Author Topic: Folk Games Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की लोक क्रीड़ायें  (Read 30827 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ek or khel hai.

Murga jhabeti - ek paav ko fold kareke do log aapas mae ek dusre ko takar marte hai ! jisne dono paav jameen rakhe wah hara.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Bachpan Me Jhola bhi kaafi khelte hai log. Bhaaj me paid par ya, cheed tahnee par.

This is basically not a game but children often used to swing.

हेम पन्त

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Rural Rugby of Garhwal Himalayas
« Reply #12 on: February 11, 2009, 06:00:07 PM »
राजू गुसांई जी द्वारा एक लेख

Highlanders from over 70 villages gather on the bank of Thal River at village Kasyali in Yamkeshwar block (District Pauri) annually to celebrate ‘Ginddi Ka Mela’ (Festival of the Ball). This remote place comes alive with the arrival of villagers from various parts of Pauri. The uniqueness of the game is the striking feature of there being no referee and an unlimited number of players on both sides.

पूरा लेख यहां पढें..

http://www.soccernetindia.com/dehradunfootball/fulldesc.php?szxkophhdjf75587sdfjsfsajkf2257erfxxfafsa&story_id=1405
 

पंकज सिंह महर

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An information about a popular folk game in ranikhet area by our seniour member shri D.N. Barola

GIRAA – Kumaun ki haakee   गिरा – कुमाओं की हॉकी

हॉकी भारत का गौरव हुवा करती थी. ध्यान चाँद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. आज हाकी की दुर्दशा हो चुकी है. आंखिर हॉकी की इश दसा के लिए कौन जिम्मेदार है? पहले हॉकी घर घर मैं खेली जाती थी. रानीखेत के गावों मैं हॉकी खेलने का अलग अंदाज़ था’ हॉकी बनाने के लिए पेड़ की ऐसी टहनी को काटा जाता था जो छड़ी की आकार की हो. यह उल्टी लाठी के समान होती थी. इसे हॉकी के रूप मैं प्रयोग मैं लाया जाता था. घिंघारू की जड़ की हॉकी उत्तम मानी जाती थी. कपड़े की सिलाई कर उसे बौल का स्वरुप दिया जाता था. कुछ लोग बांस की जड़ की बाल बनाते थे. उत्तरायनी के दिन मकर संक्रांति को इसका फाइनल खेला जाता था. विजेता को इनाम मिलता था. खेल समाप्ति के बाद बौल तथा हॉकी को फैंक दिया जाता था. मान्यता थी की ऐसा न करने वाले को पित्त रोग हो जायेगा. मैदान कितना बड़ा या छोटा हो इसकी सीमा नहीं थी. खिलाडियोँ की भी सीमा नहीं थी. १०-१२ या ७-८ लोग गिरा का खेल खेलते थे . आज भी गिरा का मेला चनुली सरपट मन्दिर जो के घट्टी के पास है, चमर्खान के मेले के समापन के दिन गिरी का खेल खेला जाता है. इसके पश्चात् बसंत पंचमी तक गिल्ली डंडा खेला जाता है.

एक और खेल जो गिरा की ही तरह होता था उसका नाम है सिमंटाई या सत्पत्थारी. इसमें सात पत्थरों से विकिट बनाया जाता था. कपड़े की बौल से विकेट गिराना होता था. विकेट कीपर ही खिलाड़ी को बौल मारकर आउट करता था. आज से सब खेल लगभग समाप्त हो चुके हैं. यदि हांकी को पुनर्जीवित करना है तो इन खेलों को भी पुनर्जीवित करना होगा.(D.N.Barola)

पंकज सिंह महर

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घुच्ची-GHUCEE


घुच्ची उत्तराखण्ड के ग्रामीण क्षेत्र में खेला जाने वाला सबसे प्रचलित खेल है, हालांकि बुजुर्गवार इस खेल को खेलने से हमेशा रोकते-टोकते हैं। क्योंकि यह एक छोटा जुआ सा भी है, आइये जानते हैं इस खेल के बारे में-

 इस खेल को दो या उससे अधिक लोग भी खेल सकते हैं, घुच्ची खेलने के लिये सबसे पहले एक छोटा सा गढढा बनाया जाता है, जिसे पिल कहा जाता है, उससे १ मीटर की दूरी पर एक लाइन खीची जाती है। सभी खिलाड़ियों को खेलने के लिये एक-एक सिक्के की जरुरत होती है, इस लाइन पर खड़े होकर पहला खिलाड़ी सभी के सिक्कों को एक साथ पिल की ओर फेंकता है और जो भी सिक्का पिल में चला जाता है, वह उसका हो जाता है, उसके बाद प्रतिद्वन्दी खिलाड़ी जिस सिक्के पर मारने को कहे, (अड्डू-एक गोल पत्थर के टुकड़े से)  यदि वह उस सिक्के पर मार लेता है तो वह सिक्का उसका हो जाता है और अगर नहीं मार पाता है तो वह हार जाता है, अर्थात उसका सिक्का प्रतिद्वन्दी ले लेता है और उसे खेलने के लिये दूसरे सिक्के की आवश्यकता होती है।

पंकज सिंह महर

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ठिणी-दाबुली THINI-DABULI

यह गुल्ली डंडा का उत्तराखण्डी वर्जन है, इसमें एक ठिणी बनाई जाती है, जो लकड़ी की बनी होती है और इसके दोनों छोर नुकीले होते हैं, दाबुली भी लकड़ी से बनाई जाती है और इसका निचला छोर थोड़ा छिला होता है। किसी चौरस मैदान में एक छोटा सा गढ़्ढा बनाया जाता है और सभी खिलाड़ी सर्वमान्य तरीके से पहले खिलाड़ी को चुन लेते हैं। पहला खिलाड़ी ठिणी को गढ़्ढे के ऊपर रखकर दाबुली से उसे उछालता है, अगर उसके द्वारा उछाली गई ठिणी किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा कैच कर ली जाती है तो वह आउट हो जाता है। अगर कोई ठिणी को पकड़ नहीं पाता खिलाड़ी अपनी दाबुली को गढ्ढे के ऊपर रख देता है और प्रतिद्वन्दी खिलाड़ी ठिणी को दाबुली के ऊपर फेंकने का प्रयास करता है। अगर ठिणी दाबुली के ऊपर गिरती है तो खिलाड़ी आऊट, अन्यथा खिलाड़ी गढ्ढे से ठिणी तक की दूरी को दाबुली से नापता है, जितनी दाबुली, उतने की प्वाइंट.....इस खेल के कई अन्य नियम भी हैं, जो मैं भूल रहा हूं, फाउल होने पर भी खिलाड़ी को अतिरिक्त मौका दिया जाता है, जिसमें वह ठिणी को ऊपर-ऊपर ही उछालता है और जितनी बार उछाल ले, उतने प्वाइंट और उसे मिलते हैं।

और भी कुछ था, झार्रो, बांछो, सेमल्या, सिल्टो जैसा कुछ, किसी को याद आए तो जरुर शेयर करें।

dajyu/दाज्यू

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ये खेल तो हमने भी बहुत खेला ठहरा. केवल महिलायें ही क्यों दाज्यू भी जानकार ठहरे इसके तो.

इसमें पांच दाणि (छोटे छोटे सुडौल पत्त्थर) होती है. पहले पाचों को नीचे गिराया जाता है. फिर एके पत्थर को ऊपर उछाल कर उसके नीचे गिरने से पहले एक पत्थर हाथ में उठाया जाता है और उछाले गये पत्थर को कैच कर लिया जाता है. यदि पत्थर गिर गया तो आउट. इसी प्रकार सभी चार पत्थर उठाये जाते है. फिर यही प्रक्रिया एक साथ दो , तीन और चार पत्थरों को उठाने के लिये भी की जाती है.

इसके बाद आता है कोठा. इसमें बांये हाथ को जमीन में रख के कोठरी सी बनाते हैं. सारे पत्थरों को नीचे गिरा लेते हैं. फिर एक पत्थर को ऊपर उछाल कर सारे पत्त्थर एक एक कर कोठे में डालने होते हैं.

फिर कुत्ता . ..अंगूठे और पहली दूसरी ऊंगली को एक दूसरे पर चढ़ाकर बीच की जगह में से एक एक कर सारे पत्थर निकाल लेते है..


लास्ट में होता है मुट्ठा..अभी इतन ही...कभी खेलना हो तो आ जाना हो मेरे पहाड़ में...
गुट्टी/पांछि/दाणि

यह मुख्यतः महिलाओं का खेल है, इस खेल को पांच छोटे-छोटे पत्थरों से खेला जाता है, इस खेल को पत्थर उछाल-उछाल कर खेला जाता है। जिसमें से चार पत्थर हाथ में रहते हैं और एक नीचे, जो ऎसा नहीं कर पाता या जिससे पत्थर गिर जाते हैं, वह हार जाती है। कोई महिला सदस्य ही इसकी और डिटेल दे पायेगी।


पंकज सिंह महर

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ये खेल तो हमने भी बहुत खेला ठहरा. केवल महिलायें ही क्यों दाज्यू भी जानकार ठहरे इसके तो.


दाज्यू,
      जै हो तुमरी, वैसे आप उत्तराखण्ड की जानकारे के मामले में सबके बड़बाज्य़ू ठैरे,

इस खेल की इतनी प्रमाणिक जानकारी देने के लिये आपका भौत-भौत धन्यवाद ठैरा और +१ कर्मा ले।

****बौजी से पूछ कर लिखा या आपने वास्तव में खेला है.... ;D ;D ;D ;)

Lalit Mohan Pandey

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Ek khel tha pattar fekne ka, Isme do ladke ek hi jagah khade ho kar, asman ki taraf pattar uchalte hai, jiska pattar jyada ucha gaya wo jeet jata hai (pathar size mai saman hone chahiye)...
Ek aesa hi khel or hai, kagaj ka hawayi jahaj banane ka, fir usko udate the..jiska jyada door tak uda wo jeet gaya.. usko udane ke liye kisi uchi jagah pe jate the fir kagaj ke jahaj mai fook mar kar hawa mai uda dete hai...

हेम पन्त

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पहाङों में पारम्परिक रुप से खेले जाने वाले खेल तो अब टी.वी. और वीसीडी आने के बाद लगभग खतम हो गये है. अड्डू, पिड्डू, आइस-पाइस, धप्पी, गुलेल, गिल्ली-डण्डा (ठिणी-दाबुली), ढड्यालूं की बन्दूक, नदियों में तैराकी जैसे खेल, क्रिकेट और कुछ हद तक फुटबाल की छाया में लुप्त हो गये हैं.

ढड्यालूं की बन्दूक-
ढढ्यालू एक कंटीला पौधा होता है, इसकी पतली डालियां अन्दर से खोखली बनाई जा सकती हैं. इस खोखली नाल में ढढ्यालू के बीज या कागज आदि डाल कर पीछे से एक डण्डे से इसे धकेलने पर यह तेजी से बाहर आता है-आवाज के साथ. यह कतई घातक नही होता, एक हल्का-फुल्का मनोरंजन भर है. अब शायद ही यह खेल कोई खेलता होगा.

 

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