोटी प्रकार छन। 
७- भारतीय शाकाहारी मनिख अर  विदेशी शाकाहारी व्यक्ति म अंतर् नि  हूंद।  विदेशों म शाकाहार  स्वास्थ्य कुण  हूंद तो भारत म या एक संस्कृति च।  भारतम मांशाहारी बि  प्रत्येक समय मांशाहारी भोजन नि  करद। 
८- भर म बीफ नि  खाये जांद बि  असत्य च।  भैंस कु  मांश तो खाये जांद। 
९ -भारतीय भोजन अस्वास्थ्यकारी च अर  भर बढंदेर च बि  असत्य धारणा  च।
१०-  भारतीय भोजन पकाण  कठिन च बि  असत्य च। 
११- क्याळा  भार  बढ़ांद असत्य च
१२-देसी घी चर्बी बढ़ांद  तो भार बढ़ांद - डालडा वळुं न यु भरम फैलाई छौ।  असत्य
१३ - सब चौंळ  इकजनि  धारणा  बि  भ्रामक च।
१४-  सब मिठाई भौत मिठ  हूंदन  धारणा बि  असत्य च अर   विदेशी चॉकलेट  सरीखा ब्रैंडों  की मक्कारी च।
१५- गली का भोजन अस्वास्थ्य करि हूंदन बि  असत्य धारणा च।  अंग्रेजों द्वारा फैलायीं धारणा च। 
१५ - सरा भारतम इक्सनि  भोजन धारणा बि   अनुचित च। 

सर्वाधिकार @ भीष्म कुकरेती २०२१
प्रसिद्ध रुस्वाळुं लेख मिलैक लेख त्यार ह्वे  तो मौलिक नी  च। 
भारतीय भोजन बारे में असत्य धारणा ,  भारतीय भजन के बारे में असत्य मिथ , विदेशियों की भारतीय भोजन के बारे में अनुचित धरणाएँ


Bhishma Kukreti

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  कुछ भोजन जु  दुर्भिक्ष या अकाल का  उत्तराखंड समेत भारतीय भोजन
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उत्तराखंड का पारम्परिक भोजन श्रृंखला जमती के परिपेक्ष म
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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  भारतम विशेषतया राजस्थान , आगरा , बंगाल अदि स्थलोंम भयंकर सूखा पड़न से अकाळ पड़द  छौ तो मनिख कई इन  भोजन करदो छौ जु साधारण स्थिति हम नि  सोचि सकदा। 
 कुछ पादप तौळम छन जु  भारत म अकाळम खाये जांद छा-
जमाती की बेल - पत्ता
हुलहुल/जख्या  पत्ती  उत्तराखंड म बि  भुखमरी भोजन राई च )
कुल्फ़ा /लुण्या  - पत्ता , उत्तराखंड म बि  साधारण समय व दुर्भिक्ष समय बि
भौत दैं  पत्तों तै बजरो  आटो  दगड़ मिलैक बि खाये जांद छौ।
  अमरूल - पत्ता   
  इमली - बीज व पत्ता   
इन्द्रयान - बीज
  कनफुटि फल , पत्ता , तना
करौंदा - फल
कलम्बी -पत्ता , कच्चा तना
   कसौंदी - पत्ता 
कंकोड़ा -  फल अब  मंहगाी  सब्जी
काँघी - बीज का आटु , उत्तराखंड म बि  कोदा आटो  दगड़  दुर्भिक्ष कु  भोजन
काँटा आलू - जड़
काला धमण - बीज
कुमाट - बीज
कुरो - बीज
खप्परकदु - जड़ , पत्ता
खैणु / तिमल /बेडु - पत्ता , फल , गूदा
खोकली - पत्ता
ग्वीराळ - कली
गाडबनी -पत्ता   
गंगारा -पत्ता फल
  गोदाली - बीज   
गुंदी - फल
घटबौर -पत्ता
   चकुण्डा - बीज   
जंगली मर्सू , चौलई - पत्ता व बीज
जंगली अरबी - पत्ता व जड़
जंगली ज्वार  आदि - बीज
  टर्की - बीज 
टोन्डली - अब मुख्य सब्जी बि  ह्वे  गे
  ढाक - जड़   
  दनसार - पत्ता अर  फल   
नागफनी - फूल , फल
नीम /डैन्कण  - फल
पाथरी - पत्ता
फंजी -पत्ता
बथुआ - पत्ता
बबूल -  बीज अर पत्ता
बरगद - फल
बांकु - पत्ता , जड़
बांस - तना , बीज
बावची - बीज
बिसलंभि , कचरी - फल
बिसतेन्दु -फल , बक्कल
  बेर - फल   
भुरुत - बीज
मकोई - पत्ता , फल
मतीरा - गूदा , बीज
महुआ - फल व फूल
मालू - पत्ता , टांटी
  मुगनी - फुळड़ /बीज 
रामबांस - पत्ता का गुदा
लटजीरा - पत्ता 
लसोड़ा - फल , पत्ता
लैन्टीना - बीज
लाल लथुरिया - पौधा
सतावरी - जड़
सकिन -जड़
सफेद मुर्गा -पत्ता
सहजन - सब भाग
सांगरी , जंत - राजस्थान को पारम्परिक भोजन बि  च।  फुळड़ , छल , बीज , पत्ता
सफेद किक्कर / बबूल - फुळड़ , छल कु आटो
सांती - पत्ता
सिमुळ - घ्वागा,  क सेपल्स अर पेटल्स द्वी  , छाल , जड़
सुरै  - तना का भीतरी गूदा
हल्कूरा -पत्ता

 यांक अतिरिक्त भौत सा स्थानीय पादप होला जु  अकाळ /दुर्भिक्ष म उपयोग हूंदन।  भौत साा  दुर्भिक्ष का भोज्य पदार्थ आज मैंगो  भोज्य पदार्थ बि  ह्वे गेन (Niche Food )  जन ग्वीराळ  आदि I हॉट सा भोज्य पदार्थ दुर्भिक्ष से आम भोजन बि  ह्वे  गे। 
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 संदर्भ - भीष्म कुकरेती - उत्तराखंड परिपेक्ष में वन पादपों का इतिहास - नेट में उलब्ध
डा शिव प्रसाद डबराल - उत्तराखंड का इतिहास
भार्गव ,के एस , सम अनयूजुअल ऐंड  सप्लीमेंटरी फूड प्लांट्स ऑफ़ कुमाऊं
गैमी - ए  नॉट ऑन प्लांट्स यूज्ड फॉर फ़ूड ड्यूरिंग फेमीन्स ऐंड सीजंस ऑफ स्केर्सिटि
राजकुमार गुप्ता , के सी कनोडिया , प्लांट्स यूज्ड ड्यूरिंग स्केर्सिटी ऐंड फेमिन पीरियडस इन द  ड्राई रीजन्स ऑफ इंडिया
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सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती
दुर्भिक्ष में भारत में भोजन , अकाल में भारत में भोजन , कुछ भोजन जो अकाल में उपभोग होता है।  उत्तराखंड का दुर्भिक्ष के भोजन , उत्तराखंड के अकाल भोजन

Bhishma Kukreti

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गहथ /गैथ /कुल्थी क बनि बनि पकवान

Recipes  of  Horse  Gram
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(उत्तरखंड के पारम्परिक पकवान श्रृंखला )
( Traditional  Recipes  of  Uttarakhand  series )
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संकलन - भीष्म कुकरेती
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गहथ भौत प्राचीन भोजन च हमारो।  उत्तराखंड म  ब्रिटिश काल से पैल  गहथ/ कुल्थी  भौत इ महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ छौ।  जन जन धन बढ़ उत्तराखंड म गहथौ /कुल्थी का महत्व न्यून हूंद गे। 
 अब  पुनः जाग्रति कारण गहथौ / कुल्थी क महत्व वृद्धि हूण  लग गे  . अब उत्तराखंडी food -fusion  संस्कृति का हूंद भौत सा इन  भोजन पकाण मिसे गेन  जु  कुछ समौ  पैल  बिसर गे  छा या दुसर  क्षेत्रम प्रसिद्ध पकवान च।  दिखे जाय गहथ / कुल्थी से क्या क्या पकवान बण दन धौं -
 गहथ /कुल्थी की  दाल
   गहथ /कुल्थी   को रसम
   गहथ /कुल्थी फाणु
    गहथ /कुल्थी सांबार
भिजयां, अंकुरित      गहथ /कुल्थी का सलाद
भिजयां   गहथ /कुल्थी का मस्यट  म पालक।  कन्डाळी  डाळिक कपिलु
गुड़ दगड़   गहथ /कुल्थी  को   हलवा
भिगयां    गहथ /कुल्थी का सूप /रस
उसयां   गहथ /कुल्थी को सूप

 रोट / रुटी लगड़ी  . पकोड़ी आदि -
   भिगयां  गहथ /कुल्थी का पराठा   /भरीं  रोटी  (बनि  बनि  आटो  दगड़  बनि बनि  रोट व पराठा , भरीं रुटि )
उसयां   गहथ /कुल्थी का मस्यट  (पीसकर dough  or  filling  )   पराठा / भरीं रुटि
उसयां   गहथ /कुल्थी भर्यां  स्वाळ /कचौरी
   भिजयां  गहथ /कुल्थी का मस्यट  से पकोड़ो   
  भिजयां    गहथ /कुल्थी का मस्यट   से पटुड़ी  ( घी या तेल में मोटी रोटी ) 
भिजयां   गहथ /कुल्थी मस्यट  से डोसा जन लुण्या लगड़ी
उसयां   गहथ /कुल्थी क  मस्यट  की टिक्की
काचो गहथ /कुल्थी की टिक्की
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   गहथ /कुल्थी उसेक बुखण /चबेना
    गहथ /कुल्थी दग्ड़  बनि  बनि  दाळ  उस्यै  क बनि  बनि  बुखण  (सलाद )
भिजयां  गहथ /कुल्थी मस्यट से पकोड़ी /बड़ा
  गहथ /कुल्थी काचो  या उसयां  मस्यट से कबाब   

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    गहथ /कुल्थी  दाण   पीसिक चैंसू  जन  भोज्य
   गहथ /कुल्थी दाल  पीसिक हरी पत्तियों दगड़  कपिलु आदि
 बनि  बनि  दाळुं  दगड़      गहथ /कुल्थी  का चैंसू  जन पकवान
  बनि  बनि  दाळुं  दगड़      गहथ /कुल्थी  का आटो  दगड़  पत्ता मिलैक कपिलु जन पकवान
    गहथ /कुल्थी क दाल पीसिक कई प्रकारो /रोटी /टिक्की व रसम /करी / सूप आदि
 मशरूम सरीखा सब्जी म  गहथ /कुल्थी क आटो  तै आलण प्रयोग से पंद्यर साग
  गहथ /कुल्थी का आटो  दगड़  दही।  छाछ से कई प्रकार का पळ्यो व झुळ्ळी /कढ़ी
    गहथ /कुल्थी आटो  से डोसा व इडली
  गहथ /कुल्थी का आटो  से हलवा
भिजयां     गहथ /कुल्थी का मस्यट से हलवा
  गहथ /कुल्थी से  मिठी ठंडाई /शरबत
  गहथ /कुल्थी का डुसका   

    गहथ /कुल्थी की बड़ियां
  गहथ /कुल्थी की पिंडाळु / नाल / तुमड़  /भुज्य लु  दगड़  बनि  बनी बड़ियां
    गहथ /कुल्थी हौर  दाळुं  दगड़  बड़ियां -
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खिचड़ी /पुलाव
  गहथ /कुल्थी का  चौंळ / झंगोरा /बाजरा / जवारौ  दगड़  दाळुं  खिचड़ी
  गहथ /कुल्थी का दळिया  दगड़  ग्यूं , चौंळ दलिया व झंगोरा , दळ्यूं  बाजरो /जुंडळो  ,  दळीं  दाळुं  दगड़   बनि  बनि  दलिया
  गहथ /कुल्थी अर  बनि बनि  सब्ज्यूं  दगड़  पुलाव

आलण - गहथ /कुल्थी का कई पकवानों म आलण (Curry base )
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  गहथ /कुल्थी का चकली
भिजयां  गहथ /कुल्थी से खट्टी चटनी - भांग दगड़  चटनी
   
   सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती


Bhishma Kukreti

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कंडाळी  की  शराब (जिन ),  बिच्छू बूटी चाय ,  बिच्छू बूटी का काढ़ा व अर्क   पाक विधि
 
कंडाळी पेय (चाय जन ), काढ़ा , शराब / अर्क   पाकविधि
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(बिच्छू घास , वृस्चकली , सिस्नु पेय, काढ़ा , शराब  पाकविधि )
(Recipe for Nettle sting  tea,  Nettle  Sting  infusion ,  Nett Sting le wine  )
उत्तखण्ड के पारम्परिक भोजन व पेय श्रृंखला
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रुसाळ - भीष्म कुकरेती
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कंडाळी   एक  बहुलाभदायी पादप च जु हिमालयी क्षेत्र म पाए जांद।  उत्तराखंड म साग क अतिरिक्त वैद्य औषधि भी उपयोग म लांदन
औषधीय लाभ -
एंटी टॉक्सिक गुण
 शक़्कर नियंत्रण
एलर्जी न्यून करणम लाभदायी
लोहा , मैग्निसियम ,क्रोमियम मिल्दो
हरी सब्जी का सब लाभ
विटामिक K  मिल्दो जो रक्त स्राव।  रक्त जमा कोलस्ट्रोल तै नियंत्रित करदो   
 कंडाळी क पत्ता  सुन्न पड़्युं  शरीर तै जागृत करदो।
सर्दियों म सर्दी जुकाम ठीक हूंद। 
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   कंडाली , बिच्छू घास सिसनु की चाय याने कंडाली  काढ़ा या पेय पकाणो  विधि
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पेय या साधारण  कंडाळी चाय पकाण
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 सामग्री -
एक कप कंडाळी/बिच्छू बूटी  पत्ता ,
२ कप पाणि
पाणि उबाळो अर  ुख्म सूखा या हरा कंडाळी पता डाळी उबाळो . हरा पत्ता देर तक उबाळो
उतारो अर शहद डाळो हलावो अर  कुछ शीट हूण  पर प्यावो . लूण बि डाळ  सकदा। पकाणो समय - ५ मिनट
चाहो तो हरी चाय या कम काळी  चाय पता बि  उबाळ सक्यांद। 
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 कंडाळी काढ़ा / बिच्छू बूटी काढ़ा , सिसनु काढ़ा
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कंडाली , चाय तै ४ से ५ घंटा उबाळो , एक कप कंडाळी पत्ता म ४ कप पानी

कंडाळी /सिसनु .बिच्छू बूटी से  अर्क   या शराब (जिन जन ) बणान
शराब बणानो विधि से कंडाळी   अर्क  या शराब बि उत्पादित हूंद जो औषधि रूप म प्रयोग हूंद।
 
अधिक जानकारी बान  वैद्य की सलाह आवश्यक च। 



Bhishma Kukreti

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कटहल की पारम्परिक बिरयानी

 उत्तराखंड पारम्परिक पाक कला /भोजन श्रृंखला
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रूसाळ - भीष्म कुकरेती
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 भौत सा म्यार पाठक पुछदन  बल मि  बिरयानी या पुलाव आदि जन भोजन तै पारम्परिक भोजन किलै माणदु ? तो  मि  बुल्दु   बल हम तै ध्यान दीण  चयेंद  बल पहाड़  को ही अर्थ उत्तराखंड नी  च।   हरिद्वार , बिजनौर को कुछ भाग , सहारनपुर का कुछ भाग अर  कुमाऊं भाभर  मुगल , रोहिला , सय्यदों अंतर्गत राई च तो   बिरयानी उत्तराखंड म एक पारम्परिक भोजन राई च। 
 आज कटहल की बिरयानी कन  पकाये जांद बताये जाल।
 सामग्री -
कटहल - शत प्रतिशत शाकाहारी
 कटहल  कट्यां  टुकड़ा - एक प्याली /चषक
चौंळ - २ चषक अधपक
कट्यां प्याज - ४ प्याजों
कटीं हरी मर्च - १
लाल मर्च - १
तेजपत्ता - २- ३
आदो।  ल्यासणो  पेष : पेस्ट - १  (चमस ) चमच
बिरयानी मसाला - २ चमच ( धनिया , गरम मसाला अदि )
लाल मर्च चूरा - १ चमच
हल्दी चूरा -  १ चमच
 घी , जीरो लूण  स्वाद अनुसार
धणिया, पुदिणा  पत्ता
प्याज   छल्ला भूरा भुन्यां
पाक विधि -
एक पतीला म दाळ  चीनी , काळी मर्च , लौंग का साथ  चौंळ  आधा पकाओ। 
 कटहल तै कुछ समय तक टींदा /पेस्ट मसाला म ,   बिरयानी मसाला , ल्यासण -आदो पेस्ट क दगड़  मेरिनेट करणो  छोड़ द्यावो।
  मध्यम   आंच म प्रेसर  कुकर  गरम  कारो
घी गरम कारो  तब ए  म कट्यां प्याज , जीरो लाल मर्च साबुत ,  कटीं  ह्रीं मर्च  भूनो
  अब मैरिनेटेड कटहल भूनों खूब भूनो  अर  अधपक तक कम पानी म पकाओ।  कुछ समय प्राणर कटहल उतार द्यावो।
अब पुनः प्रेसर कुकर म कुछ  अधपक  चौंळ  डाळो।
 अब आधा भु भुन्यां   कटहल चौंळ   ं,  धनिया , पोदीना पत्ता दगड़  बिछाओ
अब पुनः चौंळ  बिछाओ फिर कटहल बिछाओ  दगड़ म ,   बारीक  कट्यां काजू , पिस्ता डाळो
तब कम पाणिम ढक्क्न धौरि  कुछ देर कुण  पकाओ।
बिरयानी तैयार
पक जावो तो कुछ गरम मसाला चुरा डाळो अर  धणिया  पत्ता से गार्निश कारो। 
  गर्मागर्म परोसा। 

Bhishma Kukreti

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The Traditional culture of Dehydration  under Sun of Vegetables and fruits in Uttarakhand
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Bhishma Kukreti
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       The human beings learnt preserving the food in the season for non-season uses from the time human beings started forming society or earlier than that time   In Uttarakhand too, the society used to preserve food articles in the main season for uses in non-season time.
  There were many ways for preserving foods /vegetables/ fruits, pulses, grains etc.  There were various ways and means for preserving food articles in Uttarakhand as-
 1-Preservation food Articles through Sun dehydration- most of food items as grains, vegetables etc
2- Preservation food Articles through Smoke dehydration
3- Preservation food Articles through making Bari, pickles, jams, juices and keeping juices with gud/jiggery in pitcher etc
  The dehydration (suksa) of processed vegetables and fruits –
There used to be culture of making dehydration through Suksa making methods . Suksa means sukhana or drying.
 Suksa means dehydrating the vegetables or fruits through drying the articles under sun or in shade or in night.
 Following vegetables and fruits are /were used for preservation through sun drying of drying through shade, and  when the cut vegetable are dried well, those dehydrated cut radish pieces are kept and at the time of uses in non -season, the pieces are re hydrated by soaking –
 Radish (moola, Hill radish) - The roots  are  cut and dried under sun for 4 -5 days (usually in October or November.
Radish (mooli) -The roots are cut and dried under sun for 4 -5 days (usually in October or November..
Beetroot-  dehydration through sun dehydration
 Turnips (shaljam) – The roots are e cut and dried under sun for 4 -5 days or more
Carrots - The roots are cut and dried under sun for 4 -5 days
Cauliflower- - the flowers are cut and dried under sun for 4 -5 days

Bitter Guard- The vegetable is cut into pieces and dried under sun for 4 -5 or more days.
Jackfruits – The edible parts of jack fruit is cut into pieces and dried for 4 – 5 days.
 The bulbs and roots of Onion and garlics are dried and preserved as everywhere. However, the leaves of onion and garlic are dehydrated either under sun /shade and then kept near smoke for long time preservation.
 Buds of  Malabar nut  are boiled, then kept under cold water and then  those processed buds ar died under sun and are used in non-season period.
 Bay leaves (dalchini patta) and barks are dried under sun for preservation.
The leaves and stem of fenugreek (Methi) are dried under sun for preservation in Uttarakhand and are used as spices.
The leaves and stem of Goose foot is dried under sun
The raw green mango fruits are cut and dried under sun for making mango powder or Amchur.
The ( Anwala)  fruits are dried under sun fully or cut and then dried (usually for medical uses )
The pomegranate ripped seeds are dried under sun for preservation.
The Ginger rhizomes  are dried under sun and converted into Sont and powdered too.
The roots/ bulbs / tubers of Colchicum (elephant ear yam) , taidu (a yam),  garlic, onion, ginger, are too dried under sun for preservation.
Mint leaves are sun dried and preserved in powder form
The Pumpkin fruits are kept for months under sun on top of rood as preserving method.
 In many regions, the goat or wild animal mutton is kept hanging on door head of the kitchen (dehydration through smoke and sun).
In some cases, drumstick pods, leaves dehydration under sun was also found .
In many cases, it is found people dry fish for preservation.
The grains and pulses are dried as happened in other Indian parts and pickling too.
Copyright@ Bhishma Kukreti
The Traditional culture of Dehydration of Vegetables and fruits in Uttarakhand to be continued; The Traditional culture of Dehydration of Vegetables and fruits in Garhwal ; The Traditional culture of Dehydration of Vegetables and fruits in Kumaon to be continued

 

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