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  • कर्क संक्रान्ति (हरेला): July 16, 2012

Author Topic: Harela Festival Of Uttarakhand - हरेला(हरयाव)  (Read 125867 times)

मेरा पहाड़ / Mera Pahad

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #10 on: July 14, 2008, 09:29:39 AM »
Sabhi sadasyon ko Harela ki Haardik agrim Shubhkamnaen.
 

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #11 on: July 14, 2008, 09:33:34 AM »
Source: http://www.euttaranchal.com/culture/fairs_festivals/harela_bhitauli.php

Harela and Bhitauli

On the first day of the navaratris (nine day holy period) of the month of Chaitra women fill baskets with soil and sow seven types of grains in them. The grains germinate symbolizing the future harvest. These yellow leaves, called Harela, are cut on the tenth day and people put them on their heads and behind their ears. During the month of Chaitra (March-April) brothers send presents to their sisters. These presents are called Bhitauli.

Harela is peculiarly a Kumaoni festival to mark the advent of the rainy season. The celebration falls on the first day of Shravan. Ten days before the due date, seeds of either five or seven kinds of grains are mixed together and sown in pots inside the room, using small baskets filled with earth. The sowing is done either by the head of the family or the family priest. It is done ceremoniously. Water is sprinkled after worship. On the last day of the month of Aasarh, one day before the actual celebration of the festival, a kind of mock weeding is done with small wooden hoes. Gaily painted images of Shiva and Parvati and their off springs are prepared and worshipped on the Shankranti day. Green shoots Harela are placed on the head gear.

The significance of Harela lies in the fact that it provides an opportunity to the cultivator to test the qualities or defects of the seeds he has in his store. Another significance is that the festival is the occasion to give taken monetary allowances - pocket money to the young girls of the family.

However, the more popular Harela is the one that is celebrated in the month of Shravan to commemorate the wedding of Lord Shiva and Parvati and to welcome the rainy season and the new harvest. On this day people make Dikaras* or clay statues of Gauri, Maheshwar, Ganesh etc. and worship them. Even the overworked bullocks are given a rest on the occasion of Harela. People put the blades of freshly cut Harela on their heads and send them to their relatives and friends as well.

*Dikars - Small idols of gods and godesses are made out of clay/red-soil. These idols are decorated with different colours. They are called Dikars.

Risky Pathak

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भीमताल: हरेला पर्व की तैयारियां यहां जोरों पर शुरू हो गई हैं। 16 जुलाई से पांच दिन तक चलने वाले इस परम्परागत मेले को लेकर जनता व व्यवसायियों में काफी उत्साह है। 10 जुलाई को दुकानों का आवंटन होने के बाद बाहर से आने वाले व्यसायियों ने यहां डेरा डालना शुरू कर दिया है। मेला परिसर में दुकानें व झूले लगने लगे हैं। हरेला खेल एवं सांस्कृतिक मंच के तत्वावधान में मल्लीताल स्थित रामलीला मैदान में आयोजित मेले को लेकर आयोजक काफी कसरत में जुटे हैं। समिति अध्यक्ष सुभाष जोशी ने बताया कि मेला परिसर में किसी भी व्यवसायी व बाहर से आने वाले मेला देखने वालों को किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत न हो इसके लिए बिजली, पानी, चिकित्सा व अस्थाई शौचालयों की व्यवस्था की जा रही है। रामलीला मैदान समेत ब्लाक रोड में झाडि़यों की सफाई कर दी गई है। शनिवार को मेला समिति सदस्यों ने मेला परिसर में दुकानों का आवंटन किया। इस मौके पर समिति सचिव कमलेश रावत, संयोजक मनोहर लाल, जगदीश पांडे, ललित लोहनी, लोकनाथ गिरि, संदीप पांडे, खीमानन्द दुम्का, उमापति भट्ट आदि मौजूद थे।

पंकज सिंह महर

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #13 on: July 14, 2008, 10:13:19 AM »
सर्वप्रथम तो हिमांशु को इस टोपिक को शुरु करने के लिये +१ कर्मा सहित धन्यवाद।


हरेला उत्तराखण्ड की संस्कृति के खेती से लगाव को प्रदर्शित करने वाला त्यौहार है। हरेला का त्यौहार समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। इस पर्व को मुख्यतः कृषि और शिव विवाह से जोड़ा गया है। हरेला, हरियाली अथवा हरकाली हरियाला समानार्थी है। देश धनधान्य से सम्पन्न हो, कृषि की पैदावार उत्तम हो, सर्वत्र सुख शान्ति की मनोकामना के साथ यह पर्व उत्सव के रुप में मानाया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि हरियाला शब्द कुमाऊँनी भाषा को मुँडरी भाषा की देन है।
      पुराणों में कथा है कि शिव की अर्धांगिनी सती न् अपनेे कृपण रुप से खिन्न होकर हरे अनाज वाले पौधों को अपना रुप देकर पुनः गौरा रुप में जन्म लिया। इस कारण ही सम्भवतः शिव विवाह के इस अवसर पर अन्न के हपे पौधों से शिव पार्वती का पूजन सम्पन्न किया जाता है। श्रावण माह के प्रथम दिन, वर्षा ॠतु के आगमन पर ही हरेला त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से किसानों का त्यौहार है।

दिनेश मन्द्रवाल

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #14 on: July 14, 2008, 10:16:27 AM »
हरेला गढ़्वाल में भी मनाया जाता है, इसे हरियाली पर्व कहा जाता है।
सभी को इस पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

पंकज सिंह महर

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #15 on: July 14, 2008, 10:20:15 AM »
हरेला

आषाढ़ के महीने के अंतिम नौवे दिन जौ, मक्का, कपास, गहत एवं राई को बोकर सावन महीने के प्रथम दिन ब्सकी कटा जाता है, बोने के नौ दिन रक इसे बिल्कुल अंधेरे में रखा जाता है| इन नौ दिन में यह पौंधा बढकर एक से डेढ़ फुट हो जाता है| काटने से पहले पंडित हरेला को मंत्रों से इसमे तिलक लगाता है| जिसे हरेला पतीसना कहते हैं| इसके बाद पौंधे को घर के समस्त सदस्यों के सिर में रखा जाता है| घर की बुजुर्ग लोग आशीर्वाद के साथ इसे बच्चों के सिर में रखते हैं| लड़कियां अपनी बालों की लत को इसी से संवारते हैं| गौशाला में गाय, भैंस, बैल एवं बकरी के सिर पर इन पौन्धों को रखा जाता है तथा घर के दरवाजे के चौखट पर इन पौंधो को चिपकाया जाता है| यह त्योंहार बरसात की शुरुआत एवं लहलहाते खेतों का प्रतीक है|


साभार-http://ekumaon.com/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #16 on: July 14, 2008, 10:46:35 AM »


मुझे याद है पहले गाव मे हरेला के अवसर पर लोग गाव मे झोडा और चाचरी गाया करते थे !  जैसे की मैंने पहले भी लिखा है कि हरेला त्यौहार वृक्षारोपण के लिए भी प्रसिद्ध है !  कहा जाता है कि हरेला त्यौहार के पाँच दिनों तक किसी पेड कि टहनी को लगाया जाय यह जड़ पाकर लेता है !

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #17 on: July 14, 2008, 10:50:13 AM »
Source: http://www.tdil.mit.gov.in/coilnet/ignca/utrn0044.htm

डिकारे

कुमाऊँनी जीवन में भित्तिचित्रों के अतिरिक्त भी महिलाएँ अपनी धार्मिक आस्था के आयामों को माटी की लुनीई के सहारे कलात्मक रुप से निखारती हैं। हरेला के त्योहार पर, जो प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रथम दिवस पड़ता है, बनाये जानेवाले डिकारे सुघड़ परन्तु अपरिपक्व हाथों की करामात हैं जिसमें शिव परिवार को मिट्टी में उतारकर पूजन हेतु प्रयोग में लाया जाता है।

डिकारे शब्द का शाब्दिक अर्थ है - प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग कर मूर्तियाँ गढ़ना। स्थानीय भाषा में अव्यवसायिक लोगों द्वारा बनायी गयी विभिन्न देवताओं की अनगढ़ परन्तु संतुलित एवं चारु प्रतिमाओं को डिकारे कहा जाता हैं। डिकारों को मिट्टी से जब बनाया जाता है तो इन्हें आग में पकाया नहीं जाता न ही सांचों का प्रयोग किया जाता है। मिट्टी के अतिरिक्त भी प्राकृतिक वस्तुओं जैसे केले के तने, भृंगराज आदि से जो भी आकृतियाँ बनाई जाती हैं, उन्हें भी डिकारे समबोधन ही दिया जाता है।

हरेला का त्यौहार समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। इस पर्व को मुख्यतः कृषि और शिव विवाह से जोड़ा गया है। हरेला, हरियाली अथवा हरकाली हरियाला समानार्थी है। देश धनधान्य से सम्पन्न हो, कृषि की पैदावार उत्तम हो, सर्वत्र सुख शान्ति की मनोकामना के साथ यह पर्व उत्सव के रुप में मानाया जाता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि हरियाला शब्द कुमाऊँनी भाषा को मुँडरी भाषा की देन है।

पुराणों में कथा है कि शिव की अर्धांगिनी सती न् अपनेे कृपण रुप से खिन्न होकर हरे अनाज वाले पौधों को अपना रुप देकर पुनः गौरा रुप में जन्म लिया। इस कारण ही सम्भवतः शिव विवाह के इस अवसर पर अन्न के हपे पौधों से शिव पार्वती का पूजन सम्पन्न किया जाता है। श्रावण माह के प्रथम दिन, वर्षा ॠतु के आगमन पर ही हरेला त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रुप से किसानों का त्यौहार है।

डिकारे की मूल सामग्री सोंधी सुगन्ध वाली लाल चिकनी मिट्टी है। महिलाएँ इस मिट्टी में कपास मिलाकर इसे कूटती हैं। जब मिश्रण एक सारहो जाता है और गढ़ने में सरल तब उनसे डिकारे गढ़ने का क्रम आरम्भ होता है। पहले शिव-पार्वती के प्रतीक के रुप में मिट्टी के ढेले को प्राण प्रतिष्ठा कर पूजा जाता था। डिकारे हाथ से गढ़ने का चलन सम्भवतः बाद में हुआ होगा। इन डिकारों को हलकी धूप या छाया में इस प्रकार से सुखाया जाता है कि उसके चटकने का डर ना रहे। सुखने के बाद चावल के घोल सेहल्के श्वेत रंग का लेप किया जाता है। कई बार गोंद मिले रंगों से उनके ऊपर अवयवों का निर्माण किया जाता है। प्राकृतिक रंगों का प्रयोग भी सम्भवतः बाद में हुआ होगा। ये रंग किलमोड़े के फूल, अखरोट व पांगर के छिलकों से तथा विभिन्न वनस्पतियों के रस के सम्मिश्रण से तैयार किया जाता है। लेकिन वर्तमान में बाजार में बििकनेवाले सिन्थेटिक रंग ही प्रयोग में लाये जाते हैं। रंगों से रेखायें उभारने के लिए तुलिका के श्थान पर लकड़ी की तीलियों का प्रयोग किया जाता है। प्रायः माचिस की तीली और उस पर बंधी रुई का भी प्रयोग होता है।

डिकारे में शिव को नीलवर्ण और पार्वती को श्वेतवर्ण से रंगने का प्रचलन है। आँख, नाक व कान इत्यदि उभारने के बाद का कार्य भी पहले कोयले को पीसकर किया जाता था।

डिकारों में चन्द्रमा से शोभित जटाजूटधारी शिव, त्रिशूल एवं नागधारण किये अपनी अद्धार्ंगिनी गौरी के साथ बनाये जाते हैं। अग्रपूज्य देवता गणेश को भी इनके साथ बनाये जाने का प्रचलन है। कालान्तर में इनके साथ ॠद्धि - सिद्धि, कौटिल्य कभी-कभी गुजरी तो कभी-कभी भिखारिन बनायी जाने की भी परम्परा प्रचलित है। यह कोई निश्चित नहीं है कि डिकारे शिव-पार्वती आदि के अलावा इनके परिवार के कौन-कौन सदस्य बनाये जायें। यह प्रायः कलाकार के अपने क्षमता पर निर्भर करता है। पूजा के उपरान्त इन को जल में प्रवाहित करने  की भी यदा-कदा परम्परा है।

हरेला की परम्परा के अनुसार अनाज ११ दिन पूर्व टेपण से लिखी किंरगाल की टोकरी में बोया जाता है। हरेला बोने के लिए पाँच या सात प्रकार के बीज जिनमें कोहूँ, जौ, सरसों, मक्का, गहत, भट्ट तथा उड़द की दाल कौड़ी, झूमरा, धान, मदिरा, मास आदि मोटा अनाज सम्मिलित हैं, लिये जाते हैं। यह अनाज पाँच या सात की विषम संख्या में ही प्रायः बोये जाते हैं। बीजों को बोने के लिए मंत्रोंच्चार के बीट शंखध्वनी आदि से वातावरण को अनुष्ठान जैसा बनाया जाता है। इन टोकरियों को अन्धकार में रख दिया जाता है। जिससे पूर्व फल फूल डिकारों को बीच में रखकर महिलाएँ पूजा अर्चन करती हैं। इस अवसर पर हरकाली की आराधना की जाती है। हरकाली से वि#निय की जाती है कि वे खेतों को सदा धन-धान्य से भरपूर रखने की कृपा करें।

संक्रान्ति के अवसर पर परिवार का मुकिया इन अन्न के पौधों को काटकर देवताओं के चरणों में अर्पित करता है। हरेला पुरुष अपनी टोपियों में, कान में तथा महिलाएँ बालों में लगाती हैं। घर के प्रवेश द्वार में इन अन्न के पौधों को गोबरकी सहायता से चिपका दिया जाता है।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #18 on: July 14, 2008, 10:53:43 AM »
Source: http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/utrn0005.htm

हरेला, हरियाला या कर्क-संक्रान्ति

    श्रावण की संक्रान्ति से १०-११ दिन पूर्व बंस-पात्रादि में मिट्टी डालकर क्यारी बना धान, मक्का, उड़द इत्यादि वर्षा काल में उत्पन्न होने वाले अन्न बोये जाते हैं, इसे हरियाला कहते हैं। इसे धूप में नहीं रखते। इसे पौधों का रंग पीला हो जाता है।

    (क) हरकाली महोत्सव - गौरी महेश्वर, गणेश तथा कार्कित्तकेय की मिट्टी को मूर्तियाँ बना उनमें रंग लगा मासान्त की रात्रि को हरियाले की क्यारी में विविध फल-फूल तथा पकवान व मिष्ठान से पूजा की जाती है। दूसरे दिन उत्तरांग पूजन का हरेला सिर पर रखा जाता है। बहन-बोटियाँ टीका, तिलक लगाकर हरेला सिर पर चढ़ाती है। उनको भेंट दी जाती है। यह हरेले का टीका कहलाता है।

    (ख) यह हरियाला अन्व्यज पर्यन्त सभी वर्ण और जाति के लोगों में बोया जाता है। संक्रान्ति के दिन अपने-अपने देवताओं पर चढ़ा तब अपने सिर में चढ़ाते हैं। ग्राम-देवताओं की धूनी मठ में, जो "जागा" कहलाते हैं, ग्रामवासी लोग हरु, शैम, गोल्ल आदि अपने ग्राम व कुल-देवता की पूजा रोट-भेंट, धूप-दीप, नैवेध, बलि इत्यादि चढ़ाकर करते हैं। प्रत्येक ग्राम की सीमा पर यह (जागा) मंदिर बने होते हैं। यहाँ २२ रोज तक बैसी (बाईसी) का अनुष्ठान, नवरात्रियों में नवरात्र-अनुष्ठान ग्राम-देवताओं का किया जाता है। हरियाला चढ़ाकर इस दिन पूजा होती है। बैसी अर्थात् बाईसी का व्रत करने वाले इस दिन से २२ रोज तक व्रत और त्रिकालस्नान और एक बार भोजन करके ब्रह्मचर्यपूर्वक साधु-वृति में रहते हैं। दिन-रात घर में नहीं जाते। जागा के सठ में देवता का ध्यान-पूजन, धूनी की सेवा करते हैं। रात्रि में देवता का जागा अथवा जागर द्वारा आवाहन किया जाता है। बहुसंख्यक दर्शक यात्री देव-दर्शानार्थ जाते हैं। धन, पुत्र आरोग्य आदि मनोकामना का आशीर्वाद माँगते हैं।

    यह मूल-निवासी पूर्वकालीन जातियों के समय की प्राचीन पूजा-पद्धति है, क्योंकि यह रीति कुमाऊँ से अन्यत्र नहीं देखी जाती।

हेम पन्त

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Re: हरेला(हरयाव): Harela
« Reply #19 on: July 14, 2008, 12:00:19 PM »
हरेला त्यौहार मौसम परिवर्तन से संबन्धित है... यह त्यौहार खुशहाली का द्योतक है.
हरेले के दिन टीका लगाकर बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ कान व सर पर हरेला धारण करके स्कूल जाने के दिन याद आ गये.

 

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