Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37121 times)

Bhishma Kukreti

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ठंठोलो (ढांगू ) में पुरुषोत्तम दत्त व भैरव दत्त कंडवाल की तिबारी व जंगलेदार मकान में काष्ठ  कला

ठंठोली  (ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला भाग -8
Traditional House Wood carving Art from Thantholi - 8
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  74
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   74
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  जैसा कि  पहले ही सूचना दी चुकी है कि ठंठोली के कंडवाल वैद्यकी व कर्मकांड व ज्योतिष हेतु प्रसीध थे।  पुरुषोत्तम कंडवाल  आयुर्वेद वैद्य थे, भेषज (धातु में औषधि  मिश्रण के विशेषज्ञ  )   व भैरव दत्त कंडवाल  व्यासगिरि के लिए  प्रसिद्ध थे।
 आज दोनों भ्राताओं की तिबारी व तिबारी पर बने जंगलेदार मकान की चर्चा की जायेगी।
 तिबारी दुखंड  (एक कमरा बाहर व एक कमरा  अंदर  की ओर ) मकान के मध्य में है  और इसी मकान पर बाहर से जंगला भी बंधा गया है। शायद जंगल बाद में बाँधा गया होगा। 
  तिबारी पत्थर की देहरी के ऊपर टिकी है व देहरी /देळी  लकड़ी के छज्जे पर टिकी   है।  लकड़ी का छज्जा   लकड़ी के ही  दासों/टोड़ी  पर टिके  हैं।  कुछ दास (टोड़ी ) पत्थर के भी हैं जो ठंठोली में ही उपलब्ध था। 
तिबारी में चार स्तम्भ थे (अब दो ही बचे हैं )  . चारों स्तम्भ तीन मोरी /द्वार /खोळी  निर्मित करते थे।  प्रत्येक स्तम्भ चौकोर डौळ  के ऊपर टिके थे /हैं व डौळ के ऊपर अधोगामी पदम् पुष्प दल से स्तम्भ का कुम्भी बनती है।  फिर डीला  (round  wooden plate as big  ring )  है। डीले में भी उत्कीर्णन हुआ है। डीले के ऊपर उर्घ्वगामी पदम् पुष्प दल से स्तम्भ सुशोभित होता है।   जब उर्घ्वगामी पदम् पुष्प खत्म होता है तो गोल स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है।  स्तम्भ सी शीर्ष मुरिन्ड की कायस्थ पट्टिका से मिलते हैं और शीर्ष पट्टिका छत आधार पट्टिका के नीचे हैं।  स्तम्भ या अन्य जगह  कहीं पर भी मान्वित अलंकरण या दार्शनिक प्रतीक अलंकरण ( नजर न लगे हेतु) कुछ भी आकृति नहीं है।  यह एक आश्चर्य है की पुरुषोत्तम दत्त कंडवाल दोनों भाई टूण -टुण मुण  (तंत्र विद्या  ) में    पूरा विश्वास करते थे व  मकान में  कहीं भी ' नजर न लगे'  की कोई प्रतीकात्मक आकृति नहीं है।  पुरुषोत्तम कंडवाल तो चोर पकड़ने हेतु तुमड़ी  नचाने में माहिर भी थे। 
 मकान काफी बड़ा है व पहली मंजिल पर 15 से अधिक स्तम्भों वाला जंगल बंधा है।  काष्ठ स्तम्भ सपाट हैं और सीधे ऊपर छत आधार पट्टिका से मिल जाते हैं।  स्तम्भ आधार को आकर देने के लिए ज्यामितीय  ढंग से उत्कीर्णित  छिलपट्टिकाएँ लगी हैं जो स्तम्भ आधार की सुंदरता वृद्धिकारक हैं। रेलिंग स्तम्भ के ढाई फिर ऊपर से शुरू होती हैं।
  जब यह मकान निर्मित हुआ था तो क्षेत्र में बड़ी हाम  /प्रसिद्धि फैली थी तो तब लगता था कि ये दोनों भाई वैदकी  व  व्यासगिरि विद्व्ता के कारण प्रसिद्ध है या जंगलेदार तिबारी के कारण प्रसिद्ध हैं !
अपने यौवन काल में तिबारी व जंगले की शान देखते ही बनती थी।  अब सम्भवतया साझीदारी के कारण मकान जीर्ण शीर्ण हो रहा है और कुछ सालों (?) के बाद तिबारी भी ध्वस्त हो जाएगी तो सिर्फ मेरी पीढ़ी वाले ही याद करेंगे की प्रसिद्ध भेषज  व व्व्यास - विद्वान् भ्राता द्वय पुरुषोत्तम  दत्त कंडवाल व भैरव दत्त कंडवाल की भव्य व क्षेत्र में प्रसिद्ध जंगलेदार तिबारी थी।  यह कटु सत्य है कि पहाड़ी अपने इन अमूल्य धरोहरों को न बचा पाएंगे (मकान बनाने हेतु जगह की कमी  व बंटवारे से उपजी समस्या ) किन्तु इन कला युक्त भवनों का  दस्तावेजीकरण  उतना ही आवश्यक है जितना प्रत्येक गाँव का इतिहास संजोये रखना। 
भवन लगभग 1945  के पश्चात ही निर्मित हुआ होगा।  कलाकारों की सूचना आनी  बाकि है। 
सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़ (बड़ा )
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

Bhishma Kukreti

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रामदा में  राम सिंह रुदियाल की तिबारी, द्वार, खोळी में काष्ठ  कला अलंकरण -2

रामदा  (गैरसैण ) में  भवन काष्ठ कला अलंकरण   (तिबारी , निम दारी  , जंगलेदार खोली ) -2
  Traditional House Wood Carving  (Tibari, Nimdari, Kholi) of   Rmada talla (Gairsain)  , Chamoli  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  2
चमोली , गढ़वाल में तिबारी , निमदारी , जंगलेदार मकानों में काष्ठ कला , अलंकरण - 2
 Traditional House Wood Carving  (Tibari, Nimdari, Kholi) of  Chamoli  Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  -2
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   - 77 
Traditional House Wood Carving Art (Tibari, Nimdari , Kholi ) of   Chamoli  , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    77
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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रामदा तल्ला के  राम सिंह रुदियाल की तिबारी पौड़ी गढ़वाल की तिबारियों व उत्तरी गढ़वाल (चमोली , रुद्रप्रयाग ) की  आम तिबारियों व खोली से अलग है।  रामदा तल्ला के नरेंद्र प्रसाद बरमोला की सूचना व तीन तिबारियों की फोटो व सूचना देते समय यह भी सूचना दी कि रामदा  में 1920  के  लगभग पटरी बलबीर सिंह नेगी ने ऐसी तिबारी निर्मित की थी।  बलबीर सिंह नेगी  बैजरों  में पटवारी थे तो   बैजरों  से जतैन ओड  व बढ़ई को रामदा लेकर आये थे।  सूचना यह भी है कि तूण  की लकड़ी भी बूंगीधार  बैजरों से लाया गया था।   अनुमान लगता है कि   यह कला शैली इस तरह लोहाबा मंडल में  पैठ बना चुकी है तभी राम सिंह रुदियाल  के इस मकान  जो 1964 लगभग में निर्मित हुआ में यही कला शैली दिखाई दे रही है। 
    राम सिंह रुदियाल  की तिबारी भी पहली मंजिल पर हैं।  तिबारी के दरवाजे में अनुपम शैली की कला दृष्टिगोचर होती है।  दरवाजों में तीन जटिल स्तम्भ है ।  मध्य स्तम्भ तीन स्तम्भों /सिंगाड़  से बना है व किनारे के स्तम्भ दो स्तम्भों से बने  (कुल 7  स्तम्भ  व दो मोरी या द्वार ) हैं।  प्रत्येक स्तम्भ पत्थर के बड़े डौळ  में आधारित है। कुम्भी अधोगामी कमल दल से बना है , कुम्भी के ऊपर बड़ा अलंकृत डीला  (big carved artful  round  wooden  plate )  है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल  है फिर कमल दल से जायमितीय कला युक्त कड़ी  शुरू होती है जो वहां जा कर  लगती हैं जहां से अधोगामी कमल दल है व फिर अलंकृत डीला है।  डीले  सर अर्ध मडल पट्टिका शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ की  अर्ध मंडल / half arch  से मिलकर  पूरा तोरण , मेहराब या arch  बनाते हैं।  मेहरानब की कटान शैली भी चमोली , रुद्रप्रयाग या  पौड़ी गढ़वाल की तोरण कटान से कुछ भिन्न हैं।  अर्ध मंडल arch का एक भाग एक स्तम्भ में  लम्बा है किन्तु सामने के दूसरे स्तम्भ में आधा ही है
स्तम्भ पर ऊपरी डीले  के  बाद उर्घ्वगामी  पद्म पुष्प दल है जिसके ऊपर सीधी पट्टिकाएं है जो चौकोर मुरिन्ड /शीर्ष पट्टिका से मिलते हैं या कह सकते हैं कि  मुरिन्ड में सात  समांतर पट्टिकाएं हैं।  मुरिन्ड की ऊपरी पट्टिका छत की आधारिक दीवाल या पट्टिका से मिल जाती है। 
  तिबारी में दो हो  दरवाजा  युक्त  द्वार हैं।  दोनों द्वार के  दरवाजों पर दो प्रकार की  नयनभिराम ज्यामितीय कला उत्कीर्ण हुयी है।   
  तिबारी के नीचे एक कमरे का द्वार है व  दोनों दरवाजों पर त्रिभुजकर ज्यामितीय  अलंकरण के दर्शन होते हैं।   तिबारी व तल मंजिल के द्वार में की भी मानवीय (figurative ornamentation या मनुष्य , पशु पक्षी या धार्मिक प्रतीक नहीं उत्कीर्ण हुए हैं
  पिछले भाग गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला  अलंकरण   -  74  , में एक खौली   की कला समीक्षा हुयी थी।  राम सिंह रुदियाल  की एक और खोळी की फोटो व सूचना मिली है जो भाग 74   की खोली के समान ही है किन्तु  इस खोळी  में छपरिका /छत्तिका  के नीचे अलंकृत ब्रैकेट दिवालगीर के स्थान पर  सादे  दिवालगीर  ब्रैकेट हैं। 
 जैसा की पिछले भाग (75 ) में सूचना दे चुके हैं कि लोहाबा के प्रसिद्ध मिस्त्रियों चंदी राम व लूथा राम मुख्य काष्ठ  उत्कीर्णन कला विद  ने तिबारी निर्मित की थी । 

सूचना व फोटो आभार :  हिमालय नव संचार  व सहायक  सूचना- नरेंद्र प्रसाद बरमोला
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Bhishma Kukreti

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ठंठोली में  राजाराम बडोला की तिबारी व तल खोळी  में काष्ठ कला /अलंकरण

House wood Carving on Tibari of Sundar Lal Badola and Brothers of Thantholi
ठंठोली  (ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला भाग -9
Traditional House Wood carving Art from Thantholi - 9
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / खोली /जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , खोली , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी , खोली अंकन )  -  78
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    78
(लेख अन्य पुरुष में है अतः  श्री , जी आदि शब्द  प्रयोग नहीं हुए हैं )
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  ठंठोली एक समृद्ध गाँव रहा है अतः इस गांव में तिबारियों , जंगलेदार मकान, की संख्या सामन्य अनुपात से अधिक दिखती है।  आज स्व राजाराम बडोला याने वर्तमान में सुंदर लाल रमाकांत बडोला व बंधुओं के दादा  की तिबारी व खोली की चर्चा करेंगे। 
 जैसा कि गढ़वाल में सामन्यतया  प्रचलन अनुसार तिबारी दुखंड /तिभित्या मकान के पहली मंजिल में स्थापित है व दो कमरों का बरामदा बनाकर तिबारी  स्थापित की गयी है।
चार स्तम्भों से तीन द्वार /खोळी /मोरी बनी हैं।  स्तम्भ पत्थर के छज्जों पर स्थापित देळी /  देहरी के ऊपर चौकोर पाषाण  डौळ पर स्थापित हैं।  किनारे के दोनों स्तम्भों को जोड़ने वाली कड़ी का तल भाग भी   मुख्य स्तम्भ जैसा ही कलयुक्त है याने ा अधोगामु पदम् कुम्भी व डीले के ऊपर  उर्घ्वगामी कमल दल व फिर बेलबूटे दार कड़ी।  प्रत्येक स्तम्भ का आधार याने कुम्भी अधोगामी कमल दल से बना है , फिर डीला (round wooden ring type  plate ) व फिर उर्घ्वगामी कमल दाल जहां से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है व जहां पर सबसे कममतायी है वहां से फिर कमल पुष्प व डीला आकृति है व फिर स्तम्भ में ऊपर की ओर थांत पट्टिका (bat blade ) शुरू होता है थांत पट्टिका सपाट पट्टिका नहीं अपितु बेल बूटों  से सुसज्जित थांत पट्टिका है जो इस तिबारी की विशेषता बन जाती है। स्तम्भ में ही  थांत जड़ से ही मेहराब का अर्ध पट्टिका शुरू होती है जो दूसरे स्तम्भ से मिलकर पूर्ण मेहराब या पूर्ण तोरण /arch बनाते हैं।  तोरण तिपत्ती नुमा है बीच में टीकः है।  तोरण कीतीनो आंतरिक पट्टिकाओं में नयनाभिरामी नक्कासी हुयी है। तोरण की दोनों कुंआरे की बाह्य तिकोनी पट्टिका पर  किनारे पर दो बहुदलीय पुष्प हैं याने तिबारी में ऐसे कुल 6 पुष्प हैं।  तोरण के ऊपर चौकोर मुरिन्ड /शीर्ष है जिसपर कई तल की पट्टिकाएं हैं व उन पर भी नकासी हुयी है।  मुरिन्ड का बाह्य  भाग ऊपर छत आधार दीवाल से मिलता है।
   तल मंजिल की खोळी
तल मंजिल पर  तल मंजिल से पहली मंजिल जाने हेतु    आन्तरिक  प्रवेश द्वार है जिसे खोळी  कहा जाता है।  खोली के दोनों दरवाजों में एक एक स्तम्भ हैं व प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड़ पर नक्कासी हुयी दिखती है। मुरिन्ड  में कोई प्रतीक नहीं दीखता है। 
चंडी प्रसाद बडोला की सूचना अनुसार राजाराम बडोला की तिबारी (वर्तमान में सुंदर लाल , रमाकांत बडोला के दादा ) लगभग 1930  के करीब निर्मित हुयी होगी। 
 निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तिबारी में  प्राकृतिक (वानस्पतिक )  व ज्यामितीय कल अलंकरण हुआ है।  मानवीय (पशु , पक्षी , देव प्रतीक  ) अलंकरण दृष्टिगोचर नहीं हुआ। 

फोटो आभार : सतीश कुकरेती ,  विक्रम तिवारी
 अन्य  सूचना - चंडी प्रसाद बडोला
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Bhishma Kukreti

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बिंतोली  (बागेश्वर ) में  कौस्तुभ चंदोला की  खोळी /मोरी में काव्य  अलंकार युक्त  काष्ठ कला, अलंकरण 

बागेश्वर , कुमाऊं की भवन काष्ठ कला , अलंकरण , उत्कीर्णन श्रृंखला  -1
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Bageshwar , Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -      1

कुमाऊं   संदर्भ में उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  श्रृंखला  -  1
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Kumaon , Uttarakhand , Himalaya -   1
उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  श्रृंखला  -  79
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  , Uttarakhand , Himalaya -    79
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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  बिंतोली   दफौट क्षेत्र , बागेश्वर तहसील का  एक महवत्पूर्ण गाँव है।  कुमाऊं में भी भवन काष्ठ  कला में क्षेत्रीय   विविधता व विशेषता के दर्शन होते हैं।
  आज इस श्रृंखला में  सन्यासी योद्धा  व चंद्र वंशी प प्रसिद्ध व चर्चित  उपन्यासों के रचयिता  कौस्तुभ चंदोला की खोळी /मोरी  की काष्ठ  कला पर चर्चा होगी। 
प्रस्तुत खोली या मोरी शैली अनुसार  इसी श्रृंखला  में   भाग 77  में वर्णित  रामदा  की खोली /तिबारी  से मिलती जुलती है।  दोनों खोलियों /तिबारियों में किनारे के दो स्तम्भ आपस में मिले हैं व मध्य स्तम्भ तीन स्तम्भों से मिलकर जटिल संरचना बनाते हैं।   प्रस्तुत संरचना में दो मोरी  दृष्टिगोचर होते हैं।  प्रत्येक मोरी के किनारे के स्तम्भ  व मध्य स्तम्भ  समांतर पट्टिकाओं के ऊपर  टिके  हैं. आधार में डौळ  है  व ऊपर अधोगामी पद्म  दल , फिर डीला , फिर ऊर्घ्वाकर पद्म दल फिर  डीले  , फिर ऊर्घ्वाकर पद्म दल हैं , ऊपरी पद्म  दल से सम्भ कुछ  गोल ज्यामिय उत्कीर्ण से स्रम्भ  ऊपर चढ़ता है व फिर कलयुक्त डीला  के ऊपर  कमल दल है फिर कमल दाल से स्तम्भ पट्टिका में बदल जाता है शीर्ष में  चौकोर मुरिन्ड बनाते हैं।  चौकोर मुरिन्ड के ऊपर कलयुक्त पट्टिका है। मोरी के  किनारे के स्तम्भ में जब उच्च स्तर पर कमल दल समाप्त होता ही है एक पट्टिका  से अर्ध तोरण पट्टिका निकलती है जो दूसरे स्तम्भ से मिलकर पूर्ण  तोरण  बनती है , तोरण  कटान तिपत्ति  नुमा है. तोरण पट्टिका में कोई कलाकृति दृष्टिगोचर नहीं होती है। 
 मध्य स्तम्भ में प्रथम तल के  उर्घ्वगामी पद्म दल  के ऊपर कलाकृति ही इस मोरी /खोळी  /खोली की मुख्य विशेषता है।  यहां से एक पुष्प दल /पंखुड़ी पत्ती है जिसमे फर्न नुमा चित्रकारी है।  यह  पुष्प दल/पंखुड़ी  एक घुंडी से निकलती है जहां से दूसरा  पुष्प दल भी ऊपर  की ओर  निकलता है इस पुष्प दल में भी फर्न नुमा कला कृति उत्कीर्ण हुआ है।  ऊपर वाली   पुष्प दल पत्ती  व निम्न वाली पुष्प दल पत्ती  में कुछ अंतर् है।जहां  पर दोनों पुष्प  दल मिलते हैं वहां घुंडी बनी है व घुंडी के सामे व पश्च भाग में फूल के  पराग नली  /pollen  stem की आकृति दृष्टिगोचर होती है किन्तु  यहीं पर कला की  परिकाष्ठा भी है कि पराग नली /pollen stem  दो सांप की आकृति भी दीखते हैं / जी हाँ यही कला की परिकाष्ठा नहीं है अपितु  ऊपरी व नीचे के पुष्प दल/पंखुड़ियां   तितली के पंख जैसे  दीखते  हैं।  घुंडी के आगे सांप / पराग नली  तितली के आगे के ऐंटिना /पग  की छवि बनाने में काबिल हैं।  काव्य अलंकार की कला कौस्तुभ चंदोला की काष्ठ मोरी में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है।  दोनों मोरी यखोह के नीचे आयातकार काश्त पट्टिकाओं में ज्यामितीय कला  है। 
निष्कर्ष है कि बिंटोली , बागेश्वर में कौस्तुभ चंदोला  की मोरी /खोळी /खोली के स्तम्भों में नयनाभिरामी कला उत्कीर्ण हुयी है जिसमे प्रकृति व ज्यामितीय कला के दर्शन तो होते ही हैं मध्य स्तम्भ में भरम होता है कि तह पुष्प आकृति है या तितली आकृति व ऐसा ही पराग नीलका /pollen stem  व सांप /नाग आकृति में भी प्रश्न चिह्नः है जिस ेजो समझना है वह समझे।  काव्य अलंकार  (भ्रान्ति अलंकार ) का अलंकरण का उत्तम दर्शन होते हैं कौस्तुभ चंदोला की मोरी /खोली में।  याने प्राकृतिक , मानवीय (सांप  व तितली ) व ज्यामितीय अलंकरण तीनों कलाओं का मिश्रण हुआ है कौस्तुभ चंदोला की मोरी में। 
 भवन के तल मंजिल में प्रवेश मार्ग में भी लकड़ी का काम है पट्टिकाएं हैं किन्तु उनमे कोई  कला दर्शनीय नहीं होती है
सूचना व फोटो आभार : कौस्तुभ चंदोला बिंतोली
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अमोला (अजमेर ) में भारत  अमोली व गिरीश अमोली के जंगलेदार  भवनों में काष्ठ कला

अजमेर संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला -1
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  80
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    80
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 तल्ला अजमेर में अमोला गाँव एक महत्वपूर्ण गाँव है।  भवन काष्ठ श्रृंखला में अमोला  तल्ला अजमेर से भरत मोहन अमोली के जंगलेदार भवन व सामने गिरीश अमोला के  जंगलेदार भवन की सूचना प्रसिद्ध ब्लॉगर, पत्रकार  व साहित्यकार हरीश कंडवाल से मिलीं हैं।
 भारत मोहन अमोला के जंगले  का मकान सामान्य गढ़वाल का सिलेटी पत्थर छत का  दुपुर मकान है।  पहली मंजिल पर  काष्ठ  छज्जा   है व छज्जा लकड़ी के ही दासों पर टिका है. पहली मंजिल में छज्जे के ऊपर सामने व बगल  सहित 16 से अधिक सपाट स्तम्भों वाला जंगला  है।  स्तम्भ व छज्जा पट्टिका व छत आधार काष्ठ पट्टिका  सभी सपाट  हैं खिन भी कोई कलाकृति के दर्शन नहीं होते हैं याने कि  अमोला तल्ला अजमेर में भारत मोहन अमोला  के जंगले  में केवल ज्यामितीय कला है व कहीं  भी प्राकृतिक व मानवीय कला /अलंकरण का उपयोग नहीं हुआ है।
 इसी  तरह अमोला , तल्ला अजमेर में  गिरीश अमोला के जंगले  में भी स्तम्भों  में  ज्यामितीय छोड़ कोई अन्य विशेष अलंकरण  के दर्शन नहीं होते हैं , छज्जा पट्टिका , छत आधार पट्टिका भी  सपाट ही हैं  . स्तम्भों के आधार व  शीर्ष में आयत अंतर से ही स्तम्भों में छटा लायी गयी है
  निष्कर्ष निकलता है कि अपने जमाने में भव्य व अमोला तल्ला अमजेर को  विशिष्ठ  छवि दिलाने वाली दोनों जंगलेदार मकान में ज्यामितीय अलंकरण छोड़ मानवीय व प्राकृतिक अलंकरण  दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। 
स्पष्ट है  कि दोनों जंगलेदार मकानों का  निर्माण काल  सन 1950  के पश्चात ही है।  कष्ट कलाकार अजमेर के ही रहे होंगे इसमें को संदेह नहीं। 

सूचना व फोटो आभार : हरीश कंडवाल , साइकलवाड़ी
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मयाली में -महेशानंद काला और सुरेशानंद काला की तिबारी /तिबार में काष्ठ कला  --
निर्माण--मोनी मिस्त्री और थापा मिस्त्री
स्थान-मयाली गाँव, जखोली
---जनपद रूद्रप्रयाग---
टिहरी रियासत में पटवारी पद पर कार्यरत सुरेशानंद काला और महेशानंद काला ने इस तिबार का निर्माण करवाया था।
मकान और तिबार लगभग लगभग अस्सी साल पुराना है, जिसे दो भाई सुरेशानंद काला और महेशानंद काला जी ने बड़ी मेहनत और शौक से बनवाया था।
मोनी मिस्त्री और उनके पुत्र थापा मिस्त्री ने मिलकर इस तिबार को बनाया था।
पहले इस मकान मे चार तिबारें थी जो बदलते समय के साथ सन उन्नीस सौ अठान्नबे के दौरान बदला गया और वर्तमान मे सिर्फ अब इनमें से एक ही तिबार मौजूद है।
चार खंबों वाली इस तिबार में हालांकि काष्ठकला नक्काशी साधारण है, परन्तु तिबार के बाहर भी छज्जे में जंगला काष्ठकला से भरा पडा है।
लगभग दस ऊर्ध्वाधर खंबे सीधे मकान के एक कोने से दूसरे कोने तक सजग सतर्क खडे है, और मकान की एक एक पठ्ठाली को थामे है।
ये जंगला और ऊर्ध्वाधर स्तम्भ मकान के दांई और तक बने है।
इन स्तम्भों के ऊपरी भाग पर छत की पठ्ठाली के नीचे लगभग चोदह छोटे स्तम्भ -कड़ी, क्षैतिज रखी है, जो मकान की झांपनुमा पठ्ठालियों की कतार को कसकर थामे हुए है।
ये स्तम्भों की लंबाई के बीच में इन्हें जंगले के लंबे स्तंभों ने पकड़ रखा है।
छज्जे में पठ्ठाली बिछीं है पर एक-एक पठ्ठाली को छज्जे में लकडी से ढका गया है । जबकि छज्जे के नीचे से लगभग बारह स्तम्भ-कड़ी भी लगाई गई है।
तिबार और जंगलेदार नक्काशी में काष्ठकला का अच्छा संयोजन है।
जंगले के हर दो बड़े स्तम्भों के बीच लगभग दो बराबर वर्ग और प्रत्येक वर्ग में चार बराबर त्रिभुजाकार आकृति है।
तिबार तक पहुँचने के लिए आन्तरिक प्रवेश द्वार (खोली) नहीं है, तिबार सीधे जंगले मे खुलती है, और जंगलेदार नक्काशी मकान के सामने से दांई और तक हूंबहू मिलती है।
तिबार डंडयाळी मिट्टी से लिपी पुती है, जिसके पीछे एक कमरा और तिबार के दांई और ही दूसरा कमरा है।
तिबार के ऊपर ही अंदर भी लकड़ी की खूब नक्काशी की गई है और सामान रखने की पर्याप्त जगह बनाई गई है।
तो है ना बेहतरीन काष्ठकला नक्काशी ।
संकलन अभिप्रेरणा - श्रद्धेय भीष्मकुकरेती जी
----- 👏अश्विनी गौड अगस्त्यमुनि रूद्रप्रयाग ------
House wood carving Art of Rudraprayag , House Wood Carving art of Garhwal , Uttarakhand

Bhishma Kukreti

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डवोली  में  गुणा  नंद डबराल की  तिबारी  में काष्ठ  कला , अलंकरण

House Wood Art in Tibari of Guna Nand Dabral from Davoli , Dabralsyun

डबराल स्यूं , गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला -7
  Traditional House wood Carving Art  (Tibari ) of Dabralsyun ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   -7
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  81
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -    81
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 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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   डवोली  की लोक कला अध्याय में पहले ही सूचना दी डवोली  डबरालस्यूं का सबसे बड़ा क्षेत्र वाला गाँव है। डवोली   में लगभग चार  तिबारियां का कुछ लकड़ी के जंगले दार मकान  व विशेष बिन काष्ठ की तिबारियां थीं किन्तु समय के साथ सभी तिबारी व जंगले  ध्वस्त कर दिए गए व उनकी जगह नए मकान बन गए हैं।  पूछने पर पता चला कि तिबारी मालिकों ने ध्वस्त होने से पहले कोई फोटो नहीं लिये थे। 
   एक सूचना अनुसार डवोली  में अभी केवल स्व गुणा नंद डबराल की तिबारी ही बची है व वह  भी आखरी सांस ले रही है। मकान दुखंड  है व पहली मंजिल में दो कमरों से बरामदे पर तिबारी  गयी थी।  मकान में पाषाण छज्जा व तिबारी में पाषण की ही देळी /देहरी doorsil है।  देळी
 तिबारी चार स्तम्भों से सजी है ,स्तम्भ देळी के ऊपर टिके  हैं  व चारों  स्तम्भ तीन मोरी /खोळी /द्वार बनाते हैं।  चारों स्तम्भ सपाट  चौखट हैं का कहीं  भी स्तम्भों में  ज्यामितीय कला के प्राकृतिक व मानवीय कला के दर्शन नहीं होते हैं।  चौखट मुरिन्ड में भी कोई नक्कासी नहीं दिखती।
 आज के परिपेक्ष में सपाट स्तम्भों वाली  स्व गुणा  नंद डबराल की तिबारी साधारण तिबारी दिखती है किंतु  एक समय था कि तिबारी की अपनी शान थी व स्व गुणा नंद की तिबारी स्थल डवोली  में एक विशेष पहचान स्थल था । ननिहाल  आये भानजी  - भानजेों  व अन्य मेहमानों  को यह तिबारी  दर्शनीय स्थल माफिक दिखाई जाती थी

सूचना व फोटो आभार :  हरीश डबराल, डवोली
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
  Traditional House Wood Carving  (Tibari ) Art of, Dhangu, Garhwal, Uttarakhand ,  Himalaya; Traditional House Wood Carving (Tibari) Art of  Udaipur , Garhwal , Uttarakhand ,  Himalaya; House Wood Carving (Tibari ) Art of  Ajmer , Garhwal  Himalaya; House Wood Carving Art of  Dabralsyun , Garhwal , Uttarakhand  , Himalaya; House Wood Carving Art of  Langur , Garhwal, Himalaya; House wood carving from Shila Garhwal  गढ़वाल (हिमालय ) की भवन काष्ठ कला , हिमालय की  भवन काष्ठ कला , उत्तर भारत की भवन काष्ठ कला

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ठंठोली में बामदेव  कुकरेती -भवानी शंकर कुकरेती के जंगलेदार  मकान में काष्ठ  कला

ठंठोली  (ढांगू ) में भवन काष्ठ उत्कीर्ण कला भाग -10
Traditional House Wood carving Art from Thantholi - 10
ढांगू गढ़वाल , हिमालय  की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों  पर काष्ठ अंकन कला  श्रृंखला
  Traditional House wood Carving Art of West Lansdowne Tahsil  (Dhangu, Udaypur, Ajmer, Dabralsyun,Langur , Shila ), Garhwal, Uttarakhand , Himalaya   
  दक्षिण पश्चिम  गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर ,  डबराल स्यूं  अजमेर ,  लंगूर , शीला पट्टियां )   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों    बाखरियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण  श्रृंखला 
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  गढ़वाल,  कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बाखरी   ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  83
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Garhwal , Uttarakhand , Himalaya -   83 
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 संकलन - भीष्म कुकरेती
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 ठंठोली (मल्ला ढांगू , द्वारीखाल ब्लॉक, लैंसडाउन तहसील  ) में  तिबारी व जंगलेदार मकानों की संख्या अच्छी खासी है।  सम्प्रति बामदेव कुकरेती -भवानी शंकर कुकरेती के जंगलेदार मकान में काष्ठ कला की जांच पड़ताल होगी।
16  सपाट  स्तम्भों से सुस्सजित जंगला पहली मंजिल पर  स्थापित है।  स्तम्भ  लकड़ी के छज्जे पर टिके हैं व सीधे ऊपर छत आधार पट्टिका से मिलते हैं।  बाम देव कुकरेती - भवानी शंकर कुकरेती के जंगले  दार मकान की भी विशेषता है कि  शीर्ष में दो स्तम्भों को T  आकार की आकृति आपस में जोड़ती है या शीर्ष में दो स्तम्भों के मध्य T  आकार की ज्यामितीय कला  आकृति है जो जंगले  की सुंदरता व विशेषता (exclusivity ) वृद्धि कारक है।
 जंगले में कोई  अन्य अवयव विशेष नहीं अपितु इलाके के अन्य जंगले दार  कूड़ों जैसे  हैं।
अज्ज भी बामदेव -भवानी शकर कुकरेती का जंगले दार  कूड़  ठंठोली व बामदेव कुकरेती  -भवानी शंकर कुकरेती की पहचान  (identity )   वृद्धिकारक है। 

सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020
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Bhishma Kukreti

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दानकोट में    नारायण  दत्त गौड़ की शानदार काष्ठकला अर सुंदर नक्काशी
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आलेख –  आश्विनी गौड़ , अगस्तमुनी
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खोली- नारायण दत्त, दानकोट।
कारीगर- डोमा मिस्त्री, क्यार्क (बसुकेदार)
स्थान -दानकोट, रूद्रप्रयाग
निर्माण -1968
शानदार काष्ठकला के बीच दानकोट गांव की सबसे सुंदर सजी-धजी खोली है ये।
नारायणदत्त जी की बनवाई इस विरासत को उनके पुत्रों स्व सत्यानंद,
श्री रामेश्वर गौड, पुरुषोत्तम गौड़, बृजमोहन गौड़ जी ने बड़ी अहमियत दी है, और सजाकर रंग रोगन के साथ इस विरासत को तीसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित कर दिया है।
इसको सजाने संवारने और कलर काॅबिनेशन में आदरणीय पुरुषोत्तम गौड जी का अथाह प्रयास प्रसंसनीय है।
इसकी लकडी डांगी के पास मसाणधार के एक पेड से तैयार की गई, इस पेड़ से पांच और खोली या तिबार तैयार किए गए थे।
खोली इतनी आकर्षक है कि देखकर आपके मोबाइल मे कैद हो जाए।
क्यार्क बसुकेदार के प्रसिद्ध कारीगर डोमा मिस्त्री ने इस विरासत को अकेले ही सजाकर उकेरा है, जिनकी अप्रतिम कला की आज दशकों बाद भी हम दाद देते है।
इसमें तीन मजबूत स्तम्भ आपस मैं जोड़े गए है,
सबसे बाहरी स्तम्भ पर नीचे से दो गुंबदनुमा कुंभ आकृति चिपकी है और उनके ठीक ऊपर कमल का पुष्प फिर स्तंभ ऊपर जाकर पुनः कमल आकृति से सजा है। इस स्तम्भ मे ऊपर काफी गहरी नक्काशी उकेरी गई है।
बीच वाला स्तम्भ काफी चौड़ा और मजबूत है, जिस पर फर्न पत्ती की तरह आकृति बनावट डिजाइन दिया गया है।
सबसे अंदर के स्तम्भ और बीच के स्तम्भ के ऊपर क्षैतिज रखे स्तम्भ पर विघ्नविनाशक गणेश जी की चतुर्हस्त मूर्ति उकेरी गई है।
गणेश मूर्ति के ऊपरी सिरहाने पर काष्ठ लंबवत कलाएँ बनी है जो गणेश जी की मूर्ति से काफी बाहर तक तरासी गई है।
बाहरी स्तम्भ अंदर के स्तम्भ से काफी बाहर है। सबसे अंदर के स्तम्भ पर नीचे फीटभर जटिल वक्राकार मछलीनुमा कलाकृति है इसके ऊपर पूरे क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर स्तम्भ पर सर्पमुखाकार उभरी पत्तीनुमा आकृति है।
सबसे मुख्य बात गणेश मूर्ति तीनों स्तम्भों को टच करती है और स्तम्भों के अलग होने का आभास नही करवाती।
खोली के अगल बगल गमले नुमा प्रस्तर आकृति और उसके ऊपर डेढ़ फीटभर काष्ठकला के छापे खोली की सुंदरता मे चार चांद लगा देते है।
क्षैतिज ऊपरी स्तम्भ में किनारों पर सूरजमुखी जस फूल छापे गए है।
तीनों स्तम्भ तीन सुंदर पत्थरों के ऊपर मजबूती से टिकाए है।
खोली के दरवाजे पर आठ आयताकार आकृतियाँ है, जबकि खोली में नौ सीढ़ियाँ है।
यह खोली दानकोट के पंच पंडौ चौक के सामने है।
ये अद्भुत विरासत मात्र काष्ठकला ही नही वरन हमारे लोक में बसीं बेजोड़ टेक्नोलॉजी है जो सदियों तक भी सडे गले बिना आधुनिक वनावटी डिजाइनों के सामने मजबूती के साथ टिकी है और हमारी समृद्ध विरासत का परिचय दे रही है।
------@अश्विनी गौड़ दानकोट अगस्त्यमुनि रूद्रप्रयाग ।

House Wood carving Art of Kedar Valley , House Wood carving Art of Mandakini Valley , House Wood carving Art of  Ukhimath ,




Bhishma Kukreti

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      सन्  1887  में निर्मित
खल नागराजाधार में बनवारी लाल भट्ट के मकान  में काष्ठ  कला व अलंकरण


House Wood Art in Tibari (  Built 1887)  of  Banwari lal Bhatt from Khal Nargrajadhar (Tehri)

टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ  कला अंकन - 2
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of  Tehri Garhwal , Uttarakhand , Himalaya  - 2

गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार ,  उत्तराखंड  , हिमालय की भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार   ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन )  -  82
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) Ornamentation of Garhwal , Kumaon , Dehradun , Haridwar Uttarakhand , Himalaya -  82

-  संकलन - भीष्म कुकरेती
    यह सत्य है कि ब्रिटिश हो या टिहरी गढ़वाल , दोनों रियासतों में सम्पनता  ब्रिटिश काल के उपरांत ही आयी।  टिहरी रियासत भी अपवाद नहीं है। टिहरी में विकास हो रहा था।   टिहरी राजधानी का सांस्कृतिक प्रभाव  धीरे धीरे  टिहरी व जौनसार के दूरस्थ गांवों में भी पड़ने लगा था।  1887  में निर्मित खल नागराजधार , (कोटी  फैगुल , घनसाली टिहरी गढ़वाल  )  में  राजमिस्त्री बनवारी लाल भट्ट  का मकान साक्षी है कि 1880 के बाद इस तरह की सम्पनता आ चुकी थी कि गाँवों में दो मंजिले या ढाई मंजिले भव्य मकान निर्मित हो सकें।   
 प्रसिद्ध राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट के मकान की इस श्रृंखला में बड़ा महत्व है।  मकान में पत्थर से  उत्कृष्ट मकान निर्माण शैली का उदाहरण तो मिलता ही है साथ में काष्ठ कला के विकास का  सूत भेद भी पंडित बनवारी लाल का यह मकान देता है।  मकान दुखंड है व दो उबर  (तल मंजिल के कमरे)  हैं , उबरों में मध्य पहली मंजिल में जाने  के अंदुरनी मार्ग हेतु खोळी /प्रवेश द्वार है.
 राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट  के मकान की कई वास्तु विशेषताएं संज्ञान लेने लायक  है  जैसे कमरों के व खोळी  द्वारों के ऊपर पाषाण arch /अर्ध मंडल/चाप  या तोरण कला , इसके अतिरिक्त आलों /आळों  के ऊपर भी पाषाण  मंडल /arch /चाप हैं जो विशेष (exclusive ) हैं।
 काष्ठ  कला की दृष्टि से पंडित भट्ट का यह ढैपुर मकान बहुत ही महवतपूर्ण है और ऐसी समान कला युक्त या शैली युक्त भवन अब शायद  ही बचे   होंगे।  काष्ठ कला की विवेचना हेतु मकान के निम्न स्थानों  की विवेचनआवश्यक है -

1 - पंडित बनवारी लाल के मकान के दो उबरों   के दरवाजों में काष्ठ कला
1 अ - उबर  के सिंगाड़ /स्तम्भ में काष्ठ कला
1 आ - उबर के मुरिन्ड चाप में काष्ठ कला व अलंकरण
2 -    मकान की खोळी /प्रवेश द्वार में दरवाजों पर काष्ठ कला
2 अ  दरवाजों प र कला  यदि है
2 आ - मुरिन्ड में कोई कला
2 इ - मुरिन्ड के ऊपरी  स्थल में कला व अलंकरण
3   -   मकान में तल मंजिल के आलों में काष्ठ  कला /art व अलंकरण /motifs
4   - पहली मंजिल पर दुज्यळों  / मोरियों /windows में काष्ठ  कला व अलंकरण
5   - मकान के ऊपर छत  आधार पट्टिका दासों /टोड़ीयों  में  काष्ठ कला
                          मकान के दो उबरों   के दरवाजों में काष्ठ कला   
उबरों   के दरवाजों  कोई चित्रकारी नहीं है केवल ज्यामितीय  कटान  है।
          उबर के मुरिन्ड चाप में काष्ठ कला व अलंकरण 
उबरों  के एक मुरिन्ड  के ऊपरी  की पट्टिका में प्राकृतिक ( बेल - बूटे नुमा ) कलाकृति उत्कीर्ण दृष्टिगोचर होती है याने दोनों दरवाजों के मुरिन्ड के ऊपरी पट्टिका में अवश्य ही लंकरण था।
 उबर के दरवाजों के ऊपर पाषाण  चाप के नीचे पत्थरों /छिपटियों  से बना अर्ध वृत्त बरबस दर्शक को आकर्षित करता है
      आलिशान मकान में आलों में काष्ठ  कला /art व अलंकरण /motifs 
तलमंजील के ालों में कोई काष्ठ कला नजर नहीं आती किन्तु पाषाण कला का नायब नुमा देखने को मिलता है।
    पहली मंजिल के  आले नुमा खड़की/मोरियों  /दुज्य ळ  windows  में काष्ठ कला व अलंकरण
    पहले मंजिल  में आलेनुमा  दो मोरी/  दुज्यळ /खिड़की  हैं व उनके ऊपर व चारों ओर  पाषाण कला तो है ही अपितु  सिंगाड़  /स्तम्भ व ऊपर  मोरी मुरिन्ड में एक अर्ध चाप का काष्ठ अर्ध वृत्त भी दृष्टिगोचर होता है।  मोरी /खिड़की के मुरिन्ड व सिंगाड़ में प्रशंसनीय  काष्ठ अलंकरण हुआ है।
 
मकान के छत आधार पट्टिका चित्रकारी  सहित दासों   के ऊपर ठीके हैं
       खोळी /प्रवेश द्वार   में काष्ठ  कला
खोळी  के स्तम्भों के निम्न भाग पर चित्रकारी दृष्टिगोचर हो रही है है।   
चित्रकारी अंकन दृष्टि से मुरिन्ड  को दो भागों में बांटा   जा सकता है।  पहला भाग - एक मुरिन्ड के ऊपर गणेश जी की चतुर्भुज आकृति . गणेश जी के चार भुजाओं में एक में डमरू , एक हाथ में  शंख , एक हाथ में कोई हथियार या शगुन नुमा आकृति है ,  चौथे हाथ में सूंड को भोजन या पानी पिलाने का पात्र है।  गणेश जी के माथे  के ऊपर नागफन   है।  गणेश जी के दोनों ओर कमल दलीय स्तम्भ हैं व  स्तम्भ से एक जालीदार कलयुक्त अर्ध वृत्त निकलता है जो सजावट का बेहद  खूबसूरत नमूना है। गणेश जी के सूंड  में दो दांत हैं , माला  है व कान उभर कर आये हैं।  कलायुक्त गणेश जी की  प्रतिमा बाहर से बिठाई गयी है।
    मुरिंड  के  दूसरा  भाग गणेश  आकृति के ऊपर है  जिसमे प्राकृतिक (वानस्पतिक ) व ज्यामितीय  मिश्रित कला के दर्शन होते हैं।
   
पंडित बनवारी लाल भट्ट का यह मकान एक डेढ़ वर्ष में बनकर तैयार हुआ व ढैपर समेत सब जगह सांदण  की लकड़ी का प्रयोग हुआ है।
 निष्कर्ष निकलता है कि खल नागराजाधार के राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट का मकान गढ़वाल के वास्तु इतिहासकारों के लिए शैली समझने  हेतु महत्वपूर्ण तो है ही साथ में  मकान में पाषाण वा काष्ठ कलाओं व अलंकरणों का संगम देखने लायक है।  बरबस मुंह से  एक ही वाक्य निकलता है , " वाह  ! वाह  ! क्या सुन्दर  मकान है ! क्या कला है !"   


  सूचना व फोटो आभार :   सत्या नंद बडोनी ,  कणोली

 

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