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Jagar: Calling Of God - जागर: देवताओं का पवित्र आह्वान

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Risky Pathak:
Pankaj Daaa.... Waah waah Mjaa Aa gyaaa....

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पंकज सिंह महर:
जागर के लिये धूणी

जागर के लिये धूणी बनाना भी आवश्यक है, इसे बनाने के लिये लोग नहा-धोकर, पंडित जी के अगुवई में शुद्ध होकर एक शुद्ध स्थान का चयन करते हैं तथा वहां पर गौ-दान किया जाता है फिर वहां पर गोलाकार भाग में थोड़ी सी खुदाई की जाती है और वहां पर लकड़ियां रखी जाती हैं। लकड़ियों के चारों ओर गाय के गोबर और दीमक वाली मिट्टी ( यदि उपलब्ध न हो तो शुद्ध स्थान की लाल मिट्टी) से यहां पर लीपा जाता है। जिसमें जागर लगाने से पहले स्योंकार द्वारा दीप जलाया जाता है, फिर शंखनाद कर धुणी को प्रज्जवलित किया जाता है। इस धूणी में किसी भी अशुद्ध व्यक्ति के जाने और जूता-चप्पल लेकर जाने का निषेध होता है।
      नीचे चित्र में मंदिर की स्थाई धूणी दिखाई गई है।

पंकज सिंह महर:
जागर का मुख्य कार्य करता है जगरिया और वह जागर को आठ भागों में पूरा करता है।

१- प्रथम चरण - सांझवाली गायन (संध्या वंदन)
२- दूसरा चरण- बिरत्वाई गायन (देवता की बिरुदावली गायन)
३- तीसरा चरण- औसाण (देवता के नृत्य करते समय का गायन व वादन)
४- चौथा चरण- हरिद्वार में गुरु की आरती करना
५- पांचवा चरण- खाक रमाना
६- छठा चरण- दाणी का विचार करवाना
७- सातवां चरण- आशीर्वाद दिलाना, संकट हरण का उपाय बताना, विघ्न-बाधाओं को मिटाना
८- आठवां चरण- देवता को अपने निवास स्थान कैलाश पर्वत और हिमालय को प्रस्थान कराना

पंकज सिंह महर:
जागर के प्रथम चरण में जगरिया हुड़्के या ढोल-दमाऊं के वादन के साथ सांझवाली का वर्णन करता है, इस गायन में जगरिया सभी देवी-देवताओं का नाम, उनके निवास स्थानों का नाम और संध्या के समय सम्पूर्ण प्रकृति एवं दैवी कार्यों के स्वतः प्राकृतिक रुप से संचालन का वर्णन करता है।
जै गुरु-जै गुरु
माता पिता गुरु देवत
तब तुमरो नाम छू इजाऽऽऽऽऽऽ
यो रुमनी-झूमनी संध्या का बखत में॥

तै बखत का बीच में,
संध्या जो झुलि रै।
बरम का बरम लोक में, बिष्णु का बिष्णु लोक में,
राम की अजुध्या में, कृष्ण की द्वारिका में,
यो संध्या जो झुलि रै,
शंभु का कैलाश में,
ऊंचा हिमाल, गैला पताल में,
डोटी गढ़ भगालिंग में

........जारी है।

पंकज सिंह महर:
कि रुमनी-झुमनी संध्या का बखत में,
पंचमुखी दीपक जो जलि रौ,
स्योंकार-स्योंनाई का घर में, सुलक्षिणी नारी का घर में,
जागेश्वर-बागेश्वर, कोटेश्वर, कबलेश्वर में,
हरी हरिद्वार में, बद्री-केदार में,,
गुरु का गुरुखण्ड में, ऎसा गुरु गोरखी नाथ जो छन,
अगास का छूटा छन-पताल का फूटा छन
सों बरस की पलक में बैठी छन,
सौ मण का भसम का गवाला जो लागीरईए
गुरु का नौणिया गात में,

कि रुमनी- झुमनी संध्या का बखत में,
सूर्जामुखी शंख बाजनौ,उर्धामुखी नाद बाजनौ।
कंसासुरी थाली बाजनै, तामौ-बिजयसार को नगाड़ो में तुमरी नौबत जो लागि रै,
म्यारा पंचनाम देबोऽऽऽऽऽऽ.........!
अहाः तै बखत का बीच में,
नौ लाख तारों की जोत जो जलि रै,
नौ नाथन की, नाद जो बाजि रै,
नौखण्डी धरती में, सातों समुन्दर में,
अगास पाताल में॥



सांझवाली गायन बड़ा लम्बा होता है, धीरे-धीरे पूरा प्रस्तुत करूंगा।

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