हुक्का-चिलम पीते हुए, मछुवारे, शानदार बैलों की जोडियाँ, छोटा बल्द , बड़ा बल्द, अड़ियल बैल (जो हल में जोतने पर लेट जाता है), हिरन चीतल, ढोल नगाडे, हुडका, मजीरा, खड़ताल अर घंटी की संगीत लहरी के साथ नृत्य करती नृत्यांगानाएं, कमर में खुकुरी और हाथ में दंड लिए रंग-बिरंगे वेश में पुरुष, धान की रोपाई का स्वांग करते महिलायें ये सब मिल कर एक बहुत ही आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करते हैं जिसे लोग मंत्रमुग्ध हो निहारते हैं. अचानक ही गावं से तेज नगाडों की आवाज आने लगती है. यह संकेत है हिलजात्रा के प्रमुख पात्र 'लाखिया भूत' के आने का. सभी पात्र इधर-उधर पंक्तियौं में बैठ जाते हैं और मैदान खाली कर दिया जाता है. तब हाथों में काला चंवर लिए काली पोशाक में, गले में रुद्राक्ष एंड कमर में रस्सी बांधे लाखिया भूत प्रकट होता है. सभी लोग लाखिया भूत की पूजा अर्चना करते हैं और घर-परिवार, गाँव की खुशहाली के लिए आर्शीवाद मांगते हैं. लाखिया भूत सब को आर्शीवाद देकर वापस चला जाता है. फिर प्रत्येक पात्र धीरे-धीरे वापस जाते हैं.
भले ही आज का बर्तमान दौर संचार क्रांति का दौर बन चुका हो, किन्तु लोगों में अपनी सांस्कृतिक बिरासत को बचाने की भरपूर ललक दिखी देती है. कम से कम गाँव में मनाये जाने इन उत्सवों से तो यही प्रतीत होता है. इससे लोगों के बीच अटूट धार्मिक बिश्वास तो पैदा होता ही है साथ ही लोक कलाओं का दूसरी पिढ़ियों में आदान-प्रदान भी होता है.
आलेख: शबनम खान, बी.ए. तृतीय वर्ष, पी.जी. कालेज, पिथोरागढ़.