Author Topic: Jagar: Calling Of God - जागर: देवताओं का पवित्र आह्वान  (Read 249645 times)

पंकज सिंह महर

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JAGAR from beat of INDIA

A sanskrit word- Jagar means to 'wake'. In this - a spirit is invoked in a living person's body. There are two kinds of Jagars - one invoking the 'ghost' of a dead person and the other invoking the spirit of a God or Goddess.

The Jagar is closely linked to beliefs of religious justice - so often a Jagar is organized as a way to seek penance for a crime or seek justice on any matter from the Gods. The main singer is called the 'Jagariya' and the person in whose body the spirit is invoked- the 'Dangariya'.

The Jagar is held at night and there are some that last as long as 11 nights. Its subjects consist of many local ballads and references from the Mahabharat and its tempo slowly increases and when it reaches fever pitch the Dangariya starts a kind of frenzied dance.



हर  दा सूरदास, चंचल सिंह रावल और प्रताप सिंह की आवाज में जागर सुनें


http://www.beatofindia.com/forms/jagar.htm

VEry good topic.  Thanks for info.
NAMO NARAYAN

पंकज सिंह महर

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श्रद्धेय चारु दा, प्रणाम,
       सबसे पहले तो आपका स्वागत है, आपकी उपस्थिति ने ही हमारे उत्साह को दोगुना कर दिया है। आप जैसे विद्वान और सामाजिक सरोकारों के पहरुओं का सानिध्य हमें मिल जाये, यही हमारे लिये बहुत है। मैने अपने अल्प ग्यान के आधार पर यह विषय प्रारम्भ किया है, लेकिन आप आ गये हैं तो "जागर" का सम्पूर्ण बोध हमें होगा, ऎसा मेरा विश्वास है।
      आप अपने आशीर्वाद से फोरम को अभिसिंचित करते रहें, यही मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है।

पंकज सिंह महर

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मां नन्दा को जागृत करने के लिये गढ़वाल में निम्न जागर लगाई जाती है-

गौंत रै गोबरल मण्डपऽऽ लिपाये,
मोती रै मणील चौक ऽऽ पुर्यायो,
रेणा रै पिठैंल मातुड़ी छवायो,
केम्पू रै केलील चौकऽ संजायो।
मासी रे टगरल धूप सुंघायो,
दूध रे ज्युन्दाल भोग लगायो॥
जैई रै माता ल कोरवी उगायो,
जैई रै धरती ल स्येलू धरी गात।
जैई रै गुरुल वेद पढ़ायो,
जैई रै राजाल जात करायो,
हे गाढ़ो रे गाढो़................।
हे को देऊ जालू ये माता कु बुल्वालो॥
ज्येठु भाई हो ह्रर्या वजीर बैलों बै अग्वालू करोलो,
ज्येठु भाई हि ह्रर्या वजीर बैंलो वै वाट कू गड़वालो॥
कांसु भाई लाटू बैंलो वै ओंसी कू झड़वालो।

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध लेखक गोविन्द चातक जी ने अपनी पुस्तक "गढवाली लोक गाथायें" के परिचय में जागर के बारे में लिखा है-

"गढवाल में जागर लगाते हुये जिस प्रकार देवता का आह्वान किया जाता है, इस प्रकार का लोक धर्म विश्व भर में किसी न किसी समय प्रचलित रहा है.व्यक्ति को माध्यम बना कर देवी शक्ति के आह्वान का उदाहरण मिश्र, चीन, जापान, अफ्रीका, ब्राजील आदि कई देशों में मिलते हैं.
जागर शुद्ध संस्कृत शब्द है जो जाग के साथ घल् प्रत्यय लगाकर बना है. उसका अर्थ है जागरण.
इन गीतों को जागर कहने का तर्क यह है कि इनमें देवी शक्ति को जाग्रत करने का आह्वान होता है. इसलिये इनका प्रारंभ जागने-जगाने के उद्बोधन से होता है.


हरि हरिद्वार जाग, बदरी केदार जाग, धौळी पयाळ जाग, भूमि का भुम्याळ जाग, छेत्र का छेत्रपाल जाग.,

प्रकट ह्वे जान-प्रकट ह्वे जान, पांच भाई पंडऊ.प्रकट ह्वे जान कौन्ती माता....

हेम पन्त

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देवता जिस मनुष्य पर अवतरित होते हैं उसे ’पस्वा’ या ’धामी’ कहा जाता है. देखा गया है कि धामी बनने का यह रिवाज पीढी दर पीढी चलता है. अर्थात धामी की उमर हो जाने पर वही देवता धामी के पुत्र पर या परिवार के किसी अन्य सदस्य पर अवतरित होने लगता है. धामी या पस्वा लोगो को कई तरह के परहेज रखने होते हैं. सामान्यत: धामी लोग हाथ में “कङा” पहनते हैं. देवता शरीर में आने से पहले और देवता के शरीर से हट जाने के बाद धामी सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करने लगते हैं.

आदरणीय मेहर जी,
जागर के बारे में इतनी जानकारी देने के बारे में बहुत बहुत शुक्रिया. 

हम लोग भी अभी गाँव में बैसी (२० बार जागर) लगा कर आये हैं. ४ जून से १७ जून २००८ तक. हमारे ग्राम देवता श्री ग्वेल जी हैं.  हमारे बडे़ देवता श्री नरंकार हैं जो कि शिवजी के निराकार रूप हैं उन्हें मामू महादेव भी कहते है क्योंकि उनकी बहिन कालिंगा के पुत्र ग्वेल देवता हैं और ग्वेल नाचते समय जय मामू का उदघोष करते है.  हमारे परिवार के द्वारा श्री नरंकार देवता का एक मन्दिर गाँव में बनवाया गया है और उसकी स्थापना अभी की गई तथा नरंकार एवं ग्वेल जी के नव अवतार हमारे परिवार के लोगों पर गढा़ये गये. हमारे ताउ जी के बेटे श्री इन्दर दा पर नरंकार और मेरे छोटे भाई  जय बिष्ट पर ग्वेल और नरसिंह जी का नव-अवतार हुआ इसीलिये ये बैसी दी गई. इसमें १९ बार घर के अन्दर की हुड़के वाली जागर लगी और बाकी ३ दिन बाहर धुनी के सामने वाली ढोल दमुवे और रणसिहं वाली जात्रा लगी.  देवताओं को रामगंगा में स्नान करवाने के लिये सोमनाथेश्वर (शिवालय, मासी, अल्मोडा़)  भी ले जाया गया. यह एक अद्वितीय अनुभव था.  हमने इसकी रिकार्डिंग भी की है.  मैं कोशिश करूंगा उसे अप्लोड करने की.

इस मन्दिर के निर्माण के पीछे भी एक कहानी है.
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यह कहानी है
गाँव- आदिग्राम कन्हौणियाँ,
पट्टी- तल्ला गेवाड़,
पोस्ट आफ़िस- मासी,
तहसील - चौखुटिया (गनाई),
जिल्ला - अल्मोड़ा
की.

आज से ४-५ पीढी़ पहले हमारे परदादा के समय वे लोग ४ भाई थे.  ३ भाई यों के तो वारिस थे पर एक भाई के कोई बेटा न था केवल शादी शुदा बेटियाँ थीं.  उस समय ऐसा ही जमाना था, खेती ही आय का ज़रिया थी.  उस भाई की मॄत्यु के बाद बाकी भाइयों ने उसकी विधवा को, जिसका नाम "धरती देवी" था, जमीन के लालच में बहुत सताया.  बिचारी क्या करती? उस जमाने में कानून का सहारा लेना उस दूर दराज के गाँव में सोच से परे था.  औरतों की दशा सोचनीय थी.  उसपर बेचारी अकेली वॄद्धा धरती देवी... जब अत्याचार असहनीय हो गया... गला गला   औसान आ गया तो उसे घ्रर छोड़्ना पड़ा.  उसके घर में बड़े देवता नरंकार का मन्दिर भी था.  आखिर वह देवता के आगे रोई... बोली .."आज मेरे पर यह अत्याचार हो रहा है और तू देवता बैठा देख रहा है..." यह कह कर वह अपने उस घर को आग लगा कर अपनी किसी बेटी के घर चली गई.  वहीं उसकी बाद में मॄत्यु हो गई.  इधर से किसी ने उसका पीपल-पानी (तेरहवीं आदि क्रिया कर्म) नहीं किया. उसकी आत्मा भटकती रही. इन ३ भाइयों ने उसकी जमीन हथिया ली. गाँव में नरंकार देवता का कोई मन्दिर न रहा और उनकी पूजा भी न के बराबर रह गई.

इधर उसकी धात देवता को लग गई थी.  देवता ने उसकी ज़मीन हथियाने वाले ३ भाइयौं को सताना शुरू कर दिया. वे तो बाद में मर खप गए पर देवता का कोप जारी रहा.  वह घर/मन्दिर जिसे धरती देवी जला गई थी मिट्टी में मिल गया था. धरती देवी को भी लोग भूल गये. केवल एक आम के पेड़ जो उन्होने लगाया था के द्वारा ही लोग उन्हें कभी -२ याद करते थे.  मैंने भी बचपन में इस पेड़ को देखा था और इसके आम खाए थे. उस मकान के पत्थर आदि उन लोगों ने अपने घर बनाने में प्रयोग कर लिये और वह खेत जिसमें वह मकान था बेच दिया.  कालांतर में उस खेत की खुदाई के वक्त वहां देवता के त्रिशूल, दीपक, चिम्टे आदि निकले तो गाँव के बुजुर्गों ने २-४ पत्थर लगा कर एक छोटा सा थान बना कर वे वहाँ स्थापित हुए मान लिये और वहीं पूजा करने लगे. मुख्य पूजा ग्वेल देवता की ही होती रही. 
यहाँ यह बता देना उचित होगा कि हमारी मान्यता के अनुसार नरंकार देवता सबसे बडे़ देवता शिव का निराकार रूप हैं  और उनके बाद हीत, हणुवाँ, ग्वेल तथा लाखुडा़ को उन्होंने अलग अलग कार्य तथा इलाके दिये हैं.  ये ही चारों देवता नरंकार के कार्य निष्पादित करते हैं. जागर आदि में भी नरंकार देवता केवल आसन लगा कर ध्यानमग्न हो जाते हैं तथा सभी बातें, विचार, फ़ैसले आदि ये चारों में से जो भी उस समय अवतरित रहता है वही देवता करता है.  हमारे गाँव की चौकी नरंकार ने ग्वेल देवता को सौप रखी है. इसलिए हमारे गाँव में मुख्य पूजा ग्वेल की होती थी. 

अब आइए मुख्य कहानी पर आ जायें. पीढ़ियाँ गुजरती गईं.  उन ३ भाइयों   की सन्तानों के आज बढ़ कर ५ परिवार हो गये. देवता का कोप भी बढ़ता गया.  हमारी पीढि़ में आकर इस समस्या का कारण  गण्तुआ से पता किया गया तो पूरी कहानी पता चली.  समस्या के समधान के लिये उस वॄद्धा (धरती देवी ... अब हम उन्हें धरती आमाँ कहते हैं) की अत्मा को अवतरित कराया गया जो कि हमरे एक चाचा के शरीर में अवतरित हुई.  पहले तो वह खूब रोई.. फ़िर काफ़ी क्रोधित हुई पर अन्त में काफ़ी मिन्नतें करके उनका हन्क पूजा/धोया गया ( ह्न्क पूजा भी एक महत्वपूर्ण विचार का मुद्दा है.. इसमें किसी के ह्न्क/गुस्से/अहंकार को लगी ठेस को पूजा द्वारा धोया जाता है, यह भी केवल देवभूमि कि विशेष देन है... अन्यत्र शायद कहीं ऐसा नहीं देखा गया).  धरती आमाँ के गहने आदि की भरपाई के लिये चान्दी के छोटे-२ गहने, उनकी धोती, दराती आदि बनवाई गई तथा उनका एक मन्दिर/थान घर के अन्दर बनवाया गया.
इन सबके साथ नरंकार देवता, ग्वेल देवता, हीत आदि को भी जागर में नचाया गया.  उस समय नरंकार की तरफ़ से हीत तथा ग्वेल ने फ़ैसला किय कि अब क्योंकि नरंकार देवता का मन्दिर हमारे परिवार की पूर्वज धरती आमाँ के द्वारा नष्ट हुआ था सो हमारे ५ परिवार ही उसका निर्माण करेंगे.  और उसके बाद पूरे गाँव वाले मिलकर बैसी देंगे और नरंकार की नये मन्दिर में स्थापना करेंगे और नरंकार गाँव के किसी व्यक्ती पर अवतार लेंगे.
ऐसा ही हुआ भी.  मन्दिर बना, बैसी हुई, नरंकार के नव-अवतार हमारे गाँव के तत्कालीन प्रधान श्री गुसाईं सिंह पर अवतरित हुए. नरंकार देवता ने कहा कि "क्योंकि आज मेरा इस गाँव में दुबारा प्रादुर्भाव केवल उस भुतणि (धरती आमाँ की आत्मा ) के कारण हुआ है सो आज से यह भी मेरे साथ रहेगी, इसका मन्दिर भी मेरे मन्दिर के साथ रहेगा. गाँव मे जब भी मेरी और ग्वेल की पूजा कोई करेगा तो इसकी भी पूजा उसे करनी पडे़गी."
सो धरती आमाँ का मन्दिर  नरंकार के मन्दिर के साथ ही बना दिया गया. और देवता के बताये अनुसार ही सब कार्य होने लगे. यह बात  आज से २० साल पहले की यानि सन १९८८ के अन्त की (सर्दियों) की है

उस वक्त मन्दिर निर्माण में कुछ कमी रह गई जिसके कारण उस मन्दिर में पत्थरों में दरार पड़ गई.  बाद में गाँव में पोलिटिक्श के चलते गाँव के लोगों ने वहाँ से अलग एक दूसरे मन्दिर का निर्माण कराया और वहाँ नरंकार और धरती आमाँ का मन्दिर स्थापित किया.  पर इसके लिये धरती आमाँ को नचाकर उनकी अनुमति नहीं ली गई.  इससे वे कुपित हो गई. पिछ्ले वर्ष जागरी लगाई गई तो उन्होंने कहा कि गाँव वाले मुझे और मामू महादेव (नरंकार) को दूसरी जगह ले गये हैं पर यह हमें मान्य नहीं है. तुम पाँचों परिवार मिलकर दुबारा उस २० वर्ष पुराने टूटे मन्दिर का पुनर्निर्माण करो.  इस दौरान उनके और नरंकार के डंगरिये के बीच कुछ  कटु वाद विवाद भी हुआ. इसपर धरती आमाँ ने कहा कि ये नरंकार का डंगरिया अब सच्चाई पर नहीं रहा, इस पर इस पर नरंकार नहीं नाच रहे हैं. उन्होंने लल्कारा कि मैं अपनी शक्ती दिखाती हूं, अगर तुम सच्चे हो तो मुझे रोक लो यह कह कर उन्होंने हाथ हिलाया तो वहाँ उपस्थित कई लोग नाचने लगे, चिल्लाने लगे और अजीब अजीब सी आवाजें निकालने लगे. मैं भी नाचने लगा.  हालाँकि मेरे उपर पहले कभी कोई अवतार नही आया था.  यह एक अजीब अनुभव था. मैं अपने वश में नहीं था.  बडा़ डरावना माहौल हो गया था. धरती आमाँ  ने नरंकार के डंगरिया से कहा कि अगर तू सच्चा नरंकार नाच रहा है तो इन सब  नाचने वालों को रोक कर दिखा. इसपर  वे (नरंकार के डंगरिया)  वहाँ से नाराज हो कर चले गये. फिर धरती आमाँ ने सभी नाचने वालों को शाँत होने की आग्या दी तो सभी शाँत हो गई. सभी को धरती आमाँ की शक्ती पर विश्वास हो गया था.धरती आमा ने कहा कि अब मैं तुम्हारे ५ परिवारों में ही सभी देवताओं का अवतरण करवा दूँगी तुम मुझ पर विश्वाश करके मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाकर बैसी दो. हमने वैसा ही किया और २ वर्ष का समय माँगा.  १ वर्ष में ही मन्दिर का निर्माण कार्य धरती आमाँ एवं देवताओं की कृपा से पूर्ण हुआ और ४ जून २००८ से १७ जून २००८ तक सुबह एवं शाम दोनों समय कि जागर के द्वारा बैसी पूरी हुई. जैसा कि पहिले बता चुका हुँ कि हमारे ताउ जी के बेटे श्री इन्दर दा पर नरंकार और मेरे छोटे भाई  जय बिष्ट पर ग्वेल और नरसिंह जी का नव-अवतार हुआ.  धरती आमाँ ने अपने खेत और अपने मन्दिर की मिट्टी हमें दी जो कि इस बात का द्योतक थी कि अब मैने अपनी जमीन तुम लोगों को अपनी मर्जी से सौप दी है.  उन्होंने और स्भी देवताओं ने खुश हो कर हम सभी को आशीर्वाद दिया.

इस दौरान कई अनुभव हुए जो  बयान नही किये जा सकते सिर्फ़ महसूस किये जा सकते है.

अब अगले वर्ष दुबारा १ दिन की जात्रा लगा कर बाजा खोला जायेगा.

जय ग्वेल देवता.
जय मामू महादेव
जय धरती आमाँ की.

वीरेन्द्र सिंह बिष्ट


 
 





Anubhav / अनुभव उपाध्याय

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Dhanyavaad Virendra ji is jaankaari ke liye. Aap Video ko 10 min ki kai clips bana kar youtube main upload kar dijiye. Uska link forum main post karne se woh sabko visible ho jaaega.

+1 karma aapko itni badhiya jaankaari ke liye.

Risky Pathak

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Bisht Jee +1 Karma for u....

For these real incident about jagar

पंकज सिंह महर

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बिष्ट जी, अपना अनुभव वृतान्त से फोरम को अवगत कराने हेतु आपको कोटि-कोटि धन्यवाद। साथ ही स्थानीय देवताओं की कहानी का सजीव चित्रण करने हेतु आपको +१ कर्मा

 

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