Poem by Kandpal JI - Harela.
हरेला - वृक्षारोपण
तूने मेरे पर्वतों को खोद कर झुका दिया
बर्फीली चोटियों को हीन हिम से कर दिया,
दिनोदिन मेरे शिखर का रूप बिखरने है लगा
निहारने निराली छटा जन तरसने है लगा.
चीर कर तन तूने मेरा रंग हरित उड़ा दिया
कर अगिनत घाव तन पर श्रृंगार है छुड़ा दिया,
तरुस्थल को मेरे तूने मरुस्थल है बना दिया
जल जंगल जमीन खजाना सारा दोहन कर दिया.
चाहता मानव के पग बढ़ते रहें जहान में
रंग-रूपहली वसुंधरा न बदले कभी वीरान में,
पर्यावरण की पर्त को संभाल उठ तू जागकर
कर न देरी पग बढा वृक्षारोपण आजकर.
चाहता तू जी सके इस धरा में अमन चैन से
वृक्ष बंधु मान ले लगा ले अपने नैन से,
कोटि पुण्य पा जायेगा एक वृक्ष के जमाव से
स्वच्छ पर्यावरण में फिर जी सकेगा चाव से.
पूरन चन्द्र कांडपाल
हरेला -१६.०७.२०१०