Uttarakhand > Culture of Uttarakhand - उत्तराखण्ड की संस्कृति

Jagar: Calling Of God - जागर: देवताओं का पवित्र आह्वान

(1/46) > >>

पंकज सिंह महर:
     जैसा कि आप सभी जानते हैं कि उत्तराखण्ड देवभूमि है और यहां पर कण-कण में देवी देवता निवास करते हैं। उत्तराखण्ड देवाधिदेव महादेव का घर भी है और ससुराल भी, वेद-पुराणों में भी सभी देवी-देवताओं का निवास हिमालय अर्थात उत्तराखण्ड में ही माना गया है। उत्तराखण्ड के लिये कहा गया है" जितने कंकर, उतने शंकर"।
      इन सभी देवी-देवताओं का हमारी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है और उत्तराखण्ड में देवी-देवता हर कष्ट का निवारण करने के लिये हमारे पास आते है, किसी पवित्र शरीर के माध्यम से और इसी प्रक्रिया को कहा जाता है- जागर।
    आइये जानते हैं जागर के बारे में और अन्य सदस्यों से भी अनुरोध है कि जो भी इस बारे में जो कुछ भी जानते हैं, उस जानकारी को हमारे साथ शेयर करें।

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Uttarakhand main Jaagar ka bahut hi mahatva hai. Jaagar se badi Parini ka bhi bhaag baanne ka mujhe 1 baar awsar praapt hua jo Jaagar se bhi badi hoti hai.

पंकज सिंह महर:
 

जागर का अर्थ है एक अदृश्य आत्मा (देवी-देवताओं) को जागृत कर उसका आह्वान कर उसे किसी व्यक्ति के शरीर में अवतरित करना और इस कार्य के लिये जागरिया जागर लगाता है, देवता की जीवनी और उसके द्वारा किये कार्यों का बखान करता है। इसमें हमारे लोक वाद्य हुड़्का और कांसे की थाली का प्रमुख रुप से प्रयोग किया जाता है।

पंकज सिंह महर:
मूल में जागर क्या है?.......कि सिद्धिदाता भगवान गणेश, संध्याकाल का प्रज्जवलित पंचमुखी पानस, माता-पिता, गुरु-देवता, चार गुरु चौरंगीनाथ, बारगुरु बारंगी नाथ, नौखण्डी धरती, ऊंचा हिमाल-गहरा पाताल, कि धुणी-पाणी सिद्धों की बाणी-बिना गुरु ग्यान नहीं, कि बिणा धुणी ध्यान नहीं, चौरासी सिद्ध-बारह पंथ-तैंतीस कोति देवता-बावन सौ बीर-सोलह सौ मशान, न्योली का शब्द-कफुवे की भाषा, सुलक्षिणी नारी का सत, हरी हरिद्वार कि, बद्रीकेदार, पंचनाम देवताओं का सत, इन सभी के धीर-धरम, कौल करार और महाशक्ति को साक्षी करके बजने लगा......शंख...कांसे की थाली और बिजयसार का ढोल और ढोल के बाईस तालो के साथ जगरिया बजाने लगा हुड़्का-  भम भाम, पम पाम और पय्या के सोटे से बजने लगी कांसे की थाली........।

मेरा सभी सदस्यों से अनुरोध है कि जागर में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का यहां पर उल्लेख किया जा रहा है, वह सभी पवित्र और हमारी स्थानीय आस्था से जुड़े हैं, मैं कई दिनों से ऊहापोह में था कि इनको फोरम में लिखा जाय या नहीं, विचार-विमर्श से तय हुआ कि यह हमारी लोक भाषा में आरती के समान है। तो मेरा इसे पढ़्ने वाले सुधी सदस्यों से अनुरोध है कि इसकी पवित्रता बनायें रखें, इसे पढे़ और इनका उच्चारण अशुद्ध जगहों पर न करें। बाकी आप सभी विद्वान हैं....।

पंकज सिंह महर:
जागर कई प्रकार की होती है, जागर एक दिन की होती है।
चौरास- चार दिन के इस कार्यक्रम को चौरास कहते हैं।
बैसी- बाईस दिन के कार्यक्रम को बैसी कहते हैं।

इसमें मुख्य रुप से तीन लोग होते है,
१- जगरिया या धौंसिया
२-डंगरिया
३- स्योंकार-स्योंनाई

Navigation

[0] Message Index

[#] Next page

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 
Go to full version