Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति

Harela Festival Of Uttarakhand - हरेला(हरयाव)

<< < (26/29) > >>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
“हरेला” लोकपर्व इस बात का परिचायक है कि हमारे पूर्वज वन संरक्षण और पर्यावरण को अत्यधिक महत्व देते थे. बरसात के इस मौसम में धरती की नमी के नये वृक्षों के उगने के लिये उपयुक्त होती है.
सभी लोगों से निवेदन है कि अधिक से अधिक वृक्षारोपण करें और इस महत्वपूर्ण त्यौहार का सन्देश अगली पीढी तक पहुंचाने की कोशिश करें...
आप सभी साथियों को “हरेला पर्व” की सपरिवार बधाई

Raje Singh Karakoti:
Happy Harela to all my brother and sister.

With Best Wishes,
Raje

विनोद सिंह गढ़िया:


#HARELA

आप सभी को #हरेला पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामना.

Pawan Pathak:
जी रये, जागि रया, हरयाव भेटने रया

अमर उजाला ब्यूरो
हल्द्वानी। हरेले का पर्व हमें नई ऋतु के शुरू होने की सूचना देता है। यह त्योहार हिंदी सौर पंचांग की तिथियों के अनुसार तीन बार मनाया जाता है। शीत ऋतु की शुरुआत अश्विन मास से होती है। इसलिए अश्विन मास की दशमी को हरेला मनाया जाता है। गर्मी की शुरुआत चैत्र मास से होती है। इसलिए चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार वर्षा ऋतु की शुरुआत सावन माह से होती है, इसलिए एक गते श्रावण को हरेला मनाया जाता है। किसी भी ऋतु की सूचना को आसान बनाने और कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऋतुओं का स्वागत करने की परंपरा बनी होगी। श्रावण मास के हरेले के दिन शिव-पार्वती की मूर्तिया भी गढ़ी जाती हैं, जिन्हे डिकारे कहा जाता है। शुद्ध मिट्टी की आकृतियों को प्राकृतिक रंगों से शिव परिवार की प्रतिमाओं का आकार दिया जाता है और इस दिनपूजा की जाती है।
हरेला शब्द का स्रोत हरियाली से है। हरेले के पर्व में नौ दिन पहले घर के भीतर स्थित मंदिर या गांव के मंदिर के अंदर सात प्रकार के अन्न (गेहूं, जौ, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट) को रिंगाल की टोकरी में बोया जाता है। इसके लिए एक विशेष प्रकार की प्रक्रिया अपनायी जाती है। पहल टोकरी में एक परत मिट्टी की बिछायी जाती है, फिर इसमें बीज डाले जाते हैं। इसके बाद फिर से मिट्टी डाली जाती है। फिर से बीज डाले जाते हैं। यही प्रक्रिया पांच से छह बार अपनायी जाती है। इसे सूर्य की सीधी रोशनी से बचाया जाता है। नौंवे दिन इसकी पाती(एक स्थानीय वृक्ष) की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें दिन हरेले की दिन इसे काटा जाता है। काटने के बाद गृह स्वामी के द्वारा इसे तिलक चंदन और अक्षत से मंत्रित (रोग शोक निवारणार्थ, प्राण भक्षक वनस्पते, इदा गच्छा नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते) किया जाता है, जिसे हरेला पसीतना कहा जाता है। इसके बाद इसे देवता को अर्पित किया जाता है। इसके बाद घर की बुजुर्ग महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती है। लगाने का अर्थ यह है कि हरेला सबसे पहले पैर, फिर घुटने, फिर कंधे और अंत में सिर में रखा जाता है और आशीर्वाद के रूप में यह पंक्तियां कही जाती हैं।
जी रये, जागि रये
धरती जस आगव, आकाश जस
चाकव है जये
सूर्य जस तारण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि
झाड़ जाये
(अर्थात हरियाली तुझे मिले, जीते रहो जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान आकाश के समान प्रशस्त, उदार बनो, सूर्य के समान त्राण, सियार के समान बुद्धि हो, दूर्वा के तृणों के समान पनपो, इतने दीर्घायु हो कि (दंतहीन) तुम्हें भात भी पीस कर खाने पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करना पड़ा।
इसके बाद परिवार के सभी लोग साथ में बैठकर पकवानों का आनंद उठाते हैं। इस दिन विशेष रूप से उड़द के दाल के बड़े, पुवे और खीर बनाई जाती है। हरेला अच्छी कृषि का सूचक है। हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलों को नुकसान न हो। हरेले के साथ जुड़ी ये मान्यता भी है कि जिसका हरेला जितना बड़ा होगा, उसे खेती में उतना ही फायदा होगा। यह भी परंपरा है कि यदि हरेले के दिन किसी परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो जब तक हरेले के दिन उस घर में किसी का जन्म न हो जाय, तब तक हरेला बोया नहीं जाता है। यदि परिवार में किसी की गाय ने इस दिन बच्चा दे दिया तो भी हरेला बोया जाता है।


Sourcce-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150629a_005115005&ileft=-5&itop=82&zoomRatio=130&AN=20150629a_005115005

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
हरियाली पर्व (हरेला) की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
---------------------------------------------------------
"जी रया जागि रया
आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जया
स्यावै क जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ
सिल पिसी भात खाया जाँठि टेकि भैर जया
दूब जस फैलि जया..."

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

[*] Previous page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version