Author Topic: Domestic Treatment - घरेलू उपचार, उत्तराखण्ड की महान औषधीय परम्परा  (Read 56187 times)

पंकज सिंह महर

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पेट की खराबी का उपचार

यदि पेट में गड़गड़ाहट हो, अजीर्ण हो या जी मचल रहा हो तो हिसालू के पेड़ की जड़ें खोदकर पानी से धो लें और खूब कूट लें और पानी मिलाकर पीस लें और कपड़े से छान कर उसका २०० से २५० मि०ली० पानी पी लें। इससे पेट का सूखापन, कीड़े, अजीर्ण, गैस आदि पेट के सारे विकार दूर हो जाते हैं।

Mukesh Joshi

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बीमारियों के लिए रामबाण है माल्टाNov 27, 10:40 pm

पौड़ी गढ़वाल। स्वाद व स्वास्थ्य के हिसाब से बेहद उपयोगी रसदार फल माल्टा इन दिनों बाजार में धूम मचाए हुए है। विभिन्न औषधीय गुणों को लिए यह औषधीय फल कई उदर संबंधी बीमारियों के लिए रामबाण साबित होता है। जनपद में इस माल्टा फल का उत्पादन प्रतिवर्ष औसतन 3132 मैट्रिक टन होता है। इस फल के रसास्वादन की लालसा यहां आने वाला हर सैलानी रखता है।

समुद्र तल से करीब 4 हजार से 6 हजार फीट की ऊंचाई वाले ठंडे इलाकों में अत्याधिक मात्रा में होने वाले इस फल का वैज्ञानिक नाम साइटस साइनेंसस है, और करीब 22 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके उत्पादन के लिए बेहद उपयोगी माना जाता है। आकार में गोल एवं रंग मे पीला इस रसीले फल का उत्पादन जनपद पौड़ी के शीर्षस्थ इलाकों में भी काफी मात्रा में भी होता है। दिसंबर से फरवरी माह के दौरान काश्तकार अपनी नाप-तोल की खेती में इस फल का उत्पादन व्यावसायिक खेती के रूप में करते हैं। आमतौर पर जूस बनाने व कच्चा खाने में इसका प्रयोग किया जाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों से इस फल ने व्यावसायिक रूप ले लिया है। बीरोंखाल, नैनीडांडा, पाबौ एवं थलीसैंण मे इस रसीले फल का उत्पादन अत्याधिक होता है। वर्ष 2007-08 में जनपद के 2243 हेक्टेयर भू-भाग पर कुल 5132 मैट्रिक टन माल्टा का उत्पादन हुआ था। जबकि इससे पिछले वर्ष 2006-07 में जनपद के 2394 हेक्टेयर भू-भाग पर कुल 4413 मैट्रिक टन माल्टे का उत्पादन हुआ था। यह फल जहां विभिन्न औषधीय गुणों से लबरेज होने के कारण कई उदर संबंधी रोगों के निवारण के लिए रामबाण साबित होता है। इस रसीले फल में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्साधिकारी डा. सुरेखा सिंह बताती हैं कि इस यह पूरी तरह सौंदर्यव‌र्द्धक फल है। यह खासतौर पर चर्मरोग के निवारण के लिए कारगर साबित होता है। उन्होंने कहा कि इसके सेवन से पाचन क्रिया ठीक रहने के साथ ही कब्ज समेत अन्य उदर संबंधी रोगों का निवारण हो जाता है। इन दिनों यह फल बाजार में 10 से 12 रुपये प्रतिकिलो बिक रहा है। स्थानीय क्यार्क गांव के किसान विजेंद्र रावत ने बताया कि माल्टा का उत्पादन काश्तकारों द्वारा काफी मात्रा में किया जा रहा है और यह कुछ सीमित अवधि के लिए ही सही लेकिन आर्थिकी का जरिया भी बन रहा है। सरकार ने माल्टा खरीदारी का जिम्मा जीएमवीएन को सौंपा है। लेकिन यहां से किसानों को कोई खस राहत नहीं मिल रही है। जीएमवीएन के उपाध्यक्ष जसपाल सिंह नेगी ने बताया कि निगम का उद्देश्य काश्तकारों को माल्टा के विपणन की समस्या से निजात दिलाना है। इसके लिए निगम प्रयास कर रहा है।

Mukesh Joshi

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गोमूत्र में है बड़े गुण Dec 30, 01:03 pm

देहरादून। अब गोमूत्र भी बिक रहा है और वह भी पूरे पांच रुपये प्रति लीटर। जी हां, उत्तराखंड के टिहरी जिले में कोटेश्वरम के आयुर्वेदाचार्य स्वामी विषुदानंद महाराज के गोतीर्थाश्रम में दवाईयां बनाने के लिए न केवल आश्रम की डेढ़ सौ गांवों का मूत्र एकत्र किया जाता है, बल्कि पांच रुपये प्रति लीटर की दर पर इसे बाहर से भी खरीदा जाता है।

उत्तराखंड गोसंव‌र्द्धन समिति के संरक्षण में चलने वाले स्वामी विषुदानंद महाराज के गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र के अलावा योग गुरु स्वामी रामदेव के पतंजलि योगपीठ हरिद्वार में भी गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से कई रोगों की दवाइयां बनाई जाती हैं। स्वामी विषुदानंद ने बताया कि उनके केंद्र ने गोमूत्र के अर्क तथा जड़ी-बूटियों से हृदयरोग के लिए गोतीर्थ हृदयरक्षक, उच्च तथा निम्न रक्तचाप के लिए गोतीर्थ रक्तचाम नियंत्रक, मधुमेह के लिए गोतीर्थ मधुमेहहारि, शरीर के भीतरी तथा बाहरी अंगों की सूजन दूर करने के लिए गोतीर्थ शोधहर, मोटापा घटाने के लिए गोतीर्थ मेदोहर अर्क, जोड़ों के दर्द, गठिया, आर्थराइटिस के लिए गोतीर्थ पीडाहर, पेट के विकारों के लिए गोतीर्थ उदर रोग हर, खुजली और फोड़े, फुंसियों, दाद, रिंगवर्म तथा रक्त दोष जन्य विकारों के लिए गोतीर्थ अर्क, गुर्दो की कार्यप्रणाली तथा गुर्दे के रोगों के लिए गोतीर्थ लीवर टानिक, एड्स और यौन रोगों के लिए गोतीर्थ यौवन रक्षक अर्क एवं बवासीर के लिए गोतीर्थ बवासीर नाशक सहित लगभग 24 औषधियों का निर्माण किया है।

स्वामी विषुदानंद ने दावा किया कि गोमूत्र अर्क तथा जड़ी-बूटी मिश्रित औषधियों के सेवन से असाध्य और लाईलाज बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा ये औषधियां काफी सस्ती भी हैं जिससे गरीब लोग भी इनसे उपचार कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि इन पवित्र औषधियों के सेवन से केवल शरीर की रक्षा ही नहीं होती बल्कि तन, मन, विचार, विकार तथा संस्कार सभी परिशुद्ध हो जाते हैं। लोगों में नई ऊर्जा का संचार होता है तथा मानसिक शांति की अनुभूति होती है।

गोमूत्र में फासफोरस, पोटाश, लवण, नाईट्रोजन, यूरिक अम्ल, हारमोन, साइटोकाइन्स तथा जीवाणु एवं विषाणु नाशक तत्व होते हैं। गव्य रसायन शास्त्र के मतानुसार गोमूत्र में नाईट्रोजन, गंधक, अमोनिया, तांबा, फास्फोरस, कार्बोलिक अम्ल, लेक्टोज, विटामिन ए, बी, सी, डी तथा ई, एन्जाइम, हिम्यूरिक अम्ल तथा क्रियेटिव तथा स्वर्णक्षार आदि तत्व पाए जाते हैं। दुधारू गाय के मूत्र में लेक्टोज भी मौजूद रहता है जो हृदय और मस्तिष्क के रोगों में बहुत लाभकारी है। आठ महीने की गाभन गाय के मूत्र में पाचक रस [हार्मोन्स] अधिक होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार गोमूत्र, लघु अग्निदीपक, मेघाकारक, पित्ताकारक तथा कफ और बात नाशक है और अपच एवं कब्ज को दूर करता है। इसका उपयोग प्राकृतिक चिकित्सा में पंचकर्म क्रियाएं तथा विरेचनार्थ और निरूहवस्ती एवं विभिन्न प्रकार के लेपों में होता है। आयुर्वेद में में संजीवनी बूटी जैसी कई प्रकार की औषधियां गोमूत्र से बनाई जाती हैं। गौमूत्र के प्रमुख योग गोमूत्र क्षार चूर्ण कफ नाशक तथा नेदोहर अर्क मोटापा नाशक हैं।

प्रसिद्ध आयुर्वेदाचार्य हरिओम शास्त्री के अनुसार गोमूत्र श्वांस, कास, शोध, कामला, पण्डु, प्लीहोदर, मल अवरोध, कुष्ठ रोग, चर्म विकार, कृमि, वायु विकार मूत्रावरोध, नेत्र रोग तथा खुजली में लाभदायक है। गुल्य, आनाह, विरेचन कर्म, आस्थापन तथा वस्ति व्याधियों में गोमूत्र का प्रयोग उत्तम रहता है। गोमूत्र अग्नि को प्रदीप्त करता है, क्षुधा [भूख] को बढ़ाता है, अन्न का पाचन करता है एवं मलबद्धता को दूर करता है। गोमूत्र से कुष्ठादि चर्म रोग भी दूर हो सकते हैं तथा कान में डालने से कर्णशूल रोग खत्म होता है और पाण्डु रोग को भी गोमूत्र समाप्त करने की क्षमता रखता है। इसके अलावा आयुर्वेदिक औषधियों का शोधन गोमूत्र में किया जाता है और अनेक प्रकार की औषधियों का सेवन गोमूत्र के साथ करने की सलाह दी जाती है। आयुर्वेद में स्वर्ण, लौह, धतूरा तथा कुचला जैसे द्रव्यों को गोमूत्र से शुद्ध करने का विधान है। गोमूत्र के द्वारा शुद्धीकरण होने पर ये द्रव्य दोषरहित होकर अधिक गुणशाली तथा शरीर के अनुकूल हो जाते हैं। रोगों के निवारण के लिए गोमूत्र का सेवन कई तरह की विधियों से किया जाता है जिनमें पान करना, मालिश करना, पट्टी रखना, एनीमा और गर्म सेंक प्रमुख हैं।

ब्रिटेन के डा. सिमर्स के अनुसार गोमूत्र खून में मौजूद दूषित कीटाणुओं का नाश करता है तथा पुराने घावों बढ़ते हुए मवाद [पीब] को रोकता है और यह बालों के लिए एक कंडीशनर की तरह उपयोगी है। दिल संबंधित रोगों, टीबी, और पेट की बीमारियों तथा गुर्दे संबंधी खराबियों में गोमूत्र और गाय के गोबर का मिश्रित इस्तेमाल काफी लाभकारी है। गुर्दे में पथरी के लिए 21 दिनों तक लगातार गोमूत्र का सेवन बड़ा लाभकारी सिद्ध होता है।

अमेरिका के डा. क्राफोड हैमिल्टन का दावा है कि गोमूत्र के प्रयोग से हृदयरोग दूर होते हैं और पेशाब खुलकर आता है। उनका कहना है कि कुछ दिन गोमूत्र के सेवन से धमानियां प्रसारित होती हैं, जिससे रक्त का दबाव स्वाभाविक होने लगता है। गोमूत्र से भूख बढ़ती है और पुराने गुर्दा रोग [रीनल फेल्योर व किडनी फेल्योर] की कारगर दवा है।

आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण आचार्य के अनुसार पंचगव्य चिकित्सा प्रणाली के द्वारा रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने और सुदृढ़ करने हेतु आधुनिक तकनीकों द्वारा अनेक अनुसंधान किए गए हैं। इसी श्रृंखला में गोमूत्र का चूहों की रोगप्रतिरोधी क्षमता पर प्रभाव का अध्ययन किया गया जिसमें पाया गया कि गोमूत्र में कुछ ऐसे रसायन तत्व मौजूद हैं जो प्रतिरोधी तंत्र को मजबूत करते हैं और शरीर की जीवनी कैंसररोधी गुण भी होते हैं।

स्वामी विषुदानंद महाराज ने बताया कि गौ विज्ञान अनुसंधान केंद्र नागपुर द्वारा किए गए अनुसंधान में पाया गया कि गोमूत्र कैंसर के उपचार में भी लाभकारी है तथा साथ ही कैंसर के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाईयों को भी प्रभावशाली बनाता है। उन्होंने बताया कि भारतीय चिकित्सा पद्धति में परंपरागत ढंग से उपयोग होने वाले तरीके विशुद्ध वैज्ञानिकता पर आधारित हैं। पंचगव्य चिकित्सा पद्धति केवल अपने देश में ही नहीं प्रभावी है, बल्कि इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन भी अपने स्तर पर प्रभावी कदम उठाने की तैयारी कर रहा है।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार टीबी जैसे रोग में इन दवाओं के साथ गोमूत्र का उपयोग करने पर न केवल दवा की कम मात्रा से ही रोग नष्ट हो जाता है, बल्कि औषधि लेने के कार्यकाल में भी काफी कमी आ जाती है जिससे समय और धन दोनों की बचत होती है।

गोतीर्थाश्रम के आचार्य ने बताया कि गोमूत्र के तरह गोबर में भी अनेक औषधीय गुण मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इटली के अधिकांश सेनेटारियमों में गोबर का प्रयोग किया जाता है वहां हैजा तथा अतिसार के रोगियों में ताजा पानी में गोबर का रस घोलकर देना दोषरहित चिकित्सा मानी जाती है। जिस तालाब में हैजे के कीटाणु हो जाते हैं, उसमें गोबर डालने से उनका सफाया हो जाता है। उन्होंने बताया कि इंग्लैंड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो जीई बीगेंड ने गोबर के अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर में तपेदिक तथा मलेरिया के कीटाणु मर जाते हैं। उन्होंने बताया कि ताजे गोबर का रस पंचगव्य का मुख्य अंश है जिसके प्रयोग से देह, मन और बुद्धि के विकारों का नाश होता है। उन्होंने कहा कि गोपालन के द्वारा उनके दूध, घी, मक्खन तथा उनसे बने पदार्थो एवं गोमूत्र और गोबर से बनी औषधियों से देश के करोड़ लोग स्वस्थ्य और निरोग बनने के साथ ही इनके व्यवसाय से लोगों की आर्थिकी मजबूत होगी साथ ही देश भी अंतरराष्ट्रीय अंतर पर इन औषधियों का व्यवसाय कर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकेगा।



खीमसिंह रावत

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सिसूंण अगर लग जाय तो बाघ क जानव (विशेष कर वरसात के दिनों में होता है इसके ताने के साथ तीन पत्तियां होती है जड़ एक गाँठ सी है) लगाने से तुंरत आराम मिलता है 

हेम पन्त

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यह "एलोवेरा"(Aloe Vera) का पौधा है, पहाङ में इसे "पतक्वार" के नाम से जाना जाता है. वैसे तो यह एक विश्व प्रसिद्ध औषधी है लेकिन पहाङ में इसका मुख्य उपयोग सामान्य जले-कटे घाव से आराम पहुंचाने के लिये किया जाता है.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पहाड़ में जहां-तहां पाया जाने वाला और किसी काम का न समझा जाने वाला 'सेहुंड' औषधीष पादप है। आयुर्वेद में इसे अनेक व्याधियों की अचूक औषधि बताया गया है।

'सुरू', 'श्योण', 'सुंडु' आदि नामों से पुकारी जाने वाली वनौषधि आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा पद्धति में प्रयुक्त होने वाली बहुमूल्य जड़ी-बूटी 'स्नुही' या 'सेहुंड' है। पर्वतीय क्षेत्र में इसे 'स्यूण' भी कहा जाता है। सेहुंड की दो प्रजातिया 'यूफोरबिया रायलियाना' व 'नेरिफोलिया' उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायत में पाई जाती हैं।

सेहुंड का छोटा वृक्ष करीब छह फीट तक ऊंचा होता है, जिसके मांसल एवं कांटेदार तने एवं शाखाएं गोलाकार या पंचकोणीय होती हैं। शीतकाल में इसकी पत्तियां झड़ जाती हैं और वसंत में हरे-पीले फूल एवं तत्पश्चात फल लगते हैं।

#आयुर्वेद में 'वज्रक्षार', 'स्नुहयादि तैल', 'स्नुहयादि वर्ति' सहित सैकड़ों औषधियों के निर्माण में सेहुंड का प्रयोग होता है। यह औषधियां पाचन, रक्तवह व श्वसन संस्थान के रोगों समेत अनेक चर्मरोगों में उपयोगी हैं।
#घरेलू चिकित्सा में सूजन एवं दर्दयुक्त स्थानों पर सेहुंड की पत्तियां गर्म करके बांधने पर तुरंत आराम मिलता है।
#कान दर्द में सेहुंड का दूध लाभकारी माना गया है।
#दांत दर्द में इसके दूध को रुई के फाहे के साथ रखा जाता है।
#इसके अलावा अनेक चर्म रोगों की घरेलू चिकित्सा में सेहुंड का दूध प्रयोग किया जाता है।
#बवासीर के अंकुरों पर दूध का लेप करने से वह नष्ट हो जाते हैं।
भगंदर की चिकित्सा में क्षार सूत्र के निर्माण में भी सेहुंड के दूध का प्रयोग किया जाता है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पेट दर्द होने पर लोग राख भी पेट पर मलते है ! कहा जाता है है इससे पेट दर्द ठीक हो जाता है अगर विशेष कर ठंडा होने पर !

पंकज सिंह महर

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Herbal medicine makes Uttarakhand rural women self-reliant
« Reply #57 on: March 24, 2009, 02:30:57 PM »

Ramnagar (Uttarakhand), Mar 24 (ANI): A self-help group is training rural women in herbal farming and medicines in Uttarakhand to make them self reliant.

Women of the Ramnagar area of Nainital District have joined the Navjyoti self-help group and are being trained in herb farming. They have created a small garden to grow herbs and from these herbs they are making medicines.

The self-help group consists of 19 women where they make various tonics, syrups and herbal oils.

“When we came to know about the uses of herbs, we circulated it around us because in our village, these herbs are easily available, especially in forest areas. They are very beneficial for us and have no side effects,” said Nanda, President, Navjyoti.

The herbal medicines prepared by this group are quite popular among the people living in this area and sometimes when the medicines are not ready they place their orders before hand so that once the medicines are ready they receive their medicines on time.

Suchetna Seva Samity is training this self-help group. According to them the reason behind the training is because herbs are easily available in this area.

“The herbs are naturally available in this area and besides sometimes allopathic medicines have their own side effects. Therefore we thought that if the herbs are cheap and easily available, then we should train these women to make herbal medicines so that they can make use of it for their health related problems as well as a source of income,” said Jaya, Coordinator, Suchetna Sewa Samity, Ramnagar.

These women are now planning to sell their herbal medicines in other villages also. Although they are living in a rural area but they have come up with their own self-employment ventures and are determined to improve their living conditions in the years to come. (ANI)


source- http://www.newspostonline.com/national/herbal-medicine-makes-uttarakhand-rural-women-self-reliant-2009032444137

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Timoor
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This is one kind of tree found in Uttarakhand which can be used in tooch ache. In gone days, people used to use it a Datoon.

It has other health benefits also.

dayal pandey

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Yes Mehtaji this is timoor (local Name), a strong Analgesic also. Beside this a tree called Chamarmus is also a pain killer tradationaly used in musculer pain & Bone Fracture,
           But this is very good afferts by our hill womens, one more aechivement by our pahadi womens in Nainital District they have make a naari association for solve judicies problem like Saas- Bahu Conflict, Husband-Wife fraction, Dirani-jethani tutu-main main ect. I think We have to give them support.

 

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