गंगा दशहरा पर गंगा-स्नान का महत्त्व
इस तिथि को गंगा-स्नान एवं श्रीगंगाजी के पूजन से १० प्रकार के पापों (तीन कायिक, चार वाचिक तथा तीन मानसिक) का नाश होता है। इसलिए इसे गंगा दशहरा कहा गया है। (बिना दिए हुए दूसरे की वस्तु लेना, शास्त्र वर्जित हिंसा करना तथा परस्त्रीगमन करना-ये शारीरिक (कायिक) पाप हैं। कटु बोलना, झूठ बोलना, किसी की अनुपस्थिति में उसके दोष बताना तथा निष्प्रयोजन बातें करना वाचिक पाप हैं। दूसरों की संपत्ति को अन्याय से लेने का विचार, मन से दूसरे का अनिष्ट चिंतन तथा नास्तिक बुद्धि मानसिक पाप हैं।) आपका ब्राउज़र इस छवि के प्रदर्शन का समर्थन नहीं भी कर सकता.
भगवती गंगाजी सर्वपापहारिणी हैं। दस प्रकार के पापों की निवृत्ति के लिए इस दिन दान की जाने वाली सभी वस्तुएं दस की संख्या में ही होना चाहिए। स्नान कररते समय गोते भी दस बार ही लगाए जाते हैं। इस दिन सत्तू का भी दान किया जाता है व गंगावतरण की कथा सुनने का विधान है।