बचपन में हमने राखी का त्यौहार नही सुना / रक्षा बंधन ही सुना और तो और ब्राहमण लोग ही यजमानों के हाथो में रक्षा का धागा बाधते थे परिवार में जितने पुरुष जनेऊ वाले होते उतने जनेऊ देते थे उसके बदले में पडित जी को दक्षिणा और बैकर देते थे /
समय के साथ साथ सब कुछ बदल रहा है[/color]