Author Topic: House Wood carving Art /Ornamentation Uttarakhand ; उत्तराखंड में भवन काष्ठ कल  (Read 37175 times)

Bhishma Kukreti

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जोशीमठ क्षेत्र में हरीश चंदोला भवन में तिबारी की काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन

Traditional House Wood Carving Art from  Josh,math, Chamoli   
 गढ़वाल,कुमाऊंकी भवन (तिबारी, निमदारी,जंगलादार मकान, बाखली,खोली) में पारम्परिक गढ़वाली शैली की  काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन, - 629
( काष्ठ कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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चमोली गढ़वाल में  काष्ठ कला हेतु सर्वश्रेष्ठ जनपद है।  प्रत्येक गाँव में अनोखे भवन काष्ठ कला दृष्टिगोचर होती हैं।  इसी क्रम में आज जोशीमठ क्षेत्र में हरीश चंदोला भवन की तिबारी के  सिंगाड़ों  ( स्तम्भ ) की काष्ठ कला पर चर्चा होगी।
सूचना अनुसार  चंदोला भवन की तिबारी के तीन सिंगाड़  व  तीन  दीवालगीर के दर्शन होते हैं।  सभी काष्ठ कला दृष्टि से कला भव्य प्रकार की है।
  सिंगाड़ (स्तंभ )  के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प दल उत्कीर्ण हुआ है जिसके ऊपर ड्यूल है।  ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल उत्कीर्ण हुआ है।  यहां से सिंगाड़ ऊपर चलता है ऊपर जाकर यही क्रम दुबारा स्थापित हुए हैं। स्तम्भ व पुष्पों के ऊपर भी उत्तीर्ण हुआ है।   यहां से सिंगाड थांत रूप लेता हैं।  यहीं से तोरणम भी उतपन्न हुआ है।  तोरणम में प्राकृतिक कला वस्तु व सूरजमुखी पुष्प का उत्कीर्ण हुआ है। 
प्रत्येक थांत के ऊपर पक्षी रूपी व पुष्प कली मिश्रित व एक तोते के डेवलगीर स्थापित हुए हैं।
सर्वत्र कला भव्य रूप में है। 
चंदोला भवन में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण का उत्कीर्णन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार: शशि भूषण मैठाणी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तु स्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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  गुडिया /गुरिया (उखीमठ) में एक भवन पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ कला अलंकरण उत्कीर्णन  अंकन
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Traditional House wood Carving Art of Guriya , Ukhimath , Rudraprayag         : 
गढ़वाल के भवन (तिबारी, निमदारी, बाखली,जंगलेदार  मकान, खोलियों ) में पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ कला अलंकरण उत्कीर्णन  अंकन,-630   

 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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रुद्रप्रायग भी चमोली की भांति भवन काष्ठ कला में विशेष स्थान वाला जनपद है।  आज इसी क्रम में गुरिया /गुड़िया (उखीमठ ) के एक भवन की काष्ठ कला पर चर्चा की जाएगी।
प्रस्तुत  गडिया  /गरिया  का भवन दुपुर व दुखंड है व अर्द्ध  तिपुर   लगता है  (ढैपुर ) ।   भवन के तल तल (ग्राउंड फ्लोर ) में लकड़ी के सभी सपाट कला दिखती है।  पहले तल में जंगला बंधा है। जंगले के १० बड़े स्तम्भ व छोटे जंगलों  के लघु स्तम्भ में सभी में ज्यामितीय कटान कीकला दृष्टिगोचर हो रही है।  बड़े स्तम्भों के मध्य गहरा कटान है जो स्तम्भों को आकर्षक दर्शाने में योग्य हैं। 
गरिया  /गडिया  के पूरे भवन में  ज्यामितीय कटान की काष्ठ कला विद्यमान है। 
सूचना व फोटो आभार: अभिषेक रावत
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी, भौगोलिक स्तिथि संबंधी।  भौगोलिक व मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
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  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण ,
 नक्काशी, जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला,   ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग  में भवन काष्ठ कला अंकन,  उत्कीर्णन  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रप्रयाग में दरवाज़ों में उत्कीर्णन  , रुद्रप्रयाग में द्वारों में  उत्कीर्णन  श्रृंखला आगे निरंतर चलती रहेंगी


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खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन

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    Tibari, Traditional  House Wood Art in House of, Khanaiti , Bichhala Badalpur, Pauri Garhwal      

पौड़ी गढ़वाल, के  भवनों  (तिबारी,निमदारी,जंगलेदार मकान,,,खोली ,मोरी,कोटिबनाल ) में  गढवाली  शैली   की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन  -631 


 संकलन - भीष्म कुकरेती    

-बदलपुर से भी कई भवनों की सूचना मिली है।  इसी क्रम में आज  खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में युक्त काष्ठ कला उत्कीर्णन पर चर्चा की जाएगी। डुकलाण  भवन दुपुर व दुखंड है।  भवन के तल तल (ground floor ) में कमरों व  मोरियों (खिड़कियों ) में सपाट प्रकार की काष्ट कला।  प्रथम तल में  काष्ठ छज्जे पर जंगला बंधा है।  जंगले में कम से कम दस स्तम्भ दृष्टिगोचर हो रहे हैं (५ एक ओर ) . सभी स्तम्भ  चौखट व सपाट व ज्यामितीय कटान के निर्मित हैं।  स्तम्भों को ऊपर छूने वाली कड़ी भी स्पॉट ही है चौखट है।  भवन में बाहर कहीं भी मानवीय अलंकरण (देव , पशु पक्षी चिन्ह ) नहीं दृष्टिगोचर होते हैं।  अतः  निष्कर्ष निकलता है कि खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में  केवल ज्यामितीय अलंकरण की काष्ठ कला उत्कीर्णन विद्यमान है।  

सूचना व फोटो आभार: मदन डुकलाण 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

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   कोटियारी  (घनशाली ) के एक     भवन के जंगले  में पारम्परिक गढवाली शैली की   कला, अलकंरण, उत्कीर्णन, अंकन
Traditional House Wood Carving Art of, Kotiyari , Tehri   
गढ़वाल,   भवनों ) में पारम्परिक गढवाली शैली की  कला, अलकंरण, उत्कीर्णन, अंकन-   632

संकलन - भीष्म कुकरेती 
  टिहरी गढ़वाल में तिबारियों व जंगलों की अच्छी संख्या में सूचना मिली है।  आज इसी क्रम में कोटियारी के एक भवन में जंगले  की सूचना मिली है।  भवन दुपुर  व दुखंड है।  भवन के तल तल व पहले तल में कमरों व मोरियों (खिड़कियों ) के द्वारों , सिंगाडों में सपाट ज्यामितीय कला के दर्शन हो रहे है।  हाँ जंगले  के लघु स्तंभ कलयुक्त हैं।     अपने युवा काल में जंगले  के मिट्टी पत्थर सीमेंट से बने स्तम्भ सही सलामत रहे होंगे किन्तु अब कुछ ही पूरे स्तम्भ बचे हैं। 
जंगले के लघु स्तम्भ हुक्का के नई जैसे हैं जिसमे तल में उल्टा कमल , ड्यूल , पुनः कमल दल व इसी तरह पुनरावृति हुयी है। 
 लघु स्तंभ अपने समय में उत्कृष्ट दीखते रहे होंगे। 

  सूचना व फोटो आभार: सुरेंद्र रावत     
यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I   भौगोलिक स्तिथि और व भागीदारों  के नामों में त्रुटि   संभव है I 
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धराली ( राजगढ़ , उत्तरकाशी ) के एक भवन में  पारम्पपरिक    गढवाली शैली  की    काष्ठ  कला,  अलकंरण, अंकन उत्कीर्णन
  Traditional House wood Carving Art in ,  Dharali  Uttarkashi   
गढ़वाल,  कुमाऊँ ,  के भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में पारम्पपरिक    गढवाली शैली  की    काष्ठ  कला,  अलकंरण, अंकन उत्कीर्णन - ६३३

 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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 उत्तरकाशी में  सदियों पुराने भवनों में काष्ठ कला विद्यमान हैं।  अधिकतर भवनों में काष्ठ कला अपने पुरात्म व प्राथमिक काल की ही हैं।  और ऐसी काष्ठ कला उत्तराखंड के तिब्बत सीमा पर बहुतायत से मिलते हैं। 
आज धराली (राजगढ़ ब्लॉक, उत्तराखंड  ) के एक भवन में काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  धराली का प्रस्तुत भवन दुखंड व दुपुर है। भवन नया लगता है।   प्रथम तल (first floor ) में जंगल बंधा है व जंगले में बड़े स्तम्भ हैं जो सपाट हैं।  भवन के प्रथम तल में जंगले  के आधार में लघु जंगला बंधा है जिसमे दो कड़ियों के मध्य कुछ कुछ XIX  आकर में लघु स्तम्भ बंधे हैं। 
भवन के अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि  धराली के प्रस्तुत भवन में ज्यामितीय कटान की सपाट कला विद्यमान है। 
सूचना व फोटो आभार :  प्रशांत   (फेसबुक )
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . भौगोलिक ,  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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 लोखंडी (जौनसार , देहरादून ) के एक भवन में काष्ठ कला
गढ़वाल,  कुमाऊँ , के  भवन  ( कोटि बनाल   , तिबारी , बाखली , निमदारी)  में   पारम्परिक गढ़वाली शैली   की काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन -634
Traditional House wood Carving art of , Lokhandi , Jaunsar , Dehradun
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जौनसार व रवाई क्षेत्र भवन काष्ठ कला हेतु उत्तराखंड में  उच्च स्थान पर है।   शीत जलवायु के कारण इन क्षेत्रों में पूरा भवन काष्ठ का निर्मित  केवल कुछ भाग में मिटटी व पत्थर प्रयोग होता है।  प्रस्तुत  लोखंडी (जौनसार , देहरादून ) का भवन तिपुर  व   दुखंड है।  भवन में कोटि बनाल शैली साफ़ दृष्टिगोचर होता है। 
भवन केदूसरे  तल में सपाट शक्तिशाली स्तम्भ दृष्टिगोचर हो रहे हैं।  तीसरे तल में मिटटी पत्थर की दिवार के स्थान पर काष्ठ दीवार निर्मित हुयी है।  दीवार काष्ठ पट्टियों से निर्मित हुयी हैं।  सभी पट्टियां सपाट व ज्यामितीय कटान से निर्मित हुए हैं।
दोनों भवनों में पट्टियां  व स्तम्भ सपाट व ज्यामितीय कला के उदाहरण हैं।
यद्यपि दोनों भवनों में काष्ठ कला  ज्यामितीय कटान से निर्मित व सपाट है किन्तु समग्र रूप से भवन में काष्ठ कला आकर्षक है।  यही जौनसारी व रवायीं , हर्षिल घाटी के भवनों की विशेषता है। 
सूचना व फोटो आभार : भगत सिंह  राणा
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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   चौखुटा (नैनीताल )  के एक भवन में काष्ठ कला 
   Traditional House Wood Carving Art in Chaukhuta , Nainital; 
   कुमाऊँ, गढ़वाल, केभवन ( बाखली,तिबारी,निमदारी, जंगलादार मकान,  खोली, )  में कुमाऊं शैली की  काष्ठ कला, अंकन,अलंकरण, उत्कीर्णन  - 635

संकलन - भीष्म कुकरेती

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नैनीताल से बहुत से काष्ठ कला युक्त भवनों की सूचना मिलीं हैं कुछ विशेष भवन हैं जैसे धानाचूली में। 

आज चौखुटा के एक नए प्रकार /शैली के भवन में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।  भवन बिलकुल नई शैली का है जिस पर ब्रिटिश शैली की छाप साफ़ दृष्टिगोचर होती है। 

चौखुटा  का प्रस्तुत भवन दुपुर  व तिखण्ड दीखता है।  भवन के तल तल (ग्राउंड फ्लोर ) मे सपाट काष्ठ कला है।  भवन के प्रथम तल में पारम्परिक शैली का जंगला बंधा है जिस पर ४ ५ स्तम्भ हैं।  बड़े  स्तम्भ सपाट व ज्यामितीय कटान कला युक्त हैं। 

आधार में भी लघु जंगल बंधे हैं जिस पर लघु स्तम्भ हैं जो छोटी कड़ी नुमा हैं। 

भवन की काष्ठ कला में कोई विशेषता नहीं है किन्तु भवन की निर्माण शैली विशष है। 

सूचना व फोटो आभार: नवनीत पाठक

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

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मझेरा (भिकियासैण , अल्मोड़ा ) के एक भवन की छाज  में काष्ठ कला
Traditional House Wood Carving art of, Majhera , Bihkhiyasain Almora, Kumaon   
 
कुमाऊँ , के भवन  में ( बाखली ,तिबारी, निमदारी ,, छाज )   कुमाऊं की    ' काष्ठ कला  अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन - 635 

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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अल्मोड़ा से अच्छी संख्या में  काष्ठ कलायुक्त भवनों की सूचनायें  मिल रही है।  आज इसी क्रम में मझेरा अल्मोड़ा के एक भवन के छाज में काष्ठ कला , काष्ठ उत्कीर्णन पर चर्चा होगी।
प्रस्तुत भवन का छाज पहले तल में ही है। 
छाज के स्तम्भ /सिंगाड़  युग्म में हैं व मध्य में एक जालीदार नुमा कड़ी है व दोनों ओर उत्कीर्ण युक्त स्तम्भ हैं।  ये स्तम्भ कला में एक जैसे ही हैं। स्तम्भ के आधार में उल्टे कमल दल का चित्र उत्कीर्णित हुआ है व ऊपर लम्ब रूप से कटे बंद गोभी की कला दृष्टिगोचर हो रही हैं।  ऊपर ड्यूल हैं फिर ऊपर उर्घ्वगामी   पद्म   पुष्प  उत्कीर्णित हुए हैं।  इसके ऊपर लौकी नुमा आकृति कटी हैं व फिर ऊपर उलटे कमल दल , ड्यूल व उर्घ्वगामी कमल दल हैं।  इसके बाद कड़ी में लच्छेदार कला उत्कीर्ण हुयी हैं।  सबसे ऊपर स्तम्भ ऊपर के शीर्ष में बदल जाते हैं।  शीर्ष कलयुक्त हैं।
 शीर्ष में खिन भी देव मूर्ति उत्कीर्ण नहीं हुयी है। 
निष्कर्ष नीलता है कि खवन के छाज में प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण कला उत्कीर्ण हुयी हैं। 
सूचना व फोटो आभार :   बलवंत सिंह
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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  रीठा (चम्पावत )   के   एक भवन  संख्या १ में काष्ठ कला अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन
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कुमाऊँ ,गढ़वाल, के भवन ( बाखली,   खोली , )  में ' कुमाऊँ  शैली'   की   काष्ठ कला अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन  -637
 संकलन - भीष्म कुकरेती   
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रीठा  (चम्पावत )  सिक्खों हेतु एक धार्मिक स्थल है।  रीठा   से   काष्ठ कलयुक्त दो भवनों की  सुचना मिली है। 
प्रस्तुत भवन संख्या १  भवन दुपुर या हो सकता है तिपुर  हो  व दुखंड है।  भवन के तल तल ground floor  में गौशाला व कुठार (भंडार ) के द्वारों के दरवाजों पर सपाट ज्यामितीय अलंकृत  कला दृष्टिगोचर हो रही है।  भवन में छाज के स्थान पर गढ़वाली तिबारी जैसे लम्बा  बरामदा नुमा आकृति  है। पहले तल व तल तल के मध्य बड़ी कड़ी(  पसूण ) या मेहराब है जिस पर काश्त उत्कीर्णित आकृति अदर्शनीय है।   तिबारी नुमा दलान  के बाहर सपाट सतंभ स्थापित हैं।  ये स्तम्भ आधार पर कुछ मोटे हैं।   
  रीठा (बेतालघाट, चम्पावत  ) के पस्तुत भवन संख्या १ में कष्ट उत्कीर्णन सपाट ज्यामितीय कटान कला ही दिखती है। 
सूचना व फोटो आभार :  नरेंद्र महरा 
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मिलाम (मुन्सियारी पिथौरागढ़ ) के एक भवन छाज में काष्ठ  अलंकरण, काष्ठ उत्कीर्णन अंकन
   Traditional House Wood Carving Art  of  Milam ,Munsiyari    , Pithoragarh
कुमाऊँ,के भवनों ( बाखली,तिबारी , निमदारी,छाजो, खोली स्तम्भ) में कुमाऊं शैली की   काष्ठ कला अलंकरण, काष्ठ उत्कीर्णन , अंकन -638

 संकलन - भीष्म कुकरेती 
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पिथौरागढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों से काश्त युक्त भवनों की अच्छी संख्या में सूचना मिली हैं।  आज इसी क्रम में मिलाम के एक भवन के छाज (झरोखा ) में काष्ठ    कला पर चर्चा होगी। छाज के नीचे एक द्वार या छाज निर्मित हुआ लगता है।  एक तल व दुसरे तल के मध्य शक्तिशाली मोटी दो बौळी /मेहराब  हैं ।  आम तौर पर मेहराब या बौळियों में काष्ठ कला अंकित होती हैं किन्तु इस भवन की बौळी (मेहराब ) पर  कोई अंकन उत्कीर्णन नहीं हुआ है। 
छाज (छेड़ या ढुड्यार ) के दोनों ओर काष्ठ स्तम्भ स्थापित हुए हैं।  स्तम्भ के आधार में मुंगर जैसी कोई आकृति उलटी है व उसमे जैसे उलटे हाथ अंकित हुए हैं।  इस आकृति के ऊपर दो ड्यूल हैं व ड्यूल के ऊपर अधोगामी व उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल से सजी  दबल  जैसी आकृति है।  इस आकृति के ऊपर फिर ड्युल हैं व उसके ऊपर दो हुक्के (लौकी जैसे )  की आकृति में फर्न पत्तियों का अंकन युक्त आकृति हैं।  इस आकृति के ऊपर ड्यूल हैं।  ड्यूल के ऊपर ड्यूल का  बिसौण  अंकन हुआ है व उसके ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल की आकृति युक्त आकृति स्थापित है।  इस आकृति के ऊपर स्तम्भ पर  S  आकृति अंकित है व इसके ऊपर स्तम्भ सीधा हो ऊपर जाकर शीर्ष में मुरिन्ड /शीर्ष की कड़ी बन जाती हैं।  ऊर्घ्वाकार पद्म आकृति के ऊपर से स्तम्भ पर शीर्ष से नीचे तोरणम स्थापित है। आस्चर्य है कि तोरणम के स्कन्धों में कोई उत्कीर्णन नहीं हुआ है।  संभवतया उत्कीर्णन मिट गया होगा। 
छाज की संरचना व कला बताती है कि  भवन में उच्च प्रकार की काष्ठ कला   संरचना रही होंगी जैसे कि सीमावर्ती  पिथौरागढ़ के  मुन्सियारी , कुटी या गाब्रियल , जौहर घाटी में मिलती हैं।   
निष्कर्ष निकलता है कि  भवन की छाज में प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकृत कला उत्कीर्णित हुआ है।
सूचना व फोटो आभार:शुभम मानसिंह
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . भौगोलिक मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
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